13-05-1964     मधुबन आबू     प्रात: मुरली    साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हेलो, स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुलभूषणों को हम मधुबन निवासियों की नमस्ते, आज बुधवार मई की तेरह तारीख है प्रात: क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।

रिकॉर्ड :-
न वो- हमसे जुदा होंगे

ओमशांति ।
बच्चों का ही गाया हुआ गाना बच्चे सुन रहे हैं । ये बच्चों की आत्माएँ हैं, जो बाप से प्रतिज्ञा करते है- अब हम कभी भी बाप से जुदा न होंगे ।........ आत्मा शरीर में तो विराजमान है । अभी बच्चों को देही-अभिमानी बनना है अर्थात् अपन को आत्मा निश्चय करना है, परमात्मा निश्चय नहीं करना है । जैसे सन्यासी लोग समझाते हैं- परमात्मा सो आत्मा, फिर आत्मा सो परमात्मा । यह उल्टी गंगा है । अभी बाप ने आकर समझाया है कि इस समय में तुम बच्चे देही-अभिमानी भव यानी बनो । इतना समय तुम सभी बच्चे देह-अभिमानी बनते आए हो । कहाँ से लेकर के? सतयुग से लेकर के । समझा ना । क्योंकि यह शिक्षा मिलती है बच्चों को आत्माओं को वापस जाने के लिए । इसलिए यह शिक्षा ही इस समय में यहाँ मिलती है, क्योंकि बाप कहते हैं देही-अभिमानी बनो । ऐसे नहीं कहेंगे कि वहाँ कोई देह-अभिमान है । नहीं, वहाँ तो तुम्हारी प्रालब्ध है । जब तुम बच्चे यहाँ देही-अभिमानी बनते हो और बाप जो भी नॉलेज देता है सो आत्माएं ग्रहण करती हैं, ग्रहण करते-करते अपने ज्ञान का प्रालब्ध का पार्ट बजाय लेती है, फिर यहाँ देह-अभिमान या देही-अभिमानी का क्वेश्चन नहीं होता है । यह देह-अभिमान और देही-अभिमानी का क्वेश्चन यहाँ उठता है । क्यों उठा हुआ है ड्रामा अनुसार? हम आत्मा सो परमात्मा हैं या नहीं, ड्रामा अनुसार ये मूंझ पड़ी है । तो बाप आकर समझाते हैं- पहले तो अपन को निश्चय करो । सन्यासियों ने तुमको ऐसे ही कह दिया है कि ईश्वर सर्वव्यापी है, हम भी परमात्मा हैं, तुम भी परमात्मा हो, जिधर देखता हूँ उधर तू ही तू है । यहाँ देखें तो भी तू ही तू है, यहाँ देखें तो भी तू ही तू है । इससे कुछ भी फायदा होता नहीं है कि जिधर देखता हूँ उधर तू ही तू ही । तू ही यानी परमात्मा ही परमात्मा । तो सब परमात्मा हो जाते हैं । इसको ही लोग समझते हैं कि इसको कहा जाता है सम्भावनाएं, परन्तु ये सम्मावनाएँ तो हो ही नहीं सकती हैं, कोई की भी । सम्भावना है किसकी? बाप-बच्चे की भी सम्भावना नहीं है । आजकल के समय में बच्चे बाप को मार डालते हैं, तो कभी बाप बच्चों को भी मार डालते हैं, बच्चे मां को मार डालते, तो कभी माँ बच्चे को भी मार डालती है । समझा ना! क्योंकि अज्ञान है, घोर अंधियारा है । मनुष्य इस समय में जैसे कि जनावर से भी बदतर हो पड़ते हैं । देखो, बंदर का मिसाल बाप ने पूरा बताया ना कि भगत-नारद ने कहा- हम लक्ष्मी को वरेंगे । तुम अपने दिल रूपी दर्पण में अपन को देखो, लायक हो? अच्छा, कैसे लायक हो? तुम स्वदर्शनचक्रधारी हो? क्योंकि तुम स्वदर्शनचक्रधारी बनते हो तभी चक्रवर्ती राजा बनते हो । तो बाप बैठ करके बच्चों को समझाते हैं- पहले पहले देही-अभिमानी भव । देखो, बार-बार कहते हैं । कल्प पहले भी बार-बार कहा था देही-अभिमानी भव । अब ऐसे समझो कि मुझ आत्मा को परमात्मा इस शरीर से अपना परिचय दे रहे हैं, पढ़ाय रहे हैं और आत्मा में जो आसुरी संस्कार हैं वो संस्कार बदलाय रहे हैं । शरीर में नहीं है । संस्कार आत्माएँ ले जाती हैं, शरीर तो खतम हो जाते हैं । तो इस समय में बार-बार कहते हैं; क्योंकि गीत भी तो सुना है । अभी हम आत्माएँ आपके साथ ही योग लगाएगी । यह हमारा प्यार बाप से कभी भी बिगड़ नहीं सकता है । भले पवित्र रहने के लिए अनेक प्रकार के विघ्न हम बच्चियों के ऊपर पड़ेंगे । देखो, यह माताओं का गाया हुआ है । हमको बहुत ही दुःख सहन करना पड़ेगा, क्योंकि हम उनको जहर नहीं देते हैं, विख नहीं देते हैं । यह नूँध है कि इन अबलाओं को सितम बहुत सहन करना पड़ता है और गाया भी जाता है अबलाओं के ऊपर सितम बहुत पड़ते हैं; क्योंकि वो दुर्योधन नंगन करना चाहते हैं । ये फिर जब बाप की बनती हैं, तो बोलती हैं- हम तो कभी नंगन नहीं होएँगे । देखो, कितनी मार खाती हैं । उनके ऊपर पहले से ही गीत बनाया हुआ है, कोई तुम लोगों ने नहीं बनाया है । अनायास ही कोई से बनवाया हुआ है, जिसका अर्थ कोई जानते थोड़े ही हैं । जिन्होंने बनाया है वो तो गवर्मेन्ट के रेडिओ में भी ये सभी गीत आते है; परन्तु कोई कुछ समझते थोड़े ही हैं कि क्या हो रहा है । उनका बैठ करके अर्थ ये रिकॉर्ड जैसे तुम्हारा