19-08-1964     मधुबन आबू     प्रात: मुरली    साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हेलो, स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुलभूषणों को हम मधुबन निवासियों की नमस्ते, आज रविवार जुलाई की छब्बीस तारीख है, प्रात: क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।

रिकॉर्ड :-
मुझको सहारा देने वाले'..............

ओमशान्ति । सहारा किसको किया जाता है? जो डूबे हुए होते हैं उसको पार करने के लिए, क्योंकि खिवैया नाम तो भारतवासी अच्छी तरह से जानते हैं । तो खिवैया का कायदा है कि डूबे हुए को बचाना, क्योंकि ये तो बच्चे जानते हैं कि ये भारत का बेड़ा डूबा हुआ है । भारत में ही ये कहते हैं; क्योंकि भारत के लिए ही कहा जाता है हर बात । भारत का बेड़ा पार या भारत का बेड़ा डूबा हुआ भारत के लिए कहा जाता है, और कोई भी खण्ड के लिए नहीं कहेंगे । सो भी तो तुम बच्चे समझते हो, और तो कोई नहीं समझते हैं कि भारत का ही बेड़ा डूबा हुआ है । सत्यनारायण की कथा भी भारत में होती है । ये कथाएँ, जो अमरनाथ की, तीजरी की, ये सभी कथाएँ यहाँ होती हैं । बच्चे भी अभी अच्छी तरह से समझ गए हैं, जबकि बच्चे सुबह को मेडीटेशन में बैठते हैं; क्योंकि बाप ने समझाया है कि मेडीटेशन, जिसको योग साधना या याद की साधना कहते हैं । फिर वो तो भक्तिमार्ग में है याद की साधना । कोई गुरू को याद करते हैं, कोई किसको याद करते हैं, कोई तत्व को याद करते हैं । उनकी तो याद साधना है ही अयथार्थ । उनमें कोई उनको सिखलाने वाला खिवैया या बागवान नहीं होता है । खिवैया भी है, बागवान भी है; क्योंकि नया गुलशन भी तो स्थापन करना है, दैवी गुलशन यहाँ स्थापन करना है । तो उनको ये सभी सिखलाना होता है । कोई गुरू लोग भी ये मेडीटेशन सिखलाते हैं ऐसे करो, ऐसे करो, कोई तो ऐसे कराकर बैठते हैं, कोई कैसा, कोई कैसा । वो बहुत ही प्रयत्न बताते हैं । किसके लिए? याद में रहने के लिए । इसको अंग्रेजी में मेडीटेशन कहते हैं । योग-साधना । वो तो मनुष्य, मनुष्य को योग-साधना कराते हैं, कोई खिवैया या बागवान इस बाग का नहीं सिखलाते हैं । ये तुम जानते हो कि बगीचे का माली तो बाप है, और ये काँटों का माली कौन है? वो रावण है । ये मनुष्य नहीं जानते हैं, सिर्फ तुम बच्चे ये नई-नई बातें समझते हो कि बरोबर ये जो काँटों का फॉरेस्ट बन जाता है, उनको ये रावण रूपी माया है जो फॉरेस्ट बनाती है । अभी तुम जानते हो; परन्तु तुम्हारे में से भी कोई विरला ही जानते हैं । और तो सब ये बातें भूल जाते हैं कि बरोबर हम काँटे से फूल बनते हैं, वो भी बात भूल जाते हैं । माया बहुत भुलाती है, बात मत पूछो । बच्चे भी कहते हैं और ये भी फिर कहते हैं कि मेडीटेशन में बैठने से माया बड़ा विघ्न डालती है । कोई वक्त में तो अच्छे बैठे रहते हैं । तो मेडीटेशन भी कैसे? वो भी तो बाप सिखलाते हैं कि कैसे मेडीटेशन करूँ, रात को कैसे बैठूँ कैसे जागूँ क्योंकि कर्मयोगी हो । इसलिए तुम्हारे में दिन के लिए बंधन नहीं है । मनुष्यों को कभी भी मेडीटेशन दिन में नहीं होती है, क्योंकि खाना-पीना, खेलना-कूदना तो उनमें कोई इतनी याद थोड़े ही पड़ सकती है । भले कोई गशा मारता हो कि हम खेलने-कूदने में भी याद करते हैं । यह तो गश है, इसको झूठ कहा जाएगा । बड़ी मुश्किल है, रात में ही बड़ी मुश्किल है, जब सभी सो जाते हैं और आत्माएँ सभी शांत हो जाती हैं, अशरीरी हो जाती हैं, उस समय में भी माया कोई कम थोड़े ही करती है । सवेरे में उठ करके तुम सभी याद में बैठते हो । वास्तव मे भक्तिमार्ग वाले भी सवेरे में उठते हैं, जिसको