30-04-1964     मधुबन आबू     प्रात: मुरली    साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हेलो, स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुलभूषणों को हम मधुबन निवासियों की नमस्ते, आज शुक्रवार अप्रैल की 30 तारीख है प्रात: क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।

रिकॉर्ड :-
हमारे तीर्थ न्यारे हैं, यही धरती के तारे हैं.....

ओम शांति! ओम शांति का अर्थ भी बच्चों को अच्छी तरह से धारण करना है । भारत में अनेक मनुष्य हैं जो ये उच्चारण करते हैं- ओमशांति, परन्तु अर्थ एक भी नहीं जानते हैं । तुम बच्चे जानते हो कि ओम माना अहम्, मैं आत्मा और मेरा धर्म, स्वधर्म है शांत । मैं आत्मा परमपिता परमात्मा की संतान और धर्म शांत, रहने वाले भी शांतिधाम के हैं । अभी अपना ऑक्युपेशन तो नहीं भूल सकते हो ना, ये तो बिल्कुल कॉमन बात है जो कोई भी मनुष्य मात्र जानते नहीं हैं । वो तो ओम का अर्थ बड़ा लम्बा-चौड़ा कर देते हैं । नहीं, बिल्कुल सिम्पुल । हर एक बात बच्चों के लिए सिम्पुल है, सहज है । ओम माना मैं । मैं कौन? आत्मा । मेरा शरीर । मैं आत्मा परमपिता परमात्मा की संतान, मेरा शरीर बाप ने रचा । अपन को जानना यह कोई डिफीकल्ट बात तो नहीं है ना । मनुष्य अपन को जानते नहीं हैं । कहते हैं सोल रियलाइज । अभी सोल रियलाइज भी कोई कर नहीं सकते हैं, कोई कराय नहीं सकते हैं यथार्थ रीति से । यूँ तो बहुत कहते हैं- जीवात्मा और ये शरीर । आत्मा अविनाशी है और ये शरीर विनाशी है । इतना तक बहुत जानते हैं; परन्तु आत्मा का रूप क्या है, आत्मा जो इतना पार्ट बजाती है इसमें कैसा पार्ट है- ये तो बिल्कुल कोई भी नहीं जानते हैं । अभी तुम बच्चों को बाप ने पहचान दी है । तुम यात्री भी हो, बैरिस्टर हो, पण्डा हो, सर्जन हो, टीचर हो, वकील भी हो, सब हो । तुम्हारे में सब शिफ्तें आ जाती हैं । तुम सर्जन हो । देखो, बाप को कहा जाता है अविनाशी सर्जन । अभी सर्जन तो पढ़ाते हैं । पीछे उन लोगों का भी टाइटिल होता है- एम बी बी एस फलाना । लन्दन में पढ़ा, यू एस. में पढ़ा, फलाने में पढ़ा, वो टाइटिल लगा देते हैं । अभी उनको तो मनुष्य पढ़ाते रहते हैं और तुमको पढ़ाता है अविनाशी सर्जन । अविनाशी का अर्थ ही है- आत्माओं का बाप, क्योंकि आत्माएँ अविनाशी हैं, इसलिए बाप भी अविनाशी है । अविनाशी बाप हमको अविनाशी सर्जन बनाता है । मास्टर सर्जन बनते हैं ना! अच्छा, कैसे सर्जन? देखो, सर्जरी कैसी है! उसमें सब दवाइयाँ, सर्जरी वगैरह सब आ जाती हैं, क्योंकि तुम उनको एक सेकण्ड में जो रास्ता बताते हो सो है भविष्य के लिए, इस मृत्युलोक के लिए नहीं है । फॉर फ्यूचर जनरेशन्स । तो तुम फॉर पयूचर जनरेशन्स एवर हेल्दी बना सकते हो, एवर तन्दुरुस्त बना सकते हो; पर गारन्टी यह कि फॉर फ्यूचर जनरेशन्स, क्योंकि यहाँ तो अनेक प्रकार का दुःख भोगना है । जास्ती भोगना है । तुम्हारी दवाई यहाँ के लिए नहीं है । ये तुम्हारा सब कुछ फॉर फ्यूचर जनरेशन्स । यहाँ पढ़ना है । यहाँ जो कुछ भी पाप कर्म वगैरह हैं उन सबको योग से मिटाना है । ऐसे नहीं कि तुम यहाँ ही एवर हेल्दी, एवर वेल्दी एवर हैपी बन सकते हो । नहीं । यह नॉलेज है ही फॉर फ्यूचर 2। जनरेशन । तुम क्या बन सकते हो? एवर हेल्दी, एवर वेल्दी, एवर हैप्पी । हेल्थ है, वेल्थ है तो हैप्पीनेस है । समझा ना! अगर हेल्थ में कुछ गड़बड़ है और वेल्थ बहुत है, तो भी हैप्पीनेस नहीं है । अगर वेल्थ नहीं है और हेल्थ बहुत अच्छी है तो भी हैपीनेस नहीं । तो तुम अपन को सर्जन ही समझेंगे ना; क्योंकि अविनाशी सर्जन के बच्चे हो । ये तो जरूर है कि पण्डे भी समझते हो; पर सब कुछ समझते हो अपन को; क्योंकि बाप आ करके ये सब जो भी यहाँ की इम्तहान वगैरह हैं, उन सबका तन्त बताते हैं । वो तुमको फॉर फ्यूचर 21 जनरेशन हर बात में सुखी रखते हैं; क्योंकि हेल्थ भी है, वेल्थ भी है । यह तो जरूर है हेल्थ, वेल्थ एण्ड हैपीनेस सबको एक जैसी नहीं होती है । किसी के पास धन बहुत होता है । बरोबर उनके पास पैसे बहुत हैं । अभी बाकी खुशी अथवा हैपीनेस जिसको कहा जाता है, सो तो सबको ही हो जाती है । धन का फर्क रहता है जरूर । निरोगी भी सभी रहेंगे । यह भी बताय देते हैं कि तुम सब निरोगी भी रहेंगे, हेल्दी भी रहेंगे । वेल्थ में फर्क जरूर रहता है । समझा ना! वेल्थ किसको कम, किसको जास्ती यह अभी तुम्हारे ऊपर है । याद तो जरूर करेंगे । याद बिगर तुम किससे वर्सा लेते हो? योग तो एक आर्डिनरी बात है कि बाप से योग लगाना है । फिर बाकी है धन । तो जितना-जितना तुम अविनाशी ज्ञान रत्न धारण करेंगे, औरों को धारण कराएंगे