28-08-1964     मधुबन आबू     प्रात: मुरली    साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हेलो, स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुलभूषणों को हम मधुबन निवासियों की नमस्ते। आज शुक्रवार अगस्त की अठाईस तारिख है । प्रात: क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।

रिकॉर्ड :-
मरना तेरी गली में, जीना तेरी गली में.....
ओम शांति । ये गीत इस समय का ज्ञानमार्ग का है, जो फिर भक्तिमार्ग में गाया जाता है और बरोबर इस समय में जब तुम बाप के पास आकर जीते जी मरते हो तो सारी दुनिया ही खत्म हो जाती है, क्योंकि जब अज्ञान काल में मनुष्य मरते हैं तो जिस दुनिया में उनका फिर जन्म है, वो दुनिया तो कायम है ना और तुम बच्चे जब बाप की गोद में आते हो तो ये दुनिया खत्म हो जानी है । फिर इसे कहते हैं- आप मुए पीछे मर गई दुनिया । तो दुनिया अब मरती है । आगे ऐसे कहावत है कि आप मुए..... । दुनिया नहीं मरती है, दुनिया नहीं विनाश होती है । उसी दुनिया में उनको जन्म लेना पड़ता है । अभी इस समय में तुम जब बाप की गोद में आते हो, जीते जी मरते हो, बल्कि जब मरेंगे भी तो यह दुनिया भी मर जाएगी । आप मुए पीछे मर गई यह दुनिया । अब जब जीते जी मरते हो तो फिर जानते हो, यह सारी दुनिया खत्म होनी है । हम आते हैं बाप की गोद में, फिर हम आएँगे नई दुनिया में देवताओं के गोद में- यह तुम जानते हो । और कोई मनुष्य नहीं जानते हैं । यह भी सिर्फ तुम ब्राहमण बच्चे जानते हो, ईश्वरीय गोद मे जाने से, ईश्वर का बच्चा होने से फिर हमको सतयुग का बर्थराइट(जन्म का हक) मिलता है । क्या बर्थराइट मिलता है? स्वर्ग की बादशाही । तो नर्क मर जाता है ना । अच्छा, अब इसमें तुमको कोई मेहनत तो नहीं करनी पड़ती है । वहाँ तो जब कोई मरते हैं तो उनको सिर्फ ऐसे ही कहा जाता है, फिर भी उनको भी यह जरूर कहा जाता है- राम-राम कहो, राम कहो, राम कहो । जब भी कोई मरते हैं तो काई के ऊपर ले जाते हैं, तो भी कहते हैं राम नाम सत्य है । जब भी राम नाम कहते हैं, वो भगवान को ही बोलते हैं । राम कोई रघुपति वाला नहीं कहते हैं । राम नाम सत्य है अर्थात् परमपिता परमात्मा जो सत्य है, उसका ही नाम लेना चाहिए । उसको राम कह देते हैं । पिछाड़ी में भी जब कोई मरते हैं ना तो भी उनको कहते हैं- राम कहो, राम कहो, राम कहो और अक्सर करके तुम बच्चे देखेंगे कि माला भी जब सिमरी जाती है- तो ऐसे राम-राम करेंगे, ऐसे बजेंगे जैसे कि कोई बाजा बजता है । तुम लोगों ने देखा नहीं है । बाबा अनुभवी है । सितार पर वो जब बैठ करके... राम-राम कहते हैं ना, जैसे कि एक...गीत बज गया राम-राम का । राम तो जरूर परमपिता परमात्मा के लिए कहेंगे ना । उसको राम को तो नहीं कहेंगे ना! अच्छा, वो भी फिर राम-राम कहाते हैं । यहाँ तो तुम बच्चों को बाप समझाते हैं कि आवाज नहीं करना है और तुम जानते हो कि बरोबर ईश्वर की गोद में आने से जीते जी फिर यह दुख रूपी जो दुनिया है, पुराने दु:ख के बंधन हैं, यह सब खत्म हो जाने वाली हैं और हे बाबा! हम आपके गले का हार बन जाएँगे । 'मरना तेरी गली में' यह तो गाते आते हैं; परन्तु वास्तव में गली नहीं है । गली कहो तो भी रस्ता कहो, पाथ कहो, परन्तु नहीं, हम आपके ही गले का हार बनते हैं । किसके गले का हार? बरोबर गाया जाता है रुद्रमाला जिसको जपा जाता है । राम माला नहीं कहेंगे, कृष्ण माला नहीं कहेंगे, रुद्रमाला कहेंगे । रुद्र कहा ही जाता है भगवान को और तुम बरोबर रुद्र माला मेंपिरोने के लिए इस रुद्र ज्ञान यज्ञ में बैठे हो, कैसे कल्प पहले मुआफिक । अभी ऐसा तो कोई दूसरा सतसंग नहीं होगा; क्योंकि गवर्मेन्ट के जो कॉलेज होते हैं, वो तो एम-ऑब्जेक्ट है राजनीतिक विद्या पढ़ने के लिए । ऐसा तो कोई सतसंग नहीं होगा जहाँ वो समझते हैं हम ईश्वर के गले में पड़े हैं, बाबा के गले में पड़े हैं, गॉड फादर के गले में पड़े हैं, तो जरूर वर्सा मिलेगा । यह जानते हो बुद्धि ऐसे कहती है । आत्मा मे मन-बुद्धि है ना, तो बुद्धि कहती है । समझती है, फिर कहती है । पहले