27-08-1964     मधुबन आबू     रात्रि मुरली    साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हेलो, गुड इवनिंग, ये सत्ताईस अगस्त का रात्रि क्लास है
रावण की जंजीरों से छूट गए हो या छूटने का पुरुषार्थ कर रहे हो? क्या समझते हो? बुद्धि का योग तो जा रहा है इस दुनिया से । इस दुनिया से तो दिल हट गई है, क्योंकि बच्चे जानते हैं कि अब तो जाना ही है बाप के घर । बल्कि जा रहे हैं, ऐसा कहेंगे । तुम बच्चे समझ सकते हो कि बरोबर हम रावण की जंजीरों में जकड़े हुए थे । दुनिया में ऐसा कोई जानता नहीं है, भले दु:खी हैं । उसमें भी कोई अपन को दुःखी समझते हैं, कोई सुखी समझते हैं । बाकी ये बुद्धि में है कि ये रावण के राज्य से अभी अपना स्वतंत्र राज्य हम स्थापन कर रहे हैं । जैसे ये कांग्रेसी लोग पहले ये परतंत्र थे; क्योंकि फॉरेन का रूल था । अभी ये अपन को समझते हैं कि हम उनसे स्वतंत्र हो गए । पाण्डव बच्चे कहते हैं कि हम तो बेहद फॉरेन के रूल में थे यानी रावण के रूल में; क्योंकि ये तो पीछे आते हैं ना । पहले तो यहाँ राम का राज्य रहता है । पहले भारत स्वतंत्र रहता है, पीछे राम के राज्य में । जैसे वो कहते हैं फिरंगियों के राज्य में परतंत्र हो पड़े थे । फिर बच्चे समझते हैं, जानते हैं कि हम माया के परतंत्रता में थे, क्योंकि माया का राज्य तो भारत में इन पर्टीकुलर कहेंगे खास और दुनिया में इन जनरल कहेंगे कि रावण राज्य है, परन्तु दुनिया नहीं जानती है कि हम कोई रावण राज्य में हैं; क्योंकि भारत में ही राम राज्य और रावण राज्य होने के कारण भारतवासियों को समझना है; परन्तु भारतवासी तो कोई समझते नहीं सिवाय तुम ब्राहमणों के । अभी हम जो आधाकल्प परतंत्र थे, सो अभी स्वतंत्र बन रहे हैं । वो हद की बातें, ये बेहद की बातें । हद की बातों से भी बापू जिसको गाँधी कहते हैं उन्होंने मदद ले करके काँग्रेसी भी चलाया । यहाँ बाप आते हैं और बच्चों की मदद ले करके राम राज्य स्थापन करते हैं । वो भी उनको बापू कहते हैं, तुम भी उनको बेहद का बापू कहते हो । वो हद का है । सिर्फ भारत का सो भी बापू है नहीं वास्तव में । कहते हैं उनको; क्योंकि यहाँ बापू कहने का बहुतों में रिवाज होता है । मेयर को भी बापू फलाने को भी बापू कह देते हैं । साईं बाबा कहते हैं ना । अभी साईं बाबा तो कोई है नहीं । ना वो साईंबाबा है, ना वो बापू है । ये तो सब गपोड़े हैं । ये तो बच्चे जानते हैं कि बरोबर हमारा बाबा हमको अभी स्वतंत्र बनाते हैं । देखो, अभी आत्मा कितनी खुश होती है । खुशी होनी चाहिए ना । जैसे वो सभी कांग्रेसी जानते हैं गाँधी बापू ने हमें फिरंगियों से स्वतंत्र कराया है, वैसे तुम सब ब्राह्मण जानते हो कि अभी बेहद का बापू जी हमको माया से स्वतंत्र बनाते हैं । रावण के राज्य से स्वतंत्र बनाय फिर से अपना राज्य दिलाते हैं । स्व को राज्य दिलाते हैं, स्वतंत्र बनाते हैं । तो ये हुई विचार-सागर-मंथन करने की बातें, जो हर एक को अपने आप से करना चाहिए । हर एक अपने दिल से कहेंगे कि बरोबर हम माया के राज्य से स्वतंत्र बन रहे हैं । अभी माया के राज्य से स्वतंत्र सिर्फ तुम समझ सकते हो, परंतु भूल जाते हो; क्योंकि यहाँ की जो जो भी बातें होती हैं वो भूल ही जाती हैं बहुत । बाप को ही भूला जाता हैं, टीचर को ही भूला जाता है, गुरू को ही भूला जाता है तो ये भी बात घड़ी-घड़ीभूल जाती है कि हमको बाबा अभी इस माया के राज्य से स्वतंत्र बना रहे हैं । अभी तो हम घर जाएँगे, फिर स्वतंत्र हो राज्य करेंगे । कोई भी हमको दुःख देने वाला न रहेगा । कोई हालत मे दु:खी न रहेंगे । ये तो नहीं है कि कोई के राज्य में दुःखी न रहेंगे । तुम अभी अपना राज्य स्थापन करते हो और किसको भी कह सकते हो कि रावण पर जीत पहनकर हम जो स्वराज्य स्थापन कर रहे हैं, फिर हम बिल्कुल ही अकेले और अद्वैत यानी दैवी राज्य में होंगे ।.....इसको ही कहा जाता है ऑलमाइटी अथॉरिटी राज्य और सो भी पवित्र डबल सिरताज । पीछे जब आते हो तो अपवित्र सिंगल ताज । उसको कहते हैं डबल ताज । बरोबर डबल ताजधारी थे, क्योंकि भारत में सिंगल ताज वाले राजाऐ डबल ताज वालों को पूजते आए हैं । तो सब भारत में हैं । तो अभी बेहद का बाप आ करके भारत को इतने सभी जंजीरो से छुड़ाते हैं । जंजीरें तो हैं ना । देखो, जब ये कर्ज भी लेते हैं, तो भी ऐसे कहते हैं कि हम कर्ज लेते हैं, पर हमको कोई स्ट्रिंग्स न हो । अगर समझो कि हमको पैसा देना है, जैसे यहाँ साहूकार लोग...तो हुण्डी लिखते हैं और उनको भरना पड़ता है । नहीं तो इज्जत चली जाए । तो ऐसे ही आजकल जो लोन लेते हैं तो कोशिश करके ऐसे लेते हैं कि ऐसा न हो कि हमको फॅसावे स्ट्रिग्स रहे जो हमको देना ही पड़े । इसलिए कहते हैं यदि लोन लेवे तो उसमें अगर थोड़ा भी यहॉ-वहाँ हो तो पीछे हमको तंग न किया जाए । उसको स्ट्रिग्स कहते हैं । फर्क तो तुम बच्चे अभी जानते हो । अब बच्चे जान गए हैं कि हम कितने स्वतंत्र, कितने धनवान थे । अभी तुम ब्राह्मण ही कहेंगे और कोई थोड़े ही कहेगे । ये ब्राह्मणों को ही ज्ञान मिलता है । उसमें भी देखो कितने नंबरवार हैं । नहीं तो वास्तव में अभी कितना खुशी का पारा चढ़ना चाहिए, क्योंकि अभी लाटरी मिल रही है । सेट रीलिजियस स्वीप होती है वहाँ विलायत में । बहुत मिलते हैं, 10-10 लाख रूपये मिलते थे स्वीप में, फर्स्ट टिकट । तो ये भी घुड़दौड़ थी । ये भी अश्वों की रेस है । इसमे अगर जो अच्छी तरह से विन करके दिखलाए तो सूर्यवंशी मालिक बन जाते हैं । ये रेस भी कितनी बड़ी है । इसको कहा ही जाता है अश्व रेस, क्योंकि नाम है ना राजस्व अश्वमेध यज्ञ । ये अश्व के ऊपर फिर एक दूसरा भी यज्ञ, जिसको दक्ष प्रजापति का यज्ञ कहा जाता है, जिसमे घोड़े को स्वाहा करते हैं । अभी ये घोड़े को स्वाहा नहीं करना होता है, इसमें मनुष्य अपने को स्वाहा करते हैं । कथाएँ तो बहुत हैं ना । अभी तुमको कोई भी कथाएं सुनने की कोई दरकार नहीं है । देखो, कितना अकिचार धक्का खाना, सुनना मंदिरो मे जाना, कुछ भी नहीं करना है । बाबा कहते हैं- बस, चुप । माला फेरना या जाप भी नहीं करना होता है । अजपा याद करना है, जाप भी नहीं, क्योंकि अजपाजाप होता ही नहीं । दूसरा कोई राम-राम जाप करे, भले आवाज नहीं करते हैं । तो भी अंदर में जाप चलेगा । तो भी चुप हो जाएगा । यहाँ वो रस्म तक भी नहीं चाहिए । बिल्कुल चुप । तो देखो, याद हो जाएगी ना । अंदर मे कुछ भी भुन-भुन नहीं करेंगे । भुन-भुन तो सुक्ष्मवतन में होती है । यहाँ टॉकी वहाँ भुन-भुन । भुन-भुन भी नहीं, बिल्कुल चुप । देखो, भक्तिमार्ग में कितना धक्का खाते हैं और यहाँ बिल्कुल चुप से बाप को और वर्से को याद करते रहो । अभी कोई कितना अच्छी तरह से धारण करे, समझे और औरों को समझावे । यहाँ इतनी ठण्डी-वण्डी तो नहीं पड़ती है? इतनी दूर से यहाँ आते हैं तो उनकी खातिरी भी अच्छी होनी चाहिए । ठीक से खातिरी करती हो? पूछती हो कोई तकलीफ तो नहीं है क्यों? क्योंकि तुम उनकी अच्छी