08-09-1964     मधुबन आबू    रात्रि मुरली    साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हेलो, गुड इवनिंग यह आठ सेप्टेम्बर का रात्रि क्लास है
मम्मा किसके पास बैठी है? बापदादा के पास । और भी किसको बताना है किसके पास बैठी है? (सभी ने एक साथ जवाब दिया) अरे, एक-एकबोलो ना । ओ बेटी, किसके पास बैठी हो? (पिता के पास) । वण्डर नहीं है । वण्डर यह है कि हम निराकार शिवबाबा के पास बैठे हैं । क्यों? तुम्हारा कनेक्शन है ही शिवबाबा के साथ (किसी ने कहा-मात-पिता के साथ) । लेन-देन भी शिवबाबा के साथ । मात-पिता भी एक कॉमन अक्षर हो जाता है । वो तो ठीक है । भले भारतवासी कहते हैं''तुम मात-पिता हम बालक तेरे'', परन्तु कोई भी जानते तो नहीं हैं ना । बाकी वास्तव में तुम्हारा कनेक्शन लेन-देन सभी शिवबाबा के साथ है । यह तो बीच में दलाल है । दलाल यानी दादा से तो कोई दिल नहीं लगानी है । दिल लगानी है फिर भी शिवबाबा से । शिवबाबा के साथ योग रखने से ही विकर्म विनाश होते हैं । शिवबाबा से ही वर्सा लेते हो; तो इसीलिए बच्चों को कहा भी जाता है शिवबाबा को याद करो; क्योंकि बाबा है जिससे वर्सा मिलता है । अगर मात-पिता कहेंगे तो भी वर्सा फिर भी पिता से मिलना है, माता से नहीं मिलना है । तो फिर क्यों न मूल को पकड़ लेवे । तो किसके साथ बैठे हो? शिवबाबा के संग, क्योंकि यह वण्डरफुल है । कहते ही हैं शिव को बाबा । शिवबाबा के साथ । मम्मा किसके साथ बैठी हो? (मम्मा ने जवाब दिया- शिवबाबा के साथ) । ये भी कहते हैं कि शिवबाबा को याद करो । शिवबाबा भी कहते हैं कि मुझे याद करो । ऐसे नहीं कहते हैं कि मात-पिता को याद करो । नहीं, वो भी कहते हैं कि मुझे याद कर; क्योंकि वर्सा तुमको मेरे से मिलना है । अच्छा, तुम बच्चे भी जानते हो कि सिवाय शियबाबा के दूसरा तो कोई भी नहीं समझा सके कि कल्प-कल्प जबकि शिवबाबा आते हैं, तो भी शिव का मन्दिर है । शिवबाबा के साथ कोई मम्मा नहीं बैठी हुई है, अकेला बैठा हुआ है । दूसरे जो हैं उनके साथ प्रवृत्तिमार्ग वाले हैं बरोबर, दोनों बैठे हैं; परन्तु यहाँ तो बच्चों का कनेक्शन ही है शिवबाबा के साथ । बाबा कहते हैं ना कि तुम ऐसे चिट्‌ठी नहीं लिखेंगे माता-पिता केयर किसके । नहीं, शिवबाबा केयर ब्रह्माकुमारियॉ । तो तुम बच्चों को सदैव शिवबाबा ही याद रहे, दलाल याद न रहे । ये बाबा भी कहते हैं इनमें आता हूँ इनके द्वारा तुमको वर्सा देता हूँ । तुम्हारा हथियाला भी गुप्त बॉधा जाता है । दलाल भी गुप्त सौदा करते हैं । हाथ-हाथ में ऐसे ढक करके सौदा करते हैं । तुम्हारा भी गुप्त सौदा है । किसके साथ? शिवबाबा के साथ । खुद वही गुप्त रह करके दलाल बनकर तुम्हारी सगाई अपने साथ करते हैं या योग अपने साथ लगाते हैं । तो तुम कहेंगे भी ऐसे कि हम शिवबाबा के आगे बैठे हैं । कौन सा शिवबाबा?... .. शिवबाबा तो सबका बाबा है ना । सबका बाप वो हुआ निराकार । वण्डरफुल होता है ना कि कौन तुमको मुरली सुनाता है? शिवबाबा । कहाँ है? ये गुप्त है इनमें । वो आ करके खुद भी कहते हैं मैं इस लॉन्ग बूट का आधार लेता हूँ । ये हमारा टेम्परेरी लेन लॉर्ड है । बाबा समझाते हैं ना । तो जरूर इनको बहुत अच्छा किराया भी तो मिलता है ना । बड़े आदमी जब आते हैं या बड़े-बड़े राजाएँ जब किराये पर लेते हैं ना तो वो लोग दो-दो हजार, तीन-तीन हजार रुपया महीने का खर्च करते हैं । बड़े-बड़े अच्छे-! मकान लेते हैं । तो ये देखो कितना सैन बाबा कहते हैं मैं कितना ओमचा हूँ तो