संकल्प आते हैं, पीछे कर्मेन्द्रियों से कहा जाता है । बरोबर हम बाबा के बने हुए हैं और बाबा के ही इस अन्तिम जन्म में होकर रहेंगे और फिर बाप से वर्सा लेंगे, क्योंकि गॉड फादर है ना । कभी भी किसको तुम लोग समझाओ कि तुमको नॉलेज है गॉड की? ऐसे ही पूछते हैं । सिर्फ कहने से ही झट कहेंगे- गॉड इज सर्वव्यापी या अंग्रेजी में ओमनीप्रेजेन्ट कहेंगे । गॉड फादर, परमपिता- आत्मा कहती है । पिता तो कहेंगे ना । अगर सर्वव्यापी कहें तो परमपिता कैसे कह सकते हैं? तुम पिता कहते हो और फिर क्या बच्चे में पिता आ गए? यह तो हो नहीं सकता है ना । पिता तो कह ही देते हैं । हरेक से पूछो तो कहेंगे बरोबर परमपिता या गॉड फादर । फादर किसने कहा? फिर फादर कहकर सर्वव्यापी कहना ऐसे तो बिल्कुल राँग है । देखो, ये बच्चे हैं, बाबा कहेंगे बच्चे भले 5/7 हैं । ऐसे नहीं कह सकते बाबा तुम सर्वव्यापी हो । क्या उन बच्चों में बाबा बैठ गया? यह तो हो नहीं सकता है । बातें बहुत समझो और किससे भी पूछो तो खाली गॉड कह देते हैं । फादर नहीं कहने से मूंझ पड़ते हैं । अरे, भगवान को जानते हो? बस कह देंगे कि सर्वव्यापी है । अगर उनको तुम कहो कि परमपिता परमात्मा को जानते हो? पिता तो मुख से कहते हैं ना । पिता अब फिर मेरे में है, यह कैसे हो सकेगा? कितना मुश्किलात की बात है यह कहना । उनको कहो- तुम तो कोई बुद्धू हो । 'पिता कहते हो और कहते हो कि मेरे में पिता का प्रवेश है- ऐसे कैसे कह सकते हो? तुम आत्मा ही तो हो और कहते हो कि पिता मेरे में है । ऐसे तुम थोड़े ही कहेंगे पिता सो मैं, बच्चा सो मैं पिता ही ठहरा । ऐसे तो हो ही नहीं सकता है, क्योंकि मुख से तो कहते हैं ना- पिता । पिता कौन कह सकते हैं? बच्चा । भले कोई बूढ़ा भी हो, तो भी जब पिता कहेगा, जरूर बाप को कहते हैं पिता । अब पिता कह करके अगर कह देवे पिता मेरे में है । अरे, पिता पुत्र में, यह कैसे हो सकता है? वो तो आत्मा है ना । वो उनको पिता कहती है । तो ये समझाने की बाते तुम बहुत अच्छी तरह से समझ जाओ । समझो और समझाओ; क्योंकि भूले हैं एक बात; क्योंकि कहा भी जाता है ना- भगवानुवाच । अब भगवान के बदले में, रुद्र के बदले में, नहीं तो वही रुद्रज्ञान यज्ञ है । रुद्र निराकार और वो साकार, आखिर में कौन भगवान कहे? किसको कहे? कृष्ण को नहीं कह सकते हैं, जब तलक कि वो अपन को निराकार कहलावे भगवान कहलावे ज्ञान का सागर कहलावे । तो मनुष्य जो बहुत भूले हैं, सो एक बात में । कितने ढेर के ढेर मनुष्य भूले हैं, जो गॉड को कह दिया- फादर इज ओमनीप्रेजेंट यानी सर्वव्यापी है, मेरे मे भी है । अब कोई भीबच्चा, जिसके साथ पिता हो, उनसे पूछेंगे- तुम्हारा बाप का नाम? तो बताय देंगे । कहाँ रहते हैं? अरे, बाप तो घर में ही रहते हैं, और कहाँ रहेंगे । कोई इस घर में नहीं, घर में रहते हैं बाप । अभी बाप इस बेहद के घर में आया हुआ है यानी सारी दुनिया में यहाँ आया हुआ है और उसका विराजमान कहाँ है? यहाँ विराजमान है । वो फिर कहते हैं मैंने इसमें प्रवेश किया है । समझो, कोई ब्राहमण को खिलाते हैं बाप को, तो उस समय में बाप आकर कहेंगे ना- मैं आया हूँ, मैंने इन ब्राहमण में प्रवेश किया है, मेरे से कुछ पूछना हो तो पूछो, जब तुम लोग कभी पितर बुलाते हो तो... ।......तीर्थ वगैरह नहीं देखे हैं । आगे बहुत फैशन था । रेल-वेल नहीं थी, टाँगे की गाड़ी में जाते थे- पितर बुलाने के लिए, पितरों को पूछने के लिए । माता-पिता की आत्मा । पितर-पितरकहते हैं, पितर तो आत्मा है ना । पितरों को ही तो आत्मा कहते हैं ना, तब तो पितर को ही खिलाते हैं यानी आत्मा को खिलाया जाता है ना । पितर कोई और चीज नहीं है, कोई भित्तर-वित्तर नहीं है । पितर कहा ही जाता है आत्मा को; क्योंकि.... आएंगे ना, तो घर में पित्तर खिलाएंगे । देखो कितने-कितनेबरस के पितर! 10-10 बरस के 15-15 बरस के पितर चले आते हैं । आज किसका पितर? डाडे का पितर है, बाबा का पितर है, बच्चे का पितर है । ऐसे कहते रहते हैं ना । पितर माना आत्मा । तो पितर खिलाया जाते हैं बर्थडे में यानी आत्माओं को