29-08-1964     मधुबन आबू     प्रात: मुरली    साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हेलो. स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुलभूषणों को हम मधुबन निवासियों की नमस्ते, आज शानीचरवार अगस्त की उनतीस तारिख है, प्रात: क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।

रिकॉर्ड :-
तकदीर जगाकर आई हूँ. .. ......
ये आत्मा ने कहा । कैसे कहा? इन शरीर के ऑरगन्स द्वारा । कहते हैं- मुझ आत्मा का शांत स्वरूप है । मुझ आत्मा को जब ये शरीर मिलता है तब मैं टॉकी बन जाता हूँ । मुझे शरीर द्वारा अनेक प्रकार का कर्म करना है । कोई भी सतसंग में या स्कूल में या कही भी जब कोई बैठते हैं तो समझते हैं कि बरोबर ये मनुष्य बोलता है, देहधारी बोलते हैं; क्योंकि जब टीचर सामने बैठा होगा महात्मा बैठा होगा, तो वो समझेगा कि ये फलाना महात्मा बैठा है, यह फलाना वजीर बैठा हुआ है, फलाना ये बैठा है । यहाँ ये बातें नहीं हैं । तुम अभी समझते हो कि हम तो आत्मा हैं जरूर, क्योंकि कहा ना ओमशांति-आई एम आत्मा और ये माई ऑरगन्स हैं । आत्माएँ किस द्वारा सुनती हैं? किससे सुनती हैं? अब आत्मा सुनती है अपने परमपिता परमात्मा से, जिसका एक ही नाम है 'शिव' । बच्चों को समझाया गया है ना । तो इस समय में जब ये बच्चे सुनने के लिए बैठते हैं तो हमको कौन सुनाते हैं -जो बेहद का बाप है 'परमपिता वो सुनाते हैं; क्योंकि जब 'परमपिता और मनुष्य कहते हैं तो बुद्धि का योग ऊपर में जाता है । यहाँ अभी तुम जानते हो कि 'परमपिता शिव है । शिव माना बिंदी । आत्मा भी बिंदी तो परमात्मा भी बिंदी, क्योंकि उसको ही परम-आत्मा कहा जाता है, उसको आत्मा कहा जाता है । उनको बच्चा कहा जाता है और उनको बाप कहा जाता है । तो अभी तुमको पढ़ाने वाला कौन? जब भी सम्मुख बैठते हो तो यह समझेंगे कि मैं आत्मा हूँ । शरीर तो नहीं हूँ । मैं आत्मा इस शरीर द्वारा किससे सुनता हूँ? अपने परलौकिक पिता से सुनता हूँ । तो तुमको देही-अभिमानी रहना पड़े । और कोई भी जगह में जबकि कोई भी पढ़ते हैं, सुनते हैं, मनुष्य, मनुष्य को समझाते हैं । कोई गीता पाठी बैठा होगा तो वो गीता को याद कर फिर कहेंगे कि गीता में भगवान ने ऐसे कहा है, ऐसे कहा है । अब गीता वालों को भी यह विचार है कि हाँ, भगवान ने साकार में ये गीता सुनाई थी । बुद्धि में साकार आ जाता है ना । कोई बैठ करके वेद सुनाते हैं । तो जरूर कोई ने वेद पढ़े हैं । वेद मनुष्यों ने रचे हैं । वेद, शास्त्र, ग्रंथ वगैरह मनुष्यों ने बनाए हैं; क्योंकि भगवान निराकार बैठ करके वेद नहीं बनाएंगे । ना, ये मनुष्य बनाएंगे । वेद व्यास । व्यास मनुष्य को कहेंगे । व्यास कोई परमात्मा को नहीं कहेंगे । परमपिता परमात्मा बिंदी है; क्योंकि जैसे साकार बच्चे हैं तो उनको भी साकार का स्वरूप है । हाँथ, पॉव माथा- सब कुछ है ना । तो बाप को भी वो ही है । हाँ, उसमें जरूर छोटा और बड़ा होता है; क्योंकि बच्चे से बाप बनना है और इनको तो बाप कहते हैं- मेरे को तो कोई छोटे बच्चे से बड़ा बाप नहीं बनना है ना । नहीं, मैं तो एवर ही, मेरे को कहते ही हैं 'परमपिता । यहाँ जो पिता बनते हैं, वो छोटे होते हैं फिर बड़े बनते हैं । पहले बालक होते हैं, पीछे बड़े(हाई) होते हैं । मनुष्य ऐसा ही होता होगा ना । अब यह बच्चों को मालूम है कि यह जो पिता है 'परमपिता परमात्मा, वो कोई बालक या बाप नहीं बनते हैं । अब बाप फिर बैठकर समझाते हैं तुम सभी बालक बनकर और बड़े होकर पिता बनते हो, पिता बन करके फिर बालक बनते हो; मैं हमेशा पिता हूँ । मैं बालक नहीं बनता हूँ और मेरा नाम भी एक ही है बस- शिव । तुम बच्चों को ऊपर समझाया गया है कि 84 नाम पड़ते हैं ।जन्म लेते हो । इसलिए बच्चों को ये समझाया है कि मुझे फिर कहते हैं कि परमपिता जो बिंदी रूप है, बड़ा लिंग रूप नहीं है, पूजन के कारण मनुष्यों ने, भक्तिमार्ग वालों ने बड़ा बनाय दिया है । पीछे इतना भी बड़ा बनाते हैं, जैसे मनुष्य होते हैं । कोई-कोई मनुष्य के चित्र बड़ा-बड़ाबनाते हैं । बुद्ध का छत जितना बनाएँगे । अभी ऐसे तो मनुष्य होते नहीं हैं ना । बुद्ध कोई इतना तो बड़ा नहीं था । यह उनको मान देते हैं कि बड़ा था, तो उनका शरीर बड़ा कर देते हैं । वैसे ही, ये भी ऊँचे ते ऊँचा, बड़े ते बड़ा है- परमपिता परम-आत्मा । बाप अपना परिचय देते हैं ना- मैं कोई दूसरा शरीर नहीं धारण करता हूँ । यहाँ भी मेरे को तुम 'शिव' बोलते हो । तुम बरोबर जानते हो कि हम आत्माएँ शिवबाबा की गोद में जाते हैं । अभी हम आत्माएँ भी तो शरीरधारी हैं । अब शिवबाबा भी जब कोई न कोई शरीर धारे तो उनकी गोद में जावें । बच्चे जब आते हैं तो उनको समझाया जाता है कि खबरदार रहना। तुमको शिवबाबा की गोद में जाना है । वो है निराकार; उनकी गोद छोटी-बड़ी नहीं होती है । देखो, ये बच्चियां होती हैं, फिर माता होती हैं, बड़ी हो जाती हैं । पहले इनको कुमारी कहेंगे, फिर माता कहेंगे और मुझे क्या कहेंगे? मुझे हमेशा परमपिता परम-आत्मा यानी परमधाम में रहने वाली आत्मा कहेंगे । फिर उनको कहा जाता है मनुष्य सृष्टि का बीजरूप । है तो आत्मा ना । यह बरोबर आत्मा बैठ करके समझाती है ना; क्योंकि आत्मा को ही नॉलेज है । ये गाते हैं- परमपिता परम-आत्मा, यह हो गया परमात्मा, वो ज्ञान का सागर है । यह कहते कौन हैं? तुम जानते हो कि बरोबर हम आत्माएँ हैं, बाबा परमपिता परमात्मा ज्ञान का सागर, वो हमको ज्ञान सुनाय रहे हैं । तो पहले पहलेपक्के आत्मा-अभिमानी बनना चाहिए । वो जो आत्मा भी है, शरीर में है, पर देह-अभिमान है । होना चाहिए आत्म-अभिमान; परंतु ड्रामा-अनुसार तुम बच्चों को देह-अभिमानी बनना है । समझा ना । अभी जबकि तुम बच्चों को वापस जाना है तो तुमको देही-अभिमानी बनाता हूँ । देही-अभिमानी और कोई भी बनाय नहीं सकेंगे । ये बाप आए हुए हैं सभी अपने बच्चो को, तो बच्चे कहते हैं न । तुम बच्चे सभी बच्चे हो । ये भी बच्चे हैं, ये भी बच्चे हैं; क्योंकि आत्मा वर्सा लेती है । बाबा ने समझाया था कि अभी आत्मा परमपिता परमात्मा यानी डाडे से वर्सा लेती है । तुम कहेंगे कि हम आत्मा डाडे से वर्सा लेती हैं । ये भी कहेंगी- हम आत्मा डाडे से वर्सा लेती हैं । समझा ना । जब जीवात्मा है तो फिर तुम जानते हो कि माताओं को वर्सा नहीं मिलता है, बच्चों को वर्सा मिलता है । कन्याओं को वर्सा नहीं मिलता है, उनको मिलता है ।