28-07-1964     मधुबन आबू     प्रात: मुरली    साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हेलो, स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुलभूषणों को हम मधुबन निवासियों की नमस्ते, आज मंगलवार जुलाई की अट्ठाईस तारीख है, प्रात: क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।

रिकॉर्ड :-
तुम्हीं हो माता, पिता तुम्हीं हो.... ..... ....

ओम शांति । ठीक है । गीत बच्चों ने सुना कि हम परलौकिक मात-पिता के सन्मुख बैठे हुए हैं । बच्चे जानते हैं कि हम पतित-पावन मात-पिता के सन्मुख बैठे हैं और ये पतित भारत को पावन बनाने के लिए श्रीमत पर चल रहे हैं; क्योंकि बच्चे अभी अपने परमपिता परमात्मा की सर्विस में हैं; क्योंकि बाप भी इस सर्विस में हैं । ये भारत को पतित से पावन बनाय रहे हैं । फिर ये तो जानते हैं बच्चे, कोई नहीं जानते हैं कि बरोबर यह भारत पावन था और अभी पतित बना है । अभी पतित है जरूर । अभी बच्चों को ये मालूम है कि पावन दुनिया को 5000 वर्ष हुए । दुनिया तो कुछ भी नहीं जानती है । बच्चे अभी बाप की मदद से श्रीमत पर चल अपने तन-मन-धन से खास भारत की सेवा कर, इस भारत को रावण की जजीरों से छुड़ाय और राम राज्य स्थापन कर रहे हैं । ये बच्चे जानते हैं अच्छी तरह से और किसको भी समझाय सकते हैं कि हम पतित भारत को पावन बनाने की सेवा कर रहे हैं; क्योंकि तुम्हारी लड़ाई है पवित्रता के ऊपर । जानते हो कि लड़ाई में कोई न कोई तकलीफें होती हैं जरूर । देखो, कितने मनुष्य को तकलीफ होती है; क्योंकि वो हिंसक लड़ाई है । तुम्हारी तो हिंसक लड़ाई नहीं है । तुम्हारी तो अहिंसक लड़ाई है । अहिंसक लड़ाई किससे? वो हिंसक लड़ाई तो एक- दो में लड़ते हैं । तुम जो अहिंसक वारियर्स हो या सेना हो, तुम्हारी लड़ाई किसके साथ है? तुम्हारी लड़ाई है रावण रूपी पाँच विकारों से । ये भी जानते हो कि बरोबर हम कल्प-कल्प श्रीमत पर चल अपना राज्य स्थापन कर रहे हैं, क्योंकि बच्चे जानते हैं कि इस समय में सारी आसुरी मत या रावण की मत चल रही है । रावण की मत तो कहते ही हैं- काम क्रोध लोभ मोह अंहकार । इसको कहा जाता है रावण की मत वाले या आसुरी मत वाले । अभी बच्चे जानते हैं कि श्रीमत से तुम ब्राहमण दैवी मत वाले बन रहे हो, देवता बन रहे हो । यह तुम्हारा वर्ण अभी ब्राहमण वर्ण है । अभी गीता में तो कुछ नहीं लिखा हुआ है कि बाप ने आ करके ब्रहमा द्वारा यज्ञ रचा । यह भी कुछ नहीं लिखा हुआ है; क्योंकि बहुत ही यज्ञ बनवाय दिए हैं- दक्ष प्रजापति का यज्ञ या फलाना यज्ञ, ऐसे बहुत-कुछ नाम होंगे, फलानों ने यज्ञ रचे । ये यज्ञ हैं ही आम सारी पतित दुनिया को और खास भारत को पतित से पावन बनाने के लिए । बरोबर बेहद का बाप यहाँ आते हैं और आ करके बच्चों के साथ तन मन धन से, कोई भी पूछे तो बोलो- हम तन मन धन से भारत को फिर से दैवी राज्य बनाते हैं, क्योंकि यह भारत शुरू में वास्तव में राजस्थान था । सतयुग के आदि में राजस्थान था । तो राजस्थान, देवी-देवता धर्म वाला, सतयुग में कब स्थापन किया? कब बैठ करके स्थापना की होगी? तो तुम बच्चों को समझाया है कि कोई भी राजस्थान या दैवी राजस्थान स्थापन करने वाले कोई भी धर्म स्थापक नहीं होते हैं । बच्चे जानते हैं कि बरोबर हम हर एक समझते हैं, जानते हैं कि हम अभी अपना दैवी स्वराज्य स्थापन कर रहे हैं । ऐसे ही जैसे कांग्रेस ने मिल करके बापू गाँधीजी द्वारा तन मन धन से भारत की सेवा की । तन समझते हो? जेल भी जाते थे, तो तन की सेवा