28-08-1964     मधुबन आबू     रात्रि मुरली    साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हेलो, गुड इवनिंग यह अठाईस अगस्त का रात्रि क्लास है
मुरली नहीं सुनी है या खजाना नहीं मिला है. बच्चों को प्वाइंट्स मिलती हैं ना । तो एक दिन की भी मुरली मिस नहीं करनी चाहिए; क्योंकि फिर भी ये राजयोग की स्टडी है ना । तो स्कूल रोज अटैण्ड करना चाहिए । अगर स्कूल में रोज नहीं पढ़ते हैं, तो फिर मुरली मंगाकर पढ़नी चाहिए । भले बच्चे याद में रहते हैं और अपने वर्से को भी याद करते हैं । भले स्वदर्शन चक्रधारी भी बने हैं वा त्रिकालदर्शी भी बने हैं, तो भी कोई को समझाने के लिए जो गुह्य प्वाइंट्स निकलती हैं वो पढ़नी हैं, धारण करनी है । नहीं तो अगर मुरली रोजाना नहीं पढ़ेंगे तो कच्चे बन जाएँगे; क्योंकि पढ़ाई रेग्यूलर चाहिए । जैसे कोई बड़ा इम्तहान होता है तो मनुष्य sअच्छी तरह से अटेंशन देते हैं । ये भी बच्चों के लिए बहुत बड़ा भारी इस्तहान है । इसमें भी गफलत नहीं चाहिए । भले कोई याद में रहते हैं, वो तो ठीक है; क्योंकि याद से विकर्म विनाश होंगे । योगाग्नि से जन्म-जन्मांतर के जो रहे हुए पाप हैं वो भस्म हो सकते हैं । बहुत हैं, कोई कम नहीं है । कोई एक जन्म का नहीं है, जन्म-जन्मान्तर का है । तो उनको भस्म करने के लिए फिर याद की अग्नि चाहिए । याद तो बच्चों को बहुत सहज समझाई गई है । ऐसे नहीं है कि बस कोई के सामने बैठ जाना है, उनको ही याद या निष्ठा कहेंगे । याद तो बिल्कुल ही सहज है । याद जैसी सिम्पल चीज और कोई होती नहीं है । आका जब अपन को निश्चय करते ही हैं और है भी.... कि बरोबर ये आत्मा एक शरीर छोड़ती है यानी मैं एक शरीर छोड़ता हूँ, दूसरा लेता हूँ । ऐसे भी ये समझते सभी हैं कि मैं आत्मा शरीर छोड़ता हूँ, दूसरा लेता हूँ । कभी भी कोई ऐसे नहीं कहेंगे कि मैं परमात्मा हूँ और एक शरीर छोड्‌कर दूसरा लेता हूँ । ऐसे कभी कोई नहीं कहेगा । चाहे कोई भी साधू संत, महात्मा हो ये भी समझते हैं कि पुनर्जन्म तो लेते रहते हैं; परन्तु ये नहीं कहेंगे कि मेरी आत्मा एक शरीर छोड़ करके दूसरा कोई परमात्मा का शरीरलेता है या मैं परमात्मा हूँ एक शरीर छोड़ करके दूसरा लेता हूँ, ये कभी कह न सके । इसलिए तुम बच्चों को समझाया गया है कि परमात्मा सर्वव्यापी का ज्ञान तो किसकी बुद्धि में होगा भी नहीं । वो तो जैसे फालतू है । सर्वव्यापी का ज्ञान समझना, ये तो ऐसे ही है जैसे जनावर, उनको भी ये पता नहीं है; क्योंकि कहते हैं ना- बिल्ले में, कुत्ते में हैं । तो मनुष्य भी जैसे ऐसे हो गए हैं- पत्थर भित्तरठिक्कर क्योंकि सबको एक समान कर देते हैं ना । तो बाबा वर्मिग देते हैं कि बच्चे, शंखध्वनि जरूर करनी है । धारणा जरूर करनी है । ये तो बच्चों को समझाया गया है कि यहाँप्यूरिटी फर्स्ट है । अगर कोई पवित्र नहीं बनते हैं तो उनकी बुद्धि मे कुछ भी ज्ञान बैठेगा नहीं । पवित्रता तो मुख्य बता दी है बच्चों को कि प्यूरिटी फर्स्ट । बाप को भी अच्छी तरह से याद करना चाहिए कि बिलवेड मोस्ट है बाबा । उनको जितना याद करेंगे इतना ही बुद्धि