19-06-1964     मधुबन आबू     रात्रि मुरली    साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हेलो, गुडनाइट यह उन्नीस जून का रात्रि क्लास है
स्वदर्शनचक्र फिरता रहता है? क्योंकि बच्चों के टाइटिल्स बहुत हैं । बच्चों को लाइट हाउस भी कहा जाता है । ऐसे है ना । जैसे लाइट हाउस स्टीमर को रास्ता बताता है कि कहीं कोई टीकरी से जाकर ना लटक जाए, तो ये भी ऐसे है । तुम बच्चे लाइट हाउस हो । तुम मुक्ति और जीवनमुक्ति के तरफ रास्ता बताते हो, नहीं तो फिर ये जा करके काँटों के जंगलों में पड़ते हैं । तुम रास्ता बताने वाले ठहरे । मम्मा का भी समाचार बच्चों को सुनाते हैं । मम्मा की तबीयत तो ठीक है, परन्तु शायद एक मास जुलाई को और भी वहीँ रहेंगी । ऐसे दिखता है और फिर पीछे अगस्त, उसमें बरसात बहुत पड़ती है । शायद फिर बाबा लिख देवे कि अगस्त में यहाँ बरसात में आकर क्या करेंगी! इसलिए फिर अगस्त में वहाँ ठहराए देंगे । शादियाँ होंगी, सर्विस तो होगी नहीं । बॉम्बे में होंगी तो सर्विस करती रहेंगी और फिर जब मम्मा आएंगी, तब फिर बाबा बाहर निकलेगा । बच्चे तो जानते हैं ना कि बच्चों को इस दिल्ली को नई दुनिया में नई दिल्ली बनानी है । अभी ये जो है पुरानी दिल्ली को नई कहते हैं ना, पर पुरानी दुनिया में पुरानी दिल्ली को फिर नई बनाते है और तुम बच्चे जानते हो कि हम नई दुनिया में नई दिल्ली को बनाएँगे । समझा ना! फिर इस दिल्ली का नाम परिस्तान रहेगा । बिरला मंदिर में यह लिखा हुआ है कि 5000 वर्ष पहले धर्मराज ने परिस्तान स्थापन किया था । यह दिल्ली परिस्तान थी । तो कब परिस्तान बनेगी? जब कब्रिस्तान बने । तो अब दिल्ली कब्रिस्तान है । अब तुम बच्चियाँ वहाँ फिर परिस्तान बनाय रही हो । धर्मराज के बच्चे हो । जो राजाएँ धर्म करते हैं, उनको भी धर्मराज कहा जाता है । देखो, धर्म करती हो राजा पद पाने के लिए । अज्ञान काल में भी मनुष्य जो जास्ती धन दान करते हैं, वो साहुकार या राजा के पास जन्म लेते है ।.. तुम बहुत धर्म करती हो । क्या बनने के लिए? स्वर्ग का महाराजा बनने के लिए । तन-मन-धन -भी बेहद का दान करती हो ।......तुम बड़ा भारी धर्म करते हो । दानी को फिलैथ्रोपिस्ट कहा जाता है । तुम्हारे जितना दान भारत में कोई नहीं कर सकता । भारत में दान बहुत होता है, ये मशहूर है । इस समय तुम बेहद का दान करते हो सब कुछ, तो फिर बेहद का वर्सा भी मिलता है । बेहद का महाराजा और महारानी बनते हो ।.... .दान करना माना अपन को इंश्योर करना । अज्ञान काल में भक्तिमार्ग में दान करना माना अपन को इंश्योर करना । बाप फिर दूसरे जन्म में बहुत दान देते हैं । बच्चों की अभी ये एक-दो को बहुत दान करने वाली पांडव सेना है । बाबा भी बहुत दान करते हैं बच्चों को । स्वर्ग का दान देते हैं । वर्सा देते हैं या दान देते हैं- बात एक ही रहती है; परन्तु फिर भी यह वर्सा है, इसको अच्छी तरह से समझाया गया है । बाप से बेहद का वर्सा मिलता है । तुम्हारी कितनी बड़ी