इतना तुम ऊँचा पद पाएँगे । तुमको समझा दिया है कि वहाँ तुम्हारा जो कर्म है वो विकर्म होता नहीं है; क्योंकि माया का राज्य नहीं है । बाकी साहूकार-गरीब तो सभी दुनिया में होते ही हैं । एक जैसे तो हो ही न सकें । राजा-रानी, वो तो जरूर बड़ा पद हुआ । तो अभी तुम अपन को ऐसे ही समझो कि हम ईश्वरीय कॉलेज में हैं । है तो बड़ी यूनिवर्सिटी, इसमें हम यह इम्तहान सीखते हैं- एवर हेल्दी, एवर वेल्दी एवर हैप्पी बनने का । तो तुम हो गए ना । तुम्हारे को टाइटिल क्या देवें? एमबीबीएस. तो नहीं दे सकते हैं । तुम यह जानते हो कि सब टाइटिल तुम्हारे में समाए हुए हैं । तो समझो हम सर्जन हैं बाप के । बरोबर यह सर्जन का एक बड़ा मंत्र है । कौन सा? बाप को पहचानो और उनसे योग लगाओ तो तुम्हारा विकर्म विनाश हो जाएँगा और जरूर 21 जनरेशन तुम हेल्दी बन जाएँगे । ठीक है? तुम मास्टर सर्जन्स अभी जान गए? अच्छा, फिर तुम उनको यह सृष्टि का चक्र बताते हो कि सृष्टि का चक्र ऐसे फिरता है; क्योंकि यह है वर्ल्ड की हिस्ट्री-जियोग्राफी । ये हिस्ट्री-जियोग्राफी कोई वर्ल्ड की नहीं होती है । वर्ल्ड की माना पहले शुरू से ले करके पुरानी वर्ल्ड तक । वर्ल्ड कोई सिर्फ यह नहीं है । फ्रॉम बिगनिंग, सतयुग से ले करके कलहयुग तक वर्ल्ड है । वर्ल्ड यह नहीं है कि बस मुसलमान कैसे आए, अंग्रेज कैसे आए । वर्ल्ड माना सतयुग से ले करके, सतयुग में कौन राज्य करते थे, उनको राज्य कैसे मिला, फिर वो राज्य कहा गुम हो गया । यह तो दूसरा कोई नहीं जानते हैं । वर्ल्ड की हिस्ट्री-जियोग्राफी ये लोग जो समझाते हैं, तो ये इसको ही समझते है वर्ल्ड हिस्ट्री-जियोग्राफी । यूनिवर्सिटी नाम रख दिया । ये समझते हैं सारी दुनिया की नॉलेज हम दे सकते हैं; परन्तु ये सब है झूठ । जो कुछ भी कहेंगे सब झूठ । नहीं तो यूनिवर्सिटी कोई होती नहीं हैं । यूनिवर्सिटी सिर्फ एक बाप बनाते हैं, जिसमें स्वयं आ करके पढ़ाते हैं ।.....कोई से शांति नहीं चाहते हैं । मनुष्य आते हैं कहते हैं- शांति चाहिए, सुख चाहिए । जनावर कोई से माँगते हैं क्या? हर एक मनुष्य तो धक्का खाते रहते हैं सन्यासियों के पिछाड़ी डॉक्टरों के पिछाड़ी, बैरिस्टरों के पिछाड़ी, सब तरफ में हर एक धक्का खाते रहते हैं कि यह चीज चाहिए, यह चाहिए; परन्तु नहीं, बाबा तुम्हारी सभी कामनाओं को पूर्ण कर देते हैं । तुम उस सर्जन के मास्टर हो । तो तुम्हारे पास बोर्ड होना चाहिए ना । अभी बोर्ड लगाओ तब जबकि तुमको पासपोर्ट मिले । घर घर में जाओ । तो अपन में हिम्मत चाहिए कि हम यह यूनिवर्सिटी तीन पैर पृथ्वी में खोल सकते हैं । यह यूनिवर्सिटी भी हुई, कॉलेज भी हुई और हॉस्पिटल भी । इसमें सब हो जाते हैं । अगर हमारे में हिम्मत है खोलने की तो तीन पैर पृथ्वी के लगते हैं । भले अपना घर हो उसमें एक कमरा नीचे में रख सकते हैं । बहुत ऐसे होते हैं, ऊपर में घर होता है तो नीचे में अस्पताल खोल देते हैं । तो तुम भी नीचे तीन पैर पृथ्वी का खोल करके, तुम जाकर कोई-कोई का देखेंगे न, इस गलीचे जितना उनका अस्पताल होगा । तो वो रख करके उसमें लिख देना चाहिए । तुम्हारे पास अंदर कोई दवाई सामान-वामान कुछ नहीं हैं, सिवाय इन चित्रों के । बिगर चित्र भी समझा सकते हो; परन्तु नहीं, छोटे बच्चे आते हैं इतना नहीं बुद्धि में बैठेगा, इसलिए ये चित्र हैं । इतने सभी चित्र देवताओं के क्यों हैं? ये इसलिए हैं कि वो घर भी बैठे रहें और याद करें । घर में ही चित्र रख करके, फिर दूसरी जगह दूर में जाने की दरकार ही क्या पड़ी है । कृष्ण का चित्र घर में है । बस, वहीं कृष्ण को याद करना है, मंदिर में दूर-दूरदूर जाने की दरकार क्या है । अच्छा, कोई जाते हैं अमरनाथ । वहाँ लिग है । पार्वती-शिव हैं । तुम यहीं लिंग और शिव-पार्वती घर में रखो, बात तो एक ही है ।. शिव के पास काशी में क्यों जाते हो? तुम लिंग घर में रख दो । तुम जानते हो कि शिव आया हुआ था, कुछ करके गया; लेकिन उसका पता नहीं है; पर पूजा करनी है । चलो, शिव का चित्र यहाँ रख दो, पूजा करो । अरे, धक्का क्यों खाते हो? अभी बुद्धि की बात है न ।... जगदम्बा के पास आते हैं । चित्र तो सब मिलते हैं । तो चलो, जगदम्बा का चित्र तुम घर में रख दो । बात तो एक ही है । ...