तुम आत्माएँ हो । तुम हरेक को हक है, मुझ अपने परमपिता परमात्मा से वर्सा लेने का । जिसके थे, हैं; क्योंकि तुम कहते भी रहते हो ना- ओ गॉड फादर । अरे, यह तो तुम जन्म-जन्मांतर कहते आते हो- ओ परमपिता परमात्मा । इसको प्रेयर कहते हैं । हरेक मनुष्य बाप को ओ गॉड' कहते हैं । यह है सच्ची-पच्ची । इसको प्रेयर कहते हैं प्रे अग्रेजी अक्षर है, परंतु याद करते हैं, उपमा करते हैं । प्रे को उपमा कहते हैं । ओ गॉड फादर' किसने कहा? क्योंकि वो तो जानते हैं कि हमारा शरीर का बाप है । यह फिर कौन है जो बुलाते हैं? ओ परमपिता ऐसे बुलाते हैं ना । अच्छा, जब आत्मा ऊपर बुलाती है, तो जरूर आत्मा है जो बुलाती है; क्योंकि.. बरोबर वो तो शरीर है पिता का; परंतु वोजो अविनाशी बाप है, उनको कभी नहीं भूलते हैं, भक्तिमार्ग में भी नहीं भूलते हैं । क्यों यहाँ ऐसे पुकारते हैं? क्योंकि रावण का राज्य है ना । इसलिए यहाँ दुःख ही दुःख है । जब से रावण राज्य शुरू होता है, तब से तुम्हारी प्रेयर शुरू होती है । उसको 'याद करना कहा जाता है; परंतु याद तो पिता को ही करना चाहिए ना । वर्सा भी तो बाप से मिलना है ना । और तो कोई को याद नहीं करना होता है ना' परंतु यहाँ तो बहुतों की याद दिलाते हैं । गुरू तो याद से भुलाय देते हैं । वो बोल देते हैं- सर्वव्यापी । फिर तो गॉड किसको कहें और फादर किसको कहें? तो ये बच्चे जानते हैं कि बरोबर अभी बाप आकर ये घड़ी-घड़ी कहते हैं- बच्चे, देही-अभिमानी भव । यानी अभी तुमको डायरेक्संस मिला है कि उठते-बैठते, खाते-पीते-सोते मुझे याद करो । तो कहेंगे- मैं आत्मा अभी खा रहा हूँ बरोबर बाबा के याद में । तो क्या होगा? याद से हमारा जो विकर्म है, विनाश होगा । मेहनत है बड़ी भारी । योग कोई मासी का घर नहीं है । भले कोई देवी को याद किया, कोई कृष्ण को याद किया, कोई फलाने को याद किया, कोई विकारी गुरू को याद किया, क्योंकि विकारी गुरू भी मिलते हैं ना, फिर वो भी कहते हैं- हमको याद करो । ऐसे भी होते हैं, कहते हैं कि जब तुमको कोई भी आफत या दुःख आए तो मेरी याद करो । ऐसे भी कह देते हैं । गुरुओं का फोटो लगाय देते हैं । अब तुमको कोई भी चित्र से काम नहीं रहा । विचित्र से विचित्र कहो । जिसका चित्र है, परंतु है असल में विचित्र । आत्मा विचित्र है ना । जैसे बाप विचित्र, तैसे बच्चे भी विचित्र । विचित्र माना उनको देह नहीं, चित्र नहीं । चित्र तो मनुष्य का, आत्मा का फिरता रहता है ना । एक दफा यह फलाना चित्र मिला उनके फलाने नाम का । तो इससे सिद्ध करके बताते हैं कि तुम ऐसे नहीं कहो कि परमपिता परमात्मा सर्वव्यापी है । तुम तो उनको बहुत चित्र दे देते हो । फिर मुसीबत तो यह तुमने लगाई है कि कुत्ते, बिल्ले सबका चित्र दे देते हो । देखो, कितनी तुमने ग्लानि की है! तभी कहते हैं ना- ''यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत' यानी ये जो देवी-देवता धर्म वाले या कोई भी धर्म वाले यानी हिंदू मुसलमान वगैरह, ये सब मेरी एक ही ग्लानी करते हैं कि तुम सर्वव्यापी हो । तो यह ग्लानि हुआ ना, डिफेम हुआ । तो डोरापा देते हैं । बोलते हैं बच्चे, तुमने मुझे पत्थर, भित्तर ठिक्कर में लगाय दिया और कभी तो कहते हो कि नहीं, बाबा का एक ही अवतार है; क्योंकि बाप है, हम सब बच्चे हैं, तो एक ही बार आते होंगे । फिर कभी कह देते हो कि 84 या 24 अवतार । वो है ना- कच्छ अवतार, मच्छ अवतार, वाराह अवतार, परशुराम अवतार । देखो, कितनी बाते बनाई हुई हैं । ....रीयल तो नहीं है ना । फिर इतना कहकर करके और फिर कह देते हैं कि हाँ, सर्वव्यापी है- कुत्ते में, बिल्ले में है । तुम बच्चों ने तो कमाल कर दिया । बाप तुम बच्चों को बोलते हैं । आत्माएं सुनती हैं । अभी ऐसे ही समझो कि मेरी आत्मा इन ऑरगन्स द्वारा सुन रही है । बाबा इनका लोन लिए हुए हैं; क्योंकि बाप कहते हैं- नहीं तो प्रकृति के आधार बिगर मैं कैसे बैठकर तुमको ज्ञान दूँ? मैं कैसे तुमको राजयोग सिखलाऊँ? निराकार है ना । भगवान हमेशा निराकार को ही कहा जाता है । ब्रहमा, विष्णु, शंकर को तो मनुष्य कहा जाता है । हम देवता कहते भी हैं- ब्रहमा देवताय नम:, विष्णु देवताय नम:, शंकर देवतायनम: । तीनों सूक्ष्मवतन में । फिर कहते हैं परमात्माय नम: । फिर कहेंगे शिव परमात्माय नम: । वो क्रियेटर हो गया । ब्रहमा, विष्णु शंकर का भी क्रियेटर हो गया ना ।......