07-09-1964     मधुबन आबू     रात्रि मुरली    साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हेलो, गुड इवनिंग यह सात सेप्टेम्बर का रात्रि क्लास है

परदेशी और देशी आ करके मिले हैं । इस देश में इसे आना भी जरूर है । देखो, खुद कहते हैं किपरदेश से मुझे आना है इस देशवासी-भारतवासी में । कोई नई बात नहीं है । भल तुम इन परदेशी और देशी से मिलते हो जरूर वर्सा पाने के लिए, क्योंकि है इनकारपोरियल बाप की प्रॉपर्टी; परन्तु सिवाय कारपोरियल कोई प्रॉपर्टी मिल नहीं सकती है । तो यह प्रॉपर्टी मिल रही है तुमको परदेशी द्वारा । है भी जरूर यह परदेशी का मंदिर; क्योंकि बाकी सभी यहाँ जो मंदिर हैं वो हैं सुक्ष्मवतनवासी के । जैसे ब्रह्मा विष्णु शंकर का भी और दूसरे हैं मनुष्यों के मंदिर । इस परदेशी का मंदिर भी है । यूँ परदेशी सभी हैं, आत्माएँ आती हैं परदेश से; परन्तु यह एक ही है जो इस देशवासी में यह परदेशी आते है । क्यों? फिर परदेश में ले जाने के लिए । तुम परदेशियों को अपना देश भूल गया है । भूल गए हैं, पता नहीं है तब तो जा नहीं सकते हैं । अगर इस दुनियां में दुःख है और अगर वो देश कोई ने देखा हो तो यहाँ रहें ही क्यों! चले जाएं, वहाँ जा करके रहें; परन्तु बच्चों को अपना देश पियरघर ही भूल जाता है । सन्यासियों ने तो देश को ही परमात्मा बताय दिया । ब्रहम को परमात्मा बताय दिया । नहीं तो ब्रहम महतत्व तुम्हारा रहने का देश है । परदेशी से तुम बच्चों का नाता जुटा हुआ है । तुम चाहो तो परदेशी से डायरेक्ट भी कनेक्शन रख सकते हो । कहाँ दूर हो, बिल्कुल नहीं मुरली सुन सकते हो और परदेशी की पहचान पाय पत्र लिख सकते हो । अभी भी परदेशी की पहचान बहुतों में है, जो परदेशी को पत्री भी लिखते हैं । बिगर देखे भी परदेशी को लिखते हैं । परदेशी से वर्सा भी ले सकते हैं; क्योंकि बाप तो समझाते हैं- बाप को जानना है और वर्से को जानना है । बाप का कुछ मददगार भी बनना होता है, तब तो वहाँ दो मुट्‌ठी देवें । दो मुट्‌ठी किसको देवें ? फिर भी बाप के यज्ञ में दे, तो बाप का यज्ञ तो फिर भी साकार है, तभी वहाँ कुछ थोड़ा महल आदि मिले । नहीं तो कैसे मिल सके? मिल सकेंगे? नहीं । बाप को याद करना, बाप के स्वर्ग का वर्सा पाना, स्वर्ग को याद करना, वो तो ठीक है, स्वर्ग में चले जाएँगे । बाकी महारानी-महाराजा या साहुकार तो नहीं बन सकेंगे ना । तो बात तो इस बाप को याद करने की है । यह भी नहीं है कि तुम कोई एक बार इस देशी-परदेशी बाबा से मिलते हो । बच्चों को समझा भी दिया है कि जो श्री लक्ष्मी नारायण थे, वो ही फिर पुजारी बन, इनको ब्रहमा-सरस्वती बनना ही है । इसलिए कभी भी ये चेंज नहीं हो सकता है कि बाबा फलाने में क्यों नहीं आते है? एक में क्यों आते हैं? क्योंकि ड्रामा फिक्सअप है ना । दिखलाते भी है बरोबर ब्रह्मा विष्णु शंकर के चित्र । चित्र भी मदद तो जरूर करेंगे ना, जो होकर गए है । निराकार के भी मंदिर हैं, जरूर आए हैं और कुछ करके गए हैं । बाबा ने एक दिन