वहाँ क्या करेगी? जैसे वहाँ पूजा करते हैं, वैसे घर में ही कर दो । तो घर में मंदिर बना दो । बाप भी समझाते हैं कि तुम हर एक घर में ही बना दो और वहाँ लिख दो कि फॉर फ्यूचर । फ्यूचर अक्षर जरूर लगाओ । नहीं तो कोई बोलते हैं कि यहाँ हमको शांति नहीं मिलती है । अरे, शांति के लिए तो तुमको युक्ति बताते हैं ना । फॉर फ्यूचर जनरेशन शांति भी लो, पवित्रता भी लो, सुख भी लो, सम्पत्ति भी लो, सब लो, एवरीथिंग । तुम थोड़ा समझने से सब ले सकते हो । बस, फिर वहीं घर में अपना छोटा सेन्टर लगाय करके, खर्चा तो कुछ नहीं हुआ ना । भले किसको किराये की भी जगह हो, तो भी उनमें से थोड़ी टुकड़ी तो निकाल सकते हैं ना । बाबा भी तो यह समझेगा ना कि इनमें कौन-कौन ऐसे हैं जो फट डायरेक्शन सुन करके अमल में लाते है । बाबा सिर्फ तुमको तो नहीं बताते हैं ना । बताते तो सबको हैं । अच्छा, गरीब भी कर तो सकते हैं ना । जो गरीब होगा तो उनके पास भी झोपड़ी तो होगी ना । तो उनमें भी तीन पैर पृथ्वी के तो निकल सकेंगे ना । बोर्ड भी तो लगाय सकते हैं ना । बाबा इंगलिश में कह देते हैं, चलो हिन्दी में लिख दो । तो तुमको भविष्य 21 जन्म के लिए तन्दुरुस्ती, शांति, सुख, सम्पत्ति, ये सब मिल सकते हैं और एक सेकण्ड में । इतनी बड़ी बात एकदम फॉर फ्यूचर जनरेशन एक सेकेंड में । एक सेकण्ड में जनक को जीवन मुक्ति मिली, परन्तु वहाँ तो नहीं मिला ना । वो जनक फिर जा करके सीता का बाप बना । तो यह एक दृष्टान्त थोड़ा ठोंक दिया है और ठीक है । समझाया जाता है कि बरोबर तुम सभी जनक हो, एक की तो बात है नहीं । जनक, जनक रानी, ये सभी प्रवृत्तिमार्ग है । अभी इसमें खर्चा तो कुछ भी नहीं है । बाबा बोलता है अगर धन तुमको जास्ती हो तो तुमको यहाँ बाबा को आकर नहीं देने का है । तुम सर्विस करो । बाबा तुमको डायरेक्शन देंगे कि ऐसे करो । धनवान हो तो ऐसा एक सेन्टर बनाओ । घर ऊपर में भले बनाओ । मतलब कोई भी जगह दे दो । देखो, बड़े हॉल ढूँढ़ते रहते हैं । बड़ी जगह देंगे तो उनमें प्रदर्शनी रख सकते हैं । छोटे हैं तो भले छोटे कमरे । अपन को सर्जन जरूर समझो एक्यूरेट अच्छी तरह से । हिम्मत चाहिए । इनमें कोई से लड़ना-झगड़ना तो नहीं है ना । बिल्कुल अच्छे चित्र मिल जाते हैं । कोई भी कहे- बाबा, मैंने तीन पैर पृथ्यी पर इतना घर में यह खोला है । उसमें मैं अपनी स्त्री को भी लाता हूँ । चैरिटी बिगन्स एट होम, पहले-पहले घर में खोलो । फिर बहन, भाई, चाचा, मामा, उनको वण्डर दिखलाओ कि यह तो बिल्कुल ही सहज बात है । यह बाबा ने आगे भी कहा था कि मेरे को याद करो, तो मेरे से, योगाग्नि से तुम्हारे विकर्म विनाश हो जाएंगे । हेल्दी तो बन जाएँगे । देखो, देवताएँ कितने हेल्दी हैं । यह त्रिमूर्ति और यह कृष्ण का चित्र बहुत फर्स्ट क्लास है । मूंझ है ना मनुष्यों में कृष्ण के लिए । तो यह चित्र सबसे अच्छा है । अच्छे तो ये सभी हैं, परन्तु यह इजी है कुछ समझाने में । देखो, ये बाबा तीन मूर्ति ब्रहमा द्वारा नई दुनिया की स्थापना करते हैं । नई दुनिया की पालना करने के लिए यह विष्णु बैठा हुआ है । वहाँ ही ब्रहमा उससे यह स्थापना होती है । फिर जब स्वर्ग की स्थापना होगी तो ये जो शंकर है, यह प्रेरणा करके सबका विनाश करता है । कहते हैं ना- आँख खोलते हैं तो सृष्टि जल भस्म हो जाती है । तो तुम देखते हो न कि यह सब खत्म हो जाएगा, उसके पहले तुमको ये बनना है । फिर ये बनो इनकी प्रजा बनो । समझा ना! क्योंकि सभी तो नहीं लिखते हैं, बाबा को चिट्‌ठी में भी लिखते हैं कि हम तो सभी थोड़े ही लक्ष्मी-नारायण बनेंगे । हम अपनी इतनी हिम्मत नहीं रख सकते हैं, बच्चे लिखते हैं । हम तो फिर प्रजा में ही अच्छा रह सकते हैं । उसके लिए हमको जो बोलो । बोलने की तो कोई दरकार है नहीं, वो तो समझ आनी चाहिए कि वहाँ चाहिए, तो चलो जो कुछ भी है, अपना बीज बो जाओ । कहा जाता है ना- यहाँ तो एक देवें तो लाख पावे; क्योंकि गरीब बिचारे क्या देंगे? आठ आना देंगे । गरीब लोग बाबा के पास आठ आना भेज देते हैं कि बाबा, हमारी ईंट लगाय देना, पीछे हमको तो मिलेगा । तो उनको हम लिख देते हैं कि तुम्हारी ईंट, जिन्होंने हजार रुपया दिया जो उनको मिलने का है और तुमने जो ईट के लिए आठ आना दिया, तुम्हारा और उनका बाबा के पास हक एक ही है । तो देखो, उनको कितनी खुशी होती है; क्योंकि गरीब निवाज तो है ना । वो सभी राज बता देते हैं । अभी बलि चढ़ना है । बाबा ने समझाया है, मम्मा ने बलि चढ़ी है । यह दृष्टान्त । कुछ पैसा तो नहीं दिया आठ आना भी नहीं । तुम मम्मा से पूछ लो कि कुछ दिया? नहीं, कुछ भी नहीं । कन्याओं के पास तो कुछ लेना ही नहीं है ना, माँगना भी नहीं है ना वहाँ जा करके कि हमको दो, तो कुछ देवें । सो भी कुछ होवे । न उस समय में कोई यह कायदा था कि कुछ लें । देन्रा है माइटों से या फलाना । नहीं, कुछ भी नहीं, कन्याएं बिल्कुल एब्सोल्यूटली फ्री; क्योंकि उनकी कोई मिल्कियत नहीं है । मिल्कियत है तुम बच्चों की । हायरअपेरेंट(उत्तराधिकारी) बच्चे बनते