मँगाया जाता है । उस समय में बहुत ऐसे होते हैं, जिनका समझो स्त्री पर बहुत प्यार है और उनको बुलाता है और वो बोलते हैं- मैं अंजाम किया था, तुमको हीरे की फूली पहनूँगा और तुम मर गई हो, इसलिए अच्छा तुम आओ । तो क्या करेंगे? वो ब्राहमणी को ब्राहमण बुलाएँगे । उनको वो पहनाएँगे क्योंकि वो हमारी स्त्री की सोल है, इसलिए बैठ करके उसको नाक मे हीरे की फूली पहनाएँगे । देखो, यह अनुभव की बात बताते हैं बाबा । अरे, पर वो तो तुमने पितर को बुलाया है ना, आत्मा को बुलाया है, शरीर थोड़े ही आया हुआ है; परन्तु भारत में यह रिवाज है और कोई जगह में रिवाज नहीं है । यहाँ भारत में ही पितर बुलाने का रिवाज है । जैसे तुम पितर बुलाते हो, सुक्ष्मवतन में जाते हो ना, वहाँ किसको बुलाते हो? जो मर गया है, उनका भोग लगाते हो ना । तो उनकी आत्मा यानी पितर वहाँ सूक्ष्मवतन में है । पितर यहाँ बुलाना होता है, परन्तु नहीं, यहाँ भी बुला सकते हैं तो वहाँ भी बुलाय सकते हैं । यह भोग की जो बातें हैं ना, बहुत होते हैं । उनको इनका पता नहीं रहता है, ये क्या करते हैं । तो नई बात है । इसलिए इन सब बातों मे मूंझते हैं । जब तलक अच्छी तरह से समझ जाए तब तलक मनुष्यों को बड़े संशय पड़ते हैं कि ये क्या होते हैं? ऐसे समाचार आते हैं कि बहुत संशय होते हैं कि ये क्या करते हैं? अरे, वहाँ जा करके बाप के पास फूल चढ़ाते हैं । पितर आएगा तो माला नहीं चढ़ाएंगे बाप का पितर खिलाएंगे तो उनको हार नहीं पहनाएँगे? पहनाते हैं ना । ब्राहमण को पहले पहनाते हैं । तो ये वहाँ बैठ करके उनको हार पहनाती हैं, यह करती हैं, वो करते हैं । तो ब्राहमणों की यहाँ की भोग लगाने की भी रसम-रिवाज कैसी है, नहीं तो टिकाणे में सबमें भोग लगते हैं । मन्दिर में, कृष्ण के मन्दिर में, लक्ष्मी नारायण के मन्दिर में, जगदम्बा के मन्दिर में, खालसो के गुरुद्वारों में, सब मंदिर में भोग लगाते हैं । किसको भोग लगाते हैं? पितर को भोग लगाते हैं । किसका पितर? भले गुरुनानक की आत्मा को । वो कहाँ हैं वो बेचारे नहीं समझते हैं । अब तुम तो सब जान सकते हो ना कि बरोबर अभी जो भी सभी बड़े-बड़े हैं, जिन्होंने धर्म स्थापन किया हुआ है, इनको धर्मस्थापक ही कहें, फिर सब इस समय में यहीं हैं ना, क्योंकि पिछाड़ीमें हैं बड़े-बड़े मुख्य । तो सब यहाँ होंगे ना, जैसे बाबा कहते हैं कि इन द्वारा भी ब्राहमण धर्म स्थापन करते हैं, यह भी तो धर्मस्थापक हुआ ना । देखो, ब्राहमण धर्म स्थापन कर रहे हैं, भले बाबा करवा रहे हैं, क्योंकि यह पतित आत्मा है ना । बाप ने समझा दिया है कि जो पावन आत्माएँ आती हैं सो आकर धर्म स्थापन करती हैं । जैसे गुरुनानक की आत्मा जो पहले पहलेआई तो उसने आ करके धर्म स्थापन किया । तो पवित्र आएगा ना । अभी उस आत्मा को, जो पवित्र आती है उनको सतोप्रधान से सतो रजो तमो से गुजरना पड़ता है । इस समय में सब कब्रदाखिल हैं । यह भी कब्रदाखिल है ना । अब बाबा को तो नहीं कहेंगे कब्रदाखिल, क्योंकि वो है पतित-पावन । पतित-पावन किसको भी नहीं कहेंगे । मनुष्य को पतित-पावन नहीं कहेंगे कभी भी । पतित-पावन माना सारी दुनिया का पतित-पावन । पतित-पावन हमेशा गाया जाता है जो सारी दुनिया को पावन बनाने वाला हो । तो ऐसे कोई भी नहीं आते हैं जो पतित दुनिया को पावन बनाने वाले हों; क्योंकि वो तो आते ही हैं अपना धर्म स्थापन करने । वो जो पावन आत्माएँ वहाँ हैं, समझो गुरुनानक की है, क्राइस्ट की है, तो वहाँ क्रिश्चियन धर्म की सभी आत्माओं का सिजरा है । वहीं ये बंच है, जैसे इसमे सूक्ष्मवतन में दिखलाया ना । तो देखो, वो आत्माएँ वहीं रहती हैं, फिर वो क्राइस्ट आया, तो फिर सब उनके पिछाड़ी आते रहेंगे, आते रहेंगे और वृद्धि को पा जाएँगे । अभी ऐसे थोड़े ही कहेंगे कि वो कोई पतित दुनिया को पावन बनाने आता है । नहीं, वो आते हैं अपना रिलीजन वा धर्म स्थापन करने और वहाँ निराकार दुनिया में उनकी जो भी संस्था है, वो यहाँ नम्बरवार आने लगती है । उनको थोड़े ही पतित-पावन कहेंगे । नहीं, पतित-पावन फिर इस समय में चाहिए, जबकि सभी