27-04-1964     मधुबन आबू     प्रात: मुरली    साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हम मधुबन निवासियों की नमस्ते, आज मंगलवार अप्रैल की 27 तारीख है प्रात: क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं

कर्म, अकर्म और विकर्म का राज समझाया था । अभी भी समझाय रहे हैं कि मनुष्य इस समय में जो कर्म करते हैं, जबकि रावण राज्य है, जबकि मूत पलीती कपड़ है, सब ही भ्रष्टाचारी हैं, तो बाप बैठकर समझाते हैं कि क्यों भ्रष्टाचारी हो गए हो? क्योंकि रावण-राज्य है । इस समय में यहाँ रावण-राज्य है यानी 5 विकार हरेक के अन्दर प्रवेश है । इसलिए तुम सभी रावण सम्प्रदाय हो वा आसुरी सम्प्रदाय हो । आसुरी सम्प्रदाय तुम थे, अभी इस समय में तुम ईश्वरीय सम्प्रदाय बने हो, क्योंकि ईश्वर को पहचाना है । ईश्वर ने आय करके वा बाप ने आय करके अपनी पहचान दी है । अंग्रेजी में कहा जाता है- फादर शोज सन, फिर सन शोज फादर । तो फादर आकर यह समझाते हैं कि द्वापर से जब रावण-राज्य शुरू हो जाता है और भक्तिमार्ग भी शुरू हो जाता है, तो फिर जो तुम कर्म करते हो, वो सब विकर्म हो जाते हैं, क्योंकि पहला-पहला नम्बर काम महाशत्रु है । तुम उनके फंदे में फँस जाते हो, जंजीर में बंध जाते हो । तो हो गया विकार । तुम जो पावन थे, पावन दुनिया में रहने वाले, पतित बनते जाते हो । कोई भी ऐसा मनुष्य नहीं है जो मूत से पैदा नहीं होते हैं और फिर जब तुम सतयुग में होते हो तो वहाँ तुम्हारा कर्म अकर्म हो जाता है, क्योंकि रावण-राज्य नहीं है । उसको राम-राज्य ही कहते हैं । वहाँ कोई भी विकार नहीं है । न अशुद्ध अहंकार है माना कोई को भी देह-अभिमान नहीं है । देही-अभिमानी हैं । हम आत्माऐ हैं, यह मेरा शरीर है- यह उनको ज्ञान है । जब यह ज्ञान है तब ही तो कहा जाता है ना कि वहाँ जब बुड्ढे होते हैं तो अकाले मृत्यु होती नहीं है । तो वो जानते हैं कि हम आत्मा हैं, अभी यह शरीर बुड्‌ढा हो गया है, आयु बिल्कुल पूरी हुई है । जो वहाँ की आयु होती है बड़े ते बड़ी, अकाले मृत्यु कोई नहीं मरते हैं । तो वो आत्मा कहती है कि अभी हम यह पुराना शरीर छोड़ करके, ऐसे ही और फिर दूसरा नया ले लेते हैं । समझा ना! तो यही ये तो अच्छा ही हुआ ना । कोई पुरानी जगह छोड़ करके नई में बैठे तो अच्छा है ना । शरीर भी तो पुरानी जगह हो गई ना । तो आत्मा को मालूम रहता है कि अभी हमारा समय पूरा हुआ है । उनको पहले से साक्षात्कार हो जाता है कि अभी शरीर छोड़ने का है । तो खुशी से ऐसे बैठे-बैठे सबको बताय करके, अभी हम दूसरा शरीर लेते हैं । समझा ना । ऐसे यहाँ भी कोई कोई बहुत अच्छे सन्यासी लोग हैं, जो बैठे-बैठे शरीर को छोड़ करके फिर बोलते हैं कि हम जा करके ब्रहम में लीन होते हैं; परन्तु ब्रहम में तो लीन होने की कोई बात ही नहीं है । यहाँ पुनर्जन्म तो जरूर लेना है । वहाँ मनुष्य जो पुनर्जन्म लेते हैं, वो उनको मालूम पड़ता है कि अभी बुड्‌ढा हुआ है, अभी हम छोटा बच्चा बनने का है । कोई भी न रोने का, न पीटने का, न खुशी का । नहीं, वो एकरस रहते हैं और यहाँ तो देखो, बच्चा हुआ, खुशी हुआ, कल मरा और वो रोने शुरू कर दें । इसको ही कहा जाता है दुःखधाम ये भारत । यह भारत ही सुखधाम था । और कोई भी खण्ड को- चीनी खण्ड या बौद्धी खण्ड या इस्लामी खण्ड, उनको ऐसे नहीं कहेंगे कि वो सुखधाम और फिर दुःखधाम । नहीं । यह भारत सुखधाम सतयुग, दुःखधाम कलियुग । तो बस, कलहयुग में दुःख । तो फिर कहाँ जाना पड़ेगा? बाबा आ करके कहाँ ले जाएगा? गाइड बनकर फिर शान्तिधाम में ले जाएगा । हम शान्तिधाम के निवासी फिर सुखधाम में आते हैं । फिर माया के कारण आधा कल्प दुःखधाम में हैं । फिर हम जाते हैं शांतिधाम में । यह एक खेल बना हुआ है और खेल बना हुआ है भारत पर । इस साधारण खेल को कोई भी मनुष्यमात्र नहीं जानते हैं । कोई भी विद्वान नहीं जानते हैं; क्योंकि वो खुद कहते हैं- नेती-नेती, हम इस रचता और रचना के आदि-मध्य-अंत को नहीं जानते हैं, नहीं जानते हैं । तो जब यह कहते थे, तब ये सन्यासी या जो ऋषि-मुनि थे. वो संतोंगुणी थे । सो भी पुनर्जन्म लेते-लेते अभी तमोगुणी हो गए हैं और कह देते हैं- शिवो5हम् । हम शिव हैं, हम रचता हैं....