29-08-1964     मधुबन आबू     रात्रि मुरली    साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हेलो, गुड इवनिंग यह उनतीस अगस्त का रात्रि क्लास है
वो जमाना जैसे स्वप्न हो गया, ऐसे कहते हैं । फिर ये आता है; क्योंकि वहाँ स्वप्न हो गया ना, जो पास्ट हो जाता है । जैसे सतयुग है, पास्ट हो गया; जैसे स्वप्न हो गया । यह भी बाबा तो मिला था, पर वो पास्ट हो गया, जैसे स्वप्न हो गया । अब फिर सन्मुख मिला है । अच्छा, यह बच्ची कौन है? ज्ञान सागर से ज्ञान नदियों का मेला । वो पानी का सागर और नदियों का मेला नहीं है । ज्ञान सागर, बेहद के बाप से बेहद के बच्चों का मेला है; क्योंकि बेहद माना बहुत हैं, ढेर हैं । तो इसीलिए कहा ही जाता है- बेहद का बाप । बेहद बच्चों का बाप । बच्चों की हद नहीं; क्योंकि कितने हैं? देखो, कोई अनगिनत हैं । ऐसे ही बताय देते है, साढे पाँच सौ करोड़ । ऐसे कहते हैं ना! तो देखो, बेहद के बच्चों का बेहद का बाप और फिर बेहद का बाप बेहद के बच्चों को बेहद का राज्य देते हैं । हाँ, ये जरूर है कि बेहद के राज्य में नम्बरवार जरूर राज्य करेंगे और नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार फिर प्रजा भी बनेगी । तो अब जैसे कि बेहद के बाप, जिसको भक्तिमार्ग में खास करके याद किया जाता है। भारत को तो याद करना बहुत सहज है; क्योंकि भारत है ही बर्थप्लेस । पतित-पावन की बर्थप्लेस है; परंतु आजकल बिचारे कोई जानते ही नहीं हैं । पतित-पावन गाते हैं जरूर । गाते भी हैं परमपिता परमात्मा के लिए कि वहाँ है पतित दुनिया को पावन बनाने वाला । आते ही हैं बरोबर कलहयुगी पतित दुनिया को सतयुगी पावन बनाने । है भी परमपिता परमात्मा और उनका नाम भी गाते हैं शिव । कहते भी हैं मुख से कि निर आकार है यानी उनका मनुष्य जैसा आकार नहीं, यहाँ सुक्ष्मवतन वाले जैसे निर आकार नहीं; और फिर जानते भी हैं कि बरोबर शिव का मंदिर या सोमनाथ का मंदिर था । जरूर आए थे । ये तो जानते हैं ना कि वो बरोबर भारत में ही आए थे और वो है रचता । रचता तो जरूर आ करके स्वर्ग रचा होगा ना । तो देखो, माया के कारण बुद्धि इतनी पत्थर बुद्धि हो पड़ी है । जैसे कि माया ने बुद्धि को बड़ा भारी गॉडरेज का ताला लगाय दिया है, जो इतना भी नहीं समझ सकते हैं । बरोबर वो निराकार बाप है और यहाँ भारत में उनका मनाया जाता है और कोई जगह में ये शिवरात्रि या शिवजयंती नहीं मनाते हैं । फिर ये भी इन्हों को पता नहीं पड़ता है कि गाया जाता है कि ब्रहमा का दिन, ब्रहमा की रात होती है । जरूर ब्रहमा की रात में आते होंगे, इसलिए कहते भी हैं शिवरात्रि । यानी परमपिता परमात्मा शिव, जिसकी इतनी बड़ी और बहुत अच्छी यादगार है यानी इन जैसा, इनकी यादगार जितना मंदिर और कोई भी बना नहीं, न कोई बनाय सकते हैं, जिसको फिर लूटा । तो भी देखो, कोई को पता नहीं है कि कब आया । लाखों वर्ष कोई की यादगार नहीं रह सकती है । ये कल की बात है, ऐसे कहेंगे । जब वो लोग कहते हैं लाखों वर्ष हो गए हैं और तुम बच्चे कहेंगे अरे, ये तो कल की बात है । कल यहाँ भारत सोने जैसा था । प्राचीन भारत का नाम बहुत