26-07-1964     मधुबन आबू    प्रात: मुरली    साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हेलो, स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुलभूषणों को हम मधुबन निवासियों की नमस्ते, आज रविवार जुलाई की छब्बीस तारीख है, प्रात: क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।

रिकॉर्ड :-
हमारे तीरथ न्यारे है, यही धरती के. तारे है......

ओम शांति! मीठे-मीठे पतित से पावन बनने वाले और ज्ञान वर्षा से । ज्ञान को वर्षा भी नहीं कहेंगे; क्योंकि भेंट करते हैं । बरोबर इस ज्ञान वर्षा से सारी दुनिया पावन बनती है । अब ये सारी दुनिया में वर्षा तो नहीं पड़ती है । वर्षा तो सब जगह पड़ती है । पर यहाँ फिर गाया हुआ है, जो पिया के साथ है, उनके लिए बरसात है । बच्चे ये जानते हैं कि अभी तुम बाप के साथ में हो । चाहे तुम यहाँ हो, चाहे कहाँ भी हो । जो बाप को याद करते हैं, उनको जहाँ भी याद करें, उनके लिए वहाँ ही बरसात है; क्योंकि याद कर रहे हैं ज्ञान सागर को । तो याद ही बच्चों के लिए बरसात है । बाबा कहते हैं ना कि जितना-जितना जो याद करेगा वो कितना भी अजामिल जैसा पतित होगा वो पावन बनता जाएगा । तो देखो, जो पिया के साथ में है वा दूर है; परन्तु दूर भी रहकर बच्चों को पावन तो बनना है ना । भले कितना भी दूर हो, घर में बैठे हों । उस ज्ञान सागर की याद ही बच्चों को पावन बनाती है । अब ये तो जरूर बच्चे समझते हैं कि हर एक चीज आग में पवित्र बनती है । देखो, जेवर होते हैं तो उसको आग में डालते हैं । फिर गल करके उनमें से खाद निकल जाती है । कुछ ना कुछ मसाला जरूर डालते हैं । तो इनमें कोई और मसाले की याद नहीं रहती है । एक तो याद । फिर याद से तुम पवित्र तो बन जाती हो, फिर तुमको मसाला चाहिए ज्ञान का, जिससे तुम वर्सा पा सको । याद से, जिसको याद अग्नि या योग अग्नि कहा जाता है, उसमें रहने से तुम्हारी आत्मा कंचन बन जाती है । तुम्हारा शरीर तो कंचन यहाँ नहीं बनता है । तुम्हारी जो आत्मा है वो बाप की याद से कंचन बनती जाती है । देखो, बाप की याद में कितना प्रभाव है; क्योंकि वो तो सच्चा सोना है । तो याद से ही तुम बच्चे कंचन होते जाते हो । याद के लिए बाबा कितना समझाते हैं । रात-दिन समझाते रहते हैं । अभी रात-दिन तुम अपने ऊपर बरसात बरसाय सकते हो । याद ही तुम्हारे लिए बरसात है, क्योंकि याद से ही फिर वर्सा भी तो मिलता है ना; क्योंकि बाप की याद है तो वर्सा जरूर याद आता है । देखो, तुम बच्चों के लिए कितना सहज है । कहाँ भी हो, ऐसे नहीं है कि कोई को यहाँ बैठकर स्कूल में पढ़ाना है । नहीं । तुम कहाँ भी हों, कहाँ भी तुम्हारे प्राण चले जाएँ, कितने भी दूर देश में, सिर्फ याद करने से ही तुम्हारी आत्मा कंचन बनती जाती है । फिर जरूर जब तुम प्योर बन जाते हो तो तुम्हारा जो शरीर है और ये जो दुनिया है ये पावन हो जाती है । तो तुमको शरीर भी फिर पावन मिलता है धातु से । ये पॉच हैं, इसको धातु कहा जाता है- आकाश, वायु इत्यादि । अभी ये...तो तुम बच्चों को सिखलाई जाती है, और कोई तो जानते नहीं हैं; परन्तु तुम्हारे रहने के लिए पावन सृष्टि जरूर चाहिए । तो तुम्हारे खातिर बाप को ये जो पतित सृष्टि है, उनका विनाश जरूर करना पड़ता है ड्रामा अनुसार । वो तो अपना हिसाब-किताब खलास ही कर देते हैं । तुम जानते हो कि हमारा हिसाब-किताब जो पाप का है, उन पापों को जलाना है । जलाना है सो भी अग्नि में । वो अग्नि नहीं है, ये ज्ञान अग्नि जब कहते हैं तो समझते हैं कि सीताएँ, अभी एक सीता की तो बात नहीं है ना! एक सीता को पवित्र होने के लिए आग से पास करना पड़ा । रामायण में कथा सुनी है? सीता के ऊपर दाग लगा कि तुम कुटिया में जा करके रही हो या रावण के पास रही हो, तो जरूर कोई दाग लगा होगा । तो आग बना करके उनसे उनको पार कराते हैं । बहुत ही