10-09-1964     मधुबन आबू    प्रात: मुरली    साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हेलो, स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुलभूषणों को हम मधुबन निवासियों की नमस्ते, आज गुरूवार सेप्टेम्बर की दस तारीख है, प्रात: क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।

रिकॉर्ड-

कौन आया मेरे मन के द्वारे पायल की झनकार लिए..... ... ...
ओम शान्ति । मीठे बच्चों ने गीत सुना कि अभी हमारी बुद्धि में किसकी याद आई? सबकी बुद्धि में ये है कि पतित-पावन, क्योंकि अक्षर जरूर याद करना है । अंग्रेजी में फिर उनको लिबरेटर भी कह देते हैं । शायद इंग्लिश में पतित-पावन का अक्षर भी हो; परंतु वास्तव में इनको लिबरेटर भी कहते हैं । किससे दुःख से । दुःखहर्ता और फिर सुखकर्ता; क्योंकि इनका नाम ही ये है । ये कोई मनुष्य का नाम नहीं है, देवता का नाम नहीं है । ये है ही पतित-पावन, फिर गुरू तो हो गया । पतित-पावन को गुरू ही कहा जाता है । सर्व का पतित-पावन, सर्व का सद्‌गति दाता । पिछाड़ी कहते तो हैं गॉड फादर । तो तुम बच्चों की बुद्धि में ये आया कि बरोबर जिसको पतित-पावन कहा जाता है, वो एक ही पिता हमको याद है । देखो, यह एक की ही महिमा है ना । मनुष्य की ये महिमा कभी भी हो नहीं सकती है । लक्ष्मी नारायण को पतित-पावन नहीं कहा जा सकता है । ब्रहमा विष्णु और शंकर को पतित-पावन नहीं कहा जाता है; क्योंकि पतित-पावन ऊंचे ते उंच रहता है । ऊंचे ते ऊंचा भगवान या परमपिता परमात्मा । ऊंचा उनका नाम भी तो ठांव भी । ठांव कहा जाता है रहने का स्थान । अभी तुम बच्चों की बुद्धि में यह निश्चय है कि ये हमारा बाबा भी है, क्योंकि यह तो किसकी बुद्धि में बैठ नहीं सकता है कि ये हमारा बाबा भी है जरूर । शिवबाबा को तो बाबा ही कहते हैं और जब 'शिव' अक्षर कहते हैं तो वो तो निराकार ही है । उसका नाम कोई शिवशंकर नहीं है । शिव का अलग चित्र है, शंकर का अलग चित्र है । बच्चों को तो समझाना भी पड़ता है ना कि वो बाप भी है, पतित-पावन भी है यानी शिक्षक भी है तो सदगुरू भी है । आज गुरुवार है, परन्तु तुम्हारा तो सतगुरूवार रोज है; क्योंकि सतगुरू तुमको रोज पढ़ाता है और वो तुम्हारा बाबा भी है । यह तो बच्चों को बुद्धि में निश्चय होना चाहिए ना कि अभी मेरी बुद्धि में क्या निश्चय आया; क्योंकि इसको सर्वव्यापी नहीं कहेंगे । हर एक की आत्मा की बुद्धि में आया कि ये पतित-पावन परमपिता परमात्मा हमको राजयोग भी सिखलाते हैं; क्योंकि ज्ञान का सागर है । यह हर वक्त तुम बच्चों की बुद्धि में रहना चाहिए । मनुष्य तो सिर्फ एक गुरू को याद करेंगे, एक कृष्ण को याद करेंगे, फलाना को याद करेंगे । ये एक ही है जिसको तुम कोई भी नाम से याद करो तो बात एक ही रह जाए । पिता है तो