मुझे भी फिर शरीर भी तो अच्छा चाहिए ना । उनको भाड़ा भी तो अच्छा देनाहै ना । यह जरूर है कि आता हूँ पतित देश में, पतित शरीर में और कोई अनुभवी शरीर में । तभी तो कहते हैं ना- ये गुरु भी किए हैं, शास्त्र भी बहुत पढ़े हैं, भक्ति भी बहुत की है और ये बच्चे भी समझते हैं बरोबर कि हम अभी जान गए हैं कि हमने भक्ति पूरी की है । तो उससे भी सिद्ध होता है बच्चों को कि जिसने भक्ति पूरी की है उनकी बुद्धि में ज्ञान भी अच्छी तरह से बैठेगा, जिसने भक्ति कम की होगी तो ज्ञान भी कम बैठेगा । जिसने जास्ती नंबरवार भक्ति ऊंची की है तो नम्बर पहले ओमचा है । तो ये बाप आ करके नई-नईबातें सुनाते हैं । कोई शास्त्रों में तो ऐसी-ऐसी बातें है नहीं- कौरव-पांडव-यादव और लड़ाई दिखलाय दी । एक तरफ में कहते हैं कृष्ण भगवानुवाच राजयोग सिखलाते हैं, दूसरे तरफ में बोलते हैं उनको 108 रानियाँ थीं । बड़ा ही गर्क बेचारे का । एक तरफ में तो राजयोग सिखलाते हैं, पावन बनाते हैं, फिर उन्हीं के लिए कह देवें कि उनको न 5108 रानियाँ थीं । देखो, किसकी बुद्धि में ऐसी बातें आती हैं कि ये मनुष्य क्या कहते है?.. .क्या समझते हो? ऐसे नहीं समझना चाहिए कि इनमें कोई शक्ति है या कोई ईश्वर की प्रेरणा से काम करते हैं । नहीं, प्रेरणा कोई होती नहीं है । उनको तो आ करके नॉलेज सुनानी है, त्रिकालदर्शी बनाना है । प्रेरणा से कोई थोड़े ही बन सकते हैं । वो खुद कहते हैं कि मैं जो ज्ञान का सागर हूँ पतित-पावन हूँ सो मैं आता हूँ इस शरीर में । नहीं तो जो मन्दिर में मेरा ये लिंग रखते हैं, उनका अर्थ क्या? निराकार आकर क्या करेंगे? शरीर बिगर निराकार तो कुछ काम का ही नहीं है । देखते हो ना कि शरीर जब छोड़ते हैं तब आत्मा अलग हो जाती है । अलग होकर जाकर दूसरा शरीर धारण करती है । जब अलग है तब तो पीछे कुछ भी नहीं कर सकती है, जब तलक कोई न कोई रूप मिले । फिर भले घोस्ट का ही मिले, तो भी मिलेगा छाया रूप जरूर । अकेले कुछ नहीं कर सकते हैं । भटकती है रूह । इनको रूह भी कहते हैं ना । तो उनको भी कहते हैं सुप्रीम रूह; परन्तु वो एवर सुप्रीम है । हमारी आत्मा पर ये खाद में भी आती है ना । बाप कहते हैं- मैं कभी खाद में नहीं आता हूँ और मेरा सिवाय शिव के और कोई शरीर का नाम नहीं पड़ता है । देखो, शिव का कोई शरीर का नाम है? बाकी सबका शरीर का नाम है । नाम ही पड़ते हैं शरीर के ऊपर, फिर शरीर छूटता है तो फिर दूसरा शरीर तो फिर दूसरा नाम, तीसरा शरीर तो फिर तीसरा नाम; क्योंकि तुम बच्चों ने 84 जन्म लिए हैं, तो 84 नाम धारण किए हुए हैं, सबसे जास्ती । बाप तो कहते हैं मेरा तो अपना एक ही नाम है 'निराकार' । मेरा कोई दूसरा नाम दे नहीं सकते हैं । .... .उन्हीं बच्चों के आगे सम्मुख होता हूँ जिन्हो को कल्प पहले भी, बच्चे भी कहते हैं बरोबर हम आए हैं बाबा के पास कल्प पहले मुआफिक, कल्प के बाद फिर मिले हैं बाबा को । गीता में भी थोड़ा लिखा हुआ है । तो हम कल्प-कल्प मिलते हैं । अभी मी मिले हो, फिर कल्प-कल्प मिलते रहेंगे । तो यह कल्प की बात कोई कह नहीं सके । खुश-खैराफत पूंछ लिया सबसे?.... .थोड़ी ठंडी रात को पड़ेगी । ....बेहद बाप के इस घर में आए हो । तुम किसके गेस्ट हो अभी? बोलो, डायरेक्ट शिवबाबा के गेस्ट हैं एकदम । तो शिव याद पड़े । मात-पिता, वो तो ठीक है; परन्तु परमपिता परमात्मा के बच्चे भी हैं और मेहमान भी हैं । जहॉ ये होगा तहॉ तुम कह सकेंगे अभी अपने बाप के पास आए हुए है । यहाँ अभी रहते हैं ।