11-05-1964     मधुबन आबू     प्रात: मुरली    साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हेलो, स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुलभूषणों को हम मधुबन निवासियों की नमस्ते, आज सोमवार मई की ग्यारह तारीख है, प्रात: क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।

ओम शांति!

बच्चों का भोलाबाबा बच्चों प्रति समझा रहे हैं । उसको कहा ही जाता है शिव भोलाबाबा । हमेशा शिवबाबा कहा जाता है । जब कोई चित्र देखेंगे, चित्र देखें या ना देखें, तो भी शिव भोलानाथ को याद करते रहते हैं । बाबा ने समझाया है कि शंकर को या कोई को भी भोलानाथ नहीं कहते हैं । ब्रहमा को कभी कोई भोलानाथ नहीं कहेंगे । शंकर को भी नहीं कहेंगे । विष्णु को भी भोलानाथ नहीं कहेंगे । अभी तुम बच्चों को, जब याद करते हो तो कहने की भी दरकार नहीं है कि शिव भोलाबाबा । बस, भोला बाबा कहने से तुम्हारा मुख मीठा हो जाता है; क्योंकि जानते हो कि भोला बाबा शिव अभी हम बच्चों को पढ़ाय और स्वर्ग का मालिक बना रहे हैं । 'बाबा अक्षर जब आता है तो बाबा कहने से प्रॉपर्टी-मिल्कीयत याद जरूर पड़ती है । किनको? बाबा कहने वाले बच्चों को । शियबाबा जब कहेंगे, तो सारे भारत में जो भी मनुष्य मात्र हैं उनको कोई भी खुशी, नशा या प्रॉपर्टी वगैरह का कुछ भी पता नहीं है । तुम बच्चे जब यहाँ बैठे हो तो जानते हो कि बरोबर वही शिवबाबा मनुष्य सृष्टि का बीज है । जब कोई झाड़ का बीज होता है तो एक झाड़ का एक ही बीज होता है । बरोबर ये कहते भी हैं कि इस मनुष्य सृष्टि का एक ही बीज है, जिससे फिर ये मनुष्य सृष्टि रची जाती है । तो जरूर जब बीज बाप हो गया तो बाकी हो जाते हैं बच्चे । अभी तुम बच्चे जानते हो कि सबका बाप एक ही होता है, कोई दस तो नहीं होगा ना । कहा जाता है भक्तों का भगवान बाप, क्योंकि याद करते हैं किसको? भगत याद करते हैं भगवान को । भगवान को जान नहीं सकते हैं; क्योंकि यही ड्रामा में नूँध है कि मैं छिप जाता हूँ । बाप ने समझाया है कि मैं बच्चों को ज्ञान और योग से सदा सुखी बना करके छिप जाता हूँ । तो ज्ञान सागर भी तो एक ही होगा ना, जैसे यह सागर एक है । वो सागर को तो बाँटा गया है । यह चीन का सागर, यह अमेरिका का सागर, यह यू के. का सागर, यह इण्डिया का सागर; पर सागर तो एक है ना; परंतु बाँटा गया है । तुम बच्चे अभी जानते हो कि सतयुग में इस सागर को कोई बीट नहीं सकते हैं, क्योंकि सारा सागर भारत का ही हो जाता है । ये जानते हो सारे सागर के तुम मालिक बनने वाले हो । सारी सृष्टि के मालिक बनने वाले हो । होते थोड़े हो । इस समय में सारी सृष्टि में देखो मनुष्य कितना दूर-दूर रहते हैं । यह भी तो समझना है कि सतयुग में इतने सभी मनुष्य और इतने सब खण्ड इतना दूर-दूर होते ही नहीं हैं । सिर्फ एक बाप का फिर सतयुग में एक ही राजधानी होती है । इसको ही कहा जाता है भारत सतयुग में वर्ल्ड ऑलमाइटी अथॉरिटी, एक राज्य था । किसका राज्य? भारत में देवी-देवताओं का राज्य होता है । भगवती-भगवान का राज्य भी कहते हैं । ये जो विलायत वाले, अमेरिकन यूरोपियन होते हैं वो कभी कृष्ण को गॉड कह देते हैं, कभी लार्ड कह देते हैं । गॉडेज सीता, गॉड राम- ऐसे-ऐसे कहते हैं, परन्तु उन बिचारों को मालूम नहीं होता है कि गॉड और गॉडेज कब राज्य करते थे उनको राज्य कैसे मिला । देखो, कोई भी नहीं जानते हैं । .....इनको कहते भी हैं ज्ञान का सागर । ज्ञान का सागर माना ज्ञान से सद्‌गति होती है । तो ये सागर सबकी सद्‌गति कर देते हैं । इनकी महिमा भी तो है... । अभी बच्चे जानते हैं कि हमारे सामने ज्ञान का सागर बैठा हुआ है । उनसे ये ज्ञान की गंगाएं निकल करके सारे विश्व को सद्‌गति देती हैं । ये तुम क्या करते हैं? अभी बरसात भी तो नहीं है ना । ये नाम बहुत पड़ गए हैं- ज्ञान अमृत । अभी ज्ञान अमृत कहने से ये मनुष्य मात्र जो पुजारी होते हैं, वो बैठ करके चरण धो करके अमृत बनाकर रख देते हैं । जो आते हैं उनको कहते है अमृत लो- । अब इसको अमृत नहीं कहा जाता है । देखो, कोई दवाइयाँ भी निकलती हैं, उनका भी नाम रख देते हैं- अमृत । लाहौर में एक ने निकाली थी । इस अमृत से सभी दु:ख दूर होते हैं, सभी बीमारियां नष्ट होती हैं; परन्तु नहीं, अनुठी बात नहीं है । अभी तुम बच्चे जानते हो कि बाप बैठकर योग सिखलाते हैं । अब योग हुआ ना । योग को अमृत नहीं कहेंगे । योगाग्नि से तुम बच्चों की सभी बिमारियाँ 2। जन्म के लिए दूर हो जाएंगी । इस जन्म की नहीं । इस जन्म में तो तुम भोगते रहते हो । यह भोगनी है अंत तक । यहाँ सिर्फ है योग और ज्ञान । अमृत-वमृत की बात नहीं उठती है । बाप आ करके समझाते हैं- बच्चे, योग लगाओ तो तुम्हारी सब बीमारियाँ नष्ट हो जाएँगी; परन्तु साथ-साथ कहते हैं तुमको फिर कभी बीमारी नहीं होगी । क्यों? क्योंकि फिर तुम सतयुग में रहने वाले हो । तो यहाँ पुरुषार्थ करते ही हो बाप से हेल्थ एण्ड वेल्थ लेने का । ऐसे नहीं है कि दूसरी कोई बीमारी होगी । नहीं, कोई बीमारी होती ही नहीं है, क्योंकि माया नहीं होती है । इसलिए वो भी समझा देते हैं कि मैं तुमको ऐसे कर्म सिखलाता हूँ और बता देता हूँ कि सतयुग में ये माया ही नहीं होती है, इसलिए कोई बीमारी नहीं है । यह तो कोई नहीं जानते हैं कि ये बीमारियाँ, रोग या रोना-पीटना कभी भी सतयुग में हो नहीं सकता है; परन्तु ये जो कहते हैं कि एक व्यास भगवान ने शास्त्र बनाए हैं । तो बाप बैठे हैं । उनको भगवान कहते हैं ना; इसलिए ऐसे ही समझो कि जो अपन को भगवान मानते या कहते हैं वो मूर्ख हैं । व्यास ने भक्तिमार्ग के लिए क्या किया है? ऐसे नहीं कहेंगे कि कोई बैठ करके लिखते हैं । नहीं, यह ड्रामा में नूँध है । बरोबर फिर व्यास का नाम पड़ेगा ये शास्त्र बनेंगे । यह पहले से ही बना हुआ है । बना-बनाया ड्रामा है; इसलिए इनको बड़ा युक्ति से समझना है । जो भी तुमने देखा वो सभी ड्रामा में बनी-बनाई है । व्यास ने शास्त्र बनाए- यह बनी-बनाई प्राचीन है । प्राचीन माना बेअन्त । ये बने-बनाए शास्त्र कब से हैं? ये जो भक्तिमार्ग के शास्त्र हैं वो चलते ही आएँगे, ये कब बदली नहीं हो सकते हैं । ये जो अभी कहते हैं ना- ये शास्त्र झूठे हैं । व्यास ने बनाया । उनको भगवान कहा ही नहीं जा सकता है । वो तो बैठ करके ऐसे ही शास्त्र बनाए हैं जो और ही दुर्गति को पाना है । बाप समझाते हैं कि बच्चों को बरोबर दुर्गति को पाना है । ऐसे कभी कोई नहीं समझाएगा कि भक्तिमार्ग दुर्गति मार्ग है और ये द्वापर से शुरू होता है । कुछ भी करो, शास्त्र पढ़ो, काशी कलवट खाओ, बलि चढ़ो तो भी तुम वापस जा नहीं सकते हैं । तुमको यहाँ सतोप्रधान आना है, फिर सतोप्रधान से तमोप्रधान बनना है । अच्छा, तुमने पाप नाश कर दिए फिर भी ड्रामा के इस कर्मक्षत्र से बाहर नहीं जाएंगे । फिर भी कर्म करके तमोप्रधान को जरूर पड़ना है; क्योंकि बच्चे जानते हैं कि हम सो सतोप्रधान हम सो तमोप्रधान बने हुए हैं । ऐसे है ना शुरू से लेकर । कहते हैं ना कि सब जो सतोप्रधान हैं वो तमोप्रधान जरूर बनना है । तो फिर भक्तिमार्ग क्या हुआ? रात शुरू होती है, रात हो करके अंधेरी हो जाती है । तो पहले रात इतनी अंधेरी नहीं थी, जितनी अब अंधेरी है; क्योंकि रात को तमोप्रधान बनना ही है । रात को भी ऐसे ही कहेंगे- पहले सतोप्रधान फिर सतो रजो तमो । सतो है तब जबकि भक्तिमार्ग अव्यभिचारी है । पीछे जितना व्यभिचारी बनता जाता है, आहिस्ते-आहिस्ते कला कमती होती जाती है ।..घोर अंधियारा हो जाता है । यानी ग्रहण पूरा खा जाता है । यह है बेहद का ग्रहण । इसको कहा जाता है सृष्टि के ऊपर बेहद का ग्रहण, एकदम घोर अंधियारा । काला जादू । वो चंद्रमा की तो बात नहीं है ना । ये सारे विश्व की बात है । विश्व को जब रावण का ग्रहण लगता है तो थोड़ा-थोड़ा, जैसे ग्रहण लगता है तो थोड़ा-थोडा खाता जाता है ना । साल के साल लग जाते है । यह हुआ हद का ग्रहण । ये तो घड़ी घड़ी होती है । सारे विश्व को द्वापर से ग्रहण लगना शुरू होता है बिल्कुल थोड़ा-थोड़ा । देखो, कितना टाइम लगता है । 2500 वर्ष लगते हैं जबकि ये विश्व एकदम काला हो जाता है, खास भारत । इस समय में बिल्कुल ही घोर अंधियारा है । इस घोर अंधियारे को सोझरा कौन करे? अभी घोर अंधियारा भी कहा जाता है फिर पतित भी कहा जाता है । नाम तो बहुत हो गए हैं ना । तो कहते हैं इस घोर अंधियारे को सोझरा करने वाला दिन बनाने वाला है बाप । ये सृष्टि जो पतित हो गई है उसको पावन करने वाला बाप है । ये जो भगत हैं जो इतनी भक्ति करते रहते हैं, मत्था टेकते-टेकते जब अंत हो जाती है तब भगवान को याद तो करते हैं ना । भगवान तो भगवान को याद नहीं करेगा ना । ये जो सर्वव्यापी का ज्ञान इन्होंने उठाया है, उनको समझाना चाहिए कि गॉड इज वन । उनकी ये रचना है । मनुष्य सृष्टि का बीज रूप गॉड को कहा जाता है । फिर उन एक की ही महिमा है । वो रहता भी ऊपर में है । उनकी महिमा होती है । यहाँ वाले की ऐसी महिमा नहीं हो सकेगी । जो अगर अपन को बाप भी कहलाए कि हम आत्मा सो परमात्मा हैं, तो उनकी महिमा कोई गा ही नहीं सकेंगे । इतने मनुष्य होते हुए, फिर भी गायन उनका होता है कि बरोबर वो पतित-पावन है, मनुष्य सृष्टि का बीजरूप है । सत् है, चैतन्य है, आनन्द का सागर है, ज्ञान का सागर है । कभी कोई मनुष्य की यह महिमा हो नहीं सकती