भी बुद्धि ऊपर चली जाए । कोई भी आकार या साकार में नहीं है; क्योंकि आत्मा को तो अभी परमात्मा से काम पड़ा है ना । देखो, भक्तिमार्ग में सभी जीव के आत्माओं को परमपिता परमात्मा से, उसको कहते भी हैं पिता से काम पड़ा हुआ है; परन्तु ये कोई जानते ही नहीं हैं । नहीं तो तुमको बाबा ने समझाया है कि ये जो त्रिमूर्ति हैं ये बरोबर उनका भी है । दिखलाते हैं ब्रह्मा विष्णु शंकर । त्रिमूर्ति का तो है ही यहाँ, फिर मी शिव को उड़ाय दिया है । जैसे कि उनको विनाश कर दिया है । क्यों विनाश कर दिया है? उनको पत्थर में, ठिक्कर में, भित्तर में, जैसे कहें कि उनका लाश ही गुम कर दिया है । लाश उनकी कौन सी है? ये शरीर की लाश नहीं, वो आत्मा ही है । उनका नाम तो दूसरा रखा ही नहीं जाता है । अब गाते भी हैं कि बरोबर ज्ञान का सागर है । बाप ने बच्चों को समझाया है कि लक्ष्मी नारायण को कभी भी कोई ज्ञान का सागर नहीं कह सकते हैं । ज्ञान कासागर माना जो ज्ञान सुनाए, सद्‌गति करे । अभी लक्ष्मी नारायण को ज्ञान कहाँ है जो किसकी सद्‌गति करें? और वहाँ दुर्गति वाले कहा हैं जो किसको ज्ञान सुनाए तुम बच्चों को मालूम हो गया कि बरोबर वो ज्ञान है ही नहीं, वो तो दंत-कथाएँ हैं यानी ज्ञान वो जो ज्ञान सागर से मिले, क्योंकि ज्ञान-सागर को ही कहते हैं मनुष्य-सृष्टि का बीज । बाप है बीज । स्त्री को एडॉप्ट करते हैं, गोद में लेते हैं और बच्चों को पैदा करते हैं, तो फिर उनको बाप कह देते हैं । ये भी तो सभी आत्माओं का बाप है । इनको भी बाप ही कहा जाता है; क्योंकि क्रियेटर है । तो वो है बेहद का बाप और वो हैं हद के बाप । अभी तो बेहद के बाप को सभी हद के बाप भी याद करते हैं; इसीलिए कहते हैं बापों का बाप । यानी पति है तो भी उनको याद करते हैं साजन को इसलिए पतियों का पति कहा जाता है । अच्छा, कोई कहेंगे गुरुओं का गुरू । तो बरोबर ये सभी जो भी गुरु हैं वो सभी ही याद करते हैं । साधु है उनका नाम, इसलिए फिर भी उनकी साधना करते हैं । आजकल चित्रों में भी बताय दिया है कि राम के आगे, शंकर के आगे लिंग रख देते हैं, क्योंकि यह भी तो समझा जाना चाहिए कि वो निराकार है, ऊंचे ते ऊंचा है बरोबर । तो अभी उनको ही कहा जाता है बरोबर वो लिबरेट करते हैं । अभी तुम जानते हो कि क्या करते हैं । हमको इस माया, पाँच विकार रूपी ये दुनिया से ही छुड़ाते हैं; क्योंकि बच्चों को समझाना चाहिए कि देखो, अभी तो सभी पतित ही पतित हैं । 