शास्त्र बन गए हैं । इसलिए वो कहते हैं- यह क्या! ऐसे तो कभी कहीं होता ही नहीं है- ये रिकॉर्ड बजाना और उनका बैठ करके अर्थ करना । रिकॉर्ड तो बहुत करके फिल्म के निकलते हैं । वो समझते हैं- ये फिल्म का इनका कोई शास्त्र निकल पड़ा है क्या । ये शास्त्र के रिकार्ड पर तो नही है; पर ये बाबा ने तुम बच्चों के लिए बनवाए हैं; इसलिए तुमको ये रखने चाहिए । समझाना चाहिए कि देखो ......... जब हमारा बुद्धियोग बाप के साथ जाता है तो हमको पवित्र तो जरूर रहना पड़े ना । रखड़ी तो एकदम पक्की-पक्की बाँधना पड़े ना, क्योंकि इसको कहा जाता है , बस इनसे जास्ती प्यारा (और कोई नहीं) । कोई भी भगत 'भगवान कहकर याद करते हैं; परन्तु क्या करें, भगवान उनको पता नहीं है । शिव-शंकर महादेव सबको इकट्‌ठा ठोंक देते हैं । सभी भगवान ही भगवान हैं, कृष्ण भगवान है और हाजरा हजूर... । एक था, जिनमें कृष्ण ही कृष्ण (कहते हैं) । अरे, कोई वहाँ वृंदावन में जाओ तो तुम वहाँ देखेंगे, एक वल्लभाचारी लोग या कोई लोग हैं, वो राधे के पुजारी हैं । जिधर देखता हूँ उधर राधे ही राधे राधे ही राधे, तुम भी राधे, हम भी राधे- ऐसे भी बहुत करते हैं । तुमने तीर्थ पूरे नहीं किए हैं । बाबा ने सभी तीर्थ भी तो किए हैं ना । तो बाबा को सब मालूम है कि क्या-क्या करते हैं- जिधर देखो राधे ही राधे । साईंबाबा वाले कहेंगे कि जिधर देखता हूँ उधर साईंबाबा ही साईंबाबा है; क्योंकि वो भगवान का अवतार है । ऐसे मान लेते हैं । तो कितना अंधकार है । ये बाप बैठकर समझाते हैं- बच्चे, ये फिर भी होने का है । अंत तक तुम जो कुछ देखेंगे यह बनी-बनाई ड्रामा है । इसलिए बच्चों को समझाते हैं कि बच्चे, ये सभी ड्रामा में नूंध है । बनी-बनाई है । इसमें किसको कोई दोष देने की बात नहीं रहती है, यहाँ समझने की बात है कि बरोबर हम बच्चों का बाप के साथ बहुत प्यार है, सारी दुनिया से और फिर इस ज्ञान यज्ञ से । तुम जब कहते हो कि इस ज्ञान से ज्वाला प्रज्वलित हुई, तो वो कह देते हैं क्या । तुम्हारे बाबा ने! इसीलिए तो वो शिवबाबा का नाम नहीं लेते, कहते हैं तुम्हारे बाबा ने यज्ञ रचा है क्या भारत का विनाश करने के लिए? हम कहते हैं कि भारत में शांति हो जाएं । तो देखो, और ही बिगड़ते हैं, ऐसे कोई-कोई निकलते हैं, जब कहा जाता है कि भई, इस रूद्र ज्ञान यज्ञ से यह ज्वाला प्रज्वलित हुई है । तो रूद्र ज्ञान यज्ञ भी तो लिखा हुआ है ना । अभी ये रुद्र ज्ञान यज्ञ है या श्री कृष्ण का यज्ञ है? देखो, फर्क पड़ जाता है ना । बाबा आ करके यज्ञ रचते हैं और यज्ञ रचा जाता है ब्राहमणों से । तो तुम ब्रहमाकुमारी और कुमार ब्राहमण हो । यह हुआ बेहद का बड़ा यज्ञ । वो हद के यज्ञ रचे जाते हैं ब्राहमणों द्वारा । सेठ लोग बहुत यज्ञ रचते हैं । उनमें नामी-ग्रामी एक रुद्र यज्ञ भी है । रुद्रज्ञान यज्ञ नहीं, रुद्र यज्ञ । ज्ञान का अक्षर नहीं लगाते हैं; परन्तु कोई-कोई लगा भी देते हैं । फिर ज्ञान का जब नाम आता है तो वो यज्ञ में भागवत, रामायण, इतना वेद, फलाना रखकर बड़े एकदम बैठ जाते हैं । जहॉ जो चाहो सो मिले, रेवड़ी चाहिए रेवड़ी मिले ..जो चाहो सो शास्त्र मिले, वेद भी मिले, फलाना । जहॉ जिसको चाहिए सो खड़े हो जावे, ऐसे भी यज्ञ रचते हैं, परन्तु यह है रुद्र ज्ञान यज्ञ । इनको कभी भी कृष्ण ज्ञान यज्ञ नहीं कहेंगे । तुम जब किसको समझाएंगे- अरे भई, लक्ष्मी नारायण वा राधे-कृष्ण, राधे-कृष्ण छोटे, लक्ष्मी नारायण बड़े । अरे भई, इनमें ज्ञान होता ही नहीं है; क्योंकि ज्ञान से होती है सद्‌गति । वहाँ तो है ही सद्‌गति । स्वर्ग है । वहाँ ज्ञान काहे का जो मनुष्य को ज्ञान सुना करके सद्‌गति देवे? दुर्गति कहाँ है जो ज्ञान सुनाये? यह कितने समझ की बात है । उनको जब फिर ऐसे ही कह देंगे कि लक्ष्मी नारायण में ज्ञान नहीं था, मुह बिगाड़ पड़ेंगे । कृष्ण के लिए कहते है ये सारी गीता कृष्ण ने रची ।.......