20-06-1964     मधुबन आबू     रात्रि मुरली    साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हेलो, गुडनाइट यह तीस जून का रात्रि क्लास है
जो आए बाप के पास, मात-पिता के पास वो अनुभव सुनाएं कि हम कैसे काँटों से फूल बन रहे हैं वा कैसे शूद्र वर्ण से ब्राहमण वर्ण, फिर ब्राहमण वर्ण से देवता वर्ण बनेंगे । यह रसम-रिवाज कल्प पहले भी ऐसे ही थी । और कोई भी जन्म में ऐसी बातें नहीं होती हैं । सतसंग किया, रामायण सुनाया, भागवत सुनाया, गीता सुनाई, फलाना सुनाई । जब गीता सुनाते हैं तो बड़े-बड़े मनुष्य, बड़े-बड़े विद्वान, सन्यासी वगैरह रहते हैं । बॉम्बे में एक चिन्मयानन्द है, हर वर्ष आते हैं और बहुत बड़े-बड़े आदमी जाते हैं । बच्चे जानते हैं कि इन सब विद्वानों की बुद्धि में सब ठीकरियाँ भरी हुई हैं । कुछ भी एम-ऑब्जेक्ट है नहीं तो सुनने वाले भी बस, 'वाह-वाह!' करते रहते हैं । समझ नहीं । यहाँ देखो, जो भी मिले उनको कैसे बताना चाहिए- भई, यहाँ काँटों से फूल बनाया जाता है, पतित से पावन बनाया जाता है और बाप से वर्सा ले रहे हैं । तो कैसे हमको परिचय मिला; क्योंकि जरूर बच्चों को परिचय बाप से मिलता है । फिर बच्चे बाप का शो करते हैं । ऐसे नहीं कि बच्चे हों और बाप न हो, तो फिर क्या परिचय देंगे? किसका देंगे? (कविता - .... प्यारा कौन बनेगा? हम बच्चे । बाबा का संदेश सुनाने घर-घर में घुस जाएँगे । दुनिया वाले कर न सकेंगे, हम करके दिखलाएँगे.. बच्चों को बाप की समझानी जरूर देनी चाहिए । जैसे औरों को दी जाती है ना, वैसे इन बच्चों को भी । देखो, जीवात्मा । इसमें आत्मा है । ये आत्मा शरीर छोड़ देती है । इसको कहा जाता है कि शरीर मर जाता है, फिर आत्मा जाकर दूसरे शरीर में बैठती है । इस आत्मा का बाप है- परमात्मा । अब वो परमात्मा आया हुआ है । वो कहते हैं- मुझे याद करो, मैं वैकुण्ठ में ले चलुँगा । बच्चे, ये भी उन बच्चों को बच्चों ने सिखलाया तो भी ये पार हो जाएं, क्योंकि इस अविनाशी ज्ञान का विनाश नहीं होने का है । तो इनका भी हक है । बाकी अच्छा, मजबूत सिखलाते जाना, सिखलाते जाना- शिवबाबा को याद करो, शिवबाबा को याद करो, तुम आत्मा हो, तुम्हारा बाप वो है, तुम बाप के घर से आई हो, ये पार्ट बजाती हो । ऐसे-ऐसे मीठी मीठी बातें बहुत सीखनी भी हैं । (भाई ने कहा- बाबा, वैसे भी यह धारणा करती हैं, जो बाहर का कुछ नहीं खाती-पीती.... यह तो वण्डरफुल नॉलेज इनको मिलती है और फिर यह बैठ करके समझाएं, सुनाएँ, जैसे ये इन चित्रों पर भी समझाते हैं ना । क्या लाए है? नई कोई चीज लाए हैं? देखें हम । (बच्ची ने कहा- ये आपस में खाएँगे, बैठकर पिकनिक करेंगे ।) ये फैमिली । कुटुम्ब जिसको कहा जाता है । कुल जिसको कहा जाता है । यह है ऊँच ते ऊँच । ऊंचे ते ऊंचा भगवंत । फिर लॉ भी ऐसे कहता है कि ऊँचे ते ऊँचा भगवंत यानी बाप । तो जरूर उनके बच्चे भी इतने ऊंचे ते ऊँचे होने चाहिए । यह समझ की बात है ना । हाँ, बरोबर बाप है स्वर्ग का रचता तो जरूर बाबा के बच्चे भी स्वर्ग में बहुत ऊँचे होंगे, ऊंचे ते ऊँचे पद वाले होंगे; क्योंकि ये हैं सब विचार-मंथन करने की बातें । तो जरूर ऊँचे होंगे । बरोबर ऊंचे थे । देखो, ये चित्र हैं उनके । उनकी राजधानी थी । जरूर ये राजधानी ऊँचे ते ऊँची और कलहयुग में फिर नीच ते नीच है । अभी ये कौन आया, कब आया, कैसे बताया? कोई नहीं जानते हैं । बाबा-बाबा