27-08-1964     मधुबन आबू     प्रात: मुरली    साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हेलो, स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुलभूषणों को हम मधुबन निवासियों की नमस्ते, आज गुरूवार अगस्त की सत्ताईस तारीख है, प्रात: क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।

रिकॉर्ड :-
तू प्यार का सागर हैं.........

ओम शांति। शिवबाबा बैठ करके अपने सिकीलधे बच्चों को समझाते हैं । किस पर समझाते हैं? कि गीता का भगवान कौन है; क्योंकि भारत में जो कुछ भी अज्ञान है, इसको कहा ही जाता है- घोर अंधेरा अज्ञान अंधेरा । अज्ञान अंधेरा तो है फिर सोझरा चाहिए ज्ञान का । परमपिता परमात्मा को ही मनुष्य मानते हैं कि ज्ञान का सागर है । किसको मानते हैं? जब महिमा की जाए तो अंग्रेजी में इसको नॉलेजफुल कहा जाता है और हिन्दी में ज्ञान का सागर । बात तो एक ही है ना । तो अभी ज्ञान का सागर है । उनसे हमको क्या मिलता है? थोड़ा-सा लोटा मिलता है, ऐसे कहेंगे ना । कितना लोटा मिलता है? वो जो नदियों का पानी होता है उसमें तो भर-भर कर बहुत स्नान करते हैं । वास्तव में ज्ञान के सागर से तुम बच्चों को क्या मिलता है? वास्तव में एक सेकण्ड एक बूँद है । देखो, बूँद मिलने से, कौन-सी बूँद बाप आ करके बच्चों को समझाते हैं । बाप ने कहा कि तुमको समझाते हैं मैं ज्ञान सागर हूँ । तुमको बूँद देता हूँ एक सिर्फ कह देता हूँ कि बच्चे, अब बच्चों का बाप हूँ और मुझे याद करो । तो हम लौटकर कहाँ जाते हैं? अपने धाम में । शांतिधाम में कहो और सुखधाम में कहो । यूँ वास्तव में है तो एक सेकण्ड की बात । है ज्ञान का सागर । एक सेकण्ड में जीवन मुक्ति में भेज देते हैं अथवा वैकुण्ठ भेज देते हैं । सो तो देखते हो कि घर बैठे-बैठे वहाँ से दृष्टि देते हैं । मनुष्य यहाँ बैठे एक,दो को सामने दृष्टि देते हैं ना । बाबा वहाँ बैठे भी बच्चों को दृष्टि देते हैं । बहुत हैं जो घर में बैठे-बैठे ध्यान में जाते हैं, वैकुण्ठ में जाते हैं और डांस करते हैं । तो बाप कहते हैं कि देखो, यह जो गाया हुआ है ना- एक लोटा, एक बूँद देने से हम यहाँ से चले जाते हैं । कहाँ चले जाते हैं? क्योंकि ये तो बच्चों को समझाया है ना जब भी कोई ध्यान में जाता है तो वाया मुक्ति या शांतिधाम नहीं जाता है..यहाँ बैठे-बैठे वैकुण्ठ देख लेते हैं । बरोबर ज्ञान का सागर है ना । अभी महिमा तो उनकी है । अभी बाप बैठ करके समझाते हैं कि गीता का भगवान कौन? ये तो..है कि वो ज्ञान का सागर है और ये निराकार है । वो गाते हैं श्रीकृष्ण के लिए । अभी प्रश्न उठता है तुमको बच्चों को समझाना है कि श्रीकृष्ण ने ज्ञान कब सुनाया? क्योंकि पहले पहले तो वो कहते हैं कि श्रीकृष्ण ने माता के गर्भ से जन्म लिया. कंसपुरी थी । कंस को आवाज हुआ कि ये तुमको मारने वाला है । किसको? सिर्फ कंस । नहीं, असुर तो सभी हो जाते हैं- कंस, जरासंधी वगैरह- वगैरह, जो पाप आत्माएँ हैं उन पाप आत्माओं का विनाश करने के लिए उनका जन्म दिखलाते हैं । ये तो जरूर है ही कंस जरासंधी पूतना अकासुर बकासुर जो भी नाम हैं सभी, क्योंकि दैत्य तो सभी एक तरफ एक जगह में होते हैं ना । एक ही समय में बैठ करके समझाया जाता है । अभी श्रीकृष्ण ने अगर जन्म भी लिया तो छोटा था । ज्ञान कब दिया? क्योंकि वो तो युद्ध के मैदान में बड़ा दिखलाते हैं । छोटा तो नहीं दिखलाते हैं । वैसे ही श्रीकृष्ण जयन्ती के बाद फिर गीता जयन्ती दिखलाते हैं । कुछ समय लगा देते हैं । जब बड़ा हो, जरूर जवान हो जाए । दिखलाते भी ऐसे ही हैं, युद्ध के मैदान में बच्चा नहीं दिखलाते हैं । युद्ध के मैदान में अर्जुन की गाड़ी हांकते रहते हैं तो उस समय बड़ा हुआ ना । छोटे से तो नहीं होगा । जब ये बड़ा हुआ है, फिर तब कहते हैं तो अलग रखते हैं । छोटा जरूर था और जन्म लिया है, कुछ बड़ा हुआ है उसके लिए ये दिखलाते हैं । वो भी दिखलाते हैं कि जन्म लिया है बरोबर और टाइम भी लगाते हैं । यहाँ तुम बच्चे देखते हो कि शिवबाबा की जो अभी साधारण तन में पधरामणी हुई है, तो कोई को पता नहीं है । बच्चा तो बना ही नहीं है । वास्तव में अगर कहें कि वानप्रस्थ अवस्था में प्रवेश किया है यानी बुड्‌ढा । फर्क है ना । फिर कब आया है, किसको पता नहीं है । उनकी तो तिथि-तारीख है बड़ी अच्छी तरह से । जैसे रामचंद्र की रामनवमी कहते हैं, जो पीछे आया हुआ है । उसको भी तो नहीं समझा सके । उसको भी भगवान नहीं समझा जाए । वो भी गर्भ से पैदा हुआ । फिर देखो गीता के लिए बड़ा हो गया है और यहाँ शिवबाबा आया, आने से ही ज्ञान देना शुरू कर दिया । वो तो ज्ञान सागर है ही । उनको छोटा तो नहीं होना है ना, जो फिर बड़ा हो करके ज्ञान सुनावे । अभी है तो मनुष्य, मनुष्य को जरूर कोई ज्ञान देवे । उनको ज्ञान सागर भी नहीं कहा जावे; क्योंकि वास्तव में राधे-कृष्ण का जन्म ही वैकुण्ठ में दिखलाएँगे । वहाँ तो वो राजयोग सिखला ही न सके । लॉ ही नहीं कहता है कि राजयोग सिखलाए क्योंकि है ही खुद राजा । यहाँ तो पतित को पावन बनाना है या राजा बनाना है । तुम पतित हो, बरोबर पतित-पावन आते हैं और तुमको बैठ करके राजयोग सिखलाते हैं । इनका कोई समय नहीं है कि कब आया? बोलते हैं, रात्रि । तुम बच्चों को बताया कि उनकी रात्रि का अर्थ और इनकी रात्रि का अर्थ, रात-दिन का फर्क है । ये तो आए ही हैं संगम की रात्रि अर्थात घोर-अंधियारे की रात्रि में; क्योंकि जब ब्रहमा का दिन पूरा होता है, फिर रात्रि शुरू होती है । फिर जब रात्रि आधा कल्प चल करके पूरी होती है तब ब्रहमा का दिन होना होता है । अब ये गाते भी हैं बरोबर कि ये जो बेहद की रात्रि हुई, इसको अज्ञान अंधेरी कहा जाता है । वो सोझरा वो अंधेरा । अंधेरा और सोझरा रात को नहीं कहेंगे । वो तो कृष्ण का जन्म रात को न 2 बजे के बाद मनाते हैं । पर ये तो हुई हद की रात और ये है बेहद की रात, जिसमें बाप कहते हैं कि मैं आता हूँ । मैं आता हूँ तो तिथि-तारीख तो कभी रहती ही नहीं है । इसलिए शिव जयन्ती की कोई भी तिथि-तारीख नहीं है । पीछे जो सतयुग का कृष्ण है उनकी तिथि-तारीख है । राम की तिथि-तारीख त्रेता की । मुख्य दो हैं ना । पीछे तो डिनायस्टी चली है । जब कृष्ण अष्टमी आएगी तो उनको समझाना चाहिए कि ये तो बच्चा है और रात को दिन करने वाला तो आया ही नहीं है । ये तो ब्रहमा की गाई जाती है । तो ब्रहमा का दिन ही श्रीकृष्ण है और ब्रहमा की रात ही ब्रहमा है, क्योंकि ब्रहमा सो फिर श्रीकृष्ण बनते हैं ना । गाते भी हैं ब्रहमा की रात । कृष्ण की रात कोई नहीं कहेगा, क्योंकि उनको तो अभी भी कहेंगे- कृष्ण तो हाजरा हजूर है । कृष्ण तो भगवान था । देखो, तुम कहते हो कि वो जन्म-मरण में आते हैं, 84 जन्म में, तो उनको कितना गुस्सा लगता है । तो ये समझाना पड़ता है ना बच्चों को, क्योंकि अभी कृष्ण-जन्म अष्टमी आती है । अच्छा, कोई गीता की तो गाएंगे नहीं । तुम्हारी तो है ही शिव जयन्ती । शिव जयन्ती कहो या शिव रात्रि कहो । जयन्ती भी कहना ठीक है । कब? कोई पूछे तो बोलो- जयन्ती या रात्रि तो मनाते हैं बरोबर । अच्छा, तो मनुष्यों को यह समझाना जरूर होता है कि शिव आया । वो तो आ करके साधारण तन में बैठ करके ज्ञान सुनाते हैं । तुम देखते हो कि बरोबर शिवबाबा साधारण तन में आया हुआ है । कृष्ण तो यहाँ एक- दो को कोई कहते नहीं हैं । समझाया जाता है कि हाँ, भविष्य में कृष्ण भी आएगा । बाबा ने समझाया आठ पीढ़ी भले प्रिंस ऑफ...होगा । छोटेपन में तो उनको मोहन ही कहते हैं । मोहन कहें या कृष्ण कहें, ये तो एक ही बात है, प्रिंस । जैसे प्रिन्स ऑल वेल्स कहेंगे । जो पहली-पहली गद्‌दी होगी इंद्रप्रस्थ तो ऐसे कहेंगे ना - प्रिन्स ऑफ इन्द्रप्रस्थ, जो फिर किंग होते हैं । फिर जो उनका बच्चा होगा प्रिन्स ऑफ इंद्रप्रस्थ फिर वो किंग होगा । ऐसे कहेंगे ना, किंग तो नहीं होता है; पर महाराजा ही गाया जाता है; क्योंकि श्री लक्ष्मी और नारायण को श्री महारानी और महाराजा कहा जाता है । किंग अक्षर तो अंग्रेजी... का है । वो बादशाह कहते हैं और यहाँ वास्तव में असल नाम है ही श्री लक्ष्मी महारानी, श्री नारायण महाराजा । तो अभी ऐसे तो नहीं कहेंगे कि श्री नारायण ने कोई ज्ञान दिया था. क्योंकि कृष्ण स्वयंवर के बाद बड़ा बनता है, तो नारायण कहा जाता है । अभी नारायण तो वो एक ही हुआ । वो बच्चा है, वो बड़ा है । अभी इनका, ज्ञान सागर का नाम तो बदलता ही नहीं है । तो उनको समझाना है कि आने से ही ज्ञान देना शुरू कर दिया; क्योंकि रथ तो बड़ा है ना । शुरू से ही, जबसे आए हुए हैं, वो भले धंधे में थे तभी थोड़ा बहुत ज्ञान देना शुरू कर दिया था: क्योंकि किसके भी सामने बैठता था तो प्रभाव दिखलाते थे । ध्यान में चले जाते थे । अर्थ तो कुछ समझ नहीं सकते थे । ये समझ में आता है कि बरोबर इनमें कोई आया हुआ है । जो ये सबको.. देते हैं और ये नॉलेज दे रहा है; क्योंकि ये नॉलेज समझाई जरूर थी, परन्तु समझ में नहीं आती थी । जैसे बच्चे होते हैं तो उनको कहो- लिखो, तो ये लिखकर आते भी थे । तो बाबा अनुभव सुनाते हैं कि जब ये बनारस में गए तो दिवालों पर बैठ करके ऐसे गोले निकालते थे । पेन्सिल ले करके उनकी सारी दिवालें खराब कर देते थे । समझ में ये नहीं आता था । उड़ता था बेशक । भले साक्षात्कार में जाता था; पर समझ में थोड़े ही आता था कि क्या है, क्योंकि बेबी बन गए ना जैसे कि और नया जन्म लिया ना; जैसे ये बच्चे भी कहते हैं- मैं आठ दिन का हूँ 15 का हूँ 1 महीने का हूँ या 6 का हूँ । तो बाबा कहते हैं- हम भी तो बच्चा बना ना । तो सिखलाया तो लगे ना । तो पहले इतना समझ में नहीं आता था । पहले इतना ज्ञान नहीं रहा, क्या समझाते, फिर हम क्या रिपीट करते थे कुछ पता ही नहीं पड़ता था । अगड़म-बगड़म सब चला जाता था, शुरू से ही । अब तो बड़े हो गए हैं । देखो, कितना बरस हुआ सीखते-सीखते । तो अभी अच्छी तरह से बाप की जो भाषा है, इनको समझ में आती है क्योंकि पहले तो ये बना ना । तो अभी बाप बैठ करके समझाते हैं कि अभी ये नहीं बताना है, जो बच्चों को बताता हूँ परन्तु नहीं, बच्चों को गीता पर और कृष्ण के जन्म पर समझाना है । चित्र तो हैं ही बरोबर, देखो ये झाड़ में ब्रहमा का फोटो भी है । उसने ये हाथ किया है । उनको मक्खन मिलता है । काहे का मक्खन है? बरोबर विश्व के मालिकपने का मक्खन है । तो कृष्ण आया ही है सतयुगी प्रालब्ध ले करके, ऐसे कहेंगे; क्योंकि सतयुग का पहला प्रिन्स है । तो वो आया ही हुआ है अपनी प्रालब्ध ले करके । तो ऐसे नहीं कहेंगे उसने बैठ करके औरों की प्रालब्ध बनाई है । नहीं, कृष्ण के साथ कृष्ण की सारी राजधानी है; क्योंकि प्रिन्स वाले की तो राजधानी होती है ना । वहाँ बाप की राजधानी होती है, उसने जन्म लिया है । जरूर कहेंगे ये प्रालब्ध ले आए हैं । जरूर कोई ने इसकी प्रालब्ध बनाई है, क्योंकि विश्व का जो पहला-पहला प्रिन्स है, जरूर उनके पीछे प्रिन्स भी तो बनेंगे ना । ऐसे तो नहीं कि नहीं बनेंगे । उस राजाई के प्रिन्स बनेंगे । सूर्यवंशी राजाई चलाना है तो जरूर इनकी जो प्रालका है, जो कलहयुग में बिल्कुल नहीं थी, ये इन सूर्यवंशियों की प्रालब्ध कौन बनाएगा? गाया जाता है ना- ज्ञानसूर्य प्रगटा अज्ञान अंधेर विनाश । अभी देखो, ज्ञान सागर कहेंगे ना फिर भी । जब वो शिव आया है हुआ तो उसने बैठ करके स्वर्ग की स्थापना की । स्वर्ग की स्थापना अभी कर रहे हैं, सो तो तुम जानते हो । वो तो तुमको बैठ करके कॉन्ट्रास्ट समझाना है कि गीता कृष्ण कैसे गा सकते हैं? जबकि बच्चा है, गर्भ में आया है, कंस का राज्य है । बरोबर असुर हैं जरूर । ये जरूर मानेंगे कि ऐसे कहते हैं कि असुर थे; परन्तु वहाँ असुर तो हो नहीं सकते हैं ना । सतयुग में असुर तो हो नहीं सके ना । असुरों और देवताओं की लड़ाई दिखलाते हैं तो जरूर देवताओं ने जीत पहनी । तो जरूर असुर पिछाड़ी में होंगे ना । कलहयुग के अंत में होंगे । तो सतयुग के आदि में हैं देवता; क्योंकि गाया भी जाता है असुरों और देवताओं की लड़ाई । ये तो बच्चों को समझाया गया है लड़ाई तो कोई लगी नहीं है । महाभारत की लड़ाई लगी है जरूर ; परन्तु कोई भी असुर और देवताओं की नहीं । देवताएँ तो यहाँ हो भी नहीं सकते हैं । तो इसलिए असुरों की असुरों में लड़ाई दिखाई है । यानी असुर ये यवन हैं, मुसलमान का राज्य अभी तुम देखते हो बरोबर । देखो बोंब्स भी है, यादव भी है, यवन मी है, पाण्डव भी है । तो पाण्डवों का कर्तव्य है नॉन वाइलेन्स । योगबल से । तो लड़ाई कैसे हो? रक्त की नदी यहाँ कैसे बहे? अगर अंग्रेज लोग होते तो ऐसी रक्त की नदी नहीं बह सकती । रक्त की नदी बहती ही है तब जबकि देखो, ये ट्रॉन्सफर हो गया है । बरोबर समय ही ऐसा बन गया है, जिनके साथ दुश्मनी है और देखो, दुश्मनी तो है...। रक्त की नदी बही थी, अच्छी ही बही थी । जब पार्टीशन हुआ है ना