का ताला खुलेगा । प्योर रहेंगे । इसमें मेहनत है । ऐसे कोई नहीं समझ बैठे कि हम तो है नहीं, आत्मा सो परमात्मा का तो बच्चा है नहीं, वो तो बाप है नहीं । बस, ऐसे कहकर छोड़ नहीं देना है । ये तो याद करने का निरन्तर पुरुषार्थ करना है । बाबा ने बहुत दफा समझाया है बच्चोंको कि खाते भी तुम याद में रह सकते हो अर्थात् निष्ठा में रह सकते हो । निष्ठा का मतलब ये नहीं है कि कोई के सामने बैठ जावे या कहे कि मैं योग में बैठ जाता हूँ । नहीं, ऐसे वो ठहरेगा नहीं । ये तो प्रैक्टिस करनी है । खाने के वक्त में प्रैक्टिस करनी चाहिए कि मैं बाबा की याद में खाता हूँ । तो बाबा याद पड़ता रहे । ऐसे नहीं है कि कोई खाते समय में सारा समय याद करते रहेंगे और खाते रहेंगे । ये बड़ा मुश्किल है । याद जरूर करना है । ट्रेन में बैठते हो, वहाँ तो कोई धंधा-धोरी है नहीं । तो भी वहाँ आपे ही याद मे रह सकते हो । ये तो बिल्कुल ही सहज है । मैं आत्मा हूँ बाबा ने मुझे कहा है कि मुझे याद करो तो तुम्हारा विकर्म विनाश हो जाएगा । तो याद ही करना है । तो याद कोई बड़ी बात नहीं है । इनको कभी भी तुम योग का अक्षर नहीं दो, क्योंकि ये बहुत कॉमन है; क्योंकि बाप है ना । ये सभी जो अपने को योगी समझते हैं, योगी तो एक भी नहीं हैं । योगी तो तुम्हीं बच्चे हो सिर्फ, जिनको बाप सिखला रहे हैं अथवा योगेश्वर सिखला रहे हैं । योग सिखलाने वाला ही एक ईश्वर है ।...बाप है और उनको हमेशा ही बाबा-बाबा कहते हो, जैसे कॉमन बात होती है ना । जैसे लौकिक बच्चे बाबा कहते हैं, ये तो कॉमन बात है । वैसे तुम बच्चों को कहा गया है कि तुम आत्मा तो हो ही, सिर्फ भूल गए हो । याद भी करते हो । बाबा ने समझाया ना कि कहते हो- परमपिता । परमपिता किसने कहा? बच्चे ने कहा । ये तो है ना जरूर कि कहते हैं- हम बच्चे हैं परमपिता परमात्मा के यानी गॉड फादर के यानी अपने को बच्चे तो समझते हो ना । तो बरोबर फादर और है । ऐसे नहीं कहेंगे कि हम फादर हैं । जैसे बाप है, उनके 6-7 बच्चे हैं, तो बच्चा कहेगा- बाबा । वो ऐसे तो नहीं समझेगा कि बाबा हम बच्चों मे व्यापक है । तो इसलिए ये बाप को बहुत अच्छी तरह से याद करना है; क्योंकि पाप का बोझा बड़ा सिर पर है । देखो, मम्मा भी, बाबा भी कितनी मेहनत करते रहते हैं । तो भी अभी कर्मातीत अवस्था नहीं पहुँची है । बड़ा टाइम चाहिए अभी और; क्योंकि देखा जाता है कि जितना कोशिश करते हैं याद करने की उतना जल्दी भूल जाते हैं । तो याद की बड़ी मेहनत है । मनुष्य जो योग समझते हैं, वो कोई ऐसे नहीं है कि बैठने से योग लगता है । बैठते, खाते, चलते, कोई से भी बात करो, उनको भी ऐसे कहो कि बाबा को याद करो, बेहद के बाबा को याद करो; क्योंकि बेहद का बाबा वर्सा देने वाला है । बरोबर बेहद का बाबा भारत को स्वर्ग का वर्सा देते आते हैं । बाबा जो आते है, जिनके यहाँ बड़े मंदिर भी हैं- सोमनाथ का मंदिर है, शिव का मंदिर है, बाबा तो है ही नई दुनिया स्वर्ग की स्थापना करने वाला । ये तो समझना चाहिए ना कि बाबा ने जरूर भारत को कभी स्वर्ग बनाया है । इस समय में नर्क है और