ऐसे कहते हैं । इसलिए इनको कहा जाता है महान पापात्मा, हिरण्यकश्यप ...., क्योंकि फिर अपनी पूजा कराते हैं । तो बच्चों को अभी इस समय में चले जाना है शांतिधाम में; क्योंकि सभी भगत पुकारते हैं कि बाबा आओ । हम पतितों को पावन करके कहीं ले जाओ? अभी जब बाबा याद करते हैं तो परमधाम को याद करेंगे । फिर बाबा आय कहाँ ले जाएगा? बाबा परमधाम में ले जाकर फिर सुखधाम में भेज देंगे और कहते भी हैं कि बच्चे, तुमको पहले-पहले सुखधाम में भेजा था । तुम आधा कल्प सतयुग और त्रेता में सुखी थे । 16 कला, फिर 14 कला । पीछे रावण-राज्य शुरू हुआ । इस समय में कोई कला नहीं है बिल्कुल ही, सब पत्थर बुद्धि हो गए हो । जो भी मनुष्यमात्र हैं, सबको कहा ही जाता है पत्थरबुद्धि । बच्चों को पत्थरबुद्धि क्यों कहते है? कहते हैं देखो, तुम अपने बाप को भूलती हो । जिस बाप ने तुमको स्वर्ग का मालिक बनाया, विश्व का मालिक बनाया, माया ने तुमको भुलवाय दिया । तो नतीजा क्या हो गया? तुम निधन के बन गए । ऑरफन्स बन गए । नतीजा क्या है? आपस में लड़ते रहते हो । स्त्री पुरुष से लड़ती है, पुरुष स्त्री से लड़ता है, बच्चा बाप से लड़ता है । एक-दो का खून कर देते हैं, तो देखो ऑरफन्स हो गए ना! कोई घर में बच्चे लड़ते हैं, तो उनको कहते हैं- अरे, तुम्हारा कोई धनी-धोरी है, जो लड़ते रहते हो? तो देखो, यह है बेहद का । ये सब लड़ते रहते हैं । देखो, कितनी लड़ाई, कितना झगड़ा है एक-दो में, नेशन-नेशन में । समझा ना, कितना झगडा है! घर-घर में झगड़ा है ना । तो सतयुग में तो यह नहीं होता है ना । अभी इसका समाचार कौन सुनावे? बाबा, हम दु:खी क्यों हुए हैं? हम आपको याद क्यों करते हैं? तो बरोबर तुम याद करते हो- हे पतित-पावन! आओ, हमको पावन दुनिया में ले जाओ या शांतिधाम में ले जाओ । इसलिए गाया जाता है कि सद्‌गति दाता एक है । तो फिर दुर्गति कौन करते हैं? ये रावण दुर्गति करते हैं; पर रावण क्या? रावण तो दुर्गति नहीं करते हैं, जिनमें 5 विकार हैं वो दुर्गति करते हैं । हरेक मनुष्य में 5 विकार हैं । नर में भी 5 विकार हैं, नारी में भी 5 विकार हैं । तो इसीलिए इसको कहा जाता है 'आसुरी सम्प्रदाय' । तो इस समय में आसुरी सम्प्रदाय ये ही मनुष्य हैं, कोई दूसरे नहीं । और फिर बाप आकर इनको दैवी सम्प्रदाय बनाते हैं । तो जब यहाँ भारत में दैवी सम्प्रदाय होती है तब और कोई सम्प्रदाय होती ही नहीं है । यह समझने की बातें हैं ना । ये कोई मत्था टेकने की, घंटा बजाने की या फलाना करने की तो बातें नहीं हैं ना । वो हैं सब भक्तिमार्ग की यानी दुर्गति मार्ग तरफ । जब दुर्गति है तो उनकी महिमा है । भक्ति है तो उनकी ही महिमा है, क्योंकि ज्ञान है नहीं । ये कोई ज्ञान तो नहीं ना । ये वेद, ग्रंथ, शास्त्र वगैरह सब भक्तिमार्ग है । बाप कल्प-कल्प आ करके बच्चों को कहते हैं कि हे बच्चे, ये जो भी वेद-ग्रंथ-शास्त्र हैं ना, इनमें कोई सार थोड़े ही है । इनमें कोई भी सार नहीं है । अगर सार होता, तो तुम इतनी दुर्गति को क्यों पहुँचते? भारत का इतना बुरा हाल, कंगाल बिल्कुल, कौड़ी तुल्य! कहाँ वो राजे लोग जिनके सोने के महल । कहाँ ये गवर्मेन्ट जो सबसे कर्जा उठाती रहती है । इसको कहा जाता है बेगर गवर्मेन्ट । यह