तुम बच्चियाँ उनको समझा कर न कहेंगे तो बिगड़ पड़ेंगे कि गीता को गीता ज्ञान कोई कृष्ण ज्ञान कहा ही नहीं जाता है, उसको तो रुद्रज्ञान यज्ञ कहा जाता है । यहाँ तो बाप है और फिर ब्राहमण हैं । ऐसे थोड़े ही लिखा हुआ है कि भगवान ने बैठ करके ब्राहमणों को ज्ञान दिया है । नहीं, वो तो बिल्कुल कोई अक्षर ही नहीं लिखा हुआ है, घोड़े पर अर्जुन के रथ में । यह देखो, रथ हुआ ना । रथ में रथी बैठा है । तुम्हारे हरेक के रथ में रथी है, उसको आत्मा कहा जाता है । इसको अपने रथ में रथी है आत्मा, परन्तु बाप फिर कहते हैं मैं इनका लोन लेता हूँ । जो लोन लेता हूँ मैं उनमें रहता भी हूँ धनी रहता भी है । देखो, बाबा बॉम्बे में गया था ना, तो जिनसे मकान लिया था, वो धनी भी रहता था । ये बाबा भी जाकर रहा । तो दोनों उस मकान में रहे । तो यहाँ भी ऐसे है । रथी भी है उनमें..... तो देखो, क्या गीता में लिखा हुआ है और क्या बाप बैठकर समझाते हैं- मैंने क्या कहा था, अभी मैं फिर से तुम बच्चों को समझाता हूँ । है ना भगवानुवाच- मैं तुझे राजयोग सिखलाता हूँ और विनाश के बाद तुम्हारी राजाई स्थापन हो जाएगी, तुम राजाई करने लग पड़ेंगे । ऐसे तो कोई भी गीता वाला कभी नहीं कह सके । तो बाप बैठ करके बच्चों को समझाते हैं- ये सब प्वाइटस समझाई जाती है धारण करने की और निश्चय बुद्धि हो करके- हाँ, बरोबर हमारा बाबा हमको स्वर्ग का मालिक बनाते हैं और कल्प-कल्प आते हैं, कल्प के संगमयुगे । संगमयुगे एक अक्षर भूल जाने से युगे-युगे हो गई । सारी खिटपिट । कितने अवतार बनाय दिए हैं- कच्छ अवतार, मच्छ अवतार, 24 अवतार, परशुराम अवतार । अवतारों ने क्या किया? परशुराम अवतार ने कुल्हाड़ा ले करके क्षत्रियों का विध्वंस किया । क्या लिखा हुआ है देखो! अभी इस समय की बात है ना । एक भी बात नहीं लगेगी, आटे में नून जैसा लगेगा । बरोबर यह कल्पवृक्ष है । उनके नीचे तुम बैठे हो; क्योंकि पिछाड़ी हो गई है । तुम बैठ करके राजयोग सीखते हो, बड़ी कमाई करते हो, बहुत अथाह कमाई करते हो । और सब जो भी करोड़पति हैं, पदमपति हैं, उनका नाम ही रहता है पदमपत ।.... ..नाम भी ऐसे ही रखाय देते है । बहुत साहुकार हैं ना । आजकल तो बहुत साहुकार हो गए है । ये सब बिचारे एकदम मिट्‌टी में खत्म हो जाएंगे । बस, अनायास जुटे तो आएंगे ना सभी- कैलेमिटीज नैचुरल कैलेमिटीज लड़ाई वगैरह । बाबा ने समझाया है कि जब पिछाड़ी का विनाश होता है, थोड़े-थोड़े झगड़े तो लगते हैं, देखते हो कि कैसे लगेगी । और भी तुम देखेंगे कितनी जोर से लगती है बॉम्ब से । वो तो एक- दो कच्चे बोंब्स थे, जैसे हिरोशिमा और उनको लगाया था । अभी तो एक, दो भी नहीं, अंबार हैं, ढेर के ढेर हैं सबके पास । वो थोड़े ही कोई समुद्र में फेंक देंगे । अरे, वो तो उनकी मिल्कियत है । करोड़ो-पदमों रुपया उनके ऊपर खर्चा हुआ है । तो बुद्धि भी नहीं काम करेगी कि ये कोई ऐसे फेंक देंगे क्या? छोड़ देंगे क्या? नहीं । ये सभी पाइल्स(ढेर) बने हुए हैं । क्यों? बाप समझाते हैं- अरे, पाइल्स(ढेर) न बनें तो बिल्कुल जल्दी मौत न हो पाए । पीछे थोड़े ही कोई हॉस्पिटलें होंगी जिनमें तुम्हारी दवाई होगी । इतने सब मरेंगे, वहाँ कहाँ की दवाई, कहाँ की बात । यह तो जैसे राख हो जाएँगे । समझा ना । ये बोंब्स ऐसे हैं जो पीछे दुःख नहीं देंगे । आगे वाले में कुछ दुःख होता था, अभी बच्चों को कोई भी दुःख नहीं, बस फट एकदम खलास । नहीं तो कहाँ दवा, कहाँ दरमल कोई थोड़े ही रहता है । बाप भी नहीं । ड्रामा में ऐसे भी हैं........बाकी तो न मरेंगे ना । तो जल्दी-जल्दी एकदम खतम हो जाएगा । इसको ही कहा जाता है- यह प्रलह एक ही होती है, जिसमें कुछ बच जाते है । बाकी सब खलास । तो है ना- एक धर्म की स्थापना, अनेक धर्म का विनाश । अभी यह तो बिल्कुल क्लीयर है । कोई शास्त्रों में भी है, ब्रहमा द्वारा स्थापना । किसकी? खाली स्थापना? नहीं, स्वर्ग की स्थापना, स्वर्ग में रहने लायक उनको बना रहे हैं । लायक (यानी) पवित्र बनना ही है । पवित्रता के ऊपर सारा है । पवित्र है तो पवित्रता के ऊपर सब नमन करते हैं, मत्था टेकते हैं, एकदम सो जाते हैं । इतना पवित्रता के ऊपर है । बाप भी कहते हैं- बच्चे, तुम आत्माओं के पर टूटे हुए हैं । तुम उडकर आएँगे कैसे? योग-अग्नि से तुम्हारे पर फिर आ जाएंगे । तो इसलिए बाप पहले पहले बैठ करके.... देखो, डिफीकल्ट बात है । यह कोई लल्लू-पंजू की बात नहीं है । राजधानी लेना तो कोई मासी का घर थोड़े ही है । पहले-पहले जो मुख्य बात है कि अहम् आत्मा, मम् शरीर । अहम् आत्मा शान्त स्वरूप । स्व.. आत्मा का स्वधर्म है शान्त । तो शान्ति के लिए कहीं धक्का नहीं खाना पड़े । इसके ऊपर दृष्टांत देते हैं कि हार छूते थे, जो गले में पड़ा था । एक रानी का मिसाल देते हैं । तो तुम सभी बच्चियों रानियाँ हो ना । तुमको शान्ति चाहिए शान्त देश में जाने के लिए । शांति के लिए कोई जंगल मे थोड़े ही जाना पड़ता है; जैसे सन्यासी जाते हैं । सब आते हैं कहते हैं- बाबा, हमको शांति चाहिए । सन्यासी आते हैं, प्रश्न पूछते हैं कि मन की शांति कैसे मिले? अरे, तुमको अशांत किसने किया है, पहले वो बताओ । अशांत किया है माया ने । यहाँ माया का राज्य है । यहाँ शांति कहाँ से आएगी जहाँ माया का राज्य है, रावण का राज्य है । वहाँ कोई भी, एक भी शांत नहीं है । भगत कहेंगे मेरे को सन्यासी से शांति मिली । अरे, कहाँ तक शांति मिलेगी सन्यासियो से? ही, कुछ शांति मिलेगी । अरे, पर अल्पकाल क्षणभंगुर शांति । यह वही है कागविष्टा समान सुख या कागविष्टा समान शांति परन्तु हमको तो अविनाशी शांति चाहिए, न कि अल्प काल क्षणभंगुर । सन्यासी कहते हैं ना यह सुख है कागविष्टा समान । अभी तुमको सुख चाहिए तो स्थायी बहुत सुख चाहिए ना । यहाँ मनुष्यों को पैसे मिलते हैं तो सुख हो जाता है । नहीं, तुम बच्चों को चाहिए अच्छी शांति, स्थायी शांति । तो बाप आकर बच्चों को समझाते हैं कि पवित्रता से तुमको जितना सुख और शांति चाहिए इतना लो । भण्डारा है ही शिवबाबा का पवित्रता, सुख और शांति का, क्योंकि बाप है ना । एवर पवित्र बाप को कहा जाएगा । एवर पावन बाप है, तब तो आ करके पतित को पावन बनाएँगे ना । तो वो सबको पावन बनाएगा । ये सन्यासी थोड़े ही पावन हैं जो पावन बनाएंगे । ये तो गंगा में स्नान करके समझते हैं, आत्मा तो निर्लेप है, कभी बीमार भी नहीं होती, शरीर बीमार होते हैं । तो पाप लगता ही है शरीर के ऊपर, इसलिए बीमार पड़ते हैं । तो चलो, जा करके इनका पाप नाश करें । तुमको समझाने के लिए कितनी प्वाइंट्स भी देते हैं । कभी भी सन्यासी हो तो उनको कह देना कि भई, आपका है रजोगुणी हठयोग सन्यास और हमारा है राजयोग का सन्यास । तुम जिसको कहते हो यह सुख है कागविष्टा समान, हम देखो राजयोगी हैं, हम स्वर्ग के लिए राजाई पाते हैं । बाप है स्वर्ग का स्थापन करने वाला । तो उनको यह अक्षर यथार्थ रीति से कहने से जंचेगा कि बरोबर इनका मार्ग, इनको बाप दिखलाने वाला है । तो टेम्पटेड(लुभाएगा) होगा कि ओहो! यहाँ मार्ग दिखलाने वाला परमपिता परमात्मा बाप है, जिसको खिवैया कहते हैं, पतित-पावन कहते हैं । अरे, उनके बहुत नाम देते हैं । सद्‌गति दाता कहा जाता है । तो पतित-पावन माना ही सबको दुर्गति से सद्‌गति करना । अच्छा, दुर्गति किसने की? सद्‌गति तो बाप करेंगे । देखो, सद्‌गति दाता कहा जाएगा शिवबाबा को, दुर्गति दाता तो नहीं कहेंगे ना । पतित-पावन कहेंगे ना, पतित बनाने वाला तो नहीं कहेंगे ना, पतित दाता तो नहीं कहेंगे ना । तो फिर जब वो है ही सद्‌गति दाता और पतित-पावन दाता, जो हमको पावन बनाते हैं, फिर सवाल उठता है कि कौन है फिर जो हमको दुर्गति देते हैं, पतित बनाते हैं? तो बाप बैठकर समझाते हैं । मनुष्य थोड़े ही जानते हैं । जब तुम बच्चे द्वापर से वाममार्ग में गिरते हो, विकारी बन जाते हो तो फिर तुमको यह रावण दुर्गति देते हैं । देखो, अभी यह तो समझाते रहते हैं ना, तो उसका क्या कर दिया? बाबा ने समझाया ना वहाँ जगन्नाथपुरी है एक... मंदिर में । जगन्नाथ माना ही राधे और कृष्ण । वो काले ही रख देते हैं । बिचारों को काले क्यों रखते हैं, यह भी तो वण्डर लगता है और नाम ही उनका रख दिया है श्याम-सुंदर । अरे भई, सुंदर सतयुग में और श्याम कलहयुग में और वहाँ ही उनको रख दिया है- सर्प ने डसा और काला बन गया । सुंदर श्याम बन गया । कालीदह में कूदा । अभी देखो, कहाँ की बात कहाँ जाती है । कालीदह ये, जब नर्क के कुण्ड में गिरना शुरू हो जाते हैं । तो देखो चित्र है वाह! जगन्नाथ पुरी के उधर में बड़ा अच्छा कारविंग का चित्र है । ऐसा गंदा चित्र है! जैसे ये गवर्मेंट है ना जब भी कोई गंदा चित्र देखती है विलायत से आते हैं वॉचिज में, सिगरेट केसों मे, बहुत ही चीजों में गंदे चित्र आते हैं, उनसे बड़े गंदे मदिर के ऊपर में हैं । अभी देखो, उनको तो गवर्मेन्ट बन्द कर देती है, ऐसे चित्रों को बैन कर देती है.......... अभी अगर गवर्मेन्ट को बतावें कि तुम जाओ, जगन्नाथपुरी में ऊपर में देखो । देवताई चित्र तो मशहूर होते हैं ना । देवताएं जैसे होते हैं ताज सहित पिताम्बर वगैरह और ऐसे ही देवियाँ । अरे, ऐसे गंदे काम दिखलाए हैं, क्योंकि वाममार्ग में गए । तो बस, उन चित्रों को कर दिया कि देखो, देवताएँ भी तो विकार में गए ना । अरे, देवताएँ जब विकार में जाते हैं तो देवता थोड़े ही कहलाते हैं । बाबा ने बताया- महासभा का सावरकर आया था । उससे सिर्फ पूछा कि आपका धर्म क्या है? लिखवाते तो हैं ना' इसलिए लिखवाते हैं । तो बोला- हिन्दू । भला हिन्दू धर्म किसने स्थापन किया? क्या आदि सनातन हिन्दू धर्म था या देवता धर्म था? क्या तुम देवी-देवताओं को हिन्दू कहेंगे या देवता कहेंगे? बोला- हाँ दादा, हम हिन्दू तो नहीं कहेंगे, देवता कहेंगे । फिर तुम देवताई कुल के हो ना । देवताएँ नस्ल के हो । देवी-देवता धर्म के हो न' बोला- अभी कहाँ! अभी थोड़े ही हम देवी-देवता धर्म के हैं, अभी तो हम असुर हैं । हम कोई पवित्र थोड़े ही रहते हैं, हम तो असुर हैं । तो उनको बोला- अच्छा, चलो आओ, तुमको असुर से फिर देवता बनावें । फुर्सत कहाँ है? बस । देखो, बात करते हैं! ये भी बड़े-बड़े आदमी, महासभा का बड़ा प्रेसिडेंट । अभी तलक जीता है या मर गया, पता नहीं क्या हुआ । तो देखो, कोई मनुष्य को कुछ पता ही नहीं है जैसे । बाप बैठकर समझाते हैं- देखो, माया कितना मूर्ख बनाती है । है कोई एक भी विद्वान-आचार्य इस दुनिया में, जिनको बाप रचता और रचना का पता हो? मनुष्य रचता और रचना को जाने, कोई जनावर थोड़े ही जाने । तो देखो, बाप बैठ करके बच्चों को इतना सिखलाते हैं, समझाते हैं .बच्चों को भी समझाते रहते हैं, कन्याओं को भी कि देखो बच्चियों, खबरदार रहना । माया बड़ी कड़ी है । इस समय में माया है तमोप्रधान पछाड़ने में बिल्कुल ही देरी नहीं करती है । दिखलाते हैं- अरे, हमारा 10-12-15 बरस का बच्चा, 10-12 बरस हुआ ज्ञान लेते-लेते, अरे माया ने थप्पड़ लगाई । अभी इतना हो गया, जा करके शादी की और सो भी ऐसी गन्दी बन गई, बात मत पूछो । बस, एकदम नाक से पकड़ करके गटर में डाल देती है, माया इतनी कड़ी है; क्योंकि तमोप्रधान माना रुस्तम बनी हुई है । एकदम सामना करती है जैसे । लड़ाई है ना । युधिष्ठिर, युद्ध स्थल है यह । युद्ध का स्थान । अभी वो युद्ध तो नहीं है ना । यहाँ तो गुप्त है । तुम बच्चे देखो कैसे शान से बैठे हो । है कोई हथियारों वगैरह की बात! गीता में, भागवत में देखो क्या दिखलाया है । तो बाप कहते हैं- बच्चे, अब बार-बार बाप समझाते हैं अपना पूरा कल्याण चाहो तो अपन को देही-अभिमानी आत्मा समझो । देह होते भी अपन को आत्मा समझना, इसको ही कहा जाता है देही-अभिमानी, क्योंकि देह-अभिमानी बन गए हो । देह होते भी अपन को आत्मा समझो और बाप को याद करने की निरंतर कोशिश करो, तो गाया जाता है- अंत मते सो गत ।. .देखो, संस्कार ले जाते हैं, अंत मत, वो सभी संस्कार आ करके सामने खड़े हो जाते हैं । पापात्मा हैं तो पाप-आत्मा के घर जन्म मिलता है, पुण्यात्मा हैं तो पुण्य आत्मा के घर जन्म मिलता है; इसलिए अंत मते के लिए पाप विनाश हो उसके लिए बहुत टाइम लगता है । इसलिए निरंतर जितना हो सके, जहॉ तलक हो अंत तक तुम्हारा पुरुषार्थ चलेगा ही । इसलिए अपन को पहली-पहली बात है कि देही-अभिमानी भव । अपन को आत्मा निश्चय करो । पक्का करो कि परमात्मा हम आत्माओं का पढ़ा रहे हैं । परमात्मा जो है, जैसा है, हमको आप समान बना रहे हैं । आप समान बनाना होता है ना । बैरिस्टर है तो आप समान बैरिस्टर बनाएँगे । सर्जन है तो आप समान सर्जन बनाएँगे । पीछे पुरुषार्थ अनुसार । वही सर्जन मास में लाख रुपया कमाएंगे । याद रखना । बाबा ने ऐसे देखे हुए हैं । लाख तो क्या, बहुत कमाते हैं । एक-एक केस का लाख मिलता है । सो पदमपति, साहुकार उनके पास जाएंगे तो उनको कुछ कम थोड़े ही मिलता है । बैरिस्टर है, एक-एक केस के ऊपर लाख रुपया लेते है । ये बच्चे अगर कुछ पढ़े हैं तो जानते होगे कलकत्ते में एक सिन्हा था, जो जा करके प्रीवी काउंसिल का मेम्बर बना था । पढ़े हुए हो? किसी कलकत्ते के बुजुर्ग ने सुना है? (किसी ने कहा- सुना है) तो देखो, उसकी बहुत बड़ी चार्ट लगती थी । बहुत पैसे वाला था । अभी बच्चों को बाप क्या बनाते हैं! बोलते हैं- यह जो भी पदमपति हैं ना, यह सब एकदम खाक में मिल जाएँगे; क्योंकि मैं गरीब निवाज हूँ । अहिल्याएं कुब्जाएँ पापात्माएँ अजामिल । तो बाबा ने समझाया कि अजामिल किसको कहते हैं । बताऊँ? जो बाबा का बन करके, बाबा की सर्विस करते-करते फिर बाबा को फारकती दे देते हैं । यह शायद जन्म-जन्मांतर का कोई बहुत अजामिल होगा । जन्म-जन्मांतर का अजामिल कौन होते हैं जास्ती? देखो बाबा ने समझाया । अजुन बच्चों को जाना है थोड़ा इसे कर देते हैं । बाबा ने समझाया- देखो, लड़ाई वाले लोग । जानते हो कि उनका है ही मरने-मारने का संस्कार लड़ाई के मैदान का । संस्कार आत्मा का ही है । जब वो जन्म लेते हैं, भले कोई भी गृहस्थी के घर में लेते होंगे, परन्तु फिर भी लड़ाई के मैदान में चले आए हैं । वो संस्कार ले आए हुए हैं । वैसे ही बहुत समय से वैश्यालयों में जो वेश्याएं रहती हैं ना, वो कोई भी घर मे अच्छा ही जन्म लेगी या बड़े घर में भी जन्म लेंगी तो उनके सस्कारों अनुसार फिर भी वहीं से निकलेंगी और वैश्यालय में चली जाएंगी । पीछे वैश्यालय तो समझते हो- एक फर्स्ट क्लास, एक सेकेण्ड क्लास, एक थर्ड क्लास । फर्स्ट क्लास वैश्यालय का तुम बच्चों को मालूम नहीं है । वो बड़े-बड़े आदमियों के लिए गुप्त रहती है । ये खराब संस्कार देखो! तो फिर ऐसे जो होते हैं कुछ समय से वो यहाँ आ करके जब ज्ञान लेती हैं तो उनका वो संस्कार निकल पड़ता है । शायद यह बहुत अजामिल थी पूर्व जन्म में । बाप का बन करके, बाप से वर्सा लेते-लेते..