भी तो हुई ना और मन भी लगा हुआ था कि हम इन फिरंगी राज्य से भारत को लिबरेट करेंगे । ये फिरंगी यानी क्रिश्चियन राज्य से लिबरेट करते हैं और तुम बच्चे जानते हो कि बाप हमको इस रावण के राज्य से लिबरेट करते हैं । ये भी बापू जी, वो भी भारत का बापू जी । सबका बापू जी तो नहीं था ना । भारत का कोई बापू जी सच्चा भी नहीं । ये तो नाम रख दिया था बुजुर्ग को बापू जी । जैसे बहुतों को, मेयर को भी बापू जी कह देते हैं । तो देखो, कितने मेयर्स होंगे यहाँ म्यूनिसिपैलिटी के । तो उनको भी बापू जी कहते हैं, फादर कहते हैं । फादर्स तो उनके बहुत हैं । अभी तुम्हारा तो फादर एक है, फिर दूसरा न कोई । तुम अभी, जो सारी सृष्टि का बापू है, कोई हद वाला नहीं, बेहद का बापू जी सो तो कहा ही जाता है शिवबाबा को । तुम अभी जानते हो बरोबर हम शिवबाबा कहते हैं । ये बापू तो गुजराती अक्षर है ना । पतित-पावन जब आते हैं तो जरूर कहेंगे कि ये पावन भारत को पावन बनाने की सर्विस पर आय उपस्थित होते हैं । मैजॉरिटी ये पुरुषों की थी । दुःख जास्ती पुरुषों ने उठाया था । अब तुम माताओं को दुःख उठाना पड़ता है; क्योंकि सहन करना पड़ता है ना । तो तुम भेंट कर सकते हो कि उसने तो उनसे लिबरेट किया भारत को । फिर बाप यहाँ एकदम इस पतित सृष्टि को पावन बनाने के लिए आते हैं । सो जानते हैं बरोबर कि बाप जब नई सृष्टि रखेंगे तो पहले पहले तो ब्रहमा चाहिए । ब्रहमावंशी तो ब्राहमण हो जाएगा । ब्रहमा मुखवंशावली उनको कहा ही जाता है ब्राहमण; क्योंकि यज्ञ रचा जाता है । फिर तुम बच्चे जानते हो कि हम दैवी वंशावली बनते हैं अर्थात् फिर विष्णु के वंशावली बनते हैं । ये अच्छी-अच्छी पाइंट्‌स बुद्धि में धारण कर लेना चाहिए बच्चों को । तो बरोबर इस समय में हम बाबा के साथ मददगार हैं; क्योंकि श्रीमत पर कौन चलेंगे? कोई एक- दो को तो चलने का नहीं है ना । हजारों-लाखों को चलना है श्रीमत पर । श्रीमत सबको तो नहीं देंगे ना! जरूर कोई द्वारा देंगे । सेना चाहिए । बापू की भी सेना थी, बड़ी भारी सेना थी । फिर उनमें जरूर जानते हो कि कोई अच्छे नामी-ग्रामी थे, कोई कैसे थे, कोई कैसे थे । यह बहुत अच्छा है कि अब बरोबर वो बापू जी ने वो काम किया, ये बापू जी हमको रावण से छुड़ाते हैं और जय-जयकार बनाते हैं । बापू जी ने जो कुछ भी फिरंगियों से छुड़ाया, तो और ही यहाँ यवन दूसरे फिरंगी निकल गए । फिरंगी कहा जाता है फॉरेनर्स को । तो ये मुसलमान भी तो फॉरेनर्स है ना । ये गजनवी से आए हुए हैं असल । जब गजनवी आया था, उससे पहले कोई यहाँ मुसलमान थोड़े ही थे । उन्होंने आ करके लड़ाई छेड़ी । तो वो भी तो फिरंगी माना फॉरेनर्स ठहरे । वो क्रिश्चियन, वो मुस्लिम । अभी उनको तो भगाय दिया; परन्तु इनके कड़े दुश्मन सो तो वो हैं ना । वो ऐसे नहीं आकर कहते थे कि जो क्रिश्चियन नहीं बनेंगे उनको तलवार से मारेंगे । तो वो मुसलमान या यवन तुम्हारे पुराने दुश्मन हैं । ये बच्चे अभी जानते हैं कि ये क्रिश्चियन से उनको छुड़ाते हैं तो ये बाप तुम बच्चों को सबके बाँडेज से छुड़ाने के लिए श्रीमत दे रहे हैं । तो तुम बच्चों को ये समझना चाहिए जैसे वो कहते थे कि हम कांग्रेसी स्वराज्य स्थापन करते हैं, अभी राजाई तो कुछ भी नहीं । तो अभी तुम्हारी भी बुद्धि में आता है कि हम श्रीमत पर अपना दैवी स्वराज्य स्थापन कर रहे हैं । छोटे-बड़े ऐसे ही कहते हैं ना । आगे कोई कांग्रेस राज्य थोड़े ही था । नहीं । आगे तो गवर्मेन्ट का राज्य था । किंग एण्ड क्वीन वहाँ की थी, जिसने