कहा ही जाता है अमृतवेला । बाप भी ऐसे ही कहते हैं कि बच्चे, वो तो है दिन में कर्मकाण्ड का समय, अपने बच्चों की पालना करना, नौकरी करना, आदि । हो सकता है खेल-पाल में भी किसी की याद खडी हो सकती हैं । बाप तो अनुभव बताते हैं ना । जो पुरुषार्थी हैं वो तो सब अनुभव बताते हैं । खेलेगा तो भी बोलेगा- देखो, हम बाबा की याद में अभी तुम्हारे से खेलता हूँ । ऐसे कहता हूँ जैसे कि मैं स्वयं बाप हूँ और मैं बैठ करके बच्चों से खेलता हूँ । अभी स्वयं बाप हूँ, ऐसे करके खेलने से बाबा को और ही अच्छा नशा चढ़ता है । मैं आत्मा हूँ और बाबा की याद में इनसे खेलता हूँ ये मेरे से हो नहीं सकता है । देखो, मैं अपना अनुभव सुनाता हूँ ना । जब मैं तेरे से बात करता हूँ तो ये तो जैसे कि कोई वक्त में बाबा तुम्हारे से बात करते हैं, जैसे कि मैं बात कर रहा हूँ और एकदम बेहद में चला जाता हूँ । तो खेलने में भी है; परन्तु हम आत्मा हैं वो मुश्किल हो जाती है । देखो, बाबा बताते हैं, मेडीटेशन में जब बाबा बैठते हैं, तो सबको अनुभव तो बताना चाहिए ना कि बाबा कैसे सिखलाते हैं, ये भी कैसे सीखते हैं । सारा ये देने का और सिखलाने का बाप ने रास्ता तो बता ही दिया है, और तो कोई बता भी नहीं सके और ये तो पक्का जानते हैं कि हम बागवान भी हैं । तो जरूर बगीचे ही स्थापन करेंगे । बागवान कोई काँटे का बीज बैठ करके लगाते हैं? काँटे का बीज तो दूसरा लगाएगा । वास्तव में उसको माली नहीं कहा जाएगा । माली हमेशा बागवान होता है, जो फूल लगाते हैं । ये तुम जानते हो कि बाबा तो फूल लगाते हैं और जो इन फूलों को फॉरेस्ट बनाने वाला है, उनकी मत पर चलने से मनुष्य काँटे बन जाते हैं । यह ज्ञान तो तुम बच्चों को मिला कि बरोबर बाबा बागवान भी है, खिवैया भी है, रहमदिल भी है, बीजरूप भी है । देखो, रात में बैठते हैं तो सोचते हैं कि यह झाड़ कितना बड़ा है । इस समय में बीज तो ऊपर में ही है । यह कितना बड़ा बगीचा है! तो मालिक जैसे हो करके बैठना पड़े ना क्योंकि मास्टर बीजरूप है, तो जैसे बीज ही हो गया ना । कितना बड़ा बगीचा है, पहले कितना छोटा होगा- यह राज का ज्ञान भी चाहिए ना । योग भी चाहिए, ज्ञान भी चाहिए; क्योंकि मनुष्य में कुछ ज्ञान तो नहीं है ना । मनुष्य जब योग में बैठते हैं, ज्ञान कुछ भी नहीं समझते हैं । सिर्फ याद में बैठते हैं । उसको भक्ति कहा जाता है । जब कोई भी चित्र के आगे बैठते हैं या मंदिर मे बैठते हैं तो ज्ञान तो कुछ नहीं है ना । सिर्फ याद है । काली की याद में बैठे रहेंगे, ज्ञान में तो नहीं बैठेंगे । बस ऐसे काली माँ की याद में बैठें रहेंगे, वो काली शक्ल सामने आएगी वा अगर जगदम्बा की भी याद में बैठेंगे तो ऐसे बैठेंगे और माला भी फिरती रहेगी । जगदम्बा को भी सामने रखेंगे, कृष्ण को सामने रखेंगे । यह है भक्तिमार्ग का कर्मकाण्ड । अभी उसमें कोई भी ज्ञान तो नहीं है ना । न बाप की याद है, न वर्से की याद है । सभी भगत जो भी भक्ति करते हैं, वो बहुत गोमुख की माला बनाते हैं, उसमें हाथ डाल देते हैं, माला डाल देते हैं । बहुत तो माला गुप्त रखते हैं, गुप्त फेरते हैं । जो भी गुप्त फेरने वाले होते हैं उनको गुरू से शिक्षा मिलती है कि हमेशा गुप्त फेरो । समझा! क्योंकि है भी हमारी माला गुप्त । तो देखो, हमारे यहाँ की रसम-रिवाज भक्तिमार्ग में कितनी चलाते हैं । गौमुख उसको कहा जाता है । टपड़ी होती है उसमें डाल करके हाथ भी डाल देते हैं । छोटेपन में ये सभी किया हुआ है । छोटेपन में फिर बाप को देखते । जैसे अभी बच्चे हैं, मां-बाप को जो कुछ करते देखते हैं वो करने लग पड़ते हैं । तो बाप भी