26-07-1964     मधुबन आबू     रात्रि मुरली    साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हेलो, गुड इवनिंग यह छब्बीस जुलाई का रात्रि क्लास है
बच्चे जानते हैं कि मीठी-मीठी जगदम्बा आ रही है, क्योंकि उनका नाम है ही जगदम्बा सरस्वती । इनका नाम कोई सरस्वती तो है नहीं । इनका नाम कोई है नहीं वास्तव में । कहते हैं मात-पिता, पिता का तो नाम है, माता का नाम ये हो नहीं सकता है । माता ही नहीं है, न ही इनको कोई सरस्वती कह सकते हैं । कह सकते हैं? इसलिए जगदम्बा मम्मा निमित्त है । अभी क्या विचार आता होगा बच्चों का? ये करें, वो करें । है किसका विचार कोई? (किसी ने कहा- किसको करें? हम सेन्टर्स पर करते हैं ।) सेन्टर पर करते हैं; क्योंकि मुलाकात तो इस हॉल में होगी । फिर बच्चे भले ख्याल करे, पीछे बतावें या कल भी बता सकते हैं । (बच्ची ने कहा- जिन-जिन्हों को इच्छा हो तो अभी भी सुना सकते हैं) बोल देवें तो अच्छा है । कोई प्रकार के सेलवेशन की जरूरत हो तो बता देवें । मम्मा रोज आ करके कचहरी भी करेगी । (बच्ची ने कहा- हाँ) बाबा कचहरी नहीं करता है । क्यों? चाहे इस समय कोई झूठ बोले तो और ही सौगुणा दण्ड पड़ जाएं । मम्मा पूछेगी और अगर झूठ भी बोल दिया तो भी सौ गुणा दण्ड नहीं पड़ेगा । यह तो बाप पूछते हैं । एक राइट हैण्ड में है बाप, दूसरे सैफ हैण्ड में है धर्मराज । कचहरी तो वो ही आकर करेंगी । बच्चों की कोई राय हो, किसी ने कोई प्रोग्राम बनाया हो तो बाबा उनको करेक्ट कर देंगे । आपस में कोई बात निकाली है? (बच्ची ने कहा- ऐसे नहीं मिली है, कोई- कोई...., क्योंकि मम्मा के ऊपर बच्चों का प्यार तो बहुत है । जैसे अंदर जाती है तो बच्चों को फूल दिए जाते हैं तो उनके ऊपर नंबरवार बच्चे वर्षा करते जाते हैं । जो भी बच्चे होते हैं लाइन में खड़े रहते हैं । वो मम्मा के ऊपर वर्सा करता जाता है । आगे ये करते थे । (बच्ची ने कहा- इनका मतलब है...गेट से लेकर के यहाँ तक....) बाबा ने कहा- नहीं, मैं गेट के तरफ में कुछ भी झंडे-वंडे नहीं लगाने दूँगा । यह फिर कभी किया नहीं है, न करेंगे; क्योंकि हम गुप्त हैं ना । कोई भी महिमा करनी है तो अंदर, बाहर नहीं । जब तलक बैठें, लाइन कर देंगे, यहाँ से दो लाइन शुरू होवे, यहाँ से दो लाइन आये, बस वो निकलती जावे, आ करके बैठे । (बच्ची ने कहा- यहाँ से आ करके... ..सामने)... ..फूल-वूल चढ़ाना अन्दर । फूल भी यहाँ अंदर पड़े होंगे । अच्छी शोभा देंगे । ... .है तो वो ठीक रहेगा । मोटर को आ करके यहाँ खड़ा कर देंगे । थोड़ा हाथ-मुँह धोएंगी या क्या करेगी । करती तो नहीं है । (बच्ची ने कहा- सीधी आती है क्लास में).... बच्ची ने कहा- कल दूध की टोली भी बना देंगे, पेड़ा) दूध के पेड़े होते हैं और कोई फल-फूल तो हैं ही अपने पास । (बच्ची ने पूछा-. ..गीत ?) वो सुन्दर हो, वो तो गीत शायद इसमें भी है । यहाँ तुम बच्चों को बैठ करके गाना है तो भले गाओ । गाने के लिए तो सिर्फ बूढ़ी जाती है और विश्वरत्न जाएँगे । (बच्ची ने कहा- विश्वकिशोर) वो तो जाऐगे ही । वो तो.. .में जाने के हैं । कहाँ बैठा है?. ..फिर आना होता है .. । जितनी गुप्त है इतना अच्छा है ; क्योंकि इन आसुरी सम्प्रदाय की यह जो रसम-रिवाज है उनसे हमको वास्तव में कोई भी रिपीट या कॉपी नहीं करनी है । भले ये कहाँ-कहाँ प्रभातफेरी निकालते हैं; परन्तु बाबा के दिल पर वो भी नहीं चढ़ती है; क्योंकि ये भी हंगामा, आसुरी दुनिया कोई वक्त में कुछ पत्थर फेंक देवें कोई ऐसा एण्टी हो तो नुकसान कर देवे । वो भी....