समझाया था कि जिनको बहुत धन मिला है, उन्होंने ही फिर भक्तिमार्ग में बहुत धन खर्च करके मंदिर बनाया है । मीठे बच्चे बाप को तो अच्छी तरह से जान गए हैं । बाकी है उनसे पढ़ाई सेअच्छा वर्सा लेना । प्राचीन योग और ज्ञान । कौन-सा योग? राजयोग । सिर्फ योग नहीं कहना चाहिए, प्राचीन योग और ज्ञान कहना चाहिए । इस योग और ज्ञान से क्या हुआ था कोई जानते नहीं हैं । भले जाते हैं समझाने के लिए; परन्तु यहाँ समझाने वाले दो हो गए हैं- एक वो सन्यासी हद के और दूसरे तुम सन्यासी बेहद के । सन्यासी हर एक धर्म में होते हैं । देखो, जैनी धर्म में कितने सन्यासी है; परन्तु उनको बेहद सन्यास का पता नहीं है । सबको हद के सन्यास का पता है और तुमको बेहद का सन्यास बेहद का बाप कराते हैं; इसलिए तुम्हारा सबसे ओमचा है और उसमें वर्सा भी है, प्राप्ति भी बहुत है । और कोई को क्या प्राप्ति हो सकती है? पुरानी दुनिया की प्राप्ति में क्या मिलेगा? अल्प काल क्षणभंगुर सुख । यह तुम्हारी प्राप्ति है नई दुनिया के लिए । तो प्राप्ति जरूर करनी है; परन्तु इस प्राप्ति करने में माया के कितने विघ्न पड़ते हैं, कितने अच्छे-अच्छे बच्चे चलते-चलते झट मुँह फेर देते है; इसलिए ये चित्र भी कुछ काम के लिए तो हैं ना प्रैक्टिकल में कि बरोबर ये मुख करते हैं राम की तरफ और पीठ करनी है रावण की तरफ, परन्तु रावण इतना बलवान है, जो कोई भी वक्त में अपनी तरफ में खैच लेते हैं । तो चित्र भी इस संगमयुग के लिए यादगिरी है । तुम्हारे लिए यह चित्र भी बहुत हैं । चित्र अगर बड़े बने तो यह भी सौगात अच्छी है तुम बच्चों के लिए । इसके ऊपर तुम समझा भी सकते हो- भाई देखो, इस समय में पतित-पावन राम, रावण ने पतित किया है । राम और रावण का दशहरा और फलाना तो मनाते हैं, तो उसमें रावण तो दिखलाते ही हैं । बाकी शिवबाबा के बदले में फिर कृष्ण दिखलाते हैं या राम दिखला देंगे; परन्तु नहीं, दिखलाना पड़े शिव । तो इसमें बाबा डायरेक्शन देते है, जो बनारस में रहने वाले हैं । वो गुप्त जैसा अच्छा ज्ञानी तू आत्मा जाते हैं तो जैसे समझो कि उनको बाबा कहते हैं जो बनारस में सर्विस पर है । वहीं ही ऐसे एक चित्र बना है थोड़ा बड़ा करके- एक तरफ में रावण और दूसरी तरफ में शिवबाबा बना दिया है और उनके नीचे लिख भी सकते हैं- ईश्वरीय जन्म सिद्ध अधिकार सूर्यवंशी लक्ष्मी नारायण फिर वो ही चित्र ऊपर में शिव और नीचे में फिर पद भी दिखला सकते हैं । यहाँ यह भी ठीक है । बाप से इतना ओमचा पद मिलता है, तो प्रैक्टिकल में हो जावे । इसमें क्या दिखलाते हैं? कौन है? दूसरे तरफ में कृष्ण है शायद । (बच्चों ने कहा- राम है...) राम है बच्चों ने कहा- राम-सीता है ना.. एक में राम और रावण, दूसरे में कृष्ण और कंस भी बनाते है । शिशुपाल...) अरे नहीं, रावण अक्षर ठीक है; क्योंकि रावण के 5 शीश दिखलाते हैं । कंस, जरासंध, शिशुपालों का कोई 5 शीश नहीं दिखलाते हैं । यह रावण ठीक है । फिर इस तरफ में शिव और पद तो है ही सतयुगी लक्ष्मी नारायण का । तो ऊपर में शिव और नीचे लक्ष्मी नारायण भी देवें जैसे वो पहले वाले चित्र है, तो भी बहुत अच्छा । ... बाबा फिर नाम देते हैं सेन्सीबुल । अगर नहीं बनावें तो बाबा कहेंगे नॉन-सेन्सीबुल । तो ये सौगात है और इसके ऊपर बहुतसमझाय सकते हैं । जैसे इन बच्चों के लिए वो लॉकेट बनाए हैं, बच्चों को भी बहुत दिए हैं समझाने के लिए कि शिवबाबा और ब्रह्मा द्वारा यह पद मिलता है । कंस और कृष्ण का तो बैठ करके नाटकों में बहुत ही खेल करते हैं । कृष्ण और कंस वध यह भी एक नाटक है । ऐसी-ऐसी ख्याल करें, कोई चीजें बनावें तो बहुत अच्छा है । जैसे अपन बनाते हैं- कृष्ण के हाथ में गोला देते हैं और पिछाड़ी में वो आ गए । तो वो भी अगर किसके ऊपर चित्र बनाए तो वो भी अच्छा है । यहाँ तो बनते हैं । वहाँ रखा हुआ है, यहाँ नहीं है । (बच्ची ने कहा है) यह भी एक बड़ा है, नीचे लिटरेचर रूम में शायद बड़ा रखा हुआ है । (बच्ची ने कहा- जी हाँ....). ..... .अगर तुम बच्चे किसको दिखलाओ- रावण पुरी और यह श्री कृष्ण पुरी । बरोबर महाभारत की लड़ाई के बाद फिर कृष्ण पुरी हुई है और बाकी जो अनेक थीं वो सब खत्म हो गई हैं ।.... ऐसे भी समझा सकते हो । अभी सहज राजयोग से इसने ये पद पाया है । डबल कमाई के जो भी व्यापारी हैं, नौकरी वाले हैं या कोई भी हैं, तो ऐसे बहुत होते हैं जो सेकेण्ड कोर्स उठाते हैं फिर जास्ती आमदनी का । तो गृहस्थ-व्यवहार में वो भी करते रहें और यह जो सच्ची कमाई है वो तो और ही सहज है । आठ घण्टे के बाद, अरे इनमें तो बहुत थोड़ा लगता है । लगता तो है एक मिनटों का कार्य, परन्तु याद करने में थोड़ा टाइम चाहिए । देखो, कैसे-कैसेबच्चियाँ आती हैं, कितना बड़ा इम्तिहान पढ़ते हैं । कोई क्या जाने कि वास्तव में यह गीता गॉड फादरली यूनिवर्सिटी है । उस यूनिवर्सिटी का यह पुस्तक है । गॉड फादर की यूनिवर्सिटी एक ही होती है ना, दूसरी कोई होती नहीं है । भगवान पढ़ाते हैं एक ही बार, भगवानुवाच भी एक ही बार और भगवती-भगवान बनाते हैं । वो कृष्ण और राधे तो बने हुए हैं । वो नहीं बनाएँगे । वो बनते हैं जरूर, ऐसा कहेंगे । देखो, तुम जानते हो कि बन रहे हैं । किस द्वारा? शिव परमपिता परमात्मा द्वारा; क्योंकि कृष्ण और राधे पतित दुनिया पर हो नहीं सकते हैं । कृष्ण और राधे होते ही हैं सतयुग में । त्रेता में कृष्ण और राधे होते नहीं हैं; क्योंकि वही भी है पहले नम्बर डिनायस्टी- राधे-कृष्ण की, जो चलती है । फिर त्रेता में नहीं कहेंगे कि कोई राधे-कृष्ण की डिनायस्टी चलती है, फिर खलास हुआ । पीछे रामचंद्र की डिनायस्टी । पीछे शुरू होती है माया की डिनायस्टी रावण की डिनायस्टी । इस डिनायस्टी में भारत में सिंगल ताज वाले हैं और राम की डिनायस्टी में डबल ताज वाले है; क्योंकि वो पवित्रता का और वो अपवित्रता का । रावण है अपवित्रता की निशानी और राम कहो या लक्ष्मी नारायण कहो, वो है पवित्रता की निशानी । निशानी है जो दिखलाते हैं- डबल सिरताज, सिंगल सिरताज और दिखलाते हैं भारत में । और कोई