गाया जाता है । विलायत वाले, अमेरिकन्स वगैरह तो कहते हैं कि यहाँ भगवान और भगवतियों का राज्य था । श्री लक्ष्मी भगवती, श्री नारायण भगवान । तो शिवबाबा की महिमा बड़ी अपरमपार है । उनको कहा हीजाता है परमपिता परमात्मा, गॉडफादर । फादर को लॉर्ड शिवा नहीं कहेंगे । कई-कईबच्चे होते हैं, चिट्‌ठी में लिख देते हैं- लॉर्ड शिवा, नमस्ते । लॉर्ड टाइटिल तो विलायत में जो लार्ड एण्ड लेडी होते हैं, उनको मिलते हैं । परमपिता पतित-पावन, उसके लिए उनको फिर लॉर्ड कहा । क्यों? उनका महिमा का टाइटिल 'श्री-श्री' और कोई को मिल नहीं सकता है । फिर उनको कहा जाता है- जगतपिता पतित-पावन । तो जगतपिता पतित-पावन और जगतगुरू, तो उनकी कितनी महिमा है लार्ड करके, जैसे कि वो साहब लोग होते हैं ना वहाँ के लार्ड या जैसे यहाँ आगे लार्ड सिन्हा, लार्ड गवर्नर को लॉर्ड कहते थे । तो कितनी भूल । देखो, कुछ भी नहीं जानते हैं । जिसने हम बच्चों को, भारतवासियों को वर्सा दिया । इतनी भूल हो जाती है । भारत को कुछ पता नहीं रहता है कि निराकार शिव के ये मंदिर कैसे, किस शरीर में आए? क्या ये जो निराकार की यहाँ पूजा होती है, निराकार ने क्या आकर किया होगा? कुछ तो सर्विस की होगी । निराकार ने कैसे सर्विस की? जरूर कोई प्रकृति का आधार लिया होगा । कोई पता नहीं बिल्कुल एकदम । देखो, अभी तुम बच्चों को कितनी नॉलेज मिली है । तुम हूबहू नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार.. नॉलेजफुल बनते हो, क्योंकि नॉलेजफुल के बच्चे हो न, तो जरूर वो नालेजफुल बनाएगा । तो तुमको त्रिकालदर्शी बनाय दिया है; क्योंकि तीनों लोकों को, तीनों कालों को तुम जानने वाले हो । ऐसा कोई मनुष्य थोड़े ही हैं यहाँ- इतने विद्वान, आचार्य, पंडित, बड़े-बड़े घमंडी मंडलेश्वर ।....वास्तव में तुम बच्चे जो जानते हो, तुम प्रूफ कर सकते हो यानी जो अपने क्रियेटर को नहीं जान सकते हैं । बाबा-बाबा कहते हैं लेकिन गॉड को न जाने, बाप को. .न जाने, गाते रहें ओ गॉड फादर और उनको जाने नहीं, न उनके वर्से को जाने, फिर जो ड्रामा के भी आदि-मध्य-अंत को न जाने उनको ब्लाइंड कहा जाता है । तो है न बरोबर अंधे के औलाद अंधे । फिर अंधे की लाठी मिली । कहा ही जाता है, वो बाप अंधे की लाठी । तो देखो, आए हैं ना । फिर गाया भी हुआ है- अंfधे के औलाद । अंधा किसने बनाया? अरे, रावण की औलाद है, इसलिए आसुरी सम्प्रदाय । किसकी सम्प्रदाय? रावण की सम्प्रदाय । इसलिए नाम है सभी हिरण्यकश्यप... .कंस, जरासिंधी शिशुपाल, अकासुर बकासुर फलाना । देखो, कितने नाम हैं! तो इसको कहा जाता है रावण सम्प्रदाय, क्योंकि इन सबका मुख्य फिर रावण को कहेंगे, क्योंकि वो जैसे उनके बाल-बच्चे हो जाते हैं ना ।