बरोबर पहले-[पहले ब्रहमा, विष्णु, शंकर का साक्षात्कार कराते हैं, तो सुक्ष्मवतन की रचना रचते हैं । अभी तुम बच्चों ने समझा कि बाप कब आते हैं, क्योंकि बाप को आना ही है पतित दुनिया में । ऐसे नहीं कि कोई विनाश होता है उसके बाद कोई कुछ होता है । वो जो कृष्ण बच्चे को पीपल के पत्ते पर दिखलाते हैं कि महाप्रलय हुई थी तब सागर में पीपल के पत्ते पर... ऐसी कोई बातें नहीं हैं । यह बाप ने समझाया है कि श्रीकृष्ण, जो सम्पूर्ण फर्स्ट प्रिंस ऑफ विश्व है सो भी विश्व का यहाँ भारत को कहा जाता है । जब भारत में इनका राज्य होता है, तो उनको कहा जाता है 'विश्व का मालिक; क्योंकि और तो कोई है नहीं । अद्वैत हैं देवताएँ पीछे द्वैत हो जाते हैं, अनेक प्रकार के धर्म हो जाते हैं । तो बाप बैठकर बच्चों को समझाते हैं । बच्चों को यही समझना है, बाबा इस शरीर में आ करके हम आत्माओं को पढ़ाय रहे हैं । देखो, कितना अच्छी तरह निश्चय में बैठना चाहिए । अब बाप कहते हैं, मैं भी अशरीरी हूँ और जो मैं सुनाता हूँ सो भी धारणा आत्मा में करनी है । इसलिए अपन को आत्मा निश्चय कर और धारण करो और फिर शरीर द्वारा सुनाओ । मैं भी ज्ञान का सागर हूँ ही । मैं कोई पढ़ा-लिखा नहीं हूँ न कोई बैठ करके शास्त्र पढ़ा है । जो भी बैठते हैं, वो शास्त्र पढ़ते हैं फिर बैठ करके सुनाते हैं । उन्हों की बुद्धि में यह होगा ना, मैं आज वेद ग्रंथ गीता, कोई पुस्तक की बात सुनाता हूँ; क्योंकि पुस्तक पढ़ा हुआ है । यहाँ तो ऐसे नहीं है ना । यह तो खुद ही ज्ञान का सागर है । हाँ, ये जरूर है कि जब कहते हैं कि मैं इन सभी वेदों, ग्रंथों और शास्त्रों को जानता हूँ मैं समझता हूँ कि इनमें क्या लिखा हुआ है! इनमें सभी गपोड़े लिखे हुए हैं । तुम्हारा पहले नम्बर का शास्त्र है- सर्व शास्त्रमई शिरोमणी श्रीमतभगवत गीता । श्रीमत भगवत भगवान, भगवान की तो कहा जाता है गत मत न्यारी है । यूं कहते जाते हैं- हे ईश्वर, हे बाबा । ऐसा है नहीं । ईश्वर नहीं, भगवान नहीं, एक बाबा कहना चाहिए; क्योंकि ईश्वर प्रभु परमात्मा ये सब कहने से ये बाप है, इनसे वर्सा मिलना है वो मनुष्य भूल जाते हैं । भगवान कहने से भी वो लवली बाप की प्रीत अनुभव नहीं होती; क्योंकि हम क्रियेशन तो हैं ना । किसकी क्रियेशन हैं? जरूर कहेंगे क्रियेटर की । तो बरोबर हम आत्माएँ सभी जीव-आत्मा बनी हैं क्रियेटर से । उसने क्रियेट किया है हमको । क्रियेटर तो कोई होगा ना । तुम हरेक बच्चे तो क्रियेटर नहीं हो । बाबा बच्चों को समझाते हैं- देखो, यह पुरुष हद का ब्रहमा है । यह हद का ब्रहमा क्रियेटर है । क्या करते हैं? मुख से स्त्री को लेते हैं । यह मेरी स्त्री है, उसको कहा जाता है मेरी मुखवंशावली । उनको तो मेरी मुख्वाशावली।अच्छा, पीछे क्रियेटर बनते हैं उन द्वारा; देखो यह बाबा भी कहते है- यह है मेरी मुखवंशावली, मैं इनसे क्रियेट करता हूँ । वैसे ही पुरुष भी । उनको स्त्री तो चाहिए ना । नहीं तो क्रियेट कैसे करें? बाबा को भी कहते हैं- मात-पिता चाहिए ना । माता कहाँ से ले आयें? तो इसमें प्रवेश करके एडॉप्ट करते हैं । फिर कहते हैं- हाँ बरोबर, तुम मात-पिता... । अभी बाप इन द्वारा ब्रह्मामुखवंशावली रचना रचते हैं । यह माता हो गई । किसके बच्चे बने हो? हम ईश्वर के बच्चे बने हैं ब्रहमा द्वारायानी बाप के बच्चे बने हैं ब्रहमा द्वारा । स्त्री चाहिए ना फिर! यह स्त्री हो गई ना । तो बाप समझाते हैं यह बहुत वण्डरफुल चीज है । यह कोई साधु-संत-महात्मा द्वारा शास्त्रों में नहीं लिखा हुआ है । मैं सभी वेदों, ग्रंथों, शास्त्रों, सारी दुनिया का राज जानता हूँ । नहीं तो मुझे नॉलेजफुल क्यों कहें? कहते हैं ना नॉलेजफुल जानीजाननहार । मनुष्य समझते हैं कि अंदर की जानने वाला है । एक तो कहते हैं- अंदर की जानते हैं । जैसे थॉट रीडर्स होते हैं ना । तो ये लोग समझते हैं कि बाप शायद थॉट रीडर है, हम सभी के दिलों की बात को जानने वाला । इतने कैसे थॉटस रीडर बन सकते हैं? बाबा कहते हैं- यह भी तो मैं नहीं हूँ थॉट रीडर मैं नहीं हूँ जो मुझे कहते हैं अंदर की जानने वाला । अरे, नहीं-नहीं । मैं मनुष्य सृष्टि का बीजरूप हूँ इसलिए यह जो मेरा झाड़ है, मैं बीज ऊपर में हूँ और यह उल्टा झाड़ है । मैं जो बीजरूप हूँ सो तो चैतन्य हूँ । चैतन्य भी हूँ, सत्य भी हूँ । सत् चित् आनन्द स्वरूप, ऐसे कहते हैं ना । भले कोई ने महिमा थोड़ी-बहुत दे दी है; पर यह तो सत् है, चैतन्य है । बरोबर सबकी आत्माएँ सत् हैं और चैतन्य हैं । हैं तो जरूर ना । आत्माएँ सत् हैं । यह शरीर असत् है, घड़ी-घड़ी यह मरता है, फिर दूसरा जन्म लेता है । आत्मा तो नहीं मरती है ना । आत्मा को यह नॉलेज ग्रहण करना है । समझा ना । कहते हैं कि आत्मा निर्लेप है । अभी निर्लेप बाप बैठकर समझाते हैं- मैं परमपिता परमात्मा निर्लेप हूँ यानी कि पाप-पुण्य का, दुःख-सुख का, स्वाद वा नस्वाद कडुवा-मीठा ये मेरे मे लेप-छेप नहीं है, तुम्हारे में है । तुम्हारी आत्माओं मे है । मैं निर्लेप हूँ यानी मेरे में ये नहीं है । मैं हूँ ज्ञान का सागर, यह जानता हूँ कि मैं इन दुःख-सुख से या खारा-खट्‌टा से निर्लेप हूँ । है बाप निर्लेप और मनुष्य कह देते हैं- अरे, आत्मा निर्लेप है कि परमात्मा है । देखा ना, कहाँ फर्क आकर पड़ा है मनुष्यों की बुद्धि में ....