फिर यहाँ के जो राजा और महाराजा थे, उनके ऊपर जीत पहनी थी । लड़ाई तो की थी ना बच्चों ने । तो अभी तुम अपने तन मन धन से भारत को इन माया से छुड़ाने के लिए पुरुषार्थ करते हो श्रीमत पर । श्रीमत से ही तो श्रेष्ठ बनेंगे ना । तो हर एक को कदम-कदम पर श्रीमत लेनी पड़ती है र क्योंकि हर एक का कर्म बंधन अपना-अपना है, निराला है । तो अभी कर्मातीत अवस्था को पहनने के लिए, पाने के लिए अंत तक पुरुषार्थ करना पड़ता है । ऐसे कोई मत समझो कि कोई कर्मातीत अवस्था में आ गया है । नहीं । अभी तो बहुत पुरुषार्थ करते हैं । कर्मातीत अवस्था उसको कहा जाता है जो फिर शरीर को कोई भी दुःख न हो । ये जो पुराना शरीर है इनको पिछाड़ी तक दुःख होता है । कृष्ण को भी दुःख हुआ था, जो गीता में कहते है कि कृष्ण का पिछाड़ी में, बाण मारा, फलाना हुआ । होता है ना! तो ऐसे कोई मत समझे कि कोई भी अभी 16 कला सम्पूर्ण हो चुका है । उसको ही कहा जाएगा कर्मातीत अवस्था । यानी कि जो भी कर्म बोझ था, भोग था वो सभी योगबल से, सर्विस से भस्म हुआ । जब तक तुम कर्मातीत अवस्था को प्राप्त होने वाले हो तब तलक तुम्हारे ऊपर तूफान, कर्म का हिसाब-किताब की भोगना, यह चलती ही आएगी । अभी उसका तो कोई फिक्र नहीं करना चाहिए ना । यह तो एक लॉ कहता है । अभी वो कैसे होता है? कर्मातीत बनने के पुरुषार्थ में कैसे रहते हैं? बाप कहते हैं बच्चे, अशरीरी भव और याद करो बाप को । देह का अभिमान छोड़ो । अंग्रेजी मे भी अक्षर है ना 'बॉडी कॉन्शिअस, सोल कॉन्शिअस यानी देही-अभिमानी भव । यह अक्षर कहाँ से आए हैं? ये अभी के अक्षर हैं जो गाए ही जाते है- सोल कॉन्शिअस, बॉडी कॉन्शिअस । नहीं तो यहाँ कोई को थोड़े ही पता है कि देही अभिमानी भव या देह अभिमानी भव । यह कोई को भी पता नहीं है, इसका अर्थ क्या है । सोल कॉन्शिअस बॉडी कॉन्शिअस का अर्थ क्या है, कोई एक भी नहीं जानते हैं । अभी तुम जानते हो कि बॉडी कॉन्शिअस तो हम शरीरधारी बन जाते हैं । सोल कॉन्शिअस तो हम अकेला हो करके बाप को याद करते हैं, क्योंकि बाप के पास जाना है । नॉलेज तो तुम्हारे पास है ना, बाप ने दिया है । और मनुष्य तो सिर्फ अक्षर रिपीट करते हैं । कोई अर्थ नहीं जानते हैं । भले कोई भी हो? क्योंकि हमको सोल कॉन्शिअस अभी बनना है यानी बनने का पुरुषार्थ करना है । हम जो देह-अभिमान में फँस पड़े थे, अभी सोल कॉन्शिअस हम आत्मा हैं और बाप को हमको याद करना है । वो अगर कहते हैं सर्वव्यापी है, तो वो सभी बाप हैं फिर किसको याद करें? तो देखो, उन लोगों को पता ही नहीं पड़ता । तुम बच्चों को तो अभी बाप ने अच्छी तरह से समझाया है कि बच्चे, तुम सर्विस करो । तुम किसको भी बोलो कि हम यहाँ भारत को सच्चा स्वराज्य दिलाने के लिए पुरुषार्थ कर रहे हैं, न कि कांग्रेस का स्वराज्य । उसमें तो राजाई है नहीं ना । स्वराज्य कहा गया है- आत्मा माया के बंधन से, दुःख से मुक्त हो और नया शरीर ले करके राज्य करे । तो हो गया ना स्वराज्य । स्व माना आत्मा । आत्मा का स्वधर्म है- शांति । अब यह तो तुम जान गए शांति के लिए हमको कहाँ जाना नहीं है । शांति के लिए कोई चाहे कि हम डिटैच होकर बैठें तो जास्ती बैठ नहीं सकते हैं, क्योंकि कर्म करना है । हम कर्म धारा बिगर रह नहीं सकते हैं । हम बैठ सकते हैं अशरीरी हो करके । तुम प्रैक्टिस करते रहेंगे ना तो तुम बहुत समय बाबा की याद में जैसे कि अशरीरी होकर बैठे रहेंगे- हम तो आत्मा है, ये तो हमारा ऑरगन्स है, अब हम इस बाजा को नहीं बजाएंगे परन्तु बाप फिर पूछेंगे- कैसे? कब तक? क्योंकि वो जो वश कर देते हैं या अशरीरी हो जाते हैं, वो तो ऐसे नहीं बैठते हैं, वो तो प्राणायाम चढ़ा देते हैं । प्राणायाम चढ़ा करके कितने भी दिन वो नीचे जाकर बैठते हैं । अभ्यास करते हैं । अभ्यास करते-करते फिर वो लोग खड्डे में जाकर बैठते हैं । अनेक प्रकार के हठयोग करते हैं । तुम बच्चों को तो कोई भी तकलीफ की कोई बात नहीं है । यह तो अपनी आत्मा को जानना .