अपना चिहन दिखलाते हैं काँटे का तख्त बनाय करके । वो जो फाइनान्स मिनिस्टर होते हैं, देखो उनको बिठा दिया है और वो बेग कर रहे हैं । अभी तो भारत बेगर हुआ ना । अभी बेगर हुआ भारत, जो प्रिन्स था, बिल्कुल ही मालामाल था । उनमें हीरे-जवाहरों के महल बनते थे । तो याद दिलाते हैं कि तुम बच्चे जब स्वर्ग में थे, ये सब भक्तिमार्ग शुरू हुआ, कैसे सोमनाथ के मंदिर बनाये, हीरे-जवाहरों के रत्न जड़ित, तुम्हारे सोने के और हीरे के कितने महल होंगे । तो अभी याद दिलाते हैं कि देखो, जानते हो कि बरोबर भारत ऐसा था । ये लक्ष्मीनारायण किसमें रहते थे- हीरे-जवाहरों के महल में, क्योंकि विश्व के मालिक थे ना । इतना तो धन था जो मुसलमानो ने लूट करके अपने कब्रों में लगाय दिया । फिर उन कब्रों से भी दूसरे लोग ले गए । याद आता है या भूल गए हो? तो समझाते हैं ना बच्चों को । अभी फिर जबकि आया हुआ हूँ, तो तुम बच्चों को मुझे याद करना है; क्योंकि पतित-पावन मैं हूँ । कोई यह थोड़े ही है या मनुष्य थोड़े ही हैं या कोई ब्रह्मा विष्णु शंकर देवताएँ थोड़े ही हैं । नहीं, उनका भी रचता मैं जो निराकार शिव हूँ क्योंकि मेरा नाम सदैव शिव ही शिव है । भले मैं इसके शरीर में आता हूँ और तुम बच्चों को पढ़ाता हूँ । मेरा तो नाम फिर भी शिव है ना; क्योंकि मेरा शरीर थोड़े ही है । नहीं । मेरे शरीर का कोई नाम है नहीं, और सबका है । ब्रहमा का है, विष्णु का है, शंकर का है । मैं तो शिव ही शिव हूँ निराकार और सो भी मनुष्य जानते तो नहीं हैं कि मेरा आकार क्या है । वो तो लिंग बना रखते हैं । कहॉ-कहाँ तो इतने-इतने लिंग बनाते हैं, जैसे तुम्हारा पांडवों का चित्र बनाते हैं ना, क्योंकि ये कौरव गवर्मेन्ट है, तुम पांडव हो । तो पांडवों का चित्र एकदम बड़े-बड़े पत्थर के बनाए हुए हैं बैठ करके भक्तिमार्ग में; क्योंकि तुम बड़ा भारी काम करती हो । तुम पवित्र बन, श्रीमत पर चल और श्रेष्ठ बनते हो और श्रेष्ठ बनने के लिए ये सारी दुनियाँ फिर श्रेष्ठ बन जाती है, नई बन जाती है । तो जबकि तुम अभी मनुष्य से देवता बन रहे हो, तो यहाँ बनेंगे ना । सतयुग में तो नहीं बनेंगे । कलहयुग में तो नहीं बनेंगे ना । संगमयुग पर बनेंगे । तो इसको कहा जाता है कॉनफ्लुअन्स युग । यह जो कुम्भ कहते हैं ना, कुम्भ कोई वो नहीं है, ये गंगाओं का मेला या उन सागर और गंगाओं का मेला । वो कोई कुम्भ नहीं है । यह तो भक्तिमार्ग का कुम्भ है । कुम्भ तो यह है जबकि आत्माएं और परमात्मा जब आपस में मिलते हैं यानी बाप आ करके आत्माओं को या बच्चों को पढ़ाते हैं, इसको सच्चा कुम्भ कहा जाता है और वो है झूठा । तो गाया जाता है ना- झूठ तो मिरई झूठ, सच की रत्ती नहीं । तो देखो, कुम्भ कहा जाता है इसको जबकि आत्माएँ परमात्मा आकर मिलते हैं और परमात्मा सबको ले जाते हैं । उसको कहा जाता है- कुम्भ, संगम, सुहावना संगमयुग । और वो सन्यासी लोग और वो? वो तो मूत पलीती हैं, सो तो अपना कपड़ा धोने के लिए जाते हैं । समझा बच्चों? तो ये सभी बातें तुम बच्चों को धारण करनी हैं और समझानी हैं । पत्थर बुद्धि को फिर पारस बुद्धि बनाना है । ये सभी साधू-संत-महात्मा पत्थर बुद्धि हैं । 