28-04-1964     मधुबन आबू     प्रात: मुरली    साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हेलो, स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुलभूषणों को हम मधुबन निवासियों की नमस्ते, आज बुधवार अप्रैल की अठाईस तारीख है, प्रात: क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।

रिकॉर्ड :-
नैनहींन को राह दिखाओ प्रभु.......

बच्चों ने गीत सुना । किसको याद फरमाते हैं? प्रभु को । क्या कहते हैं? हे प्रभु! हम अंधे हैं । दर-दर, पग-पग ठोकरें खाते ही रहते हैं । पग माना पांव पड़ते-पड़ते । दर-दर अर्थात गुरुओं के दर पर वा मंदिरों के दर पर कहाँ-कहाँ नदियों के दर पर धक्का खाते ही रहते हैं । 'हम अंधे के औलाद अंधे- देखो, अपन को आपे ही कहते हैं ना । आपे ही आ करके कहते हैं- हे प्रभु! हे प्रभु का अर्थ तो समझते नहीं हैं । तुमको तो बाप है ना । तो ऐसे नहीं कहते हे बाबा! वा शिवबाबा। तो प्रभु कह करके समझते नहीं हैं कि प्रभु क्या है? बस, उस प्रभु को भी बहुत ही नाम दे दिए हैं- निराकार है, नाम-रूप से न्यारा है । अभी नाम और रूप से न्यारी कोई चीज होती भी नहीं है । बाप आ करके समझाते हैं कि जो कुछ कहते हो, कुछ समझते भी हो या एकदम पत्थर बुद्धि हो कि परमपिता परमात्मा नाम-रूप से न्यारी तो कोई चीज हो ही नहीं सकती है? तो तुम कैसे कहते हो कि परमपिता परमात्मा नाम-रूप से न्यारा है? पिता नाम-रूप से न्यारा हो कैसे सकता है? पिता को बच्चे होते हैं, फिर नाम-रूप से न्यारा कैसे हो गया। तो बाप आकर समझाते हैं कि इनकी सूरत तो मनुष्य की है । इन लक्ष्मी नारायण की भी सूरत मनुष्य की है ना । इनकी महिमा देखो कैसी है । वो आपे ही अपनी निन्दा करते हैं, हम अंधे हैं । तो गाया हुआ है बरोबर, एक है अंधे की औलाद अंधे, दूसरे हैं बाप आकर जो रास्ता बताते हैं उस रास्ते पर चलते हैं, वो फिर सज्जे हो जाते हैं, क्योंकि तुम बच्चों को अभी बाप की भी पहचान मिल गई, जिसको वो लोग कहते हैं नाम-रूप से न्यारा है .फलाना है । ज्ञान सागर बाप अभी स्वयं तुम बच्चों को पढ़ाते रहते हैं । तुम बच्चों को सारा रास्ता अच्छी तरह से बताय दिया है कि मुक्ति और जीवनमुक्ति किसको कहा जाता है । साधु-संत-महात्मा कोई मुक्ति या जीवनमुक्ति का अर्थ नहीं जानते हैं । जैसे उनको नाम-रूप से न्यारा कह देते हैं ना, तैसे ये फिर मुक्ति और जीवनमुक्ति क्या वस्तु है, यह विद्वान-आचार्य-पंडितों को बिल्कुल जरा भी पता नहीं है । तो बताओ, वो गुरु कैसे हो सकें जो मुक्ति और जीवनमुक्ति की राह को जानते तक नहीं हैं? मुक्ति किस चीज का नाम है? वहाँ क्या होता है? वो उन्हें पता भी नहीं है और जीवनमुक्ति का भी पता नहीं है । मुक्ति और जीवनमुक्ति के लिए देखो ये इतने सभी सन्यासी सन्यास करते हैं, घर-बार छोड़ते हैं । कितने सन्यासी होंगे? थे तो नहीं ना । यह सन्यासी शंकराचार्य जब आया उनके पीछे इनका धर्म स्थापन हुआ । अभी उनमें भी तो अनेक मत हैं ना । ... जब भी कुम्भ का मेला होता है ना छोटे-छोटे. इतने-इतने इन लोगों के पास आते हैं । जैसे गवर्मेन्ट के पास अभी दवाइयाँ हो गई हैं ना । बच्चा न पैदा करना, बिगर स्त्री-पुरुष के बच्चा पैदा करना, ये सभी दवाइयाँ निकल गई हैं ना । तो उनके पास ये दवाइयाँ होती हैं, जो वो बच्चों को खिलाय-खिलाय करके उनको निखट्टे कर देते हैं । फिर उन लोगों को काम-वाम का पता भी नहीं; क्योंकि कर्मेइन्द्रियाँ ही बिल्कुल मर जाती हैं । तो ढेर के ढेर आते हैं.. । अभी ये ड्रामा में भी इनका यह पार्ट है; क्योंकि भारत को कुछ न कुछ पवित्रता के ऊपर कैसे भी थमाना है जरूर कि सभी पतित न हो जावें एकदम आहिस्ते-आहिस्ते, धीरे-धीरे । तो ये सन्यासी लोग जो पवित्र रहते हैं, वो कोई ज्ञान से नहीं, योग से नहीं मेहनत से नहीं पवित्र बनते हैं, यह तो दवाई खा ली है और मुर्दे बन गए हैं । अभी इनसे तो कोई भारत को ताकत नहीं मिल सकती है । ताकत मिले तब जबकि गहस्थ-व्यवहार में रह करके पवित्र रह दिखाएं । इसमें हिम्मत चाहिए । वो तो हो गए कायर सन्यासी जो घर-बार छोड़कर जाते हैं और ही क्रियेशन को विधवा बनाकर जाते हैं, नर्क