एकदम जा करके गिर पड़ी । ये सब बाप बैठ करके अच्छी तरह से समझाते हैं कि जन्म-जन्म के संस्कार भी साथ मे आते हैं, तो जन्म-जन्म के पाप भी तो इकट्‌ठे होते रहते हैं; इसलिए बच्चों को योग बहुत चाहिए, तो विकर्म विनाश हो, अंत तक । बाबा अपना भी बताते हैं, मम्मा का भी बताया- देखो, कितना योग में रहते, कितना पुरुषार्थ करते, कितने को आप समान बनाते. .तो भी अभी तलक कर्मातीत अवस्था नहीं होती । कुछ न कुछ खाँसी, यह ऑपरेशन यह फलाना । ऐसे नहीं कि सबका ऐसे होता होगा । नहीं, कोई का क्या है, कोई का क्या है, सबका अपना संस्कार है । तो बहुत बोझा है । वो बोझा कैसे उतरे? जितना हो सके बाप को याद करो । बाबा! कितने मीठे हो! ...न मन, न चित्त!.. आप फिर से आ गए हो । कोई दुनिया थोड़े ही जानती है । किसी शास्त्र में लिखा हुआ है बाबा आते हैं तो क्या करते है? वण्डरफुल बात लिखी हुई है- गीता में, भागवत में और पुराण में । वहाँ रामायण की कथा, फलाने की कथा, कुछ है नहीं, कोई रामायण की कथा ही नहीं है बिल्कुल । न कौरव-पांडव की कोई हिंसा की बात है । देखो, बात कैसी है! अभी तुम जग गए ना । इस समय यादव-कौरव-पांडव क्या करत भए । तो तुम समझते हो मनुष्य तो ढेरों की माफिक गॉडली गीताएँ पढ़ते आए और सुनते आए, हुआ तो कुछ भी नहीं, और दुर्गति को पाए । तो बाप कहते हैं मेरे लाडले बच्चे, गफलत नहीं करना । माया तुम्हारे ऊपर पूरा एकदम पहरा दे रही है; इसलिए देही-अमिमानी भव और बाप को याद करते रहो तो तुम्हारा अंत मते सो गत । अभी यह है शिवबाबा के गले का हार बनने की बुद्धियोग की रेस । बस, इसमें ही समझो सब कुछ है ।.....भारत का प्राचीन योग कहते हैं । प्राचीन योग को कोई समझते थोड़े ही हैं । वो तो हठयोग, प्राणायाम करके चले जाते हैं और समझते हैं बस हमने पा लिया, हम चला गया । हम ब्रहम हो गया । शरीर का भान छोड़ दिया बाकी ब्रहम बन गया । यह सब बातें कही जाती हैं गपोड़े । यह ड्रामा मे नूंध है । इसीलिए बाबा बार-बार बच्चों को कहते हैं- अपना कल्याण करना चाहो तो कहो कि हम. जैसे कहा जाता है भई, राजयोग है, हम राजाई लेंगे, तो योग चाहिए । योग से तुम्हारा विकर्म विनाश होगा और तुम बहुत हर्षित रहेंगे ।. हम ईश्वर की सन्तान और ईश्वर से हमको भविष्य... इस कलहयुग में तो राज्य नहीं कर सकेंगे । कलहयुग में क्या रखा हुआ है! सतयुग में राज्य करना है । एवरीथिंग न्यू । न्यू और ओल्ड । अरे, यह तो कोई भी समझ सकता है- न्यू सतोप्रधान होता है, ओल्ड तमोप्रधान होता है । अभी किसको कहो- भई, सतयुग में स्वर्ग है, सतयुग गोल्डन एज है.. .. । स्वर्ग का नाम लिया तो बोलेंगे- हम सुखी हैं स्वर्ग में, जो दुःखी हुआ वो नर्क में है । हमने अच्छा कर्म किया है, उन्होंने खराब कर्म किया है । यहाँ ही स्वर्ग और नर्क बनाय लेते हैं । तो बाप ने समझाया ना- मैं आता हूँ बच्चों को सदा सुखी बनाने, सदा शांत बनाने अथवा मुक्ति-जीवनमुक्ति पद देने । देना सबको है । सबका सद्‌गति वा गति दाता, सबका मुक्ति वा जीवनमुक्ति दाता एक होता है । तो देखो, रात-दिन का फर्क हुआ ना । वो लोग कहते हैं सभी परमात्मा का रूप हैं, सभी फादर्स ही फादर्स हैं । फिर फादर्स को वर्सा कहाँ से मिले? लॉ है ब्रदर्स को एक फादर से मिलता है । हम सब ब्रदर्स हैं, ऐसे कहना चाहिए और है भी ब्रदरहुड । जरूर फादर चाहिए जिससे हमको इनहेरीटेन्स मिले । अभी बच्चे इनहेरीटेन्स ले रहे हैं । कैसे? देही-अभिमानीपने से । अगर देही-अमिमानीपना नहीं सीखेंगी तो वर्सा भी नहीं मिल सकेगा । यही मंजिल है । बहुत बड़ी मंजिल है । ऐसे थोड़े ही है कि बिगर कुछ किए विश्व का मालिक बन जाएगा । जैसे कहते हैं ना- बिन कमाई नान का मुझे.... .यह बहुत बड़ी कमाई है । यह सब जो भी तुम देखते हो, पदमपति, करोड़पति, फलाना, यह जैसे कि आजकल जाकर बिजली में जलाते है ना । भट्‌ठी में डाला..