जैसे-जैसे ने एक कहा वो मनुष्य पीछे फॉलो कर लेते हैं । यह बाप कहते हैं कि बच्चे, निर्लेप जिसको कहा जाता है वो मैं हूँ । मैं दुःख-सुख से न्यारा हूँ । मैं इन खट्टे खारे की मैं भले इसमें हूँ तो भी मेरे को खट्‌टा-खारा लगेगा नहीं; क्योंकि मैं निर्लेप हूँ । समझा ना । फिर ऐसा नहीं है कि मैं ज्ञान का सागर हूँ । मैं अलग हूँ ना । तुम्हारा यह जो भी खान-पान, यह इनकी आत्मा को होता है कि यह खट्‌टा है, मीठा है, मैं नहीं कहता हूँ खट्‌टा-मीठा क्योंकि मैं इन बातों में निर्लेप हूँ । इतना जरूर है कि मैं ज्ञान का सागर हूँ । मुझे यह सारे सृष्टि चक्र का, जो तुम बच्चों को बैठ करके पढ़ाता हूँ, वो मेरे में ज्ञान है । किनको पढ़ाता हूँ? आत्मा को पढ़ाता हूँ । हरेक को ये समझना पड़े- मैं आत्मा हूँ परमपिता से सुन रही हूँ । अब यहाँ तो कोई सतसंग ऐसा हो ही नहीं सकता है, जिनमें ये सभी बातें समझने-समझाने वाला कोई हो । तो निश्चय करना चाहिए ना कि यहाँ तो बरोबर भगवानुवाच है । भगवान तो एक को ही कहेंगे ना । गॉड इज वन, उसकी क्रियेशन इज वन । नहीं तो कहाँ लिख दिया- पाताला पाताल, आकाशा आकाश सृष्टि बता दिया । इसलिए यह हिन्दू शास्त्रों में जो गड़बड़ मची है ना, वो बिचारे ऊपर में सृष्टि ढूंढ रहे हैं । तारों में और चंद्रमा में बिचारे मत्था मार रहे हैं, क्योंकि एक तो यहाँ से ही गया है कि ईश्वर सर्वव्यापी है । उल्टा हुआ ना' क्योंकि द्वापरवालों ने, पीछे जो आए हैं, वो एक तो कहते रहते है सबको कि पहले पहलेहैभारत मुख्य । भारत को कहा जाता है अविनाशी खण्ड । अविनाशी खण्ड क्यों- जैसे बाप अविनाशी आत्मा है, वो यहाँ जन्म लेते हैं । तो यह किसकी बर्थ प्लेस है? पतित-पावन की । जो हम सबको पतित से पावन बनाते हैं उनका यह बर्थ प्लेस है । यह बहुत ऊँचा खण्ड है, परंतु वो बाप का नाम प्राय:लोप कर गीता का नाम । है भी बरोबर यहाँ बाप का मंदिर । पीछे कृष्ण का भी मंदिर है । अभी यह तो समझना चाहिए ना कि कृष्ण का मंदिर वो है बाप का मंदिर। यह जरूर बच्चा ठहरा । उनको कहा ही जाता है बाबा । यह जरूर बच्चा ठहरा । तो बरोबर इस कृष्ण बच्चे को, जो स्वर्ग का बच्चा है, इतनी जो इनकी प्रालब्ध है वो तो जरूर बाप ने दी होगी । देखो, फर्क है ना एकदम । शिवरात्रि के पीछे आती है कृष्ण जन्माष्टमी । भले पीछे ये सभी आते हैं- होली, रखड़ी बंधन...फलाना । शिवबाबा के पीछे ये सभी त्योहार आते हैं । यह तो बाप ने बैठकर समझाया ना । नहीं तो मनुष्य क्या जानें त्योहारों से, सन्यासी क्या जाने इन सब बातों से । वो तो एक धर्म हुआ ना । बाप तो अभी कहते हैं बच्चे, ये देह के जो भी सभी धर्म हैं, भले कोई भी हो, गुजराती हो, मराठी हो, मारवाड़ी हो, पंजाबी हो, फलाना हो, ये सब बातें अभी छोड़ दो । पीछे ये सब तुम्हारे ऊपर नाम आए हैं । कोई जन्म में पंजाबी होगा, कोई जन्म में मारवाड़ी होगा, कोई जन्म में गुजराती होगा । कोई समय में तुम सन्यासी भी होंगे; क्योंकि सन्यासी भी भ्रष्ट हो पड़ते हैं, गृहस्थ में जन्म ले लेते हैं । कोई जा करके सन्यासियों मे भी जन्म लेते हैं । ऐसे ही जन्म फिरते रहते हैं । तो बाप बैठ करके बच्चों को समझाते हैं, बच्चों को यह निश्चय रखते हैं, हमारी आत्मा इस समय में परमपिता परमात्मा से ये सभी कुछ जो नॉलेज है सो पढ़ रही है इन ऑरगन्स द्वारा । बाहर में कोई भी स्कूल वगैरह नहीं है जो ऐसे बैठ करके समझे कि हम आत्मा हैं और बरोबर पाप-पुण्य के लेप-छेप में आ गए, इसलिए तो हमको तमोप्रधान आत्मा कहते हैं और पहले हम सतोप्रधान थीं, वहाँ रहने वाले । आत्माके लिए कहा जाएगा ना । खाद आत्मा में पड़ती है ।.......बाबा कहते हैं- मेरे में तो कोई खाद नहीं पड़ती है । मैं तो एवर ही सच्चा सोना हूँ । तो तुम्हारी जो आत्मा. जिसको सोना भी कहा जाता है, उनमे अलाय पड़ती है, खाद पड़ती है । बरोबर सबमें खाद पड़ करके और सभी आयरन एज बन गए हो । तो अभी तुमको यहाँ पढ़ाई कौन पढ़ाते हैं? पहले ही जब आवे, बरोबर यह मम्मा पढ़ाती है । मम्मा ने किससे सुना? मम्मा की बुद्धि एकदम ऊपर में चली जाएगी- शिवबाबा से सुना । शिवबाबा ने कहाँ से सुना? शिवबाबा तो खुद ही ज्ञान का सागर है । यह बहुत समझ की बात है । अच्छी तरह से और बड़े ध्यान से समझना है । वास्तव में जो समाझ होते हैं.. ..............बरोबर बाबा हमको पढ़ाते हैं । बस, हम बाबा का बने । बस, बाबा का बने, जैसे कि जीवनमुक्त बनना है । बाबा से जीवनमुक्त बनना । और कोई भी मनुष्य मात्र से कोई भी जीवनमुक्त नहीं बन सकते हैं; क्योंकि जीवनमुक्त माना ही फिर इस शरीर में आना और सुख भोगना । अभी जीवनबंध है; परंतु पहले तो हमको मुक्तिधाम में जाना है ना । तो मुक्ति भी सबको मिलती है । जीवनमुक्ति भी सबको मिलती है; परंतु जीवनमुक्ति तो नम्बरवार हैं । कोई सतयुग में आएगा, कोई त्रेता में आएगा, कोई द्वापर में आएगा, परंतु आएगा तो आत्मा । मुक्त तो सभी आत्मा होतीहै ना । यह जीव की आत्मा, उन सबको दुःख से मुक्त कर देते है । इसको कहा ही जाता है लिबरेट करने वाला । बाबा कहते हैं- मैं आता हूँ तुम बच्चों को लिबरेट करके फिर जीवनमुक्त बनाता हूँ कि तुम पहले भी जब सतोप्रधान में आएँगे, जो भी आए, भले पिछाड़ी में आए; क्योंकि जन्म तो तुम 84 लेते हो, 80 भी लेते हो, 5 भी, 2 भी लेंगे । दुबारा जन्म वाला भी होगा । जो पहले आएगा तो ऐसे में सुख भी देखेगा और फिर वही फिर दु:ख भी । जीवनमुक्त तो सब बनते है ना । फिर उसको कहा जाता है कि सद्‌गति देने वाला सिर्फ एक राम; क्योंकि इस समय में सभी दुर्गति को हैं । साधु, संत, महात्मा जो धर्मस्थापक हैं । बुद्ध जिसको कहा जाता है, क्राइस्ट जिसको कहा जाता है, धर्मस्थापक, वो सभी पार्ट बजा-बजाकर, पुनर्जन्म लेते-लेते आ करके अब तमोप्रधान बने हैं । फिर मैं बैठ करके सबको इन दुःख रूपी जन्म से छुड़ाता हूँ इसलिए कहा जाता है अंग्रेजी में लिबरेटर अथवा मुक्तिदाता, जीवनमुक्तिदाता । तो बरोबर दोनों ही मिलती है । मुक्ति माना ही अपने घर में जाना । साइलेंस वर्ल्ड में जाना या अपने निराकार या निर्वाणधाम में जाना । तुम समझते हो ना, बाप निर्वाणधाम में से आया हुआ है, फिर जिसको परलोक भी कहा जाता है । परलोक दो हुए । एक शांति का लोक, एक सुख का लोक । इसको परलोक नहीं कहेंगे । परलोक तुम्हारी बुद्धि में दो हैं । एक हमारा जो