08-09-1964     मधुबन आबू     प्रात: मुरली    साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हेलो, स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुलभूषणों को हम मधुबन निवासियों की नमस्ते, आज मंगलवार सितम्बर की आठ तारीख है, प्रात: क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।

रिकॉर्ड :-
रात के राही थक मत जाना, सुबह की मंजिल दूर नहीं...
रात के राही कहाँ जा रहे हैं? दिन के तरफ । दिन कहा ही जाता है सतयुगी श्रेष्ठाचारी देवी-देवताओं की दुनिया को और रात कही जाती है कलहयुगी भ्रष्टाचारी आसुरी सम्प्रदाय को । यह तो तुम जानते हो कि हम आज से ढाई सौ वर्ष पहले भ्रष्टाचारी थे । तुम ऐसे नहीं कहेंगे कि हम कोई शुरू से भ्रष्टाचारी थे, जैसे शास्त्रों में लिखाया हुआ है । शास्त्रों में भारत को भ्रष्टाचारी, सतयुग की आदि से बैठ करके लिखा है कि राधे-कृष्ण भ्रष्टाचारी थे, सीता-राम भ्रष्टाचारी थे । पीछे तो है ही रावण का राज्य । वो भ्रष्टाचारी-भ्रष्टाचारी कहकर सारी दुनिया को भ्रष्टाचारी बनाय दिया है । अभी यह तुम बच्चे जानते हो कि यादव और कौरव सम्प्रदाय को सर्वशास्त्रमई शिरोमणि गीता में भ्रष्टाचारी गाया हुआ है और बरोबर पाण्डव सम्प्रदाय को फिर श्रेष्ठाचारी बनाने वाला कहा गया है, क्योंकि पाण्डव सम्प्रदाय सतयुगी श्रेष्ठाचारी बना रहे हैं । अब तुम बच्चे जानते हो हमको सर्विस करनी है बाप के साथ, क्योंकि बाप भी आए हुए हैं यह भ्रष्टाचारी दुनिया में । तो मनुष्य समझते हैं कि ये सभी जो यहाँ भ्रष्टाचारी हैं वो सभी यहाँ श्रेष्ठाचारी बन जावे; क्योंकि उनको यह तो पता है नहीं कि सतयुग मे देवी-देवताएँ श्रेष्ठाचारी थे और जो पीछे भारत में पतित हैं, वो उन पावन देवी-देवताओं को श्रेष्ठाचारी समझ, अपन को भ्रष्टाचारी अर्थात् पापात्मा समझ महिमा करते हैं; परन्तु देखो वन्डर है, महिमा करते है; परन्तु उनको दिल से नहीं लगता है कि हमको कोई ऐसा बनना है या ये कैसे श्रेष्ठाचारी बने थे? भ्रष्ठाचारी बनाने वाले कौन? किसकी मत पर यह भारत भ्रष्टाचारी बनता है? यह भारतवासी खुद भी नहीं जानते हैं । गवर्मेन्ट नहीं जानती है; क्योंकि गवर्मेन्ट स्वयं भ्रष्टाचारी है । तो फिर रडी मारते रहते हैं कि ये भ्रष्टाचारी गवर्मेन्ट को श्रेष्ठाचारी बनाओ । अभी कौन बनाएगा? क्या पब्लिक बनाएगी? क्योंकि गवर्मेन्ट यथा राजा-रानी तथा प्रजा । जबकि ऐसे है तो काँग्रेस गवर्मेन्ट या कौरव गवर्मेन्ट बात तो एक ही है । भई, गवर्मेन्ट भ्रष्टाचारी है । क्यों भ्रष्टाचारी है? क्योंकि इररिलीजियस है । उनको अपने धर्म का कोई भी पता नहीं है कि आखिर में हम स्वयं भारतवासी कोई श्रेष्ठाचारी थे । ये उनको पता भी नहीं है । देखो, गवर्मेन्ट को पता नहीं है । यह भारत के लिए ही कहा जाता है ना कि भारत को श्रेष्ठाचारी भारतवासी बनावेंगे; परन्तु जबकि गवर्मेन्ट है ही भ्रष्टाचारी तो कौन बनावे? जरूर कोई दूसरी गवर्मेन्ट चाहिए । गवर्मेन्ट तो यथा राजा-रानी तथा प्रजा । इस समय में यह काँग्रेस गवर्मेन्ट खुद कहती है कि बरोबर हमारी गवर्मेन्ट के ऑफिसर्स सभी भ्रष्टाचारी है । अभी.. .तो गवर्मेन्ट हो गई । गवर्मेन्ट ही भ्रष्टाचारी तो फिर यथा राजा-रानी तथा प्रजा, ऐसे कहेंगे ना । राजा-रानी भले नहीं है, फिर भी गवर्मेन्ट नाम तो है ना । जबकि इसको भारत की राजधानी ही कहो, सावरंटी को राजधानी कहते हैं, तो जबकि राजधानी ही भ्रष्टाचारी है, तो फिर जरूर कोई और गवर्मेन्ट चाहिए जो इनको श्रेष्ठाचारी बनावे । बरोबर गाया जाता है कि पाण्डव गवर्मेन्ट ने आकर इस कौरव गवर्मेन्ट को श्रेष्ठाचारी बनाया । बाकि गवर्मेन्ट कौरव गवर्मेन्ट को श्रेष्ठाचारी कैसे बनावे! यह तो हो नहीं सकता है, इम्पासिबुल है । इनको ये समझानी देना पड़े ना । कौन समझानी देवे? तुम बच्चों को समझानी देना है । तुम पब्लिक में भाषण भी तो करते हो ना, तो तुम लोगों को.. .हिम्मत चाहिए, समझ चाहिए ना क्योंकि वो भी प्रजा कहती है कि भई, यह भ्रष्टाचार है और यह श्रेष्ठाचार है । समझा ना । अभी तुम हो पाण्डव गवर्मेन्ट के ऑफिसर्स-प्रजा । प्रजापिता ब्रहमा की तुम प्रजा हो । तुमको भी ऐसी अच्छी तरह से अखबारों मे डलवाना पड़े कि जबकि गवर्मेन्ट स्वयं भ्रष्टाचारी है और प्रजा भी ऐसी है तो बनावे कौन? प्रजा तो गवर्मेन्ट को नहीं बनाय सकती है । लॉ नहीं कहता है; क्योंकि गवर्मेन्ट तो खुद ही कहतेहैं कि बरोबर भ्रष्टाचारी गवर्मेन्ट है और अभी श्रेष्ठाचारी गवर्मेन्ट है । इन भारतवासियों को कुछ भी मालूम तो है नहीं क्योंकि शास्त्रों में गाए हुए हैं कि ये हैं अंधे के औलाद अंधे । अभी इनको अंधा किसने बनाया? वो अंधा बनाने वाले रावण की एफीजी जलाते रहते हैं । देखो, दशहरा आता है ना, तो तुम लोगों को समझ जाना चाहिए, भाषण करना चाहिए ना- यह रावण की जो तुम एफीजी जलाते हो.. । अभी दशहरा आएगा ।