तब बहुत ही हुई है । तो वो जो कहते हैं ना भाई-भाइयों की युद्ध हुई । तो ये भाई-भाई तो है ना । देखो, आधा वो हैं, आधा ये हैं आपस में । यूँ तो भाई-भाई तो सबको कहते हैं । चीनी-हिन्दू भाई-भाई । अभी चीनी-हिन्दू भाई-भाई कहते तो हैं लेकिन वो तो दूर देश हैं । भाई-भाई तो ये बैठे हैं ना । एक ही गॉव में । देखो, भाई-भाई एक ही गांव में था जो पार्टीशन हुई है और फिर भी बैठे तो हैं ना बरोबर । बहुत मुसलमान हैं । करोड़ो के अंदाज में यहाँ मुसलमान हैं । वैसे वहाँ भी तो बहुत हिन्दू हैं । तो देखो, लड़ाई तो इनकी लगती है ना बरोबर । वो युद्ध की तो बात ही नहीं । रक्त की नदी कैसे बहे? वो जो लड़ाई दिखलाई है ना, उस लड़ाई में रक्त की नदी नहीं बहती है । रक्त की नदी कहते हैं, जब एक-दो को खून करते हैं, छुरी मारते हैं या तलवार मारते हैं । सो आजकल ये तो समझते हो कि तलवारें और छुरियां तो बहुत ही रहती हैं । जब पार्टीशन हुआ तो तलवारों और छुरियों ने ही बहुत काम किया । तो जरूर ये संगम का समय है । कृष्ण को संगम में तो दिखलाएँगे ही नहीं कभी भी । कृष्ण को सतयुग में ही दिखलाएँगे क्योंकि रक्त की नदी के बाद फिर घी की नदी आती है । कलहयुग के बाद सतयुग आता है । कृष्ण की तो बात ही न्यारी हो जाती है बिल्कुल । एक तो बच्चा और फिर उनकी बैठ करके जैसे कि ग्लानि की है । ये डराना-फलाना करना । उनकी तो बात ही और कह देते हैं । उनको तो तू ज्ञान का सागर है, वो तो कह भी नहीं सकेगा बिल्कुल ही । उनकी यह महिमा है ही नहीं । देखो सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी, अहिंसा परमोधर्म, मर्यादा पुरुषोत्तम- ये किसकी महिमा है? बच्चे की महिमा नहीं की जाती है । महिमा हमेशा राजा-रानी की की जाती है । तो बरोबर श्री लक्ष्मी और नारायण के लिए ही ये महिमा कहेंगे । तो ये जो लक्ष्मी और नारायण को ले गए हैं सतयुग में और कृष्ण को ले आए हैं एकदम द्वापर में । तो देखो, कितनी बड़े ते बड़ी भूल हो गई है कि कृष्ण का जन्म, राधे का जन्म स्वयंवर के बाद सतयुग में है, नहीं तो लक्ष्मी और नारायण की छोटेपन की कोई कहानी बताओ? सतयुग वाले की तो कहानी जरूर चाहिए ना । सीता और राम की भी कुछ न कुछ कहानी बताते हैं । कृष्ण की भी उल्टी-सुल्टी कहानी बताते हैं । दोनों की उल्टी-सुल्टी कहानी । भला कोई तो सुल्टी कहानी सुनाओ, जिन्होंने दुःख न देखा हो? तो वो .... हैं सतयुग में श्री लक्ष्मी और नारायण । उनकी कोई भी ग्लानि नहीं है । उनकी तो महिमा ही ये गाते हैं- सर्वगुण सम्पन्न । मंदिर में जाएँगे तो दोनों की जा करके ये महिमा कहेंगे- सर्वगुण सम्पन्न, सोलह कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी, अहिंसा परमो देवी-देवता धर्म, ऐसे कहेंगे । अहिंसा परमोधर्म बरोबर कहेंगे ही; क्योंकि है ही सतयुग का सूर्यवंशी राज्य । तो देखो, सतयुग की महिमा चाहिए ना बरोबर । तो सतयुग में इन लक्ष्मी-नारायण को राज्य किसने दिया? नहीं तो कृष्ण और राधे का नाम सुन करके मनुष्य मूंझ जाते हैं । या तो कृष्ण-राधे कहा तो तुम लोग चले जाते हैं द्वापर में । श्री लक्ष्मी-नारायण कहने से तुम चले जाते हो सतयुग में । बरोबर ये है भी नर से नारायण बनने की कथा । ये ऐसे नहीं कहते हैं कि नर से कृष्ण बनने की कथा है । ये है सत्य नारायण की कथा । सत्य कृष्ण की कथा नहीं कहेंगे । सत्य नारायण की कथा । अभी सत्य, जो सच्चा बाबा है, जो ज्ञान का सागर है, वो ये कथा सुनाते हैं । कौन-सी कथा? ये सारे इस सृष्टि के आदि, मध्य, अंत की कथा । उसमें श्री लक्ष्मी-नारायण की कथा भी आ जाती है । उनकी कौन-सी कथा? उनके 84 जन्म की कथा । राधे-कृष्ण की, है वास्तव में उनकी; परन्तु नहीं, ये है सत्य नारायण की कथा । तो सत्य नारायण की कथा में क्या होगा? बेड़ा पार होगा । बरोबर अभी सच्चा बाप बैठ करके बच्चों को नर से नारायण बनने की कथा सुनाते हैं; क्योंकि राजयोग है । उनमें फिर समझा जाता है कि श्री लक्ष्मी और नारायण जो राजयोग सीखकर नर से नारायण बनते हैं । तो नारायण बड़ा देखने में आता है ना । ........अब इनकी कथा, स्वयंवर जो हुआ, पहले कौन थे? क्या उनका नाम लक्ष्मी और नारायण था? या कोई दूसरा नाम था? तो दिखलाते हैं बरोबर राधे और कृष्ण इनकी आपस में सगाई हुई । उनके महल में राधे आई और वो भी आए, अपने महल में मिले और उनकी सगाई हुई । स्वयंवर के बाद उनका लक्ष्मी-नारायण नाम रखा । तो बाबा एस्से देते हैं ना । तो उनमें से अच्छी तरह से समझाकर फिर विचार-सागर-मंथन करना चाहिए । अभी विचार-सागर-मंथन करने वाले हैं नंबरवार बच्चे । सबका एक जैसा विचार-सागर-मंथन नहीं चल सकता, एक जैसी वाणी नहीं चला सकें, एक जैसी मुरली नहीं बजाय सकें । तो फिर ये क्यों बाबा कहते हैं कि आज तो कोई कृष्ण जन्म अष्टमी नहीं है ना । बाबा समझाएंगे तो फिर झट उनके पास जाएंगे । फिर यो बैठ करके ये बातें समझाएंगे कि भई, यहाँ पहली-पहली जो भूल हुई है. ...ये महाभारी महाभारत लड़ाई जो लगी थी, सो तो जानते हो कि अभी कलहयुग है । द्वापर तो है नहीं ना । देखते हो कि यादव कौरव पाण्डव अभी सब कलहयुग के समय में हैं । इसको कोई द्वापर नहीं कहेंगे । तो जरूर जब लड़ाई लगी है तो कलहयुग के बाद जरूर सतयुग आएगा; क्योंकि यह तो बाप बोलते हैं कि मैं आया हूँ तुमको लिबरेट कर, गाइड बन कर यानी माया रावण के चम्बे से छुड़ाकर वापस ले जाने के लिए । तो वापस जाएगी आत्मा । ये तो परमात्मा कहेंगे ना, गाया भी जाता है- आत्माएं परमात्मा अलग रहे बहुकाल । तो जरूर वो आत्माओं के लिए कहा जाता है, ऐसे नहीं कहते हैं कृष्ण अलग रहे । नहीं, ये तो महिमा ही उनकी है कि आत्माएँ और परमपिता परमात्मा अलग रहे बहुकाल । फिर देखो, गाया भी जाता है कि सुन्दर मेला कर दिया जब वो सदगुरु मिला दलाल । यहाँ तो सत्‌गुरू कोई दलाल तो नहीं बनते हैं ना । गुरू ही बैठ कर ज्ञान देते हैं । ये क्यों गाया जाता है, जब सत्‌गुरू मिले दलाल? यानी सत् जो परमपिता परमात्मा दलाल के रूप में । तो देखो, इसमें आकर निवास किया है ना बरोबर । इन द्वारा । सौदा कैसे होता है? दलाल द्वारा । तुमने सुना है बच्ची, तुम्हारी सगाई कौन कराते हैं? ये ब्राहमणी दलाल... होती है, दलाल भी होते हैं । राजाओं में हमेशा सगाई करने वाले दलाल होते हैं, मेल होते हैं । उनका नाम ही भाट रखा जाता है । जोधपुर के तरफ में उनको भाट कहा जाता है । वो.. .