30-06-1964     मधुबन आबू    प्रात: मुरली    साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हेलो, स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुलभूषणों को हम मधुबन निवासियों की नमस्ते, आज मंगलवार जून की तीस तारीख है, प्रात: क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।

रिकॉर्ड :-
बच के. नजरों से मेरी कहाँ जाओगे... .... .... ....

कितना मीठा गीत है । भले कोई फिल्म वालों ने बनाया है । ...वो तो बिचारे अपने नाटक वगैरह हद में बना रहे हैं । अब ये मीठे बच्चे तो बेहद के नाटक में पार्ट बजाय रहे हैं । बेहद के इस ड्रामा में अब बेहद का बाप अपना पार्ट सम्मुख का बजा रहे हैं । तुम बच्चों के स्वीट बाबा तुमको स्वीट ..नजर आते हैं । आत्मा इन नैनों से जानती है; क्योंकि आत्मा ही तो सब कुछ है न । आत्मा इस शरीर के ऑरगन्स से एक- दो को देखती है । अभी आत्माएँ, जो सम्मुख बैठी हैं, वो जानती हैं, जिसके लिए बाप स्वीट चिल्ड्रेन कहते हैं । यह तो बाप भी जानते हैं कि मैं बच्चों को बहुत स्वीट बनाने आया हुआ हूँ । माया ने इनको बहुत कड़वा बनाय दिया है । किसको? आत्मा को । सो भी बाप आकर समझाते हैं- तुम कितने स्वीट हो और बरोबर तुम जब मंदिरो में जाते हो तो उनको कितना स्वीट कहते हो, कृष्ण को कितना स्वीट समझते हो । यहाँ देवताओं के पास जाकर कितना उनको स्वीट नजर से देखते हो कि आह! कहाँ मन्दिर खुले तो हम स्वीट देवता का दर्शन करें । अभी है तो वो स्वीट देवता पत्थर का बना हुआ । जरूर जो दर्शन करने वाले हैं, वो समझते हैं कि यह स्वीट होकर गया है । यह स्वीट कहाँ का बादशाह है? स्वीट स्वर्ग के मालिक थे । ऐसे कहेंगे ना । ये आते हैं, ऐसे नहीं कि माया कोई एकदम बुद्धू बनाय देती है; परंतु ये जानते हैं भारत में, जबकि मंदिरों में जाते हैं, तो जरूर शिव के मंदिर में भी तो जाएंगे; क्योंकि वो बहुत स्वीट हैं । बहुत प्रार्थना करते हैं, उनसे बहुत मॉगते हैं कोई । जरूर होकर गया है और बहुत स्वीट है । स्वीटेस्ट ते स्वीट है । स्वीट समझते हो? मीठे । हम ऐसे मीठे ते मीठे बाप के बच्चे हैं । भारत में आए तो होंगे ना । हैं सब भारतवासी । जो भी मंदिरों में हैं, ये सभी होकर गए हैं, कुछ करके गए हैं । अभी बच्चों को तो कोई भी मालूम नहीं है । बाप बैठकर समझाते हैं कि कौन-कौन क्या-क्या करके गए हैं । ऐसे तो कोई बताय नहीं सके ना । अभी स्वीट फादर को जानने वाले तो बच्चे ही होंगे, और तो कोई जान नहीं सकते हैं । तो स्वीटेस्ट जरूर कहेंगे कि यह जो निराकार परमपिता परमात्मा है, यह जरूर सबसे स्वीट है, क्योंकि इस सारी दुनिया में सिर्फ भारत इन पर्टिक्युलर और दुनिया इन जनरल है । उसको कहा जाता है खास और आम । भारत में शियबाबा की महिमा तो बहुत है- देखो, 'शिवकाशी-शिवकाशी' कहते रहते हैं ।.... वहाँ बहुत सन्यासी वगैरह जाकर रहते हैं । वहाँ बस यही 'शिवकाशी विश्वनाथ गंगा ' तुम वहाँ जाएंगे तो देखेंगे बहुत बोलते हैं- 'शिवकाशी विश्वनाथ गंगा और बोलते हैं बिचारे जैसे ढेढरो के माफिक । ट्रां-ट्रां-ट्रां करते हैं । यह बाबा सब चक्कर लगाकर आए हुए हैं । यह बाबा जानते हैं और वो बाबा तो अच्छी तरह से ही जानते हैं । अभी 'शिवकाशी विश्वनाथ गंगा, शिव की बैठ करके कितनी महिमा करते हैं और अगर कोई इस समय में जबकि दुनिया पतित है और कोई कह दे कि हम शिवोअहम तो बाबा कहते हैं- कितने मूर्ख बच्चे हैं! यूँ बाप जानते हैं कि हमारे सब स्वीट चिल्ड्रेन हैं; क्योंकि ये सभी हमारे घर के बच्चे हैं और यह तो अब जरूर है कि नम्बरवार सबको अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है और नम्बरवार ये स्वीट हैं । देखो, नाटक होता है तो कोई को हीरो-हीरोइन का पार्ट मिलता है, कोई को अच्छा पार्ट. ... पिछाड़ी में फलाने पार्ट वाले भी होते हैं- सामान उठाने वाला, फलाना करने वाला, तो उनके ऊपर थोड़े ही किसकी नजर पड़ेगी । नजर किसके ऊपर पड़ेगी? जो हीरो एण्ड हीरोइन होंगे । बच्चे गाते तो हैं बहुत- 'तुम मात-पिता, हम बालक तेरे' । देखो, हीरो एण्ड हीरोइन मात-पिता हुए ना । अभी तुम बच्चे जानते हो कि जिसकी इतनी महिमा 'तुम मात-पिता, हम बालक तेरे' उनके सन्मुख बैठे हुए हो । अभी दुनिया के तो सन्मुख नहीं हैं ना, क्योंकि यह इनकागनीटो है । भला कैसे किसको मालूम पड़े । उनका तो नाम-निशान गुम कर दिया है, सिर्फ चित्र मात्र रह गए हैं । बल्कि किसको पता नहीं पड़ता है, क्योंकि शिव के पुजारी तो सब होते हैं ना । बाबा कहते हैं- इसने बहुत ही पूजा की है । इनको बहुत ही पंडित लोग वगैरह बुलाते हैं । बोलते हैं- शिव का घंट बजता है, ऐसे करो । पीछे शिव का घंट सुनेंगे । ऐसे बंद करने से आवाज तो होता है । ऐसे-ऐसे वण्डरफुल समझाने वाले , क्योंकि तुम सबसे बाप कहते हैं कि इसने गुरू बहुत किए हैं ।... ... .