में डालकर चले जाते हैं । अभी गृहस्थ में रहते हुए स्त्री और पुरुष या बालक और बालकी दोनों स्वयंवर रचें, शादी करें और पवित्र रहें, उसको कहा जाता है बालब्रह्मचारी युगल । यहाँ हैं ना बालब्रह्मचारी युगल कि बाबा हम शादी भी करके दिखलाते हैं । सन्यासी कहते हैं कि ये आग और कपूस हैं ; क्योंकि इनको ज्ञान तो मिल जाता है ना । तो हम शादी भी करके दिखलाते हैं । बरोबर हम ब्रहमचारी भी रह सकते हैं । यह एक होता है पान का बीड़ा उठाना । हम क्या न कर सकते हैं, जबकि श्रीमत है और बल है । हम स्वयंवर भी करते हैं और पवित्र भी रहकर दिखलाते हैं । तो सन्यासियों को दिखलावें, यह कोई सर्प और वो नहीं हैं, यह योग का बल है, ज्ञान का बल है । बाप से बल मिलता है कि गृहस्थ-व्यवहार में रह करके भी पवित्र रहकर दिखलाओ, तभी तुमको यह ऊँच ते ऊँच पद मिल सकता है । .....कम नहीं है । यह एक तो नहीं हैं ना, सूर्यवंशी-चंद्रवंशी जो इतना बनते हैं, गृहस्थ-व्यवहार में रहते हुए पवित्र रहना बड़ी बात है ना । धरक जाते हैं । ये सब कोई कहते हैं । सन्यासी कहते हैं कि बिल्कुल हो नहीं सकता है । सन्यासियों को तो कुछ पता नहीं है ना कि ये तो ताकत है । परमपिता परमात्मा ही आ करके ये पवित्र प्रवृत्तिमार्ग स्थापन करते हैं, क्योंकि सतयुग में पवित्र प्रवृत्तिमार्ग था । ये देवी-देवताओं को हम पवित्र कहते थे । भल पवित्र रहते हुए भी बच्चे तो होंगे ना । दुनिया को तो कुछ मालूम नहीं है ....कि परमपिता परमात्मा बैठ करके इनको ताकत देते हैं, जो वहाँ गहस्थ-व्यवहार में रहते हुए मी नंगन नहीं होते हैं । तो देखो है ना बरोबर । बरोबर ये जो समय है ना महाभारत या भागवत का जो द्रौपदी ने पुकारा कि यह दुःशासन मुझे नंगन करते हैं । तो देखो, यहाँ बहुत है अभी जिनके ऊपर दुशासन उनको जोरी नंगन करते हैं, पुकारती रहती है । तो जरूर कोई तो बात होगी ना । आसुरी दुनिया इसको कहा जाता है । पतित दुनिया माना आसुरी दुनिया पावन दुनिया माना ईश्वरीय दुनिया । यानी ईश्वर की स्थापना, वो असुर की स्थापना । रावण की स्थापना, ये राम की स्थापना । अब देखो, राम आकर रामराज्य की स्थापना करते हैं । वहाँ तो पवित्र चाहिए । पवित्रता फर्स्ट और तुम देखती हो कि काम कितना बलवान है । अच्छे-अच्छे बड़े-बड़े एकदम कहते है की काम बिगर ये विकार बिगर, जहर बिगर तो हम लोग रह भी नहीं सकते हैं । बहुत अच्छे-अच्छे मिलते हैं, बोलते हैं- यह तो इम्पॉसिबुल है कि कोई निर्विकारी रह सके अभी । अरे भई, सतयुग में तुम्हारे देवी-देवताएं निर्विकारी थे ना । तुम खुद देवताओं के आगे जाकर ये कहते हो- आप सर्वगुण सम्पन्न, सोलह कला सम्पूर्ण, हम पापी-नीच-विकारी । तो जरूर थे ना । तो उनको कोई बनाने वाला होगा ना । था भी सतयुग में ना । सतयुग स्थापना करने वाला भी तो बाप है ना । बाप ही आकर संगमयुग पर सतयुग स्थापना करते हैं । कलहयुग और सतयुग के बीच में बाप आते हैं ना । बाप तुमको शिक्षा दे रहे हैं । क्या कहते हैं? तुमको आसुरी सम्प्रदाय मनुष्य से दैवी सम्प्रदाय बनाते हैं । तुम अभी बाप के बच्चे बने हो, जिसको बाबा कहा जाता है । हे परमपिता! ओ गॉड फादर! अभी ये बुद्धि में तो बैठता है ना कि निराकार है और परमधाम में रहते हैं । गॉड फादर.. तो समझते है ना । उनको पुकारते हैं बुलाते हैं- हे बाबा! क्यों हे बाबा पुकारते हैं? क्योंकि बहुत दुःख में हैं । अनेक प्रकार के दुःख हैं । 'हे बाबा कहते हैं, परन्तु बिल्कुल ही जानते नहीं । तो जैसे जनावर हुआ । जनावर भी अपने बाप को तो जानते हैं ना । कुत्ते-बिल्ले फलाने भी माँ-बाप को तो जानते हैं ना । अच्छा, यह भी तो मां-बाप को जानते हैं । अभी मनुष्य में और जनावरों में फर्क क्या रहा? क्योंकि मनुष्य ही तो कहते हैं ना- ओ गॉड फादर! ओ मदर! तुम मात-पिता, हम बालक तेरे । तो मात-पिता कहना और जानना कुछ भी नहीं, तो वो जैसे जनावर नहीं जानते हैं, वैसे ये मनुष्य भी नहीं जानते हैं । तो देखो, इस समय में हैं भी पूरे जनावर । सब लडते-झगडते, बहुत दु:खी । देखो, अभी पाकिस्तान की हो रही है । तुमको शिकल दिखावें? कल की अखबार देखी थी? उसमें शास्त्री खड़ा है और