नारियल वगैरह ले करके जाकर सगाई करते हैं । तो देखो, यह भी तो सगाई होती है ना, जब सतगुरू मिले दलाल के रूप में । क्यों? ये आत्माएँ और परमात्मा अलग । तो कैसे? वो तो निराकार है ना । फिर उनको आकार कहाँ से आवे? तो देखो, वो आ करके इसमें प्रवेश करके तुम्हारी सगाई कराते हैं । दलाल खुद ही बनते हैं । इसके रूप में बैठ करके फिर बोलते हैं माम अर्थात मुझे याद करो ना । मुझ अपने परमपिता परमात्मा को याद करो ना । दलाल के इस शरीर में बैठ करके बोलता है- मामेकम याद करो । ये किसने कहा मामेकम्? मैं सबको लिबरेट कर साथ में ले जाऊँगा ये कौन कह सकता है? समझा । अब फिर मैं ले जाऊँगा तुमको राजाई दे करके और मैं फिर निर्वाणधाम में बैठ जाऊँगा । कृष्ण थोड़े ही ऐसे कहेंगे । वो तो शादी करके राजाई किया है । ये तो हैं ही आत्माएँ और परमात्मा । कृष्ण भी तो आत्मा है ना; क्योंकि उनका शरीर है छोटा, जो फिर बड़ा होता है । समझाने के समय में बहुत होती हैं ना, सो भी ये बातें समझाने में कितना टाइम लगता है । बीच में भी कितनी दूसरी बातें हैं ना, उनको कट कर देना, जो बाबा ने बैठ करके समझाया कि कैसे मेरे में प्रवेश किया और मैं कैसे प्रवेश जैसे कि कुछ न समझता था; पर था, क्योंकि साक्षात्कार करने से मालूम पड़ा, ओह । मैं तो कोई बादशाहों का बादशाह बनता हूँ एकदम । मेरे को जैसे कि नॉलेज आई । साक्षात्कार तो बहुतों को होते हैं । लक्ष्मी-नारायण का भी होता है ... परन्तु ये थोड़े ही समझ सकते हैं कि...... साक्षात्कार हुआ, दिल खुश हुई । अच्छा, पहले जब साक्षात्कार, फिर खुशी । साक्षात्कार हुआ! बरोबर विष्णु का तो साक्षात्कार हुआ! ये डिस्ट्रक्शन भला क्या हुआ? तो पहले समझ में नहीं आएगा ना । फिर एक- दो साक्षात्कार भी कराय दिया- फिर पगड़ी वाला हो, फलाना हो । तो वो भी साक्षात्कार हुआ, वास्तव में तुम नर से नारायण बनेंगे; परन्तु समझ में थोड़े ही आया होगा । उस समय में इतनी समझ नहीं थी । बिल्कुल नहीं । जैसे रात को बाबा कहते थे ना, मुझे खुद पता नहीं पड़ता है । पता नहीं क्या होता है, भूलता क्यों हूँ ऐसा तो नहीं है कि बाप जब प्रवेश करते हैं तब मैं समझता हूँ और जब बोल बोलते हैं ऐसे तो फील होता है जैसे कि बेहद का बाप इन द्वारा ये समझा रहे हैं, परन्तु मैं उनका बच्चा हूँ तो ये याद घड़ी-घड़ी करो । घड़ी-घड़ी नहीं हो जाती है । तो क्या बाप जब आते हैं, तब याद पड़ती है? जब याद करता हूँ एकदम कड़ा हो करके, क्या होता है फिर । चला जाता है तो मैं भूल जाता हू! क्या होता है! या मैं खुद ही मूल जाता हूँ । ये देखो, चलती है ना बहुत । ये भी विचार की बात हो जाती है- क्यों भूल जाता हूँ? या मेरे याद से ही आता है, ऐसे कहें । तो बरोबर मेरे याद से आते हैं, मैं इनको खड़ा करूँ । मैं घड़ी-घड़ी याद करता रहूँ तो मेरे पास भले आवे । तो मेरा भी तो कल्याण हो जाएगा ना । याद से ही तो बच्चों का कल्याण होना है । तो याद ही प्रिंसिपल(मुख्य) हो जाती है । तो याद ही करना है । आवे कभी भी, ना आवे कुछ भी ना हो; परन्तु बाप को याद जरूर करना है । अभी ये तो हुआ बच्चों के लिए डायरेक्शन परन्तु बाबा ने पहले ही समझा दिया कि कृष्ण जयन्ती जन्माष्टमी और पीछे होती है गीता जयन्ती । पहले भला गीता जयन्ती, पीछे कृष्ण जयन्ती हो तो भी कहें- हाँ, गीता जयन्ती के बाद कृष्ण निकला है । अगर कहें कि कृष्ण जयन्ती, पीछे गीता जयन्ती तो फिर ऐसे हो जाता है जैसे कि कृष्ण आ करके गीता सुनाते हैं । ये तो तुमको मालूम होगा कि गीता जयन्ती कब होती है, आगे होती या पीछे होती है? पीछे होती है । इससे सिद्ध होता है कि वो समझते हैं कि बरोबर कृष्ण ने गीता सुनाई । अगर वो समझे कि शिव जयन्ती, पीछे कृष्ण जयन्ती तो कृष्ण पीछे आ जाता है । पहले शिव जयन्ती होती है, पीछे बहुत समय के बाद कृष्ण जयन्ती होती है । तो शिव जयन्ती और फिर गीता जयन्ती । गीता जयन्ती, फिर कृष्ण जयन्ती- ये है राइट, क्योंकि शिव जयन्ती तो उसके साथ ही; क्योंकि बड़ा है । फट से आया और गीता श्लोक शुरू किया है, ऐसे कहेंगे ना; क्योंकि बड़ा है ना । वो छोटा थोड़े ही है जिसको बड़ा होने का है । तो इन बातों के ऊपर बच्चों को अच्छी तरह से विचार-सागर-मंथन करना चाहिए कि कैसे हम उनको समझावे, जो अभी भाषण करने वाली है कि पहले ये ख्याल करो कि शिव किसको कहते हैं, जिनकी रात्रि मनाई जाती है; क्योंकि मुख्य प्रिंसिपल यह है; क्योंकि सतयुग है श्रीकृष्ण की राजधानी । बरोबर नर से नारायण बनाने की नॉलेज तो जरूर फादर ही देंगे, और तो कोई दे भी नहीं सकते हैं, क्योंकि वो नॉलेजफुल है । और तो किसको भी नॉलेजफुल कहा ही नहीं जाता है । नारायण को भी नॉलेजफुल नहीं कहा जाता है । जबकि सूर्यवंशी के बड़े को नॉलेजफुल नहीं कहा जाता है, त्रिकालदर्शी नहीं है तो फिर रामचंद्र भी नहीं तो द्वापर वाले का भी नहीं, क्योंकि जरूर एक ही चाहिए । ये तो समझाया गया है कि सतयुग में श्री लक्ष्मी नारायण को तो ये नॉलेज बिल्कुल ही हो नहीं सकती है; क्योंकि नॉलेजफुल गॉड फादर तो उनको कहा जाता है । वो तो राज्य करते हैं । उनको तो 84 जन्म लेना ही है । अगर शिव का जब चित्र देखेंगे तो वो बोलेंगे- नहीं, ये तो है बरोबर परमात्मा, इसमें कोई भी शक नहीं है, परन्तु कैसे आता है, ये भूल गए हैं । शिवबाबा का भले कोई ने पुराण भी] बनाया हो । अगर कोई ने शिव पुराण बनाया हो तो भी तो जरूर कोई के शरीर में आया होगा । तब तो उन मनुष्यों ने बैठ करके लिखा होगा ना । गीता भी जब कोई ने बोली है तब लिखी है । अगर शिव पुराण है तो शिव तो है निराकार, भला उसने पुराण कैसे रचा? या वेद व्यास तो बैठकर लिखने लगा । वो तो लिखने वाला हो गया । वो भी तो मनुष्य हो गया । उस समय में वेद व्यास का शास्त्र जो इतना बना हुआ है, ये सब झूठे ही झूठे हैं; क्योंकि गीता के इन शास्त्र में पहले ही पहले झूठ लिख दी; क्योंकि बहुतों के ऊपर वेद व्यास लिखते हैं । शास्त्र को भगवान वेद व्यास ने लिखे । तो जरूर जब गीता उसने लिखी है तो महाभारत, रामायण इतने सभी सब व्यास ने ही बैठ करके लिखे होंगे । तो ऐसी बातें तो कोई है नहीं । उसने बैठ करके भक्तिमार्ग के लिए कुछ लिखा होगा; परन्तु फिर भी तुम बच्चों को उनके लिए कहेंगे ही, ये भी तो अनादि है । ये फिर भी तो कोई लिखेंगे जरूर । तो व्यास भी कोई होगा, जिन्होंने बैठ करके लिखा होगा; परन्तु है तो सभी भक्तिमार्ग के लिए, क्योंकि वो