ठग लोग होते हैं, वो दिखलाते हैं कि हम भी आग से पार हो सकते हैं । तांडे बहुत डाल देते हैं चार कोस और फिर उनके ऊपर से वो पास हो जाते हैं । अभी ऐसे तो कोई पास नहीं हो सकते हैं, जरूर कोई युक्ति होगी । कुछ ना कुछ मसाले लगाते हैं । मनुष्य वण्डर खाते है । वो तो हुई स्थूल बातें । यहाँ सिर्फ तुम बच्चे जानते हो अच्छी तरह से कि तुम सीताएँ उन्हों के ऊपर माया का, विकार का कलंक लगा हुआ है । ये कलंक लगता है ना! माया आ करके हमको पवित्र से अपवित्र बनाती है, कलंकित करती है, काला करती है । तो तुम बच्चों को सीताओं को, बाबा ने समझाया तुम बच्चे सभी सीताएँ हो । तुमको पार होना है । ये जो योगाग्नि है उसमें तुम्हारे जो भी पाप हैं सभी धोये जाते हैं । तो देखो, कहाँ की बात समझने की कहाँ सीता के ऊपर ले गए हैं । बाबा कहते हैं ना कि एक सीता नहीं है, सब सीताएँ हो । ये पुरुष भी सीताएँ हैं इस समय में । ये सजनियॉ हैं और इनको इस आग से पार होना है । इस विनाश के समय में भारत में काम अग्नि की वर्षा हो रही है, ऐसा कहेंगे । दुनिया में काम अग्नि की वर्षा है, तो उनको बुझाने के लिए बाबा कहते हैं कि तुमको याद अग्नि में या योग अग्नि में रहना पड़ता है । तो देखो, इसमें कोई तकलीफ है! कुछ भी नहीं और कोई डर की भी बात नहीं है । अग्नि-वग्नि वो तो है नहीं । बरोबर भंभोर को आग तो लगनी है और उस आग से कोई तुम पावन नहीं बनते हो, न ही ऐसे कोई दूसरे मनुष्य समझते होंगे कि यह जो आग लगती है, इस आग के कारण, वो जो होलिका होती है ना, वैसे ही कोई आत्माएँ पावन बन जाती हैं । नहीं । जो बाकी हैं उनको तो पापों की सजाएं खानी पड़ती है और तुम इस अग्नि को पार कर, याद की अग्नि से तुम सीताएँ पवित्र बन रही हो । तो तुम बच्चे अभी अपन को सीताएँ समझते हो ना । 'सीता का अक्षर लगता है राम से । सबका सद्‌गति दाता राम है । राम की तो सीताएँ गाई गई हैं ना । तो देखो, बाबा समझाते हैं तुम सभी सीताएँ हो जो बैठकर अपने बाप राम को याद करती हो । कहा जाता है तुम, दूसरा नहीं । अब ये सब तो सीताएं नहीं बनती हैं ना इस समय में । तुमको बाबा पार ले जाते हैं । तुम जानती हो कि बरोबर बाबा आया हुआ है और हमको उस पार ले जाने के लिए युक्तियाँ बता रहे हैं । अब ये माझी-वाझी या खिवैया की बात नहीं है जो पानी से बाहर ले जाते हैं । यह समझानी है बच्चों को कि इस विषय सागर से तुम पार कैसे होती हो जबकि तुम बच्चियाँ याद में रहती हो । याद की यात्रा कही जाती है । विषय सागर से अमृत सागर या क्षीर सागर में जाने के लिए तुमको क्या मेहनत करनी पड़ती है? हम याद में रहते हैं । फिर क्या होगा? इस विषय सागर से या विकारी दुनिया से या इस कुम्भी पाक नर्क से तुम आपे ही पार हो जाते हो । कोई थप्पड़-वप्पड़ नहीं लगाते हैं, कुछ भी नहीं है । ना ही तुम्हारा कोई हाथ पकड़ा जाता है । तुम सिर्फ बुद्धि से कहती हो बाबा मैं आपकी हूँ । कोई हाथ की दरकार नहीं है, फलाने की दरकार नहीं है । सिर्फ बुद्धि से याद करना है । इसमें बुद्धि काम करती है, आत्मा मेहनत करती है । दुनिया नहीं जानती हैं कि हम आत्मा मेहनत करती हैं, शास्त्र पढ़ती हैं, विद्वान बनती हैं । हम आत्मा बैरिस्टर बनती हैं, जज बनती हैं, ऐसे कभी कोई नहीं कहते हैं । इस समय में सिर्फ तुम बच्चियाँ जानती हो कि हम आत्मा सो बाप को याद करते हैं । इससे हम इस विषय सागर से उस क्षीर सागर में पहुँचेंगे । अब बच्चे यह तो जानते हैं कि क्षीर सागर कोई निर्वाणधाम को नहीं कहा जाता है, क्योंकि विषय सागर के साथ कम्पेयर करते हैं क्षीर सागर को । तो फिर क्षीर सागर को भी यहाँ का कहेंगे । बच्चे जानते हैं कि बरोबर बाबा को याद करने से हम क्षीर सागर में चले जाएँगे; मुक्ति 84 जन्म पूरा हुआ है । बाबा ने रात को भी बताया था ना । यह पक्का याद करो बहुत, सस्ती प्वाइंट है, सहज