जवान खड़ा है और वो प्रेजिडेंट खड़ा है, फलाना खड़ा है- डर के मारे, कभी पता नहीं क्या होगा । पाकिस्तान ने चढ़ाई किया ना । तुम शिकल देखेंगे तो बिल्कुल मुर्दा की शिकल हैं एकदम । डरा हुआ है जैसे कि कोई सामने मौत आया, काल आया हुआ है । डरते हैं एकदम बिल्कुल । वो तो बाप आ करके इनको समझाते हैं कि बच्चे, अभी तुमको क्षीर सागर में । क्षीर सागर में किसको बिठाते हैं? विष्णु को । विष्णु माना श्री लक्ष्मी नारायण । क्षीर सागर तो यहाँ सतयुग । यहाँ नूंध भी नहीं मिलता है । देखो, भैंस से नूंध आता है । वहाँ नूंध की कोई कमी होगी? नहीं, स्वर्ग में कोई चीज की कमी नहीं है । तो बरोबर भारत, जो स्वर्ग था सो अभी नर्क बना हुआ है । अभी नर्क में तो दिखलाते हैं ना बिच्छू-टिंडन। तुम लोगों ने पढ़ा नहीं है? कभी गरुड़ पुराण नहीं सुना है? आजकल तो शायद नहीं सुनाते हैं; परंतु उनमें दिखलाते हैं कि सब एक- दो को डसते रहते हैं । तो तुम क्या पैदा करते हो अभी? बाप कहते हैं, तुम बिच्छू-टिंडन, नाग-बलाएं पैदा करते हो । शिकल मनुष्यों की है; पर चलन तो सबकी ऐसी है ना- एक-दो को मारते, खाते, पीते रहते, कितने गंदे-डर्टी कितने डांके मारते हैं । कितने मोस्ट डर्टीएस्ट! इसको कहा जाता अजामिलों की दुनिया । ये अजामिलों की दुनिया है । पापात्मा माना? कहते हैं ना, हम पतित हैं । हे पावन! आओ । हम भ्रष्टाचारी हैं, देखो गवर्मेन्ट कहती रहती है ना । तो भ्रष्टाचारियों में सदाचारी कहाँ से आएँ? अभी भ्रष्टाचारी, फिर सदाचारी सतयुग में । यहाँ कोई सदाचारी कहाँ से आया? क्या दान-पुण्य किया तो सदाचारी हो गया? नहीं, वो तो दान-पुण्य जो भी करते हैं उनसे पाप ही बनते हैं; तो जिसको दान करते हैं वो पाप ही करते हैं । अच्छा, तुम लोग गुरुओं को दान देते हो, बड़ा पाप करते हैं । क्या करते हैं? तुमको परमात्मा से बेमुख करते हैं; क्योंकि परमात्मा को सर्वव्यापी कर दिया, कुत्ते में, बिल्ले में, फिर योग किससे रखेंगे? तो देखो, उनको पैसा दिया तो उन्होंने तुमको पापात्मा बनाया ना । तो हर एक.... एक-दो को, मात-पिता, गुरु-गोसाईं एक-दो को पापात्मा बनाते आते हैं । क्यों? किसके मत पर हैं? रावण के मत पर हैं । अभी बाप आए हुए हैं । यह राम की मत पर हुआ ना, तुम चलते हो, अभी तुम देखो ऐसे बनते हो । यह तुम जानते हो कि बरोबर जब हम ये थे तो बड़े पवित्र खुश थे । पीछे फिर वाममार्ग में रावण राज्य शुरू हो जाता है तब से फिर दुख शुरू हो जाता है । इन बिचारे भारतवासियों को पता ही नहीं है रामराज्य किसको कहा जाता है, रावण राज्य किसको कहा जाता है । गाँधी जी भी कहते थे- हमको रामराज्य चाहिए । अरे पर, रामराज्य कौन स्थापन करते हैं, क्या होते हैं, बिचारे कोई जानते थोड़े ही थे । तो अभी गुरुओं को दान करना चाहिए? किसको दान करना चाहिए? कोई को भी दो, जिसको पैसा दो वो पाप ही करते रहते हैं; क्योंकि सभी पापात्माऐ हैं । एक-दो को पाप आत्मा बनाते-बनाते, सब पापात्माऐ । यथा राजा-रानी तथा गुरु । इसको कहा ही जाता है पाप-आत्माओं की दुनिया । फिर यही भारत पुण्य आत्माओं की दुनिया, पवित्र प्रवृत्तिमार्ग फिर देखो यह इस समय मंै अपवित्र प्रवृत्तिमार्ग । तो बस जो कुछ भी करते रहेंगे, ये अपवित्रों की मत पर यानी असुरों की मत पर यानी रावण की मत पर और तुमको चलना है राम की मत पर । यहाँ तुम लोगों को बड़ी तकलीफ है । देखो, अभी घर में बाप है, स्त्री है । ये चाहते हैं कि हम बाप से वर्सा जरूर लेंगे । समझ गया, तीर लग गया । वाह! अभी मौत तो है ही है सामने । मरना तो जरूर है । यह अंतिम जन्म है । तो बाप भी कहते हैं बच्चे, इस अंतिम जन्म में अभी अगर तुम पवित्र रहो, तुमको तो समझाया है कि 21 जन्म तुम निर्विकारी रहे, 63 जन्म तुम विकार में गए, अभी एक जन्म के लिए, पिछाड़ी जन्म के लिए जब मैं कहता हूँ- पवित्र रहो और मुझे मदद करो, तो मैं पवित्र दुनिया स्थापन करूँ । पवित्र रहने से तुम पवित्र दुनिया में चले जाएंगे । श्रीमत पर चलने से फिर से 2। जन्म के लिए तुम देवी-देवता घराने में आएंगे यानी स्वर्ग के मालिक बनेंगे । अभी प्राप्ति का, एम-ऑब्जेक्ट का पता पड़ा ना । तो स्वयं भगवान कहते हैं कि हम तुमको मनुष्य से देवता बना रहे हैं । फिर 21 जन्म तुम देवता बनेंगे । अभी एक जन्म के लिए पवित्र रहना पड़ेगा । जब समझ गए कि 63 जन्म हम पतित बने, मूत पिया, अभी बाप कहते हैं कि बच्ची, मेरे खातिर, मददगार मेरे बनेंगे ना, तो सिर्फ पवित्र रहो । बताया ना, कृष्ण कितना गोरा था । पुनर्जन्म लेते-लेते, जब फिर कामचिता पर चढ़ा है तो काला होता गया है । अभी उनको श्याम कहते हैं । पहले सुन्दर कहते थे. अभी श्याम कहते हैं । समझते कुछ नहीं हैं कि हम उनको श्याम-सुन्दर क्यों कहते हैं? परन्तु कहते तो हैं ना, श्रीकृष्ण साँवरा और गोरा । अर्थ नहीं समझते हैं, क्योंकि बन्दर हैं । बुद्धि बन्दरों की है । समझते कुछ नहीं, कहते हैं । तो तुमको इसका अर्थ बताते हैं कि जब ज्ञानचिता पर बैठते हो तो गोरा बन जाएंगे, स्वर्ग का मालिक बन जाएँगे, फिर जब रावण आता है तो विकार वा कामचिता पर चढ़ जाएंगे । कामचिता पर चढ़ने से तुम काले हो गए हो । पत्थर बुद्धि, वर्थ नॉट ए पैनी, ये तुम्ही तो थे ना । अभी बताते हैं- तुम्हीं तो देवताएँ थे ना । तो अब तुम देखो असुर बन गए हो । यह है चक्कर । हम सो देवताएँ पूज्य, हम सो असुर पुजारी । हम सो का अर्थ भी बताया है और उसके बदली में ये सन्यासी भी समझाते हैं- हम आत्मा सो परमात्मा, सो परमात्मा हम आत्मा । रात-दिन का फर्क हो गया ना । तो देखो, यह उल्टा-उल्टा ज्ञान देते हैं ना । सब एक-दो को उल्टा ज्ञान देते हैं । गुरु, माता, पिता, सब एक दो को गिराते ही रहते हैं । यह इनको पता नहीं पड़ता है, क्योंकि ड्रामा है, इनको ऐसा गिरना ही है, इनको आसुरी मत पर चलना ही है । तो देखो, गुरु तो तुम सबने किया ही हुआ है बहुत । तुमने गुरू नहीं किया होगा? वाह! सब जरूर कोई न कोई को गुरू करते हैं । अभी देखो, जब गुरुओं का गुरु, बाप का बाप, पतियों का पति मिला तो उसकी श्रीमत पर चलने से बरोबर भारत श्रेष्ठ बनता है। नहीं तो भला बाप यहाँ आया, जिसको याद करते हैं शिवबाबा परमपिता परमात्मा को, मनाते तो हैं न शिवजयंती । तो शिवजयन्ती मानते आते हैं, बस जैसे बन्दर लोग मानते आते हैं । उनको कोई समझ में थोड़े ही आता है कि शिवजयन्ती क्यों मनाते हैं? निराकार शिवबाबा अगर यहाँ आया भी तो आकर क्या किया? क्यों मनाते हैं? कुछ भी पता नहीं । तो बन्दर ठहरे ना । यानी मनुष्य होकर कुछ भी न जाने और कह देवें कि शिवरात्रि या शिव जयन्ती । तो क्यों शिवरात्री या कृष्ण का जन्म, तो भी कहें रात्रि। अभी कृष्ण जन्म रात्रि और शिव की भी रात्रि बताते हैं । अभी निराकार रात्रि को कैसे आया? क्या किया? कुछ भी बिल्कुल नहीं जानते हैं एकदम । तो जो कुछ भी बताते हैं, जो भी साधु-संत हैं अपना-अपना किताब बनाते जाते हैं, अपने-अपने धर्म का पुस्तक बनाते जाते हैं और बस, उसी के ऊपर चलते हैं । इसको कहा जाता है भक्तिमार्ग । समझते कुछ नहीं । अच्छा, चलो क्राइस्ट आया । फिर कब आएँगे? फिर क्या होगा? आएँगे तो जरूर ना । कहाँ गया? कोई को बिल्कुल ही पता नहीं । तुम बच्चे सब जानते हो । सभी यहाँ जो-जो भी गुरु हैं, जिन्हों-जिन्हों ने जो कुछ भी मठ-पंथ स्थापन किया है ना, वो गुरु लोग इस समय में सभी पतित हैं । यहाँ भिन्न नाम-रूप में हैं जरूर; पर सब पतित हैं, ऊपर से लेकर, क्योंकि लक्ष्मी नारायण भी 84 जन्म भोग करके पतित हैं, जिसको फिर आकर पावन बनाते हैं । तो जो लक्ष्मी नारायण पतित थे, वो ही फिर पावन बनेंगे ना । क्राइस्ट भी जो होगा या बुद्ध होगा, वो भी सभी पतित हैं । फिर तो जरूर पावन होंगे ना । फिर भी तो जाएँगे ना । फिर आकर अपना धर्म स्थापन करेंगे ना । तो ये सभी नॉलेज तो तुम बच्चों को मिलती है ना, कोई समझते हैं, कोई धारणा करते हैं, कोई कम धारणा करते हैं, कोई की बुद्धि कैसी है । यह तो स्कूल होता है ना । यह अच्छी तरह से समझना तो है ना । अभी तुम समझते हो । जो इस धर्म वाला नहीं होगा कोई भी बाहर का धर्म वाला होगा उनको एक महीना भी बैठ करके सुनाते रहो तो ऐसा बैठा रहेगा जैसे उनको कान हैं नहीं । पत्थरबुद्धि हैं, कुछ समझते ही नहीं हैं । जैसे तुम अभी प्रदर्शनी में समझाते हो, कितने को