ऊँच ते ऊँच लोक है, जिसको परे ते परे कहा जाता है । फिर दूसरा परलोक यह लोक, क्योंकि तुम परलोक को भी याद करते हो ना । लोक को भी याद करते हो, निर्वाणधाम को भी याद करते हो, स्वर्ग को याद करते हो; परंतु ऐसे नहीं कि स्वर्ग कोई ऊपर में है । नहीं, ऊपर में तो निर्वाणधाम है । स्वर्ग-नरक फिर यहाँहोते है । तो बरोबर इस समय में सभी कुम्भीपाक नरक में पड़े हुए हैं । इसको कुम्भी पाक नरक कहा जाता है, क्योंकि अभी पिछाड़ी है ना । एक- दो में बहुत दु:ख खाते हैं, उसको ही कुम्ही पाक नरक कहा जाता है । गरुड़ पुराण में है ना । गरुड़ पुराण में भी रोचक बातें हैं । क्यों यह रोचक बात बैठ करके दिखलाई उन्होंने? ताकि मनुष्य डरे । तुम पाप करेंगे तो गधे का जन्म लेंगे, फलाना बनेंगे । तो पाप से बचे, इसलिए ये मनुष्यों ने बैठ करके बनाए हैं । अभी ये जो बनाए हैं, फिर भी बनेंगे । यह तुम्हारी गीता तो होगी नहीं फिर । फिर भी वही गीता .. क्योंकि शास्त्र तो चाहिए ना बड़े-बड़े । ये शास्त्र बनाना शुरू होते ही हैं द्वापर से जबकि भक्तिमार्ग शुरू होता है, परन्तु चाहिए तो सही ना । इसलिए उन्होंने बैठ करके बनाए हैं । दूसरे जो धर्म वाले हैं वो जानते हैं कि बरोबर हाँ, फलाने टाइम में इब्राहिम आया । बस, और तो कोई दूसरा नहीं है ना ऊपर में धर्म स्थापन करने वाले । बाप तो कहते हैं कि मैं आता हूँ इन ब्रहमा द्वारा ब्राहमण धर्म स्थापन करने । फिर ब्राहमण धर्म को सूर्यवंशी और क्षत्रियवंशी पद मिलता है ।........पीछे दो कल्प में, दो युग में तो कोई धर्म स्थापन करने वाला आता ही नहीं है । ........ अपन को देवी-देवता कहलाय नहीं सकते हैं । पतित कैसे देवी-देवता कहलाएँगे? पतित कैसे अपन को श्री कहेंगे? श्री माना श्रेष्ठ । तो बाप कहते हैं- मुझे कहते हैं ना 'श्री-श्री जगतपिता, फिर 'श्री-श्री जगतमाता । श्री-श्री तो उनको ही कहा जाता है ना । वो फिर श्रेष्ठ बनाते हैं । श्रेष्ठ सिर्फ कहा जाता है देवी-देवताओं को । पीछे वो भ्रष्ट हो जाते हैं । अभी फिर इनहिन्दुओं को, जो भारतवासी हैं, जो असुल देवी-देवताओं के पूजने वाले हैं वो भ्रष्ट बन जाते हैं । ऐसे भ्रष्ट बन जाते हैं, वो देवी-देवता के धर्म के हैं, सब भूल जाते हैं । तो प्राय:लोप हो जाते हैं । चित्र रहते हैं, परंतु कोई नहीं समझते हैं कि यह आदि सनातन देवी देवता धर्म कब और किसने स्थापन किया । सतयुग की आयु ढेर लाखों बरस लगाय दिया । तो इसलिए कहा जाता है कि वो जाते हैं, चित्र रह जाते हैं, जैसे आटे में लून । भले सर्व शास्त्रमई शिरोमणी गीता.................. 100% सब कुछ झूठ नहीं बनता है, कुछ रहता है; इसलिए गाया जाता है- आटे में लून । श्रीमदमगवत गीता में कुछ न कुछ है । यादव, कौरव, पांडव, ये सभी नाम तो हैं ना । कहते हैं बाबा- सर्वधर्मान परित्यज्य' । यह अक्षर ठीक है । पर कहता कौन है? श्रीकृष्ण.... । नहीं,......बिल्कुल झूठ । भगवान बाप अभी कहते हैं- बच्चे, देह के सभी धर्म भूल अपन को आत्मा समझो और अपने बाप को याद करो, क्योंकि अभी खेल पूरा होता है । देखते नहीं हो विनाश हो रहा है और फिर गेट्‌स खुल रहे हैं? किसके गेट्‌स खुलेंगे? मुक्ति फिर जीवनमुक्ति । तो बरोबर गति-सद्‌गति, मुक्ति-जीवनमुक्ति, दाता फिर एक है । यहाँ तो देखो, कोई को कहेंगे- यह तो जगतमाता । कोई ऐसे-ऐसे होते हैं जिनको टाइटिल देते हैं जगतमाता । फिर कोई अपने को गुरू कहते हैं- हम जगतगुरू हैं । अब ऐसे नहीं कि सभी कोई कह सकते हैं कि जगतमाता पिता, गुरू, टीचर वगैरह एक है । नहीं, यहाँ बहुत हैं, जो उनको महिमा देते हैं- यह है जगतमाता । कोई पढ़े होंगे ना......जैसे कोई प्रेसिडेंट की बूढ़ी स्त्री होगी तो उनको भी जगतमाता कह देंगे । यहाँ भारत में ऐसी बहुत ढेर-ढेर जगतमाता हैं । श्री-श्री जगतगुरू भी बहुत हैं; परन्तु ऐसा तो कोई नहीं मिलेगा, जो जगतपिता भी हो, जगतमाता भी हो जगतगुरु भी हो और जगत शिक्षक भी हो । वो तो कोई नहीं, वो तो एक ही होते हैं ना । भले मनुष्य अपने को नाम बहुत रखवाते हैं । मद्रास में नाम हैं- भक्तवत्सलम भक्तदर्शनम । ऐसे-ऐसे नाम भी दे देते हैं ..से तो लक्ष्मी नारायण भी अपने को कह दें.... । नहीं तो कहाँ श्री लक्ष्मी और नारायण, कहाँ वो अपन को विकारी टटदू कह देते हैं! तुम्हारा नाम क्या है? सो भी आजकल श्री लक्ष्मी-नारायण । देखा, आजकल श्री ने टाइटिल दे दिया है सबको । कुत्ते-बिल्ली को भी श्री कहते हैं । मुसलमान-हिंदू सबको श्री कह देते हैं । अभी यह श्री तो सिर्फ भारत के देवता बनते हैं । और तो कोई इतना श्रेष्ठ बनते ही नहीं; क्योंकि श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बाप, फिर श्रेष्ठ की रचना देवताओं की । फिर जनावर के ऊपर भी श्री-श्री टाइटिल दे दिया कुत्ते-बिल्लियों के ऊपर भी श्री । नहीं तो श्री माना ही श्रेष्ठ । श्रेष्ठ कौन बनाते हैं? श्री-श्री । श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ सो तो हैं ही देवताएँ । बाप कहते हैं- अभी असुरों ने, जो बिल्कुल ही तमोप्रधान बन गए, उन्होंने बैठ करके अपन को श्री टाइटिल दे दिया है । नहीं तो आगे मिस्टर एण्ड मिसेज वगैरह कहते हैं, अभी तो सबको श्री टाइटिल दे दिया है । इसको ही कहा जाता है ना धर्मग्लानि । बिल्कुल बुद्धू बन गए हैं । अपने आदि सनातन देवी देवता धर्म को भूल, फिर वही टाइटिल बैठ करके अपन को देते जाते हैं । उसमें वो साधु-सन्यासियों को भी मजा आ गया है । तो वो भी अपन को श्री-श्री 108 कहने लग पड़े हैं । बाबा कहते हैं- बच्चे, ये धर्मग्लानि है, इसलिए ये पहले ही कहते हैं । बाबा कहते हैं कि