कोठरी में बैठ करके माला डाल करके अंदर बैठ जाते थे । तो हम भी क्या करेंगे! जाकर सामने छोटी कोठरी भी ले लेते थे, हम भी ऐसे बैठ जाते थे । अनुभव कहता है ना । फिर किसको याद करते थे? राम-राम, राम-राम बस, और कुछ भी नहीं । वो भी राम-राम तो ये भी राम-राम, बस । बस, राम-राम, ज्ञान तो कुछ है नहीं । अभी तुम बच्चों में ज्ञान है । रात को, जब सवेरे में अमृतवेले याद रख देना, बड़ा मजा आएगा तुम लोगों को अगर प्रैक्टिस पड़ जाएगी तो । फिर क्या ख्याल में आना होता है? देखो, कितना बड़ा बगीचा है, उफ! ये जरूर छोटा भी था ना । सतयुग में कितने थोड़े होंगे । अभी कितना बड़ा बगीचा आ गया । देखो, बगीचे की याद आ गई ना । बीजरूप की भी याद आ गई, बगीचे की भी याद आ गई । उफ! फिर देखो, कैसे-कैसे ये बगीचा बढ़ता है । बाबा मे भी तो यह ज्ञान है ना और हम बच्चों में भी यह ज्ञान है । बाबा जो सिखलाते हैं, मास्टर बीजरूप करके बिठाते हैं, फिर देखो सारा झाड़, झाड़ जैसे कि बुद्धि में बैठ गया है, ठुँस गया है कि पहले-पहले बरोबर देवी-देवताओं का झाड़ है । वहाँ बहुत थोड़े मनुष्य होते हैं । उसको स्वर्ग कहा जाता है, सुख कहा जाता है । तो देखो, इसको मेडीटेशन कहेंगे ना । अंदर में ये चलता है, बोलना कुछ नहीं होता है; क्योंकि वो खुशी है ज्ञान में । बाप की भी खुशी है, धन की खुशी है । दोनों चीज याद आनी है । भक्तिमार्ग मे ज्ञान कभी याद नहीं आता है । तत्व ज्ञानी होगा, तो तत्व ज्ञानी भी तत्व को याद करके बैठे रहेंगे । ज्ञान तो कुछ भी नहीं है । ऐसे तो नहीं है कि तत्व में याद करते रहेंगे और शास्त्रों को याद करते रहेंगे या वेदों को याद करते रहेंगे । नहीं, वो नहीं होता है; क्योंकि जब याद में रहते हैं तो याद रहता है कि हमको जाना है । उनको तत्व में जाना है या ब्रहम में जाना है, ब्रहम में लीन होना है तो बस, उनको यही याद रहता है । और तो कोई भी रचना का उनको पता भी नहीं है । न रचने वाले का पता है, न रचना का पता है । तो उन सबकी याद अलग है एकदम और तुम बच्चों की याद बिल्कुल ही न्यारी है । तुम याद करेंगे कि बरोबर हम इस झाड़ के, जैसे बाबा बीज है, उसको नॉलेज है तो हमको भी यह नॉलेज है । देखो, यह रात को उठता है, पीछे ये याद करते-करते थक जाए तो भी चलता रहे; परन्तु बैठने में याद अच्छी आएगी । थोड़ा भी सोएँगे तो कुछ न कुछ दूसरे संकल्प आ जाएँगे । यह अनुभव की बात बाबा समझाते हैं अच्छी तरह से । फिर भेंट करके समझाते हैं कि भक्तिमार्ग में क्या करते थे, क्योंकि भक्ति भी तो की है ना । अभी ज्ञानमार्ग है । भक्ति में क्या करते थे? भले आ करके सिखलाते थे कि यह करो, घण्ट बजाओ, फलाना करो, बहुत कुछ समझाते; परन्तु अभी तो दूसरी समझ मिली है । तो बाप को भी याद करना है, फिर सारा झाड़ याद आ जाता है । झाड़ अभी कितना बड़ा हो गया है । हम छोटे झाड़ में थे । फिर हम देखो, त्रेता में आ गए । फिर द्वापर में जन्म लिया, फिर अभी ये झाड़ में आ गए हैं । अभी हम जाते हैं बाबा के पास । बाबा को याद करते हैं । अभी हमको तो सारा झाड़ याद में आ गया है । बरोबर यह ड्रामा भी कैसे चक्कर लगाता हैं- सतयुग त्रेता द्वापर फिर कलियुग । अभी शिव को भी याद करते हैं और चक्कर को भी याद करते हैं । तो गोया धन की भी याद करते हैं और धन देने वाले की भी याद करते है । यह याद हुई ना । तो जितना हम बाबा को और ज्ञान को याद करते हैं इतना जैसे कि हमारी अवस्था परिपक्व होती जाती है और रजिस्टर में हमारी जो दौड़ी है याद की यात्रा की वो जमा होती जाती है, और खुशी भी होती है, क्योंकि ज्ञान और कोई को तो नहीं है । किसको भी