5000 वर्ष पहले जब इन आदि सनातन देवी देवताओं का राज्य था उस समय भारत में एक ही राज्य था और बरोबर सुखधाम था । उस समय में आर्य का राज्य नहीं कहो । भारत में पवित्रता भी थी, शान्ति भी थी, सुख भी था ... । उसका नाम ही रखा हुआ स्वर्ग, वैकुण्ठ, हेविन । ..... सो भी तो यहाँ होगा ना । हेविन को सूक्ष्मवतन, मूलवतन तो नहीं कहेंगे ना । हेविन के अगेंस्ट है हेल । पतित के अगेंस्ट है पावन । ये बुद्धि में रखना है ना । ये तो कोई मुश्किलात नहीं है समझाने की और उसमें भी बाप ने कहा है कि देखो, एक ही का नाम है, एक को याद करो तो भी बहुत अच्छा । बाबा है, बरोबर उनसे वर्सा मिलना है, बरोबर सदगुरू है, पावन दुनिया में ले जाने वाला है, राजाई देता है, राजयोग सिखलाते हैं एक ही । देखो, एक की कितनी महिमा है । ऐसे तो कोई मनुष्य की वा देवता की तो महिमा है नहीं । ... नारायण को तो यह महिमा दे नहीं सकते हैं । एक ही निराकार की है.....सभी आत्माएँ निराकार ही हैं जबकि शरीर से अलग हैं । उनको भी निराकार कहा जाता है । बरोबर बाप भी कहते हैं- बच्चे, तुम भी निराकार हो, यहाँ शरीर ले करके अपना पार्ट बजाते हो । पार्ट कैसे बजाते हो? यह तो बाप ने बच्चों को सब समझा दिया कि कितना जन्म तुम पार्ट लेते हो या कितना जन्म तुम ये शरीर, चोला बदलते रहते हो । सबका जब चोला मिलता है तो उनका नाम पड़ता है । ब्रहमा का भी चोला है, भले सूक्ष्मवतन में जाओ तो सूक्ष्म चोला है । फिर भी शरीर तो है ना, भले सूक्ष्म शरीर है । भले जरूर कहेंगे । उनमें भी आत्मा है । जैसे घोस्ट होता है तो जरूर उनमें भी आत्मा है ना, जो वो छाया के माफिक चक्कर लगाता रहता है, फिरता रहता है । देखने में आता है । तो वैसे ही ब्रह्मा विष्णु शंकर को भी अपना सूक्ष्म शरीर है । मेरे को तो अपना शरीर है नहीं; इसलिए मुझे कहते ही हैं निराकार । उसको बाप कहत भी हैं जरूर । बच्चों को बहुत अच्छी तरह से समझाया है किसको समझाना हो तो उनको बोलो ये तुमको मालूम है कि तुमको दो बाप हैं? तुमको दो बाप हैं, तुम्हारे बाप को भी दो बाप हैं, क्योंकि बाप तो चलते ही आते हैं और वो सभी बाप को याद करते हैं जरूर । वो एक है और वो अनेक बाप हैं । बच्चों को तो ये बुद्धि के अन्दर बैठना चाहिए कि फिर भी एक भूल जाए तो भला टीचर याद पड़े, टीचर भूल जाए तो भला सदगुरू तो याद पड़े ना । किसको भी तो याद करना चाहिए ना । तीन हैं तुमको याद करने के लिए । ये तुम्हारा बाप भी है । बाप खुद भी कहते हैं, तुम सब जानते भी हो, अच्छी तरह से समझाते हैं । बाप जरूर है, पतित-पावन जरूर है, क्योंकि समझाओ कि भारत जब पावन था, अभी पतित है जरूर । पावन था तो सिर्फ पावन था । ... अभी यह विचार करो कि इतनी जो आत्माएँ हैं, वो कहाँ निवास करती होंगी? मुक्तिधाम में, निर्वाणधाम में या उनको वानप्रस्थ भी कह सकते हैं, वाणी से परे स्थान; क्योंकि यहाँ जो मनुष्य बुडढे होते हैं तो वानप्रस्थ उसकी अवस्था को कहा जाता है कि वाणी से परे जाने के लिए गुरु की शरण लेते हैं । फिर हमको निर्वाणधाम में पहुँचावे कौन । गुरु को पहुंचाना होता है ना, परन्तु वो कोई सदगुरू तो नहीं