ये हैं भ्रष्टाचारियों के उत्सव । ये तुम पाण्डव गवर्मेन्ट के उत्सव नहीं हैं । ये हैं कौरव गवर्मेन्ट के उत्सव । तो उनको समझाना है कि रावण ने भारत को भ्रष्टाचारी बनाया है और जबकि गवर्मेन्ट ही सारी भ्रष्टाचारी है तो जरूर कोई और गवर्मेन्ट चाहिए । इनके ऊपर कोई और गवर्मेन्ट चढ़ाई करे । तो क्या सभी फिर श्रेष्ठाचारी बन सकेंगे? नहीं । जब भारत श्रेष्ठाचारी था तो अकेला था । और कोई भी भारत में गवर्मेन्ट्स नहीं थीं- न विलायत की, न फलाने की । तब बरोबर भारत बहुत श्रेष्ठाचारी था । श्रेष्ठ कहा ही जाता है पवित्रता को । भ्रष्ट कहा ही जाता है अपवित्र को । अभी उनको यह तो पता ही नहीं है कि बरोबर ये अपवित्र भारत होने के कारण यह विषियस या वैश्यालय होने कारण.. वैश्यालय में रहने वाले को विषियस कहा जाता है और जो शिवालय में रहने वाले हैं उनको वाइसलेस कहा जाता है । तो ये समझने की बातें हैं ना । अब ये इतनी बड़ी-बड़ी, अच्छी-अच्छी शंखध्वनि कौन करे? तो जरूर जो महारथी होंगे, जिनकी शेर पर सवारी होगी, हाथियों पर सवारी होगी, वो गजगोर करेंगे । बाकी तो बेचारे गजगोर नहीं कर सकेगे । सेना तो है ना इनमें । इनमे महारथी हैं, घोड़ेसवार हैं, बकरी सवार है, रीढ़ सवार है, ओमट सवार हैं; क्योंकि सवारी तो बहुत होती है ना । बाप ने भी आ करके सवारी की है ना । मनुष्य के ऊपर सवारी की है । कोई रीढ बकरी के ऊपर तो सवारी नहीं करेंगे ना । जरूर जिसके ऊपर सवारी करेंगे वो भी तो उनका कोई गजगोर करने वाला पहलवान होगा ना । तो देखो, गजगोर तो वो भी करते हैं, वो भी करते हैं । इसलिए तुम बच्चों को मालूम नहीं पड़ेगा कि गजगोर कौन करते हैं । तो भी, ये कहते हैं कि गजगोर शिवबाबा करते हैं । उनका नाम बाला है और सुन करके फिर यह भी कर सकते हैं, तुम भी कर सकते हो; परन्तु तुम्हारे में भी गजगोर करेगा कौन? वो बहुत महावीर चाहिए, जो गवर्मेन्ट को बिल्कुल सहज है ।. .नहीं तो, अखबार मेंडाल देना चाहिए । बताते भी हो बरोबर ये सतयुग की श्रेष्ठाचारी गवर्मेन्ट भारत में थी । अभी तुम सभी भ्रष्टाचारी बने हो । तो तुम इनकी महिमा तो जानते हो कि किसने इन लोगों को बनाया, भारत को किसने श्रेष्ठाचारी बनाया था । वो तो बिचारों को पता नहीं है । भ्रष्टाचारी गवर्मेन्ट अपने गवर्मेन्ट को श्रेष्ठाचारी नहीं बना सकती है, कोई और चाहिए । तो बाप आकर कहते हैं कि मैं आता हूँ यहाँ; क्योंकि पतित और पावन की बात तो ठीक ही है, क्योंकि जो पतित होते हैं उसको भ्रष्टाचारी कहा जाता है और जो पावन होते हैं उनको श्रेष्ठाचारी कहा जाता है । यह भी कोई गवर्मेन्ट नहीं समझती है । वो तो पत्थरबुद्धि है ।परमपिता परम आत्मा माना परमात्मा यानी उनका नाम भी परमात्मा, अंग्रेजी में भी उनको सुप्रीम सोल कहेंगे । उनसे पूछें तुम्हारे अन्दर में क्या है? तब भी वो कहेंगे- सोल । तो जरूर ये सभी सोल्स सुप्रीम नहीं हैं, एक है सुप्रीम सोल । कहता हूँ उनको भी 'आत्मा । सोल माना आत्मा । तो सुप्रीम को कहने के कारण उनको परमपिता कहते हैं, क्योंकि कहते भी हैं सुप्रीम फादर । सुप्रीम सोल फादर ऐसे लिखते हैं । वो भी तो आत्मा ही ठहरी ना । वो कोई बड़ी चीज तो नहीं है । अब वो बैठ करके उनको याद भी करते हैं । उसको कोई नहीं कहते हैं कि ओ गॉड फादर, आ करके हमको इस भ्रष्टाचारी से श्रेष्ठाचारी बनाओ । वो कोई जानते ही नहीं है । वो समझते हैं- साधु-संत-महात्मा, ये लोग श्रेष्ठाचारी बनाएँगे, परन्तु वो तो भले गवमेंट के कितने भी साधुओं को उठावें ,जैसे गवर्मेन्ट की हेड शिवानन्द के पास जाती है, तो समझती है ना कि वो हमारे से ऊंचे हैं । वो समझता है कि ये श्रेष्ठाचारी हैं, परन्तु सन्यासियों को तो श्रेष्ठाचारी फिर बाप भी नहीं कहते हैं । बाप भी आकर कहते हैं- ये जो साधु-सन्यासी लोग हैं, वो भी तो पापाचारी हैं, भ्रष्टाचारी है । इनको भी भूलो । इनका भी उद्धार करने अर्थात् श्रेष्ठाचारी बनाने मैं आता हूँ । तो तुम बच्चे जानते हो कि मनुष्य जो इस समय में भ्रष्टाचारी हैं सो पहले जरूर श्रेष्ठाचारी बनेंगे; क्योंकि पहले जो भी आएँगे वो पहले सतोप्रधान है यानी श्रेष्ठाचारी हैं । पीछे भ्रष्टाचारी हैं । सतोप्रधान से सती, सतो से रजो रजो से तमो । सबको ऐसे माना हर एक चीज को- मकान को, झाड़ को, कोई भी चीज को उठाओ तो पहले सतोप्रधान पीछे सतो रजो तमो । यह तो सबको होना ही है ।...बरोबर सिवाय परमपिता परमात्मा के इस सारे मनुष्य सृष्टि को श्रेष्ठाचारी कौन बनावे? पिछाड़ी भी तो चलती है ना । श्रेष्ठाचारी सबको बनाते हैं ना । ऐसे तो नहीं, सबको श्रेष्ठाचारी कोई स्वर्ग मे ले आएगा । नहीं । सभी आत्माओं को जो भ्रष्टाचारी बन गई है, जो तमोप्रधान बन गई हैं, उन सबको फिर श्रेष्ठाचारी जरूर बनाते हैं अर्थात् सतोप्रधान जरूर बनाएँगे । सतोप्रधान होने बिगर, पवित्र होने बिगर तो कोई आत्मा वहाँ पवित्र दुनिया में जा नहीं सकती है । तो ऐसे कहेंगे की सबको पतित पावन-तो जरूर सभी आत्माएँ पावन बनती है ना । फिर देखो, समझाया जाता है सभी आत्माओं को, नंबरवार हर एक धर्मवालों को । देखो, उनमें भी तो ऐसे ही हैं ना । क्राइस्ट होगा तो उनकी आत्माओ को अच्छा पार्ट मिला हुआ है । पवित्र तो सभी बनते हैं ।