समझाय सकते हैं कि हम मेडीटेशन मे कैसे बैठते हैं । दुनिया कैसे बैठती है? वो किसकी याद में बैठती है? अनेक प्रकार की याद है । हम सब तो एक मत हैं । बाप की मत न मिलेगी बच्चे से, बच्चे की मत न मिलेगी बाप से । उसका गुरू, उनका ईष्ट देवता-फलाना, सबका अपना! । बच्चों की तो बात ही छोड़ दो । यहाँ तो बच्चों को भी एक मत मिलती है । बुड्‌ढियों को भी एक मत मिलती है । तो रात को याद में कैसे बैठे हो? किस याद में? क्योंकि मेडीटेशन में तो बैठना है ना । मेडीटेशन हाल है ना! तो वो पूछेगा ना कि तुम लोग कैसे बैठते हो? तो उनको फर्क बताना पड़े कि वो भक्तिमार्ग वाले कैसे बैठते हैं । वो क्या याद करेंगे! गुरू होगा तो तत्व का ज्ञान देगा । आजकल कह देते हैं कि तुम परमात्मा हो । अभी हम जाकर परमात्मा में मिल जाएँगे तो परमात्मा रहेगा- बस, वो तो कोई ज्ञान ही नहीं है । सो भी हम आत्मा सो परमात्मा, परमात्मा तो हो नहीं सकते हैं । हम कहते हैं कि हम 84 जन्म पूरा करके अभी चोला छोड़ करके वापस जाते हैं । क्या परमात्मा ऐसे कहेंगे कि हम 84 का चक्कर खाकर अभी वापस जाते है? वो तो हो नहीं सकता है । उनको समझाना है भक्तिमार्ग की मेडीटेशन, जब यहाँ हॉल में आते हो तो यहाँ हॉल मे ले आओ । अच्छा-अच्छा आदमी देखो, जिनको शौक होवे । बाकी तो पटपटिया उनको तो नहीं ले आना चाहिए । जानते हो कि बरोबर कोई-कोई बड़े अच्छे आदमी आते हैं, समझाने से समझते हैं, बकवाद नहीं करते हैं, और तो अपना घमण्ड दिखला देते हैं । मेडीटेशन हॉल तो इसको ही कहा जाता है ना । बोलो- देखो, हम यहाँ कैसे बैठते हैं, रात में भी हम मेडीटेशन करते हैं और दिन में भी यहाँ कैसे करते है, सो देखो ये झाड़ भी है, सभी कुछ है । अभी हम ऐसे याद करेंगे । बाप ने कहा है कि मुझे याद करो और फिर क्या याद करो? रचना का जो सारा चक्कर है उसको याद करो- सतयुग त्रेता द्वापर कलियुग; क्योंकि हमने 84 जन्म तो भोगा ही है । गाया तो जाता है 84 जन्म किसने लिए? जरूर जो पहले आए हैं उसने ही लिए होंगे । जो देवी-देवता थे वो या तो फिर अंतिम जन्म में हम जो ब्राहमण बनते हैं; क्योंकि चक्कर का तो समझाना पड़े- देवता क्षत्रिय वैश्य शूद्र अभी ब्राहमण बने हैं । देखो, ये चक्कर का भी इनको ज्ञान है । हम बैठते हैं तो हमारा बाप और चक्कर हमको याद पड़ता है अर्थात् हैल्थ एण्ड वैल्थ । याद और ज्ञान, रचता और रचना का ज्ञान हमको रहता है । हम इसी स्वदर्शनचक्र को फिराते हैं तो जैसे कि हम त्रिकालदर्शी बन गए और फिर बाप को याद करते हैं, रचना को भी याद करते हैं । और फिर क्या करते हैं? औरों को तो अनेक मते हैं । हमारी सबकी एकमत । बाबा ने कह दिया है श्रीमत, जिससे हमको श्रेष्ठ बनना है । कैसा श्रेष्ठ? देवी-देवताओं जैसा, क्योंकि वो है हेविनली गॉड फादर स्वर्ग का रचता । तो उनसे हम वर्सा पाते हैं । हम सबको कहते हैं कि अभी हद के बाप का वर्सा तो पूरा हुआ, अभी तो विनाश भी होने का है । तो जरूर गॉड फादर पतित-पावन आएगा । वो आ करके हमको पावन दुनिया का वर्सा देगा, जिसको स्वर्ग कहा जाता है । तो देखो, बेहद के बाप का स्वर्ग का वर्सा हम ऐसे लेते हैं । तो बाप का वर्सा जब लेंगे तो बाप को याद करना पड़े ना और बाप की प्रॉपर्टी को याद करें । देखो, बाप स्वर्ग का रचता है ना । तो हमारी मेडीटेशन ऐसे होती है । बाप को याद करना और वर्से को याद करना; क्योंकि वर्सा पाते भी हैं तो गुमाते भी हैं । गुमाते फिर कैसे हैं? सतयुग मंद इतना जन्म लेते-लेते 84 जन्म लेकर के अंत में हमारा पूरा हो जाता है और हम पतित बन जाते हैं । हमारी मेडीटेशन में रचता और रचना की याद रहती है । बाकी जो भी हैं, अनेक मते हैं, कोई हनुमान को याद करते हैं, कोई किसको याद करते हैं । अब वो याद में क्या है! न नॉलेजफुल बाप, न उनकी नॉलेज है बुद्धि में । बाप क्या नॉलेज देंगे? बाप, जो रचता है, वो रचना की नॉलेज देंगे । इसीलिए उसको नॉलेजफुल कहा जाता है । गॉड फादर इज नॉलेजफुल । गॉड फादर इज पतित-पावन । पतित को पावन करने वाला तो जरूर पतित दुनिया में आएगा ना तब तो आ करके हमको पावन बनाएँगे । जब तलक ये पतित दुनिया है, हमको पावन दुनिया स्वर्ग का वर्सा कैसे देंगे! तो ऐसे तुम कोई भी अच्छे आदमी को बैठकर समझाएँगे जैसे बाप बच्चों को समझाते हैं तो वो प्रभावित होगा । बोल देना कि तुम प्रभावित हो अच्छा-अच्छा करके नहीं जाओ; परन्तु ये याद रख देना सिर पर जन्म-जन्मांतर का पाप का बोझा बहुत है । वो बड़ा टाइम लेता है । अंत तक हमको ये ज्ञान लेना है । अभी तुमको फुर्सत नहीं है । फुर्सत नहीं है तो फिर टाइम लगेगा ना । ऐसे तो नहीं है कि जल्दी कुछ हो सकता है, पाप कोई जल्दी से भस्म हो जाते हैं । टाइम लगता है । टाइम वेस्ट करते हो । तुमको हम कहते हैं कि बाप आया हुआ है और मौत सामने खड़ा है । अगर तुम गफलत करेंगे तो फिर तुम वर्सा पाय नहीं सकेंगे; इसलिए जो शुभ कार्य होता है ना, शुभ कार्य में देरी नहीं करना । अभी तुम सीखने को लग जाओ । सीखने के लिए अगर तुम एक हफ्ता इस मेडीटेशन में बैठेंगे तो तुम त्रिकालदर्शी बन जाएँगे और तुमको नारायणी नशा चढ़ जाएगा । यानी फादर को अच्छी तरह से याद करने लग पड़ेंगे, क्योंकि तुमको और सब त्याग एक को याद करना है, जिससे अभी वर्सा लेना है । तो उनको बैठ करके अच्छी तरह से यह समझाएंगे कि मैं बोलती हूँ अभी मेडीटेशन में बैठो, मैं बैठाती हूँ- बाप को याद करो । तुम्हारा बाप तो है ना । जब दुःख होता है तब तुम उनको मात-पिता, गॉड फादर, परमपिता कहते आए हो । इस बाप को भक्तिमार्ग में तुम जन्म-जन्म याद करते हो । वो जो तुम्हारा लौकिक बाप है, वो तो फिरता रहता है ना- एक जन्म में एक, दूसरे जन्म में दूसरा, तीसरे जन्म में... और सभी जन्म में भक्तिमार्ग में तुम फिर भी उस निराकार को याद करते हो । तो देखो, वो अविनाशी बाप है । वो जो लौकिक बाप है, वो विनाशी है । तो उनको ऐसा समझाना है कि विनाशी से विनाशी वर्सा और अविनाशी से 21 जन्म का अविनाशी वर्सा मिलता है । ये तो भारत में 21 पीढी अथवा जनरेशन मशहूर है । तुमको अगर 21 जनरेशन का वर्सा लेना है ....तो फिर श्रीमत पर चलना होगा । हमारे पास यहाँ एक मत है श्री की, जिससे श्रेष्ठ बनते हैं । वो है श्री-श्री । वो सन्यासी लोग अपने ऊपर नाम धरते हैं श्री-श्री जगतगुरु । अभी श्री-श्री जगत्‌गुरू सन्यासी कैसे हो सकते हैं? सन्यासी तो सतयुग का 'श्री' टाइटिल ही नहीं ले सकते हैं, श्रेष्ठ बन ही नहीं सकते हैं । श्री तो उनको कहा जाता है । श्री-श्री वो बाबा है जो हमको श्री बनाते हैं, श्रेष्ठ बनाते हैं । वो तो न श्री-श्री हैं, न कोई श्रेष्ठ बनने वाले हैं, क्योंकि वो तो रजोगुणी धर्म वाले हैं, जो रजोगुण में आते हैं । आदि सनातन तो सतोगुणी सतोप्रधान धर्म है, क्योंकि धर्म भी तो ऐसे हैं ना- यह सतोप्रधान धर्म, फिर अगर उस तरफ में लेंगे तो फिर सतो तो हम उनको ही कहेंगे, फिर रजो और तमो जो दूसरे धर्म वाले आते हैं उनको कहेंगे । सतोप्रधान धर्म से ही तो बिरादरी निकलती है ना । इसको भी कहते हैं सन्यासी, रजोगुणी सन्यास । उनको हम सतोगुणी सन्यास तो कह नहीं सकें । वो रजोगुणी सन्यास है, ये सतोगुणी वा सतोप्रधान सन्यास है । बाप आकर सिखलाते हैं और गाया हुआ है बरोबर ये राजयोग है । सन्यासी राजाई को तो मान नहीं सकते हैं, क्योंकि वो सुख को काग विष्ठा समान कहते हैं ।.. .