पढ़ते आए हैं जरूर । भला पढ़ते-पढ़ते, पढ़ते? दुर्गति को तो चले गए । कोई फायदा तो हुआ ही नहीं, क्योंकि भक्तिमार्ग है । भक्तिमार्ग के लिए तुम बच्चों को समझाना है कि ये है दुर्गति मार्ग । भक्तिमार्ग में फिर कोई को आना चाहिए जो सद्‌गति देवे । तो सद्‌गति दाता भी तो एक ही कह देते हैं, जो सबको आ करके वापस ले जाते हैं । तो बच्चों को जन्माष्टमी के दिन क्या समझावें। कि ये जो श्रीकृष्ण है, वो तो मनुष्य है, उनको ज्ञान सागर तो नहीं कह सकेंगे । ज्ञान सागर तो हमेशा परमपिता परमात्मा को कहा जाता है । उनको ही नॉलेजफुल कहा जाता है । बरोबर गॉड इज नॉलेजफुल । उनको नॉलेज कौन-सी है? जरूर रचता है, बीजरूप है, चैतन्य है और उनको ही कहा जाता है नॉलेजफुल ज्ञान का सागर । तो जरूर आ करके नॉलेज सुनाएंगे । किसकी? झाड़ की और इस ड्रामा की यानी नाटक की । नहीं तो किसको पता ही नहीं है कि नाटक कब से शुरू हुआ और कब से पूरा होता है । कोई को भी पता नहीं है । रिपीट करता है जरूर, पर इसकी आदि क्या है ये नहीं जानते हैं । वो भी समझते हैं कि सतयुग आदि है और कलियुग अंत है । अभी सतयुग से लेकर कलहयुग तक वर्ल्ड की हिस्ट्री और जॉग्राफी कैसे चलती है ये कोई नहीं जानते हैं । उसको कहा जाता है वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी ये चक्र कैसे रिपीट करते हैं । अभी ये सुना तो कोई भी जानता नहीं है । अभी ये सुनावे तो कोई भी जानता नहीं है । ये सुनावे वो जो त्रिकालदर्शी हो । अभी त्रिकालदर्शी तो कोई है नहीं बिल्कुल ही सिवाए एक के । तुम जानते हो कि तुमको ही बैठ करके त्रिकालदर्शी बनाते हैं । त्रिकालदर्शी वालों को ही तीसरा नेत्र भी कहा जाता है । भई, इनको तीसरा नेत्र लान का मिलता है । बुद्धि का नेत्र तो सबको है । ये अंधे और सूरदास की तो कोई बात ही नहीं है । परमपिता परमात्मा तीसरा नेत्र यहाँ देते हैं । भृकुटी में तो आत्मा रहती है । आत्मा को दिव्य दृष्टि मिलती है । उसको ही कहा जाता है तीसरा नेत्र । अभी तुम बच्चे जानते हो, जो जो जानते हैं नंबरवार उन सबको तीसरा नेत्र है? नहीं है बिल्कुल ही । देखो, होते हुए भी कोई को तीसरा नेत्र नहीं है । अगर है तो कोई चूचे हैं, कोई काने हैं, कोई कोझे हैं और कोई को अच्छा नेत्र मिला हुआ है । ज्ञान के ऊपर है ना । कोई तो बिल्कुल ही अंधे का अंधा है । कोई चूचा भी नहीं बना है । कोई अंधा से सूबा बनते हैं । कोई को एकदम जुंझार कहें, जो ज्ञान समझ में नहीं आया है । सुनता हूँ पर कुछ समझ में नहीं आता है । कोई को तो अच्छा मिलता है, जो बैठ करके समझा सकते हैं । तो ये जो तीसरा नेत्र ज्ञान का है, वो भी तो नेत्र हुआ । बरोबर देखते हो कि अभी तो सबको जल्दी नेत्र खत्म हो जाते हैं और चश्मा पहन लेते हैं । अभी वो तो नेत्र नहीं है ना । इनको फिर समझाएगा- कोई का नेत्र ज्ञान का बिल्कुल ही जूंझार है, जैसे कि आत्मा का नेत्र बिल्कुल खुलता ही नहीं है । कोई होते हैं ना जो कोई अंधे को थोड़ा ठीक भी कर सकते हैं । कोई डॉक्टर एकदम सर्टीफिकेट देते हैं कि ये बिल्कुल ही अंधा है । ये अभी कुछ सुजाग बन ही नहीं सकेगा । बाप भी यहाँ समझाते हैं. बिल्कुल ही अंधा है । कभी भी इनको दिव्य दृष्टि का नेत्र मिलता ही नहीं है, जैसे शायद मिलेगा ही नहीं । यानी अंधे का अंधा रह जाएगा । जो अंधे की औलाद अंधा था, फिर वो अंधे ही उनको याद पड़ते रहेंगे । वो अंधे की औलाद, तुम सज्जे की औलाद । जिनको नेत्र नहीं मिलने का होगा वो अंधे की औलाद अंधी को ही याद करता रहेगा । तो बच्चों को ये जो अंधे की औलाद अंधे हैं उनसे तो ममत्व मिटाना है ना । जब ज्ञान मिला है, तीसरा नेत्र मिला है तो किसको याद करना है? बाप को याद करना है, वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी को याद करना है और अपने मर्तबे को याद करना है । अगर अपने मर्तबे को या एम-ऑब्जेक्ट को याद न करे तो पढ़ेगा क्या? मर्तबा याद नहीं है तो भी पढ़ते कुछ नहीं हैं । पढ़ते क्यों नहीं हैं, क्योंकि बाप याद नहीं आता है । टीचर याद नहीं आता है । टीचर याद आवे तो कुछ तो भला याद पड़े ना । बहुतों को टीचर याद आता ही नहीं है । तो वो पढ़ते ही नहीं है । फिर उसका कारण समझाया जाता है कि बुद्धि पुरानी दुनिया की तरफ भटकती है । वो विकारी बंधन में भटकते हैं, इसलिए उनको हम झुंझार कहेंगे । जिनकी बुद्धि नहीं भटकती है फिर वो अच्छा होता जाता है । मेहनत है ना इन सब बातों को समझने की; क्योंकि ये बड़ा पद है ऊँचे ते ऊँचा विश्व का मालिक बनना । भारतवासी ये जानते हैं कि ये लक्ष्मी नारायण विश्व के मालिक थे' परन्तु लक्ष्मी नारायण का राज्य कब था? बिल्कुल ही अंधे बन गए हैं । अभी देखो, तुम कितने सज्जे बन गए हो । तुम जानते हो कि जो भी विद्वान-आचार्य या लक्ष्मी नारायण की पूजा करने वाले या मंदिर बनाने वाले बिल्कुल ही अंधे के औलाद अंधे, बुद्धिहीन हैं । लक्ष्मी नारायण का चित्र बनाते हैं; परन्तु पता नहीं है कि लक्ष्मी नारायण का राज्य कब था । ऐसा कभी कोई मनुष्य देखा जो बिगर आक्युपेशन कोई चीज बनावे? इसलिए कहा जाता है गुड्‌डियों की पूजा यानी गुड्‌डियों का जैसे मंदिर बनाते हैं । पता नहीं है की ये है कौन । चाहे तो लक्ष्मी नारायण का मंदिर बड़ा बनाओ या चाहे चित्र लगाओ । चाहे तो लक्ष्मी नारायण की कपड़े की गुड्‌डी भी बनाओ, बात मेरी एक रहती है, क्योंकि नॉलेज नहीं है तो पीछे भले कितना भी बड़ा मंदिर बने; पर नॉलेज नहीं है तो क्या फायदा ? तुम जानते हो कितने-कितने करोड़पति हैं, जो मंदिर भी तो ऐसे बनाएँगे ना । बड़े मंदिर माना बड़े,.. । तो उसको फिर कहेंगे बड़े अंधे, बुद्धिहीन । इतना खर्च करते हैं, समझ में नहीं आता है कि हम क्या करते हैं? ये हैं कौन? इससे हमको फायदा क्या होगा? तो भक्तिमार्ग में बहुत दर्शन करेंगे । उनसे मिलता तो कुछ भी नहीं है । नहीं तो देखो, शिवबाबा का दर्शन करने जाते हैं । तुम अभी जान गए उफ! शिव बाबा का मंदिर! ये तो भारत को ईविल्स बनाएँगे, ये तो हमको पढ़ा रहे हैं । देखो हमको पढ़ा रहे हैं, तुम ऐसे कहेंगे । ये तो बाबा, जिनकी यादगार है, वो तो हमको ब्रहमा के तन में आकर पढ़ा रहे हैं । कहाँ? श्री लक्ष्मी नारायण के मंदिर में । अरे, ये तो हम बन रहे हैं पढ़ाई से । राजधानी स्थापन हो रही है । जगदम्बा तो हाजिर है । है ना बरोबर! क्या थे, अभी क्या बने हो । पूरे अंधे, बुद्धिहीन थे और कितने सज्जे बन रहे हो, सो भी नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार । ऐसे खुशी का पारा चढ़ना चाहिए । तुम अभी जा सकते हो ना कहाँ । तुमको मना तो नहीं है कि अपना यादगार न देखो; क्योंकि ऐसे तो मनुष्य होते हैं ना, अपनी यादगार देखते तो हैं ना यहाँ भी । देखो, नेहरू है, कुछ तो उनकी यादगार जाकर देखते हैं कि हमारा यादगार बनाया हुआ है । ये नेहरू पार्क हमारी यादगार बना हुआ है, ऐसे कहेंगे ना ।....