5000 वर्ष पहले भी ये भीष्मपितामह, द्रोणाचार्य फलाना, शास्त्रों में ये जो नाम रख दिया है, उनको कन्याओं द्वारा; यहाँ कन्याएँ कौन-सी? कन्या वो जो अपने कुल के 21 जन्म का उद्धार करे । सो तो तुम हो सकती हो ना । पतित कन्याएं सो तो शादी करके, जा करके पतित बनती हैं । जब पावन है तो पूजी जाती है और जब पतित बनती है तो वो पुजारी बन जाती है । यहाँ देखो, कन्या जब कन्या है, पवित्र है, तो मॉ-बाप भी उनको पूजा करते हैं, क्योंकि पावन का तो मान ही है, ब्रहमचर्य का तो मान ही है । बस कन्या पूज्य है, फिर शादी किया तो पुजारी; क्योंकि मूत पलीती बन गई । अभी ये तो कोई को पता नहीं है कि उनका फिर क्या हाल होता है । तो इसलिए बाप बैठ करके समझाते हैं कि नहीं, कन्या वो जो 21 कुल का उद्धार करे । वो कौन-सी? अभी तुम ब्रहमाकुमार और कुमारियॉ बरोबर इस भारत को 21 पीढ़ी के लिए स्वर्ग बनाती हो । समझे । एक की बात कोई नहीं है, नहीं तुम ब्रह्माकुमारियां-ब्रह्माकुमार शिवबाबा के पौत्र और पौत्रियों की बात है । तो ईश्वरीय सम्प्रदाय हो गए ना । देखो, ब्रह्माकुमार-कुमारियॉ कितने हैं अभी और कितने बनेंगे? ढेर बनेंगे ना । तो जरूर उनको डाडे का, शिवबाबा का वर्सा मिलना चाहिए ना । शिवबाबा का क्या वर्सा मिलेगा? वो तो विश्व का रचता है, स्वर्ग का रचता है, पैराडाइज का रचता है , हेविन का, बहिश्त का रचता है । देखो, कितना अच्छा नाम है! तो जरूर तुम वर्सा उनसे पाएंगे ना । ब्रहमा के पास तो वर्सा नहीं है ना । नहीं, यह डाडे का वर्सा है । डाडा खुद आ करके कहते हैं कि हम तुम्हारा बेहद का बाप है तो तुमको बेहद सुख का वर्सा देता हूँ । तुम्हारा लौकिक बाप अल्प काल क्षणभंगुर का वर्सा देते हैं, सो भी दुःख का । मैं तुमको बेहद सुख का वर्सा देने आता हूँ । इसलिए तुमको श्रीमत पर चलना चाहिए । जब कहते हैं कि बच्चे, विकार में मत जाना तो तुम नहीं जा सकती हो । विकार का मूत पीना अच्छा है क्या? मूत पीते-पीते तो तुम इतने दु:खी हुए हो । सब दु:खी । यहाँ कोई एक भी मनुष्य सुखी नहीं है । भले किनको विमान है । यह भी तो अल्प काल का है ना । अभी उनका मौत आ जाएगा । तो इसलिए बाप को भी कहा जाता है गरीब निवाज । अच्छा, अभी भारत सबसे गरीब है, तो जरूर यहाँ आना पड़े । बरोबर शिवरात्रि या शिवजयन्ती तो यहाँ होती है ना । कोई दूसरे मुल्क में नहीं होती है । परमपिता परमात्मा का, जिसको अवतार कहा जाता है, कहाँ होता है? भारत खण्ड में; क्योंकि भारत खण्ड ऊँच ते ऊँच खण्ड और अविनाशी खण्ड है, क्योंकि अविनाशी बाप का ये बर्थप्लेस है । यानी शिव जयन्ती यहाँ भारत में मनाई जाती है । समझा ना । देखो, भारत में है ना, तुम बच्चों को फिर बैठ करके, यह जो अभी भारत कंगाल हो गया है, बिल्कुल ही चट खाते में, फिर यहाँ, आज तो है रात, कल दिन होगा । आज यह भारत कंगाल है, कल फिर हीरे जैसा बन जाएगा । तो हीरे जैसा और कौड़ी जैसा या पावन और पतित । श्रेष्ठाचारी और भ्रष्टाचारी । विकारी, पवित्र और निर्विकारी । तो देखो यह खेल है जो कोई भी नहीं जानते हैं, क्योंकि आगे के ऋषि-मुनि भी कहते हैं- रचता और रचना बेअंत है, हम नहीं जानते हैं । तो जब वो नहीं जानते हैं, श्री लक्ष्मीनारायण जो सतयुग के मालिक बनते हैं, वो भी ये नॉलेज ले करके बनते हैं । फिर वो नॉलेज खलास हो जाती है । फिर उन लोगों में कोई नॉलेज नहीं रहती है । तो जिस कृष्ण के लिए कहते हैं गीता का भगवान, वो कृष्ण बच्चा जो शादी के दिन नारायण बनते हैं, उनको नॉलेज तो कोई होती नहीं है । यह नॉलेज जिसको भारत का प्राचीन राजयोग कहा जाता है, वो नॉलेज तो सतयुग में होती नहीं है । यह तो सिर्फ ब्राहमणों में होती है । समझा ना । फिर देवताओं में यह नॉलेज नहीं होती । जब देवताओं में नॉलेज नहीं होती तो फिर यह नॉलेज कहाँ से आई? यह गीता कहाँ से आई? भक्तिमार्ग के लिए ये सभी सामग्री फिर हैं धक्का खाने की । आधा कल्प जो भक्तिमार्ग में धक्का खाने हैं, ये बनते रहते हैं; क्योंकि भक्ति करते हैं सो भी पहले अव्यभिचारी भक्ति करते है । भक्ति में पहले-पहले सिर्फ शिव को याद करेंगे । समझा ना । पूजा करते हैं ना; क्योंकि शिवबाबा ही तो सबको सद्‌गति देते हैं ना । जो भी इस समय में मनुष्यमात्र है, जो भी पैगम्बर, मैसेंजर गाए जाते हैं, वो