दुःखी बन गए हैं । बाप हमको बैठ करके मेडीटेशन ऐसे सिखलाते हैं । बाप सिखलाते हैं, मनुष्य नहीं सिखलाते हैं । भगवानुवाच्य! भगवान हम मनुष्य को नहीं कहते हैं । ये लोग कहते हैं कृष्ण भगवान । हम कृष्ण को भगवान नहीं कह सकते हैं । क्या सबका, मुसलमानों का भगवान कृष्ण है? बिल्कुल नहीं । सबका भगवान तो एक होना चाहिए । वो कृष्ण तो नहीं हो सकता है, न कोई ब्रहमा, विष्णु, शंकर हो सकते हैं, न कोई क्राइस्ट वगैरह हो सकते हैं । भगवान तो सबका एक है और वही पतित-पावन है । वही हेविनली गॉड फादर है । तो जबकि स्थापन करना है तो उनको आना ही है । बरोबर भारत में आते हैं । देखो, भक्तिमार्ग में उनका मंदिर कितना बड़ा बना हुआ था । तो वो हमको सिखलाते हैं, जिस श्री-श्री की मत से हम श्रेष्ठ बनते हैं, कैसे श्रेष्ठ बनते हैं बैठ करके समझो और इशारे से समझ जाओ कि हमारी मेडीटेशन कितनी सहज है । बाप को याद करना और सारी रचना के आदि-मध्य-अंत को जान जाते हैं । और कोई भी नहीं जानते हैं, बिल्कुल ही नहीं । तुम जाकर कोई को भी पूछो सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है? कुछ भी नहीं जानते हैं । पहले तो सतयुग की आयु तुमको ऐसी बता देंगे जो घूमते फिरो । बाबा कहते हैं जबकि तुम रात को बैठते हो यहाँ याद तुम करते रहो बिल्कुल कि रचता और रचना का...... । सबको कह सकते हो कि यह तो पुरानी दुनिया है ना । यह नई दुनिया थी ना । इसको कलियुग आयरन एज्ड कहा जाता है । ओल्ड वर्ल्ड जिसको कहेंगे । कलहयुग को कोई न्यू वर्ल्ड तो नहीं कहेंगे । न्यू वर्ल्ड जब होगी तो उस न्यू वर्ल्ड सतयुग में तो दैवी गुणों वाले मनुष्य थे ना । मनुष्य सतयुग में तो न्यू वर्ल्ड को स्वर्ग कहेंगे ना । देखो, नया महल है तो उनको हम कहते हैं स्वर्ग । पीछे वो गंदा हो जाता है.. जड़जड़ीभूत हो जाता है तो उनको हम कह देते हैं नर्क । हम इस सारी दुनिया को भी नर्क कहते हैं । घर-घर में नर्क है, बल्कि सारी दुनिया में नर्क है; क्योंकि घर-घर में अशांति है, झगड़ा, मारा-मारी, गंद विकार ये, वो, सभी ; क्योंकि है ही जंगल । उसमे जंगली जनावरों से भी बदतर रहते हैं । उनको कहा जाता है फॉरेस्ट ऑफ थॉर्न्स । अंग्रेजी मे लिखते हैं ना । ये एक दो को कोटा लगाते रहते हैं । वो बाप आ करके फिर गार्डन ऑफ अल्लाह स्थापन करते हैं । वो मुसलमान लोग भी जानते हैं कि गार्डन ऑफ अल्लाह, गॉड भगवान आ करके बहिश्त स्थापन करते हैं । बहिश्त तो अभी है नहीं ना । काँटों का जंगल तो है ना । तो तुम बच्चों को मालूम हो गया कि किसको काँटों का जंगल कहा जाता है किसको फूलों का गार्डन कहा जाता है । अभी तुम काँटों से दैवी फूल बन रहे हो । तो ये चिंतन चलना चाहिए ना । दिन में भी, रात में तुम नॉलेज लेते हो । दिन में याद नहीं पड़ता है तो रात को बैठ करके यहाँ नॉलेज याद करो । बाबा में भी यही नॉलेज है और बच्चों में भी यही नॉलेज है, जो रात को भी तुम बैठो । बड़ा मजा आएगा । ऐसे कोई आवे हमारे पास तो हम ऐसे समझाऊँगा क्योंकि सर्विस वालों को तो यही बुद्धि में रहेगा; क्योंकि और तो कोई बिचारे जानते ही नहीं हैं । हमको तरस पड़ता है । मनुष्य हो करके अगर इस रचता और रचना के आदि मध्य अंत को न जाने तो किस काम के! मनुष्य कहते हैं ओ गॉड फादर! और ये गॉड फादर, जो रचता है, उनकी रचना के आदि मध्य अंत को नहीं जानते हैं, ये बच्चे हैं, उल्लू हैं, पाजी हैं, कौन हैं? देखो तो, हम कैसे बन जाते हैं! इसको उल्लू कहा जाता है ना । हम अभी उल्लू के बच्चे, अभी अल्लाह के बच्चे । DOG से