समझाते हो । देखो, बाबा कहते हैं ना- कोटों में कोऊ कोऊ में कोऊ कोऊ में कोऊ । प्रदर्शनी में तो हजारों आते हैं, तुम उनको समझाते हो । बाप का परिचय देते हो । अरे भई, बाप तुम्हारा, उनसे तो जरूर बेहद का सुख मिलेगा ना । भारत को बेहद का सुख था ना । अभी नहीं है । अभी दुखी है । शिकल दिखलाया मालिकों की! ये मालिक है ना । अभी अपन को मालिक कहते हैं ना. । बड़ी चिंता में होते हैं, कभी कोई बड़ी आफत पड़ती है । कभी किसके ऊपर पुलिस का आता है ना यह साहूकार लोगों के ऊपर जब पुलिस आ करके पकड़ती है, उनकी शिकल तो देखो । उनके स्त्री की शिकल तो देखो, अरे उनके बच्चों की शिकल तो देखो । उस समय में उनको लहू जाता है । जब किसको डर बहुत होता है ना, धक आ जाते हैं तो उसको लहू आ जाता है । डर के मारे एकदम टट्टी में लहू आ जाता है । ऐसी हालत हो जाती है । तो इनकी भी हालत तुम देखेंगे ना, बिल्कुल जैसे मुर्दे खड़े हैं एकदम.. परन्तु बिचारे समझते कुछ नहीं । यह समझते हैं कि मनुष्य समझेंगे. .. .. .. कितने इन लोगों को विचार हैं कि इसकी शिकल तो देखो । देखो, इनको हमारे लिए कितना अफसोस है, अभी क्या करें- वो लोग ऐसे समझेंगे । और हम तो कहेंगे, मुर्दों की शिकल तो देखो । साँस निकलता है इनका जैसे । और तुम जानते हो कि बरोबर...... ..आगे देखो । आगे चक्कर लगाओ, आगे दिखलाते जाओ । अभी यह हम लोग जानते हैं, दुनिया इन सब बातों को नहीं जानती है । तुम्हारे में भी कोई नम्बरवार । देखो, बाबा अखबार भी देखते हैं ना, तो वो बोलते हैं और बरोबर हम लोग लिखते भी हैं कि यह जो मोरारजी देसाई था, यह गवर्मेन्ट का खजांची, वो बिचारे काँटों के तख्त पर बैठे हैं और वो साहब लोग की शक्ल दिखलाई है । हाथ में फकीरों का ढोल है और भीख माँगते हैं । अभी शर्म है कोई? नाक भी नहीं है गवर्मेट को कि चित्र में दिखला देते हैं कि हम भीख माँगते हैं, खुश होते हैं, नहीं तो जो छपाते हैं, उनको कहना चाहिए अरे, क्या निकालते हो ! नहीं, खुश होते हैं बरोबर । बिल्कुल ही बेगर गवर्मेन्ट हुई ना । अभी यह बेगर गवर्मेन्ट भारत कौन-सा लावे । अभी तुम जानते हो कि बरोबर बाप आया हुआ है और इस दुनिया को बदल रहा है । अभी दुनिया बदल रही है और तुम जानते हो कि दुनिया बदल रही है । नई दुनिया के लिए बाबा इनको क्योंकि नई दुनिया की स्थापना करने के लिए तो बाप आएगा ना । हूबहू हर कल्प हम बाबा से ऐसे ही शिक्षा लेते हैं, जैसे कल्प-कल्प सीखते हैं । इसलिए तुम लोगों को कोई परवाह नहीं रहती है । पवित्र रहने में भी कोई परवाह नहीं । अरे वाह! बाप से वर्सा लेना है तो क्यों नहीं दिखलाएँगे । सन्यासियों को भी दिखलाएँगे परन्तु वो कहें यह इम्पॉसिबुल है । सन्यासी कहेंगे ये हो नहीं सकता है । क्यो? वो खुद ही नहीं कर सकते हैं, तो तुम्हारे लिए कैसे कहेंगे । तो आगे चलकर ये लोग भी मान जाएँगे कि बरोबर इनको शिक्षा देने वाला या ज्ञान के बाण मारने वाला परमपिता बिगर कोई हो नहीं सकते हैं, परन्तु पीछे; क्योंकि ये तो पीछे खत्म हो जाते हैं ना । अगर इन लोगों को तुम सिद्ध करके दिखलाओ, बाप तो बाप है, सर्वव्यापी नहीं है । तुम गालियाँ देते हो, ग्लानि करते हो । गीता श्रीकृष्ण ने नहीं गाई है । मनुष्य ने नहीं गाई है । बाप ने गाई है । तो बताओ उनकी क्या बाकी रहेगी? आबरू सारी चट हो जाएगी ना । तो आबरू चट भी तो पिछड़ी मे होकर जाएगी ना, नहीं तो एकदम थरथल्ला मच जावे । इन्हों के ऊपर बड़ा रोला मच जावे । ये पिछाड़ी में होते हैं । ये सन्यासी भी पिछाड़ी में आते हैं, जो फिर उनको मालूम हो जाते हैं; परन्तु वो क्या करेंगे, वो हमारे धर्म के तो होते ही नहीं हैं । तुम बच्चों को मालूम है कि ये झाड़ है । ये तो जानते हो ना, पहले-पहले सतयुग में बरोबर देवी-देवताओं का धर्म है । पीछे क्षत्रिय, वो ही जो सूर्यवंशी सो चंद्रवंशी । तो तुम जान गए ना । परमपिता परमात्मा को जान गए, बाबा है हमारा । बरोबर रचना रचते हैं, सूक्ष्मवतन में ब्रहमा, विष्णु, शंकर । फिर बरोबर ब्रहमा प्रजापिता है । बरोबर ब्रहमा द्वारा यह ब्राहमण पैदा करते हैं । पहले यह चोटी । बाबा ने समझाया ना- वर्ण भी होते हैं । पहले