क्राइस्ट, इस्लाम, बौद्धी फलाना इस समय में सब तमोप्रधान हैं, पतित हैं; क्योंकि पुनर्जन्म भोगते- भोगते इस समय में जड़जड़ीभूत अवस्था को पाए हैं । सब तमोप्रधान सब दु:खी हैं । समझो, अभी पोप है । यह इनका बड़ा गुरु है । समझा ना । क्योंकि नम्बरवार ये बैठते जाते हैं ना । अरे!, ये क्या गुरु की सुनते हैं कोई? कभी नहीं सुनेंगे, क्योंकि यह जो सतगुरु है, सबका गुरु, सबका गुरु ही तो सद्‌गति दाता कहा जाता है ना । जो सद्‌गति देते हैं उनको गुरु कहा जाता है । तो सबको सद्‌गति देंगे । सब यहाँ दु:खी हैं । पोप-पादरी वगैरह जो-जो भी हैं सभी मूत पलीती हैं । जो-जो भी इस समय में गुरु लोग हैं, जिनको ये पूजते हैं, जिनके इतने फॉलोअर्स हैं, सब मूत पलीती और भ्रष्टाचारी हैं । यही कोई योगबल तो होता नहीं । तो बाप समझाते हैं ना कि भारत का योगबल जो मशहूर है तो यहाँ सच्चा योगी कोई भी नहीं है । योगी तो तुम बनते हो, जो स्वयं परमपिता परमात्मा तुमको आ करके अपने साथ योग लगाते हैं; क्योंकि इनको ले जाना है अपने साथ । वो जो सन्यासी हैं वो तत्वज्ञानी हैं । तत्व वही है जिसमें हम आत्माएँ रहती हैं या ब्रह्मज्ञानी । ब्रहम उसको कहा जाता है जहाँ हम आत्मा रहते हैं । उसको कहा जाता है ब्रहमाण्ड, हम आत्माएँ वही रहती हैं । तो ये लोग ब्रहमाण्ड, जहॉ हम रहते हैं, उस ब्रहम को भगवान कह देते हैं । अहम् ब्रहम ऐसे कह देते हैं । अस्मई अर्थात इस माया का, रचना का । माया का तो कोई मालिक नहीं है । माया तो रावण है । तो माया माया रावण को कहा जाता है । धन को सम्पत्ति कहा जाता है । मनुष्य कहते हैं इसके पास माया बहुत है । अरे, माया नहीं है, सम्पत्ति बहुत है । माया बहुत अगर कहेंगे, तो उनके 5 विकार बहुत हैं इनमें' क्योंकि माया जिसको कहा जाता है वो 5 विकार को कहा जाता है, रावण को कहा जाता है । तो पत्थरबुद्धि हैं ना । कोई भी एक लब्ज का भी अर्थ नहीं समझते हैं; क्योंकि पत्थरबुद्धि हैं । इसलिए सब दु:खी हैं । समझा ना । जैसे गुरु पत्थरबुद्धि तो फॉलोअर्स भी पत्थरबुद्धि । क्यों? अच्छा समझो, सन्यासी गुरु है, पवित्र है । फालोअर तो पवित्र नहीं है ना । भला उनको क्यों नहीं कहते हो कि तुम फालोअर काहे का हो? तुम झूठ बोलते हो । समझा ना । तो कहना चाहिए ना कि तुम फालोअर हो ही नहीं, सन्यासी हो ही नहीं । सन्यास किया ही नहीं, पवित्रता धारण नहीं किया, फालोअर कैसे हो? तो गाया जाता है ना- गुरु जिसके अंधले चेले सत्यानाश । तो ऐसे ही जिसको गुरु कहेंगे वो उनके) चेले पवित्र हैं ही नहीं, तो इनको फिर फालोअर क्यों कहना चाहिए? तो बाप आ करके ये बातें समझाते हैं कि मैं आया हुआ हूँ तुमको आप समान बनाय, अशरीरी बनाय, तुम्हारी ज्योत जगाय, हम तुमको साथ में ले जाऊँगा । देखो, वो शादी करते हैं तो पिछाड़ी में वो ज्योत का कूप रख आते हैं । साजन आगे फिर वो रख देते हैं । अभी जो पुरुष होते हैं आगे उनके ऊपर नहीं रखेंगे यानी पिछाड़ी वाली को ज्योत जगेगी । इससे ही बाप कहते हैं मैं हूँ तुम्हारा साजन । मैं तो हूँ जागती ज्योत । तुम्हारी ज्योत उझानी हुई है । इसलिए अगर तुमको फालो करना है तो पहले ज्योत जगानी है जरूर यानी पवित्र बनना है और फिर तुम मेरे पिछाड़ी जाएँगे । और जो अच्छा होगा एकदम वो मेरे साथ जाएगा, कोई सजा-वजा नहीं खाएंगे । अगर कोई भी योग में ठीक नहीं रहा या ज्ञान में ठीक नहीं रहा तो फिर सजा खानी पड़ेगी । जब सजा खाएंगी तो फिर तुम आ सकती है पिछाड़ी में । तो पास होएंगी विथ मोचरा भी खाएंगी, फिर वहाँ माल भी देंगे । कुछ वर्सा दे देंगे । नहीं, पिछाड़ी में धर्मराज का मोचरा नहीं खाओ । इतना योग से अपने विकर्मो को विनाश करो । इसको कहा जाता है योग । योग कोई दुनिया में थोड़े ही