अभी तुम जानते हो ना बरोबर बस, इन जैसा स्वीट कोई हो नहीं सकता है । अगर ये स्वीट न आए तो यह जो कडवी दुनिया है रावण राज्य है, पतित दुनिया है । पतित को तो कोई स्वीट नहीं कहेंगे ना । तो यह समझते हो कि इस समय में इस सृष्टि में सिवाय तुम बच्चों के और कोई भी स्वीट नहीं है । भले देखने में अच्छे हैं, सूरत तो बरोबर सबकी मनुष्य की है; पर सीरत शैतान की है । अभी ऐसे थोड़े ही है कोई अपन को शैतान समझते हैं । फिर इसमें भी बाप बैठकर यह समझाते हैं, भले अपन को शिवोहम कहते हैं, हम भगवान हैं । अरे । भगवान इतना स्वीटेस्ट और तुम यहाँ पतित दुनिया में, तुम कैसे अपन को कहते हो कि शिवोअह्म या हम भगवान हैं? भगवान तो रचता है, भगवान को ही तो पतित-पावन कहा जाता है । भगवान को तो सब भगत याद करते हैं । तो ऐसे थोड़े ही हो सकेगा कि सभी भगत भगवान बन गए हैं । यह तो हो नहीं सकता है । तो बाप ने आ करके इनका नाम बताया है कि इस समय में इसका नाम है- हिरण्यकश्यप... रावण, कंस, अकासुर बकासुर । ये बहुत नाम हैं । अभी वो तो इस समय में हैं ना; क्योंकि भागवत में लिखा हुआ है । तो भागवत का कनेक्शन है गीता से, भागवत का कनेक्शन है महाभारत से, भागवत का कनेक्शन वास्तव मे है रामायण से, परंतु उन्होने उनको दूसरी जगह मे डाल दिया है । वशिष्ठ का कनेक्शन है रामायण में, क्योंकि इस समय में ही भारत का जो मुख्य शास्त्र है, जिसको श्रीमत भगवत गीता कहते हैं, बस वो एक ही गीता है । देखो, क्राइस्ट का बाईबल एक, मुसलमानों का कुरान एक । सबका अलग-अलग नाम है । तो इनका भी तो एक होना चाहिए ना और वो गाया भी जाता है बस- सर्वशास्त्रमई शिरोमणी श्रीमद्‌भगवत गीता । श्रीमद्‌भगवत, फिर भी तो स्वीटेस्ट फादर हो जाता है ना । ऊँचे ते ऊँची श्रीमद्‌भगवत गीता और कोई ने लिखा हुआ है कि बाकी जो वेद, ग्रंथ, शास्त्र वगैरह-वगैरह हैं, ये उनके पल्ले हैं । कहाँ का लिखा हुआ है यानी पिछाड़ी में वो उनके चिल्ड्रेन हैं । अभी तो बाप ने समझाया ना- शास्त्रों में भी चिल्ड्रेन-माँ है वो । माँ श्रीमद्‌भगवत गीता । माँ का पति कौन है? माँ का पति भगवान । उन्होंने फिर भगवान से जो बच्चा होता है, उनका नाम रख दिया बायोग्राफी में । तो कितनी मूंझ हो गई है । ऐसे नहीं है कि श्रीकृष्ण को कोई स्वीटेस्ट कहेंगे । नहीं, फिर भी इनकारपोरियल जो बाबा शिव है, उनको ही स्वीटेस्ट कहेंगे । तो तुम बच्चे अभी जानकर उस स्वीटेस्ट बाबा से ये स्वीटेस्ट स्वर्ग जिसमें फिर ये श्री कृष्ण राधे या लक्ष्मी नारायण की डिनायस्टी रची जा रही है। जानते हो ना बरोबर कि स्वीटेस्ट बाबा हमको मोस्ट बिलवेड स्वीटेस्ट बनाय रहे हैं । जो जैसा होगा ऐसा बनाएगा ना । ऐसे तो नहीं है ना, कोई लक्ष्मी नारायण बैठकर के......... यह हूबहू आप समान स्वीटेस्ट बैठ करके यह कहते हैं- मैं भी निराकार हूँ, तुम भी वास्तव में निराकार हो । तुम तो अपने साथ रहने वाले हो, इसलिए देखो, शिव के मंदिर में जाएँगे ना और जब शिवलिंगों की पूजा भी होती है तो शालिग्राम और शिव का भी यज्ञ रचते हैं । बरोबर देखने में आता है कि उनकी पूजा होती है । बहुत बड़े-बड़े ब्राहमण आते हैं, वो रुद्र यज्ञ रचते हैं । तो रुद्र यज्ञ में क्या करते हैं? शिव का रोज चित्र बनाते हैं और हजारों-लाखों, जितना कोई बोले, इतना वो शालिग्राम बनाते हैं । फिर बैठ करके उनकी पूजा करते हैं । कौन पूजा करते हैं? ब्राहमण पूजा करते हैं । अभी ब्राहमण बरोबर पूज्य बनते हैं, पीछे तुम पुजारी बनेंगी । फिर बैठकर शिव का बड़ा लिंग बनाएँगे और फिर छोटा भी बनाएँगे । बैठ करके पूजा करेंगे । तो उसका नाम ही रखा हुआ है- रुद्र यज्ञ । ज्ञान यज्ञ नहीं, वो सिर्फ रुद्र यज्ञ रचते हैं । बड़ी-बड़ी फर्स्ट क्लास मिट्‌टी आती है और उनका बैठ करके यह करते हैं । तो यह मिट्‌टी पूजा हुई ना । मिट्‌टियों का ये चित्र बनाकर उसकी पूजा करते हैं । बनते तो सब मिट्‌टी का है ना । ये मंदिर वगैरह पूजा में बनाते हैं । जब अक्टूबर आता है या दीपमाला का समय आता है तो ये सभी बैठ करके मिट्‌टी से ही, ठिक्कर-भित्तर से चित्र बनाते हैं । यहाँ भारतवासियों का नाम ही है कि यह है गुड़ियों की पूजा करने वाला आइडल प्रस्थ । वो आइडल किसके बनते हैं मालूम है ना । ये सभी यादगार के लिए मिट्‌टी के बनते हैं । तो अभी बच्चों को मालूम है कि जरूर जो होकर गए हैं उनका फिर चित्र बना करके पुजारी पूजा करते हैं । भारत पूज्य था । नो पुजारीपणा । सतयुग और त्रेता में पुजारीपणा कोई नहीं था एकदम..... सतयुग-त्रेता में आधा कल्प ज्ञान, बिल्कुल ही कोई भी पूजा का अंग भी नहीं था । कभी किसकी पूजा नहीं होवे । और फिर पुजारी गाया भी तो भारत में जाता है । आपे ही पूज्य, आपे ही पुजारी । अभी मनुष्य जब कहते हैं आपे ही पूज्य, आपे ही पुजारी, तो भगवान को कहते हैं और फिर कहते हैं- ये सभी भगवान हैं, यहाँ भगवान आपे ही पूज्य बनते हैं, यहाँ भगवान आपे ही पुजारी बनते हैं । इसको कहा जाता है उल्टी ज्ञान की गंगा । सुल्टी नहीं, उल्टी ज्ञान की गंगा । तो तुम मोस्ट बिलवेड जानते हो- उफ़! बस इन जैसा बाबा जिनको तुमने बुलाया है – हे पतित पावन हे भगवन हे रहमदिल पुकारते रहते हैं माना आवाहन करते हैं । तो भक्तिमार्ग में पुजारी लोग आधा कल्प आवाहन करते ही रहते हैं । सतयुग में तो आवाहन नहीं करेंगे? बाप पूछते हैं । मैं तुमको सतयुग का मालिक बना रहा हूँ । बहुत स्वीटेस्ट ते स्वीटेस्ट बना रहा हूँ क्योंकि जानते हो कि गॉड फादर सबसे स्वीटेस्ट