है; क्योंकि एक की महिमा होती है ना । यहाँ जो शास्त्र के ज्ञानी हैं, उनकी तो ये महिमा नहीं की है, क्योंकि ये है भक्ति । अब यह जो भक्ति है वो ज्ञान का एक कणा भी नहीं है एकदम । ज्ञान से एक सेकेण्ड में जीवनमुक्ति का रस आता है । बाप कहते हैं मनमनाभव । इसको ज्ञान कहा जाता है । यानी हे बच्चे । मुझे याद करो । अब यह कौन कहते हैं कि मुझे याद करो? तुम जानते हो कि एक कहते हैं । यह गीता में है तो सही ना भगवानुवाच । देखो, व्यास ने क्या किया है? अभी व्यास का कोई दोष नहीं कहेंगे । पार्ट उनको ऐसा मिला हुआ है- यह भक्तिमार्ग की सामग्री बनाना, यज्ञ तप दान पुण्य तीर्थ शास्त्र वेद उपनिषद पढ़ना । बाबा बोलते हैं- मेरे लाडले बच्चे, ये भक्तिमार्ग है, इनसे कोई भी मेरे पास आ नहीं सकते हैं । अब ये कहेंगे 'हे बच्चे!' ये इनको भी कहते हैं । यह सुनता है, क्योंकि वो बाबा इनमें बैठा हुआ है । हे बच्चे! तुम राजऋषि हो । अभी ऐसा तो कोई सन्यासी कह नहीं सके । मुख से कभी भी नहीं निकलेगा कि तुम राजऋषि हो । अभी कहाँ की बात कहाँ बैठ करके वो लिखते करते हैं । बिचारे मनुष्य थोड़े ही ये कुछ समझेंगे । ये है ही गुप्त । बाप आते ही हैं गुप्त । तुम बच्चे ही जानो, और ना जाने कोई, जब तलक उनको तुम समझाओ नहीं । समझाने के लिए भी बाबा ने आज कहा था कि मनुष्यों को समझाया कैसे जाए । यह तो जरूर समझाना चाहिए कि गॉड इज वन । यह तो कभी भी कोई ने समझाया न होगा । जब गॉड फादर इज वन तो जरूर ये जो इतने सभी बच्चे हैं, उनके बच्चे ही ठहरे । ये पहले-पहले...बनाना चाहिए कि गॉड फादर इज वन, गॉड फॉदर इज वन । सिर्फ गॉड न कहो । नहीं । परमपिता परमात्मा एक है, क्योंकि वो मनुष्य सृष्टि का बीजरूप है । उनको कहा ही जाता है सभी भक्तों का भगवान; क्योंकि ये भक्तिमार्ग है । इसलिए सभी भक्तों को सुख देने के लिए वो आते हैं । भक्तिमार्ग में पुकारते हैं ना । दुःख तो है ही बरोबर । कलहयुग है । बहुत दुःख है, मनुष्य त्राहि-त्राहि करते रहते हैं; इसलिए भगत हैं । सतयुग में तो कोई त्राहि-त्राहि करते ही नहीं है । भगत तो बहुत हैं, ढेर के ढेर भगत हैं । सिर्फ तुम भारतवासी भगत नहीं हो, सब भगत हैं, सारी दुनिया में भगत हैं । मंदिर, मस्जिद वगैरह ये हैं भक्तिमार्ग की सामग्री । सतयुग में ये कोई भी सामग्री होती ही नहीं है । ऐसे मत समझो कि सतयुग में कोई शिव का मंदिर बनता है । नहीं । वो है भक्ति कल्ट, वो है ज्ञान कल्ट । वो है दिन, वो है रात । तो दिन में कोई मंदिर वगैरह होते नहीं हैं । रात में मंदिर, मस्जिद वगैरह बनना शुरू हो जाते हैं, जब-जब कोई आते हैं, क्योंकि पहले पहले तो मंदिर बनेगे ना । पहले पहले कोई मस्जिद तो नहीं बनेगी । पहले पहले ही मंदिर बनेगा । तो बरोबर पहले पहले सोमनाथ का मंदिर था । बाप बैठ करके समझाते हैं जब भी कोई आये तो उनको बोलो- देखो, गॉड फादर इज वन । भारत में तो और ही अच्छा कहते हैं तुम मात-पिता... । वो हमेशा गॉड फादर कहते हैं । यह है मदर एण्ड फादर कन्ट्री । तो जगतअम्बा-जगतपिता । और कोई भी गांव में जगतअम्बा-जगतपिता होते ही नहीं हैं, उनका चित्र ही नहीं होता है । शिव का भले हो; परन्तु जगतअम्बा और जगतपिता का चित्र यहाँ ही होता है । गले कोई चित्र वगैरह वहाँ ले जाते हों, पर यहाँ मंदिर भी देखो कितना एक्यूरेट बना हुआ है, क्योंकि बने हैं भक्तिमार्ग में, पर चित्र तो ठीक है ना । ये लक्ष्मी नारायण का चित्र, जो मंदिर में है, वो है तो एक्यूरेट ना । भले कोई एक्टर ले करके बनाते हैं । कोई खूबसूरत स्त्री होती है या पुरुष होते हैं तो उनका चित्र ले करके फिर वो बैठ करके मारबल का बनाते हैं; क्योंकि श्री लक्ष्मी नारायण का वो चित्र तो रह नहीं सकता है, उसका फोटो तो निकल नहीं सकता है । हाँ, यह जरूर है कि श्री लक्ष्मी-श्री नारायण ने सतयुग में राज्य किया है । मनुष्य ये भी कहते हैं कि सतयुग में श्री लक्ष्मी नारायण का राज्य है, कृष्ण को नीचे द्वापर में ढकेल दिया है, परन्तु है सतयुग और नेता की बात । बाप ने समझाया है कि सतयुग में जो श्री लक्ष्मी नारायण हैं उनके बचपन की कोई हिस्ट्री है नहीं । राधे और कृष्ण की है । राधे और कृष्ण की हिस्ट्री द्वापर की उनको ही कहते हैं कृष्ण अष्टमी फिर भला नारायण अष्टमी कहा गई? राधे की तो होती नहीं है । कृष्ण की होती है । अगर कृष्ण को द्वापर में ले जाएं, क्योंकि एक ही मनुष्य चित्र वाला फिर इस चित्र का मनुष्य होता नहीं है । नाम रूप देश काल फिर जाता है । अगर द्वापर में भी गए तो फिर उसकी तो महिमा ही नहीं है । क्या राधे और कृष्ण ने ही राज्य किया? ऐसे भी तो हो नहीं सकता है की राधे प्रिसेज