27-07-1964     मधुबन आबू     प्रात: मुरली    साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हेलो, स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुलभूषणों को हम मधुबन निवासियों की नमस्ते, आज सोमवार जुलाई की सत्ताईस तारीख है, प्रात: क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।

रिकॉर्ड :-
तुम्हारे बुलाने को जी चाहता है.......

मीठे-मीठे बुलाने वाले बच्चों ने अभी जाना; क्योंकि भगत भगवान को बुलाते हैं । अभी तुम भगत नहीं ठहरे, तुम बच्चे ठहरे । अब बच्चे तो याद भी करते हैं, लिखते भी हैं कि बाबा सम्मुख सुनना चाहते हैं । तुम भी सम्मुख.....हो ना । फिर और भी बुलाते ही रहते हैं, निमंत्रण देते ही रहते हैं कि बाबा, डायरेक्ट आपसे सुनें । अभी डायरेक्ट तो सिवाय इस ब्रहमा तन के द्वारा मुश्किल है; क्योंकि बच्चे जानते हैं जहां-जहां भी बच्चे हैं, कितने भी दूर हैं बच्चे जानते हैं कि कल्प पहले मुआफिक बाबा आया हुआ है, जहॉ कि उनकी शिवरात्रि मनाई जाती है । यह भारत है ना! देखो, कितना बड़ा भारत है, बहुत भारी । ये तो बच्चे जानते हैं कि सिर्फ ब्रहमा मुखवंशावली ब्राहमण कुलभूषण । देखो, तुम बच्चों को नाम कितना अच्छा दिया हुआ है । ब्रहमा मुखवंशावली हो । ब्रहमाकुमार और कुमारियाँ बहुत हैं । उनको ये ज्ञान मिला हुआ है । आगे तो मनुष्य, मनुष्य को ज्ञान देते थे । अभी परमपिता परमात्मा, जो ज्ञान का सागर है वो ज्ञान दे रहे हैं, जिसको ही सुख का सागर कहा जाता है; क्योंकि सुख देने वाला, गाया जाता है ना- दुःख हर्ता सुख कर्ता । अभी बच्चे प्रैक्टिकल में जानते हैं कि सुख कर्ता, दु:ख हर्ता है शिव; परन्तु नाम कितने भिन्न-भिन्न दे दिए हैं । किसको पता भी नहीं वो कौन है? गायन तो बहुत होता है ना । ये भी बच्चे जानते हैं कि हर हर हर यानी दुःख को हरो फिर गाते किसको हैं? जरूर भगवान को ही गाएँगे परन्तु भगवान का पता न होने कारण नेक्स्ट टू भगवान ब्रह्मा विष्णु शंकर को कह देते हैं, क्योंकि ब्रह्मा विष्णु शंकर को कहते हैं देव, देव, महादेव । तो देखो, ऊपर वाले को भूलकर फिर भी कहते हैं हर-हर-हर महादेव । महादेव तो शंकर को कहा जाता है, क्योंकि बाप ने समझाया है कि ब्रहमा और विष्णु वो तो बाद में स्थूल में आते हैं । वो सूक्ष्म में ही रहता है, वो स्थूल में नहीं आते हैं । फिर भी नाम उनका बड़ा लिया जाता है-दुखहरता नहीं तो दुःख हरने वाले को तो पतित-पावन कहा जाता है । शंकर को कभी भी कोई पतित-पावन नहीं कहेंगे । पतित-पावन जब कहेंगे तब ऊपर में जाएंगे निराकार की तरफ । बाप ने समझाया है ना जो कुछ भी महिमा है, कोई की महिमा कुछ भी नहीं है, क्योंकि विष्णु के भी तो दो रूप हैं ना जो फिर जन्म-मरण के चक्कर में आते हैं । तो विष्णु ही दो रूप धर पहले-पहले से शुरू करते हैं, जिनको ही फिर राधे और कृष्ण कहेंगे, जो जन्म अलग-अलग लेते हैं । तो विष्णु को याद करते हैं जरूर । विष्णु अवतरण भी गाया जाता है । नाटक होता है उसमे विष्णु चतुर्भुज को ले आते हैं । उनको ये मालूम नहीं है कि कोई इनसे दो लक्ष्मी-नारायण आ करके स्वर्ग में पहले-पहले प्रिन्स एण्ड प्रिन्सेज बनते हैं । ये तो बच्चे समझ गए हैं ना कि ये विष्णु और कोई नहीं है, ये प्रिन्स एण्ड प्रिन्सेज हैं- राधे और कृष्ण । अभी यह जान तो तुम बच्चों को पड़ी है, परन्तु ये तो जानते हो कि तूफान है माया का बहुत भारी; क्योंकि तूफान तो लगते भी हैं ना ऐसे स्थूल यह है फिर सूक्ष्म में । यह माया भुलाती है । अनेक प्रकार का तूफान ले आती है । बच्चों के ऊपर बहुत तूफान लाती है । बच्चे सब सच्चे हो, हर बात खुली दिल से पूछते रहें तो उनको सब प्रश्न का उत्तर भी मिल सकता है । ये तूफानों के बनिस्पत- तूफान, स्वप्न, छी:-छी: विकर्म, जो अज्ञान काल में ना आते है, वो भी आएँ तो उसको तूफान कहा जाता है । असल में आँधी भी तूफान को कहा जाता है । अभी बच्चे तो जानते है जहाँ-तहॉ भी ब्रहमा मुखवंशावली बच्चे हैं, उनको ब्रहमा के चित्र का तो अच्छी तरह से मालूम है; क्योंकि वो फिर भी तो नामी-ग्रामी है । बाकी बीज बाबा ने प्रवेश किया तो बहुत नामी-ग्रामी हो गया है । देखो, चित्रों में लगा हुआ है ना! नहीं तो मनुष्य सिर्फ अपना फोटो लगाते हैं । यहाँ तो देखो, कितना नामी-ग्रामी हो गया है । अभी दुनिया तो जानती है कि ब्रहमा कौन होता है? बच्चे दिखलाते भी हैं चित्र में, कोई तो दाढ़ी वाला दिखलाते हैं, मूंछ वाला भी दिखलाते