ये मधुबन बाप का अस्थायी स्थान कहेंगे । ये कोई नई बातें नहीं सुनते हो । तुम जानते हो कि ये बाते जो अभी सुन रहे हो, हम कल्प- बाप द्वारा सुनते हैं । बाहर भी जाएँगे तो बोलेंगे हमारा बाबा मधुबन में हैं, शिवबाबा मधुबन में है । अच्छा, फिर कहींभी बॉम्बे में जाएँगे तो कहेंगे, हमारा शिवबाबा ज्ञान का सागर, पतित-पावन अभी बॉम्बे में हैं । जहाँ-जहाँ जाएँगे तहां-तहां शिवबाबा को याद करेंगे तो विकर्म विनाश होंगे । माने मात-पिता भी कहेगे तो भी याद तो शिवबाबा को ही करेंगे या इनको भी माने तो भी याद फिर भी शिवबाबा को ही करेंगे । देखो, बच्चे होते हैवर्सा बाप से लेते हैं । तो वर्से के लिए बाप को याद करते हैं । .....जैसे देखो, कन्याएँ हैं, तो वर्से के लिए किसको याद नहीं करेंगी । अगर पति के पास जाएंगी तो भी अर्धांगिनी । यहाँ तुम जो बच्चे हो, फीमेल हो या मेल हो, फिर ये जानते हो कि हमको शिवबाबा से वर्सा मिलना है । कन्या की आत्मा भी ऐसे कहेगी, तो पुरुष की आत्मा भी ऐसे कहेगी । उनमे कन्या की आत्मा नहीं कहेगी कि मुझे कोई से वर्सा मिलता है । तो माता हो, चाहे पिता हो, आत्मा को वर्सा बाप से मिल रहा है, इसलिए ही शिवबाबा को याद करना । प्रैक्टिस भी वही चाहिए । अच्छा...बर्थ डे हम तभी कहते हैं जबकि ईश्वर की गोद ली है कि हम उनके हैं । तभी यहाँ ये बाँटा जाता है । उन बाप के यहाँ नहीं बाँटा जाता । लो उठो, बॉटो । किसी ने कहा- लाजू- का बर्थ डे है...) आज मीठी जो लाजू है, लौकिक गोविन्द की, परलौकिक शिवबाबा की, मात-पिता की कहो या शिवबाबा की, ये उनका परलौकिक जन्म मनाया जाता है । अच्छा, चलो उठो, बॉटो ।.. .यह फूलों का बगीचा है ना, यहाँ काँटे से फूल बनते हैं । अभी अपन को समझना है कहाँ तक हम फूल बने हैं । माँ-बाप को फॉलो करना है फूल बनने के लिए । ठीक है ना । तो अन्दर में खुशी है? देह-अभिमान खत्म हुआ है? हम बाबा के बने हैं और हमारी अन्दर की सभी रगें खैंच करके उस तरफ में जाती है? कहते हैं ना- इनकी माँ तरफ रग है, इनकी बाप तरफ रग है, इनकी पति तरफ रग है । तो इन बच्चों की रग कहाँ तक चली जाती है? बेहद के बाप द्वारा, क्योंकि उनसे21 जन्म के लिए झोली भरी जाती है । वो खुद भी कहते हैं- तुम्हारी फिर से झोली भरने आया हूँ21 जन्म के लिए । श्रीमत पर चलना है । श्रीमत पर चल करके तुम श्रेष्ठ बनेंगे ऐसे, देखते हो ना सामने । तुम जानते हो ऐसी तो कोई जगह नहीं है जहाँ एम-ऑब्जेक्ट सामने रखी हो और कहे कि यह है बाबा हमारी एम-ऑब्जेक्ट ।. .रे भोली! ज्ञान तो कानों से सुन रही हो, याद तो बुद्धि से करनी है तो उसमें तुम्हारे खाने में कोई अटक नहीं पड़ेगी । भले मुख को चबाते रहो तो भी तुम कहेंगे कि हम बाप की याद में है । हर वक्त युक्तियों बनाते रहो बाबा को याद करने की । ...सबको जीवनमुक्ति देते हैं । ऐसे नहीं है कि कोई एक भी जीवात्मा रह जाती है । एक भी नहीं रहती है । सर्व का सद्‌गति दाता, क्योंकि सब दुर्गति मे हैं ना, तो सबको सद्‌गति करते हैं । अगर कहें जीवनमुक्ति तो सबको जीवनमुक्ति करते हैं । पहले जब आते हैं वो जीवनमुक्त हैं, पीछे जीवनबंध होते हैं । सतोप्रधान सतो जीवनमुक्त । कोई भी आएगा, भले अभी भी कोई आवे एक-दो जन्म, आधा जन्म भी, तो भी वो आधा-एक्जन्म भी इसमें जरूर भटकेगा । मीठे-मीठे सिकीलधे ज्ञान सितारों प्रति मात-पिता व बाप-दादा का दिल व जान, सिक व प्रेम से नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार यादप्यार और गुडनाइट ।