होता है । ये सब कोई योगी थोड़े ही हैं । ये सब भोगी, पतित हैं । एक भी योगी नहीं । योग एक होता है, जो खुद परमपिता परमात्मा आकर कहते हैं बच्चे, मन्मनाभव अर्थात् हे बच्चे, तो आत्मा से बात करते हैं ना । हे आत्माएँ! तुम अभी मुझे याद करो । मेरे को ही । मैं सर्वशक्तिवान हूँ ना, जागती ज्योत हूँ, तो मुझे याद करने से तुम्हारा जो विकर्म का बोझा है वो दग्ध होगा । ऐसे नहीं कि तुम गंगा में स्नान करेंगे तो कोई पावन हो जाएंगे । अगर ऐसे होता तो फिर पतित-पावनी गंगा को कहते । पतित-पावन कहकर तो उसको बुलाते हो ना, सब कोई साधु-संत 'पतित-पावन सीता-राम, पतित-पावन सीता-राम' कहते रहते हैं ना । तो बाप कहते हैं- देखो, मैं हूँ दाता । मैं कोई से लेता नहीं हूँ । ये सब कुछ तो तुम्हारे ही काम में लगता है । जो कुछ भी थोड़ा-बहुत, जो तुम गरीब बिचारे, कोई पैसा, कोई पाई, फूरी-फूरी तालाब कहते हैं ना । इस समय बादशाही स्थापन करने में, तुमको विश्व का मालिक बनाने में कोई खर्चा थोड़े ही लगता है । नहीं । अरे, मनुष्य तो लड़ाई के लिए कितना सामान रखते हैं, कितना खर्चा करते हैं । जो आमदनी होती है उनमें आधा से भी जास्ती । आजकल तो 75% पैसा लड़ाई के खाते में चला जाता है । बाकी ये सिविल में पैसा आता है । इतना यह लड़ाई में खर्चा होता है । अच्छा, तुम्हारा क्या खर्चा होता है? तुम्हारा कोई का भी खर्चा नहीं है । बाबा का क्या खर्चा होता है? और तुमको विश्व का मालिक.... यह राज तुम बच्चों को बैठ करके समझाया जाता है समझने के लिए और औरों को समझाने के लिए । समझाने के लिए ये प्रदर्शनी, एग्जीविशन वगैरह जो करते हैं ना, उसमें पहली बात यह समझाओ कि तुम अपने, जिसको पतित-पावन बाप कहते हो, परमपिता परमात्मा उनसे क्या संबंध है? तो देखो, ये कहते हैं कि हमारा बाप है, फिर तुम क्यों कहते हो कि सर्वव्यापी है, कुत्ते में, बिल्ले में है? तुम उनको गालियों क्यों देते हो- कुत्ते का बच्चा, उल्लू का बच्चा, गधे का बच्चा? तो देखो, माया तुमको बाबा की ग्लानि सिखला देती है । समझा ना । तुम अपकार करते हो अपने बाप का, देवताओं का । अपकार का मतलब समझते हो? अपकार अर्थात ग्लानि करते हो । फिर देखो, मैं आ करके तुम बच्चों के ऊपर फिर उपकार करता हूँ क्योंकि मैं जानता हूँ तुम परमत पर चलते हो यानी रावण मत पर चलते हो और ड्रामा बना हुआ है, इसलिए तुमको दोष भी नहीं देता हूँ परंतु समझाता हूँ कि अभी ये जो तुम्हारी चाल है सर्वव्यापी की या फलाने की या सबको पूजना. मिट्‌टी को पूजना, मनुष्यों को पूजना. भूतों को पूजना, ये सभी बातें छोड़ दो । अब सिर्फ एक मेरे को याद करो । देखो, इसमें बैठ करके कहते हैं ना और फिर समझाया भी है कि परमात्मा का रूप क्या है । मनुष्य थोड़े ही जानते हैं परमात्मा का रूप क्या है, बिल्कुल नहीं । पत्थर बुद्धि क्या जानें परमात्मा का रूप क्या है । वो तो लिंग बना देते हैं इतना । लिंग भी इतना बड़ा बनाते हैं । जैसे पांडवों के बुत बनाते हैं । तो बाबा बोलते हैं, अरे परमात्मा तो एक बिन्दी है । इसको कहा जाता है बिन्दी-शिव । ये जो भाई-बंधु लोग होते हैं ना, वो जो कहते हैं, न 1,2,3,4,5,6,9 फिर शिव, बूडी कर देते हैं उनको ।... .