हैं । कोई ऐसे ही प्लेन दिखला देते हैं, ब्रह्मा विष्णु शंकर को बिल्कुल ही गोरा रख देते हैं, दाढ़ी-मूंछ भी नहीं रखते हैं, परन्तु नहीं, कई चित्रों में ऐसा है बरोबर, दाढ़ी भी दे दी है । उनको पता तो है नहीं, ये दुनिया में थोड़े ही पता है कि सुक्ष्मवतन में कोई की भी दाढ़ी-वाढ़ी नहीं देखने में आती है; क्योंकि सतयुग के देवताओं को भी गोरा ही गोरा देखेंगे । वहाँ कोई काटने-कूटने की गड़बड़ रहती ही नहीं है । जैसा-जैसा देश तैसे-तैसे मनुष्य का वेश भी होता है । चमड़ी का वेश भी तो फर्क हो जाता है ना । तुम जानते हो कि बरोबर अभी तो कुब्जाएं अहिल्याएं फलाने, किनकी आँख नहीं, किनकी नाक नहीं, किनका क्या नहीं । वहाँ तो ऐसा नहीं होता है ना । वहाँ तो नेचुरल ब्यूटी है । उसको कहा जाता है नैचुरल ब्यूटी, क्योंकि तत्व हैं सतोप्रधान । तो अभी ये सभी ज्ञान की बातें सन्मुख सुनने के लिए बच्चियाँ बुलाती हंी । तो हम भी सुन करके, जैसे आप सुनाते हो वैसे हम भी सुनायें । देखो, गीत में कुछ न कुछ फिर अच्छी तरह से लिखा हुआ भी है ना । प्राय आटे में लून जितना कुछ है जरूर । बाबा ने समझाया ना- धर्म तो प्राय: लोप हो गया है । मंदिर तो रखे हुए हैं, मंदिर कहाँ जाएँगे? निशानी, यादगार तो सबकी रहती है ना! देखो, इस्लामी, बौद्धी जो भी हैं, सबके मंदिर जरूर होते हैं । तो अब ये बच्चों को भी याद रखना है, समझ गए हैं, दूसरे तो सभी धंधे-धोरी में गटटे पड़े हैं । ये समझना तो चाहिए ना बरोबर ऊँचे-ते-ऊंचा भगवत् । वो ऊंचे ते ऊंचा भगवत् को निराकार कहा जाता है । जब ऊँचे ते ऊँचा भगवत् गाया जाता है तो फिर ऐसे नहीं कहना चाहिए कि ऊंचे ते ऊंचा ब्रहमा, फिर विष्णु फिर शंकर या कोई फलाना । ऐसे हो नहीं सकता है; क्योंकि गायन है बहुत बाप का और है भी निराकार का गायन । बरोबर संगमयुग का भी गायन है; क्योंकि आत्माएँ और परमात्मा मिलते हैं । आत्माएं तो बहुत मिलती हैं ना । देखो, तुम कितनी आत्माएँ कितनी वृद्धि को पाएँगे । बहुत वृद्धि को पाएँगे, ऐसे मत समझो, अभी तो टाइम बहुत पड़ा है । यह तो फाउण्डेशन है । यह झाड़ वृद्धि को पा रहा है और झाड़ के ऊपर देखो कितनी माया की है जो छोटे-छोटे बूटों को उड़ाय देती है, बड़े-बड़े को भी कोई वक्त में आँधी वा तूफान नहीं छोड़ते हैं । अभी तुम सम्मुख सुनते हो और जो फिर सुनने वाले हैं उनकी भी दिल होती है । तो कहते हैं-- बाबा, आओ तो हम सन्मुख सुनें । क्यों? आ नहीं सकती हैं । देखो तो, भगवान आए और बच्चों को घर बैठे पहचान मिले और यहाँ आय न सके । नहीं तो सतसंग में जाने के लिए कभी कोई किसको मना नहीं करेंगे । भले कोई भी धर्म वाला हो, मुसलमान हो, पारसी हो, फलाना हो, कोई भी हो, जिस सतसंग में जाए मना नहीं करेंगे । ये देखो, गीता बैठ करके सुनाते हैं आजकल, बॉम्बे में आते हैं, यहाँ-वहाँ बड़े-बड़े आते हैं, तो सब धर्म वाले जा सकते हैं । कोई को मना नहीं है, कोई भी जा सकते हैं; क्योंकि वो बिचारे जाँच करते हैं । यहाँ-वहाँ भी जाते हैं दूसरे गुरुओं के पास । क्यों जाते है? देखते हैं कि कहीं कोई सहज रास्ता मिले परमपिता परमात्मा से मिलने का, कोई रास्ता बताते हैं सहज मुक्तिधाम जाने का; क्योंकि किसको पता तो नहीं है कि मुक्तिधाम क्या होता है, जीवनमुक्ति धाम क्या होता है । कोई को पता नहीं है । न पता होने के कारण बच्चे बहुत ढूँढते हैं और सब किस्म के गुरुओं के पास भी जाते हैं । देखो, वास्तव में अभी यहाँ गुरु-गोसाई भी कोई नहीं हैं । कोई भी नाम नहीं है । बस ब्रहमाकुमार और कुमारियाँ । कौन है महात्मा? कोई को पता नहीं है । जैसे तुम हो, तैसे ये हैं । बिल्कुल कोई भी फर्क नहीं । न कोई तिलक ही दिया है, न कोई वेश ही धरा है, कुछ भी नहीं । ये भी धरने की दिल नहीं होती है, कभी-कभी उतार देता हूँ । ये भी क्यों? क्या इनसे पहचानेंगे और उनसे नहीं पहचानेंगे? नहीं, पर ये भी कोई ड्रामा के अंदर, जैसे किससे मिलने की कोई ऑफिशियल ड्रेस होती है, तैसे है । नहीं तो ये भी दरकार नहीं है । जैसा है उनसे ही बाप बैठ करके समझाते हैं । देखना तो कोई ड्रेस वगैरह को नहीं है ना । तुम्हारी बुद्धि तो चली जाती है शिवबाबा के पास- यह कपड़ा पहनें या न पहनें । और तो सभी शरीर को देखने वाले हैं । कहाँ भी सतसंग में जाओ तो शरीर को देखेंगे । यहाँ तुमको इस शरीर भी नहीं देखना है; क्योंकि तुम अपने शरीर को भी भुलाते हो तो इनके भी शरीर को भुलाय दिया ना । देही-अभिमानी बनते हो । तो