पाइंट है- अभी 84 का चक्र पूरा हुआ और हमको जाना है घर । अभी देखो, समझाने की कितनी बातें हैं । वास्तव में उनमें कुछ भी बात आती ही नहीं है । बस, दो अक्षर । फिर भी पिछाड़ी में भी कहते हैं दो अक्षर याद करो अपने बाबा को; क्योंकि 84 का चक्र पूरा हुआ । अभी कहीं भी ऐसे लिखा हुआ नहीं है कि कोई 84 का चक्र पूरा होता है, फिर बाप आते हैं और कहते हैं कि वापस चलना है, याद में रहो और कोई तकलीफ है नहीं । ये तो बैठ करके खिवैया है, बागवान है, माली है, ये बहुत करके कितने नाम दे दिए हैं । बाकी कोई तकलीफ तो है नहीं ना । ये सब जो भी ...है महिमा का । बाकी है कुछ थोड़े ही । बाप कहते हैं कि मीठे लाडले बच्चे, सिर्फ याद करो तो निर्वाणधाम से हो फिर तुम क्षीर सागर में यहाँ आ जाएँगे; क्योंकि यहाँ क्षीर से घी मिलता है ना; तो इसलिए कहा जाता है घी की नदियॉ । तो घी की नदियों से पहले तो क्षीर सागर चाहिए । देखो, कितनी महिमा लिखी है जिनका कोई अर्थ नहीं समझ सकते हैं । तो बोलते हैं- रक्त की नदियों के बाद घी की नदियॉ बहती हैं । घी के लिए क्षीर जरूर चाहिए । नहीं तो घी कहाँ से आएगा; इसलिए क्षीर सागर चाहिए तब घी की नदियां बहे । देखो, महिमा कितनी बड़ी है । तो अर्थ में डिटेल में जाना चाहिए ना । जब तलक क्षीर का सागर नहीं होगा घी कहाँ से आएगा? कहते हैं कि देखो, यहाँ रक्त की नदी बहती है, फिर सतयुग में घी की नदी बहती है । भक्तिमार्ग में भगवान के रूप में लक्ष्मी नारायण को भी क्षीर सागर में दिखलाया है । तो है ना बरोबर । वो है विषय सागर, सतयुग है जैसे क्षीर सागर । कितना फर्क है रात-दिन का । उनको विख कहा जाता है । दूध तो बच्चे भी मां से पीते हैं । दूध की कितनी महिमा है । तो बाप बैठकर सिर्फ, जो पिया के साथ है, उनको बैठ करके सम्मुख अच्छी तरह से समझाते हैं । यहाँ कितनी महिमा, कितनी बातें, कितने शास्त्र बनाए हुए हैं । उन सबको पढ़ने-करने से इतना हम गिरते गए हैं बरोबर । विषय सागर में जाकर पड़े हैं । पढ़ते-पढ़ते, गाते-गाते बरोबर ये भारत के जो लक्ष्मी नारायण थे, वो यहाँ क्षीर सागर में रहते थे, घी की नदियॉ बहती थी, इतनी सस्ताई थी । ऐसे अभी तुम कहेंगे । घी का कोई दाम लगता होगा क्या? वाह! अभी इसी लाइफ में जो 80-85 वर्ष वाले बुड्ढे हो गए हैं, वो तो एक रुपया चार आना मलाई का निकला हुआ फर्स्टक्लास से फर्स्टक्लास मक्खन-घी लेते थे । पता है अभी उसको कितना बरस हुआ होगा? जब तुम स्थापना किए । 37 में । 37 में रुपया चार आना वो रोज मलाई का घी निकालते थे. घर में पहुँचा देते थे । अभी देखो, घी कितना महँगा हो गया है । यहाँ तो सब चीज महँगी मिलती हैं । वहाँ बिल्कुल खर्चा नहीं लगेगा, उसको कहा जाता है डैमचीप यानी वहाँ कुछ खर्चा नहीं लगेगा । इतना अथाह धन सबको मिल जाता है । तो अभी धन के ऊपर भी तो खुशी है ना । जितना धन इतनी खुशियॉ क्योंकि यहाँ तो जितना धन इतना रंज है । गरीब फिर भी घर में दो रोटी खाकर सुखी रहते हैं । अरे, उनको तो बहुत पाप करना पड़ता है । ढेर । पैसा इकट्‌ठा करने के लिए आजकल बड़े-बड़े जो भी ऑफिसर्स हैं, लाइसेन्स देते हैं, फलाना देते हैं, इतना रिश्वत खाते हैं, इतना पैसा लेते हैं, बात नहीं पूछो । 50-50 लाख का केस करते हैं रिश्वत खाने का । जो लोग अखबार पढ़ते हैं, जो पढ़े-लिखे हैं वो जानते हैं कि करोड़ों रुपया खा जाते हैं । फिर उनके ऊपर केस चलते हैं । पैसे के लिए मनुष्य को कितना पाप करना पड़ता है । कमाई के लिए भी कितना पाप करना है । तो इसको कहा ही जाता है ड्रामा के अनुसार और तुम बच्चे जानते हो कि बरोबर ये बुद्धि भी कहती है कि कलहयुग पाप की दुनिया है, सतयुग पुण्य की दुनिया है । कलहयुग में पाप आत्माएँ रहती हैं और सतयुग में पुण्य आत्माएँ रहती हैं । पुण्य आत्माएँ रहते हैं तो थोड़े रहते हैं । सिर्फ देवी-देवता धर्म