पतित हो जाते हैं । तो जैसे कि सभी मैसेंजर-धर्मस्थापक अभी इस समय में कब्रदाखिल हैं, ऐसे कहते हैं । सभी पतित हैं । तो सभी को पावन करने वाला एक ठहरा ना । इसलिए 'पतित-पावन' सब एक का ही नाम लेते हैं, जो भी हैं पतित-पावन । सन्यासी भी ऐसे ही कहते हैं । तो यह समझने की बात ठहरी ना । यह भी तुम बच्चे समझते हो और तुम्हारी बुद्धि में सारा ज्ञान आ गया कि बरोबर इस समय में सारी दुनिया जड़जड़ीभूत तमोप्रधान है । झाड़ पुराना हो गया है । तुमको वट के झाड़ का मिसाल देते हैं ना, जिसको बड़ कहते हैं । अंग्रेजी में बनियन ट्री कहते हैं । तुम देखेंगे यह झाड़ बहुत बड़ा होता है । कलकत्ते में जाकर देखो, बहुत बड़ा झाड़ है । जो बुड्‌ढे बुड्‌ढे होते हैं, तो मोटर मे चढ़ करके चक्कर लगाते हैं । कोई आधा माइल हो जाते हैं चक्कर लगाने में । उनके नीचे तो बहुत पार्टियाँ, लश्कर भी बैठ जावे, बड़ीस्टेशन । बाबा यहाँ कोई स्टेशन गए थे ना यह बनियान ट्री को । देखो कितना बड़ा है! बहुत बड़ा है एकदम । उनका जो फाउण्डेशन है वो सड़ा हुआ है और बाकी सब खड़ी हैं । ताजा ही ताजा एकदम, जैसे होता है और वो जैसे कि कटा हुआ है । बिल्कुल ही सड़ गया है । यह भी झाड़ है ना इस समय में । इस बड़े झाड़ का जो फाउण्डेशन है देवी-देवता धर्म, उसकी जड़ कट गई है । वो है नहीं । दूसरे सब खड़े हुए हैं, प्राय: देवी-देवता धर्म है नहीं । अच्छा, जब न हो तब तो फिर से स्थापन करे ना । तभी बाप कहते हैं- मैं फिर से आकर यह आदि सनातन देवी देवता धर्म की स्थापना कराता हूँ । किस द्वारा? सो तो तुम अभी जान गए हो कि बरोबर ब्रहमा द्वारा स्थापना, फिर शंकर द्वारा विनाश ।.. .बरोबर अनेक धर्मो का विनाश हुआ था । किसमें? महाभारी महाभारत लड़ाई में । जिसके बाद बरोबर जो राजयोग सिखलाते थे वो राजाई स्थापन हो गई । फिर अभी सब जाएँगे । अभी कौन आएँगे? तुम बच्चे जाएँगे ना वहाँ, फिर जब आएंगे तब वो सभी एक-एक आत्मा यहाँ आती रहेंगी और झाड़ वृद्धि को पाता रहेगा और ये सभी चले जाएँगे । तो ये बच्चों को मालूम हुआ ना कि इस झाड़ का फाउण्डेशन जो है आदि सनातन देवी देवता धर्म, यह प्राय:लोप है । होना जरूर है । तब तो फिर कहे ना कि मैं फिर से वो आदि सनातन देवी देवता धर्म स्थापन करने आया हूँक्योंकि यह फिर से माया का परछावा भी पड़ता है और फिर यह आदि सनातन देवी देवता धर्म प्राय:लोप हो जाता है; क्योंकि ये भारत को, जो ऊँचे ते ऊँचा था, पवित्र था, उनको ग्रहण लग जाता है । ये ग्रहण किसका लगता है? काले क्यों होते हैं? सो तो बाबा समझाते हैं कि काम चिता पर बैठने से इस समय में सारी दुनिया काली हो गई है । अभी फिर ज्ञान चिता पर तुम बैठ गए हो और फिर गोरा बन जाते हो । अभी तुम श्याम हो ना । अभी यह भी श्याम है । श्याम गीता नहीं सुनाते हैं । समझा ना! श्याम सुंदर होने वाला है; परंतु इसी श्याम में, श्याम को सुन्दर बनाने वाला, गोरा बनाने वाला परमपिता परमात्मा है । अभी श्याम है ना! श्याम अपन को गोरा कैसे बनाएगा, जब तलक कोई की मत न मिले । तो देखो, मत आती है । उसकी आत्मा तो एवरप्योर है ना, एवर गोरी है ना । आत्मा ही तो गोरी और सांवरी बनती है तब शरीर ऐसा मिल जाता है । उसमें अलाय(खाद) पड़ती है ना । अभी गवर्मेन्ट सच्चा सोना नहीं बनाने देती है ना! तो सोना भी झूठा एकदम । नहीं तो ऐसे कभी भी कोई गवर्मेन्ट आर्डर नहीं करती है कि 14 कैरेट, 9 कैरेट बनाओ, क्योंकि उन बिचारों को सोना चाहिए, कर्जा में देना है । सोना ही देना पड़ता है उन लोगो को, वो नोट नहीं लेते हैं । कायदा है, सब गवर्मेन्ट के पास जितना नोट निकालेंगे, उतना उनको सोना और चांदी रखना ही पड़ेगा, यह उन लोग का कायदा है । कागज उनके क्या काम केहैं? कागज तो जल भी सकते हैं ना । सोना और चाँदी- यह जलेगी (या) गलेगी, चॉदी की चाँदी रहेगी । नोट गल जाते हैं ना । समझो, यह एरोप्लेन आते हैं, आग लगती है, फलाना होते हैं, तो नोट जल जाते हैं । चॉदी और सोना ऐसे नहीं होंगे । जेवर गल करके सोना सोना हो जाएँगे । और फिर सभी पत्थर खराब हो जाते हैं, एक