देही-अभिमानी बन तुम कोई इनको नहीं याद कर सकते हो । तुम फिर भी जानते हो कि शिवबाबा इसमें बैठकर हमको राजयोग सिखलाय रहे हैं । वही नॉलेजफुल है, वही त्रिकालदर्शी है यानी तीनों कालों को जानने वाला । तो तीनों कालों के जानने वाले से ही, तुम तीनों कालों को जानने वाले बन रहे हो । जानते हो कि बरोबर आदि मध्य अंत, उसको तीन काल कहा जाता है, क्योंकि आदि मध्य अंत पास्ट हो जावे । आदि मध्य अंत (का राज बाप बैठ करके इस समय में सुनाते हैं ना । फिर आदि किसका? बोलते हैं- सतयुग से । अभी ये अंत है । अभी अंत तो आ गया है ना! अंत आए तभी आदि मध्य अंत का समाचार सुनावें और तुम जानते हो कि सुनाते-सुनाते इस सृष्टि का अंत हो जाता है । अंत होना ही है; क्योंकि आते ही अंत में हैं ना । अंत को आदि बनाते हैं । कलहयुग के अंत को सतयुग की आदि बनाने वाला । अभी तुम बच्चों को आदि से ये नॉलेज है । अरे, बुडिढयों को भी बहुत सहज है ये नॉलेज । वो कोई कॉलेज में या मैट्रिक में .बीए, में ये बुडिढयाँ कुछ भी नहीं समझ सकें । अभी ये बुडिढयाँ कोई भी स्कूल में जा करके बैठें तो कुछ न समझ सकें । बाकी ये समझ की बात बिल्कुल सहज है, बुडिढयो को भी सहज है कि
हम आत्मा तो हैं ना । बाकी अब बाबा आकर कहते हैं कि तुम बच्चे अब मुझे याद करो । ऐसे जब मरते हैं तो मनुष्य मंत्र देते हैं- 'राम-राम कहो, फलाना कहो । जो भी मनुष्य मात्र हैं सभी जानते हैं । बहुत करके कोई तो पीछे वानप्रस्थ में गुरुओं का मंत्र ले लिया है; परन्तु ये तो अभी आ करके कहते हैं बच्चे, सारी दुनिया का मौत है । तुम सब वानप्रस्थ अवस्था के आय बने हो- बुडढे जवान और छोटे । देखो, ऐसे तो कोई कहेगा नहीं, जो सबको कह देवे । वो बोलेंगे, क्या सबको मौत लाने के लिए तैयार हुए हो? हाँ, ये तो खूबी है, तुम बच्चियाँ सारी दुनिया के मनुष्य मात्र का मौत लाने के लिए पुरुषार्थ करती हो । तुम कई तो चाहती हैं । बाबा, फिर भी अभी बाकी कहाँ तक रहेंगे? क्यों नहीं जल्दी होता है तो हम जावें? यहाँ दुःख बहुत है । जल्दी क्यों नहीं होती है? तुम आगे चलकर भी कहेंगे, जब यहाँ बहुत कुछ होगा, तब कहेंगे- बाबा, अभी जल्दी करो । बाबा कहते हैं तुम ऐसे क्यों कहते हो जल्दी करो? इस समय में तुम ईश्वर के सम्मुख हो । पीछे तुम्हारी जो डिग्री है वो डिग्रेड हो जाएगी । फिर तुम दैवी संतान की गोद में जाएँगे । अभी अच्छा है, यह बहुत शीतल गोद है, क्योंकि तख्ते को जब शीतल बनाता है तो उनकी गोद में मजा आता है । वो तो शीतल गोद है ही । यहाँ तख्ते को शीतल बनाया जाता है, वो तो अच्छा रहता है ना । तो कभी भी यह ख्याल नहीं करना अभी जल्दी हो, जल्दी स्वर्ग आएँ, फलाना । नहीं । जल्दी माना हम ईश्वर की गोद छोड़ करके, हमारा जो इतना ऊंचा पद है, हम डिग्रेड हो जाएँगे । देखो, कितने रमज की बातें हैं समझने की । हम अभी ऊँच ते ऊँच हैं, हमारा नामाचार ही इसका है; क्योंकि जो मंदिर बनाया है सो भी तुम्हारा इनका इकट्‌ठा है । इस समय का मंदिर है- दिलवाला मंदिर । नाम भी तो बड़ा अच्छा है । सारे सृष्टि की दिल लेने वाला ।. ..दिलवाला मंदिर सबके लिए है ना, कोई भी आवे दिलवाला के मंदिर में । तुम बच्चे जानते हैं कि आत्मा का दिल लेने वाला । आत्मा पुकारती है इन शरीर से कि बाबा, आओ और आ करके हमको बिल्कुल ही नया बनाओ । हम पुराने हो गए हैं । आत्मा भी पुरानी तो शरीर भी पुराना । आत्मा में अलॉय मिल गई है ना तो पुरानी हो गई है, तो शरीर भी पुराना; इसलिए बाप कहते हैं- सब जड़जड़ीभूत बन गए हैं । आत्मा भी बुद्धिहीन और अंधी बन गई है । कहते हैं ना- अधले को. .. । आँखें थोड़े ही बंद हैं । कोई मनुष्य को थोड़े ही अंधा कहा जाता है । नहीं । अंधा माना तुम्हें डर तो हैं; पर बुद्धि अंधी हो गई है, जिसमें आत्मा रहती है । उनको कुछ पता नहीं है बिल्कुल ही । वो आत्मा, जिसमें याद करने की बुद्धि है, वो बिल्कुल ही भूल गई है । भूलने के कारण, भूलते-भूलते जैसे कि बिल्कुल जड़ बन गई है । बाप आ करके बच्चों को समझाते हैं । यह गीत भी बड़ा अच्छा है- तुम्हारे बुलाने को.... । भक्तिमार्ग में गाते हैं, अब भक्तिमार्ग में नहीं, अभी तुम यहाँ गांवड़े- गांवड़े से बुलाते हो । कितने गांवड़े से बुलाएंगे आगे चलकर- कोई किस गांवड़े से बुलाएंगे, कोई किस गांवड़े से बुलाएँगे । छोटे छोटे गाँव में जो बांधेली गोपिकाएँ हैं, वो भी बुलाती हैं । बाबा बोलते हैं कि छोटे-छोटे गाँव में जरा मुश्किल होता है; क्योंकि दुश्मन बहुत रहते हैं । जिनको विख नहीं मिलता है ना वो बहुत दुश्मन रहते हैं; क्योंकि उनको कामेषु क्रोध आता है; इसलिए उनके अंदर से निकलता है कि कौन आया है, जो हमारे घर में आ करके फिरारा डाला है? जो हमारे माँ-बाप का जन्म-जन्मांतर का विख का वर्सा था, वो अभी हमको मिलता ही नहीं है । ऐसा तो कोई भी नहीं करते हैं । कोई भी सतसंग में साधु संत महात्मा हम लोग के साथ यह झूट तो कोई भी नहीं करते हैं ।.....