अभी परमपिता परमात्मा का रूप भी यह, तो आत्मा का भी रूप यह; क्योंकि यह भृकुटी में चमकता है अजब सितारा, जिसको आत्मा कहते हैं । बहुत सूक्ष्म है, अति सूक्ष्म । यह सितारे तो इन आखों से देखने मे आते हैं, वो इतना इन आखों से देख नहीं सकते हैं । अति सूक्ष्म है । उनमें यह सभी के ड्रामा का पार्ट भरा हुआ है । अब यह कोई थोड़े ही समझते हैं; क्योंकि ऐसे तो नहीं हो सकता ना कि आत्मा और परमात्मा.. ...... । उसको भी आत्मा कहा जाता है; पर वो परम आत्मा है । परमधाम में रहने वाली आत्मा को परम आत्मा माना परमात्मा कहा जाता है । यह परमात्मा नाम नहीं है । परमधाम में रहने वाली परम आत्मा माना परमात्मा । तो हम हैं आत्माएँ जो परमधाम में रहती हैं । उसको फिर कहा जाता है परम । परम को सुप्रीम भी कहा जाता है । वो परमधाम में सदैव रहने वाली है.. ... । है वो भी इतनी छोटी । रूप उनका भी यह है । तो यह बाप समझाएँगे ना । जनावर बुद्धि, पतित बुद्धि, भूत बुद्धि मनुष्य ये कोई थोड़े ही जानते हैं । नहीं, ये तो सभी पतित हैं । देखो कहते हैं ना कि हम पतित हैं, भ्रष्टाचारी है । भ्रष्टाचारी अर्थ नहीं समझते हैं कुछ भी; क्योंकि पत्थरबुद्धि हैं । भ्रष्टाचारी माना ही मूत से पैदा हुए हैं । देवताएँ थोड़े ही मूत से पैदा होते हैं । अच्छा, बहुत ही तुम बच्चों को समझाया । बहुत क्या समझायें, समझना तो थोड़ा ही है । पहले-पहले नम्बर की बात मन्मनाभव अर्थात् हे आत्माएँ, हे बच्चे । तुम अपने बाप को याद करो तो तुम्हारा विकर्म विनाश होगा । फिर विकर्म विनाश होगा तो बाबा तुमको साथ में ले जाएगा । विकर्म विनाश न होगा तो फिर धर्मराज की दरबार में जाएँगे । वहाँ अच्छी तरह से पादर खाएगे, मोचरा खाएंगे । खा-खा करके हिसाब चुक्तू करके फिर ऊपर में चले जाएँगे । पद तो इतना मिलेगा नहीं । पद तो मिलेगा जो श्रीमत पर चलते रहेंगे । उसमें भी पवित्रता फर्स्ट । पवित्रता का तो तुम लोगों को भारत में मान है, कोई विलायत में मान नहीं है । विलायत में कोई पॉव नहीं पड़ते हैं । यहाँ कन्याओं को क्यों पाँव पड़ते हैं? मात-पिता आदि सब पड़ते हैं । वो ही जब पावन है तो सब पाँव पड़ते हैं, जब शादी की तो सबको पाँव पड़ती है । दूसरे घर में जाओ तो ससुर को, फलाने को, सबको, क्योंकि ये गई है मूत पलीती बनने के लिए, तो चलो मत्था टेको । यह भी फर्क नहीं समझ सकते, क्यों? ये सब पत्थरबुद्धि पतित हैं । बच्चों को सम्मुख समझाते हैं ना । अभी तुम कहेंगी, शिवबाबा देखने मे नहीं आता । अरे, क्या देखने मे आवे! वो तो दिव्यदृष्टि से देखा जाता है । सो भी क्या देखेंगे? अच्छा, स्टार देखेंगे । कोई कहते हैं, हाँ बरोबर मैं शिवबाबा का दीदार किया । दीदार किया, कोई गति को थोड़े ही पाया । नहीं । यहाँ तो तुमको पढ़ना है, पतित से पावन बनाना है, कर्मातीत अवस्था बनानी है । तुम्हारे सिर पर जन्म-जन्मांतर का बोझा है, उसको विनाश करना है । विश्व का मालिक बनना कोई मासी का घर थोड़े ही रखा हुआ है । विश्व का मालिक यह बनना, देखो कितनी पूजा होती है, कितने मंदिर बनते हैं । सो भी तुमको समझाया गया है कि पहले ते पहले नम्बरवन शिवबाबा का मंदिर । तो जितना उनका मंदिर बना था.........कोई लक्ष्मीनारायण के मंदिर में थोड़े ही लगती है इतनी । उन जैसा मंदिर तो कोई बनाय नहीं सकते हैं, सोमनाथ जैसा । भले कोई बैठ करके इनका सोने का मंदिर बनाया, अरे पर वो आवे कहाँ से! जवाहरात और जो उसमें थे, वो थोड़े ही रखे । तो वो फिर रिपीट होगा ना । तुम फिर देवता बनते हो, फिर इतने साहुकार बनेंगे । तो इस चक्र को कहा जाता है- स्व यानी आत्मा को दर्शन हुआ । काहे का? इस ज्ञान का, यह चक्र का । इसको कहा जाता है स्वदर्शनचक्रधारी । तो तुम ब्राहमण हो स्वदर्शनचक्रधारी, तुम्हारे में नॉलेज है । समझा ना । यह जो चक्र और यह जो है ना, ये तुम्हारे लिए है; परन्तु ये दिखला देते हैं सूक्ष्मवतन में विष्णु के लिए । विष्णु का दो रूप तो है लक्ष्मीनारायण उनको भला क्यों नहीं देते है? परन्तु नहीं, यह ब्राहमण में है । तो तुमको यह ज्ञान मिलता है । कोई हथियार नहीं है, वो चक्डी(चक्र) नहीं है, वो गदा नहीं है । यह समझ की बात है । तुम जानते हो इस बात को, जिससे तुम चक्रधारी राजा बनते हो इस सृष्टि