यहाँ हम देखते हैं कि उफ । हम जिस समय में सर्विस कर रहे हैं ना उनकी फिर यादगार पीछे बनेगी । तो अपन को समझो । जो जो अच्छी तरह से समझने वाले हैं और समझते हैं कि बाबा ने आकर हमको क्या से क्या बना दिया है । एकदम आप समान नॉलेजफुल । बरोबर हम यहाँ से जाएँगे, बाबा के पास गले का हार होकर रहेंगे । हमको ज्ञान होगा, फिर प्राय:लोप हो जाता है, क्योंकि प्रालब्ध मिली तो ज्ञान खतम । जब तलक मिले । जरूर यहाँ से संस्कार ले जाते हैं, पीछे ये संस्कार फिर बदल करके राजाई के आ जाते हैं । तब तलक होगा ना! बाप भी ज्ञान का सागर, तुम भी गले के हार, ज्ञान के सागर । वहाँ तक तो जरूर रहना चाहिए । भूल तो नहीं जाना चाहिए ना । रहते हैं । अब जाते हैं बादशाही करने । तो बस, बादशाही मिल गई, फिर बादशाही के संस्कार शुरू हो जाएँगे, क्योंकि ड्रामा में फिर बादशाही के संस्कार शुरु होंगे ना । ये संस्कार वहाँ तक ले जाएंगे । जैसे संस्कार साथ में ले जाते हैं, जन्म लेते हैं तो फिर दूसरे सस्कार आ जाएंगे । मात-पिता वगैरह सब दूसरे बन जाएँगे । तुम्हारा भी ऐसे ही है बरोबर । वहाँ स्वर्ग में मात-पिता दूसरे बन जाएँगे । ये तुम्हारे यहाँ के मात-पिता, फिर वहाँ के दैवी मात-पिता बनेंगे । अभी ये ईश्वरीय मात-पिता हैं । तुम मात-पिता, हम बालक तेरे, तुम्हरी कृपा ते सुख घनेरे, ये कहकर ईश्वर को पुकारते हैं । जब कभी भी पुकारते हैं ना तब ये राधे-कृष्ण लक्ष्मी नारायण को नहीं याद करेंगे वास्तव में, परमपिता परमात्मा को याद करेंगे । पिता है ना । लक्ष्मी और नारायण कोई तुम्हारे थोड़े ही मात-पिता रहेंगे । वहाँ होंगे तो उनका एक ही बच्चा रहेगा ना । वो ऐसे तो नहीं कहेंगे- तुम मात-पिता । ये तो दिल में समझेंगे कि मैं शहजादा हूँ बरोबर । वो पुकारेंगे थोड़े ही, कहेंगे थोड़े ही । यहाँ कोई कहते थोड़े ही हैं कि तुम मात-पिता, हम बालक तेरे । ये तो बेहद के हैं ना । सब कोई कहते हैं । कंगाल भी कहेंगे कि मात-पिता, हम बालक तेरे, तुम्हरी कृपा से सुख घनेरे; क्योंकि इस समय का गायन आत्मा में यादगार के रूप में चला आ रहा है । भक्तिमार्ग में ये चला आता है एकदम; क्योंकि दुःख होता है ना । पीछे उनको सुख याद पड़ता है । तो पुकारते हैं आओ बाबा, फिर आओ । तो कितना पुकारते हैं । आधाकल्प पुकारते-पुकारते जब थक जाते हैं ड्रामा अनुसार तब बाप आते हैं । आ करके बच्चों को सम्मुख समझाते हैं । है ना बरोबर अभी दलाल के रूप में । अभी समझा! दलाल का रूप जो गाते हैं, आत्माएँ परमात्मा अलग रहे बहुकाल सुन्दर मेला कर दिया जब सतगुरु दलाल के रूप में मिला । वो जो गुरू लोग हैं वो दलाल के रूप में तो हैं नहीं ना । वो तो आत्मा से परमात्मा की सगाई तो नहीं करते हैं ना । वो नहीं कर सकते हैं । ये सिखलाते हैं- एक । वो तो सगाइयाँ देवताओं से कराते हैं या अपने से कराते हैं- बस, हमको याद करते रहो, और बाप आ करके कहते हैं...हमको याद करते रहो । तो बच्चों को याद है । अच्छा, आज तो भोग का दिन है; परन्तु इस कृष्ण जन्म अष्टमी पर और गीता जयन्ती पर बहुत अच्छा समझाना होता है । शिव जयन्ती पर तो बहुत समझाना पड़े । तुम शिव कहते हो, वो तो है ही निराकार परमपिता परमात्मा । उनको परमात्मा कहा जाता है । ....अभी माला तो उनको कुछ है नहीं । जश्न तो नहीं करना है । शिवबाबा का कुछ जश्न तो अभी होता ही नहीं है । फिर भी श्रीकृष्ण की जयन्ती पर तो दाल-पुड़ियाँ खाते हैं, माल खाते हैं । शिव का रोट करते होंगे और जा करके मंदिर में भोग लगाते हैं । घर में इतना क्या करेंगे, वहाँ जा करके रोट लगा करके ले आते हैं । कृष्ण जयन्ती पर तो बहुत माल खाते हैं । दीपमाला में भी तो बहुत मिठाइयां होती हैं । बहुत...होते हैं; क्योंकि खुशियाँ तो वहाँ’ मनाई जाती हैं । दीपमाला की खुशियाँ मनाते हैं; क्योंकि ज्योत जगी थी, खुशियॉ मना रहे थे । हम वहाँ तो बहुत ही खुशियों मनाते हैं । वहाँ तो खुशियॉ ही खुशियां हैं । ये उत्सव नहीं मनाते हैं, बस खुशियां ही खुशियाँ हैं । कोई बरस-बरस दीपमाला नहीं मनाई जाती है । बरस-बरस कोई कृष्ण जन्म अष्टमी नहीं मनाई जाती है । वहाँ एवर हैप्पी, ऐवर हेल्थी । अच्छा, ले आओ, तैयार है बच्ची । .. होगा जो जो भाषण करने वाला होगा या जो कुछ सेन्टर चलाने वाले होंगे । तो कृष्ण जन्म अष्टमी के समय हमको क्या सावधानी देना है? कि जब कृष्ण की जन्म अष्टमी है, भले राधे की जन्माष्टमी थोड़ा पीछे मनाते हैं, परन्तु मनानी तो दोनों की चाहिए ना । लक्ष्मी और नारायण की दोनों की इकट्‌ठी मनानी चाहिए । ...दीपमाला पर लक्ष्मी और नारायण की पूजा होती है । तो दोनों को इकट्‌ठा पूजते हैं । एक को नहीं पूज सके । लक्ष्मी को पूज करके नारायण को न पूजे, ये तो bबेकायदे हो जावे । इसलिए महालक्ष्मी को पूजते हैं । महालक्ष्मी को चार भुजाएँ देते हैं बाकी अर्थ कुछ नहीं समझते हैं । एक तरफ में लक्ष्मी और दूसरे तरफ में वो है । वो भी बिचारे नहीं जानते हैं । तो तुम्हारी बुद्धि में भी.......