ते स्वीटेस्ट मीठे ते मीठा है । कितना मीठा, कितना प्यारा शिव भोला भगवान । देखो, शिव भोला भी एक का नाम है ना । शंकर थोड़े ही डालेंगे । नहीं, शिव निराकार है, शंकर आकारी है, दोनो को कैसे मिलाय सकते हैं? यह तो मूर्खता हुई ना । तो बाप बैठकर कहते हैं कि कितने मूर्ख बन गए हैं । माया ने कितना बेसमझ बनाय दिया है । बिल्कुल ही अकल चट । सूरत मनुष्य की है; परंतु सीरत शैतान की, बन्दरों की है । बन्दरों से भी बदतर, क्योंकि मनुष्य है ना । मनुष्य कितना अच्छा था । अब मनुष्य बन्दरों से भी बदतर बन गया है । सूरत तो मनुष्य की है ना, सिर्फ उनके गुण बन्दर जैसे बन गए हैं । इसलिए सब मंदिर में देवताओं के सामने जा करके गाते हैं- मैं निर्गुणहारे में कोई गुण नाहीं, आपे तरस परई । अभी सबके पास जाएँगे । लक्ष्मी नारायण के मंदिर में जाएँगे, कहाँ के मंदिर में जाएंगे, पूजा एक ही किस्म की करेंगे और सबको मिलाय ही देते हैं, पता ही नहीं कहते हैं.... अच्युत-केशव श्री राम-नारायण, कृष्ण दामोदर श्रीवासुदेवम हरिम । देखो, कितने को ले आते हैं । अभी राम कहा, नारायण कहा! अभी समझ पड़ती है । बहुत पूजा की है ।.. .व्यास को भी इसमें ले आए । अभी व्यास कौन है बिचारे कुछ जानते ही नहीं है । नहीं तो वास्तव में सच्चे-सच्चे व्यास सुखदेव के बच्चे तुम हो । अभी तुम जानते हो कि बरोबर सुख देने वाला मोस्ट बिलवेड बाप हमको बैठकर और यह सहज राजयोग की नॉलेज सुनाते हैं । बरोबर उस सुख देने वाले के हम बच्चे हैं पक्के-पक्के सच्चे व्यास, ब्राहमण । ब्राहमण व्यास होते हैं ना, जो बैठ करके प्रैक्टिकल में यह सहज राजयोग सिखलाते हैं और जानते हैं कि सब बच्चे बैठ करके अभी मनुष्य से देवता बनते हैं । तो देवताओं के आगे मनुष्य कहते हैं- हम पाप-आत्माएँ हैं, नीच हैं, कपटी हैं । देखो, कितने कड़वे हैं! वो कितने मीठे हैं । ये पुजारी तो अभी तलक पूजा करते हैं । हम खुद बहुत मंदिरों में पूजा करते हैं, अभी यह कहते हैं और बाबा भी कहते हैं- इसने तो बहुत गुरु किए हैं और इसने ही ये पूरे 84 जन्म लिए हैं । तत् त्वम् । यानी जो सूर्यवंशी डिनायस्टी है वो ही सभी पूज्य हैं । चन्द्रवंशी तो सूर्यवंशी की पूजा करते हैं ना; क्योंकि वो बड़े तो हैं । पूजा नहीं करते हैं; परंतु बड़े हैं ना; क्योंकि वो जानते हैं कि हमारे से भी बड़े कोई तो होंगे ना । बड़े ते बड़े होते गए हैं ना परंतु यह नॉलेज जो तुम बच्चों को मिल रही है, वो नॉलेज इस बिचारे लक्ष्मी नारायण में, अब किसको कहते हैं 'बिचारे लक्ष्मी नारायण'? ये अपन को कह देते हैं । जब हम बिचारे लक्ष्मी नारायण बनते हैं यह नॉलेज होती नहीं है । हम किसकी भी सेवा करके, वहाँ नॉलेज देकर मनुष्य को देवता बनाय नहीं सकते तो क्या काम के? यहाँ तुम कितने काम के हो, कितने स्वीट बाबा के बच्चे हो और यहाँ तुम किसलिए आए हो? सो स्वीट श्री लक्ष्मी और नारायण बनने । सो स्वीट सिर्फ श्री लक्ष्मी नारायण तो नहीं हैं ना, उनकी डिनायस्टी तथा राजाई भी तो स्वीट है ना क्योंकि जैसे श्री लक्ष्मी नारायण स्वीट हैं, तैसे उनकी प्रजा । यथा रानी-राजा तथा प्रजा । तो तुम अभी जानते हो कि बरोबर हम स्वीटेस्ट फादर से स्वीट बनते हैं, क्योंकि उनको स्वीटेस्ट कहते हैं, श्री-श्री, श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ । फिर उनसे हम श्रेष्ठ बनते हैं । हम अपने को श्री-श्री नहीं कह सकते हैं । ऐसे तुम कभी नहीं सुनेंगे- श्री-श्री लक्ष्मी, श्री-श्री नारायण । नहीं, श्री एक दफा कहते हैं और उनको श्री-श्री कहा जाता है । बच्चों को बहुत समझने की बात है; क्योंकि बच्चों को प्रैक्टिकल में बनना है । जितने तुम अशरीरी बनेंगे, देही-अभिमानी बनेंगे इतना कहेंगे हम स्वीटेस्ट बनने के लिए अपने स्वीटेस्ट फादर को याद करते हैं । तो स्वीटेस्ट बनने का बस यही रास्ता है कि देही अभिमानी बन करके फादर को याद करना और वर्से को याद करना । यह तो बच्चों को बाकी बैठ करके बहुत समझाते हैं । बाबा कहते हैं ना- बहुत समझाने से क्या है! मनमनाभव मद्याजीभव । समझाते-समझाते पिछाड़ी में कह देते हैं- कितना तुमको हम समझावें? कितना समझाते रहें? तुम एक बात तो नहीं भूलो ना, जो मुख्य है कि मुझे याद करो तो तुम मेरे पास आ जाएंगे और मेरे जैसा स्वीट बन जाएगे; क्योंकि स्वीट का जैसे कि एक पहाड़ है । तो बच्चों को ऐसे को, जो स्वीटेस्ट बनाते हैं, कितना याद करना चाहिए । गाया जाता है- सिमर, सिमर- सुख पाओ । कोई सिमरनी नहीं सिमरनी है । सिमरो- सिमरो जो होते हैं ना, वो सिमरनी के ऊपर माला फिराते हैं । बच्चे जानते हैं कि माला से हम कुछ नहीं जानते हैं । इस दुनिया में ऐसा कोई मनुष्य नहीं है जिसको यह मालूम हो कि हम यह जो सिमरनी फेरते हैं, यह क्यों बनी है? किसकी यादगार है? बस, ऐसे सभी राम-राम सिमरते है । अभी हम समझते हैं कि सचमुच वो जो राम, जिसको हम शिवबाबा कहते हैं, हम उनके बच्चे हैं; इसलिए हम उनको सिमरण करते हैं, परंतु वो माला तो अभी सिमरण नहीं करते हैं । माला फेरना तो पुजारी का चिहन है । नहीं, हम तो बाबा को बहुत याद करते हैं । अरे, इस याद में ही कलह-कलेश सब तन के मिट जाते हैं, हम निरोगी बन जाते हैं, एवर हेल्दी बन जाते हैं । मीठा बाप तो बार-बार कहते हैं कि बच्चे, अपन को अशरीरी समझो और मेरे को याद करो । मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि इस सृष्टि में तुम्हारे जैसा मीठा और कोई भी मनुष्य नहीं बन सकेंगे, क्योंकि तुमको जाकर फिर मनुष्य बनना है ना । तो सतयुग में मनुष्य हैं ना । ये लक्ष्मी नारायण भी मनुष्य हैं ना । शिकल तो मनुष्य की है । देखो, शिकल-सूरत मनुष्य की है और सीरत कितनी.....