वो प्रिन्स । तो जरूर गाया हुआ है कि राधे कृष्ण के महल में आई अर्थात् उनसे दिल लगाई । वो अपनी राजधानी में रहती थी और वो अपनी राजधानी में । जरूर स्वयंवर हुआ होगा । कृष्ण-राधे का राज्य कभी गाया ही नहीं जाता है; क्योंकि श्री लक्ष्मी नारायण पीछे सीता-राम । कहाँ है उसका राज्य? यह तो बात ही नहीं निकलती है । डिनायस्टी है सूर्यवंशी, फिर चंद्रवंशी । तो चंद्रवंशी में सूर्यवंशी कृष्ण तो आ ही नहीं सके । तो देखो, मूंझ हो गई है । वो उड़ाय दिया है । ये मानते हैं कि सतयुग में श्री लक्ष्मी नारायण का राज्य था । तो देखो, कितना घोटाला है; परन्तु जब कोई एकदम नया आवे तो उनको बोलो- देखो, एक बात तो पहले सुनाओ कि परमपिता परमात्मा, जिसको गॉड फादर कहते हैं, वो तो एक है ना । मनुष्य सृष्टि का बीजरूप । फादर माना ही बीजरूप । देखो, यह फादर है । ये बीजरूप है । यह हद का फादर है, इसने स्त्री रची । बरोबर स्त्री लिया ना । एडॉप्ट की । फिर स्त्री से बच्चे पैदा किए । एडॉप्ट नहीं किया, पैदा किए । स्त्री को एडॉप्ट किया कि यह मेरी स्त्री है और स्त्री कहती है ये मेरा पति है । इसको एडॉप्शन कहा जाता है । एंगेजमेन्ट । स्त्री को जन्म तो नहीं दिया । एडॉप्ट किया है । बाप भी कहते हैं मैं एडॉप्ट करता हूँ । मैं इनमें प्रवेश करके इन द्वारा फिर मैं एडॉप्ट करता हूँ । ऐसा कोई समझाय नहीं सकेंगे कि मैं एडॉप्ट करके ये सृष्टि रचता हूँ । भगवान ने सृष्टि कैसे रची, यह कोई को मालूम थोड़े ही है । नहीं । हाँ, है जरूर, समझते हैं । मुसलमान भी पढ़ते हैं कि किसको किसने पैदा किया? अल्लाह ने पैदा किया है । अब कैसे अल्लाह ने पैदा किया? वो फादर तो है, खुदा तो है, बाप तो है, पर कैसे पैदा किया. कोई भी नहीं जानते हैं । क्या होता है? क्या प्रलय होती है, उसके बाद कोई सागर पर एक पत्ते पर अंगूठा चूसते हुए एक आता है? भला अगर एक ही मनुष्य आया, परन्तु सृष्टि रचने के लिए तो दो चाहिए ना । स्त्री भी चाहिए । सागर में दो दिखलाना चाहिए । यह भी एक भूल है ना कि सृष्टि जब नई-नई होती है तो कृष्ण सागर में पत्ते के ऊपर लटकता आता है । वो ऐसे दिखलाते हैं; परन्तु एक से क्या हो सकता है! एक अगर मनुष्य है तो फिर दूसरा मनुष्य फीमेल चाहिए । यहाँ मनुष्य की तो बात है ही नहीं । बाप कहते हैं मैं बैठ करके तुमको एडॉप्ट करता हूँ, क्योंकि ये पतित सृष्टि है । एडॉप्ट करके मैं पढ़ाता हूँ । तुम सब बच्चे कहते हो कि बाबा, हम आपका मुखवंशावली बने हैं । तो फिर मुख भी चाहिए ना । बाप कहते हैं इस मुख का मैं आधार लेता हूँ । ये ऑरगन्स का आधार लेता हूँ और कहता हूँ- हाँ, बच्चे । तुम भी कहते हो- शिवबाबा हम आपके बच्चे थे, अभी फिर आपके बने हैं । क्यों बच्चे? बच्चे को तो बाप का वर्सा चाहिए । बाप भी कहते हैं मैं तुम बच्चों के लिए बहिश्त की सौगात लाया हूँ । देखो, बेहद का बाप, परमपिता कहते ही हैं कि मैं तुम बच्चों के लिए सौगात लाया हूँ । क्या सौगात लाया हुआ हूँ? वैकुण्ठ की सौगात । स्वर्ग की सौगात तुम्हारे लिए लाया हूँ । अभी सौगात कोई बर्तन-वर्तन तो नहीं है ना । तुम समझ गए कि बाप हमको स्वर्ग का मालिक बनाते हैं । तुम सब स्वर्ग का मालिक बनने के लिए यहाँ बैठे भी हो । स्वर्ग का मालिक बाप भी है, राजा भी है, रानी भी है तो प्रजा भी है । तो बच्चों को यही समझाया जाता है कि बच्चे, यह राजयोग है । इसमें राजाई स्थापन हो रही है, उनमें प्रजा वगैरह सब होंगी । देखो, कितनी बड़ी राजाई स्थापन हो रही है । धर्म स्थापन करने जो भी प्रिसेप्टर आते हैं, वो आकर ऐसे नहीं कहेंगे कि मैं कोई क्रिश्चियन राजाई स्थापन करता हूँ । कोई भी आएगा तो ऐसे नहीं कहेगा कि मैं सिक्ख राजाई स्थापन करता हूँ । नहीं । यह सो भी यहाँ बैठ करके राजाई स्थापन करते हैं । तुम भविष्य नई दुनिया में बादशाह बनेंगे । नई दुनिया में बादशाही लेने के लिए यहाँ शिक्षा पा रहे हो । देखो, यह वण्डर है ना । बाप बैठ करके सब समझाते हैं । अच्छा, बाबा तो फिर दूर जाते हैं । बाबा को तो समझाना है- पहले कोई मिले तो उनको कैसे समझायें, पहले-पहले उनको यही बात समझाना है कि गॉड फादर इज वन और वो बीजरूप है । हम सभी उनके बच्चे हैं, इसलिए ब्रदरहुड... । वो फादर है और हम उनके बच्चे हैं । वो गॉड फॉदर है । अभी जब फॉदर है तो क्रियेटर है । क्रियेटर है हैविन स्वर्ग का । यह तो जरूर कहेंगे । तो जरूर उनसे हमको स्वर्ग की बादशाही का हक है । अभी तो कलहयुग है ।... .