पहले ब्राहमण वर्ण । अभी देखो, तुम ब्राहमण वर्ण हो । ब्राहमण वर्ण ऊंचे ते ऊँचा । कौन-से ब्राहमण वर्ण? शिवबाबा के मुखवंशावली । अभी जो ब्राहमण हैं वो तो कुखवंशावली हैं ना । तुम हो मुखवंशावली । किसने बनाया तुमको? शिवबाबा ने । अभी शिवबाबा को तुम जान गए कि बरोबर नई रचना कैसे रचते हैं । तो बरोबर अभी तुमको आ करके एडॉप्ट किया । तुम ब्रहमा की औलाद बनकर ब्राहमण बन गए । थे शूद्र । अभी ब्राहमण बन गए । ऐसे नहीं कि तुम शूद्र, पतित से ब्राहमण बनने से पावन बन गए । नहीं । बिल्कुल ही पतित थे । ऐब्सस्लियूटली 100% पतित । अच्छा, फिर तुम ब्राहमण बने हो । तो ब्राहमण बनने से कोई पावन नहीं बन गए । योगबल से बाबा के श्रीमत पर चलते-चलते तुम पावन बन जाने वाले हो । हाँ, सिर्फ बाप को याद करना है । बाकी जो भी दुनिया है, देहधारी हैं, सबको भूलना है । तो देखो कितनी मेहनत है- ये सबको भूल जाना, समझना कि अब ये नाटक पूरा होता है । ये नाटक के जो भी सभी एक्टर्स हैं, इनमें थोड़े रहेंगे, बाकी सभी खतम हो जाएँगे । चोला छोड़ करके ये बाबा के साथ चले जाएँगे; क्योंकि प्रलय नहीं होती है । बाकी कौन रहेंगे? राम गयो रावण गयो जिनके बहुपरिवार । फिर भला यहाँ बचेंगे कौन? सिर्फ राम के बच्चे बनेंगे या रावण के भी? नहीं, राम के भी बच्चे बनेंगे, तो रावण के भी बच्चे बनेंगे । यहाँ दोनों ही बचेंगे, दोनों ही रहेंगे । जब तलक कि ये रावण के सभी वापस चले जाएँ, तब तलक ये सृष्टि यूँ ठीक होती रहेगी, क्योंकि सृष्टि जब विनाश होगी तो फिर उनको बनाने वाला भी तो कुछ चाहिए ना । ऐसे तो नहीं छोड़ जाते हैं । नहीं, पीछे यहाँ बनाने वाले भी रहते हैं, साफ करने वाले भी रहते हैं । तो यह साफ रहने में भी इनको समय चाहिए ना । हम भी चले जाएँगे; पर कुछ जरूर रहेंगे । तुमको तो राजाई जन्म मिलेगा । वो फिर यहाँ बैठ करके सफाइयों करते हैं । तुम लोगों को राज्य कैसे मिलता है? बाबा कहते हैं ना- जहाँ जीत होगी । भारत मे ही जीत होगी, भारत में ही रहेंगे । वो तो सब खत्म ही हो जाएँगे । वहाँ जो बड़े ते बड़े राजाएँ होंगे, वो बचेंगे । इनका भी कोई न कोई बचेंगे । जो अभी धनवान होंगे वो बचेंगे, जिसके पास तुमको जन्म लेना है । जिनके पास बहुत धन बच जाएगा, उसके पास तुम जन्म लेंगे । तो गोया सब जो भी सृष्टि है तो इनका पीछे मालिक बनना है । फिर ऐसे भी तुम नहीं समझो कि ये जो धन-दौलत यहाँ पड़ी हुई है, मट्टी में मिलेगी,. .वो कोई तुम्हारे काम में आएगी नहीं । तुम्हारे पास यहाँ कहाँ है- मणि, ताज, हीरे और बड़े-बड़े. कोई ये थोड़े ही हैं । ये तो तुम्हारे लिए कुछ भी नहीं है । यहाँ जो मिल्कियत है वो वर्थ नॉट ए पैनी है । तुम्हारे लिए एवरी थिंग न्यू । नए ताज, नए जवाहर, सब कुछ नए, सब एवरीथिंग न्यू बन जाएगा । देखो, यहाँ हीरों की खान है । निकालते-निकालते खाली हो गई । फिर वो भरती जाएगी । नहीं तो फिर हीरा कहाँ से आएगा? महल कहाँ से बनेंगे? रिपीट कैसे होगा? नर्क सो स्वर्ग, स्वर्ग सो नर्क, यह होता जाता है ना । तो देखो, समझने की कितनी बुद्धि चाहिए । नए आदमी को तो बिल्कुल समझ में नहीं आएगा । वो बोलते हैं- पता नहीं, यह क्या बातें हैं! बाकी तुम्हारे पुराने में भी जो अच्छे पुराने समझदार हैं वो समझते हैं और बाकी कम समझते हैं, कोई उनसे कम, क्योंकि भविष्य में दर्जे नम्बरवार मिलने हैं ना । यह कौन देते है? बाप देते हैं । वो ज्ञान है ना- हम बाप से सुन करके हम शास्त्र बहुत जानते हैं, पढ़े हुए बहुत हैं; परन्तु यहाँ वो सभी वर्थ नॉट ए पैनी । वो पढ़ते-पढ़ते, मत्था टेकते, धक्का खाते-खाते अंधे के औलाद अंधे हैं ना गीता में । अंधे के औलाद और वो सज्जे के औलाद । इनकी कोई लड़ाई तो नहीं लगी ना । कौरव और पांडव जिसको अंधे के औलाद और पांडव सज्जे की औलाद कहते हैं, उनकी तो लड़ाई नहीं लगी ना । वो भी तो झूठ है ना । वो तो यवनों से लडे । कौरवों की या काँग्रेस की ये मुसलमानों से लड़ाई लगती है । हम तो नॉन-वायोलेंस हैं ना । हम लोग कभी हिंसा थोड़े ही कर सकते हैं । तो डबल हिंसा होती हैं । एक हिंसा, एक - दो के ऊपर काम-कटारी लगाना । दूसरा है, गोली चलाना