वाले रहते हैं । और तो कोई रहता ही नहीं है । अभी देखो, तुम्हारे आगे सारा संसार सरसों के मिसल भरा हुआ है और तुम इस संसार को देख-देख, इसको जान, इस ड्रामा के आदि-मध्य-अंत को जान कितने हर्षित रहते हो । नाटक में मनुष्य बैठ करके देखते हैं तो हर्षित होना चाहिए ना । अभी तुम्हारे मिसल कोई की बुद्धि इतनी विशाल बेहद की नहीं है जो समझे कि उफ । सतयुग में कितने थोड़े होते हैं । अभी जबकि पार्ट आ करके पूरा हुआ है सभी एक्टर्स को अर्थात् दैवी धर्म के, इस्लामी धर्म के, बौद्धी धर्म के, क्रिश्चियन धर्म के इत्यादि देखो, वैराइटी धर्मों का झाड़ याद आ जाता है । अभी तो सरसों के मिसल हैं मनुष्य । जबकि कलहयुग से सतयुग होगा उसमें 1% मनुष्य भी नहीं रहते, बिल्कुल थोड़ा । यहाँ तो 500 करोड़ । वहाँ गाया हुआ है, विवेक भी कहता है, बाबा ने समझाया था कि गाते हैं फकीरानो .. । तुम बच्चे राजयोगी फकीर हो ना । वो भी फकीर, तुम भी फकीर । तुम राजयोगी फकीर, वो हठयोगी फकीर । तुमको कोई भीख नहीं माँगनी होती है, उनको भीख माँगनी होती है । वो तो बेगर फकीर हैं, तुम रॉयल फकीर हो; क्योंकि बाप के बच्चे हो । वास्तव में कहना तो पड़े ना । संन्यास किया है ना । तब तुमको फिर राजयोगी भी कहते हैं । तो गाया जाता है- फकीरानों साहब, सच्चा साहब लगदा बहुत प्यारा । ये छोटेपन में गाते हैं । अभी एक जन्म की तो बात है; परन्तु आगे भी जाते होंगे । बहुत भारतवासी गाते हैं- फकीरानो साहब लगदा प्यारा । अभी वो जो फकीर हैं सन्यासी, उनको साहब का पता नहीं है बिल्कुल ही । फिर उनके पिछाड़ी फकीरानो साहब लगदा प्यारा तुम राजयोगियों को, बाबा प्यारा लगता है ना । सबका सच्चा साहब तो वो है ना, उनको सच्चा साहब भी कहते हैं । सचखण्ड स्थापन करने वाला सच्चा साहब, जो बैठकर तुमको सचखण्ड का मालिक बनाते हैं, उसको कहा ही जाता है सचखण्ड की स्थापना करने वाला सच्चा साहब और गाते भी हैं फकीरानो । अभी तुम फकीरानो हो । भक्तिमार्ग में जो गायन होता है, जो पार हो गया है उनका । घट ही में सूर्य, घट ही में चन्द्रमा, घट ही में नयलख तारा, फकीरा नूँ साहब लगदा प्यारा । जो भी भगत होते हैं, वो वंडर गाते हैं । बाबा वो सोरदा होता है ना- एकतारा, उनके ऊपर ये गीत गाते थे । अर्थ का पता भी नहीं -ऐसे ही । बरोबर सतयुग में तुमको झाड़ का थोड़ा अंदाज जरूर होगा । तो साहब तुमको प्यारा है, प्रीत है तुम्हारी साहब के साथ । गाया भी अभी जाता है विनाश काले सबकी विपरीत बुद्धि और तुम्हारी साहब से, जो हैं राजयोगी वो प्रीत बुद्धि । तुम बच्चे पक्के फकीर हो ना । तुम पहले पक्के फकीर हो; क्योंकि देह-अभिमान भी तुमको नहीं है । तुम पूरे फकीर हो । सच्चा फकीर उनको ही कहा जाता है जिनको देह-अभिमान भी नहीं है, सब छोड़ दिया । बाकी कुछ रहा? बाकी आई एम आत्मा, बस, और कुछ भी नहीं । ये भी कथाएं हैं थोड़ी-थोड़ी कि स्त्री ने पति को बोला- तुम्हारे लिए... ....वो बोला- यह सब छोड़ो देह सहित । तो लाठी उठाई । बोलता है- लाठी-वाठी काहे की, देह सहित अभिमान छोड़ो और फिर अपन को आत्मा समझ करके सच्चे साहब को याद करो । तो सिर्फ तुम ही यहाँ हैं । सन्यासी को फकीर कहते हैं ना! ऐसे थोड़े है कि फकीर कोई खाते नहीं हैं । वो फकीर तो फाका मारते हैं । तुम तो गृहस्थ व्यवहार में रहते हुए फकीर हो, सन्यासी हो ना! वो भिखारी नहीं हो, तुम तो रॉयल फकीर हो । बच्चे अभी जानते हैं बिल्कुल अच्छी तरह से कि अभी हम सच्चे बाबा को याद करने से बिल्कुल अमीर बनते हैं । अभी तुम फकीरचंद हो, पीछे अमीरचंद बनेंगे; परन्तु फकीर कैसा बना दिया? देह सहित सब कुछ दे दिया बाकी खाली हो गया ना, उसको कहा जाता है 'फकीर' । तुम फकीर कोई फाका नहीं मारते हो । वहाँ शिव के भण्डारी से आए हो तो तुमको कोई फाका करना पड़ता है क्या? नहीं, क्योंकि राजयोगी हो, वो हठयोगी