कलहयुग का अंत है । जरूर बाबा आ करके फिर स्वर्ग की स्थापना करते हैं । आते हैं जबकि वर्ल्ड की हिस्ट्री रिपीट होनी है । तो बाप को भी फिर आना है । बाप जब आते हैं तो निशानी यही है कि बरोबर विनाश होता है । महाभारी महाभारत लड़ाई होती है, क्योंकि आते ही है नई दुनिया स्थापन करने या नई रचना रचने । है तो बहुत सहज । तुम बच्चों को तो बिल्कुल हीसहज हो गया कि बाबा हमारे लिए वैकुण्ठ का खजाना ले आया हुआ है । तो बच्चों को बहुत अच्छी तरह से खुशी रहनी चाहिए । खुशी भी इतनी रहनी चाहिए कि बाबा का वर्सा यानी विश्व का मालिकपना तो हमको मिलना ही है; क्योंकि बाप ने तो समझाया है ना बच्चों को कि बच्चे, तुम बच्चे ही वर्सा पाते हो । तुम ही विश्व के मालिक बनते हो । 5000 वर्ष पहले भारतवासी विश्व के मालिक थे । बाप ने समझाया ना, जो कहते हैं कि क्राइस्ट से 3000 हजार वर्ष पहले सिर्फ ये भारतवासी थे । दूसरा तो कोई धर्म था ही नहीं । विश्व के मालिक थे । कोई दूर की बात नहीं है । 5000 क्यों कहना चाहिए? और ही वो तो कहते है- थी थाउजेंड बिफोर क्राइस्ट यानी 3000 वर्ष पहले ये भारत विश्व का मालिक था । ये तो बच्चों को समझाया गया है ना कि बरोबर भारतवासी ये विश्व के मालिक थे और बरोबर शिव को परमात्मा ही कहते हैं । तो बच्चों को जितना हो सके उतना एक तो याद में रहे और दूसरा मुरली मिस नहीं करें । बाबा कहते हैं ना कि तुम आए हो और तुमने मुरली नहीं सुनी है । पता नहीं कौन-सी नई-नईगुह्य बातें बाबा ने समझाई होंगी और शायद टेप मे तो वहाँ तुम सुनते ही नहीं हो; क्योंकि अभी वहाँ बच्चे इतने मतवाले नहीं हैं, गरीबाबाद हैं । बिचारे उनमें कोई ताकत नहीं है कि टेप खरीद करके सुन सकें, क्योंकि इतना लव नहीं है बाप के खजाने पाने का । नहीं तो कलकत्ते में तो बड़ा शहर है और कोई अच्छेहोंगे तुम्हारे पास कोई ऐसा मतवाला, जो टेप खरीद करे; क्योंकि टेप में मात-पिता बाबा की सारी कम्पलीट मुरली आती है । तुम्हारे पास जो लिखित में आती है, उसमें 50% भी मुश्किल एक्यूरेट होगी । कट हो जाती है ना, टेप में सारी मुरली सुन सकते हो । बड़ा भारी खजाना है । भले ये है गरीब निवाज और गरीबों को ही वर्सा लेना है । ये तो बाबा खुद भी कहते हैं और गाया भी हुआ है कि गरीब ही सूर्यवंशी और चंद्रवंशी राजधानी का वर्सा लेते हैं, क्योंकि यहाँ जो साहूकार हैं उनको तो जैसे स्वर्ग है और नर्क है बिचारे गरीबों को । तो बाप आ करके गरीबों को ही उठाता है । बाबा को वण्डर लगता है कि कलकत्ते में तुम्हारे सेन्टर मे एक टेप रिकार्ड भी कोई नहीं ले सकते हैं । तो टेप रखे और लिखे कि बाबा, टेप तो भेजो । नहीं तो पटना में तो जाते हैं । वो टेप ही सुनता है । वो मुरली भी नहीं सुनता है, टेप सुनता है; क्योंकि फुल आती है । तो वण्डर है, कितने धनवान लोग हैं एक टेप तो खरीद सकते हैं । इससे सिद्ध होता है कि कोई को भी पूरा निश्चय नहीं है शायद कि बरोबर वो हमारा बाप है । बच्ची, बाजा बजाओ । (म्यूजिकबजा) मीठे-मीठे सिकीलधे ज्ञान सितारों प्रति मात-पिता और बाप-दादा का याद-प्यार और गुडनाइट ।