21-06-1964     मधुबन आबू     रात्रि मुरली    साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हेलो, गुडनाइट यह इक्कीस जून का रात्रि क्लास है
बच्चे राजी-खुशी बैठे हैं । बच्चों को यह तो है ना कि हम बाबा के हैं । जो बच्चे हैं वो खाते है, पीते हैं, चलते हैं, उठते है, जैसे कि बाबा के हैं ।... .भले घर में रहते हैं तो भी उनको यह समझना चाहिए कि सब कुछ शिवबाबा का है । दिल से तो यह समझना चाहिए ना । बाप कहते हैं- जैसे अज्ञान काल में, भक्तिमार्ग में भी तुम बच्चे कहते हो कि सब कुछ ईश्वर का है । ईश्वर का है तो जैसे हम ट्रस्टी हैं । अभी वो ईश्वर तो यहाँ नहीं है । वो बाप ऊपर में था । अभी बाप नीचे आए हुए हैं । तो बाप खुद कहते हैं कि बच्चे, यह तो तुम कहते थे कि सब कुछ ईश्वर का दिया हुआ है । अगर ईश्वर का दिया हुआ है तो ईश्वर का ही हुआ । तो तुम बच्चे ट्रस्टी बन गए, अगर विचार की बात करें और वही बात बाबा अब भी कहते हैं कि ऐसे ही समझो कि हम शिवबाबा के खजाने से खाते हैं, पहनते हैं, ये करते हैं । अब भी बाबा यही बात कहते हैं ना, कोई दूसरी नई बात तो नहीं कहते हैं और फिर कहते हैं कि हाँ, अभी शिवबाबा मौजूद है और सभी कुछ उनका ही है, हम अब ट्रस्टी हैं । है तो सब बाबा का ना । तो देखो, इससे ममत्व मिट जाता है । भक्तिमार्ग में भी कहते तो हैं ना । किसको बच्चा पैदा हो तो बोलेगा- हाँ, ईश्वर ने कृपा की है, बच्चा दिया है । उसी की ही मिल्कियत है । आगे जाता था तो रोते थे, पीटते थे । अभी तो बाप कहते हैं कि तुम ट्रस्टी हो, तुमको रोने-पीटने की कोई दरकार नहीं है । अभी अमानत समझ करके, ट्रस्टी समझ करके घर में भी ऐसे ही समझो हम तो शिव के भण्डारी से खाते हैं । तो सब कुछ शिवबाबा का है । हम शिवबाबा के भण्डारे से खाते है । कभी-कभी? बाबा से सिर्फ राय पूछते हैं कि बाबा हमारे से कोई भूल तो नहीं हुई? हमारे से कोई विकर्म तो नहीं हो जाते हैं? है तो सहज ना, क्योंकि बाप कहते हैं मैं तो दाता हूँ ना । मैं कोई सन्यासी उदासी तो नहीं हूँ । मुझे तो यहाँ कोई घर-घाट नहीं बनाना है । कोई फ्लेट-व्लेट में रहना नहीं, न कोई यहाँ बैठ करके जमींदारी बनानी है या मकान बनाना है । ये बच्चे भी जानते हैं कि बरोबर हमको भी तो जाना है । हम जा रहे हैं; क्योंकि वो तो झाड़ सामने है । अभी बच्चों के लिए तो एक सेकेण्ड की बात है; क्योंकि यहाँ सेकेण्ड में जाते हैं, देखते हैं । तो जैसे कि बड़ा नजदीक है और ज्ञान भी ऐसा कहता है कि बहुत नजदीक है । तो बाप बच्चों को बहुत ही अच्छी राय, श्रीमत देते हैं कि घर में बैठे भी ऐसे ही कहो कि हम तो शिवबाबा के भण्डारे से खाते हैं ना, सब कुछ बाबा का है ना, तो उनमें तुम्हारी आसक्ति नहीं रहेगी और फिर हम जानते हैं कि अभी हमको वापस जाना है । यहाँ तो कुछ छोड़ना ही नहीं है । जो कुछ भी कखपन है ये सब उनका है तो गोया जैसे कि ये ममत्व मिट जाते है । ये युक्ति हम बताते हैं । तो ऐसा करने से तुम वारिस बनने के अधिकारी बन जाते हो और यह भी बच्चे जानते हैं कि अपनी राजधानी स्थापन करने में हमको कोई बहुत खर्चा थोड़े ही लगता है । कुछ भी नहीं क्या? हाँ, थोड़ा कुछ यहाँ घर बनाएगा, कोई मिलिट्री का खर्चा है क्या? नहीं । कोई तोपों, बच्चों का खर्चा है कुछ? मिलिट्री