हैं । वो अपनी जबान को वश करने के लिए बहुत जो आएगा वो खाते हैं । देखो, तुम जानते हो जंगल में कंदमूल फल होते हैं । आगे तो सस्ताई थी ना । जंगल में जाओ तो क्या मिलता है? केरी मिलती है, चेरी मिलती है, जामुन मिलता है और दूसरे कंद-मूल भी होते हैं । आजकल अखबारों में भी लिखते हैं कि दुक्कड़ तो बहुत हैं, तो हम क्यों नहीं पहाड़ों से ये कंदमूल जो आगे ऋषि-मुनि खाते थे, उनकी खोज करके और फलानी जगह में होते हैं, वो भी अभी ले आना चाहिए । उनको तो सब कुछ घर बैठे मिलता था जबकि ताकत में थे । तो कहाँ भी पहाड़ों पर, यहाँ ऊपर में पहाड़ी पर जाओ इस तरफ में तो बड़ी ऊँची कुटिया बनी हुई है । भला, इतना ऊँचा क्यों जाकर बनाई है? क्योंकि इनको बुद्धि में है हमको ऊँचा जाना चाहिए ना, कुटिया भी ऊंची बनानी चाहिए, क्योंकि इस ज्ञान को तो वो समझते नहीं हैं कि हमको ऊँचे ते ऊंचा कहाँ जाना है । हमको जाना है अपने पीऊ के देश । तुम जानते हो कि बाबा लेने आया हुआ है और दूसरे सन्यासियों को कोई लेने वाला थोड़े ही आते हैं, जो उनको ले जावे । तो देखो बाप को गाया भी जाता है कि बाप लिबरेटर है, यानी इस रावण की पांच विकारों रूपी जंजीरों से छुड़ाने वाला है । अभी सब चीज से छुड़ाने वाला है, गुरुओं की जंजीर से भी छुड़ाने वाला है, भक्तिमार्ग के इन अनेक बंधनों से भी छुड़ाना है । देखो, छूट कर भागे हो ना । सभी बंधनों से बिल्कुल ही छूट । इसको कहा जाता है- सबसे लिबरेट करते हैं, क्योंकि सुख और शांति तो बाप स्थापन करेगा ना । यहाँ तो सबको टाईटल मिलता रहता है, इनाम मिलता रहता है, पीस की प्राइज मिलती रहती है । मालूम है, कितनी पीस की प्राइज देते हैं? कितनों को देते हैं? पीस तो कोई स्थापन ही नहीं कर सकते हैं । बाबा समझते हैं कि नेहरू को भी पीस प्राइज मिली हुई होगी । जो बड़े-बड़े नामीग्रामी हैं, उनको पीस प्राइज मिलती है ।.. ..आपस में मिल जाने का प्रयत्न करते हैं । अभी आपस में तो कोई मिलने वाला है नहीं । आपस में युक्ति रखेंगे, मिलेंगे । अभी ये जो बॉम्ब्स बनाए हैं उनको कहो कि ये सब जा करके दरिया में डालो तो कभी नहीं डालेंगे ।.. .कितना मत्था मारते हैं । जितना-! वो पीस का प्रयत्न करते रहते हैं इतना ही आपस में लड़ मरने के लिए नजदीक होते जाते हैं । अब ये तुम बच्चे जानते हो; क्योंकि इनको लड़ना जरूर है । जितना जितना कोशिश करेंगे इतना-इतना ही झगड़े मचते जाएंगे । कितना भी कोई पुरुषार्थ करे; क्योंकि तुम जानते हो कि ड्रामा में मौत तो है ही । विनाश काले विपरीत बुद्धियों का सबका मौत है । साहब को कोई जानते तो हैं नहीं । तो जानते हो कि विनाश काले यादवों का, कौरवों का विपरीत बुद्धि । अभी विनाश काल है ना । देखो, कितनी विपरीत बुद्धि है । कोई भी धर्म को नहीं मानते हैं ।.. ..को न मानते हैं तो सभी खुश होते हैं, क्योंकि ये धर्म की जिद पर नहीं हैं कि दूसरे धर्म वाले कोई भी हमारे इस भारत में ना रहें । इनके पास वो नहीं है; इसलिए इनको कहा ही जाता है कि भई, ये धर्म को ना मानने वाले हैं, जो चाहे सो आ करके रहें, सबके लिए छूट ही है; क्योंकि इनको न रिलीजन का मालूम है । सब एक ही है । तो इनको बहुत मान देते हैं, परन्तु धर्म, धर्म है । हर एक का अपना धर्म, अपनी रसम-रिवाज । ऐसे थोड़े ही है कि सभी की एक रसम-रिवाज हो सकती है । नहीं, हो नहीं सकती है, एकता हो नहीं सकती है । एकता होती ही है सतयुग में; क्योंकि एक धर्म है । भारत याद करते हैं बहुत । अभी भी ऐसे ही कहते हैं कि वर्ल्ड वन ऑलमाइटी अथॉरिटी राज्य हो । अब यह भूल गए हैं कि बरोबर 5000 वर्ष पहले यहाँ भारत में एक ही राज्य था, और कोई भी खण्ड नहीं था । भारत खण्ड ही था । बाबा ने समझाया ना- भारत खण्ड अविनाशी खण्ड है । भारत खण्ड कभी भी विनाश नहीं होता है । अब यह बात कितनी अच्छी समझने की है । बरोबर जब स्वर्ग था .