काठी इकट्‌ठी करो, तेल लगाओ, फलाना करो । और यहाँ देखो क्या निकली है! बस, अंदर एयरफोर्स लगाया, तकलीफ की दरकार नहीं है । वहाँ कितनी तकलीफ करनी पड़ती है । तो बाप बैठकर फिर भी बच्चों को कहते हैं- सितम खाना पड़ेगा, तकलीफें सहन करनी पड़ेगी, रड़ियाँ मारनी पडेंगी । बाँधेलियों की चिट्‌ठियाँ बहुत आती है, त्राहि-त्राहि करती हैं, बड़ी मार खाती हैं । कोई को भी मार मिले या कुछ भी निशान हो, तुम लोग गवर्मेन्ट में जाओ, झट उनसे छुटकारा मिल जाएगा और पैसा भी मिलेगा, वो पगार भी भरकर देंगे परन्तु हिम्मत चाहिए । समझो, मार खाती हैं, घर छोड़ दिया कि अच्छा, चलो भई छोड़ देते हैं, अभी हमको बाबा की सेवा ही करनी है, चलो छोडो बाबा की सेवा करते हैं; परन्तु नहीं, फिर बीमारी उथलती है, पति याद पड़ेगा ।...... .कभी भी कोई मनुष्य सन्यासियों से नहीं पूछेगा कि आपने घर-बार क्यों छोड़ा? आपके बाप का क्या नाम है? बच्चे का क्या नाम है? कभी भी कोई सन्यासी आता था तो बाबा बोलते थे- पहले मुझे बताओ, तुमने कैसे छोडा? मॉ-बाप का नाम क्या है? किस घर के हो? हम भी कैसे सीखेंगे? वो बोलेंगे- यह बातें नहीं पूछो । बाबा बोले- अगर नहीं पूछेंगे तो हम कैसे सीखेंगे? यहाँ भी शुरुआत में जब ज्ञान की थोड़ी चटक लगती रही थी तब ये पूछते सब थे । ...कभी नहीं बताते थे । अच्छा, अभी टाइम होता है, बच्चों को जाना है । गीत तो बच्चों ने सुना, सितम सहना पड़ेगा । आखरीन में तुम बच्चों की विजय तो है ही । यह तो जानते हो कि जब पिछाड़ी होती है तब यह सभी गाया जाता है ।.....कश्मीर में जाओ, वहाँ राख के ढेर बने हुए हैं, कब्र । उनसे पूछा- अरे भई, यहाँ की कथा क्या है? एक महात्मा भगवान अवतार आया था तो सामने कोई ने निरादर किया तो ऐसे आँख से देखा और जल पड़े । अभी तुम मालिक बने हो ।. बाबा की याद में रहते हैं, ये सब भस्म हो जाएगा, खलास हो जाएगा । ऑटोमैटिकली खलास होना ही है । तो देखो, यह योगबल है । बाबा ने समझाया है- सिर्फ एक ही बार बाप सिखलाते हैं.. योगबल से विश्व के मालिक बन सकते हैं । समझा ना । इनके पास बाहुबल देखो कितना है । क्रिश्चियन धर्म में इतना बल है, अगर ये दो भाई आपस में न लड़े और मिल जावें तो विश्व का मालिक बन सकते है; परन्तु लॉ नहीं है । विश्व का मालिक तो हमारा लाडला कृष्ण था । राधे-कृष्ण थे । वो शहजादी, वो शहजादे जो फिर विश्व का महाराजा-महारानी बनती है । ड्रामा मे है ही उनका, तो फिर वो लोग कैसे बन सकें! छोटेपन में बच्चे अखानी पढ़ते हैं बरोबर दो बंदर बिल्ले लड़े और मक्खन बिल्ला खा गया । यह कृष्ण का मक्खन है ना । यह जो माताएं देखती हैं बहुत करके कि कृष्ण मुख खोलते हैं तो मक्खन का चाणा । अब मक्खन नहीं पड़ा हुआ है, वो बच्चों को सारी सृष्टि दिखलाते हैं, स्वर्ग दिखलाते हैं । यहाँ कोई मक्खन की बात नहीं है । शास्त्रों में क्या-क्या बकवाद लिख दिया है । बाप बैठ करके समझाते हैं- कृष्ण के मुख में सारी सृष्टि का मक्खन आ जाता है । है ना मक्खन की लड़ाई । अच्छा, बाबा अभी बन्द करते हैं, बच्चों को जाना है । क्या बच्चों से यहाँ विदाई ले लेंगे? इसको तो कहा था ना- तुम सभी ब्रह्माकुमारी का अर्थ क्या है? बहन और भाई हो जाते हो । क्यों बहन और भाई हो जाते हो? बहन
और भाई क्रिमिनल एसॉल्ट में बड़ा दोष है एकदम । हो नहीं सकता है । तो इस हिसाब से बाबा ने यह युक्ति रची है । प्रजापिता ब्रहमा ने जब रचना रची होगी तो सब ब्रहमाकुमार-कुमारी होंगे ना, परन्तु अब अर्थ सहित तुम समझते हो । मनुष्य कुछ समझते ही नहीं हैं । क्यों ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ? जरूर पवित्रता में रहते होंगे ना । भाई-बहन कभी क्रिमिनल एसाल्ट करते कैसे होंगे? तो जब वो पवित्र रहते हैं तो वो ही जा करके फिर पवित्र दुनिया का मालिक बनते हैं । कितना सहज बैठकर समझाते हैं । समझती हो बच्ची? ज्ञान. चंद्रकिरण, देखो नाम रखा था । नई बच्ची आई है ना । बापदादा पूछते हैं, जब किसको निश्चय होता है, वो बाप! स्वर्ग का मालिक! और फिर आया है हमको वर्सा देने! अरे, ऐसे के पास एकदम कुछ भी, कोई भी कहाँ हो, तो वो बोलते हैं- बाबा, बंधन से छुड़ायें । दृष्टांत है- एक तोता था, झाड़ में बैठा था । बोलता था- मुझे कोई छुड़ाए, मैं फँस गया हूँ । सन्यासी लोग ये दृष्टांत देते हैं । वो बहुत दृष्टांत देते हैं । सन्यासी जो भी दृष्टांत देते हैं, है बाबा का । कछुआ के मिसल तुमको रहना है, भ्रमरी तुम हो,..... अभी समझा बच्चियाँ? बाबा की बहुत मीठी बच्ची वो ही है जो बाबा का सपूत बन करके सर्विस करे, देही-अभिमानी हो । देही-अभिमानी ही गले का हार जल्दी जाकर बनेगा । रुद्र की माला को पिरोना है ना । तो आत्मा को पिरोना है, यह जिस्म को थोड़े ही पिरोना है । पहले रुद्रमाला पिरेगी पीछे विष्णु माला । तो जो रुद्रमाला में जाएगा वो एक्यूरेट विष्णु माला । नम्बरवार क्लास