हैं । कन्याएं कुछ भी नहीं देती हैं । पढ़ती रहती हैं और अगर अच्छी पढ़ती रहती हैं तो गवर्मेन्ट उनको खिलाता भी रहता है । खिलाते-खिलाते उनको सर्विसेएबुल बना देते हैं । देखो, कितना ऊँचा पद है ना बरोबर । देखो, जिसने सब कुछ दिया तन मन धन उनसे भी उनका नाम बाला हो जाता है । फिर ऐसे कोई न समझे कि यहाँ पैसे की कोई बात है । बिल्कुल नहीं । नाम भी मशहूर कन्याओं का है । कन्हैया समझने से लगेगा कि कोई मनुष्य है । गोपाल समझने से लगेगा कि कोई जनावर है । तो कन्याओं ने कितना नाम बाला कर दिया है अच्छी तरह से । कन्याओं को ही बाप प्यार करते हैं, क्योंकि उनको नशा नहीं है । उनको है कि बाप हमको शादी कराएगा फलाना । कन्याओं को बोलते हैं अभी शादी बरबादी मत करो । तुम चाहती रहती हो कि हमको कृष्ण जैसा बच्चा मिले, कृष्ण जैसा भाई मिले, कृष्ण जैसा पति मिले । अभी तुमको वहाँ ले जाता हूँ पीछे भाई बनो, कुछ भी बनो; परन्तु उसके घराने में हम तुमको भेज देते हैं, जिस कृष्ण से तुम बच्चों का इतना प्यार है । बाप कहते हैं ना- तुम्हारा कृष्ण से भारत में बड़ा प्यार है एकदम । जानती नहीं हो कुछ भी । श्रीकृष्ण पहले नंबर का प्रिन्स है और स्वर्ग का मालिक है । स्वर्ग का मालिक फिर द्वापर में तो हो ही नहीं सकते हैं ना । स्वर्ग का मालिक तो अभी तुम बच्चों को मालूम है और तुम जानती हो कि बरोबर अभी हमको स्वर्ग में जाने के लिए, जिसको हम याद करती थीं वो कृष्ण खुद भी हमारे साथ पढ़ रहे हैं । पढ़ाने वाला है शिवबाबा । वो जो कृष्ण था जिसके घराने में हम जो देवता थे सो फिर क्षत्रिय वैश्य शुद्र बन हम भी पढ़ रहे हैं । अभी तुम जान गए न जैसे कि हम जो सभी देवताएँ थे लक्ष्मी-नारायण और जो हम सभी देवताएँ राज्य करते थे, वहाँ प्रजा थी, इस समय फिर से बाप आ करके वही राजधानी स्थापन कर रहे हैं । अभी तो बुद्धि में अच्छी तरह से आ बैठा हुआ है ना । यह भी तुम अच्छी तरह से चित्रों में समझा सकती हो और चित्रों में तो बिल्कुल समझ अच्छी है । जबकि बाबा कहते हैं सर्विसएबुल बनो और राय दी ना- गहस्थ-व्यवहार में रहते हुए भी तुम वही एक (सेन्टर) खोल दो और बोर्ड लगा दो । बोर्ड के लिए बाबा बहुत ही किस्म के नमूने बताते रहते हैं । जो कुछ भी चाहिए समझ करके अपना लिख दो, जो तुमको सहज लगे । पीछे यात्रा के लिए भी लिखो, स्वर्ग के लिए लिखो, जो चाहिए सो लिखो, पर लिख करके, सर्जन है तो फिर सर्जन बनो । जबकि तुम बच्चे ब्राहमण हो, तुमको सच्ची गीता का ज्ञान सुनाना है । तो फिर तुम सबको सुनाना है ना । पहले घर में खोलो बैठ करके । वो समझ जाएगा आपे ही कि यह गीता का ज्ञान है; क्योंकि गीता का ज्ञान ही तो नामी-ग्रामी है ना । विलायत में सब में भारत का सहज राजयोग और ज्ञान मशहूर है । भारत का प्राचीन योग मशहूर है । प्राचीन का अर्थ तो बिल्कुल ही कोई समझते नहीं हैं । प्राचीन माना संगमयुग, सृष्टि की आदि । देखो, है ना आदि सनातन धर्म । आदि सनातन धर्म हिन्दू थोड़े ही हो सकते हैं । आदि सनातन धर्म तो देवताओं का ही था । उन देवताओं को अभी आदि सनातन हिन्दू कर दिया है । अभी यह ड्रामा में हुआ ना । तुम बच्चे समझ गए कि यह ड्रामा में पहले से ही बनी हुई है । ये सभी ऐसे ही हिन्दू बनेंगे । पीछे ये अपन को देवी-देवता नहीं कहला सकेंगे, क्योंकि ये देवताएँ धर्म भ्रष्ट और कर्म भ्रष्ट हो गए हैं । यानी हम देवताएँ जो पवित्र थे वो पतित बन गए हैं । देवताएँ धर्म श्रेष्ठ थे तो
पावन थे ना और अभी हम पतित हैं । अभी हम अपन को देवता तो कहला नहीं सकते हैं । इसलिए ऑटोमैटिकली ड्रामा अनुसार कोई भी अपन को देवता नहीं कहलाय सकें । तो देखो, धर्म फिराय दिया 'हिन्दू' । तुम बच्चे अच्छी तरह से जानते हो कि यह होना जरूरी है, क्योंकि जब यह देवी-देवता धर्म प्राय:लोप हो जाय और हिन्दू-हिन्दू कहलाने लगे तब फिर बाप आए और देवी-देवता धर्म की स्थापनाए करे; क्योंकि सुनते हो ना कि इस झाड़ का फाउण्डेशन सड़ जाता है । तो अभी तुम जानते हो कि बरोबर यह फाउण्डेशन तो है ही नहीं । बाकी सारा झाड़ खड़ा है । देवी-देवता धर्म है नहीं । सब धर्म मठ पंथ सब कुछ है, बाकी फाउण्डेशन है नहीं । न फाउण्डेशन है, न फाउण्डेशन स्थापन करने वाले को कोई जानते हैं । यह आदि सनातन देवी-देवता धर्म किसने, कब और कैसे स्थापन किया? तभी बाबा तुम बच्चों को कहते हैं कि बच्चे, तुम पूंछो इनके लिए कि ये तो भारत का मालिक था ना । स्वर्ग था ना बरोबर! ये महल-वहल बनाए थे । तुम भूल तो नहीं गए हो? भक्तिमार्ग शुरू होने से ही सोमनाथ का मंदिर बनाया था, उसमें कितने माल थे । विचार करो कि कितने माल होंगे! कितने