सो भी जानते हो, सिर्फ परमात्मा को नहीं जानते हो । मनुष्य से सिर्फ पूछा जाए ये नॉलेज है तुमको? नॉलेज किसकी? नॉलेज तो अनेक प्रकार की है । गॉड फादर की नॉलेज है, तुम उनको जानते हो? कोई नहीं जानते हैं । अगर जानते हैं तो कह देते हैं- हाँ, गॉड फादर को जानते हैं । वो सर्वव्यापी है । देखो, कोई नहीं जानते हैं ना! इसलिए कहा जाता है फादर की नॉलेज किसके पास नहीं है । नॉलेज को कहा जाता है -ज्ञान अर्थात् ज्ञान किसमें नहीं है । किसका ज्ञान? गॉड फादर का ज्ञान । ज्ञान का अक्षर आता ही है कि तुमको ज्ञान है? किसका ज्ञान? ज्ञान तो अनेक प्रकार का होता है ना, किस्म-किस्म का । नहीं, गॉड फादर का ज्ञान है? कहेंगे- हाँ, है । सर्वव्यापी । इसको फिर कहा जाता है मिथ्या ज्ञान । तुम अभी जानते हो कि हम फादर को जानते हैं । फादर ही आ करके सबकी सदगति करते हैं और इस सृष्टि को पतित से पावन बनाते हैं । तुम बच्चियाँ हो मिशन पर बाप की मदद से कि हर एक मनुष्य मात्र को पतित से पावन बनाय; अभी पतित से पावन बनाय कर कहाँ जाएँगे? पतित से पावन बन फिर पावन दुनिया में चलेंगे । फिर वहाँ वो पावन क्या करेंगे? वहाँ फिर पावन राज्य चलता है । उसको दैवी राज्य, वाइसलेस किंगडम या बादशाही कहा जाता है । वहाँ बनेंगे तो फिर तुमको सीखना पड़े बादशाही । देखो, राजयोग भी सिखलाते हैं, पावन भी बनाते हैं, पावन दुनिया के लिए तुम बच्चों को फिर टीचर बन सृष्टि के चक्र का ज्ञान देते हैं, जिससे तुम बच्चे स्वदर्शन चक्रधारी बन, चक्रवर्ती राज्य करते हो । तो तुम बच्चों को ये... गहस्थ व्यवहार में रहते हुए कमल फूल समान पवित्र बनना है । देखो, बापू जी भी गृहस्थ व्यवहार में रहते थे ना, ऐसे तो नहीं कोई छोड़ते थे । उन्होंने रह करके उन फिरंगियों से कैद सहन करना, फलाना करना, सहन करना (किया । तुम बच्चों को फिर यहाँ सहन करना पड़ता है । तुमको फिर सहन क्या करना पड़ता है? मार खानी पड़ती है । इस यज्ञ में असुरों के विघ्न पड़ते हैं । ये जो पावन बनने वाली अबलाएँ, कुब्जाएँ गणिकाएं द्रोपदियाँ फलानी हैं, इन सबके ऊपर कौन-सी तकलीफ होती है? अबलाओं के ऊपर अत्याचार होते हैं । अभी यहाँ जेल की बात तो नहीं है । अभी तुम घर में जैसे जेल में पड़ जाती हो । किससे? वो जो विकारी हैं उनके कारण तुम जेल में पड़ती हो । वो उस जेल में चले जाते थे, तुम जानते हो कि बरोबर हम जरासंधियो की जेल में फँसे हुए हैं । नहीं तो जरासंधियों का जेल क्या था! जरासंधी कहा ही जाता है पतितों को । तो उनके जेल में तुम बच्चों को थोड़ा सहन करना पड़ता है । मैजॉरिटी तुम्हारी सहन करती है; क्योंकि पतित को पावन बनाने में मैजॉरिटी तुम्हारी है और वो कहाँ एक-आध बार थोड़ा सहन करके करते हैं । बहुत ऐसी हैं जो पतियों को भी अच्छी तरह समझाती हैं, परन्तु बिल्कुल ही कमजोर हैं; इसलिए उनको तकलीफ होती है । नहीं तो पति, ईश्वर, गुरु, फलाना है तो उनको पत्नी कैसे शिक्षा दे सकती है, पर नहीं, कोई फिर कमजोर पति भी होते हैं तो उनको सहन करना पड़ता है; क्योंकि बिचारा वो