ट्रान्सफर होता है ना । ब्राहमण की माला नहीं होती है । रुद्रमाला गाई जाती है और विष्णु की माला गाई जाती है । ब्राहमण की माला कभी होती ही नहीं है । क्यों? आज देखो 8 नम्बर में, कल देखो 50 नम्बर में । आज देखो 50 नम्बर में, कल देखो दूसरे नम्बर में । अरे, नए-नए आते हैं वो चढ़ जाते हैं और पुराने ढिरक जाते है । अभी माला कैसे बने? बनेगी? सूर्य-चंद्र-किरण, अब नाम कितना याद करूं । सब बात समझते हो? समझाना पड़ेगा फिर । बाबा सुन करके, समझ करके प्रतिज्ञा करते हैं, हम सुनाएँगे भी जरूर । नहीं तो किसका उद्धार कैसे हो सके? ये कच्छ में कुरम । ये कच्छ में कुरम नहीं है, ये बुद्धि में सचम है । सच्चा बाबा बैठ करके सच्ची नॉलेज सुनाते हैं ।. ......क्या सुना? जो यहाँ सुख ले लेती हैं तो फिर वहाँ कम हो जाता है । यहाँ तो मेहनत ही करनी है । यहाँ जिसको देह-अभिमान हो, बाबा राय देते हैं कि यहाँ आ करके थोड़ा छेना(गोबर) और कोयला ले करके उसका छेना बनावे तो देह-अभिमान टूटे । झाडू लगावे । नहीं तो देह-अभिमान बहुत धोखा खिलाते हैं । बाबा राय दे देते है । बच्ची कहती है- बाबा, मैं वहाँ आऊँगी । बाबा कहेंगे- तुम बड़े साहुकार की बच्ची हो, कुमारी हो, बाबा के पास आएंगी तो पहले बाबा-मम्मा झाडू लगवाएंगे बर्तन मँजाएंगे छेना कराएँगे; क्योंकि सन्यासी लोग भी ऐसे करते हैं । राजाएँ जाते हैं ना, उनको पहले आश्रमों की सफाई, फलाना, काठी ले आओ, यह करते हैं, तो देह-अभिमान टूटे । यहाँ भी ये कायदा है; परन्तु जब.. आ करके रहे तो पीछे मालूम पड़े । बाबा ने दिखलाया कि कभी सन्यासी आते हैं, तो यहाँ तक भी पहुँचते हैं कि उनकी हम ड्रेस उतरवा लेता हूँ । सिलाई करके यह कपड़ा पहना देता हूँ । बोलता हूँ- जाओ, किचन में जाकर रोटी पकाओ, सीखो तो मालूम पड़े । मुफ्त में खाते हैं तो उनको फिर यह काम देते हैं । बस, 8-10- 12 रोज करेंगे फिर कहेंगे- बाबा, हम वहाँ, हम तो बस... । वो तो बादशाह थे । सब आकर चरणों में भी झुके हुए थे ।...... बाबा कहते- अच्छा भई, इनकी ड्रेस ले आओ, इनको पहनाओ । भागो यहाँ से ।. .राज्य लेने के लिए भीड़ होती है तो क्या बन जाते हैं । पढ़ सकेंगे कोई? ना, वो भीड़ वाले नहीं । यह तो स्कूल है, इनमें भीड़ का क्या काम! (रिकॉर्ड बजा) कहीं भी जाओ, तो योग में जरूर रहना । ऐसे समझते हो? कहीं भी जाओ तो मुझे याद जरूर करना । हे बच्चे,... बच्चों को कहा जाता है । जाते तो हो; परन्तु याद रखना मेरे को याद करना, अगर याद नहीं करेंगे तो माया घूँसा मारेगी । कभी बहुत गफलत करेंगे तो एक ही थप्पड से गिराय देगी । इसको कहा जाता है माया के साथ बॉक्सिंग । (रिकॉर्ड बजा)........ .न करेगी तो अपना कम कल्याण करेंगी । बाबा है कल्याणकारी । तुम बच्चे भी कल्याणकारी । देखो, क्या करती हो । सारा भारत का बड़ा पार करने का सैलवेशन आर्मी है शिव शक्ति पांडव सेना, शक्ति, मदर्स । देखो, मदर का कितना मान है । तुम्हारा हैण्ड जगदम्बा शक्ति है । देवी नहीं है .. .ब्राहमणी हंो । जगदम्बा को कोई देवी थोड़े ही कहेंगे । यह परलौकिक बाप के बच्चे ईश्वर के घर का श्रृंगार हैं । तुम ईश्वरीय बच्चे हो ना । देखो, कितना श्रृंगार करते हो, जो भारत को स्वर्ग बना देती हो । (रिकॉर्ड बजा) यहाँ भी कुछ तो होता है ना । बच्चे.. ..सर्विस पर जाते हैं कमाई करने और कराने । वहाँ स्वर्ग में कभी कानों में सुराख करते है? पीछे नहीं तो जेवर कैसे पहनेंगी? छेद न होगा तो जेवर कैसे पहनेंगी! परंतु आजकल का फैशन है ।... दरकार ही नहीं रहती है । घूमती-फिरती रहती हैं । ऑपरेशन कोई बड़ी चीज थोड़े ही है । जैसे अपेन्डिसाइटिस का ऑपरेशन करते हैं उसमें दर्द पड़ जाता है, बड़ी तकलीफ होती है । रात को ऑपरेशन किया । सुबह को डॉक्टर कहेगा- ऐ, घूमो चक्कर लगाओ । आजकल इतनी अच्छी निकली है ।..............यहाँ भी कुसंग होता है.......... सिवाय अपने भाइयों के और बाप के और मात-पिता के और कोई नहीं । वहाँ जाएंगे और बात मत पूछो ।.......इसको कहा ही जाता है सिकीलधे अर्थात् 5000 वर्ष के बाद फिर से आय मिले हुए हैं और बाप से अपना बेहद का वर्सा ले रहे हैं और जितना जो पुरुषार्थ करेगा । साक्षी हो करके देखना भी है कल्प पहले इसने कितना पुरुषार्थ किया था । ऐसे कर रहे हैं ।.....कल्प पहले भी ये ही हैं जो आश्चर्यवत् भागन्ति हुए थे । एक दो की तो बात ही नहीं है । साक्षी होकर देखते रहो । वैसे यह समझो ड्रामा बहुत जूँ के माफिक है । ये टिक-टिक होती है ना । ....... .ड्रामा में भी नजर रखनी पड़ती है । साक्षी होकर देखना पड़ता है ।