सभा है ये- ज्ञान सूर्य, ज्ञान चंद्रमा, ज्ञान लकी सितारे । उसमें है नंम्बर वन लकी सितारा फिर यह मम्मा सरस्वती, क्योंकि दुनिया को यह मालूम नहीं है कि यह जगदम्बा जगतपिता की क्या लगती है? यह दुनिया नहीं जानती है । यूँ गाया जाता है ब्रहमा की बेटी है सरस्वती, ब्रहमा की बेटी सरस्वती तो उनको दो भुजाएँ होंगी ना, ब्रहमा को भी दो भुजाए हैं । यहाँ तो जगदम्बा को कितनी भुजाएँ दे दी हैं । तो तुम बच्चों को तीसरा ज्ञान नेत्र मिला है, जिससे तुम इन सभी देवी-देवताएँ वगैरह कौन हैं, यह तुम सब जान चुकी हो । दुनिया में सभी बुद्धू हैं । समझा! जो अपने बाप को नहीं जानते, उनको क्या कहें! तो इसीलिए यह सारी दुनिया बुद्धू है । बुद्धू होने के कारण कमाई नहीं जानते हैं । बुद्धू लोग कमा कर नहीं जानते हैं, गुमा कर जानते हैं । तो भारतवासी गुमा कर जानते हैं । दुनिया गुमाय रही है, गुमा कर जानती है, तुम वो पाते रहते हो । इकट्‌ठा करते रहो । वो इतना लाखों-करोड़ों गुमाय रहे हैं, तुम पद्‌म कारून का खजाना पाय रहे हो । देखो, कितना फर्क है । तो तुम बच्चों को बहुत खुशी होनी चाहिए ना । हाँ, त्रिलोकीनाथ! त्रिलोकीनाथ नाम है ना गुलाबचंद.. कितने अच्छे अच्छे नाम रखते हैं, देखो । हंस, हंसनी, ऐसे नाम भी हैं ना यहाँ । मद्रास में नाम तो बड़े-बड़े रखते हैं- भक्तवत्सलम । नहीं तो भक्तवत्सलम कहा जाता है भगवान को, जो आ करके भक्तों के ऊपर ज्ञान की वर्सा करते हैं । तो ये पूरा नाम है भक्तवत्सलम । वहाँ ऐसे अच्छे-अच्छे बड़े-बड़े नाम बहुत हैं और फिर सीलान में- बन्दरनायके । वहाँ बन्दर-बन्दर क्यों कहते हैं? क्योंकि हनुमान के बंदर की सेना गई थी ना । तो वहाँ के नाम तुम देखेंगे- बन्दरनायक बन्दर.. । वो प्राइम-मिनिस्टर का क्या नाम है? अच्छा, बच्चे यहाँ राजी-खुशी बैठे हैं । देखो, कहाँ बैठे हुए हो! माया से छिप करके, भाग करके और आ करके ये बाप की गोद में बैठे हो । ये अच्छे-अच्छे मेरे लाडले बच्चों को हप करके गई है । हमारे महावीर गजों को, महारथियों को ग्राह खा गए हैं बहुत । ये माया कम नहीं है । भगवान को अगर ये बाबा कह देवे जैसे गॉड फादर, परमपिता कहा जाता है, तो बस पिता कहने से ही, परमपिता कहने से ही ये मनुष्य को समझाना है, वो तो बाबा है, वो स्वर्ग स्थापन करते हैं । हमको तो जरूर बाबा से स्वर्ग का वर्सा मिलना चाहिए । अभी देखो, कितना सहज समझते हो; परन्तु मनुष्य की बुद्धि ऐसी है जो स्वर्ग वगैरह बात को समझते ही नहीं हैं । बोलते हैं- यह स्वर्ग क्या है, यह तो सब कल्पनाएँ है । सन्यासी लोग इनको आ करके बहुत देखते है । बोलते हैं ये सभी तो आपकी कल्पनाएँ है । जो जैसी कल्पना करते हैं वो ऐसा बन जाता है, ऐसे कहते हैं । तुम बच्चों को स्थापना में बहुत मत्था मारना पड़ता है, क्योंकि मनुष्य को रिजूवनेट करते हो एकदम, काया कल्पवृक्ष समान बनाते हो, जैसे कहा जाता है काया कल्पतरु ।..