क्या करे, बच्चे फिर कौन संभाले! पति बुड्‌ढा हो, बच्चे-वच्चे हों, फिर उनको कौन संभाले, बुड्ढे में शादी-वादी तो नहीं करेंगे ना! आजकल देखते हो, कोई 80 बरस वाला भी होगा तो भी शादी करते हैं । नहीं तो ये भारत के कायदे हैं बड़े कि 60 बरस के बाद फिर वो वानप्रस्थ अवस्था धारण कर अर्थात् सतसंग में रहते हैं । इस अवस्था में बहुत करके सतसंग में ही जाकर रहते हैं । फिर गृहस्थ व्यवहार को छोड़ करके वो चाबी अपने बच्चों को दे देते हैं, जो उनकी संभाल करते रहते हैं । जो सपूत बच्चे होते हैं वो माँ-बाप की पीछे संभाल करते हैं, क्योंकि वो धन देते हैं, उनकी सेवा की, उनको जन्म दिया । तो फिर बच्चों के ऊपर फर्ज होता है ना! तो बच्चे फिर उन बाप को कहते हैं कि आप अपना जीवन सफल करो, सतसंग में रहो, ये जो धन आपने दिया है हम उनसे आपकी संभाल करते रहेंगे । असल कायदा ही यह है । यह तो सपूत हैं । आजकल तो बहुत ऐसे हो पड़े हैं । अभी तुम सब मेल और फीमेल बच्चे जानते हो, जैसे वो कांग्रेसी जानते थे, उनकी बुद्धि में वो फिरंगी दुश्मन थे । तुम्हारी बुद्धि में यह माया दुश्मन है । फर्क नहीं है; क्योंकि भारत में ऐसे हुआ है कि उन्होंने उनसे लिबरेट किया है, वो भी ऐसे ही कहते हैं गांधी ने आ करके, गॉधी की मत से फिर काँग्रेस ने फिरंगियों से लिबरेट किया । माया महाबलवान है । वो तो ढाई सौ या तीन सौ वर्ष राज्य किया होगा । जानते हो ना! अभी तो तुम्हारे ऊपर इस रावण ने ढाई हजार बरस राज्य किया हुआ है । तो उनको सहज होता है । देखो, टाइम तो उसको भी उतना ही लगा- 40-50 बरस, 50 बरस । भई, काँग्रेस ने कितना बरस मदद की होगी? 50-60-40 बरस । ये भी ऐसे ही है, 50-40 बरस है जो तुम बच्चे श्रीमत पर फिर इस माया रावण पर जीत पहन, जो तुम्हारा पुराना दुश्मन है और भारत को फिर लिबरेट करते हो श्रीमत पर निराकार बापू जी की मत पर । वो साकार बापू जी । ये निराकार बापू जी की मत पर तुम बच्चे अपना राज्य स्थापन करते हो । अभी देखो, कितनी उन्होंने कशमकशा की, कितनी जेल खाई, कितनी गोलियाँ सही.. । तुमको तो कोई गोली-वोली से मारने वाला तो नहीं है ना । यह माया तुमको गोली मारती है । कौन-सी? देह-अभिमानी की । फिर ठक एक गोली आई काम की, बड़ा बम काम का । वो बड़े-बड़े गोले होते हैं ना । माया भी मशीन गन चलाती है, कम नहीं करती है, उनके पास बड़े-बड़े गोले हैं । देखो, एक ही गोले से घायल कर देती है, अच्छे-अच्छे खड़े-खड़े को । तो तुम्हारा अभी ऐसे ही है । माया की गोली निकलती है जो तुमको लगती है । इससे खबरदार रहना चाहिए । फिर इसलिए बाप कहते हैं कि बच्चे, जितना तुम याद करेंगे इतना तुमको बहुत खुशी का पारा चढता रहेगा । अरे, हम ईश्वर की औलाद बने हैं । उनकी श्रीमत पर हम अपना स्वराज्य स्थापन कर रहे हैं, सो भी 21 जन्म के लिए । ये क्या जन्म हुआ! कॉग्रेस ने कितना स्वराज्य लिया? कोई स्वराज्य तो है नहीं । वास्तव में ये तो और ही बहुत मुसीबतें हैं । मनुष्य तो बिचारे नहीं जानते हैं ना । तुम जानते हो अच्छी तरह से । ये तो बरोबर गाया हुआ है कि रुन्य का पानी मिसल राज्य मिला हुआ था । किनको? कौरवों को । उनमें ये साफ नहीं लिखा हुआ है ना कि कौरवों ने किससे यह राज्य लिया था, ये कांग्रेस कैसे बनी? वो कोई गीता भागवत मे थोड़े ही लिखा हुआ है । यह अभी तुम बच्चे जानते हो ।....