मणियों, हीरा मोती, माणिक ये सभी पिछाड़ी में भी थे । ये कोई बहुत समय की बात तो नहीं है । पाँच-छ: सौ बरस हुआ होगा गजनवी को । भई, कितना बरस हुआ है? तुम जानते हो । स्कूल में हिस्ट्री पढ़े हो ना । थोड़ा यहाँ भी तो ये पढ़ते रहते हैं । ये फिरंगी साहब लोग तो पीछे आए हैं ना । उन्होंने भी यहाँ से कितने माल लेकर गए हैं । उन्होंने तो अपनी स्त्री मरी, उसकी मस्जिद बनाई, उसमें भी हीरे-मोती लगा दिए । बुद्धि तो कहनी चाहिए कि भारत क्या था और अब क्या है । कितना बरस हुआ? अरे, सो भी आजकल सब कहते हैं थ्री थाउजेंड बिफोर क्राइस्ट । बिल्कुल ठीक कहते हैं । अच्छी तरह से समझते हैं इनके आगे पहले एकदम पैराडाइज था । वो कहते भी हैं कि थ्री थाउजेन्ड बिफोर क्राइस्ट पैराडाइज था यानी हैविन था । शुरुआत थी एकदम । तो शुरुआत में भी हैविन चली तो सही ना जरूर । तो अभी ये बात युक्तियुक्त तुम बच्चों की बुद्धि में बैठी । अभी ये बातें दिल में रख करके और फिर तुम बच्चे कहते हो हम सर्जन हैं तो हॉस्पिटलें खोलो । अगर हॉस्पिटल नहीं खोलते हो तो बाबा कहेंगे कि अभी तलक तुम वही पुराने हज्जाम के हज्जाम हो । बाबा कह देंगे, तुम गीता नहीं सुनाते हो तो फिर हज्जाम हो । नहीं तो बाबा सहज बताते हैं घर में हॉस्पिटल खोलो । इसमें लज्जा-वज्जा की तो कोई बात नहीं है । आपे ही आएँगे । धीरे-धीरे आ जाएंगे । समझ कर घरवालों को अच्छी तरह से बैठकर समझाओ । बात बिल्कुल सहज है । यह तो तुम समझे हो कि सभी समझकर राजा-रानी नहीं बनेंगे । थोड़ा भी हम समझाएंगे तो प्रजा में तो आएँगे ना । अहो सौभाग्य! यानी वैकुण्ठ में आ जाएँगे । यहाँ देखो, सब प्रकार के मनुष्य मरते हैं । सिक्ख मरेगा तो भी क्या कहेंगे? लेफ्ट फोर हेविनली एबोर्ड अंग्रेजी में ऐसे कह देते हैं । स्वर्गवासी हुआ । ज्योति ज्योत समाया- ये संन्यासी लोग कहेंगे । पीछे जो जो सीखते हैं वो ऐसे ही कहते रहते हैं । पता तो कुछ पड़ता ही नहीं है- स्वर्ग क्या, ज्योत क्या, फलाना क्या । ऐसे तो कुछ है नहीं ना । देखो, कितने बड़े-बड़े आदमी, भले प्रेसिडेन्ट भी मरेगा तो भी उनके लिए बोलेंगे- बाबा, स्वर्गवासी हुआ । तो उनसे पूछना चाहिए कि क्या यहाँ नर्क था? अगर तुम कहते हो स्वर्गवासी हुआ तो जरूर नर्क में था । फिर जो मनुष्य नर्क से स्वर्ग जाते हैं, उनके लिए रोना क्या? तुमको तो ताली बजानी चाहिए । हँसना चाहिए ना । तो फिर रोते क्यों हो? अरे, फिर स्वर्ग में तो बस बात ही मत पूछो, स्वर्ग में जो वैभव मिलते हैं वो तो नामी-ग्रामी हैं । तुम फिर बैठ करके नर्क के ये प्याज, मछली ये सभी क्यों खिलाते हो? बंगाल में मछली जरूर खिलाते हैं उनको । गए स्वर्ग में और उनको मॅगा करके मछली खिलाते हैं । अण्डा भी जरूर खिलाते हैं । वो जो विवेकानन्द था ना, अरे । ऐसे बहुत हैं, जो बोलते हैं ये खाने में कोई पाप थोड़े ही है । उनमें कोई जान-वान थोड़े ही है, फलाना थोड़े ही है । गुरु ने बोला तो बस, सत् वचन कहते रहो । जो कुछ कहो सत् वचन । सीता चुराई गई, सत् वचन । बंदरों की सेना ली, सत् वचन । है सब झूठ, परन्तु उसको सत्-सत् मानते रहते हैं । अभी तुम जानते हो कि बाबा का सत् वचन और दुनिया का वचन उनमें रात-दिन का फर्क है । वो सब कुवचन और यह एक होता है सत वचन । इसको कहा जाता है सत् का संग । तो संग से कुछ ज्ञान का रंग भी लगेगा ना । तो सत् से तुमको ज्ञान का रंग लग रहा है । तो सत् संग तारे, कुसंग बोरे । अभी सत् तो एक ही हुआ । बाकी तो हैं ही पतित, भ्रष्टाचारी । अभी बताओ उनका संग या उनकी मत क्या करेगी? हमें बोरेगी ना! तो ड्रामा में यह नूंध है ना कि यहाँ सत् तो कोई है नहीं । बाकी है झूठ, कुसंग । तो ये सब भ्रष्टाचारियों का संग है । अभी देखो, सत् आया हुआ है । तो अभी तुम ही सिर्फ ब्राहमण सत् के साथ बैठे हो, बल्कि सत्य के पूरे औलाद हो पौत्र और पौत्रियाँ । घर में बैठे हो ना । तुम जानते हो ये मम्मा बाबा हैं । ये मम्मा है गुप्त मम्मा । कहते हैं ना- गुप्त गंगा । त्रिवेणी होती है ना तो उनमें दो गंगाएँ दिखलाते हैं । एक को गुप्त दिखलाय देते हैं । तो बरोबर यहाँ गंगाएँ तो बहुत हैं, परन्तु ये फिर गुप्त । ब्रहमपुत्री है ना, सबसे बड़ी गंगा फिर ये गुप्त । तो गुप्त ऐसे कहते हैं । तो वो भी ऐसे ही कहते हैं गुप्त तीन है, दो है, दूसरी, एक तीसरी गुप्त गंगा । तो गंगा को ही कहते हैं । अभी उन बच्चों को इन सभी बातों का पता तो है नहीं । तो बाप बैठ करके हर एक बात समझाते भी हैं । उसमें भी बहुत तकलीफ क्यों उनको कहते हो । पहले पहले आवे तो उनको बोलो, ये बाबा कहते हैं मुझे याद करो । अभी मौत आती है, मैं