तुमको मालूम नहीं है कि सतयुग में बादशाही थी । बाप ने बादशाही दी । अब क्रियेट करेगा तो फिर से 500 करोड़ मनुष्य तो नहीं क्रियेट करेंगे, जिनको बादशाही दी । तो देखो, यह नई क्रियेशन है । तुम भविष्य के लिए सूर्यवंशी राजधानी का मालिक बनते हो । सब तो नहीं बनेंगे ना । तो तुमको क्रियेट किया है । ये मनुष्य सृष्टि कैसे क्रियेट करते हैं, यह अभी तुम जानते हो । बाबा ने हमको मुखवंशावली.... । क्रियेट का तो कोई अर्थशास्त्र भी नहीं लिखा हुआ है । बोलते हैं कि यह है हमारी मुखवंशावली । भगवानुवाच, यह है मेरी मुखवंशावली । बाकी सभी हैं रावण की कुखवंशावली । बाप की है मुखवंशावली, रावण की है सारी कुखवंशावली, क्योंकि वो कुख से पैदा होते है । वो ब्राहमण हैं कुखवंशावली तुम ब्राहमण हो मुखवंशावली । देखो, वो ब्राहमण कहते हैं कि हम ब्रहमा की संतान है । जब तुम किसको भी बताएंगे तो सभी कहेंगे कि बरोबर वास्तव में हम ब्रहमा की औलाद हैं, तो ब्राहमण हुए ना । एडम या आदिदेव या कुछ कहते हैं ना । तो ब्रहमा, ब्रहमा तो प्रजापिता, तो प्रजापिता माना सभी ब्राहमण । ब्राहमण के बच्चे ब्राहमण होते हैं ना । जो-जो जिस-जिसका धर्म है, जैसे क्रिश्चियन है तो बच्चे क्रिश्चियन होंगे । सिक्स है तो बच्चे सिक्स होंगे । ये ब्रहमा के मुखवंशावली तो ब्राहमण हुए । तो बरोबर तुम हो अभी ब्रहमा के सच्चे-सच्चे औलाद ब्राहमण । ब्राहमण हैं सबसे ऊंचे; क्योंकि ब्राहमण को रखा ही जाता है ऊपर चोटी में । ये जो विराट स्वरूप का चित्र बनाते हैं उसमें से जो ऊँच ते ऊँच भगवत है उनको भी उड़ाय दिया है । जैसे शिवबाबा को त्रिमूर्ति से उड़ाय दिया है तैसे ब्राहमण की चोटी भी उड़ा दी है । जब कोई से...बोलेगा तो देवताएँ क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र । ब्राहमण का पता ही नहीं है । तो पहले पहले ब्राहमण हैं ना । देखो, तुम कितनी सेवा करते हो ऊँचे ते ऊंचा । ऊंचे ते ऊँचा भगवत् । फिर ऊंचे ते ऊँचा भगवत से पैदा किए तुम ब्राहमण । अभी शिव का चित्र क्यों नहीं दिया है? क्योंकि शिव तो सृष्टि पर आता ही नहीं है । सृष्टि पर तो आते हैं ब्राह्मण देवता क्षत्रिय वैश्य शूद्र । तो अब शिवबाबा को गुम कर दिया है; क्योंकि वो बाबा कहते हैं ना- हम तुमको राज्य दे देते हैं, हमारा नाम ही गायब हो गया है । हमारा नाम ही गुम हो जाता है । तुमको बादशाही देता हूँ । दे करके फिर मैं छिप जाता हूँ । हमारा नाम ही गुम हो जाता है । बरोबर छिप जाता हूँ । न चित्रों वगैरह में कुछ । बाकी एक रह जाता है शिव का । क्या किया शिव ने? कैसे सृष्टि रची? वो कोई को पता नहीं है । तो बाप कहते हैं जब कोई नया आवे तो जास्ती मत्था मत खपाओ कोई से भी । उनको बोलो, गॉड फादर इज वन । वो क्रियेटर है स्वर्ग का । स्वर्ग के ये मालिक हैं । भारत मालिक था । अभी मालिक नहीं है । अभी कलहयुग है । अभी जो स्वर्ग के मालिक देवता थे वो पुनर्जन्म 84 जन्म लेते आ करके अभी शूद्र वर्ण के बने हैं । अभी फिर उनको ब्राहमण बना रहे हैं । तुम भी ब्राहमण बनेंगे तो फिर देवता बनेंगे । अभी शूद्र हो । एकदम अच्छी तरह से उनको समझा देना है कि वर्ण भी तो हैं ना । चित्र तो है तुम बच्चों के पास । वो चित्र भी बना लेंगे । कच्चा बनाया था, चोटी के साथ में परन्तु कोई ने ऐसे एक्यूरेट ना बनाया तो चित्र रह गया । वो भी बनाएँगे । चोटी के आगे फिर शिव जरूर देना पड़े । समझा ना! चोटी के ऊपर में शिव को जरूर देना पड़े । जैसे त्रिमूर्ति के ऊपर शिव है, इसके ऊपर भी मनुष्य का विराट चित्र बना करके और फिर उनके ऊपर शिव । ये आर्टिस्ट हैं ना हमारे पास, वो सुन रहे हैं । बहुतों ने वो चित्र बनाया है, परन्तु फ्रण्ट में समझाने के लिए आता ही नहीं है । क्यों? डिफेक्टेड है; क्योंकि शिवबाबा है नहीं । शिवबाबा लगा करके फिर अगर... तो फिर मनुष्यों को समझाया जाय कि भगवान पहले आ करके ब्रहमा द्वारा ब्राहमण रचते हैं । पीछे वो ब्राहमण देवता बनते हैं, देवता से क्षत्रिय । 84 जन्म ऐसे होते हैं । तो भी चित्र की दरकार होगी ना । अभी बाबा तो डायरैक्शन देगा, तो जो चित्रकार होगा; क्योंकि सुनते तो हैं ना टेप में, वो समझेंगे कि हाँ, ऐसा बनाना चाहिए जो मनुष्य को समझाने से ठीक है । ये तो डिटेल में फिर बाबा चला गया । किसको कैसे समझाया जाय, ये बाबा फिर भी समझाते हैं । कभी चिढ़ो नहीं; क्योंकि मनुष्यों को अल्प पहले समझाना है । जब तलक अलफ समझे और लिख करके देवे कि हमने अलफ समझा बिल्कुल ही फिर वो सब जल्दी-जल्दी समझ जाएँगे । अलफ को न समझने के कारण मनुष्य दुर्गति को पाए हैं । सभी ऑरफन्स बन गए हैं । मूल है एक बात कि अलफ को न समझने से, बाप को न जानने से मनुष्य एकदम ऑरफन्स बन गए हैं, दुःखी बन गए हैं । तो पहले वो समझाना चाहिए ना । उनको समझाना है कि वो बाप है और ये सभी ब्रदर्स हैं । जब वो बाप