27-07-1964     मधुबन आबू     प्रात: मुरली    साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हेलो, आज सोमवार जुलाई की सत्ताइस तारीख है, आज मनहरणी माँ मधुबन पधार रहीं है, आइये आपको उनके स्वागत का आँखों देखा हाल सुनाएँ........

कोई अपसेट नहीं है सिवाय लकी सितारों के । ये तो सब मिले हैं ना! जो नए आए हैं । (मम्मा ने कहा- ये झॉसा पार्टी है) (बाबा ने पूछा-) मम्मा इनसे मिली हैं? (आज सुबह को आए हैं । कहते हैं नहीं मिले हैं...) अच्छा, बापदादा ये मम्मा जगदम्बा और सिकीलधे सभी भिन्न-भिन्न सेंटर्स के स्टार्स मम्मा और बाबा को इकट्‌ठा यहाँ न देखा है सो तो हाथ उठाना । (इकट्‌ठा आज देखा है) बाबा ने कहा- नहीं, आगे भी कभी? मम्मा-बाबा यहाँ रहते हैं ना । तो ये तो आते हैं ना । हाँ, हाथ थोड़ा ऊंचा उठाओ । सब हाजुर हैं और जिन्होने नहीं देखा है, वो हाथ उठाओ । देखो, कितने हैं? 4,5,6,7,8,9,10,11,12,13,14,20-25 हैं. 25-30। अपना अंदाज लगाना चाहिए कि हमे अभी घर, स्वीटहोम जिसको कहा जाता है, बाबा के घर पहुंचने में अभी कितना समय लगना है । भले यहाँ बैठे हो तो भी यात्रा अपने शांतिधाम तरफ है । तो हमेशा दिल मे यही रखे रहो कि हम अभी, क्योंकि यात्रा पर तो हैं ही । जैसे मनुष्य यात्राओं पर पैदल जाते हैं तो फिर समझते हैं अभी कोस, दो कोस, चार कोस है श्रीनाथ द्वारा या अमरनाथ । यहाँ हमेशा दिल में ख्याल करते रहो कि हम आत्माएँ अभी बाबा के घर, बिल्कुल नजदीक हैं, पहुंची की पहुंची । अगर ये ख्याल दिन-प्रतिदिन अच्छी तरह से जमाते रहें कि घर अभी पहुँचे कि पहुंचे । अभी हम जा रहे हैं, भले नाटक पूरा है, तो भी हम जा रहे हैं । हम इस किनारे से उस किनारे के बिल्कुल नजदीक हैं । ये अपन से बात करते रहो । अपन को जैसे कि समझाते रहो । इसको विचार-सागर-मंथन करना कहा जाता है । अभी हम तो बहुत दूर चले गए हैं । भले शरीर यहाँ है, पर हम आत्मा बहुत दूर चली गई हैं, क्योंकि शरीर छोड़ने से ही भागेगी । ठीक है ना! वो तो सेकेण्ड की बात हो जाएगी, परन्तु नहीं, हमेशा ऐसे समझो कि अभी तो बहुत नजदीक । जितना हम याद करते हैं उतना नजदीक । नजदीक जाकर फिर बाबा के गले का हार बनेंगी । शिवमाल बनेगी या रुद्रमाल बनेंगी । तो हमेशा यही रटते रहो कि हम यहाँ थोड़े ही हैं । जैसे देखो, कृष्ण की भक्ति मे बैठते हैं, तो समझते हैं कि हम कृष्णापुरी में जावे । तो उनको कृष्णपुरी भासती है ना कि हम कृष्ण की पुरी में जावें । अभी तुम जानते हो कि हम जा रहे हैं । वो ऐसे नहीं समझते कि हम कहाँ जा रहे हैं? या रामचन्द्र से मिल रहे हैं या कृष्ण से मिल रहे हैं या शिव से मिल रहे हैं, नहीं । वो लोग ये नहीं कह सकते हैं । वो सिर्फ याद करते हैं । तुम तो जा रहे हो । तुमको अच्छी तरह से अपनी मंजिल का पता है । और कोई को मंजिल का थोड़े ही पता है । तो मंजिल पर हमेशा कोशिश करो कि अभी हम जा रहे हैं । हमारी आत्मा याद कर रही है माना जा रही है । अगर ये पुरुषार्थ करते रहेंगे तो बड़ी खुशी चढ़ेगी क्योंकि दुनिया में दूसरा कोई थोड़े ही है कि वो कह सके कि हम कोई निर्वाणधाम मे जा रहे हैं या मुक्तिधाम मे जा रहे हैं या स्वर्ग में जा रहे हैं । ऐसे कोई भी यहाँ इस दुनिया में नहीं होगा सिवाय तुम बच्चों के, कि हम जा रहे हैं । कहाँ जा रहे हो? हम जा रहे हैं अपने सुखधाम वाया शांतिधाम । कोई भी पूछे तो उनको बोलो, देखो हम चलते फिरते उठते यात्रा पर हैं । अरे भई, कहाँ यात्रा पर हैं? हम जाते हैं सतयुगी सुखधाम वाया शांतिधाम वा निर्वाणधाम । कोई से नहीं पूछा जाता है अभी कहाँ चले । तो बस, वो वायरे हो जाऐगे । कब तुम्हारे से कोई मिट-मायट(मित्र-संबंधी) पूछे कहाँ जाती हो? (तो बोलो)- कहाँ जाती हूँ तुमको यह बताऊँ? हम जाती हैं अपने सतयुगी सुखधाम और वाया हम शांतिधाम जा रही हैं । अरे, तुम तो यहाँ चल रही हो । नहीं-नहीं, हमारी बुद्धि याद वही है । हमको वो रास्ता मिला हुआ है जाने के लिए । तो वो बेचारा समझेगा कि कहते तो राइट हैं, बरोबर जाना तो है सबको निर्वाणधाम । फिर निर्वाणधाम के पास पीछे तुम कहते हो कि हम जाते हैं सुखधाम । यह दुःखधाम है । तो दुःखधाम को भूलना चाहिए ना । भले रहते हैं वहाँ धंधे-धोरी में, पर बुद्धि में तो होना चाहिए ना कि हम अभी पुरुषार्थ कर रहे हैं, कमाई कर रहे हैं सुखधाम की । वो शरीर निर्वाह के लिए कमाई करते हैं और ये आत्मा को वहाँ पहुंचने के लिए करते हैं । बच्चों को कोई मेहनत नहीं देते हैं । देखो, बुडढी-बुडिढयॉ सिर्फ इनको कहा जाता है, बाप को याद करो । जो निराकार परमधाम में रहने वाला बाप शिवबाबा है उनको याद करो । शिव को हमेशा सब बाबा ही कहते हैं । शंकर को भी बाबा कभी नहीं कहते, विष्णु को बाबा नहीं कहेंगे । ब्रहमा को बाबा कहेंगे, क्योंकि प्रजापिता ब्रहमा मशहूर है ना । तो नाम सुनकर कह सकेंगे प्रजापिता के हम बच्चे हैं जरूर । समझे! अभी तुम ही कहेंगे वास्तव में, क्योंकि सन्मुख हो और दूसरे सिर्फ ये कहेंगे कि बरोबर इस मनुष्य सृष्टि में सतयुग में पहले पहले मनुष्य प्रजापिता ब्रहमा के औलाद होते हैं, पीछे उनके मल्टीप्लीकेशन होती है । बाकी यूँ तो फिर सब इस समय में याद करेंगे बाप को । आपदाएं-विपदाएं जब बहुत आती हैं तो सब गॉड फादर को याद करते हैं । प्रजापिता ब्रहमा को सिर्फ तुम जानती हो, याद करती हो, सन्मुख बैठी हुई हो । अच्छा । मम्मा कचहरी की? पूछा सबसे । क्या पूछते हो? (किसी ने कहा- सेलवेशन) कोई सेलवेशन पूछा और फिर जब पूछते हैं, कोई ने किसको दुःख तो नहीं दिया? वो भी पूछा है? (आज नहीं पूछा)तुम बताओ, मम्मा को किसने दु:ख दिया? देखो, मैं प्रश्न पूछता हूँ ऐसे मत समझो बातें बता रहे हैं । तुमको कुछ पता नहीं पड़ता है । (बच्ची ने कहा- आता ही नहीं है) देखा, इनको आता ही नहीं है । देखो, अभी हम बड़े-बड़े महारथियों से पूछता हूँ । (किसी बच्चे ने कहा- हम प्रश्न लेकर आए हैं) प्रश्न लिख करके आए हो । अच्छा, तुम बताओ मम्मा को किसने दुःख दिया? मम्मा तो यहाँ पूछती है ना सबसे कि कोई ने किसको दुःख तो नहीं दिया है? अभी तुम बोलो, मम्मा को किसने दुःख दिया? बताओ । इसको अक्ल नहीं है, आता नहीं है । देखो-देखो, ब्रह्माकुमारी बनी है ब्राहमणी बड़ी! तुम बोलो, चंद्रमणि.. इनको भी नहीं आता है । बुद्धू। अभी देखो, मैं किसको पूछता हूँ । हाँ, इसको अक्ल आया, देखा । 6 महीने सच बोला, ठीक बोला । रॉंग है । अच्छा, और कौन महारथी है यहाँ देखें । गवर्नर तुम बताओ, मम्मा को किसने दु:ख दिया? ठहरो-ठहरो कौन राइट है! बुद्धू । मम्मा जानती है, मैं...पूछता हूँ बहुतों से । और कोई महारथी देखे कहाँ है! अच्छा ठहरो, विश्वकिशोर । मम्मा को दुःख किसने दिया? (बच्चे ने कहा- माया ने दिया था) ये भी नहीं जानते हैं । (लोगों ने कुछ बोला) चुप । अरे मम्मा देखो तो मैं कितने प्रश्न पूछ रहा हूँ कितने किस्म-किस्म के । तो प्रश्न मे कुछ है (किसी ने कहा- हाँ, है जरूर) अच्छा, (किसी ने कहा- कर्मभोग) यह किसने कहा? (बच्ची ने कहा- इसने) हाँ, यह बिल्कुल राइट है । देखो, कितनी सीधी बात । यानी कर्मों ने दुःख दिया । पास्ट के कर्मों ने.. .. बाबा को भी, बहुतो को...... फिर याद कर लेना, भूलना नहीं । (म्युजिक बजा) आप शुरू करेंगे या बाबा शुरू करेंगे?.... अच्छा, मात-पिता व बापदादा का मीठे-मीठे सिकीलधे ज्ञान-सितारों प्रति दिल व जान, सिक व प्रेम से यादप्यार और गुडनाइट ।