आया हुआ हूँ, तुमको मेरा वर्सा चाहिए ना; क्योंकि कलहयुग है । सतयुग में मैंने यह वर्सा दिया था । अभी कलहयुग में देखो, क्या है? धूल भी नहीं है, छाई भी नहीं है । पैसे नहीं हैं, कौड़ी नहीं है, इनसॉलवेन्सी है । भला जब इस समय में इनसॉलवेन्सी है, सतयुग में इतना सॉलवेन्ट किसने बनाया? यह तो कितना सहज है । चित्र तो रखा है ना । ये भारत का है ना । भारत में बरोबर सूर्यवंशियों का राज्य था ना । तो सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी, वैश्यवंशी शूद्रवंशी । अभी सूर्यवंशियों का हाल यही है । तो तुम लोगों के पास चित्र भी है और बुद्धि से भी काम दे सकती हो । तुम बच्चों को बाबा डायरेक्शन देते हैं, अगर तुमने सेन्टर्स न खोला तो मैं नहीं समझेगा कि तुमने कोई यहाँ इम्तहान पास किया या कुछ पढ़ाई पढ़ा है । हाँ, वेस्ट ऑफ टाइम किया है अपना । वो तो बाबा यहाँ कहते हैं ना, यहाँ बाबा बिल्कुल अच्छी तरह से पम्प करते हैं एकदम । कोई को तो पम्प ठीक चलता है, कोई का कुछ थोड़ा-थोड़ा कमती होता है, कोई का पम्प तो जैसे फुस हो करके सारी हवा निकल जाती है । कुछ भी धारणा नहीं होती है । फिर वो थोड़े ही सर्जन बनेगा और निकालेगा घर में । तो तुम जानते तो हो ना कि बरोबर हम रूहानी सर्जन्स हैं और बरोबर हम कोई को भी फॉर एवर हेल्दी, एवर वेल्दी की थोड़ी सी दवाई, दवाई आदि में तो कुछ है नहीं, सो मुख की बात है कि उनको ये महामंत्र दे देंगे । कहते हैं ना- तुलसीदास चंदन घिसे तिलक करे रघुवीर । रघुवीर भी तो रामचंद्र को ही कहते हैं । है तो बाबा ना । सो बरोबर जब शिव जयन्ती होती है तो तुम बच्चे आते हो गोद में तो बाबा तुमको तिलक देते हैं । काहे का तिलक देते हैं? स्वराज्य का । यह जो ब्राहमण तिलक देते हैं ना, तिलक का कोई अर्थ भी तो होगा ना? इस समय में ब्राहमण, जो भी शूद्र आते हैं उनको स्वराज्य का तिलक देते हैं । तो तुम जानते हो कि बरोबर हम इनको राजाई-तिलक देते हैं । तो राजा भव । उनको समझाना है कि बाप से तो राजाई का टाइटिल मिलेगा ना । बाप को याद करो तो ऑटोमैटिकली तुमको राजाई का तिलक लग जाएगा । कोई लगाने की तो दरकार नहीं है ना । भक्तिमार्ग में फिर यह दिखलाते हैं तिलक लगाना, फलाना करना, यह करना । अभी तिलक तो है नहीं ना । ये समझाते हैं रखड़ी बंधन । रखड़ी बंधन का अर्थ थोड़े ही कोई समझते हैं । बाबा ने समझाया है कि सब त्योहार यहाँ के हैं । अगर ये समझ में न आए तो फिर लक्ष्मी नारायण का राज्य कहाँ, जयन्ती कहाँ, जन्म कहाँ? कहते भी हैं पास्ट में । इनके पास कल एक रास्ते में मिला अधर कुमारी का मंदिर । हमको दिखलाओ तो उस्‌ने कहा कि अधर कुमारी का जड़ चित्र चाहते हो या चैतन्य चाहते हो? क्योंकि यहाँ का यहाँ, वहाँ जड़ बैठे हैं, यहाँ चैतन्य बैठे हैं ।.. कुंवारी कन्या का क्या जड़ चित्र देखना चाहते हो या चैतन्य चित्र? हम दोनों दिखा सकते हैं । तुमको क्या देखना चाहिए, जड़ या चैतन्य? कितने समझ की बात है ना । अच्छा, दिलवाड़ा मंदिर में क्या देखेंगे? वहाँ आदिदेव बैठा हुआ है । जड़ देखना चाहते हो या चैतन्य? कितना सहज है । देखो, बैठे भी कहाँ हो! जहॉ तुम बहुत सर्विस कर सकते हो, परन्तु अभी समय नहीं है, ना यहाँ कोई ऐसे सर्विस वाले बैठे हैं; क्योंकि अच्छे-अच्छे सर्विस वाले तो चले जाते हैं बाहर में और यहाँ कोई रहते ही नहीं है जैसे । बाकी पच्छड माल यहीं रह जाते हैं । समझा ना । खाना पकाना, यह करना, वो करना । बाकी तो किसको भी शौक होता है वो तो बोलता है- बाबा, हमको भेजो हम तो जा करके सर्विस करेंगे । बाकी जो सर्विस न जानेंगे वो दूसरा जिसके लिए बाबा बताते है- महारथी, घोड़ेसवार प्यादे । तीन दर्जे तो होते हैं ना । लड़ाई में भी तो होते हैं ना । घोड़े के सवारियों की भी पलटन होती है, प्यादों की भी पलटन होती है और उन प्यादों में फिर वो होते हैं जो बोझा उठाते हैं । कोई बन्दूक उठाते हैं, कोई बोझा उठाते हैं । तो ये भी ऐसे ही हैं । तुम भी पलटन हो । सब कुछ हो । तुम सिपाही भी हो, जो चाहे सो तुम सब कुछ हो । पीछे ये सब कुछ समझने होने के बाद तुम्हारी सतयुग में सभी कामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं । वहाँ किसको भी कोई प्रकार की तकलीफ नहीं होती है । हाँ, पुरुषार्थ जो करेगा इस समय में, तो राजा बनेगा, बड़ा साहूकार बनेगा । समझ भी जाते हो बरोबर फ्लावर की, देवताओं की किंगडम स्थापन हो रही है । मनुष्य से देवता यहाँ बनेंगे ना । सतयुग में तो देवता ही होंगे । वहाँ कोई दूसरे पतित मनुष्य होंगे ही नहीं । तो जरूर यह नॉलेज यहाँ भविष्य पयूचर फॉर 21 जनरेशन के लिए