यह जोतुम्हारा गुरु है, समझते हो कि हमारी सद्‌गति करेंगे; क्योंकि ऊँच ते ऊँच मर्तबा गुरू का रखा जाता है ना । गुरू है सदगति करने वाला । अब ये गुरू तो तुम्हारी सद्‌गति नहीं कर सकेंगे । सद्‌गति तो सबकी होनी है एक से । इसलिए गाते भी हैं सद्‌गति दाता एक राम । राम क्यों नाम रख दिया? क्योंकि रावण नाम है ना यहाँ का माया का । तो राम कह दिया है, बाकी मेरा नाम, भले राम भी कहो, तो भी है तो बिंदी निराकार ना, क्योंकि वो जो सीता वाला राम है, वो तो अपना सुख का वर्सा लेते हैं । वो कभी कोई दुःख नहीं देते हैं । ये तो बच्चों ने बैठ करके चिटचेट लगाई है, जैसे कि शास्त्रों में । तो बाप कहते हैं- ये भारत के शास्त्र सभी झूठे हैं । बाकी धर्म वाले जानते हैं कि बरोबर हमारा धर्म फलाने ने फलाने सम्वत में रचा । अच्छा, फिर बाकी जो आदि सनातन देवी देवता असुल मुख्य भारतवासी हैं, वो बिचारे भूल गए हैं । ये देवताओं के पास जाते तो हैं, परंतु बिचारों को पता नहीं है- श्री लक्ष्मी नारायण ने कब राज्य लिया? कैसे लिया? किसने धर्म स्थापन किया? भला किसने इनके कर्म बनाए? इतने ऊँचे कर्म कोई ने तो बनाए होंगे ना । ये सतयुग के आदि में, यह कलियुग अंत में देखते हो क्या-क्या है । अभी तुम महसूस करते हो कि आज क्या है, कल क्या है । आज बिल्कुल नरक कौड़ी तुल्य, कल लक्ष्मी नारायण की राजधानी- यह कैसे होती है? जरूर कुछ तो होगा ना । तो कोई भी नहीं जानते हैं, सिर्फ अब तुम जानते हो कि बरोबर बाप फिर से आदि सनातन देवी देवता धर्म की सैंपलिंग लगाय रहे हैं । ये कांग्रेस लोग तो वो झाड़-जंगल की सैपलिग लगा रहे हैं । आगे ये सैपलिंग नहीं थे । अभी देखो, बाबा यहाँ आए हैं ना, ये देवी-देवताओं की सैम्पलिंग लगा रहे हैं । कितनी गुप्त बात है । कहते हैं जोजो भीआदि सनातन देवी देवता धर्म वाले हैं, सो अभी सभी असुर बन गए हैं । वही फिर आ करके हमारे से वर्सा लेंगे । इसको कहते हैं सेपलिंग । अभी देवी-देवता अपने झाड़ को छोड़ करके किन-किन झाड़ों में लग गए, ट्रांसफर हो गए । एक तो हिन्दू हिंदू माना हिंदुस्तान के धर्म में चला गया । हिंदुस्तान के धर्म में तो नहीं जाना चाहिए ना । हिंदुस्तान तो रहने का स्थान है ।.. .. ऐसे थोड़े ही कि यूरोप के रहने वाले कोई यूरोपियन धर्म के हुए । वो तो क्रिश्चियन धर्म के हैं ना । हिंदुस्तान में रहने वाले अपन को हिदू कहते हैं । बड़े वण्डर की बात है 1 उनको कुछ समझ में आता ही नहीं है कि हम हिंदू धर्म कहाँ से लाए? कोई से पूछो कि हिंदू धर्म किसने स्थापन किया । कोई को भी पता नहीं है । किसको भी पता नहीं है, हिंदू अक्षर कहाँ से आया । हिंदू अक्षर तो मुसलमानों ने आ करके रखा है, जिन्होंने हिंदुस्तान कहा और अंग्रेजों ने आ करके इंडिया रखा और असुल में इसका नाम भारत है । यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत । अभी गीता में भगवानुवाच (है) और उन्होंने इसका नाम हिंदुस्तान रख दिया, इंडिया रख दिया । अच्छा, बाप तो ये सभी बातें समझाते हैं । किसने पढ़ाया? हम आत्माओं को, अहम् आत्माओं को परमपिता परमात्मा पढ़ा रहा है और यह तो कोई भी नहीं समझते होंगे दूसरी जगह में, सिवाय तुम्हारे में, सो भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार । घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं । यहाँ बैठे हुए फिर देह का अभिमान आ जाएगा । ये नहीं समझेंगे कि मैं आत्मा हूँ । बाबा हमको फिर से पढ़ाय रहे हैं । हम इन कानों से सुन रहे हैं । और कोई सतसंग में ऐसे तो नहीं होगा ना । बाबा इन ऑरगन्स द्वारा पढ़ारहे हैं । पहले इनकी ऑरगन्स सुनती है । जरूर सुनते है, ये भी तो जरूर पढ़ते होंगे । बरोबर ये पढ़ते जरूर हैं, पढ़ाते भी जरूर हैं और इनकी आत्मा याद में भी रहती होगी । इसलिए तो पद ऊंचा पाती है ना । देखो, मम्मा भी पद पाती है । यह भी पद पाते हैं बरोबर । बाबा ऐसे कहेंगे ना- यह भी जो इनमें बैठा हुआ है, इनकी आत्मा भी तो पढ़ती है ना । यह भी कहेंगे- मैं भी तो बाबा से पढ़ता हूँ ना । हाँ, इसमें बाबा का प्रवेश है; इसलिए यह जहाँ भी जाएगा, बच्चे बैठेंगे और कहेंगे बापदादा आया हुआ है । बस, बाप निराकार है, दादा साकार है । दोनों इकट्‌ठे हैं । ऐसे तो कोई बापदादा हो ही नहीं सकते हैं । बाप भी मनुष्य, तो दादा भी मनुष्य । फिर मनुष्य, जो दादा होते हैं, जिसको बाबा कहते हैं, उनसे वर्सा लेते हैं । यहाँ तो देखो, दादा साकारी बाबा निराकारी । हम बाबा से, साकारी बापदादा द्वारा वर्सा लेते हैं; क्योंकि ... दादा डाडा बाबा, सबके लैग्वेज में अलग-अलग होते हैं ना । तो बच्चों को कितना समझना है कि कितना देही-अभिमानी आत्मा हूँ । अभी हम 84 चोला पूरा चक्कर किया । 84 का चक्र हुआ ना । अभी बाबा आया हुआ है ले जाने के लिए । हमको बोलता है- मेरे को याद करो और यह जो भी नॉलेज है वो तुमको दे रहा हैं यह सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है, जन्म कैसे मिलता है । सबको तो मैक्सिमम इतने जन्म नहीं मिलते हैं । किसको मैक्सिमम, किसको मिनीमम मिनीमम कितना ये सभी याद करना होता है । फिर भी अगर सभी याद न पड़े, बहुत क्या सुनायें, अच्छा, एक तो याद करो ना । बाबा हमको लेने आया है । 