है । पहुंचाय सकते भी नहीं हैं; क्योंकि झाड़ को तो बढ़ना है ही । हर एक को अपना सतो रजो तमो पार्ट तो बजाना ही है । बच्चों को समझाया गया है कि बच्चे, मुख्य पार्ट है तुम भारतवासियों का । किसका? सभी भारतवासियों का? ना । भारतवासी जो तुम्हारा आदि सनातन देवी देवता धर्म है, 84 जन्म वो लेते हैं; क्योंकि गाया भी तो जाता है ना- आत्माएँ परमात्मा अलग रहे बहुकाल । अभी हिसाब करना चाहिए ना बहुकाल का । सहज है ना । बहुकाल माना जो इस सृष्टि पर पहले पहलेपार्ट बजाने वाले आए, जिनको अन्त तक पार्ट बजाना है । नहीं तो 84 जन्म किसको कहें? तो मैक्सिमम समझाया गया है कि बरोबर 84 जन्म, 84 का चक्कर कहा जाता है । ऐसे कभी नहीं कहते हैं कि 84 लाख का चक्कर । तो तुम बच्चों को 84 का चक्कर तो समझाया । तुम आगे तो नहीं जानते थे ना । देखो, बाप पूछते हैं, तुम आगे जानते थे? मम्मा से भी पूछें, आगे जानती थी 84 का चक्कर कैसे होता है? अच्छा, इनसे कैसे पूछें? इनसे पूछा तो जैसे इनसे भी पूछा; क्योंकि इनकी आत्मा भी सुनती तो है ना । तो ये दो आत्माओं का भी समझना चाहिए बच्चों को कि बरोबर दूसरी आत्मा प्रवेश कर सकती है । जबकि अशुद्ध आत्मा का कोई शुद्ध आत्मा में प्रवेश हो सकता है तो यह क्यों नहीं हो सकता है? बाप तो खुद आकर कहते हैं ना, मैं कैसे तुम बच्चों को राजयोग सिखलाऊँ? जरूर मुझे ५१ चाहिए ना । ज्ञान का सागर मुझे कहते हो ना । सतयुग को स्थापन करने वाला भी कोई मनुष्य तो नहीं होगा ना । नहीं । उसको तो कहा ही जाता है हेविनली गॉड फादर । तुम भी वैकुण्ठ को ऐसे याद करते हो तो..... वैकुण्ठ का मालिक जरूर हैं राधे और कृष्ण । सो भी तो राजधानी है यानी एक तो नहीं हैं ना । जब मनुष्य वैकुण्ठ कहते हैं तो श्री कृष्ण की राजधानी आ जाती है । गाते हैं बरोबर कि ठीक है, श्री कृष्ण का नाम रखना चाहिए, क्योंकि वो पहला नम्बर का प्रिन्स है और उस समय में सतोप्रधान है । तो हमेशा जो सतोप्रधान होते हैं उनको कहा ही जाता है यूँ ही महात्मा, फिर भी तो युगल हो जाते हैं ना । जैसे यहाँ अकेले है तो कुमारी,शादी किया तो अधरकुमारी । अधर कुमारी से कुमारी का मान उंच तो है ना । भले राधे-कृष्ण स्वयंवर के बाद पवित्र रहते हैं, फिर भी तो युगल हो गए ना । फिर भी कहेंगे तो सही ना कि वो भी अधर हो गए यानी युगल हो गए । फिर कुमार का नाम बदल जाता है, कुमारी का नाम बदल जाता है । पीछे तो माता और पिता बन जाते हैं ना । जब ये आपस में मिलते हैं तो जैसे माता-पिता बन जाते हैं । जब बच्चा पैदा होगा तब उनको माता-पिता कहेगा । यूँ भी शादी के बाद तो जरूर ये समझना चाहिए जरूर कि बरोबर ये पिता है, ये माता है । जब दो होंगे तो कोई भी बोलेंगे कि ये माता है, ये पिता है; क्योंकि ये अंडरस्टुड होता है कि जरूर इनको कोई संतान भी होगी या होने वाली होगी । कहेंगे तो माता-पिता ना, पीछे कुमार या कुमारी तो नहीं कहेंगे ना ।