2-05-1964     मधुबन आबू     रात्रि मुरली    साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हेलो, यह दो मई का रात्रि क्लास है

कोई मरते हैं तो समझते हैं कि वो कोई वैकुण्ठ या स्वर्ग जाते हैं । नहीं, जो मरेगा वो यहीं पुनर्जन्म लेगा । जब स्वर्ग होगा तो पुनर्जन्म वहाँ स्वर्ग में लेंगे । ऐसा हो नहीं सकता है कि कोई कलहयुग का मनुष्य स्वर्ग में जन्म लेवे । ले नहीं सकते हैं । जब परमपिता परमात्मा बाप, जो रचता है वो सतयुग की स्थापना करे तब मनुष्य सतयुग में जा सके । तो इसलिए तुम सतयुग में जाने के लिए पुरुषार्थ कर रहे हो । परमपिता परमात्मा ही सतयुग की स्थापना कर रहे हैं; क्योंकि कलहयुग अभी खत्म होने वाला है । विनाश होने वाला है । तो सतसंग सिर्फ यहीं होता है बाकी जहाँ भी है वहाँ सभी झूठ संग है, क्योंकि साधु संत महात्मा ये सभी झूठ बोलते हैं । हर एक बात झूठ बोलते हैं । बाबा ने समझाया है कि पहली-पहली बात 'ईश्वर सर्वव्यापी है', यह झूठ है । तो बस, पहले नम्बर में पहली बात झूठ तो फिर दूसरी, तीसरी, चौथी सब बातें झूठ । जब सच तो फिर सच ही सच । सच की रचना सच्ची कही जाती है । झूठ रावण की रचना झूठी कही जाती है । तो आधाकल्प है रावण की रचना झूठ और आधाकल्प होती है सच की रचना सच । तो देखो, यह भारत सचखण्ड था, अब है झूठ खण्ड । पुराना खण्ड, तमोप्रधान खण्ड है । तो यह ठीक है ना हर एक वस्तु जब पहले सतोप्रधान है तो फिर अंत में तमोप्रधान होती है । तो इस समय में ऐसे ही यह कलहयुग है । तो तमोप्रधान । यहाँ पढ़ाई है ना । जहाँ-तहाँ जो भी सतसंग होते हैं- रावण की कथा फलाना उसे पढ़ाई नहीं कहा जाता है । पढ़ाई की हमेशा कोई न कोई एम-ऑब्जेक्ट होती है कि हमें यह पढ़ने से हमको कौन सा पद मिलेगा । बैरिस्टर बैठ करके पढ़ाएगा, तो वो जानते हैं कि हम बैरिस्टर बनेंगे । जो जैसा होगा वैसा बनाएगा । इंजीनियर होगा तो वो समझेगा कि यह पढ़ने से मैं इंजीनियर बनूँगा । यहाँ तुम जानते हो कि भगवान पढ़ाते हैं, हम मनुष्य से देवता बनेंगे; इसलिए पुरुषार्थ करते हैं । इस सतसंग में यह है । दूसरे कोई सतसंग में कभी नहीं कोई कहेंगे कि हम सतसंग से, सन्यासी या शास्त्र या विद्वान से क्या बनेंगे । होता ही नहीं है । कभी कोई जाकर पूछे कि इस सतसंग में, भले कोई भी होवे, बड़े-बड़े विद्वान हो, बड़े-बड़े सन्यासी हो उनसे पूछे कि आपकी यह कथा, वार्ता वगैरह सुनने से हमको क्या पद मिलेगा? कुछ भी नहीं कह सकेंगे । ... क्या कहें वो बिचारे! न मुक्ति को जानते हैं, न जीवनमुक्ति को जानते हैं तो कहेंगे कैसे? अगर कोई जानता हो तब तो बहुत जान जाएं । एक से बहुत जान जाएं, परन्तु एक भी नहीं जानते हैं तो कोई भी नहीं जानते हैं । तो ये सभी समझने की बातें हैं ना । तुम जानते हो कि हम पुरुषार्थ करते हैं; नापास हो सकते हैं । वहाँ सतसंग में जाओ तो वहाँ पास और नापास की कोई बात ही नहीं है । ऐसे नहीं कहेंगे कि मैं यहाँ कोई फलाना पद पाने के लिए पुरुषार्थ करता हूँ पीछे पा भी सकें और ना भी पा सकें । ऐसा कोई सतसंग है नहीं कहीं । यहीं है । तुम जानते हो कि कितने मार्क्स से हम पास हो कितना ऊँच पद ले लेंगे । कहाँ? सतयुग में । तुम यहाँ के लिए नहीं पढ़ते हो । तुम वहाँ के लिए पढ़ते हो । यहाँ और वहाँ का बहुत फर्क है । यह है मनुष्य सृष्टि और वह है मुक्तिधाम और जीवनमुक्ति धाम । तो तुम पढ़ते हो वहाँ के लिए, ना कि यहाँ के लिए । नई दुनिया के लिए