संभाल करेंगे, तो वो भी तुम्हारी वहाँ अच्छी संभाल करेंगे । नहीं तो घासलेट भी खिलाएँगे । घासलेट की नदियाँ बहती हैं । घी की नदियाँ तो बहनी हैं ना । जब कहा जाता है कि वहाँ घी की नदी बहेगी तो घासलेट यहाँ होगा। गाया जाता है कि गरीब लोग बहुत शांतिकारक होते हैं । उसमें भी जो बाहर गांवड़े वाले लोग होते हैं ना, वो बड़े सुखी, अच्छे रहते हैं और साहूकार तो तमाशा, नाटक वगैरह देखते हैं तो गंदे हो जाते हैं । गरीब इतने गंदे नहीं होते हैं जितने साहूकार बहुत गंदे होते हैं । यहाँ तो बहुत ही ग्लानि की है । ये शास्त्र से बहुत गंद सीखे हैं, क्योंकि पहले नम्बर में कृष्ण जो इतना फर्स्ट क्लास बच्चा है उनके लिए ठक कह दिया है एकदम नंबरवन । नारायण के लिए नहीं कहते हो । नारायण को एक स्त्री और कृष्ण को बहुत स्त्री दिखाई हैं, देखो कितनी ग्लानि की है । समझते हो? समझा सकते हो कोई को भी कितनी मूर्ख और नानसेन्स बातें लिख दी हैं । श्री लक्ष्मी को एक नारायण और नारायण को एक लक्ष्मी । फिर वहाँ कृष्ण को इतनी स्त्रियाँ दिखाई हैं । ये कहाँ की बातें हैं । अभी देखो, बात सहज है और एकदम पता ही नहीं पड़ता था .......ये जो बाते भक्तिमार्ग के शास्त्रों मे हैं उनको बाप आकर बताते हैं । कितने तुम बेसमझ बन गए हो । बच्चे पूछते हैं बाबा, कैसे हम बेसमझ बन गए बाबा कहते हैं बच्चे, ड्रामा अनुसार ये वेद शास्त्र ग्रन्थ उपनिशद यज्ञ तप दान-पुण्य करके देखो तुम कितने मूर्ख बन गए हो । गीता भी पढ़ी है ना । तो गीता पढ़ते-पढ़ते भी कितने मूर्ख बन गए हो । गीता में तो भगवानुवाच ही कहते हैं ना । ........ .और वो गीता पढ़ते-पढ़ते तुम कंगाल बन गए हो । मुख्य तो गीता उठाएँगे ना । गीता के साथ तो है दंत-कथाएं उनके बाल बच्चे । उनमें कुछ भी है नहीं । अगर होता तो ये समझा देते ना । ड्रामा अनुसार तुम बच्चे बहुत ग्लानि करने लग पड़े हो । तुम बच्चे कहते हैं हमारा दोष क्या? बाबा कहते हैं हाँ बरोबर ये तो ठीक है कि तुम ड्रामा के अनुसार बिल्कुल ही पतित बन गए हो । बाबा कहाँ कहते हैँ कि तुम्हारा दोष है, परन्तु अब तो आओ ना हम तुमको पावन बनाते हैं । ये तो ठीक है, फिर भी ऐसे ही बनेंगे ड्रामा अनुसार । हाँ, बरोबर तुम्हारा दोष नहीं है । चलो, बाबा कहते तो कुछ नहीं हैं ना । ये तो होना ही है । तुमको तमोप्रधान बनना ही है ड्रामा अनुसार, पर अभी आओ ना, हम तुमको सतोप्रधान बनाता हूँ । इसलिए तो भक्ति की ग्लानि की जाती है ना । दुर्गति और सद्‌गति कहा जाता है । अच्छा, सद्‌गति मिले तब जब कोई दुर्गति में जावे ना । तो खेल हुआ ना । दुर्गति मे जाना जरूर है और फिर बाबा आकर सद्‌गति को ले जाते हैं और ये फिर कहते है बरोबर ड्रामा में ऐसे है । सो तो लिखा हुआ है- गोल्डन एज, सिल्वर एज, कॉपर एज, आयरन एज । सतोप्रधान सतो रजो तमो सो तो बनना ही है ना । तो ड्रामानुसार बने हो ना । ये तो ठीक है । अब फिर ड्रामा अनुसार चलो, राजयोग सीखो । फिर चलो गोल्डन एज में । तो पुरुषार्थ करना पड़े ना । वो तो ठीक है । तो ऐसे नहीं कहते हैं कि तुमने कोई भूल की है । नहीं । ड्रामा अनुसार तुमको नीचे आना ही है । फिर भी ऐसे आएँगे, परन्तु आवे जबकि तुमको ड्रामा का राज बताया है, आगे थोड़े ही ऐसे जानते थे । जब ड्रामा का राज बताया है तो अभी चलो, बाप से वर्सा ले लो । (म्युजिक बजा) मीठे-मीठे:, सिकीलधे लकी ज्ञान सितारों प्रति मात-पिता बाप-दादा का दिल व जान, सिक व प्रेम से यादप्यार और गुडनाइट ।