कुमारी तो नहीं कहेंगे ना फिर; इसलिए ये कृष्णापुरी, अभी कंसपुरी । है भी बरोबर ना । कंस कहा जाता है आसुरी सम्प्रदाय को, कृष्ण कहा जाता है दैवी सम्प्रदाय को । तो एक कंस, एक कृष्ण तो नहीं ठहरा ना । कंस सम्प्रदाय फिर वो श्रीकृष्ण सम्प्रदाय । बरोबर उनकी राजाई होगी । फिर ये कंस । तो इनकी भी राजाई है । अभी ये रावण की राजाई है । राजाई में कौन-कौन रहते हैं? फिर देखो, नाम रख दिया है ना- अकासुर बकासुर, कंस, जरासिंधी शिशुपाल, मेघनाद फलाना-फलाना बहुत नाम डाल देते हैं । जब रावण का निकालते हैं तो निकालते हैं ना कि ये मेघनाद है । क्या-क्या नाम निकालते हैं । तो ये बाप आ करके अच्छी तरह से सब समझाते हैं कि ये राम और रावण तो कोई है नहीं । ये तो बैठ करके खेल बनाया है, जैसे और नाटक बनते हैं । अभी नाटक कितने बनते हैं? नए-नए नाटक बनते रहते हैं, है तो कुछ नहीं ना । वो बैठ करके खेल बनाते हैं मनुष्य को दिखलाने के लिए । है कुछ भी नहीं । यहाँ जा करके वो क्या समझते हैं । उनको गाना अच्छा लगता है, डांसिंग अच्छी लगती है । जैसे कोई अखानी या नॉवेल पढ़ते हैं और ये उस नॉवेल को देखते हैं । ये नाम-रूप देख करके सब, क्योंकि नॉवेल में भी नाम है, बाकी रूप नहीं है । तो ये भी नॉवेल ऐसे बना देते हैं, नाटक बना देते हैं । तो ये किताब भी बनाय दी है । इसको किताब कहा जाएगा । किताब नाम तो स्कूल में है । इनको किताब भी तो न कह सकें; इसलिए इनको शास्त्र कह दिया है । अभी शास्त्र हैं जरूर । धर्मशास्त्र । जिस-जिसने धर्म स्थापन किया, उनका शास्त्र । ये तो बच्चे जानते हैं कि हर एक धर्म को आर्यसमाजी, चिदाकाशी राधास्वामी हरेक को अपना शास्त्र है । राधास्वामियों का कौन था जिसने ये मठ स्थापन किया? और फिर उनमें ये शास्त्र हैं, जो पढ़ते हैं । तुम देखेंगे शास्त्र में हर एक धर्म की पढ़ाई अलग है । हम फलाने राधास्वामी के धर्म में, मठ में जाते हैं । मठ कहेंगे, पंथ कहेंगे क्योंकि समझाया गया है ना कि धर्म तो बड़े होते हैं । देखो, कितने बड़े इस्लामी, बौद्धी क्रिश्चियन । ये अपना धर्म कितना बड़ा है और वो फिर थोड़ा । फिर यह भी तो है उनका; क्योंकि उनको आना है । आत्माओं को आ करके फिर से अपना अपना..... । कोई से पूछो कि तुम्हारा धर्म स्थापन करने वाला गुरुनानक आया । अच्छा, फिर ये कब आएगा? तो वो बोल देते हैं- ज्योति-ज्योत में समाया । ज्योति-ज्योत में समाया तो खलास हो गया । तो नहीं आने का है फिर कभी? नहीं तो फिर सृष्टि कैसे चक्कर लगाती है? भला तुम क्यों उनको यादकरते हो? वो तो हो गया । धर्म स्थापन करके खुद भी आया । ये भी जानते नहीं हैं, ये तुम बच्चों को समझाया गया है । खुद