रावण सम्प्रदाय, ये राम सम्प्रदाय । पीछे गाते भी हैं- राम गयो रावण गयो जिनकी बहु सम्प्रदाय, जिनका बहु परिवार, ऐसे भी कहते हैं । अभी जानते हो ना । देखो, राम का कितना थोड़ा परिवार है । ब्राहमण कितना छोटा है । देखो, चोटी कितनी छोटी है । तो ब्राहमण कुल है ना । बाकी कौन हैं? बाकी सब हैं रावण सम्प्रदाय और राक्षस सम्प्रदाय । ये कहते हैं कि देखो बच्चे, तुम अखबारें नहीं पढ़ते हो । नहीं तो एक एम०पी० कृपालानी है, खुद भी अखबार में ये लोग डालते हैं कि ये है राक्षसों का राज्य । बरोबर यह है असुरों का राज्य और बाप आकर फिर ईश्वरीय राज्य स्थापन कर रहे हैं । रामराज्य कहो या ईश्वरीय राज्य कहो, बाप आ करकेफिर तुम बच्चों को विश्व का मालिक बनाते हैं । सो भी निष्काम सेवा । खुद राजाई का कुछ भी सुख नहीं लेते है । उसको कहा जाता है निष्काम सेवा । ऐसे बहुत फिलेंथ्रोफिस्ट हैं । जो दान करते हैं वो भी ऐसे ही कहते हैं- हम निष्काम सेवा करते हैं । निष्काम सेवा कोई की होती ही नहीं है । उनका फल तो मिलता ही है जरूर । बहुत बच्चे है जो अभी तलक अच्छी तरह से ठीक से समझा नहीं है । फिर कल समझाएँगे क्योंकि तुम बच्चे हो दु:खहर्ता-सुखकर्ता क्योंकि बाप के बच्चे हो । तो कोई को तुम दुःख तो दे नहीं सको; क्योंकि तुम हो दु:खहर्ता और सुखकर्ता । तुम सबका दुःख दूर करने वाले हो । तो कभीभी तुम बच्चों को किसको भी दुःख नहीं देना है । ऐसे बहुत होते हैं जिनमें काम का भूत होता है, फिर वो इन्सल्ट बहुत करते हैं, कोई को दुःख बहुत देते हैं । क्रोध करते हैं ।तुम बच्चों को वहाँ कराची में सिखलाते थे । कोई बच्चे में क्रोध होता था, कोई के साथ क्रोध करता था... .तो समझाया जाता था- अरे, इनमें क्रोध का भूत है, इनको वहाँ किनारे पर जा करके बैठाओ । भूत से मनुष्य डरते हैं ना । घोस्ट से बहुत डरते हैं । घोस्ट अलग चीज है, ये पाँच विकारो का भूत अलग चीज है । वो जो घोस्ट होते हैं, उनको शरीर नहीं मिलता है तो आत्मा थोड़ा भटकती है और ये जो भूत हैं, ये तो सभी 2500 वर्ष के दुश्मन हैं । वास्तव में भारत के बड़े दुश्मन ये रावण या ये पाँच विकार रूपी माया और उसका किसको पता नहीं है । बाकी पता बहुत है । बहुत दुश्मन आए- मुसलमान आए, अंग्रेज आए, फलाना आए । चीनी भी आए । तो उन बच्चों को तो ये मालूम है कि ये दुश्मन है और कोई को ये मालूम नहीं कि ये रावण दुश्मन है भारत का और उस दुश्मन को 2500 वर्ष हुआ है । उनको पता नहीं है; क्योंकि कलहयुग की आयु लगाय दी है बड़ी 40000 तो बिचारो को हिसाब कहाँ से आवे? ये तो बड़ी ईश्वरीय कॉलेज है । इनमें बहुत कुछ समझने की बातें हैं । बहुत प्वाइंट्स हैं । है बहुत थोड़ी, जैसे बीज और झाड़ । तो बुद्धि में आ जाता है बरोबर बीज में से ये झाड़ निकला । झाड़ का बैठ करके डार-टाल-टालियाँ और पत्ते वगैरह गिन सकते हैं कोई? नहीं, तो फिर उनकी समझानी मिलती रहे कि ऐसे डार-टाल निकलते हैं । तो ये भी यहाँ समझाया जाता है कि बच्चे, पहले-पहले है फाउंडेशन आदि सनातन देवी-देवता धर्म । पीछे उनमें तीन फाउटेस निकलते हैं, इसको अंग्रेजी में पलॉवर वाज भी कहते हैं । हिन्दी में क्या कहेंगे? (किसी ने कहा- गुलदस्ता) नहीं । (किसी ने कहा- गुलदान) गुलदस्ता या ऐसे ही कहो । तो हमेशा तीन टयूब्स निकलते हैं । तो बरोबर. इस्लामी, बौद्धी और क्रिश्चियन । फिर देखो, उनमे कितनी टालियाँ फिर छोटी-छोटी डालियाँ, कितने पत्ते निकलते हैं । तो ये फिर समझने में तो टाइम लगता है ना; परन्तु सिर्फ बीज और झाड़ बाबा और