और कोई धर्म था ही नहीं । अभी और धर्म हैं, खण्ड बहुत हैं धर्म बहुत हैं । फिर बच्चे जानते हैं कि और सभी खण्ड न रहेंगे । फिर भारत खण्ड ही रहेगा, और सभी विनाश को प्राप्त हो जाएँगे । ये तो बच्चों की बुद्धि में है ना । ये सभी बातें, जो सर्विस पर उपस्थित हैं कुछ-कुछ उनकी बुद्धि में ठहरती हैं, जो कोई को कुछ ना कुछ पाइंट से समझा सकें । तो जो पिया के साथ है उनके लिए ये ज्ञान और योग की नॉलेज है । बस, तुम बैठ करके पढ़ते हो, अभी जानते हो बुद्धि में और लॉ भी कहता है कि जरूर राजयोग में यह तो नॉलेज हुई कि वो कहते हैं मैं तुझे मनुष्य से देवता बनाऊँगा, मनुष्य से राजाओं का राजा बनाऊँगा । तो जरूर एम-ऑब्जेक्ट है । अभी ऐसे तो कोई भी सतसंग नहीं है जिनमें कोई कह सके कि तुमको सो राजाओं का राजा बनाता हूँ । बाबा आकर कहते हैं कि मैं तुमको सो राजाओं का राजा बनाता हूँ । वो क्या कहेंगे कि नहीं, श्रीकृष्ण भगवानुवाच्च- मैं तुझे राजाओं का राजा बनाता हूँ राजयोग सिखलाता हूँ तुम राजऋषि हो । ये कौन कहते हैं? निराकार परमात्मा, जिनको इन लोगों ने सर्वव्यापी कह दिया है । जब सर्वव्यापी है तो कोई पता थोड़े ही पड़ेगा कि भगवान फिर आएगा कब । जबकि है ही सर्वव्यापी तो फिर बस सर्वव्यापी-सर्वव्यापी है । फिर कुछ बात ही नहीं । वो तो पता भी नहीं है कि कभी कोई आने वाला है, भक्तों को भक्ति का फल देने वाला कोई आने वाला है । तो जरूर कोई होगा । अगर सर्वव्यापी है तो फिर एकदम कोई बात ही नहीं उठती है । तुम भी भगवान, हम भी भगवान, जिधर देखता हूँ फिर तू ही तू- ऐसे भी कोई-कोई हैं ना जो कह देते हैं । पता नहीं कहाँ से हमको एक चिट्‌ठी भी आई थी । मैंने उनको लिख दिया कि ये कहाँ से सीखे हो- जिधर देखता हूँ तिधर तू ही तू । चिट्‌ठी मेँ एक अक्षर लिखा था, ये ईशू को मालूम होगा । नरसिंह बॉम्बे का । अभी वो बेचारा याद बहुत करता है । फिर तो तुम बहुत याद पड़ते हो । जिधर देखता हूँ इधर तू ही तू । अभी वो फिर ज्ञान उल्टा हो गया । यानी निश्चय बुद्धि ज्ञानवान, परन्तु वो बेचारा खुशी का मारा कहता है- बाबा, बहुत याद करता हूँ बधन बहुत है । कितना बिचारे को बंधन पड़ा हुआ है लम्बा-चौडा नाम ही है नरसिंग और शरीर भी इतना लंबा-चौड़ा । बहुत भाववान है । बहुत याद भी करता है, परन्तु बिचारा स्त्री को वो न देने के कारण स्त्री भी बेचारी रोती रहती है कि हमारे पति को ये ब्रह्माकुमारियां ले जाएंगी । फिर हम विधवा बन जाएँगी । तो बस, रोती रहती है, डर लगा हुआ रहता है । बेचारा आ नहीं सकता है । लिखता था- मम्मा के साथ बुलाऊगा आऊँगा परन्तु वो स्त्री रोती है तो कहता है, मुझे तरस भी पड़ता है, इसलिए आपको मैं याद तो करता हूँ ना जिधर देखता हूँ उधर आप ही मुझे याद पड़ते हो । तो बाबा ने लिख दिया कि ये कहाँ से आया कि जिधर देखता हूँ उधर बाबा ही देखने मे आता है, क्योंकि कोई वक्त में किसको कह देवे तो वो बोलेंगे कि ये तो सर्वव्यापी का ज्ञानमार्ग है । तो देखो, है ना बरोबर माया और गाया हुआ है कि बरोबर इस रुद्र ज्ञानयज्ञ में असुरों के बहुत ही विघ्न पड़ेंगे । अभी तुम जान गए कि कैसे विघ्न पड़ते हैं? कितना-कितना अबलाओं के ऊपर विघ्न पड़ते हैं । फिर अबला पुरुषों को भी तो विघ्न पड़ते हैं । ऐसे नहीं कि पुरुषों को विघ्न नहीं पड़ते । पुरुषों को थोड़े विघ्न और अबलाओं को बहुत विध्न क्योंकि छूटने के लिए मेहनत अबलाएँ करती हैं । तो जरूर बहुत हैं, इसलिए बहुतों के ऊपर बहुत किस्म के विध्न पड़ते हैं । उनको इतने विध्न नहीं पड़ सकते हैं जितने इनको फिर मारपीट के पड़ते हैं । स्त्री कोई विरला निकलती है जिनको सूर्पनखा और पूतना कहते हैं । पूतना का अर्थ है विकार के लिए, सूर्पनखा है जो उनको मारेगी-पीटेगी, यहाँ-वहाँ जाने नहीं देगी । वो ऐसे भी नहीं कहती है कि हमको विख चाहे ना दो, पर जाओ ही नहीं, जो कहाँ छोड़ दो । देखो, बहुतो को डर लग गया है । पहले-पहले भट्‌ठी बनी है ना, उनका डर देखो कितना चल रहा है । अभी तलक वो डर, पिछाड़ी तक, क्योंकि बाप आ करके ये विख का जो नशा रहता है, जैसे....