84 जन्म पूरा हुआ, अब बाबा के साथ जाना है । इसलिए अच्छी तरह से बाप को याद करते रहना है । जहाँ जीवें तो विकर्म विनाश हो जावे । तो जहॉ जीवें तह फिर पढ़ना भी है । एक तरफ में विकर्म विनाश होते जावे और दूसरी तरफ में हमको राजाई मिलती जाए । तो फिर तुम विकर्माजीत महाराजा बन जाएंगे । श्री लक्ष्मी नारायण को विकर्माजीत कहते हैं । तो उनका कौन सा सम्वत है? इसका सम्वत अभी 5000 हजार वर्ष हुआ । समझा ना । फिर विकर्म सम्वत । वो आधा से फिर विकर्मी हो जाते हैं । फिर उन विकारियों का सम्बत यानी रायणराज्य का सम्वत । वो रामराज्य का सम्वत । रामराज्य का सम्वत5000 बरस हुआ । रावणराज्य के सम्वत को 25०० बरस हुआ । ऐसी-ऐसी बाते भूल तो नहीं जाएँगे ना? अच्छा, बहुत सुना । फिर भी बाप कहते हैं देही-अभिमानी भव; क्योंकि तुम आत्माओं को बाप सुनाय रहे हैं । उठते, चलते-फिरते बाप को भी याद करो और इस नॉलेज को भी बुद्धि में धारण करो, जो शंख ध्वनि भी कर सको । स्वदर्शन तो अंदर में फिरेगा ना, पर स्वदर्शन तो तुम जानते हो..... .... .... सुनाएंगे तो जरूर । शंख ध्वनि तो करनी होगी ना । इसलिए फिर शंख ध्वनि भी करनी है । शख ध्वनि करेंगे तो आप समान बनाएंगे । इसलिए बाबा कहते हैं- ज्ञानी तू आत्मा मुझे बहुत प्रिय लगते हैं; क्योंकि ज्ञान तो सुनाते रहेंगे ना क्योंकि ज्ञान की धारणा होगी तो सुनाएँगे ना । अगर सिर्फ कहें हम बाबा को याद करता हूँ, अरे भई, याद तो करते हो, पर शंख कैसे बजाएंगे? नहीं, याद और शंख । याद माना योग माना एवर हेल्दी बनना और ज्ञान के शंख माना एवर वेल्दी बनना । तो हेल्थ एण्ड वेल्थ दोनों हैं तो सुख है । अगर हेल्थ है वेल्थ नहीं है तो भी सुख नहीं है । वेल्थ है हेल्थ नहीं तो भी सुख नहीं । तो तुम बच्चों को बाप से हेल्थ एण्ड वेल्थ कावर्सा मिल रहा है हूबहू कल्प पहले मुआफिक । तुम भी कहते हो- बाबा, हम बरोबर 5000 वर्ष पहले मुआफिक फिर आपसे अपनी हेल्थ एण्ड वेल्थ का वर्सा ले रहे हैं ; बस उसमें सब आ जाता है । अच्छा, बच्चों को टोली खिलाओ । बच्चों ने लाया, बच्चों ने खाया । मिलजुल करके खाया । देखो, मैं थोड़े ही खाऊंगा । मैं खाऊए तो फिर कहूँगा, यह मीठा है ।. मैं उनसे निर्लेप हूँ । ये सन्यासियों ने उल्टा ले लिया कि बाप निर्लेप है, हम भी निर्लेप हैं; क्योंकि हम उनके बच्चे हैं । अच्छा, बच्चे तो समझो, फिर अपन को बाप क्यों समझते हो?........कहते हो, सभी आपस में ब्रदर्स हैं । सो तो सभी आत्माएँ हैं ना ब्रदरहुड, फिर अपन को परमात्मा कहकर फादरहुड कैसे कहते हो? फादरहुड फिर वर्सा किससे लेंगे? ....बच्चा हो जो सर्विसेबल हो । आप समान बनाने का भी बहुत शौक होता है जिसको; क्योंकि आप समान बनाएंगे. .... बच्चों को प्रजा भी तो बनानी पड़ेगी ना । नहीं तो किसके ऊपर राज्य करेंगे?.. कौन आए हैं?.....बच्चों को स्वर्ग का मालिक बनाऊँ । जिस बच्चे को है कि मैं भी यहाँ हरेक को स्वर्ग का मालिक बनाऊँ, सो भले एक आ जाएं, जो भी । अच्छा, आओ बच्चे । (किसी ने कहा- नहीं बनूंगा) क्यों नहीं बनूंगा (किसी ने कहा- इसलिए कि ....अगले जन्म में.) तुम्हारा यह मतलब है कोई का भी जीवन नहीं बनाओगे! हम कहें कि यह बच्ची दु:खी है, उनको उनकीमाई कहती है शादी जरूर करानी होगी और वो कहती है कि मैं शादी नहीं करूँगी । अच्छा, भला कोई युगल ऐसा मिले, गधर्व विवाह करे । तो मैं उनसे अपना पर्दा दे सकता हूँ । तो हम दो मिल करके और ज्ञान चितापर बैठ करके और हम पद पाय लेंगे । (किसी ने कहा- नहीं बाबा, ये भी एक प्रतिबद्धता की बात हो जाएगी; इसलिए... नहीं, यह तो बहादुर बनना चाहिए, क्योंकि तुमको युगल ब्रह्माचारी बनकर दिखलाना है । ज्ञान तलवार बीच में हो और कोई की जीवन भी बनाने के लिए, नहीं तो के बिचारियां कुस जाती हैं । हमारे पास बहुत एप्लीकेशन आती है । बाबा, कोई ऐसा ज्ञानी तू आत्मा बच्चा हो । बाबा मुझे वो दो, नहीं तो ये हमको कहीं फट से... । पीछे अगर हम कह देवें तो? (किसी ने कहा- नहीं बाबा, हमको स्वतंत्र ही रहना अच्छा लगता है ।) नहीं, मैं नहीं मानता हूँ । तुम कच्चे हो । बाबा तो कोई वक्त में ऑर्डर कर देंगे । बच्चे कहते हैं कि बाबा, हमारे बाप कहते हैं शादी जरूर करना । नहीं तो मारपीट करते हैं । भला अभी हम क्या करें? भला अगर हम कोई दूसरी लेंगे और वो विकारी न बने, अपने धर्म की न होगी, अपने घराने की न होगी तो वो आएगी तो हमारा माथा खराब कर देगी । बाबा, हमको कोई अच्छी बच्ची चाहिए । बच्ची वाले कहते हैं- हमको कोई बच्चा चाहिए ।. ..हमारे पास लिस्ट पर रहती हैं । यानी कोई बच्चों को मार खाते हैं शादी करने के लिए, कोई बच्चियों को मार खाते हैं शादी करने के लिए । फिर तुम बताओ, इतना पहलवान हो? (किसी ने कहा- बिल्कुल पहलवान है) मैं जो कहूं सो मानेंगे? (किसी ने कहा-हाँ, आप जो कहेंगे, मानूँगा ।) मैं कहता हूँ कि गंधर्व विवाह करो । कोई भी ज्ञान में चलने वाली......... ...... .देखो सन्यासियों को दिखलाना है । तुम लोग कहते हो कि गृहस्थ व्यवहार में रहते हुए सर्प और सर्पिणी इकट्‌ठे नहीं रह सकते हैं, इसलिए हम भाग जाते हैं । भाग करके फिर क्या करते हैं? जिनको छोड़ते हैं उनको नागिन कह देतेहैं और वो कहते हैं कि हम भी सर्प थे; परन्तु हम भाग निकले, जाकर जंगल में बैठे । इसलिए वो समझते हैं कि अभी हम सर्प नहीं हैं । बाप कहते हैं-. .... वो एक भीष्मपितामह । भीष्मपितामह तो मेल का नाम है, परन्तु फिमेल का भी तो नाम दिखाना चाहिए ना । जोडा रह करके, कपूस और आग इकट्‌ठे रह करके खुरिटी में रहकर दिखलावे तभी तो गृहस्थ और व्यवहार में वो उत्तम सन्यास देखेंगे ना । नाम ही है ऐसे । भले बाबा ऐसे कहते नहीं हैं कि नहीं, जरूर तुमको कराऊँगा परंतु अगर समझो किसकी जान बचानी हो ऐसे बाबा कर रहे हैं बरोबर । कोई देखो तुम्हारी ही कुल की कोई स्त्री, कन्या आती है और उनका बाप मानते नहीं हैं । वो कहते हैं कि तुमको शादी जरूर कराएँगे, नहीं तो मारेंगे, पीटेंगे, एकदम उस बच्ची