तो कहते हैं. परन्तु पता तो इन बिचारों को ..... । सहज बात है और देखो, कोई नहीं समझते हैं । तो ऐसे कहा जाए कि माया कोई बड़ा ताला डाल देती है, बिल्कुल बुद्धि कुछ काम की नहीं, पत्थरबुद्धि बन गई है । नाम भी गाया जाता है- पत्थर बुद्धि अहिल्या बुद्धि । फिर पत्थर से पारस बुद्धि बन रहे हैं । तो बच्चों को कितनी खुशी होनी चाहिए । बस, इनसे बड़ा पोजीशन दुनिया में कोई का नहीं है और तुम्हारे जैसा भविष्य 21 जन्म में साहुकार कोई बन ही नहीं सकते हैं । भले इस समय में किसके पास कितना भी धन हो, परन्तु तुम्हारे आगे वर्थ नॉट ऐ पैनी हैं । तो बच्चों में हमेशा खुशी रहनी चाहिए; परन्तु यह है ही मुआ-छुआ की भॉति । देही-अभिमानी बनो तो खुशी और उसी समय में देह-अभिमान बनो फिर कुछ न कुछ....जाता है । समझा ना । सेकेण्ड की बात होती है ना । सेकेण्ड में जीवनमुक्ति, सेकेण्ड में जीवनबंध । याद करेंगे तो नशा चढ़ेगा, भूले तो यह देखो! वण्डरफुल बच्चों ने जाना है, और कोई भी नहीं जान सकते हैं । बच्चे, किसको भी कहेंगे ना- यह नाटक है, सभी एक्टर्स हैं और जरूर यह कर्मक्षेत्र है । अभी ऐसे नहीं कहा कि जहॉ से आत्माएँ आती हैं .वो कोई कर्मक्षेत्र है । नहीं, वहाँ तो सभी आत्माएँ रहती हैं । कर्मक्षेत्र कहा ही तब जाता है जबकि कोई पार्ट बजाना होता है । तुम भी सदैव हनुमान जैसे परिपक्व अवस्था में हो जाएंगे, हिलेंगे नहीं माया से । ड्रामा कहता है कि ऐसी अवस्था होनी है जरूर । हाँ बच्ची, ले आओ टोली ।......... .आओ, तुमको टोली खिलाऊँ । (म्यूजिक बजा) मात-पिता और बापदादा का मीठे-मीठे क्वदर्शन चक्रधारी ब्राहमण कुलभूषण बच्चों प्रति दिल व जान..., जिन्होंने जो कुछ भी ऐसी बात कह दी है, अभी देखो, इसको महावीर कह दिया । बस, बहुत कह दिया कि ये महावीर है । महावीर तो हनुमान को भी कहते हैं । तो जैनी मत भी ऐसे, कोई जैन आया, उन्होंने आ करके यह सब दिखलाया- माथा का बाल काटेगा और रसम चल गई । अभी ड्रामा में रसम पहले से ही नूंधी हुई है, जो ऐसे आते हैं । पीछे ये बैठ करके कड़ा हठयोग करेंगे । सन्यासियों में भी कड़ा है । उन सब हठयोगों से- धरती में घुस जाना, उल्टा हो करके चलना, फलाना करना, इन सबसे जैनियों का जो है ना सन्यासियों में बाल निकालना, यह बिल्कुल गंदा है । ये बोलते हैं- सहन करना है ना । यानी भगवान से मिलने के लिए कुछ सहन करना है । तो देखो, ये सहन कराते हैं । अभी तुमको कोई सहन करने की थोड़े ही कुछ बात है । ...तो जो रसम चलाई, बच्चे कहेंगे- यह भी ड्रामा में है और फिर भी ऐसे ही आते ही रहेंगे । तो पास्ट में बच्चों ने जो कुछ भी सुना या जो कुछ भी हुआ- ये मुसलमान आए, ये औरंगजेब आए, ये फलाने आए, फिर से सब होंगे । ये औरंगजेब आया, अमृतसर में गोली चलाई, बन्दरों के अंदर कुछ नस्ल चलाया, ऐसे-ऐसे करके । मालूम है तुम बच्चों को ना । फिर से सब होगा- ये कॉग्रेस का, ये फलाना । तो हूबहू जो कुछ ड्रामा में होता है, भले तुम्हारा साक्षात्कार है । अच्छा, तुम बैठ करके भोग लगाती हो, तो ड्रामा में जो जो भी है भोग वगैरह, सो ही होता रहता है । साक्षी हो करके एक्ट में ले आना होता है और देखना भी होता है । वो जो ड्रामा होता है, शूट करके फिर साक्षी होकर अपना ही खेल देखते हैं । यहाँ नहीं, यहाँ खेल भी खेलना है, साक्षी हो करके भी देखना है । यह है फिर सबसे वण्डरफुल । अच्छा, आओ बच्ची ।