ही है । यहाँ के लिए कुछ कहेंगे तो बोलेंगे कि यहाँ का तो तुम्हारा हिसाब-किताब चुक्तू होना है और तुम्हारी ये बीमारी खुल पड़ेगी, जैसे वैद्य लोग कहते हैं और होता भी ऐसे ही है बरोबर । कोई डर जाते हैं, घाटा पड़ जाता है तो उनको कोई कह दिया कि अरे, यहाँ क्या रखा है, तुम जाकर फालतू फंसे हुए हो । तो झट छोड़ देते हैं । सेकण्ड में बच्चे बनते हैं और सेकण्ड में छोड़ते हैं । सेकण्ड में बरोबर जीवनमुक्ति, सेकण्ड में जीवनबंध वहीं पड़ा रहा । फिर भी उस जीवनमुक्त के लिए जो बने तो भी अहो सौभाग्य । फिर भी प्रजा में आएँगे तो सही ना । ऐसे नहीं है कि इस ज्ञान का विनाश हो जाएगा, चाहे भले फारकती दे देवे चाहे कितना भी कोई ट्रेटर बन जाए । तो उनको पद बिल्कुल कमती मिलता है; क्योंकि ज्ञान का चटका लगा ना । बाबा को कहा तो सही ना । अविनाशी बाबा को बाबा-मम्मा कहा तो वो मुफ्त में नहीं जाते हैं । फिर वो पद कम लेते हैं; क्योंकि वो समझ तो गए ना । कितनी बड़ी बादशाही बननी है । ये भी समझते हो कि बरोबर देवी-देवताओं की किंगडम यहाँ बननी है जरूर । बादशाही सारी पूरी बन रही है । बाप आकर यहाँ ब्राहमण धर्म और देवी-देवताओं में भी सूर्यवंशी-चंद्रवंशी, तीनों धर्म स्थापन करते हैं; क्योंकि फिर दूसरा कोई भी इस 2500 वर्ष में स्थापक आता नहीं है । पीछे तो बहुत आते हैं- इस्लामी, बौद्धी क्रिश्चयन । पीछे तो अभी कलहयुग में तो ढेर के ढेर आते हैं, क्योंकि झाड़ के छोटे पत्ते-पत्ते, डाली-टारी सभी तो जन्म लेना है ना । मुख्य फाउण्डेशन है नहीं । तो जरूर जो नए-नए आएँगे उनका कुछ न कुछ नामाचार तो जरूर होगा । उनका प्रभाव तो निकलेगा ना । तो कुछ ना कुछ रीति उनको सुख मिल जाता है । बहुत डार-टाल-टालिया हैं- राधास्वामी,..आर्यसमाजी । ये छोटे-छोटे बहुत हैं, हजारों नाम हैं । ये सिर्फ अपने जो यहाँ बैठे हैं उनको मालूम है । नहीं तो यहाँ केरला आदि देखो, भारत कोई कम थोड़े ही है । तुम समझते हो कितने साधु, संत होंगे, गुरु होंगे, कितनी प्रकार की भक्ति होगी । अथाह की अथाह है । तुम एक मत समझो कि कोई यहाँ साईं बाबा या फलाना बाबा । नहीं, एक साई बाबा निकला तो उसके पीछे सौ साई बाबा निकलते हैं । तो अथाह है, भारत कोई कम थोड़े ही है । जो भी खण्ड हैं उन सबमें भारत खण्ड सबसे बड़ा है । फर्स्ट है और अविनाशी खण्ड है और बाबा की जन्मभूमि है । शिवबाबा कहते हैं- देखो, अभी मैं कहाँ बैठा हूँ! नहीं तो भला शिवबाबा की जयन्ती पर लिंग बैठ करके क्या करेगा । शरीर होगा तब तो कुछ बताएँगे । तो देखो, ज्ञान का सागर तुम बच्चों को सारा ज्ञान समझाते है, सारी सृष्टि का चक्र.. सब कुछ समझा देते हैं और तुम जैसे कि नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार मास्टर नॉलेजफुल हो जाते हो । तो कुछ तो बनना चाहिए ना! कुछ ना कुछ करो । बाकी ऐसे ही खाएंगे, पिएंगे और सोएंगे तो भला ये थोड़े ही बनेंगे । कुछ ना कुछ किसी ना किसी को ज्ञान देते रहो जिससे कि किसका भी कल्याण हो; क्योंकि कल्याण बहुत है । वा तो शांतिधाम, मुक्ति माँगते हैं । मुक्ति तो सब मॉगते हैं ना । तो बस, सबको अच्छी तरह से मुक्तिधाम का रास्ता ही बताओ । जीवनमुक्ति में आने वाला होगा तो तुमको चटक पड़ेगा । कोई भी धर्म वाला होगा तो चटक पड़ेगा । बाकी ये तो जानते हो बरोबर जैसे बाप लिबरेटर है, उनका काम है दुःख से सबको लिबरेट करना । तो तुम उनके बच्चे, अभी तुम्हारा भी तो ये धंधा हुआ ना- सबको दुःख से लिबरेट करना और फिर सुख का रास्ता बताना और फिर उनको अपने साथ यात्री बनाकर ले भी जाना । तो ये धंधा करें, अब जो करेंगे उनको समाचार देना है कि बाबा, हमने आपका धंधा खोल दिया है । कोठरी ले लिया है, हॉल ले लिया है । बहुत होते हैं जो मकान बनाना चाहते हैं, बाबा से पूछते हैं तो बाबा कहते हैं- बच्चे, भले बनाओ । अगर कोई नहीं लिखते हैं कि बाबा, इसमें मैं नीचे में हॉस्पिटल भी, यूनिवर्सिटी भी खोलूँगी तो फिर उनको लिख देते हैं, जो चाहिए सो जा करके बनाओ । कुछ बोलते नहीं हैं । देखते हैं, कुछ है , सिर्फ ऐसे नहीं की आ करके.... बहुत लिखते हैं- बाबा, हम मकान बना रहे हैं, आ करके फाउण्डेशन लगाओ । हम इसमें लगा देते हैं । तो अभी एक-एक का बैठ करके.. बाबा को फाउण्डेशन थोड़े ही लगाना है । फाउण्डेशन लगाने के लिए अपना रिप्रेजेन्टेटिव तो है ही । जो अनन्य होते हैं उनको लिखते हैं कि जाओ मैं फलानी को लिखता हूँ जो मुख्य है तुम्हारा ओपनिंग सेरीमनी करने का । शिवबाबा कहाँ से करेगा, ऐसे तो बाबा को गलियों- में धक्का खिलाय देवें । फाउण्डेशन लगाने के लिए बहुत कहते हैं । तो उनको समझाते हैं बच्चे, उनको कोई झोपड़ी दे दो, जिसमें तुम सर्जरी जरूर निकालो वा गीता क्लास निकालो । मतलब है बात सभी एक । सर्विस करो । फिर भी अगर तुमको मदद चाहिए तो मैं मदद भी दे सकता हूँ क्योंकि बाप है ना । गायन भी है- हिम्मते मर्दा मददे खुदा । तो जरूर बाप भी तो मदद देंगे ना । तो बोलते हैं- तुम हॉल बनाते हो? कितना खर्चा करते हो? 