है और मनुष्य की शिकल तो मनुष्य की है और सीरत कैसी खराब है और खुद जाकर कहते हैं- हम पापी हैं, नीच हैं, कपटी हैं । जाओ, मंदिर में जाकर देखो... ... दस भुजाओं वाला, बीस भुजाओं वाला तो कोई मनुष्य होता ही नहीं है । मनुष्य मनुष्य है । न कोई सूंड के नाक वाला गणेश होता है, न कोई पवन से, न कोई छी: किया और नासिका में से निकल आया । अभी कोई के पास जाकर समझाओ, तो कहेंगे- यह तो नॉनसेंस है, ये क्या कहते हैं- आ छी: करने से नासिका के थ्रू भी देवता निकल आया । ये बातें जब अभी सुनते हैं, तो बोलते हैं- क्या है इन शास्त्रों में! तभी बाबा समझाते हैं- ये जो भी हैं, पत्ते है । ये तो सभी हैं भक्तिमार्ग की सामग्री । सतयुग में भक्तिमार्ग की कोई सामग्री होगी ही नहीं । भक्तिमार्ग का चिहन भी नहीं होगा; क्योंकि भक्ति आधा कल्प चलती है । ज्ञान के लिए ऐसे नहीं कहेंगे कि आधा कल्प चलता है । नहीं, ज्ञान का तो 21 जन्म का वर्सा मिलना है । जैसे उनसे भक्ति का वर्मा मिलता है, वो भक्ति सतोप्रधान से सतो रजो तमो हो जाती है । अभी ये भी तो बाप से वर्सा मिलता है ना कि सतोप्रधान सतयुग में सतोप्रधान सतो रजो तमो । फिर नीचे उतरते आते हैं । तो जैसे ज्ञान का वर्सा सतोप्रधान सतो रजो तमो होता है, तैसे फिर भक्ति का वर्सा भी पहले सतोप्रधान सतो रजो तमो होता है । यह समझने की बात है । उसमें भी पहले नम्बर में बच्चों को क्या समझना है? हम आत्मा हैं । हम बिलवेड मोस्ट बाप...के बच्चे हैं और आकर सम्मुख बैठे है । बाप भी आ करके जिस्म में बैठा है, तो आप भी जिस्म में हो । जिस्म न होता तो फिर यह मुरली कैसे सुन सकते? जिस्म बिगर वहाँ मूलवतन में, निराकारी दुनिया में कोई आवाज होता है क्या? वो तो है ही साइलेंस वर्ल्ड । पीछे है मूवी । यह ब्रह्मा विष्णू शंकर तुम जब वहाँ जाते हो तब तुम्हारा आवाज ऐसे-ऐसे होता है, ऐसे-ऐसे तुम्हारा चक्र चलता है, जिसको मूवी कहा जाता है और यह है टॉकी । साइलेंस, मूवी और टॉकी ये त्रिलोकी । वो लोक मूलवतन, वो सुक्ष्मवतन, यह स्थूल वतन । एक-एक बात तुम नई सुनते हो । दुनिया में ऐसे कोई मनुष्य नहीं हैं, जो जानते हों कि मूलवतन क्या होता है, सुक्ष्मवतन क्या होता है, क्योंकि बरोबर तुमको बुद्धि में आता है कि मूलवतन जहॉ से हम आते हैं, वो साइलेंस है, वहाँ हम कुछ भी बात नहीं करते हैं । तुम बच्चों को अनुभव है ना कि बरोबर हम आत्माएँ हैं, हम मूलवतन के रहवासी हैं, निराकार दुनिया के रहवासी हैं । हम बरोबर ब्रहम महतत्व में रहते हैं, इसलिए हमारा नाम ब्राह्मण रखा हुआ है, क्योंकि चित्र अण्डे मिसल हैं ना; पर अण्डे मिसल है थोड़े ही; परन्तु अगर हम ऐसे कहते हैं- छोटी है, इतनी स्टार है, तो भला इतने स्टार की पूजा कैसे होवे! होगी कोई पूजा? क्या फूल चढ़ेगा? नूंध ठहर सकेगा? कुछ भी नहीं ठहर सकेगा ।.......नाम तो 'शिव' ठीक है । परमपिता परमात्मा, परमात्मा भी ठीक है; परंतु ऐसे कैसे हो सकता है कि आत्मा छोटी और बाप इतना बड़ा? क्योंकि हम भी तो वहाँ बाबा के साथ में रहते हैं, तो उनको भी आत्मा कहा जाता है । परम माना परमधाम में रहने वाली आत्मा. इसलिए उनको कहा जाता है परमात्मा और मोस्ट बिलवेड । तुम अभी जानते हो कि हमको..बाबा की श्रीमत पर चलना है । मशहूर तो है ना- श्रीमत भगवानुवाच । भगवान क्या बनाएँगे? बैरिस्टर क्या बनाएंगे? सर्जन क्या बनाएँगे? वाढा क्या बनाएंगे? चमार क्या बनाएंगे? अभी है फिर भगवानुवाच । भगवान आ करके पास यानी समझाते हैं । बरोबर जो भी निराकारी आत्माएँ हैं, वो आकर इसमें समझाया होगा । क्राइस्ट की आत्मा वो इनकारपोरियल दुनिया से आई होगी तो कोई शरीर में बैठकर वाच किया होगा ना । ऑरगन्स मिल गए ना । तो यह भी सिर्फ तुम बच्चे ही जानते हैं- वाह! बिलवेड मोस्ट बहुत मीठा-मीठा बाबा आ करके हमको बिल्कुल ही मोस्ट स्वीट बनाते हैं । आत्मा स्वीट बन गई तो उनको शरीर भी तो स्वीट मिलेगा ना । जैसे-जैसे आत्मा प्योरिफाई होती जाती है और धारणा होती जाती है, इतना पद पाएँगे; क्योंकि साथ में पढ़ाई भी तो है । पढ़ाई भी मोस्ट सिम्पुल है । इसको कहा जाता है मोस्ट सहज माना सिम्पुल । बाप क्या कहते हैं, यह तो नटशेल में तुम भी समझते हो- बीज और झाड़ । बरोबर बीज से इतना बड़ा झाड़ होता है । फिर बीज बाबा ऊपर में है, जिसको वृक्षपति कहा जाता है । नाम पड़ गया- बृहस्पत । अच्छा, वो है और बरोबर पहले फाउण्डेशन, फिर उनमें टयूब्स निकलते हैं, इतना बड़ा हो जाता है । है ना बुद्धि में । ये बातें बुद्धि में रखो । दुनिया में कोई की बुद्धि में ये बातें हैं नहीं । कितना ही बड़ा विद्वान-पंडित हो, यह बिल्कुल कोई काम के नहीं हैं और फिर भी तो बाप कहते हैं- यह तो कोई कम पंडित नहीं था ना, यह भी तो बहुत ही कथाएँ करते थे । बोलते हैं- कोई भी कुछ भी नहीं जानते हैं एकदम । अब तुम बच्चे अच्छी तरह से जानते हो कि बरोबर मोस्ट बिलवेड बाबा और फिर बाप आकर कहते हैं कि हे मेरे लाडले बच्चे, अभी शरीर में है और सभी से बोलते हैं । यह भी सुनते हैं, आप भी सुनते हो । अब ये जो तुम्हारे गुरु-गोसाई हैं, ये सब हैं भक्तिमार्ग के गुरु । ज्ञान कहाँ से आवे? ज्ञान सागर ज्ञान सूर्य प्रगटा अज्ञान अंधेर विनाश । अंधेर कहा ही जाता है जबकि गहरी रात होती है । तो इसको कहा जाता है कलहयुग का अंत । मनुष्य तो समझते हैं इनसे भी गहरी रात होगी 40 बरस के बाद । 