बिचारा हीरा अच्छा रहता है । समझा! जब नवरत्न बनाया जाता है, तो हीरा ही बीच में डाला जाता है । देखो, नवरत्न मनुष्यों के नाम भी हैं । नाम तो बहुत निकालते हैं ना । अनेक नाम हैं- भक्तवत्सलम नाम है, भक्तदर्शनम नाम है । तुमको कोई कहने वाला तो नहीं रहेगा ना । पिछाड़ी में मरने के समय तुमको कोई कहेगा कि राम-राम कहो? नहीं । ये मौत फिर ऐसा है, जो कोई किसको राम नाम नहीं कहेगा... । ये जा करके बड़े-बड़े सन्यासी-उदासी सब मरेंगे । वास्तव में ये जो मरते हैं ना, जैसे नेहरू मरा तो उनकी जो भस्मी है, वो समझा कि यह भी कोई खाद है । समझा ना! अब इस खाद को सारे भारत में यहाँ-वहाँ... .डालो, तो फिर क्या होगा आखिर खाद से? खाद से तो खेती होती है ना । खाद पड़ती है । ये जो भी हैं ना झाड़-वाड़ उसमें जीव पड़ जाते हैं तो जो राख होती है ना, वो भी डालते हैं ।... .अच्छी खाद बन जाती है । तो अब तुम समझो कि यह राख कितनी इस पृथ्वी को मिलेगी? थोड़ा विचार तो करो कि यह एक की खाद... नहीं तो खाद भला देनी चाहिए कोई पवित्र सन्यासी या महात्मा की । उनके तो कभी कोई नहीं करते हैं; क्योंकि गवर्मेन्ट है ना । गवर्मेन्ट का अपना जो है उनको सब कुछ कर सकती है । अगर उत्तम हैं तो वास्तव में इस समय में- सन्यासी । यह जो शिवानन्द मर गया, तो जो बाबा राधाकृष्णन था, पिछाड़ी में उनके पास गया । तो यह जो प्रेसिडेंट का भी गुरु, उनकी राख को एरोप्लैन में डाल करके और डालना चाहिए; परन्तु उस एक के राख से क्या होगा! तुम बच्चे अभी जानते हो कि कितनी राख पड़ेगी, कितने सकेंगे, कितना भार मिलेगा । यह खाद है ना । देखो, सारी सृष्टि की कितनी खाद मिलने की है । तो क्यों ना यह सृष्टि एकदम फर्स्टक्लास अनाज देगी । तो बरोबर सतयुग में जो अनाज होगा, इतनी जो खाद पड़ेगी । जनावर, फलाना सब जो भी कुछ है भस्मीभूत हो जाएँगे । सड़ी हुई चीज को खाद कहा जाता है । ये झाड़ के पल्ले हैं ना, वो भी गड्‌ढे में डाल देते हैं; ये जो छेना कचड़ा जो भी है, डाल देते हैं, तो खाद बन जाती है । खाद भी बनने में टाइम लगता है ना । फट से तो नहीं बनता । बाबा कहते हैं ना, टाइम तो लगेगा ना इस सृष्टि को नया बनने में, जिसमें खाद पड़ेगी । तुम जाते हो जो सुक्ष्मवतन में, वहाँ तुमको इतना-इतनाबड़ा-बड़ा फूल दिखलाते हैं, इतना-इतना सूबीरस पिलाते हैं, संतरे का रस या मौसमी का रस वगैरह, तो तुम विचार करो कि कितनी खाद मिलेगी सो भी खास भारत को । रक्त भी डालते हैं बर्फ में । एक अंगूर होता है, अगर उनमें बकरे का या किसका रक्त डालें, तो उनमें खुशबू बहुत होती है । मीठा बहुत होता है । कभी वो खाया है? तो अभी ख्याल करो- फिर कितनी खाद मिलेगी, कितनी अच्छी-अच्छी सब चीजें होंगी! तुम्हारे नई दुनिया के लिए आटोमैटिकली यह सारी दुनिया में खाद-वाद सब तैयार हो जाएगी एकदम ज्ञानानुसार । फिर तुम वहाँ आ करके, एक-एक फल देखेंगे और यहाँ तो कभी मिल भी नहीं सके । सूक्ष्मवतन में फल होते तो नहीं हैं ना, परंतु कहाँ से तब तुमको सूबीरस पिलाते हैं? ये वैकुंठ । तुमको बगीचे का साक्षात्कार कराय करके, भले बाबा ने ही देखा है, तुम बच्चों ने ही देखा है ये सब, पर सुना है तो
बाबा को याद है, सुक्ष्मवतन में, फिर वो जाते हैं बगीचे में । बगीचे में फर्स्टक्लास-फर्स्टक्लास... तो शौक होता है ना । समझो, वहाँ हमारा बगीचा होगा, तो मेरे को कितना शौक होगा, नशा होगा- चलो, हम तुमको वहाँ फल तो खिलावें । तो यह साक्षात्कार किया कि बरोबर वहाँ जाते हैं, प्रिंस जो बनने वाला है । देखो, इनको मालूम है । वो बगीचे में जाते हैं, फल वहाँ से ले करके और बैठ करके वो निकाल कर देते हैं । पीकर आती थीं । अभी पता नहीं वो फैशन है पीने का या नहीं । बाबा कहते थे ना- आगे बहुत पीती थीं । बोलते थे- क्या पिलाया? सूबीरस पिलाया । कहाँ से लाया?.. बगीचे से लाया । अरे, सूक्ष्मवतन में बगीचा कहाँ से आया? यह तो बगीचा है, तो जरूर वैकुंठ में तुमको ले गए होंगे । वहाँ तुमको पिलाया होगा । बाप साक्षात्कार भी तो कराते हैं ना । सबको एक-एक को तो नहीं बैठकर