बाबा कहते हैं ना सतयुग में तो पवित्र गृहस्थ था । अभी देखो, विख के लिए कितना हैरान करते हैं । बहुत हैरान करते हैं ना बच्चे । नाम तो बहुत गाते हैं कि बरोबर बाप ने कहा है- काम महाशत्रु है । जो भी साधु संत महात्मा हैं, जो दुकानदारी निकालकर बैठे हैं, वो भी इन बातों को तो जानते नहीं हैं कि निर्विकारी किसको बनाया जाता है । कोई न कोई बैठ करके कोई बात सुनाते हैं तो तभी निर्विकार बनते हैं; क्योंकि निर्विकारी बनने से भला हम क्या बनेंगे, वो भी तो कोई को मालूम नहीं है । देखो, सन्यासी निर्विकार बने हैं । है ना बरोबर! अच्छा, निर्विकार बनने के बाद हमको क्या होगा देखो कोई को भी पता नहीं है । अरे, हम पवित्र बनते है बरोबर । ये जो निवृत्तिमार्ग वाले हैं, ये पवित्र बनने के लिए तो भागते हैं ना । उनको ये तो कुछ भी पता नहीं है कि हम पवित्र बनकर कोई पवित्र दुनिया में जाएँगे, वो ये नहीं जानते हैं; क्योंकि वो जानते हैं कि हमको दुनिया मे नहीं जाना है, हमको निर्वाणधाम में जाना है । नाम पता नहीं है ना उन बच्चों को कि पवित्र बन करके हम पवित्र दुनिया में फिर जाएँगे, वो नहीं मानते हैं; क्योंकि इस समय मंर इतना दुःख है जो बोलते हैं कि इससे तो मुक्तिधाम अच्छा है । उससे तो मोक्ष अच्छा है । मोक्ष भी बहुत मांगते हैं । अनेक मत हैं ना; परन्तु बाप ने बच्चों को समझाया है कि बच्चे, इस ड्रामा से मोक्ष किसको मिलने का है नहीं । मोक्ष माना इस दुनिया में आवे ही नहीं, ये पार्ट से हम मुक्त हो जावे; परन्तु अभी बच्चे तो जान गए हैं कि ये जो भी इतने एक्टर्स हैं सबको वापस जाना है । ये याद कर लेना 84 पूरा हुआ है, बाबा लेने आया हुआ है और बोलते हैं जितना जो मुझे याद करते रहेंगे, बहुत सीधे-सीधे आते जाएँगे । अगर याद नहीं करेंगे तो तूफान लगते जाएँगे । यह बता देते हैं अच्छी तरह से..... और ये भी विवेक कहता है कि निरंतर याद करें उनको तो बड़ा मुश्किल है । भले बाबा छुट्‌टी देते हैं कि बच्चे, निरंतर याद न कर सकेंगे, इसलिए तुम बच्चों को छुट्‌टी है । कर्मयोगी हो ना! भले कर्म का जो समय है तो अगर उनमें भूल भी जाओ, और देखा गया है कि कितनी भी कोशिश करते हैं कि कर्म करते, खाना खाते याद करें, वो भी घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं । इससे सिद्ध होता है कि टाइम लगता है, ऐसी अवस्था को पाने पुरुषार्थ करना होता है । देखो, जैसे कॉलेज में बच्चे पढ़ते हैं ना, जो पुरुषार्थी होते हैं वो रात-दिन बगीचे में भी जा करके पढ़ाई करते हैं । उनको हॉबी रहती है कि हम पास विश्व ऑनर बने यानी गवर्मेन्ट से स्कॉलरशिप ले लेवें । जो बहुत शौकीन होते हैं वो स्कॉलरशिप लेने के लिए बहुत मत्थे मारते हैं और अगर नहीं तो तुम जाकर के पूछो, देखो ऐसे होता है क्या? अखबारों में भी तुम सुनेंगे । रात-दिन-सुबह को पढ़ाई में बहुत मत्थे मारते हैं कि स्कालरशिप मिल जावे । देखो, बच्चियाँ भी जो नंबर वन या टू में आती हैं ना, उनको स्कॉलरशिप मिलती है तो बड़े खुश होते हैं । यहाँ भी ऐसे ही है, बाप कहते हैं कि बच्चे, तुम भी स्कॉलरशिप लो । कौन-सी? तुम पहले पहले तख्तनशीन बन जाओ । तो देखो, दौड़ी पहनना चाहिए ना बच्चे! जो पुरुषार्थी हैं उनको दौड़ी पहनना चाहिए । इसलिए बच्चे भी याद करते हैं बाबा, हमको यहाँ सम्मुख आकर मजा बहुत आता है । तुम भी जानती हो कि बरोबर बाप सन्मुख हैं । तो डायरेक्ट यानी प्रैक्टिकल मे जिसका रथ है, उन द्वारा वो बैठ करके बच्चे-; भी करते हैं और घड़ी-घड़ी बोलते हैं, क्योंकि भूल जाते हैं ना । बच्चे बहुत भूलते हैं । हम आत्मा हैं सो भूल जाते हैं, देह-अभिमान में आ जाते हैं । तो यहाँ घड़ी-घड़ी कहते हैं । बच्चे जानते हैं कि बरोबर परमात्मा इसमें प्रवेश हो करके हमको सन्मुख कहते हैं । भले बाबा ने समझाया है कि मम्मा के भी शरीर में आ सकते हैं मुरली बजाने के लिए, परन्तु वो तो कोई को पता नहीं पड़ता है ना । इमैजिनरी होता है कि बाप आया हुआ है । यहाँ तो तुम