40 क्या, 40000 बरस के बाद । तो अंधियारे में हैं ना । बिल्कुल घोर अंधियारे में हैं । एक तो घोर अंधियारा है, दूसरा और समझते हैं कि 40000 वर्ष बाद घोर अंधियारा होगा, परन्तु ये जानते नहीं है 'घोर अंधियारा सिर्फ नाम कह देते हैं । बाप कहते हैं- ये सभी विद्वान, आचार्य, पंडित कुछ भी नहीं समझते है और तुम सब कुछ जान जाते हो । तुम कुछ भी नहीं समझते थे । यह भी कुछ नहीं समझता था । अभी देखो, सारी रचता और रचना के आदि-मध्य-अंत को जान गया है । जो सन्यासी वगैरह कहते थे- बेअन्त है, ईश्वर तुम्हारी गत और मत न्यारी । तुम थोड़े ही कहेंगे गत-मत न्यारी । तुम तो बैठकर समझाते हो कि हम ईश्वर की गत जानते हैं- कैसे सद्‌गति करते हैं और कैसे श्रीमत से करते हैं हम जानते हैं । तो बच्चों को नशा रहना चाहिए ना । कितना बड़ा भारी नशा है । इसको ही कहा जाता है नारायणी नशा । नर से नारायण बनना, नारी से श्री लक्ष्मी बनना, क्योंकि एम-ऑब्जेक्ट तो एक होती है ना, दस तो नहीं होती है । एम-ऑबजेक्ट- बैरिस्टर बनेंगे मेल या फिमेल; परंतु नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार तो बनते हैं ना । तो बाप फिर बच्चों को कहते हैं- यह गायन है, बच्चे फॉलो फादर एण्ड मदर । अब जानते हो कि हमारे मदर एण्ड फादर जो न थे वो बहुत पुरुषार्थ करके बरोबर नम्बर वन एण्ड टू प्लेस में जाते हैं । इसको प्लेस कहेंगे । हम भी ऐसे फॉलो करें । जैसे मम्मा-बाबा बैठ करके समझाते हैं, तैसे हम भी बच्चों को समझाते रहें । हम भी ऐसा ही स्वीट बनें, जैसे ये स्वीट हैं । एक ये थोड़े ही हैं, इनकी डिनायस्टी ही स्वीट है; क्योंकि इनको भी तो जीतना है ना । बच्चे बाप के ऊपर जीत पहनते हैं । तो जीत पहनने से, वो जो बच्चे जीत पहनेंगे वो बड़े हो जाएँगे, वो फिर सेकण्ड नम्बर में ग्रेड में आ जाऐगे । वो तो नीचे उतरते जाएंगे ना । ऊपर जाते रहेंगे, नीचे उतरते जाएंगे । तभी बाप कहते हैं कि बच्चे तुमको मात-पिता के ऊपर भी जीत पहननी है, जो तुम फिर वर्से में आ सको, परंतु कैसे आएँगे वर्से में? बिलवेड मोस्ट बनो, बहुत-बहुत प्यारे । बस, तुम्हारे मुख से रत्न निकलें; क्योंकि तुम रूप बसंत हो । आखानी तो बहुत मनुष्यों ने बनाई है कि रूप बंसत । वो फिर दो भाई कह दिया । उनमें से रत्न निकलते थे । उन्होंने लिखा है- एक सोता था, एक जागता था । एक पुरानी- अखानी है । रत्न ले जाते थे, तो कोई मूल्य नहीं कथन कर सकते थे । बोलता था- जितना हमारे पास है, जो चाहिए सो ले जाओ, इतना-इतना मूल्य है । तो कोई दूसरी चीज का तो नहीं होगा ना, ये तो इस ज्ञान रत्न का मूल्य है । जवाहर का नहीं, जवाहर का तो मूल्य बाबा जानते हैं, खुद ही जवाहरी था; क्योंकि वणज में भी वणिज सबसे ऊँचा जवाहरात का गिना जाता है । तो देखो, वो जवाहरात हुए, इसको भी रत्न कहा जाता है । तो ये फिर एक-एक रत्न से तुम बच्चों को जो-जो धारणा होती है, तुम कहीं पदमपति बनते हो! पदम के भी पदम, अणगिनत । भला जिनके पास इतना धन है, जो इतना हीरे की बैठे ले करके और फिर उनमें ये पत्थर लगाते हैं, ये करते हैं । सिर्फ घर उनका । देखो कितने ये ज्ञान के रत्न! तुम जानते भी हो बरोबर, जितनी धारणा करेंगे इतना हम बड़े-बड़े ऊँचे महल भी और महल में सुखी भी रहेंगे । सदैव एवर हेल्दी, एवर वेल्दी एवर हैपी रहेंगे । हमको जैसे कि बाप वर देते हैं । वर तो मिलेंगे अच्छी-अच्छी, मीठी-मीठी सजनी को । जो मीठी-मीठी या मीठा-मीठा बच्चा बनेंगे, बाप उनके ऊपर खुश होंगे । अभी तुम जानते हो कि बरोबर बाप किन- पुरुषार्थियों के ऊपर खुश होते हैं; क्योंकि स्कूल चल रहा है ना । स्कूल तो अभी बहुत चलेंगे । तो भी स्कूल में बच्चे बैठे रहते हैं, क्या बाप नहीं समझते है? वो तो है हद का टीचर, यह है बेहद का । इनकी बुद्धि बड़ी लम्बी-चौड़ी । वो तो इतने बच्चे हैं, तो भी जब यहाँ बैठते हैं, मुरली चलाते हैं, जब तुम बच्चे न होते, बाकी थोड़े जा करके ... यानी क्यों यहाँ रहते हैं; क्योंकि ये बिचारे क्या करके करें? ज्ञान तो है नहीं । फिर कहाँ जावे सर्विस के लिए? तो फिर स्थूल सर्विस के लिए यहीं रह जाते हैं । बाबा ज्ञानी तू आत्मा को यहाँ बिल्कुल रहने नहीं देते । कहते हैं- जाओ-जाओ. यहाँ तो कोई सर्विस है नहीं । जाओ तुम भी जाओ । तुम ज्ञानी तू आत्मा, तुमको थोड़े ही बैठ करके किचन में, झाड़ पर या फलाने काम पर लगाएगा । जाओ-जाओ जा करके मनुष्य को जो बिलकुल ही कडवे हो गये हैं एकदम जैसे महाप्लेगी जीवड़े बं गये हैं उन्हें मीठे ते मीठा और निरोगी बनाओ..