10000 रुपया । अच्छा, कितना पैसा है? 5000 रुपया । अच्छा, हम तुमको 5000 की मदद करते हैं । खोलो । बाबा तो मददगार है ना । बच्चे, प्रदर्शनी खोलो । जितना तुमको मदद मिले बाहर से और बाकी मदद चाहिए तो यहाँ से मॅगाओ । ये बाप है ना फिर भी । कोई सन्यास तो नहीं है ना कि सभी पलैट्‌स ले करके अपने सन्यासियों को ही पालना करते रहो । नहीं, ये तो बच्चों की पालना होती है ना; क्योंकि बाप है ना । मोस्ट बिलवेड बाप इसको कहा जाता है । तो बाप मदद भी तो करेंगे ना । यहाँ कुछ रखने का तो है नहीं । यहाँ तो बिल्कुल क्लीयर हो जाना है । समझो कोई मरता है और उनके पास कुछ रह गया है- हजार या दो हजार या 50000 या कितना भी रह गया है और उसमें से अपनी वृत्ति निकाली नहीं है, ट्रस्टी न समझा है तो याद जरूर पड़ेगा । जन्म जरूर लेना पड़ेगा । इसलिए तुम्हारे पास आखानी भी है । आजकल तो स्त्रियां ही पति का गुरु बन जाती हैं । कायदा है । तो जब उनको ले जाती हैं तो लिखा हुआ है सब छोड़ा । ये भी छोडा, ये भी छोड़ा । लाठी उठाई तो बोला- यह भी छोड़ो । वरना लाठी में भी तुम्हारा ममत्व बैठ जाएगा । यह दृष्टान्त है ऋग्वेद से कि कुछ भी ना रखो, अपना कुछ न समझो । अपन को क्लीयर आत्मा समझो । हमको बाबा के पास जाना है । बरोबर ये जो कुछ भी है सब बाबा का है, हमारा नहीं । भक्तिमार्ग में सदैव यह कहते रहते हो । अभी बोलता हैं- यह ममत्व छोड़ दो, मैं खुद आया हूँ । ऐसे समझो कि ये सब कुछ बाबा का है । ये धन-दौलत सब बाबा का है । अगर तुम्हारे पास यह खयाल आया कि हमारा बच्चा है उनको वर्सा मिलेगा, तो मरे । खलास हो जाएँगे । बाबा को वारिस बनाते हो । तुम्हारा बच्चा तो तुमको रिटर्न में इतना सुख नहीं देगा, जितना ये रिटर्न देगा । अभी विचार करो, कोई आते हैं तो बाबा पूछते हैं ना- कितने बच्चे हैं? कहेंगे तीन बच्चे हैं । अच्छा, थोड़ा विचार करो, बस तीन ही बच्चे हैं, लुका-छिपा कोई और तो नहीं है? तो नहीं? करते हैं और जब उनको कह देते हैं क्या नहीं है? अरे, तुम पहले जब तलक शिव बालक को वर्सा न देंगे तो शिव बालक तुमको 2'। जन्म का रिटर्न कैसे देंगे! वो तो तुमको धूल भी रिटर्न नहीं देंगे । वो तो तुम्हारा सभी पैसा पाप में लगाय देंगे; क्योंकि बाबा ने समझाया ना कि जो कुछ ये दान-पुण्य करते हैं उनसे पाप बनता है, क्योंकि दान करते हैं, जो उनको उस परमपिता परमात्मा से बेमुख करते हैं । अभी उनको देना या बच्चे को देना, वो विकार में जाएगा । तो वो भी पाप तुम्हारे ऊपर रहा । इस समय की बात बाबा कहते हैं । तो जो कुछ भी श्रीमत के बिगर किया तो पाप करते हैं । देखो, कितनी महीनता है, परन्तु कोई को कुछ समझाओ तो कोई उल्टा समझ लेंगे । इनको कोशिश करनी चाहिए । कोई तो सुनेंगे, अच्छी तरह मानेंगे, कोई तो बिल्कुल ही नहीं सुनेंगे । बाकी सुनना बहुतों को है । बहुत प्रजा बननी है । कोई कम नहीं बननी है; क्योंकि उनको देवी-देवता धर्म में आना है, क्षत्रिय धर्म में आना है, तो ढेर बनने वाले हैं । यह भी बाबा ने समझाया है कि राजा-रानी, प्रजा कितनी होती है । एक राजा-रानी के गॉव होते हैं । कितने गॉव होते हैं? चलो, इन्दौर का महाराजा । कितनी प्रजा होगी? प्रजा तो बहुत होती है । वो कैसे बने? ऐसे । भाई को भी प्रजा में ले आना चाहिए । फिर प्रजा में आवे, कौन सा पद पावे, अब सुनाना जरूर चाहिए । बुद्धि में बैठाना जरूर । डरना नहीं चाहिए । लो, मीठी बच्ची । सभी हैं, सिर्फ तुम नहीं सुनते हो । ये रेडिया है तो वो भी जाते हैं । अभी आपे ही पता पड़ेगा । पीछे से अभी बहुत निकलेंगे । बाबा ने बात छेड़ी ना कि यह बनाओ । तुम सर्जन्स हो । सर्जन हो तो नाम का हो गया घर में । बोर्ड तो जरूर चाहिए ना । बोर्ड नहीं तो नो सर्जन । देखें अभी कितना इनको लिखते हैं कि हमने ऐसे किस्म का सर्जन लगाया, ऐसे लगाया । कुछ भी लगावें, कोई भी आवे, नॉलेज तो एक ही प्रकार की है ना । अच्छा । मीठे-मीठे मीठे लकी ज्ञान सितारों प्रति, रूहानी पण्डों प्रति, तुम भी तो रूहानी पण्डे बनते हो ना, पाण्डव सेना का अर्थ तुम्हारे सिवाय कोई दूसरा समझ सकता है? नंबरवार अर्थ भी समझ सकते हैं । तो मीठे-मीठे मीठे-मीठे सिकीलधे ज्ञान सितारों प्रति मात-पिता का यादप्यार और गुडमार्निंग ।