नहीं पाती हैं । सर्विस बहुत अच्छी कर सकते हैं । बाबा ने तो बहुत समझाया है कि लक्ष्मी नारायण के बड़े-बड़े चित्र निकलने चाहिए । ये लक्ष्मी नारायण के छोटे-छोटे चित्र निकले हैं क्या? श्मशान में जाओ और वहाँ जा करके समझाना पड़े कि भई, कहते हैं कि स्वर्गवासी हुआ । फिर ये स्वर्ग किसको कहा जाता है? वहाँ जाकर कुछ समझावे या भाषण करें तो कोई हर्जा नहीं है; क्योंकि वहाँ कोई भी डिस्टर्ब नहीं करेंगे । बकवाद नहीं करेंगे । प्रभातफेरी में हमेशा डर रहता है कि कोई पत्थर न फेंके, कोई कैसी चंचलता ना करे ।..कोई का सामना नहीं करना है कि आर्यसमाजी करते हैं तो हम भी जाकर सामना करें, वो भी नहीं करना है । इसलिए ही विकार के कारण विघ्न बहुत पड़ते हैं । बहुत विघ्न पड़ते हैं जहाँ-तहॉ गरीबों में, साहूकारों में । गरीबों में तो चल जाता है, साहूकार तो बड़े बिगड़ते हैं । धनवान हैं ना । देखो तो ये मालूम है ही नहीं कि अभी पवित्र दुनिया स्थापन हो रही है । माँगते भी है, चाहते भी हैं कि नई दुनिया नए भारत । अभी मुश्किलात है कि नए भारत में सभी निर्विकारी थे, ये भी किसको पता नहीं है, क्योंकि कृष्ण जो पहला-पहला प्रिन्स है, बच्चा है, उनके लिए ही इतनी बकवाद कर दी है । बोलते हैं- वाह! परम्परा से.. ... रहते हैं, इतनी कृष्ण को भी .... हैं । कोई की बुद्धि में बैठता नहीं है । छेने पड़े हुए हैं, जैसे कि गोबर भरा हुआ है । सर्वव्यापी का ज्ञान ही है, जिससे कि सबकी बुद्धि में गोबर भरा हुआ है । बच्चों को बड़ी युक्ति से, क्योंकि ब्रहमाकुमारियाँ सब तो एकरस हैं नहीं । कई-कई तो बहुत डिस्ट्रक्शन भी कर देती हैं । ज्ञान पूरा न होने के कारण, कोई अच्छा आदमी आए भी और उनको प्रश्नोत्तर का जवाब न दे सके तो वो कहेगा कि वाह! ये ब्रहमाकुमारियाँ हैं! चलो, सबके ऊपर कलंक लग जाता है । तो इस राजधानी स्थापन करने में डिफीकल्टी है; क्योंकि ऐसे कोई जानते ही नहीं हैं कि बाप आ करके राजधानी स्थापन करते हैं । राजयोग को भी ले गए, कृष्ण के हाथ मे दे करके द्वापर कर दिया । तो तुम्हारी सब बातें नई हैं । नई दुनिया के लिए, नए धर्म के लिए हमेशा नई बातें होती हैं । अभी ऐसे भी नहीं है कि कोई नई है । राजयोग की बात है तो बहुत पुरानी; परन्तु नाम-टाम सब बिगाड़ दिया है । तो इसलिए वो बिगड़ते हैं, क्योंकि उनके शिष्य उनकी कमाई जाएगी ना, क्योंकि जितना उनको ये निश्चय होता है इतना बच्चे जानते हैं कि ये जो विद्वान-आचार्य-गुरु हैं उनको तुम लोग बुद्ध कह देते हो, मूर्ख, करप्टेड एडस्ट्रेटिव(मिलावटी) । देखो, जिनका इतना सारा मान है, अभी भी देखो, अखबारों में पढ़ते हैं, साधु-समाज का नाम आता है । साधु-समाज को इकट्‌ठा करते हैं कि फलाने में ये जो एडलट्रेशन है, इनमें ये भी मदद करें । अभी ये क्या मदद करेंगे ये खुद ही... बाबा ने उस दिन कहा था कि जब ये लिखते हैं कि गवर्मेन्ट को ये मदद करेगा, तो पहले पहले कोई होवे जो तीखी बोले- नम्बरवन एडस्ट्रेटिव और करप्टेड तो ये साधु समाज है । समाज में सब आ जाते हैं ना; परन्तु ऐसा अभी कोई निकला नहीं है । निकले तो कोई हर्जा नहीं है; क्योंकि उनको करेक्ट तो जरूर करना ही है । न कोई ऐसा अच्छा निकला है जिनकी आवाज कोई अच्छी तरह से सुन सके । देखो, पंजाब के चीफ मिनिस्टर ने भी लिखवाया था कि भई, ये संस्था बड़ी पवित्र बनाने वाली है । मालूम है...? जयपुर में भी एक मिनिस्टर निकला था उसने भी कहा था इनकी सस्था बड़ी पवित्रता स्थापन करने वाली है । .... जब तलक कोई बड़ा विद्वान निकले, भले दूसरे धर्म का होवे.. ..