दूसरी बड़ी नाम देते हैं बीमारियों को, बड़ी कड़ी बीमारी होती है । तो बहुत रोगी बन गए हैं बिल्कुल ही । इनको कोई भी पता नहीं पड़ता है । कहते हैं कि बरोबर हमारी आयु एवरेज अभी गवर्मेन्ट की 35-30 है । तो रोगी हुआ ना । भोगियों की यह आदत और जो योगी....कहते हैं श्रीकृष्ण का । श्रीकृष्ण को महात्मा कहते हैं, योगेश्वर कहते हैं । तो बरोबर जब उन योगेश्वर का राज्य था तब मनुष्यों की आयु एवरेज सवा सौ- डेढ़ सौ बरस और अभी इस समय में रोगी बन गए हैं, तो एवरेज आयु ऐसी बन गई है । यह भी तो हिसाब करना चाहिए ना; परंतु कहने मात्र । जानते कुछ भी नहीं कि भला क्या वो था? वो कौन सा जमाना? यह भारत ऐसा कब बना? कैसे बना? बिल्कुल कुछ भी पता ही नहीं है । भला क्यों इनकी बुद्धि ऐसी मलीन हो गई? यह बुद्धि रूपी बर्तन जो सोने का था, उनमें विख-जहर भर गई । तो बस यह हालत हो गई है । अभी बाबा वो जहर निकाल, उसमें ज्ञान अमृत डालते रहते हैं । जो बुद्धि पत्थर का बर्तन बन गई है, उसको सोने की बना रहे हैं । अभी तुम आए हो बरोबर बिलवेड मोस्ट बनने के लिए, स्वीटेस्ट बनने के लिए तो बाप को फॉलो करना चाहिए ना । तुम्हारी बहुत मंसा जाती है, अंग्रेजी में कहते हैं थॉट वर्ड एण्ड डीड । यह किसके लिए कहते हैं? यह महिमा सारी इनकी है- थॉट वर्ड एण्ड डीड सर्वगुण सम्पन्न, सोलह कला सम्पूर्ण । सन्यासियों की यह महिमा होती है क्या? नहीं, यह इनकी है । दोनों की अलग है । बनाने वाले की अलग, इनकी अलग । उनको तो कहा ही जाता है मनुष्य सृष्टि का बीजरूप, मोस्ट बिलवेड ज्ञान सागर, शांति का सागर, सुख का सागर, पवित्रता का सागर । सब सागर ही सागर, नाम भी उनका है ज्ञान सागर, तो हर बात का सागर है ना । अभी उनकी महिमा अलग हो गई । अरे, प्रेजिडेंट की महिमा अलग, प्राइम मिनिस्टर की महिमा अलग, एम०पी० की महिमा अलग या अंधेरी नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी, टके सेर खाजा सभी भगवान ही भगवान । सर्वव्यापी भगवान । एक गवर्नर के यहाँ से कोई दो बड़े पंडित कल आए थे । बोले- हम तो भगवान हैं । अच्छा भई, तुम भगवान हो तो क्या इस सृष्टि के रचता हो? कैसे रचना रची? भला भगवान हो तो किसके पास आए हो? बोले- भगवान को भगवान के पास आने में क्या होता है! तुम भी भगवान, हम भी । ऐसे बहुत हैं, यह भी एक है- जिधर देखता हूँ तू ही तू है, तू ही तू । वाह-वाह! तू ही तू । यह देखो मक्खी है । वाह! तू ही तू- मक्खी को भी ऐसे कहेंगे । यह...अनुभव से बाबा बताते हैं । देखे हैं, अभी है ऐसा । हाँ, भगवान हैं । भला आए किसलिए हो? बस आए हैं अपनी लीला करने और देखने । अरे भाई, तुम पवित्र रहते हो? पवित्रता ! भगवान तो हमेशा ही पवित्र है । वो लीला करते भी पवित्र है । अरे, ऐसी-ऐसी बातें कहते हैं और खिलते-हँसते ऐसे हैं, जैसे कोई बड़े खुशी में आ गया- वाह-वाह! जिधर देखता हूँ भगवान ही भगवान है । समझा ना । तो बाबा कहते हैं, क्या ये मूर्ख देखो! बस, जो एक ने ऐसे कहा ना तो उनके फॉलोअर बन गए और इससे उनका नाम हो गया । अभी उनका वो पार्ट सिखलाने का । तुम समझे कि बरोबर वो आत्मा आ करके ये सभी सिखलाती है । जो भी तुम देखें, ये सभी कोई न कोई से सीखे हुए हो । बाप बैठकर कहते हैं- अभी देखो, तुमको बिलवेड मोस्ट बनना है जैसे कि तुम्हारा बाप है । जैसे तुम बनेंगे, जितना बनेंगे इतना बाप का नाम बाला करेंगे और तुमको दूसरे फॉलो करेंगे । अगर तुम उल्टे-सुल्टे चलेंगे तो बोलेंगे- ये क्या! इनको हम कैसे फॉलो करेंगे? इनको तो कोई भगवान पढ़ाने वाला नहीं देखने में आता है; क्योंकि भगवान पढ़ा करके एकदम मोस्ट बिलवेड बनाते हैं, स्वीटेस्ट ते स्वीट । तो देखो, गीत भी कितना अच्छा है । अरे भाई, एक सेकण्ड गीत को रिपीट करो; क्योंकि कथा पूरी हुई । इसको कथा कहते हैं । नॉलेज कहते हैं ना । इसको अखानी कहा जाता है । तुम बच्चों को यह मालूम हो गया है कि कहते हैं लॉन्ग-लॉन्ग यानी 5000 वर्ष पहले इस भारत में श्री लक्ष्मी नारायण का राज्य था । अभी ऐसा कोई भी मनुष्य नहीं है इसमें चाहे कितना भी विद्वान हो, ये कभी नहीं कह सकते । अभी कहते भी हैं- 3000 ईयर्स बिफोर क्राईस्ट यह भारत परिस्तान था या दुनिया परिस्तान थी । अभी देखो कहते हैं लिखा हुआ है । अरे, बिरला मंदिर में जाओ, पट्‌टा लगा हुआ है । बाबा ने एक दफा वहाँ देखा हुआ है कि बरोबर यहाँ धर्मराज ने 5000 वर्ष पहले परिस्तान स्थापन किया । पर सिर्फ पढ़ते हैं, समझते थोड़े ही हैं । जैसे कोई जनावरों ने पढ़ा । जनावर पढेंगे, वो कुछ अक्षर जानेंगे, सिर्फ जनावर बोल नहीं सकते हैं, मनुष्य बोलते हैं । बाकी अर्थ कोई थोड़े ही समझते हैं । तो सब अल्लाह के बच्चे सो सारे उल्लू के बच्चे बन जाते हैं । अप साइट डाउन । अच्छा, गीत सुनाओ बच्ची । मोस्ट स्वीट बनना है । तुम्हारे से ज्ञान के रत्न ही निकलने चाहिए और सबको मोस्ट स्वीट बनाना है । मुख से कभी भी कड़वाइस नहीं निकलनी चाहिए । कोई कड़वाइस निकली- पकड़ा! तुम देखो जानते थे, कराची में थे- कोई को गुस्सा आता था । अरे अरे अरे इनमें भूत आ गया है । चलो- उनको जाय करके वहाँ दूर बिठाओ । कोई इनके सामने नहीं जाए, नहीं तो तुम्हारे में भूत आ जाएंगा । बिठाओ इनको । फिर नाक से पकड़ करके .