या खून करना । इसको कहा जाता है डबल हिंसा । यहाँ है डबल हिंसा, वहाँ नो हिंसा। सतयुग में हिस्सा होती ही नहीं । न काम-कटारी की, न एक दो को मारने की । उसी को स्वर्ग कहा जाता है । यह भारत था । अब नहीं है सो फिर रिपीट हो रहा है । बाप स्थापन कर रहे हैं । यह समझने की बात है ना । बाबा ने समझाया है ना । बाप बैठकर समझाते हैं कि तुम समझते तो हो, गुरु भी पतित, चेले भी पतित, अभी उद्धार कौन करेगा किसका? पतित कहा ही जाता है जो विकार में जाते हैं । तुम सन्यासी को पतित कहेंगे? बिल्कुल नहीं, क्योंकि वो विकार में नहीं जाते हैं । विकारी .जो निर्विकार हैं उनको मत्था टेकते हैं । अभी वो भी विकारी, गुरु भी विकारी, चेले भी विकारी, तो अभी मत्था टेक करके क्या करेंगे । क्या मिलेगा? आशीर्वाद क्या मिलेगी? दृष्टि क्या मिलेगी? जैसे खुद विकारी, वैसे वो विकारी । बाबा कहते हैं-इसको कहा जाता है तमोप्रधान बुद्धि, जो इतना भी अकल में नहीं आता है कि विकारी को गुरु बना करके हमको क्या मिलेगा । तो बस, फिर विकारी ही बन जाते हैं, और तो कुछ भी नहीं । अच्छा, चलो टोली लाओ । बाप समझाते हैं तुम बच्चे सब जान चुके हो । जो बाप जानते हैं अगर बच्चे नहीं जाने तो बच्चा हुआ ही काहे का? तुम भी ऐसे ही । तुम अगर अच्छी तरह से नहीं जानते हो तो फिर पद बहुत कम मिलता है, जो अच्छा जानते हैं उनको पद ऊँचा मिलता है । कहा था ना, बाबा तो पवित्र है, फिर हो गए ब्रहमा और सरस्वती, जगदम्बा और जगतपिता । वो भी पवित्र तो उनके बच्चे भी पवित्र । बाप तो समझाय देते हैं- बच्चे, समझ लेना, विकार में नहीं जाना । भले गृहस्थ में हो, तो भी विकार में नहीं जाना । अपना काला मुँह न करना । साफ कह देते हैं । काला मुँह न करना, फिर पूरा गोरा नहीं बनेंगे, पूरा-पूरा पद नहीं मिलेगा । यहाँ है ही सारी बात पवित्रता के ऊपर । पवित्रता के ऊपर इतनी कड़ी बात कोई दूसरा समझाते नहीं हैं । सन्यासी फालोअर्स को ऐसे नहीं कहेंगे कि पवित्र रहो । वो तो कहेंगे- कुछ तो छोड़ो भला । अच्छा, काम छोड़ दो, भला विकार छोड़ दो । भला हमारे से एग्रीमेंट करो कि महीने में एक दफा जाना । पीछे ऐसे-ऐसे. माँगते रहते हैं और फिर तीर्थों पर जाते हैं । चलो, कुछ तो छोड़ो । अच्छा, प्याज खाना तो छोड़ो भला, ऐप्पिल खाना तो छोड़ो, आम खाना तो छोड़ो । भला आम भी खाना छोड़ देते हैं । वो भी हमारे पास बहुत आते हैं । पूछते हैं अरे, आम क्यों नहीं खाते? तो कहते हैं हम तीर्थों पर छोड़कर आए । अच्छे में अच्छी चीज छोड़कर आए । अरे, वो तो कहते हैं प्याज छोड़ो, तुमने यह क्यों छोड़कर आया? यह तो फल है । फल तो देवताएँ बहुत खाते हैं । ऐसे-ऐसे जैसी गुरुओं की मत मिली चल पड़ते हैं । यह खेल वण्डरफुल है ना । इतना बड़ा नाटक है । यहाँ सभी एक्टर्स हैं और एक्टर्स भी अविनाशी हैं । यह बातें बड़ी समझनी होती हैं । आत्मा में कैसा पार्ट भरा हुआ है और अविनाशी पार्ट फॉर एवर । न कभी आत्मा पुरानी हो सकती है न उनका पार्ट पुराना हो सकता है । एवर न्यू । मीठे-मीठेमीठे फिर से आय मिले हुए तुम बच्चे । फिर से-फिर से हर 5000 वर्ष बाद तुम मिलते ही रहते हो । अभी यह तुमको मालूम हुआ कि हर 5000 वर्ष बाद यह भारत स्वर्ग बनता है । स्वर्ग बन करके 5000 वर्ष पूरे होने से नर्क बनता है । 5000 वर्ष के लिए आधा स्वर्ग नई दुनिया, आधा पुरानी । यह भारत नई दुनिया स्वर्ग था । पुरानी तो जरूर होनी है । एक्यूरेट हाफ पीछे पुरानी । पीछे उसको कहा जाता है रावण राज्य । पहले नम्बर में रामराज्य । सुख और फिर दुःख । ऐसे नहीं कि यहाँ स्वर्ग है, यहाँ नर्क है । जो पैसे वाले लोग होते हैं, वो बोलते हैं- हमारे लिए तो यहीं स्वर्ग है । जिनको पैसा नहीं है, बीमार हैं, उनके लिए यह नर्क है । बहुत ढेर के ढेर मिलते हैं, वो ऐसे ही कहते है- वाह! हमको तो स्वर्ग है, विमान है, फलाना है । अरे भई! नहीं, स्वर्ग और होता नहीं है । हमारे लिए तो स्वर्ग है । हमको और कोई स्वर्ग में जाना ही नहीं है । बाप कहते हैं- मैं हूँ गरीब निवाज । मैं साहुकार-निवाज तो हूँ ही नहीं । अजामिल जैसे पापात्मा हो, अहिल्याएं-कुब्जाएँ हो, हम तो उनको