साक्षात्कार कराएँगे! नहीं, जो-जो निमित्त बने हुए हैं, उनको साक्षात्कार कराते ही जाते हैं, जिनको होना होगा । ये बातें इन्होंने ही तो देखीं । और बच्चे कहेंगे बाबा हम कब? हाँ, हो सकता है । अगर तुम योगी हो करके अच्छे रहेंगे, याद में रहेंगे, बाबा के बच्चे हो करके रहेंगे ठीक कायदे अनुसार, तो क्यों नहीं, पिछाड़ी में तुमको बहुत- साक्षात्कार होगा; क्योंकि नजदीक आते हैं ना बिल्कुल । वो तो बहुत दूर थे, अभी तो बहुत नजदीक आएँगे... परन्तु किसके लिए होगा फिर भी; क्योंकि ये तो बच्चे आकर बने हैं न, सरेण्डर एकदम, घरबार को छोड़ करके एकदम । तो उनको क्यों नहीं दिखलाएँगे? तो बच्चे कहते हैं- बाबा, हमने गुनाह किया? बोले-हॉ बच्चे । यह तो बात ठीक है । यह तो एकदम आ करके सरेण्डर पड़ा । लोक-लाज कुल की मर्यादा बिल्कुल खो दी । भावी ड्रामा की, क्योंकि गौशाला बननी थी । गौशाला कहो वा भट्‌ठी कहो, पकना था उनमें; क्योंकि सात रोज मे तो कोई पकता ही नहीं है । तो तुमको बहुत भट्‌ठी में डाल दिया । अब ये बातें कोई शास्त्रों से तो नहीं समझाई जाती ना । तब बाबा समझाते हैं- यह जो इतना लिटरेचर है, यह भी तुम किसको देंगे ना, तो इनसे थोड़े ही समझेंगे । टीचर जरूर चाहिए । टीचर एक सेकण्ड में समझा देगा, तुम भले ये चित्र किसको दे दो । सामने आवे और तुम बोलते- देखो, यह बाबा है? हाँ कहेंगे । चित्र में कौन से पूछेंगे कि यह तुम्हारा बाबा है? कोई पूछेगा? नहीं । तो चित्र से काम बहुत निकलता है, यह तुम्हारा बाबा है, यह तुम्हारा दादा है । बरोबर यह ब्रह्माँकुमार-कुमारियाँ हैं, गाया हुआ बरोबर । प्रजापिता ब्रहमा की औलाद तो जरूर ब्रह्माकुमार-कुमारियॉ होंगे । जरूर वर्सा इनका होगा ना । बेहद का बाप तो यह है ना । यह तो स्वर्ग का रचता है ना । तो तुम बोल सकेंगे ना । अच्छा, चित्र हाथ में देंगे, बरोबर फेंक दिया जाता है । कुछ भी नहीं समझेगा । तो इसलिए ये जो लिटरेचर देते हैं, यह तो जैसे कि आपने उनको बता देते है कि बाबा आया हुआ है । यह तुम्हारा फर्ज है कि सबको निमंत्रण दे दो । भले ढिंढोरे भी पिटवाओ कि बाप आ गए है । समझा ना! क्योंकि गाया हुआ है- यादव, कौरव, पाण्डव । बरोबर पाण्डवों की जीत हुई है । यादव और कौरव मारे गए हैं । कौरव और पाण्डवों का भारत मे इतिहास है ।.... तो जरूर वो भी है । लड़ाई भीसामने खड़ी है । जरूर राजयोग भी सिखलाने वाला होगा और जरूर स्वर्ग की स्थापना होगी । एक धर्म की स्थापना होती होगी राजयोग की; क्योंकि तुम्हारी राजाई स्थापन हो रही है ना और फिर अनेक धर्मो का विनाश तो जरूर हुआ है बरोबर । फिर यह नर से नारायण ऐसे बने हैं । नहीं तो नर से नारायण कैसे बना? ये क्या हुआ? मनुष्य इतना पद कैसे पाया? तो अभी तुम खुद बैठे हुए, जानते हो कि हम अभी नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी बनेंगे । यह है एम-ऑब्जेक्ट । 2/3 एम-ऑब्जेक्ट तो नहीं बताएंगे । ऐसा नहीं कहेंगे कि तुमको मनुष्य से सीता-राम बनाते हैं । नहीं, उनको तो देवता भी नहीं कहा जाता है ना । मनुष्य से देवता किये करत न लागी.. । ऐसे नहीं कहते कि मनुष्य से क्षत्रिय किये नहीं है लागी । नहीं, मनुष्य से देवता किये । बाबा ने कहा है ना- देवताएँ सिर्फ सूर्यवंशी को कहा जाता है, चंद्रवंशी को फिर क्षत्रिय कहा जाता है । तो पहले पहलेदेवता बनना चाहिए ना । नापास होते हो तो क्षत्रिय बन जाते हो । तो देखो, बाप कितना अच्छी तरह से मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों को समझाते हैं । क्या कहते हैं? मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चे । एक बाप हो, जिसका एक बच्चा गुम हो गया हो, वह मिलेगा, तो कहेगा-- वो सिकी-सिकीढूंढ-ढूंढ करके फिर मिला । गुम हो जाते हैं और अखबार में भी डालते हैं- ऐ फलाना, कहाँ गुम हो गए हो? अच्छा समझो, 6/8 महीने के पीछे आ करके मिलेगा, तो कितना प्यार से मिलेगा, ऑख से जल बहेगा । ऐसे होता है ना । तो यह कहते हैं- मेरे लाडले बच्चे, ओ हो! तुम फिर..