कान से पकड़ करके बाहर में जाय करके बिठाते थे । पता है तुमको पाकिस्तान में .इतनी-इतनी इनके ऊपर खबरदारी रहती थी । भूत! ये तो दूसरे मे भी भूत आ जाएगा इसलिए इनको ही दूर रखो अर्थात् जब कोई भी क्रोध करते थे, हियर नो ईविल । बस कोई क्रोध करे, हाँ, इनमें भूत है. .चले जाना चाहिए या तो बैठ करके मुस्कुराना चाहिए- वाह-वाह! तो उसमें मजा ही होता है । पीछे यहाँ तो कोई एकदम असल भूत होते हैं, कोई के सामने खड़े रहो तो उससे भी उनको गुस्सा आ जावे कि भूत को रेस्पांड क्यों नहीं देते? नहीं, हम भूत को रेस्पांड नहीं देते हैं; इस समय हम चुप रहते हैं । अच्छा, गीत सुनाओ अच्छा-अच्छा । तुमको एकदम स्वीट बनना है, क्योंकि बाप जो स्वीटेस्ट है, हम उनके बच्चे बने हैं । हम जानते हैं कि हम बाबा के पास जा रहे हैं, बाबा हमको मोस्ट स्वीटेस्ट बनाने आए हैं । बस, उस बिगर कोई स्वीटेस्ट बनाते नहीं हैं । अगर वो न आए, तो सतयुग में स्वीटेस्ट देवाताएँ फिर से कहाँ से आएँ? तो देखो आते हैं ना । नाटक है ना, ड्रामा है । सबको अपना-अपना पावन बनाय करके मुक्तिधाम में भेज देते हैं । तुम बच्चे जानते हो कि सब फिर अपना पार्ट बजाने आएँगे । पहले आदि सनातन देवी देवता धर्म आएँगे, फिर क्षत्रिय, फिर वैश्य, फिर शूद्र । फिर इस बीच में इस्लामी आएँगे, बोद्धी आएँगे, फलाना आएँगे । यह ऐसे हो करके, 5000 में यह झाड़ अब जड़जड़ीभूत हो गया है । अब फिर कलम लगाय रहे है । इसको कहा जाता है सैम्पलिंग । किसकी सैम्पलिंग? इनकी? देवी-देवताएँ आदि सनातन धर्म की सेम्पलिंग । तो जो जो मोस्ट बिलवेड स्वीट बनेंगे , बस समझो कि वो नम्बरवन में जाएँगे । और मेहनत भी क्या है? याद करो, सिमरो । सिमर-सिमर सुख पाओ, कलह-कलेश मिटे सब तन के । बाबा, कहाँ तक मिटेंगे सब तन के? हम भला निरोगी कब बनेंगे, कलेश कब छूटे? अरे मीठे बच्चे, तुमको 21 जन्म कभी भी कोई रोग का जरा नहीं होगा । तुम कभी रोएंगे नहीं । तुमको कोई भी व्याधि नहीं लगेगी; परंतु नम्बरवार क्योंकि मैं तुमको फर्स्ट क्लास जूता देता हूँ जिसको बूट कहा जाता है । ये बूट कभी पुराना नहीं होगा, अगर पुराना होगा तो थोड़ा-थोड़ा और जो त्रेतायुग है, उसमें बड़ा अच्छा रहेगा । पीछे द्वापर से इनको रोग लगेगा । अभी समझ तो गए हो ना । इसलिए बिल्कुल ही स्वीट बनो । तुमको पर्टिकुलर इस भारत को स्वीट बनाना है; क्योंकि जब भारत स्वीट है तो दूसरे कोई होते ही नहीं हैं । समझा ना; क्योंकि बाप की भी तो बर्थप्लेस भारत है ना । और कहाँ जाएँगे? भारत में ही आएंगे । समझा ना । बाप आएंगे भारत में और गाया भी हुआ है कि मगध देश में आते हैं, मगरमच्छ जैसे । तो बरोबर ये सिंध है ना । मगरमच्छ वहाँ है भी बरोबर । एक मंघा पीर है, उनमें मगरमच्छ रहते हैं । बड़ा तालाब है, उनमें मगरमच्छ रहते हैं । तो पता नहीं, नाम ही ऐसा पड़ गया है बरोबर मगध देश में । शिवबाबा भी वहाँ आते हैं । ब्रहमा भी यहाँ से निकला हुआ है, सरस्वती भी वहाँ से निकली हुई है । नाम पड़ा हुआ है उनका तो आते भी हैं । तो उनमें थोड़ा-थोड़ा कुछ न कुछ लिखा है । तुम बरोबर जानते हो कि बाबा कहाँ आए? बॉम्बे में आए या करांची में; परन्तु शुरू किया जा करके मगध देश में । साक्षात्कार वगैरह तो बच्चों को मालूम है, कहीं भी किया । बॉम्बे में किया, कलकत्ते में किया । जब बाबा की प्रवेशता थी, पता नहीं क्या हो गया । बाबा ऐसे आ करके, किसके सामने बैठते थे तो ध्यान में चले जाते थे । मैं वंडर खाता था, क्या है ये! इतना ध्यान में जल्दी चले जाते हैं! तो वो समझते थे कि जरूर इसको जादू है । ये कोई जादूगर है या कोई हिप्नोटिज्म है । अच्छा, सात बजे हैं । गीत सुनाओ । ...... हमारा शास्त्र तो देखो, ये गीत निकाला है । अभी ये भी तो सिस्टम पड़ गई है । जरूर कल्प पहले भी ऐसे ही हुआ होगा, इनमें से जो मुख्य मुख्य है जिसका अर्थ, हैं सब उनके बने हुए, उनको फिर ट्रान्सफर करते हैं । हाँ, चलाओ । (रिकॉर्ड बजा). जितने-जितने आते जाएँगे, यह महफिल बेहद की है । आया हुआ हूँ बेहद के बच्चों की महफिल में; परंतु कोटो में कोऊ कोऊ में कोऊ, कोऊ में कोऊ हैं, जिनको फिर मनुष्य से देवता बनना है । हूबहू कल्प पहले मुआफिक वो सेम्पलिंग लगती जाएगी । सैम्पलिंग लगते- लगते- लगते वो देवी देवता आदि सनातन धर्म की स्थापना यहाँ होने की है । बस, पीछे कोई भी धर्म की स्थापना नहीं होती है । कोई भी अवतार जिसको मैसेंजर कहा जाता है, आता नहीं है । बस अभी मैसेंजर आया है, यह आकर ब्राहमण धर्म, देवी-देवता धर्म और क्षत्रिय धर्म स्थापन करता है । पीछे द्वापर से नंबरवन में मैसेंजर आते हैं, जो दूसरा धर्म स्थापन होते हैं । इनमें कोई भी धर्म दूसरा नहीं स्थापन होता है । बाकी आधा कल्प में ढेर के ढेर धर्म स्थापन होते हं। । एक पिछाड़ी दूसरा, दूसरे के पीछे तीसरा, तो देखो कितने अनेक धर्म हो गए । (रिकॉर्ड :- बच के नजरों से मेरी कहाँ जाओगे?......) कली होती है ना । काँटे से कली, कली से फूल ।.. बच्चियों जब पुकारती