जानते हो ब्रहमा के तन में तो उनका मुकर्रर है । उनके सामने तुम बच्चों को पक्का करने के लिए कहते हैं कि बच्चे, तुम आत्माएँ हो । मैं आत्माओं से बात कर रहा हूँ । मैं आया हुआ हूँ । तुम हमको पुकारते थे कि बाबा आओ । बाबा कहते थे हमको, सो भी निराकार बाबा; क्योंकि तुम भी निराकारी तो हम भी निराकार । तो तुम बच्चे पुकारते रहते हो भक्तिमार्ग में इस शरीर द्वारा । भिन्न-भिन्न नाम-रूप, देश-काल का शरीर धारण कर, फिर भी मुझे याद करते आए हो । अभी मैं सम्मुख आया हूँ । फिर देखो, सन्मुख बात कर रहा हूँ ना । कैसे सम्मुख बात कर रहा हूँ? ये भी आधार लिया है, तुमने भी आधार लिया हुआ है । तुमको अपना आधार है, इनको बाहर का आधार है । लोन पर आधार है और तुम बच्चे सम्मुख हो, जानते हो कि बरोबर बाबा कहते हैं कि अभी ये नाटक पूरा हुआ है, अभी सबको ये पुराना चोला छोड़ना है और ये दुनिया विनाश हो जाने वाली है, खतम हो जाने वाली है, इसलिए तुम निरंतर याद करने की कोशिश करो; क्योंकि अंत काल में तुम्हारी निरंतर याद चाहिए कछ समय से । ऐसे न हो कि तुमको फिर कुछ याद पड़े । याद पड़ेगा तो फिर सजा भी खा लेंगे । पिछाड़ी में पुनर्जन्म तो मिलने का है नहीं । याद की सजा मिलेगी । जिस-जिस को याद करे वो धारण कर फिर सजा पाएँगे । इसलिए याद बाहर की भूल जाओ । जितना हो सके बुद्धि मे बस बाबा ही याद रहे, क्योंकि जब तुम यात्रा पर जाते हो ना, वो तो छोटी यात्रा है । भई, हम जाते हैं श्रीनाथ द्वारे । तो बस, श्रीनाथ द्वारा ही तुम बच्चों को याद रहना चाहिए । कोई पूछेगा कहाँ जाते हो? हम श्रीनाथ द्वारे जाते हैं । तुम्हारे से कहा, तुम बैठे रहते हो, कहाँ जाते हो? भई बात सुनावे! हमारी जो आत्मा है वो तो परमात्मा के साथ योग लगाए जा रही है । मैं ट्राम में बैठा हूँ बस में बैठा हूँ कहाँ भी बैठा हूँ हमारी यात्रा सच्ची तो वो है और फिर शरीर निर्वाह अर्थ जो कर्मणा का.. .सो तो यहाँ बैठे हैं देखो । यहाँ जाते है, दिल्ली जाते है, फलाने जाते हैं । तुमको इतनी प्रैक्टिस करनी चाहिए कहाँ भी हो, तो उनको याद रहना चाहिए । किसको भी कहना हो तो याद रखना कि भई, तुम अपने बाप को जानते हो? भगवान, जिसको बाप कहा जाता है, परमपिता कहा जाता है, उनको जानते हो? वो कहेंगे सर्वव्यापी है । तो उनसे कहो, नहीं ऐसा नहीं कहो; क्योंकि बाप से तो वर्सा मिलता है । अगर कह देंगे सर्वव्यापी, तो तुमको कुछ पता ही नहीं पड़ेगा कि हमको वर्सा कौन-सा मिलेगा? सर्वव्यापीपने में कोई वर्सा मिल सकता है क्या? नहीं, बाप तो स्वर्ग का रचता है, बेहद का बाप है । अभी उनसे तो स्वर्ग का वर्सा मिलता है । अगर सिर्फ सर्वव्यापी कह देंगे तो मतलब ही नहीं निकलता है कि वो हमारा कोई पिता है, हम बच्चे हैं । हम बच्चों को पिता से वर्सा मिलना है । अगर हम सभी पिता हैं तो फिर वर्सा कैसे मिलेगा! पिता को कोई वर्सा मिलता है क्या? पिता को वर्सा देना होता है । बच्चों का पिता बन गया ना, तो उनको वर्सा देना है । उनके आश में ये नहीं रहती है कि मुझे कोई वर्सा मिलता है । उनकी तो आश में रहती है मुझे वर्सा देने का है । इस पिता के भी दिल में है हमको वर्सा देना है, लेना तो नहीं है ना । पिता को कैसे कोई से वर्सा लेना होगा? पिता और बच्चों का सबंध ही है- पिता को वर्सा देना है बच्चों को वर्सा लेना है । पिता को फिर वर्से की उम्मीद नहीं रहती है । वो तो जब छोटा है तब पिता से उम्मीद रहती है कि इस पिता से वर्सा लेना है । पिता बन गया फिर वर्सा काहे का, फिर देने का है । बच्चा बन गया ना, उनको फिर वर्सा देना होता है । देखो, ये भी ऐसे ही है ना, तुम बच्चे बने हो, बाबा कहते हैं- तुमको वर्सा देना है । इन बच्चों को बाप को वर्सा देना है; परन्तु सच्चे बच्चे हो ना! तो तुम भी देखो यहाँ सच्चे बच्चे हो ना । तो तुमको सच्चे बच्चे होने के कारण जो वर्सा मिलता है, तो वर्सा देने वाले को तो याद जरूर करना चाहिए ना । जो कच्चे बच्चे होंगे ना..