का नशा विख उससे छुड़ाते हैं । 60-60 बरस के बुडढे हो जाते हैं । 60-70-80 बरस के बुड्‌ढे-बुड्ढे भी विकार में जाते हैं । वानप्रस्थ तो गाया हुआ है, क्योंकि वानप्रस्थ माना ही 60 वर्ष । 60 वर्ष के बाद फिर तैयारी करनी है वाणी से परे जाने की । कोई न कोई को पकड़ना होता है, क्योंकि फिर बच्चे को दे दिया विल करके । फिर वो ईश्वर से मिलने लिए, जो कुछ पाप किया वो पाप कटने के लिए सतसंग करते हैं । सतसंग असुल में करते ही थे जबकि वानप्रस्थ अवस्था होती थी । जब पुरुष वानप्रस्थ अवस्था मे गया तो घर में बैठी हुई इनकी स्त्री भी वानप्रस्थ अवस्था में हो गई, परन्तु वो गुरु कर लेते हैं और उस बेचारी को गुरु करने का हक नहीं है । यहाँ हक मिला है तुमको । पहले-पहले सतगुरू ने ज्ञान कलश रखा ही है माता के ऊपर । देखो, कितना फर्क हो गया है ना । बच्चों को ये तो अच्छे राज समझाए गए हैं अरे, मीठे-मीठे बच्चे । तुम हो राजऋषि .वो हठयोगी ऋषि । तुम राजाई के लिए.....करते हो नई दुनिया के लिए । ये तो सिद्ध हुआ मृत्युलोक मे पुनर्जन्म लेना खत्म होता है । अमरलोक में हमको पुनर्जन्म लेना है । अमरलोक तो है ही सतयुग में । जो सतयुग मे होगा सो सतयुग में ही पुनर्जन्म लेगा । वहाँ कोई यह नहीं कहा जाएगा कि लेफ्ट फोर हेविनली अबोड या स्वर्ग पधारा । ऐसे कोई कहेगे? नहीं । यहाँ कहते हैं, क्योंकि स्वर्ग याद बहुत पड़ता है । बरसाते पड़ती आई हैं । ......तो कायम ही है । जिसको बाप पतित भी कहते हैं । सतयुग में भी है । क्या गंगा पापात्मा बन जाती है? गंगा पवित्र बन जाती है? ऐसे मनुष्य को बैठ करके समझाना चाहिए । तो अभी बच्चे समझ गए कि सब बातों में कितनी अंधश्रद्धा है । अभी देखो, कुम्भ का मेला भी लगने वाला है । इसके लिए बड़ी तैयारी करते हैं । मनुष्यों का करोड़ों रुपया खर्च हो जाता है । गवर्मेन्ट का भी खर्चा बहुत है, उनको तो भले आमदनी भी होती है । उनको तो खर्चा बहुत करना पड़ता है ना । .. .ये तीर्थ यात्राऐ करते-करते. पैसा खर्च करते, वेद, शास्त्र वगैरह, गुरु करते-करते भारत कंगाल हो गया है । क्या हुआ? वेस्ट ऑफ टाइम, वेस्ट ऑफ एनर्जी, वेस्ट ऑफ मनी । वो बाप सिद्ध करके बताते हैं कि देखो, भारत कितना धनवान था और कितना अक्लमंद था । अभी तो अक्ल पिछाड़ी करता जाता है । देवताओं की अक्ल, पीछे जब माया आती है ना तो ये ढिरता जाता है । तो इसलिए सच लिखते हैं ना कि वेद ग्रंथ उपनिषद जो भी हैं हम उसका नाम नहीं लेते हैं, इस्लामियों का कुरान और बाईबलों का । इस भारत ने अपनी सत्यानाश की है । भक्ति ने भारत की सत्यानाश की है तभी तो भक्ति वाले याद करते हैं ना कि आओ, हम पतितों का पावन करो । तो भारतवासियों को समझना चाहिए ना कि हम सभी पतित हैं । जो भी भारतवासी हैं ऊपर से लेकर नीचे तक सभी पतित हैं, क्योंकि दुनिया ही पतित है । जब पूरी दुनिया में 100% पतित हो जाती है ड्रामा अनुसार, तो फिर 100% पावन । तुम लिख सकती हो इस भारत में ऑलमाइटी अथॉरिटी, पवित्र राज्य हम स्थापन करते हैं । आप लोग डोन्ट वरी वी आर डूइंग द टास्क । भारत में फिर से ऑलमाइटी अथॉर्टी राज्य स्थापन करने हम गुप्त रूप में सेवा कर रहे हैं । बड़े-बड़े आदमियों को लिखा, क्योंकि इसमें तो अच्छा ही है ना । तुम अच्छा ही समझाते हो । देखो, समझा दिया है, यह जो भला समझेंगे ना, हम क्या कर रहे थे अभी भला । हम गुप्त सेना ब्राहमण कुलभूषण क्या कर रहे हैं? बरोबर हम अपने लिए याद बल से स्वराज्य स्थापन कर रहे हैं । भई, कितनी अच्छी है । बस ये याद तुमको अन्न देगी अर्थात् सतयुग मे जाकर तुम अपने यहाँ स्वर्ग की दावत करेंगे और महल बनाएँगे । बच्चे, टोली ले आओ । साहबों को बच्चे याद करते हैं ना। बाबा ने समझाया है ना अभी तुमको साहब बहुत प्यारा लगता है, क्योंकि साहब ने आकर अपना परिचय दिया है । और तो कोई को इतना प्यारा लग भी नहीं सकता है । सर्वव्यापी वालों को प्यारा क्या लगेगा ।. प्यारा लगना चाहिए । सबसे बुद्धि का प्यार का योग हटाय हटाते जाना चाहिए ना और एक से जुटाना है । अभी मेहनत है । अगर विजयमाला मे आना है तो मेहनत है ।..... ......... हमारी एक है.....