वर्सा, देखो कितना सहज है । तभी तो बापदादा कितना तुम बच्चों को समझा कर कितना समझावे । अच्छा, बाप को याद करो । मनमनाभव का भी उन्होंने अर्थ लिखा है ना, कहते हैं मुझ अपने बाप को याद करो और चतुर्भुज को याद करो । मद्याजीभव को कहते हैं कि चतुर्भुज को याद करो । है तो सही लिखा हुआ किमनमनाभव मद्याजीभय '; परन्तु किसको याद करें? कहते भी हैं सर्व धर्मान परित्याग । यानी ये जो तुम्हारे शरीर के धर्म है- क्रिश्चियन हूँ मुसलमान हूँ, पारसी हूँ मारवाड़ी हूँ गुजराती हूँ, ये सब भूल जाओ । अपन को सिर्फ आत्मा निश्चय करो । इसको कहा जाता है सभी देह के धर्म देह सहित सब भूल जाओ । अपन को सिर्फ आत्मा निश्चय करो । मामेकम यानी मुझ अपने एक बाप को याद करो । तो बाप भी ऐसे कहते हैं ना कि मामेकम याद करो तो इस योगाग्नि से तुम सब पापो से मुक्त हो जाएँगे । और जो सभी योग हैं वो कोई योगाग्नि थोड़े ही है । वो तो शारीरिक है, अनेक हैं । योगियों की ये साधनाएँ अनेक प्रकार की हैं । तुम बच्चों को समझाया ना कि जयपुर में जाओ तो वहाँ एग्जीवीशन हठयोग के बहुत ही हैं ।बाप आ करके एक ही बार योग माना याद सिखलाते हैं अपनी, इसलिए बाप कहते हैं तुम लोग योग-योगका अक्षर नहीं लो । ये कॉमन अक्षर है । बाप की अच्छी बात होती है, बाबा को याद करो । हे आत्माएँ! मुझ अपने बाप को याद करो, ऐसे कहते हैं । तो उससे ही तुम पावन बनेंगे, और कोई उपाय है नहीं । इस योगाग्नि से ही पाप दग्ध होंगे । तो याद भी जरूर चाहिए । अगर ये बैठेंगे याद के लिए तो हठयोग हो जाता है । समझा ना । ऐसे क्यों नहीं याद करते हो? पैदल क्यों नहीं याद कर सकते हो? वो भी तो योग है ना । खाते-पीते-चलते ये बहुत सहज है । तो इसमें किसको आदत पड़ जाती है बैठने की कि मैं योग में बैठा हूँ । योग में क्यों? योग में तो वो सन्यासी लोग बैठते हैं । आसन लगाकर बैठे रहो । नहीं, कोई तकलीफ नहीं बच्चों को । बूढ़ी-बूढ़ी माताएँ बेचारी क्या जाने? ये बैठकर आसन लगाएगी?? ऐसे सिखलाते हैं बहुत अच्छी तरह । ये बच्चियान क्या जाने इनसे? अभी कैसे बेचारी योग में ऐसे बैठेंगी? नहीं, बहुत सहज । बाबा कहते हैं, मैं तुम बच्चों को बिल्कुल ही सहज बात, एक सेकण्ड की बात बताता हूँ । तुम बाप को जान गए, बरोबर तुम आत्मा बाप के हो, बाप कल्प पहले आए थे 5000 वर्ष पहले और कहा था देह के सभी धर्म त्याग मुझ एक को याद करो, क्योंकि मैं हूँ ही लिबरेटर रावण के दुःखों से.. छुड़ाने वाला और तुम्हारा गाइड भी हूँ यानी तुम्हारा पण्डा हूँ । तुम पाण्डव सेना हो । तुम सब पण्डे हो । किसको क्या सिखलाने के लिए? रूहानी यात्रा सिखलाने केलिए । बाप भी यही सिखलाते हैं । तो पण्डे हो ना, रूहानी पण्डे हो । वो है जिस्मानी पण्डे । वो भी ब्राहमण, तुम भी ब्राहमण । वो हैं झूठे, तुम सच्चे । वो पतित हैं और तुम अभी पावन बन रहे हो । तुम अभी अपन को पूरा पावन नहीं कह सकते हो, बन रहे हो । अच्छा बच्ची, बाजा बजाओ ।