हैं, तब दिल्ली में जाते हैं, कानपुर में जाते हैं । ऐसे-ऐसे बाहर जाते हैं ना । भगवान अब यहाँ जाते हैं, बॉम्बे में जाते हैं रथ पर सवार हो । बाबा कहते हैं- कितना देखो हमारा यह रथ है । नंदीगण इसको कहते हैं । तुम बच्चों को मालूम है? वो जो मंदिर में बैल बिठाते हैं, इनके ऊपर बैल थोड़े ही बैठेगा । बैल के ऊपर सवारी थोड़े ही होगी । जैसे मोहम्मद होते हैं ना । उनको घोड़े के ऊपर पटका रख देते हैं । तो घोड़े के ऊपर थोड़े ही सवार हुआ होगा । मोहम्मद आ करके मुस्लिम धर्म स्थापन किया होगा । उसने बैल बनाया, मुसलमानों ने घोड़ा बना दिया । हुसैन का घोड़ा । यह हुसैन का बैल । हुसैन है ना । तुम बच्चों को काले से गोरा बनाते हैं ना । एक है मुसाफिर, बाकी तुम हो सब काली सजनिया । तुमको बैठ करके बिल्कुल ही एकदम खूबसूरत बनाते हैं, एकदम स्वर्ग की परियों बनाते हैं । एक खेल भी है । एक था मुसाफिर, दूसरी थी हसीना । तो एक मुसाफिर आ करके अरे, देखो तुम बच्चों को कितना हसीन बनाते हैं । यह मुसाफिर भारत को कितना हसीन बनाते हैं । है ये कथा; परंतु वो लोग तो ये कथा बना देते हैं अगड़म-बगडम । (रिकॉर्ड :- हम पुकारेंगे और तुम चले आओगे...... तुमसे मिलने मुझको यहाँ आना पड़ा देखो, कितनी सीधी बात है । हुआ ये ज्ञान, फिर से मुझे आना पड़ा । फिर-फिर से मुझे आना ही पड़ेगा । अब जुदाई कहाँ! अभी तो हम तुम सबको ले जाएंगे । देखो, साजन कहते हैं तुम सजनियों की ज्योति जगाकर हम सबको वापस ले जाएंगे । तुम जानते हो कि बरोबर हम इसीलिए कहते हैं- हम बाबा के पास चले जायें, यह देह-अभिमान छोड़ देही-अभिमानी बनें । मजा है ही, सब देही-अभिमानी बन और उनको याद करना । बच्चों को भी कहते हैं- मुझ एक को करो, और संग बुद्धि का योग तोड़ दो । जरूर पुरुषार्थ करेंगे तो यहीं करेंगे ना । गृहस्थ व्यवहार में रहते हुए बस तुम मेरे को याद करो । बिलवेड मोस्ट चिल्ड्रेन नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार वा लाल तो हैं ही लायक । शाबाश! कितना बड़ा .... मुरली नहीं पढ़ते हैं, टेप सुनते हैं । तो टेप सुनाने वाले सम्मुख सुनाय रहे हैं और बिलवेड मोस्ट इनको बनाते हैं । अटेंशन है; क्योंकि यह मोस्ट बिलवेड बन जावे, तो अनेक बड़े-बड़े आदमियों को बिलवेड मोस्ट बनाएगा । गरीब होगा तो गरीब को सुनाएगा और थोड़ा पोजीशन अच्छा होगा तो और ऊँचे को बनाएगा । ऊँची की सेवा होगी तो वो आवाज निकलेगा । गरीबी कोई ना पूछे बात!. .... डान्सिंग गर्ल्स होती हैं ना । तो वहाँ जो डांस करे और अच्छे शौकीन कहें- वाह ।वाह! अगर वो डांस करती रहे, और सब चुप करके बैठे रहें, तो बिचारी का पैर भी पूरा नहीं चले । बोलेंगे- सब शायद भुटटू बैठे हुए हैं । तो जब यहाँ भुटदू बैठते हैं, तो बाबा की डांस कम चलती है ।.. हाजुर और नाजुर अंग्रेजी में क्या कहते हैं? तीन अक्षर कहते हैं ना- ओमनीप्रेजेन्ट ओमनीसियेन्ट ओमनीपोटेंट । ये अंग्रेजी अक्षर है । यानी उसमें फिर कहते हैं- भगवान को मैं हाजिर-नाजिर जान । अभी न है हाजिर, न है नाजिर । कितने सब झूठ बोलते हैं । अभी झूठ किसने बोली? सबसे अच्छा दिल्ली का चीफ जस्टिस और श्री राधाकृष्णन, जिसको श्री-श्री कहते हैं । आजकल तो श्री-श्री सबको कह देते हैं, श्री लक्ष्मी नारायण या तो श्री मिस पूसी श्री कुत्ते का नाम, बिल्लियों का नाम भी श्री-श्री रखते हैं । मुसलमान भंगी मेहतर, जो आया सबको श्री कह देते हैं । देखो, क्या वण्डरफुल है! वो बन्दर होते हैं ना, .शादी करेंगे । सब बन्दरों की बाबा टाइटिल देते हैं श्री, सबको श्री । आए थे ना । मिस्टर एंड मिसेस थी । ...... .यह श्री श्री और फिर बाकी जो गुरु लोग हैं, उनको फिर डबल श्री । बाबा की और बच्चों की सारी टाइटिल यहाँ कलहयुग में ये असुरों को दे दिया और आपे ही अपन को लिखते हैं- श्री फलाना, श्री फलाना । नहीं तो कोई भी अपने को श्री नहीं कहते । अरे, जो गवर्नर लोग होते हैं ना वाइसलर.. ..... ..वो नहीं लिखेगा हम वाइसलर है । नीचे में लिखेंगे कर्जन । पीछे खुद का वो लिख देगा नीचे में माई लॉर्ड फलाना । तो बाप भी कहते हैं- देखो, मैं तो तुम बच्चों का ओबीडियेंट सर्वेन्ट हूँ तुम्हारी सेवा में उपस्थित रहता हूँ । क्या है बच्ची? हम ऐसे ही कहेंगे स्वीटेस्ट बापदादा का बिलवेड मोस्ट स्वीटेस्ट चिल्ड्रेन प्रति नम्बरवार पुरुषार्थ...... .कहना पड़ता है, क्या करें? नहीं तो सबको ऐसे ही कह, परंतु हैं स्कूल में नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार । अगर टीचर भी होगा तो भी कहेगे- नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार नमस्ते । अगर नहीं कहते हैं, तो .... ये भुटटू है; क्योंकि सभी कोई एक जैसे थोड़े ही होते हैं, जो स्कूल में पढ़ते हैं । तो जो कम पढ़ते हैं वो मास्टर का नाम बदनाम करते हैं । अगर स्कूल की रिजल्ट कम आ जाएं तो गया मास्टर का नाम, परंतु नहीं, इनकी कब कम रिजल्ट कम नहीं आती है; क्योंकि यह तो कल्प-कल्प जानते हैं कि मेरी रिजल्ट नम्बरवन आती है और स्वर्ग बन जाता है । इनको नशा है ना । अच्छा, ऐसे-ऐसे मीठे-मीठे बापदादा का सिकीलधे बच्चों प्रति यादप्यार और गुडमॉर्निग ।