उस बापू का तो कुछ भी नहीं मिला । भले मिला तो ये एमएलए. बने, एमपी. मिले, अशोका होटल में खाने वाले मिले, ये सब हुए । वो तो अल्प काल क्षणभंगुर, दुःख ही है । अभी तो तुम बच्चे जानते हो कि हम तो अभी अपना स्वर्ग का स्वराज्य स्थापन कर रहे हैं श्रीमत पर । तो जैसे वो बापू जी की मत पर चल फिर भी तो विजय पाई ना । तो तुम बच्चों की भी तो विजय नूँधी हुई है । बरोबर तुम राजयोग सीख रहे हो और जानते भी हो कि हाँ, हम बरोबर सूर्यवंशी राज्य स्थापन कर रहे हैं । देखो, बाबा पूछते हैं ना कि एक रानी आई थी रात को । मिली थी नई । कहाँ गई वो रानी? कहाँ से आई थी बच्चे वाली? कहाँ है वो? (किसी ने कहा-रमेश रानी) । कहाँ है? हाथ तो उठाओ । उनसे पूछा- बच्ची, सूर्यवंशी के लिए पुरुषार्थ करती हो या चंद्रवंश के लिए? तो बोलती है- बाबा, ऐसे थोड़े ही है । हम जिसको मम्मा-बाबा कहते हैं, वो तो सूर्यवंशी बनते हैं । तो मम्मा-बाबा कहने वाला जरूर पुरुषार्थ करके सूर्यवंशी बनेगा । ये सूर्यवंशी बनेंगे हम । बच्चों को तो यही पुरुषार्थ करना चाहिए ना । इसी को कहा जाता है- फॉलो मदर एण्ड फादर । यूँ असुल कहते हैं फॉलो फादर; परन्तु यहाँ तो मदर एण्ड फादर है । तो मात-पिता हैं ना । तो जानते हो फिर कि मात-पिता सूर्यवंशी महारानी-महाराजा बनते ही हैं, यह तो निश्चय है सबको । जिसको निश्चय नहीं है सो हाथ उठाओ । देखो, 100% निश्चय है । जबकि मात-पिता कहते हैं तो फिर बच्चों को भी ऐसे ही पुरुषार्थ करके मात-पिता के तख्तनशीन बनना चाहिए । श्रीमत पर चलना चाहिए । श्रीमत पर चलने से ये देखो बन रहे हैं ना । तुम भी मम्मा-बाबा इनको कहते हो तो तुमको भी पुरुषार्थ करके इनको फॉलो करना चाहिए । यह तो अच्छा है । कोई शुभ बोलता है तो कहा जाता है- तुम्हारे मुख में गुलाब । ऐसे कहते हैं ना! यह तो जरूर शुभ पुरुषार्थ है कि मात-पिता जैसे पुरुषार्थ कर हम भी ऊँच पद पावें । ताऊसी तख्त कुछ कम थोड़े ही है । क्या तुम समझते हो? किस प्रकार का यह तख्त बना हुआ होगा? इतने हीरे-जवाहर होंगे, क्या पद ऊँचा है! अरे बच्ची, रोमांच खड़े हो जाते हैं, जब देखते हैं कि उफ! बाप आ करके हमको ऐसा बनाता है । वरना हम कुछ नहीं जानते थे, वर्थ नॉट ए पैनी थे ।......बाकी जो साहुकार होंगे उनका तो हृदय विदीर्ण होता है । श्रीमत पर चलने में बड़े डरते हैं एकदम । हैं भी गरीब-निवाज बाप कहते हैं । ये तो तुम बच्चे जानते हो कि कल्प पहले भी तुम ही थे और आगे बढ़ करके देखते रहेंगे कि कौन-कौन आते रहते हैं बाप से अपना वर्सा लेने; परन्तु तुम कोई को भी कहो, कोई भी ऑफीसर मिले कुछ भी मिले तुम बच्चों को, बोलो- हम तो भारत की सर्विस में है । हम जो भी कमाई करते हैं भारत को स्वर्ग बनाने के लिए, बापू जी की राय से । कौन-सा बापू जी? श्रीमत, जो गाई हुई है । इनमें तुमको कोई तकलीफ होगी! नहीं, उनको बैठकर समझाएंगे तो अगर तुमको इनकम टैक्स भी देना होगा, तुमको ऑफीसर माफ कर देंगे । बोलेंगे कि ये तो बहुत अच्छा जानते हैं । ये तो भारत की सेवा में तन मन धन खर्च करते हैं । अभी इनको टैक्स लगाएँगे तो उस गवर्मेन्ट में चला जाएगा । हम गवर्मेन्ट के पास तो बहुत ही पैसा बरबाद होता है । इनका पैसा तो सबको भारत को आबाद करता है । उनका खर्चा ये भारत को बरबाद करता है और तुम्हारा खर्चा भारत को आबाद करता है । देखो, कितना फर्क है। अच्छी तरह से किसको भी तुम समझाओ, तो वो तुम्हारे ऊपर आकर्षित हो जावे । ये तो बड़ी भारी सेवा करने वाले हैं । तो ऐसे मीठे-मीठे बच्चे बनो । कोई को भी समझाओ तो मीठे बन करके समझाओ और फिर सच्चे साहब के साथ सच्चे रहो । पवित्रता मे भी सच्चे रहो और सच्चे को याद भी बच्चों को अच्छी