फिर आ जाते हैं पार्ट के ऊपर कि बरोबर क्राइस्ट को पार्ट सबसे अच्छा मिला हुआ है । जैसे अभी बाप को तो है ही सबसे अच्छा । वो तो है ही क्रियेटर डाइरेक्टर । वो तो एकदम सबसे जास्ती है । पीछे पार्ट किसको अच्छे ते अच्छा मिलता है? फिर यहाँ ब्रहमा और विष्णु, इनका पार्ट अच्छा है । उनका तो पार्ट विनाश का है । वो तो छोड़ दो, सृष्टि को तो बदलना है ही है । कलियुग के बाद सतयुग आना ही है । गाया जाता है ना ये विनाश ज्वाला इस ईश्वरीय यज्ञ से प्रज्वलित होती है । अभी शंकर का नाम क्या है? कुछ आता है? ये तो महिमा देने के कारण ''ब्रहमा, विष्णु, शंकरं” । विनाश तो होता ही है, ड्रामानुसार आपस में लड़ते हैं; परन्तु किसका नाम तो करें ना । किस द्वारा? तो बरोबर यहाँ गाया हुआ है । चित्र है ना । चित्र को भी तो समझानी देनी पड़ती है । चित्र तो है, परंतु जरूर कुछ इनमें समझानी है । समझानी बिगर तो कोई चित्र कोई काम का ही नहीं है । कोई भी इन चित्रों के ऑक्यूपेशन को तो जानते नहीं हैं । बाप आ करके समझाते हैं कि बरोबर ब्रहमा द्वारा... । ये त्रिमूर्ति की जो इतनी महिमा यहाँ चली आ रही है ''ब्रहमा, विष्णु, शंकरं, तीन देवताएँ, तो जरूर उनका भी ऑक्यूपेशन तो है ना । अब शंकर को गुम तो नहीं कर सकते है ना; क्योंकि शंकर है । तो शंकर के लिए फिर ये कहा जाता है- शंकर को तो यहाँ आने का है नहीं कुछ । न कोई शंकर कोने बैठ करके पार्वती को कथा सुनाई है । ऐसी तो कोई बात ही नहीं है । अभी तुम अनुभवी हो, जानते हो कि शंकर वहाँ रहते हैं । कहा जाता है उनकी प्रेरणा से, गाया जाता है कि वो आँख खोलते हैं तो विनाश हो जाता है । बरोबर उनका इस समय में वो ही है कि वो कोई विनाश नहीं करते हैं; पर जानते हो कि विनाश कैसे होता है । सो तो तुम जानते हो । आपस में लड़ करके । तो बाप ऐसे ही कहेंगे ना- मैं स्थापना, विनाश, पालना कराता हूँ । करनकरावनहार जो है, तो उनका भी तो अर्थ चाहिए ना । तो उनका अर्थ भी बैठ करके समझाया जाता है कि बरोबर ब्रहमा द्वारा, ब्रहमाकुमार-कुमारियों द्वारा, कौन? पाण्डव गवर्मेन्ट का जो हेड है, भगवान जिसको कहा जाता है । भगवान कोई कृष्ण को नहीं कहा जाता है ना । कृष्ण की आत्मा ही तो इस समय में पतित है ना । तो फिर भगवान आ करके कृष्ण की आत्मा को पावन बनाते हैं । तो गोया कृष्ण की आत्मा स्वयं पावन बन रही है । पावन बनती जा रही है और फिर मुरली बजाती जा रही है । देखो ऐसे है ना- पावन बनती जाती है कृष्ण के बहुत जन्म के अंत में । अभी कृष्ण का बहुत जन्म का अंत का अंत कहो या ब्रहमा का बहुत जन्म के अंत का अंत कहो । वो आदि, यह अंत । है तो एक ही बात ना । आदि-अंत संगम हो गया । तो यह समझने की बातें होती हैं ना । अभी ये तुम बच्चों को बड़ी-बड़ी सभा में शंखध्वनि करके, गजगोर करके अच्छी तरह से समझाना है कि भई, यह भारत आज से 5000 हजार वर्ष पहले, जब सूर्यवंशियों का आदि सनातन देवी देवता धर्म था तब यह एक ही धर्म था और सम्पूर्ण श्रेष्ठाचारी था और हीरे जैसा था, क्योंकि जब श्रेष्ठ थे यानी पवित्र थे तो हीरे जैसा था । अब इनको भ्रष्टाचारी किसने बनाया? कब से शुरू हुआ भ्रष्टाचार? किसने किया? भई, यह पांच विकार रूपी रावण ने । उन्होंने इन सबको इस समय में; क्योंकि इसने बनाना शुरू कर दिया । किसको? पहले-पहले शुरू करेंगे इनको । सन्यासियों को थोड़े ही करेंगे । नहीं । पहले-पहले भ्रष्टाचारी बनना शुरू होते हैं ये भारतवासी । पीछे आते हैं दूसरे । आते रहते हैं, वो इनको थोड़ा-थोड़ा थमाते हैं, श्रेष्ठाचारी बनाते हैं । सन्यासी न होते तो फिर यह भारत बहुत भ्रष्टाचारी बन जाता । सन्यासी थमाने के लिए आते हैं । तो सन्यासियों की भी तो महिमा है ना । तो जैसे महिमा है देवी-देवताओं की, तैसे महिमा है सन्यासियों की । तो जैसे देवी-देवताओ की अभी कोई महिमा नहीं है; क्योंकि पतित बन गए हैं, भ्रष्टाचारी बन गए हैं, जरूर तैसे दूसरे धर्म वाले भी चल-चल करके पिछाड़ी मे आ करके भ्रष्टाचारी बनते है । जबकि पहले धर्म वाले ही भ्रष्टाचारी, जो अपन को गाते हैं, कहते हैं कि बरोबर भ्रष्टाचार हो गया है, उनको मालूम नहीं है कि कोई 5000 वर्ष के पहले यहाँ श्रेष्ठाचार था । वो पता ही नहीं है उन लोगों को? क्योंकि सभी में उल्टा लिख दिया है । तो ऐसे सभी जो भी पहले-पहले धर्म आते हैं, वो पहले-पहले श्रेष्ठाचारी, पिछाड़ी में वो भी भ्रष्टाचारी बन जाते हैं । तो उनको भी यह मानना चाहिए, तब जबकि तुम समझाएँगे कि बरोबर पहले-पहले देवताएँ श्रेष्ठाचारी थे । पहले-पहले जो धर्म होते