के आदि-मध्य-अंत को जानने से । चलो बच्ची, टोली दो । धारण करना चाहिए ना । अभी जिस दिन इनको धारण करेगा वो अपना कल्याण करेगा । धारण करेंगे, औरो को धारण कराएँगे । तुमको सुनना है सुनाना है । वो जो जा करके कथाऐ-वथाएँ सुनते हैं, वो बस सुनते हैं, सुनाते कहाँ हैं! कुछ भी नहीं । तुमको यहाँ सुनना है, सुनाना है, पावन रहना है । समझा ना; क्योंकि कहते हैं 'बाबा । स्त्री मी कहती है 'बाबा । अब 'बाबा कहते हैं तो भाई-बहन हो गए ना । यह है युक्ति कि पवित्र कैसे रहें । स्त्री और पुरुष यह अन्तिम जन्म पवित्र कैसे रह सकें? वो सन्यासी तो नहीं रह सकते हैं । भाग जाते हैं । बोलते हैं- यह नागिन है । तो नाग भाग जाते हैं । यानी वो क्रियेशन को विधवा बनाकर चले जाते हैं । तुमको तो घर छोड़ना नहीं है । तुमको तो बेहद का सन्यास करना है । इस सारी दुनिया को भूल जाना है । कलाएँ धारण करना है ।……पास तब होंगे जब कम से कम आठ घण्टा पिछाड़ी में तुम्हारी बाबा के साथ याद रहेगी और तुम्हारा रजिस्टर यह दिखलाएगा कि बरोबर इसने इतना याद का यह पुरुषार्थ किया है । बाबा कहते हैं याद के लिए कोई बैठना थोड़े ही है । नहीं, कहाँ भी जाओ, उठो-बैठो, बाप को याद करना है । देखो, बच्चे जो होते है, बाप को याद करते हैं । बड़े होते हैं, उनको तो बाप याद आएगा, मिल्कियत याद आएगी । तो उठते-बैठते, स्नान करते, कही भी जाते, क्या बाप और मिल्कियत याद नहीं होती होगी? तो तुमको भी इतना सहज है ना । हमको शिवबाबा से वर्सा लेना है । कौन कहता है, बैठ करके याद करो! नहीं, जहॉ भी जाओ, जहाँ भी फुर्सत हो, अपना रजिस्टर रखो कि हम बाप को कितना समय याद करते हैं । सिर्फ ये रखो, और जास्ती थोड़े ही कहते हैं । चाहे तो लिखो, चाहे तो बुद्धि में धारण करो । अच्छा, मीठे-मीठे लकी ज्ञान सितारे । वो सितारे नहीं । वो कोई देवताएँ नहीं हैं, वो जो गाते हैं- सूर्य देवता, चन्द्रमा देवता, नक्षत्र देवता । ये पत्थरबुद्धि । देवता मनुष्य होते हैं, स्वर्ग मे रहने वाले को देवी-देवता कहा जाता है । इनको देवता थोड़े ही कहा जाता है । तो पत्थर बुद्धि हुए ना । यानी वो तो हैं इस ड्रामा के, यह जो बड़ा माण्डवा है, आकाश का तत्व है, जहाँ तुम खेल करते हो, उसको रोशनी देने वाले । उनमें कोई देवता थोड़े ही रखे हुए है । वो तो नैचुरली खड़े हैं जैसे वहाँ और बहुत ऊँचे हैं । यह जो बैठ करके कोशिश करते हैं कि हम जावें । ये कोशिश करते-करते मर जाएँगे । ये तो कोई चन्द्रमा के ऊपर जाकर प्लॉट नहीं रखे हुए हैं । अरे, यह तो बत्ती है ना । इसको कहा जाता है- बड़े बेहद के माण्डवे की बत्तियां । दिन- सूर्य, रात- चन्द्रमा और सितारे । ये तो नैचुरल हैं वहाँ ।यहाँ कोई जगह नहीं रखा ना। ये भला इन लोगों ने ये सब कहाँ अक्ल लाया की हम ऊपर में। । वो जो शास्त्रों में है ना- आकाश-आकाश, पाताल-पाताल, बहुत दुनियाएं हैं । तो यह समझते हैं, यह सब दुनियाँ है । एक-एक स्टार दुनिया है, ये ऐसे समझते हैं । कोई छोटी दुनिया, कोई बड़ी दुनिया । तो यह दुनिया के ऊपर जाना चाहते है । तो यह भी तो पत्थरबुद्धि हुआ ना ।.. .. .देखो, आपस में जल मर करके इनका विनाश हो जाता है । चन्द्रमा में जा करके फ्लैट्स नहीं लेते हैं, मर जाते हैं बिचारे । मरके ये सभी पैसा बरबाद कर देते हैं । इसको इधर साइंस-घमण्ड । अच्छा, यह कोई खराब तो नहीं है ना फिर भी । अभी यह फिर तुम्हारे काम में आएँगे । तो देखो विमान अभी निकले हैं जो तुमको कल इनके लिए विमान सुख के लिए अल्पकाल और फिर दुःख के लिए । मार करके अपने खत्म कर देंगे । और यह जो फिर सुख के लिए फिर वो सतयुग में तुम्हारे काम में आएँगे । अच्छा, सिकीलधे लकी सितारों प्रति मात-पिता का यादप्यार और गुडमोर्निंग