को ऊपर से फेंकते हैं, नीचे जाकर पड़ती है । नहीं तो तुमको बहुतों की हिस्ट्री सुनाऊँ । अच्छा, वो बच्ची कहती है- मैं मर जाऊँगी, शादी अगर करूँगी तो ब्राहम्‌ण से करूँगी, क्योंकि ब्राहमणी बनी है ना । अभी उनको ब्राहमण कहाँ से ले आऊ फिर तो मुझे ब्राहमण पकड़ना पड़े । पीछे मैं कहूँगा अच्छा, तुम्हारा गंधर्वी विवाह भी तो होता है ना । नाम बाला है ना, सो अभी होता है । गधर्वी विवाह कोई सुक्ष्मवतन की बात नहीं होती है, यहाँ की बात है ।. तुम हमको बताएंगे कि बरोबर ये सन्यासी डरपोक हैं, कायर हैं । घर छोड़ करके चले जाते हैं । हम युगल करके फिर हम कम्पेनियन ले लेंगे । ब्राहमण और ब्राहमणी बहन-भाई भी हो करके रहेंगे और कम्पेनियन भी रहेंगे और बहुत अच्छी सर्विस में लग पड़ेंगे । फिर दिखलाएँगे देखो हम जोड़ा गृहस्थ व्यवहार में रहते हुए कमल फूल के समान बाल ब्रहमचारी होकर रहते हैं । देखो, यह बड़ी ऊँची मंजिल है । तो इतनी ऊँची मंजिल से डरना थोड़े ही है । (किसी ने कहा- डरता नहीं हूँ बाबा । बिल्कुल नहीं डरता हूँ) । ..... .. किसमें हो? मारवाड़ी हो? उत्तर दिया- नहीं, मैं यू०पी० का रहने वाला हू ।) देखो, यू०पी० को .. यह बहुत मार खाती है और वो बोलती है कि .... ...अच्छा, भला ज्ञानी हो, मैं उनसे शादी कराय दूंगी । फिर मैं कोई वक्त देखूँगा । यू०पी० की एक बच्ची है । कोई भी बच्ची है इसमें क्या । आजकल तो पंजाबी-मुसलमान, मुसलमान-पारसी, ये सभी चलाते रहते हैं; परन्तु यहाँ किसकी जान बचाने के लिए मैं खड़ा कर दूं तो? (किसी ने कहा- आप खड़ा कर दें तो हो जाऊँगा मैं नहीं खड़ा होता लेकिन आप कर देंगे तो..) वो ही तो बाबा कहते हैं ......... उफ! कमाल कर दे, कोई की जान बचाय देंगे और वो बच्ची सर्विस करने लग पड़ेगी ना । बहुत में तो झगड़ा हो जाता है । जबरदस्ती उनको शादी कराते हैं, बड़ी जार-जार रोती हैं । कोई तो अपन को मार भी देती है, जहर भी खा लेती है । ऐसी भी बच्चियों और बच्चे हमारे पास हैं । वो लिख देती हैं- बाबा, अगर कोई प्रबंध न करा तो मैं डूब मरूँगी, जहर खाऊंगी । फिर उनको बचाना है । क्या समझते हो? खाली बातें नहीं हैं । यहाँतो भारत भी चाहिए बड़ी । किसी ने कहा- भारत में ही तो बनने के लिए आया हूँ ।) तो मैं कोई भी वक्त में कह दूँगा ।बाबा के हमजिन्स को बचाना है, मम्मा के भी हमजिन्स को बचाना है कुमारियों और कुमार को, क्योंकि बड़ीमार खाती हैं । अबलाओं के ऊपर अत्याचार बहुत होते हैं । एक तो अबलाओं के ऊपर अत्याचार, विख पीने के लिए मार बहुत खाती हैं । दूसरी, कन्याओं केऊपर अत्याचार होते हैं कि शादी करो । कैसे भी करके शादी करेंगे और सुख में शादी करेंगे । फिर कोई अग्रवाल होगी या फलाना हो । नहीं, यहाँ तो फिर बाप कहेंगे अग्रवाल हो या ढग्रवाल हो, तुमको उनकी जान बजानी होगी । फिर तुम्हारे से सारी दुनिया, घर-बार, सब बिगड़ पड़ेंगे । इतना सब सहन करने के लिए तैयार हो । (किसी ने कहा- बिल्कुल) यह तो वाकई बच्चा बन गया ।... .कितने हैं? (किसी माता ने जवाब दिया-दो लडकी हैं) । कोई लड़का भी है? (पहले एक लड़का हुआ था ।. ... .वो तो बाबा के पास है, वो बैठा हुआ है....) बाबा बच्चा है आपका? (माता ने जवाब दिया-जरूर बाबा ही तो बच्चा है.....) बाबा कहते हैं कि बाबा जो है, इनको बच्चा बनाया है? देखो, जादूगरनी हैं ना ये लोग । बोलती हैं- बाबा को हम बच्चा बनाया है या इनमें है, वो समझती हैं कैसे । अच्छा जाओ बच्चीकोई को पाँव न लगे, बंगाल में यह बड़ा कायदा है । किनको भी लगेगा तो फिर कहेंगे आई एम सॉरीवो है बाबा और फिर यह जो इन द्वारा एडॉप्ट कर रहे हैं तो जैसे कि पिता-माता, मात-पिता क्योंकि अभी यह जैसे माता हो जाती है, परन्तु मेल है ना, माता-पिता कैसे सर्विस कर सके, इसीलिए मम्मा निमित्त है ।... .. मार खाते हैं, बड़े-बड़े अच्छे-अच्छे मारते हैं... । बाप नहीं तो बड़े भाई भी मारते हैं । छोटे भाई बड़े भाई को भी मारते हैं । ऐसे बड़े भाई हैं जो पवित्र रहते हैं, तो छोटे भाई लड़ करके बिगड़ करके उनसे झगड़ते हैं और मारते हैं उनको । ऐसे भी होते हैं । देही-अभिमानी रहते हैं ना । तो देही-अभिमानी रहने से ही किसके सामने तुम उनको देही-अभिमानी बनाय सकते हो यानी वो शरीर की सुध-बुध भूल जाते हैं । अपन को तो शरीर की सुध-बुध भूल जानी है ना । आत्मा हैं, बस । तो इतना निश्चय हो जाना चाहिए, जब समय हो तब शरीर को छोड़ करके घर को चले जाओ । ऐसे सन्यासी भी हैं । ऐसे मत समझो सन्यासी नहीं हैं, परंतु वो जाते नहीं हैं । तुम बच्चों को तो जाना है । वो कहीं जा नहीं सकते हैं । ऐसे हैं बरोबर बैठे-बैठे शरीर छोड़ देते है । फिर जब ऐसे कोई मरते हैं तो चारों तरफ आजू-बाजू में सन्नाटा छा जाता है । वो जो योगी लोग होते हैं, उनको मालूम पड़ता है कि कोई योगी ने योग में रह करके शरीर छोड़ा है । जैसे श्मशान शांत होता है ना, ऐसे वायुमंडल आस-पास बिल्कुल शांत हो जाता है । तो देखो, तुम्हारा शांत का कितना प्रभाव पड़ेगा । पूरी शांति हो जाएगी । अभी तो अशांति है ना । अच्छा, मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति, देखो, कौन कहते हैं- बच्चे भी जानते हैं कि हम बरोबर 5000 वर्ष के बाद फिर बाप से मिले हैं । आत्माएँ और परमात्मा अलग रहे बहुकाल । बहुकाल तो भारत के आदि सनातन देवी देवता धर्म वाले ही हैं । तो वही फिर पहले मिलेंगे । पहले फिर आएँगे यही । जब विनाश हो जाएगा तो पहले वो आते रहेंगे । ऐसे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता का और बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निग ।