ही साहुकार बनाएँगे । बाकी जिनके पास ऐरौप्लेन हैं, बिरला जैसे हैं, उनके लिए इम्पॉसिबुल है कि वो वहाँ कोई ऊँच पद पाय सकें; क्योंकि बहुत मिल्कियत है । उनकी कमाई है पुत्र-पौत्रों के लिए या सभी शिव बालक को दे देंगे? शिवबाबा को जो बालक न बनावें, उनको अपना न देवें तो बाप 21 जन्म के लिए न देवें । अरे, बाप ले करके भी तुम बच्चों को ही देते हैं । शिवबाबा तो दाता है ना । वो क्या करेगा? उनको कोई महल बनाने हैं? नहीं, सब कुछ तुम्हारे लिए । एवरीथिंग फॉर यू । बाबा ने समझाया ना यह सब किसके लिए बने हैं! यह फॉर यू । बाप को कहा जाता है- बाबा, अच्छा नए मकान में तो चलकर रहो । बाप कहते हैं- नहीं बच्चे, मैं जब विश्व का मालिक ही तुमको बनाता हूँ मैं नहीं बनता हूँ तो फिर मैं नए घर में भी क्यों बैठू? मैं बोला- अच्छा, मैं तो बैठूँ । बाप कहते हैं मैं तो नहीं बैठूँगा ना, तुम कैसे बैठ सकते हो? वण्डर तो देखो- हमारी भी कितनी आपस में गिट-गिट चलती है । बाबा को सब बच्चे कहते हैं कि महल बनाना ऊपर कितना अच्छा है । भई, मैं तो नहीं बैठूंगा । अब मैं नहीं बैठूँगा, यह कैसे बैठ जाएगा! यह तो तकलीफ हो गई, खिटपिट हो गई । अभी समझे तुम? बाबा बहुत ही अर्थ समझाते हैं; क्योंकि बाप को कहा जाता है- अभोक्ता असोचता । असोचता अभोक्ता का कुछ अर्थ तुम्हारे में से कोई लिख करके आना, मैं देखूँगा कि अभोक्ता का अर्थ क्या है? असोचता का अर्थ क्या है? मैं आज तुमको सबक देता हूँ । कभी-कभी दे देता हूँ । हम देखें तुम्हारी बुद्धि । समझा ना । ब्राहमणी कहाँ है? अरे, मुटठी तुम भी लिख करके आना । बाबा तुमको नहीं बताएंगे अगर जाएंगी भी तो; परंतु बाबा प्रश्न पूछते हैं और देखो सबके पास प्रश्न जाता है । सब बच्चे सुनेंगे और सब हमको लिख करके भेजेंगे कि बाप को अभोक्ता और फिर असोचता क्यों कहा जाता है? एक बकस बनाय दो, उनमें टुकड़ी में लिख देना । दो अक्षर है । हर एक बात में सेकेण्ड लगता है । जब जीवनमुक्ति सेकेण्ड, बाप से वर्सा सेकेण्ड । सेकेण्ड का अर्थ समझाया ना- बच्चा बाप को पैदा हुआ और वर्सा मिला । क्या टाइम लगा? निकला, देखा कि बच्चा है या बच्ची है, बच्चा है तो वारिस हुआ । एक सेकेण्ड का टाइम लगा ना । यहाँ भी तो कहा जाता है ना सेकेण्ड में जीवनमुक्ति । जनक को सेकेण्ड में जीवनमुक्ति मिली । उनका अर्थ कोई ऋषि-मुनि आदि समझ सकते हैं क्या? कुछ भी नहीं । बस, सेकेण्ड माना ही बाप को जाना । किस द्वारा? बच्चों द्वारा । जनक को किस द्वारा? अष्टावक्र द्वारा । तुम लोगों ने अष्टावक्र गीता पढ़ी नहीं है । तुम्हारे में से तो शायद कोई ने नहीं पढ़ी होगी । मैं तुमको मँगा कर दूँगा ।...तो अष्टावक्र यानी बच्चे ने और सो भी अष्टावक्र बूढ़ा-बूढ़ा, गुकडा-सुकड़ा ने सेकेण्ड में जीवनमुक्ति पाने की विधि बताई । क्या सुनाया होगा? बाबा को पहचानते हो? वो तुम्हारा बाप लगता है? हाँ, बाप लगते हैं । बस, बाप लगते हैं, उनकी ऑखे बंद हो गई और साक्षात्कार कर लिया । समझा ना । यह बड़ी अखानी है घोड़े के ऊपर । वो कहते थे कि घोड़े के ऊपर हम ऐसे पैर धरे और मुझे साक्षात्कार हो जावे ।.....जैसे किसका हठ पूरा करना हो । तो यह बड़ी अच्छी अखानी है । अष्टावक्र गीता मे लिखी हुई है । सेकेण्ड में है ना । बच्चा पैदा हुआ यह वारिस बना । निश्चय हुआ पकड़ लेना चाहिए । अभी निश्चय हो करके अवस्था जमाना, उसके ऊपर है वर्से का हक । यानी कितना ऊँच पद पाएँगे । बस, कोई देर तो है नहीं । ऐसे कोई से पूछते रहो, परमपिता परमात्मा से आपका क्या संबंध है? वर्ल्ड गॉड फादर से आपका क्या कनेक्शन है? क्या रिलेशनशिप है? तो जरूर कहेगा- फादर । तो हेविनली गॉड फादर तो हेविन स्थापन करने वाला है ना, फिर तुमको तो हेविन की बादशाही मिलनी चाहिए । अगर वो नहीं बताएगा कि वो फादर है; पर फादर तो है ना । मुख से कहते हो ना परमपिता । तुमको फादर से तो वर्सा मिलना चाहिए ना । तो हम जानते हैं ना कैसे वर्सा मिलता है, जो समझाय सकें । तो हम टीचर हो गए ना । टीचर हो कोई भी.... ..प्रश्न पूछे और खुद ही न जाने तो प्रश्न कैसे पूछेंगे? समझते हो मीठे-मीठे बच्चों? अच्छा, बच्चों को....