एक थोड़े ही हैं, ढेर के ढेर हैं । ऐ मेरे मीठे लाडले बच्चे । फिर तुम आ करके हमको मिले हो । कितने तुम बिछड़ गए हो । ड्रामानुसार कहेंगे ना फिर । अब फिर तुम आ करके मिले हो बाप से बेहद का वर्सा लेने; इसलिए तुम भी कहते हो- डीटी वर्ल्ड सावरटी इज योर गॉड फादरली बर्थ राइट । यानी सतयुग की राजधानी, जिसको बाबा-बाबा कहते आए हो वो तुमको देने आया हुआ है । बाप भी कहते हैं- मैं तुम्हारे लिए क्या सौगात लाऊँ? सौगात लाते हैं ना बाप । तो लंडन से, अमेरिका से क्या सौगात लाएँगे! यह तो देखो इतना दूर रहने वाला । इनके लिए गाया जाता है- यह हैविनली गॉड फादर स्वर्ग की सौगात ले आते हैं । तो बाबा कहते हैं- मैं तुम्हारे लिए सौगात लाया हूँ ना । बेहद का बाबा कितनी बड़ी सौगात ले आएँगे; परन्तु लायक भी तो बनना पड़ेगा ना । वहाँ जाने के लिए लायक बनना होगा, श्रीमत पर चल करके । मीठे बच्चे, सिकीलधे बच्चे, श्रीमत पर ही चलते रहो । जबकि बाबा-मम्मा कहते हो, तो फिर ऐसे ना हो कि ये बाबा-मम्मा को भूल जाओ । फिर बाबा-मम्मा को भूल जाएँगे या फारकती दे देंगे, तो तकदीर जो तुम बनाकर आए हो यहाँ बाबा के गले में । कहते हैं ना तेरी गली में आए ना । तो रुद्र शिवबाबा के गले के हार हो ना । बच्चे तो गले के हार होते हैं ना । अरे, बच्चे गले में तो लपटे रहते हैं । अरे, बच्चों को कितना प्यार किया जाता है । एकदम गले से भाकी में, बच्चों को प्यार से यहाँ माथे पर भी रखते हैं । पाँव में गिरे हुए हैं उनको माथे पर चढ़ाते हैं । चोंटी है ना, इतना माथे पर चढ़ाते हैं । तो बच्चों को कितनी खुशी होनी चाहिए, कितना बाप की मतपर चलना चाहिए; क्योंकि श्रीमत भगवानुवाच तो बिल्कुल गाया हुआ है कि अभी एक की ही मत पर चलना है । मनमत पर नहीं चलना है । मनमत हुई, सारी रावण की मत हुई । बस, सिवाय एक के, दूसरी मत या अपनी मत ली तो यह मरा । अपनी मत माना ही फिर रावण की मत हो जाती है । ये है ही श्रीमत । बच्चे, श्रीमत पर चलते रहो, तुम श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ मनुष्य बनेंगे । श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ मनुष्य कौन हैं? देवताएँ है ।.. ....पीछे मास्टर कहेंगे- तुम्हारी भूल है, ऐसे तो नहीं, तुम्हारा बच्चा नहीं पढ़ता है, हम क्या करें! हमने पढ़ाया है तो सब नंबर वन, टूथ्री गए हैं । तुम्हारा बच्चा नहीं पढ़ता है । यह बाप भी कहते हैं- देखो, मैं तुमको बच्चा बनाता हूँ और तुम यह जानते हो कि ड्रामा में बरोबर 108 की अच्छी विजयमाला बनती है, अच्छे पास होते हैं, उनमें जरूर आना । इतना पुरुषार्थ इतना । फिर किसको फालो करो? मम्मा-बाबा को फालो करो । जानते हो कि ये नम्बर वन में...जाते हैं । बाबा-मम्मा को कैसे मिलते हैं? बाबा-मम्मा बाप को याद बहुत करते हैं और स्वदर्शनचक्र बहुत फिराते हैं । उसकी निशानी? अरे, देखते नहीं हो । एक-एकको स्वदर्शचक्रधारी बनाते जाते हैं । स्वदर्शनचक्रधारी बना करके बाबा के सामने शिवबाबा की सौगात ले आते हैं । तुम लोग सबको ले करके शिवबाबा के सामने आते हो ना कि बाबा, मैंने इनको स्वदर्शनचक्रधारी बनाया । हाँ, फिर कितने को बनाया? 2 को, 5 को, 10 को, 50 को, 100 को- ऐसे कहते जाएँगे ना । तो कितनी मजे की बातें हैं यहाँ । देखो, कितनी लाते हैं । तुम ही समझो, और ना समझे कोई । कोई भी नया आ करके बैठे, बिल्कुल नहीं समझेगा एकदम । मनुष्य से..देवता बनने की कॉलेज है ना, तो असुर कैसे समझेंगे? जब तलक उनको अच्छी तरह से सात रोज में कुछ न कुछ रंग चढावें । कोई बच्चे ऐसे होते हैं जिनको 7 रोज में रंग चढ़ जाता है, कोई आते हैं कुछ भी नहीं चढ़ता है, पाई का भी रंग नहीं चढ़ता है । कोई को पाई का रंग, पैसे का, टके का, आने का, दो आने का, ऐसे-ऐसे रंग चढ़ता है । तुम देख लेंगे कपड़े को । ऐसे-ऐसे कोई छी:-छी: कपड़े होते हैं बड़ा मुश्किल से रंग चढ़ता है । मेहनत करनी पड़ती है । अच्छा, अभी बच्चों को तो राज समझाते रहते हैं रोज-रोज कि कैसे बच्चों को समझाना चाहिए । पहले पहलेये बात बाबा ने बताई कि सबको कहो तुम बेहद के बाप को जानते हो? अभी पूछते तो बाप के बच्चे से है