भी दूसरे खण्ड में, दूसरी बादशाही में नहीं होती है, सिर्फ भारत खण्ड में । जानते भी है, पूजा भी करते हैं, खुद राजा-महाराजा पूजा करते हैं, परन्तु पता नहीं पड़ता है कि क्यों इनकी पूजा करते हैं । पूज्य श्री लक्ष्मी नारायण पूज्य सूर्यवंशी और चंद्रवंशीऔर बहुत ही अपन को सूर्यवंशी-चंद्रवंशी कहलाते भी है, परन्तु बस यहाँ कह देते हैं कि यह सूर्यवंशी पावन, हम सूर्यवंशी पतित । सूर्यवंश तो चलता है ना, फिर चंद्रवंश भी चलता है । जो सूर्यवंशियों की पूजा करते होंगे वो जरूर कहेंगे हम सूर्यवंशी और जो चद्रवशियों की पूजा करते होंगे जरूर वो कहेंगे हम चंद्रवंशी, परन्तु उन बिचारों को पता नहीं है कि इन सूर्यवंशियों ने कैसे राज्य लिया । अभी तुम बच्चे तो बहुत कुछ जान गए हो और बाकी जानते जाते हो नई-नई बातें समझाने के लिए; क्योंकि पहाड़ों पर तो कोई चीज है नहीं, जो दूर... में जाना हो । वो तो चित्र रखे हुए हैं जिनकी पूजा होती है । (म्यूजिक बजा...). ..जीव-आत्माओं से मिलें कैसे? तो देखो, बाप भी यह शरीर धारण कर फिर मिलते हैं । अभी कहते हैं कि ये पतियों का पति है । फिर पत्नी, सजनी, साजन से मिले तो जरूर ना । कैसे मिले? भाकी पहनना पड़े । अगर बाप है, बच्चा भी जीव-आत्मा । अब वो जीव-आत्मा यानी सिर्फ आत्माएँ और परमात्मा मिले कैसे? तो फिर भी शरीर से ही मिलना पड़े । तो फिर जब मिलते हैं तो भी इससे ही मिलते हैं कि हम बाप-दादा से मिलते हैं; क्योंकि उनको दादा जरूर कहना पड़े, क्योंकि वर्सा मिलता है डाडे का । तो इसमें मूँझने की बात नहीं है । जब कोई गोद से डरते हैं तो उनको समझाना चाहिए कि हम बच्चे हैं, हम बाप की गोद में जाते हैं । अगर पत्नी के हिसाब से समझें, तो पति की गोद में जाते हैं । इनमें भी बड़ी युक्तियाँ रची हुई हैं । पति की गोद मैं जाए तो वो फिर पति, तो फिर बाल लीला, रास लीला, उसमें भी बाल लीला तो पहले; परन्तु बाल लीला तो होती है जादूगरी । और कुछ नहीं है, यह है जादूगरी । जादूगरी ऐसे भी चलती है बैठे-बैठे कृष्ण देखा और उनको ऐसे करके पकड़ने लग जाते हैं । तो यह भी जादूगरी है । जादूगर तो है ही । बता देना चाहिए कोई को भी- भई वो जो है, बाबा भी है, जादूगर भी है और रत्नागर भी है । इसमें कोई संशय की बात नहीं होनी होती है । देखो, बुलाते तो है ना परदेशी को । फिर मिले कैसे? (रिकॉर्ड बजा:- आ जा रे परदेशी...) इस परदेशी साजन से या बाप से फिर कल्प-कल्प एक बार ही मिलना होता है । इसको ही कहा जाता है- कल्याणकारी मिलन या मंगलकारी मिलन । (रिकॉर्ड बजा) दिन में भक्ति नहीं होती है । कायदा ही है- भक्ति सुबह को या शाम को । दिन में क्यों नहीं? क्योंकि दिन में शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करना पड़ता है ना या व्यवहार या खाना पकाना । वो भक्ति भी सुबह और शाम और ज्ञान भी सुबह और शाम । समझा! अच्छा, मीठे-मीठेसिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता, बाप-दादा का नम्बरवार यादप्यार और गुडनाइट ।