हैं वो श्रेष्ठाचारी होते है, पीछे वो सतोप्रधान से सतो रजो तमो में जरूर आना होता है । ऐसे सन्यासियों को भी आना ही पड़ता है, इसलिए वो भी भ्रष्टाचारी है । तो जबकि सभी भ्रष्टाचारी हो गए हैं, अभी तो सभी पतित हो गए हैं, तभी तो उस पतित-पावन को याद करते हैं ना । तो पावन दुनिया है ही श्रेष्ठाचारी । तो पावन दुनिया बनाने वाला कौन? वो तो कहते हैं पतित-पावन हमारे परमपिता परमात्मा ही हैं । अभी उनको यह तो पता नहीं है कि कौन हैं? वो तो लिख देते हैं- सीता-राम, फिर ठोक देते हैं रघुपति राघव राजा राम । तो राम और रघुपति तो फिर त्रेता में हो जाते हैं । उसको भी त्रेता में तो ले आते हैं । फिर वो कृष्ण का और युग बनाय दिया है । नहीं तो राधे-कृष्ण और लक्ष्मी-नारायण का युग पहला है । उन्होंने उनको देख करके और द्वापर में एक युग बनाय दिया है जिसमें कृष्ण को दिया है । तो देखो अंधधुंध भ्रष्टाचारी बन गए ना; क्योंकि श्रीकृष्ण को जब भ्रष्टाचारी बना दिया तो सभी भ्रष्टाचारी हो गए हैं । तो तुम बच्चों को बहुत अच्छी तरह से ये सर्विस में लगना है, थक नहीं जाना है । तुम लोगों को अभी श्रेष्ठ बनना है औरों को श्रेष्ठ बनाय । थक जाएँगे तो फिर भ्रष्ट के भ्रष्ट बन जाएँगे और तुम जानते हो कि जो ये धंधा करते, भ्रष्टाचारियों को श्रेष्ठाचारी बनाते, अगर खुद भी फिर भ्रष्टाचारी बन जाते हैं तो दुर्गति को पाते हैं और तुम जानते हो कि बरोबर थक जाते हैं, जो कहते हैं ना ऐ रात के राही, ऐ स्वर्ग के राही थक मत जाना'' । अभी तुम जानते हो कि बरोबर थक जाते हैं, आश्चर्यवत् फिर वो चलते-चलते थक जाते हैं । तो थक जाने से फिर क्या होता है? थक जाने से जिस रस्ते से गए फिर उस रस्ते पर वापस आ जाते हैं । देखो, अभी यात्रा पर मनुष्य झुण्ड के झुण्ड जाते हैं ना । अभी देखो, बहुत गए और वहाँ बहुत बरसात आ करके पड़ी जोर सेबिल्कुल.. । तूफान, बरसात कोई सहन न करे, कोई सहन कर सके । तो बहुत ही लौट करके आ गए । लौट करके आ गए तो उसी जगह में आकर पहुँचे ना । यात्रा पर तो नहीं पहुचे ना । जाते थे पावन जगह में, फिर लौट करके उसी पतित जगह में पहुँचे । तो यहाँ भी क्या होगा? हे राही, अगर तुम फिर हाँथ छोड़ दिया और भ्रष्टाचारियों को श्रेष्ठाचारी न बनाया और वापस हो गए तो फिर वहाँ भ्रष्टाचारी बन जाएँगे; क्योंकि तुम लौट करके आए ना, कायर बन करके आए ना कि मैं नहीं चल सकूँगा । यानी मिसल तो ऐसे होता है ना- मैं स्वर्ग तरफ नहीं चल सकता, मैं यात्रा नहीं कर सकता हूँ । मुझे माया के बहुत तूफान आ गए हैं । रडी भी करते हैं । तो देखते हो, तूफान बिगर तो कोई लौट आवे नहीं । जिसको माया का तूफान बहुत लगता है वो लौट करके फिर उसी जगह में आ जाते हैं । उसी जगह में आ जाना है जहाँ कि पहले थे । देखो, वापस आ गए ना । आश्यर्चवत् चलते-चलते, श्रेष्ठाचारी बनते-बनते अगर फिर भ्रष्टाचारी बन गए तो फिर अपने बाप की निंदा कराई ना कि अरे! ये चलते-चलते थक जाते हैं । थक करके वापस आ गए । उसी जगह में आ जाते हैं जिस जगह में आए । बस, फिर क्या हुआ! हमारी यात्रा हुई? ऐसे तो नहीं है कि यात्रा फिर कोई दूसरे बरस में या तीसरे बरस में करेंगे । वो तो हुई जिस्मानी यात्राएँ । यह यात्रा तो ऐसी है जो चलते चलो । अगर मुँह फेर दिया तो फिर भ्रष्टाचारी बन जाते हैं । मुँह तो फेरते हैं ना । कल चित्र में भी तो बताया ना कि राम की तरफ से मुँह फेर दिया, परमपिता परमात्मा की तरफ से मुँह फेर दिया और वापस आकर बैठ गया, वो श्रेष्ठाचारी धंधा छोड़ दिया तो फिर भ्रष्टाचारी बन जाते हैं । देखो, बनते हैं ना ऐसे । चलते-चलते फिर वो थक जाते हैं, फिर वही और ही जास्ती भ्रष्टाचारी बन जाते हैं । समझा ना । एक तो भ्रष्टाचार करेंगे, दूसरा जो बहुतो को नुकसान पहुंचेगा, क्योंकि जो श्रेष्ठाचारी बनते हैं वो बहुतो को श्रेष्ठ बनाते हैं और फायदा पहुचाते हैं और जो फिर भ्रष्टाचारी बनते हैं सो फिर औरो को भी नुकसान करते हैं । होते हैं ना! तो इसलिए तुम्हें श्रेष्ठाचारी बनने की राह से लौटना नहीं है । अच्छी शंखध्वनि करते रहो । गवर्मेन्ट को भी शंखध्वनि करो । डरो मत, कायर मत बनो । बड़े-बड़े भाषण करो । जबकि गवर्मेन्ट खुद ही भ्रष्टाचारी है तो जरूर कोई और गवर्मेन्ट चाहिए । तो बरोबर भ्रष्टाचारियों के ऊपर फिर पाण्डव गवर्मेन्ट जिन्होंने श्रेष्ठाचारी गवर्मेन्ट बनाई है । वो पाण्डव गवर्मेन्ट कौन है, वो है ब्रहमाकुमार और कुमारियाँ । देखो, पाण्डव गवर्मेन्ट में तो यहाँ ब्रहमाकुमार और कुमारियाँ आएंगे ना । प्रजापिता ब्रहमा, उनकी बच्ची हो गई ब्रहमाकुमार और कुमारियाँ । वो किसकी पौत्री हैं? शिवबाबा की । तो सर्वशक्तिवान हो गया ना । तो सर्वशक्तिवान अपने पौत्र और पौत्रियों द्वारा; क्योंकि बच्चा तो एक है ना- प्रजापिता ब्रहमा, तो उन अपने ब्रहमाकुमार-कुमारियों द्वारा; क्योंकि तुम बहुत हो ना, वो तो एक बाप हो गया, तुम तो शक्ति सेना हो गई ना ।..