ये क्यों उल्टी बातें समझाते हैं । तो उल्टी बातें समझाने से मनुष्य दुर्गति को पाते हैं । तुम अच्छी तरह से समझा सकते हो कि वेद-शास्त्र-ग्रंथ वगैरह जो भी बैठ करके सुनाते हैं, ये तो बाप ने कहा है कि इनसे मेरे को कोई नहीं मिल सकते हैं यानी भगवान के पास कोई आ नहीं सकते हैं यानी मुक्तिधाम में कोई आ नहीं सकते हैं । मनुष्य तो मुक्ति पसंद करते हैं ना । तुम किसको भी कहो कि स्वर्ग के सुख चाहिए तो बोलेंगे कि नहीं, स्वर्ग कोई हैं नहीं वास्तव में । वहाँ भी दुःख है । मुक्ति कहेंगे तो वो खुश होंगे; क्योंकि यहाँ सभी मुक्ति के लिए ही समझाते हैं, जीवनमुक्ति के लिए कोई समझाय नहीं सके । ये भी एडल्ट्रेशन है, जो मनुष्य जा करके कहते हैं कि हम भारत का प्राचीन राजयोग सिखलाते हैं । राजयोग तो कोई सन्यासी सिखलाय नहीं सके । सन्यासी के वेश में वो लोग चले जाते हैं कि हम राजयोग भी सिखलाते हैं । अभी सन्यासी राजयोग कैसे सिखला सकें? जानते हो कि वो हठयोगी हैं और ये सन्यास कराते हैं । वो ही फिर राजयोग सिखलाते हैं, ये इम्पॉसिबुल है । जरूर राजयोग तो फिर नाम ही देवताओं का रख दिया है उनके ऊपर । भूल कर दिया खाली कृष्ण का, क्योंकि संगम है ना । शिव जयन्ती के बाद फट आती है कृष्ण जयन्ती । ये राजधानी स्थापन हो .. और फिर लक्ष्मी नारायण कहे । अभी लक्ष्मी नारायण भी कहना पड़े, कृष्ण भी कहना तो पड़ता है ना । वो क्यों. तो समझेंगे दोनों को मिला देते हैं- कृष्ण और राधे और वहाँ लक्ष्मी और नारायण । वो ऐसे समझ लेते हैं । ये समझानी बड़ी मुश्किल होती है ना । तो जो-जो समझने वाले हैं वो सब बातें फिर छोड़ करके अपना राज्य बाप से ले लेते हैं । बाप को तो अच्छी तरह से पकड़ लेते हैं । हाँ, आओ बच्ची । इस समय में अपन को सुक्ष्मवतन का ज्ञान है । मनुष्यों को मालूम है कि सूक्ष्मयतन भी होता है । ब्रहमा विष्णु शंकर वहाँ रहते हैं, क्योंकि तीन लोक तो कहते हैं ना । उसका ज्ञान तो कोई में नहीं हैं । मानते हैं तीन लोक- मूलवतन सूक्ष्मवतन, स्थूलवतन या इनकारपोरियल, सटल कारपोरियल ..आते हो, देखते हो, सब राज समझते हो । तुमको पढ़ाने वाला सब कुछ साक्षात्कार कराके और समझाते रहते हैं । अभी तुम जानते हो ये जाएंगे सुक्ष्मवतन । ऐसे नहीं कि यहाँ से इनको पहले मूलवतन जाकर फिर सुक्ष्मवतन में जाना पड़ेगा । नहीं । ये यहाँ से सीधे सूक्ष्मवतन में जायेंगे । यहाँ से सीधे वैकुण्ठ में नहीं जा सकते हैं । पहले हमको मूलवतन जाना पड़ेगा, पीछे ये आएगा; परन्तु इस समय में तुम मूलवतन में ... नहीं, लंदन में कॉन्क्रेन्स हो रही है, वो देख करके बताते हैं । ऐसे भी बाबा ने अखबार में सुना है मनुष्यों से भी सुना है कि ऐसे भी कोई रिद्धि-सिद्धि वाले होते हैं । अच्छा, बहुत मेहनत की होगी । जैसे रिद्धि-सिद्धि वाले ... की पूजा करके बहुत मेहनत करते हैं । आग से भी ऐसे चले जाते हैं । कोई गुरू के ...शिष्य ने बोला कि हम तो पैदल पानी से भी पार हो जाते हैं । बोलता है- हाँ, तुमने तो बड़ी मेहनत की । भला इससे तुमको फायदा क्या हुआ? इससे तुमको क्या मिलेगा? कुछ ऐसे तो नहीं कि तुमको मुक्ति या जीवनमुक्ति मिलेगी । नहीं, बाकी तो ये मेहनत ही फालतू हो गई । तो जो भी मनुष्य मेहनत करते हैं वो तो सब फालतू मेहनत करते हैं । सच्ची मेहनत तो सच्चा बाबा कराते हैं । उनको भी कोई ने सिखलाया होगा, परन्तु वो तो सभी फालतू मेहनत है ना । मेहनत तो सच्ची ...अभी तुम कर रहे हो सच्चे द्वारा । बाकी जो भी मेहनत है .सभी झूठ । उनमें कोई फायदा नहीं है । रिद्धि-सिद्धि वाले बहुत हैं, लखपति हो जाते हैं, भले करोड़पति भी हो जाते हैं । रिश्वत से भी होते हैं, रिद्धि-सिद्धि से भी होते हैं । बहुत हैं, विलायत में डांस होता है बरोबर । ट्रांस में जाते हैं । ऐसे नहीं समझो । बहुत रिद्धि-सिद्धि वाले हैं जो साक्षात्कार कराते हैं । हरिद्वार में एक है जो कृष्ण का रूप धरते हैं । वो अपना नाम ही रख दिया ऐसे । जिसको कोई वक्त में पकड़ा भी था । तो ये सभी हैं रिद्धि-सिद्धि । अच्छा, फिर समझो कि कोई कृष्ण का रूप धर करके बैठ जाते हैं । जिनका भी कृष्ण में बहुत प्रेम होगा, उनको उनसे साक्षात्कार हो जाएगा । समझेगा ये कृष्ण है । बस, मरे उनके पिछाड़ी एकदम । बस, उनको गुरू बनाय देते हैं । अभी वो तो वेश बना करके फिर बनते हैं । सारा दिन और रात छत्र तो नहीं पड़ा हुआ है ना । तो अंधश्रद्धा है ना । ये भक्तिमार्ग में बहुत ही खिटखिट है, बहुत ही फंस जाते हैं । भक्तिमार्ग में बहुत ही ठगी है । ये तो देखो, सचखण्ड का स्थापन.... ..एवरीथिंग रीयल... । पढ़ना हो, निश्चय हो तो पढ़ो नहीं तो यहाँ आने की क्या दरकार है? पढ़ाई है फिर भी । तुम्हारे हर सेन्टर में पढ़ाई है और यहाँ एम-ऑब्जेक्ट है । नर से नारायण बनना है. ..बाप को याद करो, वो तो तुमको वर्सा देंगे ही । गीता में ये अक्षर बिल्कुल पूरा लिखा हुआ है- मन्मनाभव मद्याजीभव । मुझ अपने बाप को याद करो तो विष्णु का राज्य पाएंगे । अर्थ तो यह बताते हैं ना । अब ये कृष्ण क्या कहेंगे मेरे को याद करो! कृष्ण याद में आवे तो कृष्ण कभी भूलें ही नहीं फिर । इनको तो याद करने से फट भूल जाते हैं.. । भले इनको याद करते हैं, परन्तु शिवबाबा बड़ा मुश्किल याद पड़ता है, क्योंकि ये स्थूल है, वो सूक्ष्म है । तो बच्चों को साकार मम्मा-बाबा झट याद आता है । वो जो निराकार, जिसको कहा जाता है- त्वमेव माताश्च पिता.. .वो याद करने में बड़ी मेहनत लगती है, क्योंकि सूक्ष्म ते सूक्ष्म, अति सूक्ष्म है । अभी तो उसका भी लिंग-विंग सब उड़ाय दिया है । तो अभी समझाने के लिए लिंग जरूर रखना पड़े । फिर उनका यथार्थ रूप क्या है? तो कहेंगे बिन्दी क्योंकि पूजा के मंदिर वगैरह बने हुए हैं ना । अभी लक्ष्मी नारायण को फिरा नहीं सकते हैं । राधे-कृष्ण को फिरा ... उनको हम लोगों को फिराना पड़ता है । ये जो मूल है, उनका ये जो चित्र बना है, वो रॉंग है । कृष्ण का भले बना दें; क्योंकि राजा है । लक्ष्मी नारायण भी राजा-रानी हैं । राम और सीता का बरोबर चित्र भी ठीक है । उनका भी तो बना देते हैं ना । मान लेते हैं बरोबर ऐसे हैं । अभी इनका जो हम बतलाय देते हैं ये बड़ी मुश्किल की बात है । इसके ऊपर चला-चला करके पीछे उनको समझाने से फिर वो समझेंगे । इसको कहा जाता है यथार्थ । वो तो ठीक है कि राजा है । वो भी चन्द्रवंशी राजाऐ ठीक हैं । इनको फिर राजा बनते हैं । देखो, सो भी अभी आ करके फिराया है । इतने दिन नहीं फिराया है; क्योंकि गुह्य बातें हैं, गुह्य राज हैं, गुह्य समझानी हैं । अब आ करके समझते हैं । मैं बोलता है पहले से क्यों नहीं? बाबा ने देरी से समझाया । बच्चों को ऐसी कोई भी डिफीकल्ट बात आती है तो बोलो- बाबा तो समझा रहे हैं, ये भी आगे चलकर बाबा समझा ही देंगे । हम तो पढ़ रहे हैं । फिर अपन को चैलेंज देना पड़ता है । मूंझने की दरकार ही नहीं है, क्योंकि बाबा ऐसी नई-नई बातें समझा रहे हैं, जो हम समझते हैं भला शुरू में क्यों नहीं समझाया? शुरू में ही सब समझा दें, बस । पीछे जहाँ जीय तह पीय पिछाड़ी तक । तब क्या बतावेंगे? जरूर नई-नई बातें समझाते रहेंगे । अच्छा, चलो बच्ची और बताना भी कौन-कौन सिकीलधे आए हैं? ये तो बाबा-मम्मा जाने, तुम इतना नहीं जान सकेंगी कि इन सबमें कौन-कौन नंबरवार सिकीलधे हैं । कौन-कौन बाबा के अच्छे