GOD । कितना फर्क रहता है; परन्तु नशा होना चाहिए ना समझाने का । अगर कोई कहेगा कि मुझमें ज्ञान है और कोई को नहीं; क्योंकि बाबा ने कहा है ना- बच्चे, ये है अविनाशी ज्ञान रत्न । अगर है तो जरूर दान करना चाहिए । अभी तुम जानते हो कि जितने जो दानी पुरुष हैं उनकी महिमा बहुत होती है- फिलेन्थ्रोफिस्ट । अरे, बहुत अखबारों में उनका नाम पड़ता आया है । इतना मंदिर बनाया, इतना कॉलेज बनाया, इतना हॉस्पिटल बनाई, नाम जाता है तो अखबारों में लिखते हैं .. फिलेंथ्रोफिस्ट यानी बहुत दान करते हैं । रिलीजियस माइंडेड वाले ही जास्ती दान करते हैं । तुम तो हो ही रिलीजियस माइंडेड और तुम्हारे पास अविनाशी ज्ञान रत्न हैं । अब ये तो तुम बच्चे समझते हो, ऐसे तो नहीं मूढबुद्धि हो । समझते हो कि जो-जो जितना जिसके पास धन है, वो इतना-इतना दान करेंगे । जिसके पास धन कमती होगा तो कमती दान करेगा । न होगा तो कुछ भी नहीं दान करेगा । फिर उनको क्या मिलेगा? न दान लेता है, न देता है । फिर बाकी वो क्या हुआ? कुछ काम का नहीं रहा बिल्कुल ही । दान भी तो देना है जरूर । दान न देंगे, गीता न सुनाएंगे तो और कौन सच्ची गीता सुनाएँगे? तो धारणा चाहिए और कितनी सहज है । अति सहज है । किसको भी बैठ करके समझाना, जैसे बाबा समझाते हैं कि हम ऐसे मेडीटेशन में बैठते हैं । ये दुनिया का चक्कर ऐसे चलता है । ये पुरानी दुनिया है । नई दुनिया में तो देवी-देवताओं का राज्य था, और तो कोई धर्म था ही नहीं । पीछे वो धर्म आया, फिर वो आया, फिर वो आया... । जब बरोबर इस्लाम धर्म था तो बौद्धी था ही नहीं, बौद्धी था तो क्रिश्चियन था ही नहीं, क्रिश्चियन था तो फिर ये मठ पंथ सन्यासी-वन्यासी, पूँछड़ी-बूछड़ी ये पिछाड़ी की बिरादरी थी ही नहीं; क्योंकि पीछे बिरादरी सतोप्रधान से कमती होती जाती है ना । ये तुम बच्चों की बुद्धि में अच्छी तरह से बैठना चाहिए जो फुर्त से कोई भी अच्छा आवे तो उनको आ करके समझावे । यहाँ मनुष्यों को मेडीटेशन अथवा योग का बहुत शौक है । उनको ये भी बैठ करके समझावे कि चलो आ करके हमारा मेडीटेशन हॉल देखो । मेडीटेशन हॉल देखने से बड़े खुश होते हैं । समझेंगे कि ये रिलीजियस माइन्डेड हैं । ये भगवान की बंदगी वाले हैं । ये इतने पाप आत्मा नहीं होंगे । रिलीजियस माइन्डेड कहा ही जाता है उनको जो पाप नहीं करते होंगे, परन्तु यहाँ तो जो बहुत रिलीजियस माइंडेड हैं वो बहुत पाप करते हैं । बड़ी समझ की बात है । कोई इतनी मेहनत भी नहीं है ।..बाप को याद करना और रचना को याद करना, इसमें मेहनत क्या है और सबको समझाना है, जैसे बाबा ने समझाया है कि हम ऐसे मेडीटेशन में या याद में बैठते हैं । योग माना याद । और तो मनुष्य पता नहीं किस-किस को याद करते हैं । हमको तो सिखलाने वाला स्वयं परमपिता परमात्मा है जो निराकार हमारा बाप है । उसको कहा ही जाता है पतित-पावन गॉड फादर राजयोग सिखलाते हैं । वो हमको ऐसे कहते हैं, वो हमको ऐसे सिखलाते हैं । तुम सीखो या न सीखो । हम सबकी एक मत है । श्री बनने के लिए हम श्री-श्री से मत ले रहे हैं । देखो, श्री का एम-ऑब्जेक्ट यह है । बरोबर इस समय में बहुत झगड़ा आता है एकदम, बहुत मनुष्य हैं और जब इनका राज्य है तब थोड़ा होगा, सतयुग में मनुष्य भी थोड़े होंगे । पीछे कैसे वृद्धि को पाते हैं । तुम तो हरेक चैतन्य बीजरूप हो गए एकदम, नॉलेजफुल क्योंकि जैसा बाप वैसे बच्चे, ऐसे कहते हैं ना । जैसे बाप..