तुम जानते भी हो कि बरोबर हम खुद भी जो भ्रष्टाचारी थे अब श्रेष्ठाचारी बन रहे हैं । भ्रष्ट और श्रेष्ठ कहा ही जाता है पतित और पावन को । तो बरोबर हम पतित से पावन बन रहे हैं । किस द्वारा? उस पतित पावन द्वारा । वो एक और पावन बनने वाली तो बहुत बच्चियाँ होंगी ना । तो बहुत का नाम है प्रजापिता ब्रहमा के बच्चे ब्रहमाकुमार और कुमारियाँ । उनका धंधा ही है, तो तुम बताएँगे ना, हम जो ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ हैं जो शिवबाबा के पौत्र और पौत्रियाँ यूँ है सभी, परन्तु जानते नहीं हैं अपने बाप को, हम तो जानते हैं । हम उन्हों की मत द्वारा, श्रीमत द्वारा, जो भ्रष्टाचारी भारत है उनको श्रेष्ठाचारी बनाते हैं । तो श्रीमत से श्रेष्ठाचारी उन बगैर कभी कोई बन नहीं सकते हैं और बस वही श्रीमत और उनको गाया भी जाता है- श्री श्री 108 जगतगुरु । यह रुद्रमाला भी उनके नाम पर है । कोई सन्यासियों के नाम पर तो नहीं है । नहीं, वो तो तुम कह सकते हो कि वो स्वयं भ्रष्टाचारी हैं । समझा ना, क्योंकि वो परमपिता परमात्मा जो इस भारत को श्रेष्ठ बनाते हैं, वो उनसे बेमुख करके अपन को कह देते हैं- हम हैं जगतगुरु । जगत् यानी सारी सृष्टि को, गुरु है सद्‌गति देने वाला । बाप कहते हैं- ऐसे गुरुओं को छोड़ दो । जैसी गवर्मेन्ट भ्रष्टाचारी, वैसे उनके गुरु भ्रष्टाचारी हो गए । वहाँ तो कोई गुरु होते ही नहीं हैं; क्योंकि श्रेष्ठाचारियों को गुरु की तो कोई दरकार है नहीं बिल्कुल ही । समझा ना । जबकि श्रेष्ठाचारी बनाय दिया फिर गुरु की दरकार नहीं है । तो वहाँ कोई गुरु होते ही नहीं हैं । तो देखो किसने बनाया? सत्गुरु ने ऐसे बनाया, न कि कलयुगी अनेक गुरुओं ने । यह सभी भाषण के लिए एक तो धारणा चाहिए । अब यह तो सब बच्चे जानते हो कि हाँ, इसमें बहुत हैं, जो कुछ भी नहीं धारण कर सकते हैं, कुछ भी नहीं समझा सकते हैं । तो जरूर उनका पद भी ऐसे ही कम होगा । सर्विस कम, तो पद भी कम । सारा मदार है बच्चों के सर्विस के ऊपर । तो जो-जो अच्छी तरह से शंखध्वनि करेंगे - और शंख चाहिए बहुत; क्योंकि बाबा भी रहमदिल, हम बच्चे भी रहमदिल । जावें, शंखध्वनि करें । कहीं से भी चांस मिले, कोई फर्स्टक्लास निमंत्रण मिलते हैं तो चलो, उनको भी भ्रष्टाचार को श्रेष्ठाचार बनावें । तो पहले तो माताओं का काम हैं ना! पहले है तुम शक्तियों का, बच्चियों का काम । सन एण्ड डॉटर शोज फादर एण्ड मदर । यहाँ मदर एण्ड फादर हैं न' तो मदर एण्ड फादर तो बाप को ही कहेंगे ना । तो बरोबर हमारा फर्ज है, हमको तरस आता है कि जो भ्रष्टाचारी हैं उनको श्रेष्ठाचारी बनावें । जब मुरली सुनते हो ना तो तुम लोगों को शौक आता है कि हम ऐसे जा करके और ऐसे मुरली बजावे; परन्तु जिनको मुरली बजाने का शौक नहीं होता है वो बस सुना और ठण्डा । गरम होना चाहिए ना । बस, अभी हम बादल भरें । प्वाइंट्स बड़ी अच्छी है । हम जाकर शंखध्वनि करें । अभी शंखध्वनि करने वाले की ताकत चाहिए ना । सब तो शंखध्वनि नहीं कर सकेंगे । ताकत चाहिए कि यह जो तुम लोग कहते हो भ्रष्टाचार-भ्रष्टाचार, पहले समझो तो सही कि श्रेष्ठाचार किसको कहते हो या कहते हो पीस-पीस-पीस । पीस थी कब? पीस कौन स्थापन करने वाला है? कोई मनुष्य थोड़े ही पीस स्थापन कर सकते हैं । भला पीस कब थी? किस पीस को तुम लोग चाहते हो? ये कलहयुग मे अनेक भ्रष्टाचारी धर्म हैं । वहाँ पीस कैसे होगी? तो बरोबर पीस थी, तब जबकि बाप ने आ करके इन रावण द्वारा ये जो पीसलेसनेस है उसका विनाश किया था । ये सभी रावण सम्प्रदाय को तो विनाश होना चाहिए ना । तो बरोबर गाया हुआ है कि ''राम गयो रावण गयो ।' 'कब? जब महाभारत की लड़ाई लगी । ''जिनके बहु परिवार ', तो बरोबर जो भ्रष्टाचारी से श्रेष्ठाचारी बना रहे हैं, तो थोड़े हो ना । राम की सम्प्रदाय तो थोड़ी है ना । उनमें भी देखो कितने नंबरवार हैं । कोई इतना शंखध्वनि करने वाला मजबूत नहीं है । बेचारे फँसे हुए हैं, कोई किसके मोह मे, कोई किसके मोह में और कहने मात्र तो बस कहते हैं- हाँ बाबा, आप पतियों का पति है; परन्तु पतियों के पति को याद करती हैं आधा घंटा, पाव घण्टा और बाकी सारा दिन याद करती हैं उन पतियों को । अभी बेचारे उन पति को कितना याद करने से उनका विकर्म विनाश होगा जो) रात-दिन अपने पतियों को, मित्र-संबंधियों को याद करती है? याद करती हैं बहुत ही ; क्योंकि उनके साथ रहती हैं ना । इनके साथ तो रह नहीं सकते हैं । हाँ, इनके साथ रहें, परन्तु रहने का हुक्म नहीं है । वो कहती हैं- नहीं । यहाँ तो बाबा जानते हैं कि तुम रह जाओ; परन्तु यहाँ भी माया ऐसी है 25 बरस भी रहने वाली को घूर भी ज्ञान नहीं हुआ है । घूर भी श्रेष्ठाचारी नहीं बने हैं जो कोई को श्रेष्ठाचारी बनाएँगे । और ही भ्रष्टाचारी बन गए हैं । श्रेष्ठाचारी नहीं और ही भ्रष्टाचारी बन