प्रजापिता ब्रहमा द्वारा सृष्टि रचता है तो फिर सभी ब्रदर्स एण्ड सिस्टर्स हो जाते हैं मूल से । तो ये सिजरा है ही ऐसे । शिव की आत्मा तो है ही इमॉरटल । पीछे जब मनुष्य सृष्टि रची जाती है तो पहले पहले हैं ब्रहमा-सरस्वती । पहले-पहले हैं ब्राह्मण, पीछे ये बिरादरियां कमती होती जाती हैं । पीछे ब्राहमण से देवता बनते हैं, देवता से क्षत्रिय बनते हैं, क्षत्रिय से वैश्य बनते हैं, वैश्य से शूद्र बनते हैं । ऐसे ही ये सृष्टि का झाड़ वृद्धि को पाता है । झाड़ तो है बच्चों के पास । पहले पहले एकदम क्रियेटर से ही भूल आए । ऑरफन बने हैं, सब दुःखी बने हैं बिल्कुल ही । साधु संत महात्मा दु:खी बने हैं । बाप कहते हैं ना साधुओं का भी परित्र्राण करने यानी उद्धार करने मुझे आना पड़ता है अर्थात् वो भी दुर्गति को पाए हुए हैं । फिर भी उसमें अक्षर तो लिखा हुआ है कि मैं आता हूँ सबका उद्धार करने । जब ये साधु आ गए तो बाकी तो सब कचड़पटटी हो गई । समझा ना। साधु लोग इनका अर्थ तो समझते नहीं हैं, क्योंकि पत्थरबुद्धि हैं, ज्ञान तो है नहीं । सभी की बुद्धि में गॉडरेज का ताला लगा हुआ है, पत्थर पड़ा हुआ है । कुछ भी नहीं समझते हैं । बाबा आकर कहते हैं- माया ने तुमको बिल्कुल ही तुच्छ बुद्धि माना पत्थरबुद्धि कर दिया है । बच्चों को समझाने के लिए बाबा फिर भी डिटेल में चला जा रहा है; परन्तु फिर नया कोई आवे तो उनको पहले पहले समझाना है कि ये फादर है, उनसे प्रॉपर्टी का वर्सा मिलता है । फादर स्वर्ग का क्रियेटर है । अभी स्वर्ग की बादशाही जरूर होनी चाहिए ।...जब बाबा आकर स्वर्ग स्थापन करते हैं तो उसको कहा जाता है जीवनमुक्ति । जब जीवनमुक्ति की स्थापना करने आते हैं तो जरूर बाकी जो इतने मनुष्य हैं सो सब तो जीवनमुक्ति में यानी सतयुग में नहीं होंगे ना । तो उनको फिर बाप ले जाते हैं अपने मुक्तिधाम में । मुक्तिधाम को ही शांतिधाम और जीवनमुक्ति धाम को सुखधाम और ये जो जीवनबंध है उनको दुःखधाम कहा जाता है । ये तीन अक्षर उनको जरूर समझाओ कि भारत में जब सुख था, स्वर्ग था तो फिर बाकी जो मनुष्य थे वो सभी मुक्ति में थे । मुक्ति और जीवनमुक्ति । तो हक है कि स्वर्ग रचता है तो फादर से उनका वर्सा मिलना चाहिए । तो फिर बताना होता है कि हम वर्सा ले रहे हैं । यह भारत में था । अब नहीं है । फिर हमको यह वर्सा मिला है । तो बाबा कहते हैं आ करके समझो । मेहनत कुछ भी नहीं है । बाप को याद करना है और स्वर्ग को याद करना है । मरना है जरूर । यह लड़ाई का स्थान है । बोझा इस समय में बहुत है । जितना बाप को याद करेंगे उतना ही तुम हेल्दी बनेंगे और जितना स्वदर्शन चक्र को फिराएंगे, सतयुग-त्रेता याद रखेंगे स्वर्ग को याद करेंगे तो तुम धनवान राजा बन जाएँगे । ये तो अच्छी बात सुनाते हो ना । कोई तकलीफ तो नहीं होती है? तो बस, बाप और बाप का वर्सा, ये दो चीज पकड़ करके लिख्राओ । सन्यासी आवे तो उनको झट कह दो कि सन्यास दो प्रकार का है । एक है हठयोग सन्यास दूसरा है राजयोग । राजयोग तो बरोबर गीता का है । भगवानुवाच- मैं तुझे राजाओं का राजा बनाऊँगा । राजाओं का राजा तुम सन्यासी तो बनते नहीं हो, क्योंकि तुम हो निवृत्तिमार्ग वाले । ये है प्रवृत्तिमार्ग का ज्ञान । उनको तो बता देना चाहिए कि ये वो सन्यास नहीं है, ये भगवान बैठ करके सिखलाते हैं । तुम समझो इशारे में ही कि वो बाप है । वो ही बैठ करके स्वर्ग का वर्सा देंगे । ये शंकराचार्य तो बाप नहीं है ना । ये तुम्हारा बाप थोड़े ही है । इसको बाप नहीं कहा जाता है, गुरू कहा जाता है । बाबा ने समझाया है कि रियल्टी में बाप किसको कहा जाता है । ऐसे तो मुन्सिपालिटी का मेयर होगा, उसको मी बाप कहेंगे । बड़ा आदमी बुड्‌ढा देखेंगे तो उनको भी बाप कहेंगे । रियल्टी में पहले नम्बर में बड़े ते बड़ा बाप एक तो वो है, फिर ब्रहमा, फिर लौकिक । ये तीन बाप सिद्ध करके बताओ कि एक वो आत्माओं का बाप, फिर .. .प्रजापिता बाप, जिस प्रजापिता ब्रहमा से भगवान मनुष्य सृष्टि रचते हैं । तो जरूर मनुष्य सृष्टि रचेंगे तो स्वर्ग के लिए ही रचेंगे । कैसे रचते हैं, वो समझो । दूसरा है लौकिक बाप, उनसे इनहेरिटेन्स मिलने का है । बाकी बाप तो बहुत ही कह देते हैं । तो सबसे बड़ा हुआ वो । उस बाप से हम बच्चों को वर्सा मिलता है । अभी कलहयुग है । सतयुग तो जरूर आएगा, उसका वर्सा हम ले रहे हैं । हम बाप से अपना हक ले रहे हैं । हमको बाप से हक जरूर मिलता है । और कभी कोई दूसरा मनुष्य नहीं कहेगा सिवाय तुम बच्चों के । सो भी बहुत थोड़ी हैं जो अच्छी तरह से समझा सकती हैं । बाकी तो बिचारी कुछ जरा भी नहीं समझा सकती हैं । देखो, बाबा नीचे बैठ करके बच्चों से मिलते हैं । कभी बच्चों को ऊपर में बिठाय करके कोई गलीचे-वलीचे के ऊपर नीचे बैठा है । तो बाप सिखलाते हैं कि बच्चे, अहंकारी टट्‌टू मत बनना । निरहंकार हो रहना । अहंकारी, देह-अभिमान में रहते हैं ना, तो उनको अहंकार होता है । जो देही-अभिमानी होते हैं ना, उनका वातावरण, शिकल सदैव ही अलग होता है । वो बहुत नम्रता से समझाते हैं अच्छी तरह से । बाप बहुत नम्रता से समझाते है । देखो, बाप कहाँ आते हैं, किसमें आते हैं, कैसे समझाते हैं । हाईएस्ट अथॉरिटी है, भगवान है और तुमको कितना प्यार से पढ़ा रहे हैं । स्कूल में जो नालायक बच्चे होते हैं तो बड़ी चंचलता करते हैं, टीचर को बड़ा तंग करते हैं । न पढ़े तभी टीचर को तंग करे ना । जरूर तंग करते होंगे । तो देखो, आ करके तुम बच्चों का हूबहू ऐसे टीचर बना है और पढ़ाते देखो कैसे हैं! इस बात को कोई समझ सकेगा कि ज्ञान का सागर परमात्मा इनको पढ़ाते हैं! तुम बिगर कोई समझेगा! तुम्हारे में भी बहुत थोड़े हैं जो यथार्थ रीति से समझते हैं । नहीं तो आश्चर्यवत् भागन्ति क्यों हो जावे? गिरे क्यों? ऐसे बाप की मत पर क्यों न चलें? बाप कहें- बच्चे, मैं अब फरमान करता हूँ कि तुम विकार में नहीं जाना, नहीं तो हमेशा के लिए तुम्हारी सत्यानाश हो जाएगी । बच्चा बन करके एक दफा मी जाएंगे तो ऐसे गिरेंगे ऊपर से जो साल-दो साल तुम्हारा माथा ही खराब होगा । जैसे कि बेड पर होंगे । हड्‌डी-गुड्‌डी टूटी पड़ी होगी । देखो, बाप कहते हैं ना । और फिर बोलता है, नहीं तो फिर मैं धर्मराज से डण्डा भी खिलाऊँगा । पूरा खिलाऊँगा क्योंकि करन-करावनहार है । तो भी देखो, चलते-चलते माया उनको नाक से पकड़ करके गटर में डाल देती है । पीछे लिख देते हैं- बाबा, माया ने चोट लगाई । बाबा कहते हैं माया ने चोट लगाई । मुआ. तुम कमजोर हो, तुमको उस्ताद की महिमा करानी चाहिए या निंदा करानी चाहिए? क्योंकि दो तरफ हो गया ना । माया ने तुमको थप्पड मारकर गिरा दिया । अरे, तुम ऐसे उस्ताद बाबा का बच्चा और तुम हार गया । नैलत है तुम पर । तुम तो कोई कुलकलंकित दिखते हो । बाप जरूर कहेंगे ना । ये तो जानते हो ना कि बाबा बहुत को देखते हैं । बहुत ही कुछ ना कुछ करते हैं । काम, क्रोध, देहअभिमान में आकर करते हैं । तो बाबा तो जरूर कहेंगे- बड़े नालायक हो, बड़े कुलकलंकित हो, तुम तो अपनी सत्यानाश कर रहे हो । तुम अपने 21 जन्म के सुख को दाग लगा रहे हो बिल्कुल ही । ऐसा कोई दूसरा बाप थोड़े ही बैठ करके कहेंगे । बाप बिल्कुल समझाते हैं बच्चे, कोई भी गफलत मत करो, यह बड़ी चढ़ाई है एकदम । नहीं तो थोड़ा ही थप्पड़ खाएँगे, गिरेंगे, फिर हड़-गुड टूट जाती है । इसलिए कोई भी खता नहीं, किसके ऊपर क्रोध नहीं करो । बच्चे के ऊपर भी क्रोध मत करो । प्यार से ही तुमको काम निकालना है । बाबा अगर प्यार का सागर न होता तो इतने बच्चों को कैसे सम्भाल सकता था? और प्यार से ही बिल्कुल सम्भालते ही रहते हैं अच्छी तरह से । तो जब इतने बच्चों को बाप प्यार से सम्भाल सकते हैं तो तुम क्या अपने एक-दो चार बच्चों को प्यार से नहीं सम्भाल सकते हो, जो उनको थप्पड़ लगाते हो ।..फिर थप्पड लगाते हो किसको? छोटे-छोटे बच्चों को तो और ही नहीं थप्पड़ लगाना चाहिए, क्योंकि वो तो महात्मा लोग हैं । बाप तो विकारी है । तुम यह क्या करते हो? विकारी हो करके उस महात्मा को थप्पड़ क्यों लगाते हो? क्योंकि बच्चा तो महात्मा गिना जाता है । अच्छा, आज थोड़ी देरी हो गई है । सोमवार का दिन भी है । परंतु बच्चों को समझना बहुत अच्छा है । पहले पहले तो एकदम तुम्हारा खुशी का पारा बहुत चढ़ा हुआ होना चाहिए । हम बाप से वर्सा लेते हैं । अरे, बाप देखो कितना साधारण है । साधारण है इसलिए ही शायद तुम मूंझ जाते हो । कोई-कोई, बाबा सबके लिए थोड़े ही कहते हैं । बच्चे बाप के पास आते हैं तो बाबा पूछते हैं कि कब तुमको निश्चय हुआ? दो बरस । अरे, मुझे तो वण्डर लगता है कि तुमको 2 वर्ष हुआ, उस बाप को जानने के बाद, जो स्वर्ग का मालिक बनाते हैं, उनसे मिलने के लिए तुमको फुर्सत नहीं है । कोई बंधन नहीं, फलाना नहीं । तुम कोई पक्षी थोड़े ही हो । मिसाल दिया ना कि तोता झाड़ पर बैठा था और राड़िया मारता था कि मुझे कोई छुड़ाओ । अरे, पर है तुम्हारे पास, तुम रडियाँ क्यों मारते हो? सन्यासी लोग ये दृष्टान्त देते हैं । अरे बच्ची, कोई भी हो कुछ भी हो, पति हो, अरे, बाप मिलते हैं फिर क्या । तुम गाते रहते- और संग तोड़, तुम संग जोडूँगी । अभी तुम कहेंगे कर्मबंधन है, तो वो फिर तोड़ो ना । देखो, शुरुआत में सिंध में तोड़कर दिखलाया । फट एकदम । ये हमारे मित्र-संबंधी हमको मुरली नहीं सुनने