का पता है आजकल कितना खर्चा होता है । गवर्मेन्ट की जो आमदनी होती है, हाफ मिलिट्री खा जाती है । अरबों होते हैं और उसके एवज में तुम्हारा कुछ भी खर्चा नहीं है, ऐसे कहेंगे । उनके भेंट में नॉट ए पेनी हैं और हम देखो, विश्व की बादशाही ले लेते हैं । तो बच्चों को अंदर ये विचार-सागर-मंथन करके ऐसे-ऐसे अपन को आपे ही बहलाना है । उसको ही कहा जाता है विचार-सागर-मंथन कर अपन को बहलाना है- ओ हो! बाबा कितना रांझू रमझबाज है, बिगर कुछ खर्चे, न कोई मिलिट्री, न कुछ बात-चीत और पांडव गवर्मेन्ट बड़ी ईश्वरीय गवर्मेन्ट और कितना युक्ति से बच्चों को विश्व का मालिक बनाने की राय देते हैं, मत देते हैं । वण्डरफुल है ना । अभी यह महसूसता कोई गीता पढ़ने या सुनने से थोड़े ही आती है । कुछ भी नहीं बिल्कुल ही, जरा भी नहीं और यहाँ तो तुम कितना जान गए हो । तुमको सारे सृष्टि का चक्र याद है- जिसको पाने के लिए आधाकल्प से मनुष्य अभी तलक तुम्हारे सामने बहुत धक्का खाते हैं । देखो, कहॉ-कहाँ जाते हैं, बनारस जाते हैं, बद्रीनाथ जाते हैं, फलाना जाते हैं और बाबा यहाँ बैठे हुए हैं जिसके पास जाते हैं । अभी फिर बद्रीनाथ भी कौन है? वहाँ भी तो शिव का लिंग होगा, और क्या होगा! वो बिचारे कितना धक्का खाते रहते हैं । ये बाबा कितना गुप्त यहाँ बैठा हुआ है बच्चों के पास, इसलिए बाबा कहते हैं कोटो में कोऊ, कोऊ में कोऊ, कोऊ में कोऊ पहचानते हैं और ये पहचान करके भी, माया ऐसी है जो मुंझाय करके फेर जाती है । तो बच्चों को बाप के मिलने की बड़ी खुशी होनी चाहिए । सामने देखते हैं वो धक्का खाते हैं और हम बाप से बैठे हैं । बाप के साथ खाते हैं, पीते हैं, खेलते हैं, कूदते हैं । गाते भी हैं- तुम्हीं से बैठूं तुम्हीं से खाऊँ । तुम्हीं से माना किससे? किसका नाम लेते हो? क्या कृष्ण से? कृष्ण के साथ तो राजधानी में जो देवताएँ होंगे वो बैठेंगे और यहाँ तुम बाप के साथ बैठते हो । तो देखो, तुम परमपिता परमात्मा से बैठ करके खेलते हो । देखो, बाबा खेलते हैं । इसको भी हिर्स हो गया है कि बच्चों से खेलें, कूदे ये करें ।......बरसात के समय में ऐसे होते हैं । तकलीफ होगी तो खटिया बाहर निकाल कर सो सकते हैं और नजदीक में भी ऐसे...पर चढ़ा, ऊपर में सोया, नहीं तो भाग करके नीचे आया । बाबा खुद भी ऐसे करते हैं । अभी बाबा बाहर में सोते हैं । बरसात पड़ी, ये कपड़े उठाया, फिर भागा अन्दर । ऐसे बहुत दफा होते हैं । बाहर सोएंगे, रात-रात को दो बजे ये बरसात फट- ये फिर भागा अन्दर और अच्छा ही होता है फिर हमको जागना होता है, बाबा को याद करते हैं । बरसात नींद से उठा दिया तो बैठ करके अपने बाबा को याद करो । तो कमाई होगी ना । इसमें कमाई है, बड़ी भारी कमाई है । याद ही तो बड़ी कमाई है । बाबा कहते हैं ना- बाप की याद माना कमाई । ऐसे नहीं होता कि बाप को छोड़कर कोई कमाई को याद करते हैं । तुम सिर्फ स्वर्ग को नहीं याद कर सकते हो । बाबा ऐसे कहते हैं कि स्वर्ग को याद करो? पहले मनमनाभव मुझे याद करो तो स्वर्ग का मालिक बनेंगे । तो बाप को याद करना होता है और है सहज बहुत । देखो, बुढ्‌ढियॉ हैं, मम्मा है, क्या तकलीफ है तुम लोगों को? यानी बाबा को नहीं याद कर सकती हो? ऐसे कौन बच्चे होंगे जो बाप को याद न करते होंगे । कभी