या कोई भी बड़ा हो जिसके बहुत फॉलोअर्स हो वो जब कहे, दो-तीन निकले, तब तुम्हारा प्रभाव बढ़े । बढना है जरूर, परन्तु अभी तलक जैसे बाप कहते हैं कि गुप्ता जी वहाँ बनारस में गए हैं, जहॉ से ये टाइटिल मिलते हैं । अभी तलक शायद ड्रामा में देरी है प्रभाव निकलने में । तो उनका बाण भी फालतू जाता है, किसको लगता नहीं है । घड़ी-घड़ीघड़ी... करते हैं, फिर लौट आते हैं । आखिर में तो निकलेगा । बच्चों को यह तो समझना ही चाहिए कि बीती सो बीती देखो । बस । इस समय तक राजधानी स्थापन होनी थी । अभी आगे होनी तो है सारी । जो बीता वो एक्युरेट ड्रामा बीता । फिर उनमें कुछ भी हुआ, जो कुछ भी विध्न पड़े अथवा ख़ुशी भी निकली । बस, ड्रामा अनुसार यही था, जो पार हुआ । इसमे भी सबका एक अच्छा निश्चय होना चाहिए । निश्चय बिठाते हुए भी, फिर भी वो कोई-कोई बात में निश्चय से संशय मे आ जाते हैं । कहाँ न कहाँ माया का कोई न कोई बाण ऐसा लग जाता है, जो संशय बुद्धि बन जाते हैं । तो एक तरफ में ईश्वर का बाण, दूसरी तरफ मे माया का बाण । ये लड़ाई है ना । तो बरोबर चलते-चलते, अच्छा भी समझते हैं, फिर भी माया का बाण ऐसा लगता है, जो कोई न कोई बात में संशय बुद्धि बन जाते हैं । तो है वण्डरफुल बाबा और बच्चे भी वण्डफुल हैं । गुप्त वेश मे स्थापना कर रहे हैं । बाप भी गुप्त, बच्चे भी गुप्त । बरोबर तुम देहधारी हो, परन्तु फिर भी गुप्त हो ना । बाबा ने कल भी समझाया ना कि तुम कोई के ऊपर लड़ाई थोड़े ही करते हो जो विजय का नाम लेते हो । ये जरूर है कि पाण्डव विजय पाते हैं । पर कैसे? अगर पाण्डव विजय पावें तो फिर कौरव-पाण्डवों की लड़ाई सिद्ध हो जाती है । इसलिए विजय का अक्षर भी हम ले नहीं सकते हैं । हाँ, ये जरूर है कि निश्चयबुद्धि वैजयन्ती माला में पिरोए जाएंगे । यह ठीक है । हंगामा वगैरह भी ठीक नहीं चलता है । गुप्त सर्विस करते रहो । चैरिटी बिगन्स एट होम । अपने घरवालों को... . ..कोई जिस्मानी तीर्थ यात्रा पर जाते हैं, तो भी आपस में मित्र-संबंधी, बिरादरी वाले मिल करके चले जाते हैं । तुम भी यहाँ आते हो दिल्ली से इस यात्रा पर । तो देखो, बहुत ही अपने मित्र-सम्बंधी फलाना कहते है, हम भी चलें, हम भी चलें । दिल हो जाती है कि बाबा के पास चले । ये यात्रा है यहाँ बाप के पास आने की, क्योंकि यहाँ आने से बाप भी फिर वो यात्रा सिखलाते हैं, क्योंकि सुमुख कहने से वो लगता है । बच्चे-बच्चे कहते रहते हैं । बच्चे, अभी नाटक पूरा होता है । अभी वापस चलना है । मैं आया हूँ तुम बच्चों को गाइड करने और माया के पाँच विकारों से जंजीरो से छुड़ाने । तो देखो, लिबरेटर गाइड और पण्डा- अक्षर तो गाए जाते हैं । बरोबर फिर सेलवेज भी करते हैं । बेड़ा बूढ़ा हुआ है तो जैसे कि तुम बच्चे मिल करके इस भारत को सेलवेज करते हो । बेड़ा खुला हुआ है ना! ... देखो, कैसी हैँ बेड़ा पार करने के लिए- बुडिढयॉ! भारत का बेड़ा पार करने के लिए कैसी- बच्चियां हैं देखो । क्यूजिक बजा) ये हिरी हुई है भक्ति में गीत गाने के । भक्ति में गाते हैं ना । ज्ञान में गीत की दरकार नहीं है... । बाबा कहते हैं भक्ति की जो कुछ रसम-रिवाज हैं वो यहाँ नहीं, यहाँ तो चुप । अनपढ़ और चुप । (म्यूजिक बजा) मात-पिता और बापदादा का मीठे-मीठे सिकीलधे ज्ञान-सितारों प्रति यादप्यार और गुडनाइट ।