ना । अरे, तुम अपने बेहद के बाप को जानते हो? परमपिता परमात्मा को जानते हो? हाँ, जानता हूँ, वो सर्वव्यापी मेरे में बैठा हुआ है । अरे, मैं बोलता हूँ तुम जानते हो? तुम बोलते हो- मेरे में बैठा है । मेरे में बैठा है तो मुझे पूछने की दरकार ही नहीं रही । देखो, कितनी पाई पैसे की बात, वण्डर लगता है । तुम्हारा पिता परमपिता, तुम्हारी आत्मा का पिता कहा है, जो मेरे में है । यह कैसे हो सकता है? फिर दो आत्मा है या एक ही परमात्मा है? आत्मा परमात्मा है या परमात्मा है? तो फिर क्या कहेंगे? हम आत्मा सो परमात्मा हुए । अभी देखो, कितनी गोल-माल है, गड़बड़-सड़बड और सब ऐसे ही । तो बच्चों को पहले- पहले....... समझा, तब तुमको वर्सा चाहिए स्वर्ग का । तो वो समझ जाएगा, यह बात बिल्कुल ठीक की है । बाप है तो वर्सा जरूर मिलना चाहिए । तो बाबा कहते हैं- पहले-पहले आते हैं तो अल्फ समझाओ । टोली ले आओ । कौन है तुमको कहने वाला- हे मेरे सिकीलधे...कोई सन्यासी कहेगा? उदासी कहेगा? कोईगुरु-गोसाईं कहेगा? कोई नहीं कह सकते हैं और तुम भी खुद जानते हो, कहेंगे और तुम न मानेंगे ऐसा भी नहीं हो सकता है । तुम जानते हो कि बरोबर हम परमपिता बाबा के, शिवबाबा के सिकीलधे बच्चे हैं । बरोबर 5000 वर्ष के बाद फिर मिले हैं । क्यों? उनसे फिर स्वर्ग का वर्सा लेने । हम सो स्वर्ग के मालिक थे । अभी सो नर्क के बन गए हैं । सो स्वर्ग के स्थापन करने वाले बाबा से हम फिर स्वर्ग के मालिक बने हैं, बनेंगे ही अपने पुरुषार्थ अनुसार । बनना जरूर है । पीछे स्वर्ग में जाना है जरूर । फिर उनमें ऊंचा पद पाना है । .....सर्विस करना । 'ना कहा तो समझो नास्तिक है । यह आस्तिक वो है । ऐसे बोला ना, हम यह अभी नहीं करेंगे, यह काम नहीं करूँगा, समझो नास्तिक जरूर है । कहा जाता है कि वो बाप का सच्चा बच्चा नहीं है । .......विजिटर्स आते हैं । उनको कोई- 'न' कहा शायद । आजकल तो बाबा को भी 'न कहते हैं । नहीं करेंगे, तो बाबा समझ जाते हैं ये नास्तिक है । मम्मा की तो मम्मा जाने, पता नहीं वो भी किसको कहती होगी, कोई काम न करता होगा, वो तो मम्मा जाने; परन्तु बाबा जानते है कि जब कोई को काम कहते हैं ना, बाबा को भी 'ना कर देते हैं । तो फिर उनको नास्तिक कह देते हैं । श्रीमत पर न चलने वाला, अभी बताओ वो श्रेष्ठ कैसे बनेगा? हो सकता है? ये बाबा नहीं कहते हैं कि बाबा को जवाब दे दिया तो बेड़ा गर्क हो जावे । यह तो फिर तुमको कहते हैं, तुम उनको कहो । बाबा अगर कहे, श्रीमत से अगर कहे तो फिर.... ये ऐसे कहते हैं ना सबको- ओ बच्चा, ओ बेटा, ओ बाबा । बेटा बाबा बनना है और बेटी माँ बननी है । अच्छा, फिर भी बाबा कहते हैं- मेरे मीठे-मीठे लाडले, सिकीलधे 5000 वर्ष के बाद, अभी भी कहेंगे 5000, कल भी फिर कहेंगे 5000 । यह इशारा कोई समझते हैं कि यह भी नहीं समझेंगे? कल भी ऐसे ही कहेंगे- 5000 । देखो, समझने की कितनी बातें हैं । कोई की बुद्धि में बैठनी चाहिए ना बातें । तो 5000 वर्ष बाद फिर से मेरे सिकीलधे बच्चों प्रति किसका यादप्यार? मात-पिता, जिसको तुम याद करते आए हो । तुम ऐसे भी नहीं कहेंगे कि अच्छा, भला पिता मेरे में है, माता तेरे में कैसे, भला ये तो बताओ । तुम मात-पिता गाते हो ना । अच्छा, पिता के लिए तो तुम बोलते हो मेरे में सर्वव्यापी है, तो माता कहाँ गई? देखो, कभी कोई समझ न सके एकदम । बड़ी गुह्य बातें हैं । जो मेरे लाडले बच्चे बैठे हैं, जो मात-पिता बाप को ही कहते हैं । फिर बाबा ने समझाया ना, यह तो बच्ची है ना, इनकी भी तो माता है ना । बच्ची, तुम्हारी माता है ही । तो कितना गुह्य बातें हैं । तो सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता फिर बापदादा भी कह देते हैं; क्योंकि बाबा भी, डाडा भी, दोनों बाबा । है तो डाडे का वर्सा है । बाबा को कोई याद न करेंगे तो फिर वर्सा कैसे मिल सकेगा यानी बच्चा ही कैसे, पोत्रा ही कैसे हुआ? समझा ना! अगर कोई यह भी भूल जाते हैं ना, तो वो जैसे एक टाँग वाले लंगड़े बच्चे हैं । अच्छा, ऐसे-ऐसे मीठे बच्चे को यादप्यार गुडमॉर्निंग ।