सुना? बच्चे कहें मुझे बाप याद नहीं पड़ते, कभी सुना कोई से? यानी इम्पॉसिबुल है । तो अभी जब बच्चों को निश्चय है कि हम आत्मा हैं, बाप को याद करना है, उनसे वर्सा लेना है तो इनमें मूँझते क्यों है? भूलते क्यों हैं? परन्तु बाबा भी कहते हैं ही बच्चे, माया बड़ी शैतान है । गुलबकावली का खेल सुना है ना? ये भी ऐसे ही हैं । हम तो पौ बारह चाहते हैं बाबा को याद करना, माया झट पासा फेर देती है, क्योंकि अभी इस समय में कहेंगे ये भारत छ: तीन यानी हार में है ।... ..उसको पूरी हार कहा जाता है । अभी ऐसे है कि हार का तुम्हारा पौ बारह बनना है । बाबा आ करके तुमको माया बिल्ली से जीत पहनाते हैं । अच्छा, अभी टाइम भी हुआ है । सैलवेशन की जरूरत है वो तो बोलें, हाँ, ब्राहमणी रिस्पॉन्सिबुल है । ले आते हो तो इनकी खान-पान वगैरह की पूरी सम्भाल करना है । बच्चे, लज्जा नहीं करना कोई भी । ब्रहमा को सिर्फ बोलना है कि मुझे ये चाहिए, मुझे ऐपिल चाहिए, मुझे आम चाहिए, मुझे फलानी चीज चाहिए, मुझे कोको कोला चाहिए । (किसी ने कहा- कुल्फी चाहिए) अरे हाँ, कुल्फी । कहाँ गई हमारी भंडारी? भोली दादी कहा है? भोली दादी, इनको गोलगप्पे खिलाएंगी?? (बच्ची ने कहा- हाँ बाबा) बूँदी- बूँदी ले करके वो खिलाओ । तुमने अभी क्या बोला (बच्ची ने कहा- कुल्फी)........ओमप्रकाश कहाँ है हमारा... बहुत फर्स्ट क्लास है । ओमप्रकाश दिल्ली वाला, हाथ उठाओ । कुल्फी बनाना । कल क्या है सोमवार है ना । अच्छा दिन है । कल कुल्फी बनाना और आम का रस भी डाल देंगे, बड़ी अच्छी होगी । (बच्चों ने कहा- हाँ, अच्छी बनेगी) अच्छे होते हैं, क्योंकि वहाँ बाजारी का खाते थे, अभी घर को वो ही चीज खाते हैं । बहुत ऐसे बच्चे हैं जो छिप-छिप बोल करके चने वालों से गोलगप्पा खाते होंगे । एक कथा है ना कि कृष्ण अर्जुन को बैठाकर चक्र में गया तो चने वाला आ करके.. पीछे यहाँ देखा, अभी देखेगा तो नहीं । अखानी है ना । बाहर आकर बोला- पैसा? बोला- पैसा तो है नहीं । बोला- कसम उठाओ । बोला- अच्छा, हम श्री कृष्ण का कसम उठाते हैं, तुमको पैसा जरूर देंगे । ऐसे अखानी सुनी है बच्चों ने? शास्त्रों में बहुत-बहुत कथाएँ हैं । तुम बच्चे तो बहुत ही कहा न कहा छिप करके खाते होंगे । कहाँ भी गोलगप्पा का, कभी चने का, कभी कोई चीज का । देखो, बाहर में वो कुल्फियाँ डान्टी में डाल करके देते हैं । ये तारा तो जरूर खाती होगी । सच बताओ । भई, हाथ उठाओ, जो बाहर के गोलगप्पे, चने या फलाने चीज खाते हैं । लज्जा नहीं करो बच्ची । बाबा तो खुश होते हैं ना । (म्यूजिक बजा) जितने बच्चे खुश होते हैं इतने बाप खुश होते हैं, क्योंकि बाप तो अच्छी तरह से जानते हैं । कहते हैं ना मुझे कल्प-कल्प तुम बच्चों से मिलना तो होता ही है । अभी ऐसे कोई दूसरा मनुष्य, सन्यासी-उदासी कह सकें, बच्चे भी जानते हैं । देखो, सबसे पूछो- आगे हम मिले हैं? हाँ, बाबा, कल्प पहले मिले हुए हैं । इनका अर्थ कभी कोई समझ न सकें । अगर कल्प की बात सुनें तो बोलेंगे- उनको तो हजार वर्ष हुए । ये क्या बोलते हैं! (म्यूजिक बजा) पंखा क्यों बन्द किया? चलाओ बच्ची चलाओ, पंखा को चलने दो । थोड़ी गर्मी है । मात-पिता और बापदादा का मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति यादप्यार और गुडनाइट ।