क्या बाबा कहते हैं? (बच्ची ने कहा- गोप) सच्चे साहब की सच्ची सजनी । सजनियाँ कैसी होती हैं? पति की याद बिगर कोई परपुरुष का बुद्धि मे ध्यान नहीं रखती है । यहाँ ऐसी चाहिए, जो एकदम कोई भी परपुरुष में बुद्धि न लगावे, देहधारियों की कोई की याद ना आए, सब भूलते जाना है, एक को पूरा याद करना है । ऐसी बच्ची नंबर वन, दू थ्री माला में पहुच सकती है । टाइम थोड़ा है बाबा कह देते हैं, याद रख देना । देखो, बैठे-बैठे मनुष्य मरते कैसे हैं! हार्टफेल हुआ, यह हुआ या एक्सीडेंट हुआ । इसलिए अपना स्वराज्य ले लेना चाहिए । वर्सा ले लेना चाहिए । गोद लेकर तो मदद भी मिले । अगर गोद ना लेंगे तो मदद कैसे मिले! सौतेले को मदद करेंगे? मातेले को मदद करेंगे, सौतेले को थोड़े ही । जो हैँ अभी यहाँ देखो कला नहीं है । हमारा रुक्सनया है क्योंकि यह तो. ब्राहमण कुलभूषण थी । रुक्सत तो ब्राहमण कुलभूषण भी न थी । तो बाबा को हर एक के ऊपर तरस तो पड़ता है ना । आह । ये बच्ची अगर होती तो अपना वर्सा तो ले लेती ना । अभी देखो, पुरुषार्थ करती है, समझती है बड़ी वीरांगना होनी पड़ेगी । इतनी वीरांगन्रा होकर हम भाग नहीं सकती हैं । ये भी बाबा कहते हैं भूल है । बाबा कहाँ कहते हैं कि घर-बार को छोड़ो । बाबा कहते हैं गृहस्थ व्यवहार मे रहते हुए याद मे रहो । कमल फूल के समान पवित्र तो हो ही । अभी सिर्फ वहाँ का जो मोह है, इस पुरानी दुनिया पुराने शरीरों में, इस मोह को तुम नष्ट करो और एक के साथ मोह रखो तो भी तुम्हारा बेड़ा पार हो सकता है । बाबा कहते हैं फिर भले घर बैठे, जहाँ बैठे, यहाँ आने की दरकार नहीं है । तुमको यहाँ आकर नहीं रहना है । रहना गृहस्थ में है, बुडढे हो जाओ तो भी गृहस्थ में । बाबा ऐसे नहीं कहते हैं कि वानप्रस्थ होकर सतसंग करो या किनारा करो । यहाँ किनारा करने का ही नहीं है, अपने गृहस्थ व्यवहार में रहो । बाबा थोड़े ही कहते हैं कि किनारा करो । वो तो उनके लिए है कि घर छोड़कर जाओ, बाबा नहीं कहते हैं । बाबा तो कहते हैं बेहद के घर से बुद्धि का योग जोड़ो, ये छी-छी से तोड़ो । बहुत युक्ति बताय सकते हैं, अगर श्रीमत लेते रहे तो । तोड़ निभाना है दोनों से । बाबा कभी किसको नहीं कहेंगे घर-बार छोड़ो । बाबा वो और ही पसन्द करते हैं । तो लॉ भी ऐसे कहता है । ...करेंगी, बाबा का बनेंगी, फिर अपना हिसाब-किताब बाबा से पूंछ लेवे । बहुत गई, थोड़ी रही, थोड़ी की भी थोड़ी रही । और बाकी क्या! 5-7 बरस भी ऐसे ही गिट-गिट में चले तो भी ठीक है । आग लगेगी पीछे, बात मत पूछो । कम थोड़े ही है । इसलिए मजबूत बनने के लिए फाउण्डेशन पक्का करने के लिए बाबा से श्रीमत लेते रहो और स्वीट बाबा को याद करते रहो । मोस्ट बिलवेड स्वीट सेक्रीन ऐसे-ऐसे । अच्छा! ऐसे मीठे-मीठे मात-पिता और बापदादा का मीठे-मीठे सिकीलधे लकी सितारों प्रति, ज्ञान सितारों प्रति यादप्यार और गुडमॉर्निग ।. ........... बापदादा कम्बाइंड हैं । ऐसे नहीं कहना सिर्फ, बाबा मुरली चलाते हैं, शिव पिता . ...... दोनों हम आपस में, तुमने सुना नहीं .... ...... तो ये ऐसे ही है । बापदादा की और मम्मा. ..... इनकी कमाई भी चलती रहेगी । आप सबका ... बाबा की कमाई भी चल जाती है । ऐसे मत समझना कि नहीं । ऐसे तो बच्चों में भी प्रवेश करके .................... अच्छा, अब गुडमॉर्निग ।