तरह से करना है । अगर सचखण्ड में जाना है तो सच्चे बाप को निरंतर याद करने का अभ्यास करो । यह गायन अभी का है ना- सिमर सिमर सुख पाओ, कलह-क्लेश मिटे सब तन के । ऐसा कोई मनुष्य नहीं होता है जिसके कोई कलह-क्लेश तन के मिटे होंगे । कुछ न कुछ बीमारी जरूर होती रहेगी । पाई पैसे की भी । अच्छा, खॉसी भी हुई तो बीमारी है ना । तो देखो, वहाँ खाँसी भी नहीं होगी एकदम, कभी कुछ नहीं होगा । अरे, 21 जन्म की निरोगी काया मिलती है सिर्फ याद से । देखो, यह कैसा अच्छी तरह से बाप आ करके नेचर को क्योर बनाते हैं ।....इस नेचर को एकदम क्योर कर देते हैं ।.....ये जो नेचर है यानी शरीर, वो जब बीमार हो जाता है, वो क्योर कर देते हैं । कभी तुम रोगी नहीं बनेंगे । वो तो हैं पाई-पैसे वाले नेचर क्योर, क्या-क्या करते रहते हैं । सो तो जन्म-जन्मांतर ये निकालते आते हैं । ये तो एक ही बार याद करने से तुम बिल्कुल निरोगी, एकदम तंदरुस्त, बीमारियाँ आदि कभी भी नहीं । अच्छा, अभी टाइम तो हुआ, क्योंकि ये तो रत्न हैं ना, कोई धारण भी कर सके । फिर बहुत प्वाइंट्स देने से भूल जाते हैं बुद्धि में, परन्तु वो नशे में रहो । बरोबर फर्क है ना । उनको फर्क समझाओ- काँग्रेस और पाण्डव-कौरव क्या करत भए? तुमने इन्हे उनसे छुड़ाया, हम फिर बाप की मदद से माया से छुड़ाते हैं । ये बापू जी बेहद का सबका । तो ऐसे ये सब नॉलेज बुद्धि मे रखें । तुम्हारी गॉडली स्टूडेण्ट लाइफ है । अरे भई, कमाल है! गॉड फादर, बस । जो फादर पढ़ाते हैं, उनको याद करने से तुम्हारा विकर्म सब भस्म होता जाता है । ऐसे कोई टीचर को याद करने से कोई किसका विकर्म थोड़े ही विनाश होता है । तो टीचर क्योंकि ये गुरु भी है, बाबा भी है । इनको याद करने से तुम्हारे सब पाप का बोझा उतर सकता है, और कोई उपाय ही नहीं है । देखो, अगर उपाय होता तो इतना हम योग में रहते-रहते, अभी कर्मातीत अवस्था ही नहीं आती है । कुछ न कुछ रोग निकल पड़ता है । तो जन्म-जन्मांतर के हैं ना । कटा तो कुछ भी नहीं । कितना भी गंगा में स्नान किया, यह किया... बहुत बोझा रहता है ना । अभी वो है । अब योग से, याद से कटेगा । योग अक्षर भी क्यों कहें, याद कहना चाहिए । ऐसे भी मत समझो कोई कि हमको निष्ठा में बैठना है । हाँ, बैठना अच्छा है; क्योंकि सारे दिन में ये वाह्यात- वाह्यात माया के पिछाड़ी करते हैं, फिर आ करके अगर निष्ठा में बैठते हैं, तो भले एक -दो को, कोई अच्छो का बल होगा, तो बरोबर शांत में बैठ जाएँगे; परन्तु बाबा कहते है- क्यों शांत में इकट्‌ठे भी बैठते हो? इकट्‌ठे तो तुमको ज्ञान की प्वाइंट सुनाते हैं । पढ़ाई है । यह तुम्हारा स्कूल है ना! तो स्कूल में तो पढ़ाई होती है । कौन पढ़ाते हैं? शिवबाप । उनको तो जरूर याद करना पड़े; क्योंकि शिवबाबा ही टीचर है तो उनको तो जरूर याद करना पड़े । टीचर हो गया, बाप भी हो गया । वो तो बच्चों को जरूर बुद्धि में बैठ जाना चाहिए कि हमको बाबा पढ़ाते हैं । बस, बाबा को याद करते रहने से ही विकर्म विनाश होंगे । ऐसे कोई भी स्ट्रडेण्टस नहीं होंगे जो टीचर को याद न करते होंगे; क्योंकि एल्युकेशन(शिक्षा) की अवस्था है । तो उनको टीचर को जरूर याद करना पड़ता है और यहाँ जबकि तुम पढ़ते भी हो, तुमको वापस भी जाना है । तुमको गुरु को भी याद करना पड़ता है । तो देखो, बाप टीचर गुरु, इनका कोई बाप टीचर गुरु नहीं है । अभी ऐसे भी याद करने से तुम कितनी याद करते होगे । तो वण्डरफुल बात सुनानी है ना । हमारा बाबा, बाबा भी है, टीचर भी है, तो