उनको याद नहीं रहती है । सच्चे को मदद करते हैं ना । सच्चे दिल पर, सच्ची आत्मा पर साहब राजी । तो कितना सच्चा बनना चाहिए । देखो है ना पाइंट बड़ी कड़ी । फिर सच्चे वाले दूसरे कोई को भी याद न करें; परन्तु शरीर निर्वाह के अर्थ बहुत याद करना पड़ता है । शरीर निर्वाह के अर्थ भले याद करो । बाबा कहते हैं ना- ये तुम्हारा कर्म है, कर्म भले करो' पर जब फुर्सत हो कछुए के मिसल तो फिर मुझे याद करो । जितना समय तुमको मिल सके, जितना कर सको, इतना याद करो तो याद की यात्रा का रजिस्टर तुम्हारा ठीक होता जाएगा; क्योंकि बच्चों को फिर खुशी होगी । जितना याद करने का अभ्यासी हो, जो आदत मनुष्य को पड़ती है वो वृद्धि को पाती चली आती है । तो एक ये बैठ करके भी अच्छी तरह से; 84 जन्म पूरा हुआ, बाप आया हुआ है, उनसे वर्सा लेने का है । बस, अंदर में एक मंत्र पढ़ लो 84 पूरा हुआ, अभी तो नाटक पूरा होता है, हम जाते हैं घर । हूबहू जैसे लौकिक नाटक वाले करते हैं ना. ........ तुम हो बेहद के नाटक वाले । तो बेहद का नाटक पूरा हुआ । उनका है हद का, तुम्हारा है बेहद का । अभी समझ लेना चाहिए ना या प्वाइंट लिख देना चाहिए....बाबा ने कहा था ना कि बरोबर अभी नाटक पूरा होता है और तुम सबको वापस जाना है, इसलिए मुझे याद करो । बस, मुझे याद करो क्योंकि उस गीता में भी तुम दो समय में देखेंगे, मन्मनाभव मद्याजीभव आदि में मन्मनाभव मद्याजीभव अंत में भी लगाया हुआ है, क्योंकि कुछ तो लून है ना । आटे में कुछ लून है तो सही ना! कुछ ज्ञान है । ये भी शुक्र करो, जो देवी-देवताओं का स्टेटस है, चले नहीं गए हैं, यहाँ हैं । दूसरे जो आते हैं ना इस्लामी, बौद्धी क्रिश्चियन वगैरह उनका कोई चित्र थोड़े ही रहता है । तुम्हारा तो चित्र है । जो अभी तुमको नॉलेज देते हैं उनका चित्र है ब्रहमा का पुष्कर में, अजमेर में । एक ब्राहमण होते हैं जो पुष्करणी होते हैं, जो कथाएँ सुनाते हैं, वो जास्ती वैष्णव होते हैं । वो जो ब्राहमण होते हैं ना.. धामा खाते हैं. ... । किस्म-किस्म के ब्राहमण होते हैं । सारस्वत नाम रख दिया है । सभी थोड़े ही ये नाम रखते होंगे । ये गुजराती क्या नाम बोलते हैं, मराठी क्या नाम बोलते हैं, भिन्न-भिन्न नाम हैं । तो भाषाएँ कितनी हैं । ये तो बच्चे जानते हैं कि हम जो अपनी राजधानी स्थापन करते हैं, उनमें हमारी फिर एक ही राजधानी, फिर लैंग्वेज होगी, जो हम कल्प पहले भी ये लैंग्वेज में बातचीत करते होंगे । ऐसे कहेंगे ना । बच्चों को ये मालूम है कि वहाँ की लैंग्वेज दूसरी होती है । कोई संस्कृत वगैरह से कुछ मतलब नहीं रखती है, क्योंकि बच्चे आ करके वहाँ के बताते थे, उनसे पूछा जाता था । बच्चे जानते हैं कि उनसे पूछा जाना है । जब पार्ट बजाती थी ना, स्कूल में जाती थी या शादी होती थी तो उनसे ये पूछते थे कि गागर को क्या कहा जाता है? किताब को क्या कहा जाता है? फलाने को क्या कहा जाता है? तो उस भाषा में बताते थे । यहाँ की भाषा नहीं, उस भाषा में । तो अभी बच्चे जानते हैं कि हर एक जो भी राजाई होती है उनकी अपनी-अपनी भाषा होती है, तब तो इतनी भाषाएँ हो गई हैं ना । देखो, उर्दू यहाँ थोड़े ही होगी । मुसलमान लोग आते हैं तो उन्होंने ये भाषा निकाली । तो अभी तुम बच्चों को तो खुश रहना है कि हम अलग राजधानी स्थापन कर रहे हैं और फिर वहाँ अपनी भाषा बनाएँगे । एक भाषा कोई नई होगी । जो भाषाएँ यहाँ हैं संस्कृत वगैरह वो वहाँ नहीं हो सकती है । उनकी रसम-रिवाज अपनी । अभी वो तो तुम बच्चे जानते हो कि जो रसम-रिवाज वहाँ की है, वो ड्रामा में नूंध है । उस ड्रामा के नूंध अनुसार वो अपना महल वगैरह सब बनाएंगे । हूबहू ऐसे जैसे कल्प पहले भी बनाए थे । नहीं तो भला क्या करेंगे! क्या ऐसे मकान में रहेंगे? ये कोई हीरे-जवाहरात के मकान थोड़े ही रखे हैं । जरूर बनेंगे ना । तुम बच्चे बनाएंगे ना । ये भी कोई बनाते हैं ना । ब्रिटिश गवर्मेन्ट थी, उन्होने न्यू दिल्ली बनाई और उनका नाम उन्होंने रखा । न्यू दिल्ली को भारतवासियों ने थोड़े ही बनाई । नहीं, इंगलिश वालों ने आकर ये न्यू दिल्ली बनाई, जिसको ये लोग न्यू कहते रहते हैं । अभी बरोबर तुम जानते हो कि हम उसका नाम दिल्ली नहीं रखेंगे । जानते हो कि इस दिल्ली को फिर तोड़ करके हमको तो सारी दुनिया नई में नई दिल्ली चाहिए । वो दिल्ली कैसी होगी? अपनी कैपिटल समझो, राजधानी की मुख्य । वो तो हमको हीरे-जवाहरातों का बनाना पड़ेगा हूबहू ऐसे । अभी वो है तो नहीं ना, वो कोई महल थोड़े ही रखे हुए हैं; परन्तु बुद्धि कहती है कि हम वहाँ बहुत फर्स्टक्लास महल बनाएंगे । अभी जो पक्के होंगे वो समझेंगे कि हम फर्स्टक्लास महल बनाएंगे, हम पहले घर जाएँगे, फिर आ करके राजधानी में अपना महल बनाएंगे । क्यों? मन्मनाभव मद्याजीभव । तो.... .जब ये आपस में मिलें, तब कहो, बहन जी या कोई भी भाई जी, अभी तो बाकी थोड़ा समय है इस छी:-छी: दुनिया में, हम तो अभी जाएँगे बाबा के घर । पीछे आएंगे, आ करके अपनी राजधानी संभालेंगे । ऐसे कहेंगे ना! फिर ऐसे-ऐसे. लिबास पहनेंगे जैसे देखते हो सामने । अभी ये प्रैक्टिकल तो नहीं है ना, वहाँ तो और ही होंगे । ये तो खाली पत्थर की मूर्ति है और जो यहाँ पर जेवर भी पहनाते हैं तो आगे तो बहुत सच्चे पहनाते थे । लक्ष्मी नारायण का मंदिर अगर बना हुआ होगा तो कितना डाला होगा और फिर जिसमें शिव का मंदिर था, उसमें तो कितना बड़ा-बड़ा हीरा होगा । शिव का जो लिंग बना हुआ होगा, वो तो बहुत बड़े-बड़े सख्त पन्ना होता है, माणिक होता है, सफेद हीरा होता है, नीलम होता है, उनके वो बनाते थे । समझने की बातें हैं ना! कोई ऐसी तो बात नहीं है; क्योंकि जानते हैं कि हमारे शिवबाबा के मंदिर को, जिसको सोमनाथ कहा जाता है, बरोबर मुसलमानों ने आकर के लूटे थे, जो भक्तिमार्ग में शुरू में बनाए । अब मालूम नहीं है किसको कि कब बनाए थे? तुम जानते हो कि बरोबर आज से 2500 बरस पहले, 2200 बरस पहले 2000 बरस पहले जरूर इस शिव का मंदिर पहले बना होगा क्योंकि आपे ही पूज्य सो फट से पुजारी बन जाते हैं । पूजा फिर किसकी? पूजा कहा ही जाता है जिस मूर्ति को कोई बैठकर पूजा करे उसको पुजारी कहा जाता है । जब तलक कोई मूर्ति नहीं है, पुजारी उनको कहा ही नहीं जा सकता है । तो देखो, आपे ही पूज्य लक्ष्मी नारायण आपे ही पुजारी । तो बैठ करके अपने ताज व तख्त देने वाले का सोमनाथ का मंदिर बनाया । उनका नाम ही है सोमनाथ; क्योंकि तुम बच्चों को सोमरस पिलाते हैं । सोमरस को कहा जाता है नॉलेज । नॉलेज देने वाला । तुमको धनवान बहुत बनाया है एकदम । फिर उसी धन से तुम बैठ करके उनका मंदिर बनाते हो । किसका? बाप का । तो जानते हो कि बरोबर हम जाकर वहाँ; क्योंकि प्रजा भी तो होगी ना । भक्तिमार्ग में प्रजा बहुत होगी, ढेर होगी; क्योंकि फिर तो घर-घर में मंदिर बनाते हैं । तुम जानते हो कि बरोबर वहाँ जब भक्तिमार्ग शुरू होगा तो हम पुजारी बन पहले-पहले शिव की भक्ति करेंगे । बाबा हमको अभी जो नॉलेज दे रहे हैं, वो नॉलेज तो भक्तिमार्ग में नहीं रहेगी । भक्तिमार्ग में बिगर नॉलेज के देखो कितने चित्र बनाते हैं? जिसका आता है अंधश्रद्धा से चित्र बना देते हैं । नहीं तो यथार्थ चित्र तो बच्चों को समझाया गया है शिवबाबा,ब्रह्मा विष्णु शंकर । फिर संगमयुग पर सबसे ऊँच शिवबाबा ब्रहमा-सरस्वती और उनके बच्चे । फिर इनसे दो ग्रेड कम लक्ष्मी नारायण । ऊँच नहीं, दो ग्रेड कम, क्योंकि यहाँ तुम बहुतों का जीवन बनाती हो । वहाँ तो कोई मनुष्य बैठ करके कोई जीवन नहीं बनाते हैं किसका । गुरु-गोसाई तो कोई होते ही नहीं । तो बाप बैठ करके समझाते हैं, सन्मुख बाप है तो तुम बच्चों को अच्छी तरह से समझाते हैं । बच्चे भी कहते हैं ही, हम आत्माएँ बैठे है और बाबा से सुन रहे हैं । बाबा भी निराकार है । हम आत्माएँ कानों से सुन रही हैं । हम आत्माएँ ही एक शरीर छोड़ा, दूसरा लिया । कोई जन्म में बैरिस्टर बना, कोई जन्म में क्या बना, कोई वाढा बना, कोई क्या बना । ऐसे नहीं है कि कोई जन्म में गधा बना, कोई जन्म में कुत्ता बना । जैसे गरुड़ पुराण में दिखलाते हैं । तुम अभी जानते हो अपने 84 मनुष्य तन को कि बरोबर मैं ऐसे-ऐसे. वर्ण में आती-जाती हूँ । आते है, फिर जाते हैं, फिर आते हैं । बरोबर सतयुग में थे तो पुनर्जन्म सतयुग में, त्रेता में थे तो पुनर्जन्म त्रेता में, द्वापर में तो पुनर्जन्म द्वापर में, कलहयुग में तो पुनर्जन्म कलहयुग में होता है । ऐसे ये समझ गए ना अच्छी तरह से और बरोबर तुम ये अच्छी तरह से जानते हो हम आत्मा अभी आशिक बनी हैं माशूक परमात्मा का । माशूक परमात्मा का आत्मा आशिक बन और उनसे वर्सा ले लेती है सिर्फ अब ।..... तुम आत्माएँ आशिक बनी हो माशूक परमपिता परमात्मा की । वो विकार के लिए आशिक-माशूक बनते हैं । वो शरीर के.. .. .जिनका नाम गाया जाता है कि वो आशिक-माशूक शरीर पर फिदा होते हैं, विकार में नहीं जाते हैं । ये फिर आत्मा आशिक होती है माशूक परमात्मा की । यह ठीक बात है ना! ऐसे कोई की भी आत्मा प्रैक्टिकल में, वो भक्तिमार्ग मे नहीं, देखते हो कि बरोबर शिवबाबा के सारे भगत आशिक हैं, उस माशूक को याद करते हैं । वो जो आत्माएँ हैं, उनके सामने उनका माशूक बैठा रहता है । माशूक की महिमा बहुत भारी है । पतित-पावन माशूक को कहा जाता है । माशूक आ करके, जो आशिक हैं, जो पतित बन गई हैं, उनको आ करके पावन बनाते हैं । तो आत्मा पतित बनती है, आत्मा ही पावन बनती है । आत्मा जितना-जितना पतित बनती है