देते हैं, हमको मारते हैं, सो भाग गए । भागी तो कोई स्त्री थोड़े ही भागी, बाल-बच्चे सब भाग करके वहीं चले आए । तो देखो, बहादुरी है ना । तो ये जो कर्मबंधन हैं वो कच्चे हैं । तुमको दिखलाउंगा कि बड़े-बड़े घर की भी कोई निकली । कोई विरले निकलती है, ऐसे नहीं । कोई ऐसी निकलेगी जो पदमपति की होगी । वो पति को एकदम कहेगी- तुम मुझे नहीं छोड़ते हो । मुझे जाना ही है । जाओ, ये तुम्हारा घर-बार सब तुम छोड़, मैं जा करके बरतन माँजूँगी । मेरे पास बहुत से साहूकारों की आई हैं, जो कहती है-- बाबा, मुझे तंग करता है, ये करता है । मैं बोला- याद रख लेना तुम सुख में हो, यहाँ आएगी तो मैं बरतन मंजवाउंगा, झाड़ लगवाऊँगा । इतना हम तुम्हारी परीक्षा लूँगा और सबने परीक्षा दी है । मम्मा ने बासन माँजे हैं, मम्मा ने इस्त्री की है, मम्मा ने बैठ करके गोबर के छेने बनाए हैं । अभी गोबर का छेना बनाया तो कोई पैसे नहीं थे क्या? कराँची में तो पैसे ढेर पड़े हुए थे ।10-10, 20-20 लाख तिजोरी में रखे पड़े थे । हम बैंक में कभी नहीं रखते थे । तो भी फिर ऐसे बच्चे कि बासन मांजा फलाना किया, रात को टीप-टॉप होकर अपने बसों में और मोटरों में घूमने चले जाते थे; परन्तु वो परीक्षा जरूर लेते थे । ये बाप का काम था ना । ये बाप परीक्षा लेते थे । अरे भई, तुम भी करो, जैसा कर्म तुम करेंगे तुमको देख करके.. तो तुम्हारा देहअभिमान टूटेगा । बाबा के पास बड़ी-बड़ी चिट्‌ठी आती हैं । तो बाबा लिख देते हैं कि याद रख लेना यहाँ आएगी तो मैं पहले-पहले बर्तन मजवाऊँगा छेना कराऊँगा झाड़ लगवाऊंगा । फिर तुमको याद पड़ेगा, तुम्हारी बीमारी सभी जागेगी, तुमको बच्चा याद पड़ेगा, पति बड़ा जोर से याद पड़ेगा । ये खबरदार रहना और पीछे वहाँ रोना नहीं । अगर ऑख से एक आंसू गिराया तो वापस कर दूँगा, मैं रखुंगा नहीं । इतना तो कड़ा लिखता हूँ .. ऐसी-ऐसी चिट्‌ठी जब कोई की छोड़ने की आती है । साफ लिख देता हूँ- रोना बिल्कुल नहीं । साजन की सजनी .साजन शिवबाबा जो तुमको बैठ करके स्वर्ग की महारानी बनाते हैं और तुम रोती हो! लज्जा नहीं आती है? नैलत है तुम्हारे रोने के ऊपर बाबा फिर ऐसे कह देते हैं । रोना किसके काम का? रोती हैं विधवाएं । तुम बनी हो साजन की सजनी । वो तुमको श्रृंगार कराकर महारानी बनाते हैं और ये रोना! देवताएँ भले रो सकते हैं, लक्ष्मी नारायण रो सकते हैं, तुम नहीं रो सकते हो; क्योंकि तुम सजनी बनी हो साजन की । देवताएँ कोई साजन की सजनियॉ थोड़े ही बनते हैं । अच्छा, देरी हो गई, टोली ले आओ । ...बुड्‌ढियाँ- बुड्‌ढियाँ बिचारी इन बातों को उठाय न सकें ।......बोलते हैं- अच्छी सजनी रोती क्यों है? मैं इनका साजन मर गया हूँ क्या? इनका और तो कोई है नहीं । सिर्फ एक ही साजन है, मात-पिता, भ्राता-भाई, सब एक साजन । फिर ये मुट्‌ठी रोती क्यों है? क्या इनके मात-पिता, दादा, पति ये सभी मर गए है? कारण क्या है इनके रोने का? कारण यह है, देह-अभिमान मे आ गई है, भूल गई है । स्त्री पति को थोड़े ही भूलती है । स्त्री कभी पति को भूलेगी? कभी नहीं । तो ये सजनियाँ साजन को भूलती क्यों है? माया है बड़ी जबरदस्त । आसमान में जाते हो, गिरेंगे फिर एकदम पुर्जा-पुर्जा हो गया एकदम । शाबाश! बॉटो ।. ..बाँटने आता है? ठहरो- ठहरो तुमने बाँटना सीखा नहीं । पहले बाप टीचर । सर्वव्यापी के ज्ञान से क्या होता है? अगर भगत है, कहते हैं- हमारे में भी भगवान है । तो भगवान का योग तो लग ही नहीं सकेगा । किसके साथ? यानी जबकि बच्चे होंगे और बाप से वर्सा लेंगे तभी तो बाप से योग होगा । बच्चे जन्म ले करके बाप से योग लगाएँगे, बाबा-बाबा दिल मे आएगा और कहेगा तब तो वर्सा मिलेगा ना । ये तो बाप है और हम बच्चे । हम सब ब्रदर्स हैं .वो बाप है । बाप रचता है स्वर्ग का तो उनसे स्वर्ग की बादशाही मिलनी चाहिए यानी जीवनमुक्ति मिलनी चाहिए । बाप है पतित-पावन । देखो, अभी सारी दुनिया पतित है । सतयुग पावन है । सतयुग में कोई पतित हो नहीं सकता है । तो ये सिर्फ बाप की ही महिमा है । बाप की बहुतों ने ग्लानि की है । तुमको अभी बाप की महिमा करनी चाहिए । बाप खुद आकर कहते हैं कि तुमने हमारी बहुत ग्लानि की है । तुम बच्चे फिर अभी उनकी महिमा करेंगे ना । दूसरे सब ग्लानि करते हैं, तुम बच्चों को बाप की महिमा करनी है । बस, महिमा में ही खुश रहो । महिमा करते रहेंगे तो महिमा करते रहने से भी तुम्हारे विकर्म विनाश होते जाते हैं और जमा होता जाता है । हेल्थ जमा होती है, वेल्थ जमा होती है, किसको समझाने से भी जमा होती है और याद करने से भी जमा होती है । सबको मिला? समझा! मीठे-मीठे2 बच्चों प्रति यादप्यार और गुडमॉर्निग ।