गए हैं; क्योंकि माया है ना फिर । यहाँ अगर कोई रह श्रेष्ठाचारी न बने तो माया और ही भ्रष्टाचारी बना देती है । नाक से पकड़ती है और फिर भी देखो संग दोष भी है । भ्रष्टाचारी से किसका श्रेष्ठाचारी का संग न हो । -संग तारे कुसंग बोरे' । बड़ा रंग लगता है । अनुभव कहता है- अगर कोई सर्विसेबुल नहीं है और फिर सर्विसेबुल के साथ रहा पड़ा है तो वो डिससर्विस वाले का रंग सर्विस के ऊपर भी पड़ जाता है । ये भी देखा गया, अनुभव भी ऐसे कहते हैं कि बरोबर. सग तारे कुसग बोरे । अभी यहाँ तो तुम्हारे पास संग भी अच्छो का है, तो कुसंग का भी है । रामराज्य में बरोबर संग भी था, कुसग भी था; जिसलिए फिर देखो वो ग्रहचारी लग जाती है । तो संग भी बड़ा खराब है । इसमें बड़ी खबरदारी करना चाहिए । माया ऐसी है जो पता भी न पड़े किसको कि बरोबर हमको कोई माया काट रही है । किसको भी पता न पड़े, ऐसी चतुर है माया । जैसे चूहा चतुर है ना । घर धनी है ना । तो इस समय में घर धनी रावण है, इस घर-भारत मे । अरे! वो ऐसा उस्ताद है, पता भी किसको न पड़े, बिल्कुल ही एकदम ठण्डा कर देते हैं । सर्विस का शौक ही उड़ा देते हैं । माया ऐसी कड़ी है । ..... शिवबाबा कहते हैं बच्चों के लिए । ऐसे नहीं कोई समझे कि बाबा हमको कुछ कहते हैं । नहीं, शिवबाबा कहते है बच्चों को । इनके ऊपर दोष नहीं लगाओ । बाबा तो कहते हैं ना- इनको कोई समझो ही नहीं । शिवबाबा ही समझो कि बरोबर शिवबाबा ललकार करते हैं कि शंक्तियों अभी तुमको तो सारे भारत को..... तुम गवर्मेन्ट हो ना । एकदम कहो कि हम तो पाण्डव गवर्मेन्ट हैं; क्योंकि ब्रहमाकुमार और कुमारियों हैं । अरे! कृष्ण का तो कुमार-कुमारियाँ हो भी नहीं सकती हैं ना । कृष्ण ने किसको वहाँ बैठ करके समझाया? वो तो सतयुग वालाप्रिंस, कलियुग में कहाँ से आया? और याद तो पतित-पावन को करते हैं ना । भ्रष्टाचारी, जो श्रेष्ठाचार स्थापन करने वाला है, उनको याद करते है ।देखो, ये वाणी चलती है, कोई-कोई तो अखबार भी लिखते है । समझा ना । तो अखबार बनाने वाले भी कोई तो बाबा के पास अच्छे श्रेष्ठाचारी हैं, कोई स्वयं भी भ्रष्टाचारी. । फिर जो अच्छे वाले होंगे सो अच्छे लिखेंगे । जिनका निश्चय पूरा न होगा वो उल्टा लिख देंगे । यह माया ऐसी है आज निश्चय है, कल संशय और फिर कल संशय है, आज निश्चय, क्योंकि किसको कुछ भी संशय है, एक सेकण्ड में लग जाए तो निश्चय हो जाता है कि हाँ, बरोबर यह तो बाप है, परन्तु फिर भी निश्चय वाले को माया फिर अपने तरफ संशय बनाने के लिए कितनी मेहनत करती है । देखो, कैसे-कैसे अच्छे-अच्छे निश्चय बुद्धि, आ करके यहाँ रहने वाले, एकदम बड़ी महिमा करने वाले, वो अखबारों में छपाने वाले, आज देखो हैं नहीं । माया एकदम एक ही थप्पड ऐसा जोर से मारती है, मुंह ही फेर देती है एकदम । तो बाबा कहते रहते हैं- बच्चे, माया बड़ी दुस्तर है । अगर तुम बाप से कोई भी गफलत की या उनसे कुछ उल्टा-सुल्टा या योग तोड़ा या कुछ निंदा की या फलाना की तो एक ही थप्पड लगेगा और मुँह एकदम फेर देगा । फिर काला मुँह हो जाएगा । गोरे के बदले में वही काले के काले रह जाएँगे; क्योंकि बाबा आया ही हुआ है काले मुँह वाले बन्दरों को गोरे देवता बनाने के लिए । यहाँ के सब बन्दर हैं ना । शिवबाबा बोलते हैं ना कि राम ने बन्दरों की सेना ली । फिर बन्दर तो उधमी होगा ना । बरोबर इस सृष्टि में इस समय में शिकल है मनुष्य की, सीरत बन्दर की, भ्रष्टाचारी की । फिर यहाँ जो मनुष्य है, शिकल मनुष्य की, सीरत फिर देवताओं की । अभी सूरत है बरोबर। नारद का मिसाल दिखलाया ना कि देखो, नारद भगत की शिकल तो कैसी अच्छी है, परन्तु सीरत ऐसी खराब है- बन्दर । तो ये सभी दृष्टान्त वगैरह भी यहाँ के हैं । तो अभी भी तुम अपने को देखो, तो बरोबर हम सो देवता बन रहे हैं, हम शंखध्वनि कर रहे हैं । अभी हम शिवबाबा को याद करते है और स्वर्ग को याद करते हैं । कितना याद करते हो? अरे! तुमको तो पुरुषार्थ करते-करते-करते बस उनकी याद रहे पिछाड़ी में । ऐसे ना हो कि कोई दूसरी याद आ जावे । दूसरी याद आई तो मिला जन्म, खाई सजाएँ । तो बाबा ने समझाया है । मनुष्य तो जानते नहीं हैं कि सजाएँ कैसी मिलेंगी इतने थोड़े-से समय में । अरे! बच्चे, जो शिवकाशी के ऊपर बलि चढ़ते थे ना, उनके सभी विकर्म विनाश होते थे । कैसे विनाश होते थे? सजा खाकर; क्योंकि योग तो वहाँ है नहीं, ज्ञान तो कोई है नहीं । योगाग्नि से तो विकर्म विनाश हो न सके । दूसरा कोई उपाय नहीं । तो फिर उनका विकर्म कैसे विनाश होता है? वो सजा खाते हैं । खाते-खाते फिर...वैसे तुम भी ऐसे ही हो जाएँगे, अगर विकर्माजीत न बने, योग न लगाएँगे । जो इसको पतियों का पति कहते हो ना...., तो उनसे वहाँ हटाना पड़ता है । अरे! मासी का घर थोड़े ही है ।.....