सत्‌गुरू भी है । सत् बाबा है, सत् टीचर है, सत् गुरू है । तो सत् का संग बरोबर तारता है । यानी तार करके कहाँ ले जाते हैं? मुक्ति और जीवनमुक्ति में ले जाते है । इस विषय सागर से और कहाँ जाएँगे? पुरानी दुनिया से सब कहाँ जाएँगे? सब वापस अपने घर जाएँगे और फिर जो पढ़ाई पढ़ते है, वो आकर के राज्य करेंगे । तो ये मम्मा भी प्वाइंट्स सुनाती हैं, बाबा भी प्वाइंट्स सुनाते हैं, दादा भी प्वाइंट्स सुनाते हैं । कम थोड़े ही होता है । कितना एकदम इकट्‌ठे तुमको पढ़ाते हैं । देखो, तुमको ऊपर जाने के लिए कितनी इंजन मिली हुई है । मात-पिता, बाप-दादा, ये सभी हैं सब गाडियों की इंजन; क्योंकि सभी जाएँगे, बाबा तो पिछाड़ी. .जाएगा ना । कितनी बड़ी गाड़ी बनेगी! रुद्रमाला बननी है ना, तो कितनी गाड़ी बननी चाहिए । इसलिए तैयार होना चाहिए और तुमको घुड़दौड़ की रेस के साथ भी मिलाते हैं । वो तो हद की घुड़दौड़ है, इसमें तो बेहद की घुड़दौड़ है । हर एक का बुद्धियोग जाता है बाबा के पास- हम पहले पहुंचे, हम पहले पहुँचे । अरे, पहले पहुँचेंगे! याद करो तो पहले पहुँचेंगे । देखो, ये स्टूडेण्टस को यह भी तो डराया जाता है ना कि बरोबर दौड़ी तुम्हारे बुद्धियोग की है, जितना जो कोशिश करेगा वो पहले पहुंचेगे । पहले रुद्रमाला में पिरोय फिर पहले विजयमाला में पिरोएँगे । अच्छा, बच्ची टोली ले आओ । एक दिन हम अपने हमजिन्स को एकाध दिन आपके हमजिन्स को देंगे जवानों को, बच्चों को ।... बुडढ़े जो होते हैं ना, वो समझते हैं कि हमारा पैर इस तरफ में हैं, मत्था उस तरफ में हैं । बुडढों को यह ख्याल रहता है कि अभी स्वर्ग आश्रम जल्दी जाएँगे । जवानों को थोड़े ही इतना ख्याल रहता है कि जल्दी जाएँगे । इतना जल्दी कौन मरेगा? हम बुड्ढे होकर मरेंगे । बुड्ढों को तो और सहज है कि अभी जाना है । कहाँ? स्वर्ग आश्रम । यह आपस में क्या लगते हैं? देखो, गॉधी को भी जो मदद करते थे, वो उनको प्यारे लगते थे । अभी ये भी बापू जी हैं, जो मदद करते हैं पतित दुनिया को पावन बनाने तन मन धन से । तुम कभी भी गवर्मेन्ट को कहेंगे ना, गवर्मेन्ट को अच्छी तरह से समझाने से तुमको आफरीन मिलेगी । खुश हैं, ये कॉलेज में पढ़ रही हैं ।.... .क्या समझती हो? बच्चे तो पढ़ते ही रहते हैं । जवान भी पढ़ते थे । जबकि कोई बुडिढयों को पढ़ावें और बुड्ढी इतनी पढ़ करके और सबसे तीखी जाएं ।.. (किसी ने कहा- यहाँ बुड्‌ढा पढ़ने वाला नहीं होता) ।.. .. यह तो कमाल है ना!.. खुश होते हैं कि देखो, मम्माएं हमको टोली खिलाती हैं श्रीमत पर । तो खुशी होती है उनको ।......... पहले सिकीलधे बच्चे कहें या पहले मात-पिता कहें? मात-पिता है तो सिकीलधे बच्चे बने । पहले तो सिकीलधे बच्चे नहीं कहना चाहिए ना । इसलिए पहले मात-पिता, बापदादा का मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति दिल व जान, सिक और प्रेम से यादप्यार । यह याद दिलाना है और प्यारा बनाना है । तुम बहुत प्यारे बनते हो । देखो, प्यारे बने हो ना । तुम्हारी पूजा होती है; परन्तु.... तुम्ही पूज्य तो तुम्हीं पुजारी बन जाते हो । ये भी तुम बच्चों को बुद्धि में आता है कि बरोबर हम पूज्य सो देवी-देवता थे, फिर हम पूज्य दो कला कम सो क्षत्रिय चंद्रवंशी थे, फिर हम सो पुजारी वैश्यवंशी थे, हम सो पुजारी फिर शूद्रवंशी थे । अभी हम सो ब्राहमण, फिर पुजारी से पूज्य बन रहे हैं । किसके मत से? श्रीमत से । अब ये चक्र, और तो कुछ करना ही नहीं है । तो ऐसे सिकीलधे बच्चों को यादप्यार और गुडमॉर्निग ।