तुम पढ़ते हो और नई दुनिया के लिए पढ़ेगा भी कोई कोटों में कोऊ कोऊ में कोऊ; क्योंकि वो है स्वर्ग, सुखधाम । सभी तो सुखधाम में आ ही नहीं सकते हैं एकदम । अगर विचार करो तो सुखधाम, सतयुग में कितने मनुष्य होंगे? अभी नर्क में कितने मनुष्य हैं? ढेर के ढेर हैं, तो सभी थोड़े ही स्वर्ग में आएँगे । जब भारत स्वर्ग था तो बहुत थोड़े मनुष्य थे । अभी भारत नर्क है तो बहुत मुनष्य हैं, ढेर के ढेर हैं, क्योंकि मल्टीप्लीकेशन हुई है । वाद खाई है । पुनर्जन्म लेते-लेते वाद खाई गई है । अभी इतने बढ़ गए हैं जो उनको खाने के लिए अन्न भी नहीं है और हैं भी निधन के बिच्छू-टिण्डन के माफिक बच्चे-बच्चियाँ, जो जन्म लेती हैं । पाप ही करती हैं । एक-दो को मूत पिलाती हैं, विख पिलाती हैं । बहुत क्रोध करते हैं, ये करते हैं, इसलिए इसको कुम्भी पाक नर्क भी कहा जाता है । एक, दो को दुःख बहुत देते हैं । बच्चे बाप को देंगे, भाई भाई को देंगे, मित्र मित्र को देंगे । देखो, चारों तरफ में एक दो में दुश्मनी है ना । तो इसको कलहयुग कहा जाता है । सतयुग में ये सब बातें नहीं होती हैं । सतयुग में हम अपनी खुशी से शरीर छोड़ते हैं । बाबा ने समझाया है ना ये जो सतसंग होते हैं, ये शास्त्रों के आधार पर है । तो शास्त्रों के ऊपर, मंदिरों के ऊपर और. तीर्थों के ऊपर बहुत पैसा खर्च करके, अभी भारत में पैसा ही नहीं है । भारत कंगाल हो गया है । भारत कितना साहूकार था । हीरे और सोने के महल बनते थे । अभी देखो एकदम कुछ भी नहीं है । खूटेली गवर्मेन्ट कंगाल इनसॉलवेन्ट । भारत कितना साहूकार था । भारत में हीरे के महल बनते थे । आजकल भारत में भीख मॉगते रहते हैं । (म्युजिक बजा) .जो आते हैं सो बना देते हैं । वहाँ समझ तो कुछ है नहीं बिल्कुल ही । तो बाप बैठ करके ये सभी बातें बच्चों को समझाते हैं । हर एक बात किसमें भी कोई न समझे तो बाप से पूछे और न समझने की तो कोई बात नहीं है । यह तो ड्रामा के आदि मध्य अंत का क्वेश्चन है, जो समझना है । सो तो समझना ही है ना । बाप तो यथार्थ रीति आकर समझाएँगे ना, क्योंकि मनुष्य सृष्टि का बीजरूप गाया जाता है । फिर उनको सत, चैतन्य और आनन्द स्वरूप कहते हैं । जरूर सत् भी तो है, चैतन्य भी है; परन्तु जब वो यहाँ आएँगे तब तो हमको सत्य बनाने का वर्सा देंगे ना; क्योंकि तुमको सच्चा बनना है; क्योंकि सचखण्ड में चलना है । वहाँ देवी-देवताएँ बिल्कुल ही सच्चे होते हैं । वहाँ झूठ होता ही नहीं है । तो आए हैं तुम बच्चों को सचखण्ड का सच्चा मालिक बनाने । सो भी देखो कितने । विश्व का मालिक । वहाँ तुमको कोई डर नहीं होगा, निडर राज्य । यहाँ तो देखो कितना डर है कि कहीं कोई हमारी राजाई छीन ना लेवे या चढ़ाई ना करे । सतयुग में तुम्हारे ऊपर कौन चढ़ाई करेगा? तो देखो, तुमको कितना निर्भय रहना चाहिए; क्योंकि तुम आत्माएँ हो । शरीर को मारते हैं, तुम आत्मा को थोड़े ही मारते हैं जो तुम आत्मा डरती हो । तो बाबा को भी निर्भय कहते हैं । तुमको भी कितना निर्भय होना चाहिए । निर्भय होने की ये बड़ी मेहनत है, बड़ी समझ है; क्योंकि बाप भी निर्भय तुम भी निर्भय । अपन को निर्भय क्यों समझते हैं? बोलते हैं- ये शरीर को मारते हैं, गोली लगती है, मेरे को थोड़े ही कोई गोली लगनी है । मैं तो अभी जा रहा हूँ बाबा के पास । गोली लगेगी तो मेरे शरीर को लगेगी । अभी अर्थक्वेक होगा तो मेरा शरीर जाएगा । भले अर्थक्वेक हो या कुछ भी हो, हम तो बाबा को