गुलाब के फूल हैं ।.. ये तो तुम नहीं समझा सकेंगी । या समझा सकेंगी? वो समझ जाएंगे । (रिकॉर्ड:- इक मात-सहायक, स्वामी-सखा, तुम ही सबके रखवाले हो....) कहते हैं ना । एक तो राधे को मुरली सुना देते हैं; परन्तु नहीं, यह राधे-वाधे की तो बात नहीं । यहाँ तो सरस्वती माता है, जिनको बाप ज्ञान का कलश देते हैं । गॉडेज ऑफ नॉलेज । अभी गॉडेज ऑफ नॉलेज तो सरस्वती को कहा जाता है । तो सरस्वती गॉडेज ऑफ नॉलेज किसकी बच्ची? ब्रहमा की बच्ची । जरूर फिर उनसे गॉडेज ऑफ नॉलेज, तो फिर वो भी होगा । अच्छा, फिर ब्रहमा किसका बच्चा? ब्रहमा है शिवबाबा का बच्चा । तो वो ज्ञान सागर बरोबर, नॉलेजफुल उनको कहा जाता है । बरोबर ब्रहमा को नॉलेज मिली, ब्रहमा द्वारा मिली पुत्री को, तो वो भी नॉलेजफुल हो गई । अभी राधे के लिए तो कोई नॉलेजफुल कहते नहीं हैं । है कोई? कुछ भी नहीं बिल्कुल ही । गॉडेज ऑफ नॉलेज राधे को नहीं कहते हैं । अगर गॉड ऑफ नॉलेज कृष्ण को कहें तो राधे को तो जरूर कहना पड़े, क्योंकि साथी है । देखो, कितनी हैं इन सब बातों के ऊपर । सभी प्वाइंट्स तो इकट्‌ठी नहीं आती हैं; परन्तु प्वाइंट्स बहुत होती हैं, जो अच्छी तरह से धारण करने वाले बड़ी अच्छी तरह से समझा सकते हैं । इसलिए स्कूल में समझाने वाले नंबरवार भी हैं । अभी तो बाबा अपन को कहेगा हम थोड़ा अभी समझा रहे हैं । ये कहेंगे कि इसलिए हम तो चश्मा पहन लेते हैं । हमको तो कुछ भी नहीं है । अंधे का अंधे ही हैं । कुछ भी समझा ही नहीं है, बुद्धि में कुछ नहीं बैठता है । तो नंबरवार है ना बरोबर । ये मिसाल तो समझाते आए हैं- चूचे और फलाना आदि । ब्रहमा के ऊपर भी बहुत मूंझरा पड़ते हैं । तो वो है अव्यक्त ब्रहमा, ये है व्यक्त ब्रहमा । प्रजापिता जरूर चाहिए । बाप को आना है जरूर । बहुत जन्म के अंत के भी अंत वाले जन्म में, जो उनको ही कहते हैं और उनका ही नाम रखते हैं फिर प्रजापिता ब्रहमा । तो ये हो गया व्यक्त, वो है अव्यक्त । बच्चों को ये समझाना पड़े कि यही व्यक्त ब्रहमा, उनकी सारी कहानी है कि ब्रहमा का दिन, ब्रहमा की रात । ये जो ब्रहमा व्यक्त है, वो अभी रात है, जो फिर दिन बन रहा है । अभी ये पतित है जो पावन बन रहा है । तो इसलिए ये ब्रहमा को दिखलाते हैं । प्रजापिता सो तो यहाँ ही होगा । ...... अगर कहेंगे इनका अंतिम जन्म क्या है तो कहेंगे लेखराज या लखीराज है, पर वो तो प्रजापिता बन नहीं सकता है । ये इतने सभी जो बाबा-मम्मा कहते हैं, इनको तो प्रजापिता नहीं कहेंगे । शास्त्रों में एक दक्ष प्रजापति है । लाखा भवन को आग लगी, देखो उनमें कुछ न कुछ असर आ जाता है, परन्तु शास्त्रों में तो उल्टा-सुल्टा बताय दिया है ना । बोलो प्रजापिता तो जरूर चाहिए ना । प्रजा यही रचते है । कौन-सी प्रजा रचते हैं अभी? ब्राहमण । कौन रचते हैं? ब्रहमा द्वारा । ब्रहमा क्रियेटर तो नहीं है । क्रियेटर तो परमपिता परमात्मा को कहा जाता है, जिसके हम सभी बच्चे हैं । तो अब वो आवे किसके तन में? उनको पतित तन में ही आना होता है । तो बरोबर श्रीकृष्ण सो ही पतित बनकर फिर उनका नाम बाबा धर देते हैं- प्रजापिता ब्रहमा; क्योंकि एडॉप्ट होते हैं । जैसे हम लोगों का भी नाम बदल दिया है, तैसे हम भी नाम बदली किया । फिर ये पतित ब्रहमा, जिसका नाम रखा जाता है, तो वो उन जैसा बन जाते हैं । उनके लिए लक्ष्य है कि ऐसे फरिश्ता बन जाते हैं । ऐसे पावन बन जाते हैं । तो हम ब्राहमण सो पावन बन पहले फरिश्ते बनते हैं, पीछे देवता बनते हैं । फरिश्ते उसको ही कहा जाता है जिसको हड्‌डी और माँस न हो । सुक्ष्मवतन में हड्‌डी और मांस न हो । इसलिए हम फिर फरिश्ते बनते हैं, पीछे मुक्तिधाम में जाकर के पीछे देवता बनते हैं । इसको फरिश्ते कहते हैं । एंजिल्स अंग्रेजी में नाम है । हिन्दी में भी है । वो फरिश्ता किसको कहा जाय? देवताओं को देवता कहा जाता है, यहाँ मनुष्य का जन्म होता है । फरिश्ते किसको कहा जाय? फरिश्ते फिर सुक्ष्मवतन में हैं । फरिश्तों को हड्‌डी और माँस नहीं होते हैं । सूक्ष्मवतनवासियों को ये हडडी-मॉस नहीं होते हैं । वहाँ जो ब्रहमा विष्णु शंकर दिखलाते हैं उनमें कोई हड्‌डी मांस थोड़े ही है । अर्थ समझाया जाता है कि ये ब्रहमा व्यक्त सो अव्यक्त बनना है । ये ब्रहमा पतित सो पावन बनना है । अभी ब्रहमा को हम पतित इसमें कह सकते हैं ना । ऐसे तो नहीं है कि बाबा ने प्रवेश किया, नाम बदला तो हम पावन हो गए । नाम बदलने के बाद फिर हम पावन होते रहते हैं । नाम बदलते हैं जब उनके बच्चे बनते हैं । फिर भी देखो बच्चे भी बनते हैं, तो भी बच्चे फिर भी भागन्ति हो जाते हैं । मर जाते हैं । उसको कहा ही जाता है कच्चे । कोई कच्चे मर जाते हैं । माताएं होती हैं ना, कोई का थोड़ा ही बाहर निकला और ये मर, कोई का तो पेट में ही मर जाता है । बाहर ही नहीं आते हैं अपना बताने के लिए. .दूर ही रहते हैं और बोलते हैं.... ईश्वर के बच्चे हैं .वहीं मर जाते है । यानी पता भी नहीं पड़ता है कि कोई है और गिरते भी बहुत हैं ।.. .... अच्छे-अच्छे पुराने बुडढे होकर मर जाते हैं । 20-20, 25-25 बरस के भी मर जाते हैं । वो तो ऐसे कहेंगे ना 25 बरस से बाबा का बच्चा हूँ वो भी मर जाते हैं । 36 का भी, 40 का भी होकर मर जाएगा । जिसका होगा ड्रामा में मिली और फिर कह देते हैं मर गई । छोड़ दिया तो फिर कहेंगे मर गई .ईश्वर की तरफ जन्म लिया, मर गया तो माया की तरफ मर गया । वर्से का अर्थ ही है राजाई का वर्सा पाना । इसलिए बच्चों को खूब पुरुषार्थ करना चाहिए और है भी बहुत सहज । भूख तो मरना ही नहीं है । कभी भी कुछ भी हो जावे उनको पेट में मिलेगा जरूर, क्योंकि शिव के भण्डारे से भूख नहीं मरना है । पेट में जरूर मिलता है । नेशन के ऊपर नेशन वालों का तरस पड़ता है । पारसियों में कोई भूख मरे तो पारसियों को उनकी सेवा करनी है । तरस पड़ता ही है । तो ये भी ऐसे ही है । सर्विसेबुल ब्राहमण हो तो भूख कभी नहीं मर सकते हैं । इधर नहीं मरेंगे । और हजारों, लाखों, करोड़ों ही मनुष्य भूखे होकर मर.. जाएंगे । हम भूख ..नहीं मरेंगे । जो बच्चे होंगे वो बच्चे ठहरे ना, सौतेले की तो बात नहीं । बच्चे भूख नहीं मर सकते हैं । मूल वतन को याद करना है; क्योंकि जानते हो कि वाया सुक्ष्मवतन जाएंगे । याद फिर मूलवतन बाबा को करना है मीठे-मीठे ज्ञान लकी सितारों प्रति मात-पिता, बापदादा का दिल व जान, सिक व प्रेम से यादप्यार और गुडमॉर्निग ।