तुम अभी विश्व का मालिक बनते हो । जिन लक्ष्मी-नारायण को तुम पूजते हो और आधा कल्प पूजा है, अभी तुम्हारी ये आश पूर्ण करते हैं, तुमको फट से स्वर्ग कामालिक बनाते हैं । देखो, यहाँ भी प्रजा तो कॉमन है ना । देखो, वजीर, प्रेसीडेन्ट जाते हैं, उनकी कितनी महिमा होती है । मिनिस्टर जाते हैं कितनी उनकी रिसिप्शन होती हैं, ताकि भेंट हो जाए.... । फर्क तो है ना । सभी बच्चे देखो यहाँ भी पुरुषार्थ करते हैं, हमेशा पढ़ते हैं तो भी ऊंच पद पाने के लिए । तो यह तो पुरुषार्थ सभी करते हैं । व्यापारी भी ऐसे करते हैं कि हमको धन बहुत मिले, पढ़ाई वाले भी कहते हैं- धन बहुत मिले । सम्पत्ति के लिए मारा-मारी; परन्तु जहाँ विकार की मारा-मारी है वहाँ उनको सम्पत्ति का तो सुख मिल नहीं सकता है । यहाँ तुम्हारी मारा-मारी हर एक बात के लिए है- हम धनवान भी बनें, आयुष्मान भी बनें, पुत्रवान भी बनें । तुम्हारी मारा-मारी इसमें है, सुल्टी । वो उल्टी । तुम्हारा रात-दिन यहाँ चलता है कि अभी हम बाप से पूरा वर्सा लेवें, पूरा श्रेष्ठाचारी बन जायें । हम जानते हैं कि भ्रष्टाचारी बन्दर थे और बन्दरिया थे । अब हम श्रेष्ठाचारी देवी-देवता बन रहे हैं । अरे, भारत में तो थे ही ये । इतना भी नहीं समझते हैं की बरोबर..... नहीं तो श्रेष्ठाचार, भ्रष्टाचार अब तक और कोई जगह में है नहीं । ये भारत में है । क्यों? बरोबर यहाँ बहुत श्रेष्ठाचार था, भारत स्वर्ग था । अभी वही भ्रष्टवादी । कौन श्रेष्ठ स्वर्गवासी थे, कौन नर्कवासी बने, यह तो कोई को पता नहीं है । वो कहते भी हैं आपे ही पूज्य, आपे ही पुजारी । परमपिता परमात्मा को तो पुजारी कभी नहीं कोई समझते हैं; परन्तु सर्वव्यापी के एक कारण से बेचारे पुजारी बन गए । सब पूजा करते हैं, तो बोला- भगवान पूजा भी करते हैं, सब कुछ करते हैं, विकार भी करते हैं । तो देखो, भ्रष्टाचारी भी पूरे बन गए हैं । बाबा कहेंगे- इन समेत तुम लोग सब बन गए थे । फिर ये कहते थे बरोबर भ्रष्टाचारी बन गए थे, अब हम सो श्रेष्ठाचारी जो थे सो फिर श्रेष्ठाचारी बन रहे हैं । अपन ऐसे कहेंगे । कौन बना रहे हैं? बाप बना रहे हैं हमको फिर सो श्रेष्ठाचारी । तो तुम भी ऐसे शंखध्वनि करो । अच्छे-अच्छे जो महारथी लोग हैं । नम्बरवार तो हैं ही । कोई-कोई तो क्या हैं, जैसे बकरियाँ, रीड हैं, पेट के पुजारी, बस उनको खाना चाहिए । कोई-कोई तो ऐसी ब्रह्माकुमारियां हैं, बस खाना चाहिए, दूसरी बात सुनती नहीं हैं एकदम । ऐसे भी हैं मुर्दे । अच्छा-अच्छा खाना चाहिए, आराम चाहिए । याद रख लेना, अच्छी-अच्छी ब्रहमाकुमारियों के ऊपर यह ग्रहचारी भी बैठ जाती है । समझा ना । फिर सर्विस ठण्डी हो जाती है; क्योंकि माया बड़ी युक्ति से फूं फूं फूं करती है ,ठण्डा एकदम, खतम हो जाती है । नहीं तो देखो सर्विस कितनी करनी चाहिए । चक्कर लगाना चाहिए ना । एक जगह में थोड़े बैठ जाना है । बड़ी-बड़ी नदियों को तो खूब चक्कर लगाना चाहिए; परन्तु चक्कर लगाने से भी आजकल सब डरते हैं । एक जगह में आराम रहता है । कौन जावे, धक्का खाये, यह करे, वो करे । तो ऐसे नहीं, ऐसे बनने से फिर वो जो समझते हैं कि हम नंबर वन में आएंगे, टू में आएंगे, थी में आएंगे. ब्रह्माकुमारियो का जो माला का नंबर था जो बनते रहते थे और गाते रहते थे- फलाने आठ नंबर में जाएँगे, फलाने चार में, फलाने तीन नंबर में जाएँगे । फलानी तीन नंबर वाली वो धूल में भी चली गई, जहन्नुम चली गई एकदम । तभी बाबा कहते हैं ना- ब्राहमणों की माला थोड़े ही बनती है । आज देखो तो आसमान, कल देखे तो एकदम पाताल । नहीं तो तुम ब्रहमाकुमारियों से पूछो । हम माला बनाते थे- अरेये फलानी तीसरे नम्बर में आएगी, यह पहले नम्बर की शहजादी है । यह शहजादी शहजादा बनेगा । नशहजादी है, न शहजादा है । नीचे पड़ गए । तो इसलिए माया छोड़ती नहीं है । जो अच्छे-अच्छे पहलवान अपने को समझते हैं, छिपा-छिपा कर ऐसा चक्कर मारती है, दण्ड मारती है, इसलिए बच्चों को बहुत खबरदार रहना चाहिए । संग बड़ा खराब है । तुम देखते हो यहाँ बहुत अच्छी-अच्छी आती हैं । कोई भ्रष्टाचारियों के संग में, छटेलियों के संग में उनकी बुद्धि ही बेताली हो जाती हैं । देखा जाता है बरोबर । असर लगता है । तो जबकि यहाँ वालों से ही.... .तो बाकी जो घर में रहते हैं... । देखो, घर में रहने वाले गृहस्थियों को कितनी मुसीबत है, कितना संग है उनको । तो इसलिए गाया जाता है कम से कम सात रोज तो बेशक आवे; परन्तु ऐसे नहीं कि खाना खाने के लिए आवे और चले जावे । ऐसे तो भूख वाले बहुत हैं । आएँगे, बोलेंगे- अच्छा, हमको कोई प्रबंध दो तो हम सात रोज यहाँ आएंगे । ठग तो बहुत हैं ना । बोलेंगे- सात रोज हमें यहाँ माल मिल जाएगा, इसमें क्या नुकसान है! तो ठगी भी बहुत है ना । बड़ी सम्भाल करनी है । बड़े गुंडेभी लोग होते हैं, बात मत पूछो । आसुरों की दुनिया है । भले शिकल उनको ऐसे नहीं दी है, जैसे मुह में डाल करके असुरों का शिकल बनाते हैं ना । बाकी नहीं, शिकल-सूरत क्या है? अरे, वो तो जो एरोप्लेन में फोटो निकले थे ना, वो निकालकर उन्होंने असुरों का सच बनाय दिया है । बाकी है तो मनुष्य । ये देखो, तुम जानते हो कि हम देवता थे, इस सारे भारत के मालिक थे और कोई भी नहीं था । अब तो देखो क्या बन गए हैं । तो तुम बच्चों को यह मालूम है । तो बाबा कहते हैं- देखोअपने में कोई भी अवगुण आए- सर्विस, सर्विस, सर्विस, क्योंकि हड्‌डी भी देनी है । यहाँ कोई आराम करने के लिए अभी नहीं बैठे हुए हैं । वाइल की साड़ी पहनेंगे और फलाना करेंगे तो बुद्धि भी वाइल की साड़ियों में चली जाएगी । तुमको शुरुआत में बाबा ने कहा था आठ चत्ति वाला और यहाँ तो आजकल कोई अच्छी कपड़ा न होवे तो ''शी,,,,, फू......