जोड़ी भी चाहिए और एक बाजा भी चाहिए, (किसी ने कहा- हारमोनियम) हाँ, हारमोनियम । फिर कभी कोई भी ऐसी बच्चियों आती है । देखो, याद रख लेना! कोई समय में बड़ी-बड़ी गाने वाली ये जो फर्स्ट क्लास-फर्स्ट क्लास एक्टर्स हैं, एक दिन वो भी आएँगी । वो भी आकर गाएंगी । तो उनके लिए ठुक्कर भी चाहिए । वहाँ बॉम्बे में थे तो ठुक्कर और बाजा बजाने के लिए आता था । जिसका कितना अच्छा ये गीत गाया हुआ है- ''हमने देखा, हमने पाया, कितना मीठा....'' तो ये तो जरूर चाहिएगा बाजा भी अच्छा एक चाहिए, ठुक्कर की जोड़ी भी चाहिए । पीछे जो ले करके भेजेंगे, उनको उनका पैसा भेज देंगे । (किसी ने कहा- बाजा रखा है दिल्ली में) अच्छा है? (जवाब दिया- हाँ) तो फिर ठुक्कर भी लेकर यहाँ भेज देना । दिल्ली में क्या करेंगे? मेला यहाँ लगता है या दिल्ली में? हाँ, जब सागर वहाँ जाएगा, क्योंकि बोलता-चालता है ना, सागर चैतन्य है ना । जब वहाँ जाएगा तो फिर मेला वहाँ लगेगा । जहॉ जाएगा तहाँ मेला लगेगा । क्या सुना? समझा? अच्छा । (बंगाली भाषा में किसी ने गीत गाया) ..कोई कलकत्ते वाले जानते हैं? (किसी ने कहा- हाँ जी बाबा.. जानते हैं) कौन ?. ... अच्छा, जिन्होंने सुना वो यहाँ आवे और सुनावे । (किसी भाई ने कहा- छाया बहन ने जो आपके सामने संगीत सुनाया, उसका अर्थ ये है कि जो युग अभी है हमने उसको भी देखा और जो युग आने वाला है वो भी हमने देखा । जो हमारे पास पास्ट हो गया उसको भी देखा । ये ज्ञान जो हमने यहाँ आकर सुना, उससे हमारी ऑखे खुल गई और हमने देख लिया कि त्रिकाल कैसा? जैसे त्रिकालदर्शी के ऊपर ये गीत गाया गया था कि जैसे बाबा त्रिकालदर्शी हैं वैसे ही त्रिकालदर्शी बाबा ने हम बच्चों को भी बनाया । अब वो ज्ञान हमको हो गया कि हम क्या थे, अब क्या हैं और हमको क्या बनना है । ये इसका सार । ये बच्ची ने आपे ही बनाया है? (हाँ जी) पास्ट प्रेजेन्ट पयूचर के ऊपर इसने अपना ही बनाया है । तो ये ज्ञान की मूर्त ठहरी ना । ये वहाँ बहुतों को समझाती होगी । (किसी ने कहा- बाबा, बच्चों के कारण इसको फुर्सत नहीं मिलती है, लेकिन तो भी अगर कहीं जाती है तो.....) (किसी भाई ने कहा- बहुत पुरुषार्थी है) ये सर्विस करनी है ना । अधो की लाठी जरूर बननी है; क्योंकि दु:खी है ना । तुम अभी दु:खहर्ता-सुखकर्ता हुई हो सो भी 21 जन्म के लिए । है भी बच्चे मातरम्, क्योंकि माताओं ने ही इस भारत को स्वर्ग बनाया है । तो देखो, फर्क हो गया ना । ये शंकराचार्य के सन्यासी लोग ; भले बाप ने समझाया है जब भारत वाम मार्ग में जाता है तो ये सन्यास धर्म ने भारत को बचाया है; क्योंकि भारत है सबसे जास्ती पवित्र; परन्तु फिर जब रावण राज्य होता है तो फिर ये काम चिता में बैठते हैं ना । तो फिर ये सन्यासी लोग भारत को थमाते हैं; परन्तु इस समय तो सभी ये तमोप्रधान बन गए हैं; और फिर उन्होंने बैठ करके माताओं की निन्दा भी की है और ड्रामा अनुसार माताओं को बुलाय भी दिया है । विधवापने का बुलाय दिया है । अभी ये बाप बैठ करके समझाते हैं । क्यों? वो तो बेचारे हठयोग सिखलाते हैं, राजयोग तो सिखला नहीं सकें । राजयोग तो बाप बैठ करके बच्चों को सिखलाते हैं । तो इस समय में जो उनकी भी वृत्ति है, जैसे देवताओं की वृत्ति तमोप्रधान हो गई है तैसे फिर सबकी इस समय में तमोप्रधान हो गई है