याद करते है । हम तो बाबा के पास ही जाने वाले हैं । हमको इन बातों का क्या डर है- अर्थक्वेक हो, फलाना हो । उनको तो डर रहता है ना । हमने कहा- हम तो बैठे हुए हैं । हम तो बाबा के पास जाते हैं । अच्छा, छत गिर जावे तो गिर जावे, हम तो बाबा के पास जाएँगे । अंत मते सो गते । अभी ऐसा निर्भय भी तो होना है ना । ऐसा निर्भय होने में टाइम लगता है । कोई सब थोड़े ही बन सकते हैं । नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार । तुम हो जगदम्बा की बच्ची । शिवशक्ति सिर्फ एक ही की तो महिमा नहीं है ना । उनके साथ तुम भी हो । एक थोड़े ही काम कर सकती है । सेना चाहिए । हाँ, सेना की कमांडर है जरूर । तुम सेना के कमाण्डर इन चीफ हो । यहाँ भी सेना का कोई कमाण्डर इन चीफ तो होगा ना । शक्तियों का भी , कन्याओं का या माताएं हैं तो तुमको यह रूहानी ड्रिल सिखलाने की ये है तुम्हारी कमाण्डर । इस युद्ध के मैदान में माया से कैसे जीत पहनी जाती है, कैसे बाप से योग लगाना होता है, वो सिखलाने वाली । तो यह बड़ी है, बाकी तुम भी तो वही हो ना, उसकी बच्चियां । तुम्हारी भी महिमा ही है । उसमें भी तुम्हारी महिमा जास्ती है; क्योंकि तुम हो लकी सितारे । सितारा तो यह भी है; क्योंकि ब्रहमा की बेटी है तो यह भी सितारा हो गया । चंद्रमा और बाप तो फिर वो भी हो गया । उनकी तो चंद्रमा ये हो गई ना । सूर्य की बाप की चंद्रमा तो यह है ना । इस द्वारा प्रजा रची, तो यह बच्ची हो गई ना परन्तु यह मेल होने के कारण फिर इनके ऊपर कलश रखा जाता है । समझा बच्ची! अच्छा, टोली खिलाओ बच्चों को । ...अच्छी तरह से और फिर मीठा मुख भी हुआ .आजकल के जो धर्मराज हैं ना वो सभी जैसे हज्जाम हैं । वो जजमेन्ट पूरी नहीं देते हैं, इसलिए पहले से ही उनके ऊपर ऊंचा रखा हुआ है । फिर ऊंचा जजमेन्ट ना देवें, तो और उनसे ऊँचा रखा है । तो नीचे वाले हज्जाम ठहरे ना । हज्जाम उनको कहा जाता है जिनमें अक्ल नहीं होती है । गुस्से में कहते हैं ना कि तुम तो कोई हज्जाम हो । तुम तो कोई बुद्धू हो । भैंस बुद्धि किसको कहा जाता है? कहते हैं ना तुम तो कोई भैंस बुद्धि हो । तुमको यह धारणा करने की बुद्धि ही नहीं है । तो उसको कहा जाता है भैंस बुद्धि । ऐसे होता है ना ।.. अभी ये तो एक्टर्स हैं । जानते हैं कि जरूर एक्टर्स में कोई तो क्रियेटर डायरेक्टर प्रिन्सिपल होगा ना । तो क्रियेटर डायरेक्टर, करन-करावनहार कहा ही जाता है शिवबाबा को । ब्रहमा द्वारा कराते हैं, विष्णु द्वारा कराते हैं, शंकर द्वारा कराते हैं । देखो, ब्रहमा द्वारा स्थापना कर रहे हैं । उसके लिए गाया ही जाता है करन-करावनहार । मनुष्यों के लिए नहीं । अरे, अहो सौभाग्य! यह समझ में ये गायन करता रहे सिर्फ इसको ही सृष्टि का चक्र कहा जाता है कि मूलवतन में वो है, सूक्ष्मवतन में वो हैं, स्थूलवतन में फिर देवताएँ हैं । फिर वो देवताएँ 84 जन्म भोगते हैं सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलहयुग में । फिर चक्कर फिरता है । अरे, यह भी याद हो जावे तो अहो सौभाग्य! मीठे-मीठे सिकीलधे ब्रह्मामुखवंशावली ब्राहमण कुलभूषण, स्वदर्शन चक्रधारी, अभी बताया ना तुमको कि चक्र को कैसे याद करना है, तो स्वदर्शनचक्रधारी सिकीलधे मीठे-मीठे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का दिल व जान, सिक व प्रेम से नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार याद प्यार और गुडमॉर्निग ।