ये जानता है जरूर कि बीजरूप है, जैसे जड़ बीज होते हैं तो उनको झाड़ का नॉलेज होना चाहिए; परन्तु उनकी नॉलेज भी हमको है । अपने झाड़ की नॉलेज नहीं है कोई को भी । साधु संत महात्मा किसको भी नहीं है । मेडीटेशन का भी तुमको युक्ति से समझाना चाहिए, वो कैसे अनेक मत वाले हैं, हम एक मत हैं । अच्छा, बहुत ही तुमको समझाया । समझाना तो 2 मिनट भी बस है, 1 मिनट भी बस है । बाकी तुम बच्चे भी मेडीटेशन में रात को भी बैठेंगे तो बड़ा मजा आएगा तुमको; क्योंकि तुमको दूसरों को सिखलाना भी है । तो जितना तुम बाप को याद करेंगे उतना धन तुम्हारे पास जास्ती रहेगा । जितनी फिर सर्विस करेंगे इतना धन तुम्हारे पास वृद्धि को पाता रहेगा । गाया जाता है धन दिये धन ना खुटे। । मनुष्य क्यों दान करते है? समझते हैं कि दान करने से हमको और प्राप्ति होगी । ये साधु-संत के पिछाड़ी क्यों लटक मरते हैं? धन मिलता जाता है । समझते हैं साधु की कृपा है, इसलिए उनको भी दान करते रहते हैं । दान करते हैं फिर उनका फल उनको मिलता जरूर है । ऐसा नहीं है कि वो कोई निष्काम सेवा करते हैं जो उनको फल न मिले । मनुष्य को फल जरूर मिलना है । निष्काम सेवा गॉड इज वन और निष्काम सेवा करने वाला भी मैं एक हूँ जो तुम समझ सकते हो । ब्रहम-व्रहम तो नहीं कुछ आकर समझाएंगे! देखो, बाप आकर समझाते हैं कि मैं कैसे निष्कामी हूँ । ब्रहम कैसे समझाएंगे या तत्व कैसे समझाएंगे! ये बाप खुद आकर समझाते हैं कि मैं हूँ निष्कामी । आ करके तुम्हारी सेवा करके निर्वाणधाम में चला जाता हूँ; जैसे वो लौकिक बाप करते हैं, सेवा करके उनको(बच्चों को) सब कुछ देकर फिर निर्वाणधाम में चले जाने के लिए; परन्तु वो चले नहीं जाते हैं । अगर वो दे करके चले जाएँ तो निष्कामी होवे; परन्तु ये बाबा तो तुमको देकर के निर्वाणधाम में बैठ जाते हैं । बोलते हैं मैं तुमको गद्‌दियों पर राजभाग दे करके फिर जाकर के निर्वाणधाम में बैठ जाता हूँ । मनुष्य थोड़े ही ऐसे कर सकते हैं । वास्ट डिफरेन्स है । अच्छा, टोली खिलाओ । समझते हो कि बागवान, माली वगैरह ये है । देखता है कि हमारे फूल कैसे हैं, कैसे उन्नति को पाते हैं । पानी तो इनको देता रहता हूँ योग सिखलाता रहता हूँ । ये पुरुषार्थ करना है । कोई जड़ तो नहीं है, जिनको हम देंगे .. ..और जानता हूँ कि ये फूल किस प्रकार का है, ये कली किस प्रकार की है, ये काँटा किस प्रकार का है । तुम ऐसे मत समझो कि यहाँ काँटे नहीं हैं । उफ! बड़े-बड़े काँटे हैं । इनहेरिटेन्स मिलना है गॉड फादर से । क्राइस्ट को इनहेरिटेन्स अभी मिलेगा । काहे का? धर्म स्थापना करने का इनहेरिटेन्स । पीछे पोप बनेंगे । क्राइस्ट जब स्थापना करते हैं, पीछे पोप द फर्स्ट जाकर बनते है । जैसे ये । जो मेहनत करते हैं तो जरूर पहले नम्बर में जाएंगे ना । तो क्राइस्ट दूसरे जन्म क्या लेगा? वो तो समझते हैं क्राइस्ट का सोल लीन हो गया या हैविन में चला गया । वो ऐसे कहेंगे । नहीं, बोलो कि क्राइस्ट, जिसने स्थापना की धर्म की, उनकी पालना के लिए भी तो गुरू चाहिए ना । तो ये पोप लोग, इनके बड़े गुरू हैं । जैसे ये लक्ष्मी नारायण तुम्हारी पालना करने वाले हैं, वैसे वो । तो वो जाकर पोप द फर्स्ट, द सेकण्ड, द थर्ड बनते हैं । अभी कहते हैं क्राइस्ट कहाँ है? कहेंगे वो एक बैगर के पार्ट में है । तुम अखबारें नहीं पढ़ते हो । उनको मालूम है कि अभी जैसे बैगर के पार्ट में हैं यानी गरीब है । खड़ा हो करके क्या देखते हो? अरे, क्यों? यह भी समझते हो कि मैं फुलवारी को देखूँगा । याद आता है कि फलाना फूल है । कभी-कभी तो खड़ा हो करके देखता हूँ । अभी समझा! यह बड़ा अच्छा मेरा ... कितने अच्छे फूल हैं, कितने मददगार है । अच्छा! मात-पिता और बाप-दादा का मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार याद प्यार और गुडमॉर्निग ।