- ऐसे करने लग पड़ते हैं । वो संग का रंग लगता है ना । इनको वो क्यों है? आजकल पाई पैसे वाली ब्राहमणी, जिनमें कोई दम नहीं है सो फिर उंच वाली ब्राहमणी से रीस करती हैं कि देखो, इनको है ना, फिर हमको? अरे इनको है, ये सर्विस करती है । तो भी उनको भी राजी करने लिए क्यों ना अपने हल्के ही पहनें, नहीं तो अभिमान आता है कि हमको वाइल की साड़ी पड़ी है । वो भी अभिमान आ जाता है । नहीं, पोशाक भी पूरी होनी चाहिए । आजकल तो देखो बहुत निकल पड़े हैं ना- निल्लान नॉयलान फलाना फलाना । भई, ऐसी साड़ी पहने जो कभी धोने की तकलीफ न हो । तकलीफ तो तुम लोगों को बहुत अच्छी लेनी है, नहीं तो अहंकार आ जाता है । रीस हो जाती है पीछे । रीस कम थोड़े ही है- ये फलाना ऐसा कपड़ा पहनती है, हम क्यों नहीं पहनें? फलाना ये करती है, हम क्यों ना पहनें? बाबा सेन्ट डालते हैं, हम क्यों नहीं डालें? ऐसे भी तो रेस होती है ना । हर बात की फिर रेस कर देते हैं ; इसलिए ब्रहमाकुमारियों के ऊपर तो बड़ा बोझा है पाप का । ब्रह्माकुमारी जो अच्छी-अच्छी है वो अगर कोई गफलत करती है तो उनके ऊपर बड़ा दण्ड पड़ता है । पीछे वो अवस्था ही कोई काम की नहीं रहती है । कोई सर्विस नहीं होती है,क्योंकि माया है ना । कमाई में ग्रहचारी जरूर लगती है । ऐसे मत समझो, नहीं लगती है । देखते हो, बहुत ग्रहचारी लगती है, ऐसी ग्रहचारी जो राष्ट्र की ग्रहचारी आ जाती है । मंगल की दशा बन जाती है । बिल्कुल देवाला एकदम । वो ऐसा देवाला है, जो चलते-चलते बोलते हैं- अभी हमको जाना ही नहीं है । हमको स्वर्ग में जाना नहीं है, नहीं है, नहीं है । ऐसे भी कर देते हैं । हमको तो नर्क में ही रहना है, रहना है, रहना है, गोता खाना है । ऐसे भी बुख जाते हैं और बरोबर प्रैक्टिकल में, तुम लोगों को बताया ना कि कितना दिन, कितना वो साक्षात्कार ले आती थी । हम, मम्मा तुम बच्चे, वो जो प्रोग्राम ले आते थे, उनमें हम बैठ करके रहते थे । वो हेड हो करके बनती थी, नजर करती थी, क्योंकि बाबा उनको दृष्टि दे देते थे- कौन ठीक बैठे हैं, कौन योग में बैठे हैं । वो बैठ करके दृष्टि देती थी बाबा की प्रवेशता से, मदद से । टीचर बन करके बैठती । वो आजकल बिल्कुल ही गटर.... । ऐसी-ऐसी फर्स्टक्लास-फर्स्टक्लास । तो अच्छे-अच्छे फर्स्टक्लास-फर्स्टक्लास भी गिर पड़ते हैं । अंहकार आ जाता है ना । अंहकार कोई भी नहीं आना चाहिए । कोई सेन्टर खोलते हैं, उनको भी अहंकार आ जाता है- मैंने सेन्टर खोला । मरा एकदम । अरे नहीं, यह तो शिवबाबा ने हमारे से सेन्टर खुलवाया । शिवबाबा ने, करनकरावनहार ने मेरे द्वारा सेन्टर खुलवाया मेरी सद्‌गति करने लिए । मैंने खोला, यह कह देंगे तो वो तुम्हारे ऊपर पड़ेगा । तुम्हारी दशा तुम्हारी अवस्था कमती हो जाएगी, अगर झूठी रिकमेंडेशन की तो । अगर ऑफीसर झूठी रिकमेंडेशन करते हैं तो ऑफीसरों के ऊपर केस चल रहा है । मालूम है तुमको? कहो, सिकन्दराबाद से कौन आए हैं? फट दिल भी लग जाती हैं; क्योंकि उनकी सेवा करती हैं तो उनको भी रिकमेन्ड कर देते हैं, यह भी बहुत अच्छी है । कोई बासन माँजती है, कोई उनको स्नान कराती है, कोई उनको. पिलाती है, कोई माथे पर मालिश करती है । फिर उनको भी पसन्द करके सर्टीफिकेट दे देती हैं । ऐसे नहीं करना कभी । सेवा लेने के कारण बहुत ब्रह्माकुमारियां जठर बन जाती हैं, आदतें पड़ जाती है । फिर जो कोई बाहर वाले देखते हैं ना, बोलते हैं- ये तो महारानी बन गई है । यहाँ दास-दासियां रख दिया तो फिर वहाँ नहीं मिलेगा । जो यहाँ दास-दासियां रख देती हैं ना सर्विस के लिए फिर उनको वहाँ नहीं मिलते हैं । तो यहाँ खबरदारी बहुत चाहिए । जैसे कर्म करते हैं, देख करके और भी करने लग पड़ते हैं । अरे बच्ची, सम्भाल चाहिए यहाँ । अच्छा है ना, मंगलम भगवान विष्णु... । देखो, तुमको विष्णु का बनाते हैं मंगल के दिन भगवान... । अरे बच्ची, मुझे नहीं खिलाओ रोज हिर गई हैं सब खाने के लिए । मुझे इंजेक्शन.... । बापदादा की मीठे-मीठे सिकीलधे सर्विसेबुल नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार बच्चों को याद प्यार । तो सर्विसेबुल भी बहुत जरूरी है और अच्छी सर्विस ।