जो छोटे में मर जाते हैं अकाले मृत्यु । तुम काल के ऊपर विजय पहनती हो । देखो, कैसी बच्ची-बच्ची, छोटी-छोटी । तारा, बच्ची तुम काल के ऊपर विजय पहनती हो ना । देखो, कोई सुने तो क्या कहे! बाप के बच्चे बनते हैं । अभी बाबा के ऊपर तो विजय प्राप्त करने की बात नहीं । हाँ, बाबा के पास जाकर हम रह सकते हैं । हम ऐसे नहीं कहेंगे कि शिवबाबा के ऊपर हम विजय पहनते हैं । नहीं, शिवबाबा हमको विजय पहनाते हैं माया के ऊपर । ऐसे अपन नहीं कहेंगे । यह जरूर कहेंगे कि यह जो तुम्हारे मात-पिता हैं, उनके ऊपर तुम विजय प्राप्त करो । सो तो बच्चे जरूर विजय प्राप्त करते ही हैं, क्योंकि माँ-बाप नीचे आते हैं, फिर बच्चे तख्त पर बैठते हैं । तो यह ठीक है ना- माँ-बाप पहले नम्बर में, फिर ये उतरते-उतारते एक- दो के ऊपर तख्त पर बैठते रहते हैं । बाकी ऐसे नहीं कहेंगे, शिवबाबा के ऊपर हम विजय पहनते हैं । विश्व पर विजय पहनते हो, माया पर विजय पहनते हो । बाकी शिवबाबा के ऊपर कोई विजय पहने, तो फिर वो नहीं कहेंगे । समझा ना! हाँ, शिवबाबा बेशक अपने से मर्तबा तुम बच्चों को देते हैं, पर विश्व का स्वामी बनाते हैं, बाप नहीं बनते हैं । तो शिवबाबा के स्वामी नहीं बन सकते हो । हारो नहीं माया से, नहीं तो यह माया ग्राह एकदम कच्चा खा जाएगी । यहाँ बहुत अच्छा है । यह तपस्या का स्थान है । ज्ञान का, योग का स्थान है । यहाँ सोना बिल्कुल अच्छा है; जैसे कोई मंदिर में जा करके श्री लक्ष्मी नारायण के आगे सो जावे । तो ये देखो, सब बैठे हुए हैं और यहाँ शांत, सफाई, शुद्ध स्थान है । वहाँ फिर भी बहुत ही सोते हैं, खटियों के ऊपर...... खटमल भी खाते होंगे । {म्यूजिक बजा} देखो, घर में बैठे हो । ऐसा कोई सतसंग होता ही नहीं है । ऐसा इतना बेहद का घर भी नहीं होता है । मात-पिता और सिकीलधे बच्चे । यहाँ तुम लोगों को बहुत नशा चढ़ना चाहिए और सारा दिन नशा रहना चाहिए कि हम बेहद के बापदादा, मम्मा ..जिसकी महिमा है- त्वमेव माता; पिता, उनके साथ बैठे हुए हैं । हम उनसे वर्सा ले रहे हैं । कैसे? याद से । वण्डरफुल है । मनुष्य तो याद दिलाते हैं चित्र दे करके ।..... .विचित्र आ करके फिर बच्चों को मंत्र देते हैं- मामेकम याद करो । पवित्र बनो तो साथ में ले जाएँ और अगर पवित्र न बनेंगे तो फिर सजा खाएँगे । फिर आना तो सबको है । बच्चों को बड़ी खुशी होनी चाहिए इस नॉलेज की । देखो, आईसीएस, यहाँ बड़े-बड़े इस्तिहान पढ़ते थे, ये बड़े खुशी में रहते थे । गुरु लोग को भी बहुत खुशी होती है । बाबा ने बताया आगा खान को दो-पॉच करोड़ वर्ष में मिलते होंगे, शायद उससे भी जास्ती । और यहाँ तो बात मत पूछो! तुमको भविष्य जन्म-जन्मांतर के लिए हेल्थ-वेल्थ-हैपीनेस निरोगी काया, अथाह धन और सदैव हर्षित, इतना वर्सा बाप से मिलता है बाप को याद करने से । इसलिए कहते हैं ना- कुब्जाएँ अहिलाएँ फलानी गणिकाएँ, वो सभी बाप से वर्सा पा लेती हैं । अच्छा बच्ची, बाजा बजाओ । (म्यूजिक बजा) मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता का यादप्यार और गुडनाइट ।