इतना-इतना पतित शरीर मिलता जाता है । ताकी पिछाड़ी में दोनों मुलमे जैसे बन जावें । अभी समझा बच्चों ने अच्छी तरह से, बाबा क्या आ करके सुनाते हैं? और फिर बच्चे तुम्हारा इंजाम है- सुनकर फिर औरों को सुनाएंगे ये चक्कर कैसे फिरता है । हम अभी किसके आशिक बने हैं? माशूक के हम आत्मा आशिक बनी हैं । बस, इस समय में आशिक और माशूक प्रैक्टिकल में बनते हैं । गाते बहुत हैं । उफ! देखो, मुसलमान कव्वाली गाते हैं तो भी इश्क-इश्क... । किसके साथ इश्क? कोई गायन थोड़े ही होता है उनके इश्कपने का । इस समय गायन है तुम आत्माएँ अभी आशिक बनी हो माशूक परमपिता परमात्मा से, जो माशूक फिर शरीर में बैठकर तुम बच्चों को राजयोग सिखलाते हैं । ये प्योर है ना! ये मुसाफिर तुम बच्चों को प्योर बना करके बहुत.... .. .ये अपना चोला हुसैन का नहीं लेते हैं । ये कभी भी फर्स्टक्लास ड्रेस नहीं पहनते हैं और तुम बच्चों को पहनाते हैं । बच्चे, तुम वहाँ जा करके फर्स्टक्लास शरीर धारण करना । मेरे तकदीर में ये पुराना शरीर है । मेरे तकदीर में ये पुराना ही लॉन्ग बूट है । मैं कभी भी नया शरीर धारण ही नहीं करता हूँ । तुम ही नया शरीर धारण करते हो, तुमको ही पुराना होता है । मैं तो शरीर धारण नहीं करता हूँ और करता हूँ तो ये पतित । अभी जान लिया है ना, पहचान लिया है, बुद्धि में बैठता है कि इस समय मैं आता हूँ? अच्छा चलो, इनके शरीर में कोई काम करता हूँ हैं तो सभी पतित ना । हम पावन शरीर में आते ही नहीं हैं । मुझे न पावन शरीर की तकदीर है, न कोई राज्य करने की तकदीर है । इसलिए मैं तुम बच्चों का निष्काम सेवाधारी हूँ । ऐसे निष्काम माशूक सेवाधारी को भूलना नहीं चाहिए । तुम ऐसे को बहुत भूल जाते हो । भूल जाते हो तो फिर तुमको माया चक पहनाती है । अच्छा बच्चे, टोली ले आओ । देखो, ये कैसे हैं नेचर क्योर । किस प्रकार से? कोई भी नहीं । बाबा कहते हैं मुझे याद करने से एवर क्योर बन जाएँगे । फॉर 21 जनरेशन तुम कभी भी बीमार नहीं रहेंगे । अभी ये देखो नेचर क्योर कैसा है? वो तो पाई-पैसे का भी नहीं है । ये तो गारंटी करते हैं । और कोई गारंटी कर सके फॉर 21 जनरेशन तुम निरोगी रहेंगे, क्योर रहेगे? क्योंर बनाते हैं ना; क्योंकि ये बीमारी है उनको छुड़ाने के लिए । कहते है.. इन-इन बातों से तुम क्योंर हो जाएँगे । पीछे अनेक प्रकार के, कोई कैसा, कोई कैसा रास्ता बताते हैं । उन नेचर क्योंर में भी बहुत रास्ता बताने वाले हैं । परहेज कराते हैं, क्या कराते हैं-क्या कराते हैं । परहेजें तो हैं और याद, क्योंकि देवता बनना है ना, इसलिए तुम लोगों को परहेज है । बाकी निराकारी निर्विकार बनने के लिए तुम्हारे लिए सिर्फ याद । इसको कहा जाता है- रीयल नेचर क्योर फॉर 21 जनरेशन... .याद करने से । आशिक और माशूक तो कड़े अक्षर, छी:-छीः अक्षर है ना, इसलिए हम बाप कहते हैं । अपने पुराने शरीर से सुनते हैं, ये भी पुराने शरीर से सुनाते हैं । ये बता देते हैं कि बस, अभी बाकी कितना रोज होंगे ।..... .जितना ये योग में रह करके बाटेंगे उतना उनका हृदय शुद्ध होगा । इसको देखते रहो, शिवबाबा को याद करते रहो, फिर देते रहो । राय भी देता हूँ जो-जो जैसा है, अगर तुम चाहो कि मैं बहुत ऊँचा पद पाऊँ, मम्मा-बाबा के पिछाड़ी में हम तख्त लूँ अभी भी ले सकती हैं, अगर श्रीमत पर चले तो । मीठे-मीठे मीठे सौभाग्यशाली और भाग्यशाली सिकीलधे बच्चे! सौभाग्यशाली कहा जाता है जो पुरुषार्थ करते हैं बाप से पूरा वर्सा लेने का, फिर भाग्यशाली, और फिर कहा जाता है दुर्भाग्यशाली, जो आश्चर्यवत् सुनन्ति कथन्ति और भागन्ति हो जाते हैं । उनको फिर कहा जाता है महान दुर्भाग्यशाली । उन जैसा दुर्भाग्यशाली कोई इस सृष्टि में, ड्रामा में होता ही नहीं है । तो बाप ऐसे कहते हैं ना- सौभाग्यशाली, सिकीलधे नूरे रत्नों प्रति मात-पिता, बाप-दादा का, दिल व जान, सिक व प्रेम से यादप्यार और गुडमॉर्निग फॉर ८ टाइम बींग या विदाई थोड़े समय के लिए । सोमवार है ना! तो सोमवार और गुरुवार, सोमवार शिव का और गुरुवार सोमनाथ का मनाते हैं कि बरोबर सोमनाथ यानी सोमरस पिलाया । पिलाया शिव ने; परन्तु पहले जो तुम सोमनाथ का मंदिर बनाते हो; क्योंकि खजाना दिया, पीछे..... । (बच्ची ने कहा- आज मम्मा एक बजे आएंगी) हाँ, मम्मा आएंगी, उनके लिए तो बच्चों को बता दिया कि क्या करना । थोड़ा-बहुत कुछ फूल-बूल यहाँ लगा दिया तो बाबा मना नहीं करते हैं । कोई कीले-वीले नहीं ठोंकने का है यहाँ ।