गुरूनानक की सोल आई । फिर उनकी जो भी सेन्सस है, जो भी उनके आदमशुमारी के सिक्ख धर्म वाले हैं, बस वो.... आते-जाते हैं । देखो, अभी कितने सिक्ख धर्म हो गए हैं । अच्छा, फिर भी तो हिस्ट्री रिपीट करेंगे ना । अच्छा, फिर बताओ ये गुरुनानक कब आएगा? बेचारे कुछ बताय नहीं सकेंगे । तुम बताय देंगे अच्छी तरह से हिसाब करके कि भई 5000 का चक्कर है, उनको अभी 500 वर्ष हुआ है । अच्छा, फिर ये जब आया था और फिर वो 4500 वर्ष के बाद फिर आएगा । तुम ऐसे कह देंगे ना । 4500 वर्ष के बाद फिर तुम्हारा वो गुरुनानक आ करके सिक्ख धर्म स्थापन करेगा; क्योंकि हम खुद ही बैठ करके अपना आदि सनातन देवी देवता धर्म स्थापन करते हैं तो जरूर दूसरे धर्म वाले भी आ करके नंबरवार फिर करेंगे । तो तुम बच्चों को चक्कर का और धर्मों का अच्छी तरह से राज समझाया गया है । अभी कोई कहते हैं कि मेरी बुद्धि में इतना नहीं बैठता है । भला थोड़ा तो बैठता है ना । बाप कहते हैं यह जो तुम पतित-पावन बुलाती हो वो तो जरूर तुम्हारा सत्‌गुरू हो गया । अच्छा, ये फादर कहती हो, सो तो तुम आत्माओं का बाप है ही । तुम भक्तों का, साधु-सन्त-महात्मा जो भी हैं, सबका पिता भगवान ठहरा । वास्तव में कोई को भी जब भी कहा जाता है तो आत्मा ही कही जाती है- पुण्यात्मा पवित्र आत्मा, अपवित्र आत्मा, महान आत्मा । कभी किसको पिछाड़ी में परमात्मा तो कहा ही नहीं जाता है । ऐसे नहीं है कि ये आत्माएँ जा करके परमात्माऐ बनेंगी, न ही परमात्मा कोई ऐसी चीज है जिसमें ये आत्माएँ जा करके लीन हो जाएँगी । जैसे मिसाल देते हैं कि बुदबुदा है, निकल करके सागर में लीन हो जाएँगे । ऐसी तो बात है नहीं । देखो, कितने गपोड़े हैं । फिर उनके जो फॉलोअर्स हैं, जो उनको सिखलाया जाता है बस वही कहते आएंगे । किससे पूछो तो कहेंगे ज्योति-ज्योत में समा जाते हैं, किसी को पूछो तो बोलेगा बुदबुदा जैसे सागर मिले उसमें हो जाता है । कोई फिर कहते हैं कि निर्वाणधाम में गया । अभी निर्वाणधाम तो निर्वाणधाम ही हो गया । जैसे कहते हैं- बुद्ध की सोल कहाँ गई? पार निर्वाण गई । निर्वाणधाम कहो, पार निर्वाण कहो, बात तो एक ही रहती है ना । यहाँ कहते हैं ज्योति ज्योत में । अभी कौन राइट? बुदबुदा, पार निर्वाण तो ठीक है । निर्वाणधाम से हम आते है; क्योंकि निर्वाण कहा ही जाता है उनको जहाँ वाणी की गम नहीं है । आत्माओं को शरीर मिले तब कुछ मूवी या टॉकी बने । सूक्ष्म शरीर है तो मूवी है । ये बच्चे जानते हैं, अनुभव है । दुनिया को तो अनुभव नहीं है ना कि यहाँ मूवी चलती है । मुख से ऐसे-ऐसे बात करते हैं जैसे गूँगे । तो वो भी एक लैंग्वेज है । वही की कितनी सूक्ष्म लैंग्वेज है जो वो वहाँ समझते हैं, समझ करके डायरेक्संस ले आते हैं । टॉकी तो वहाँ है नहीं, फिर वो सुक्ष्मवतन में जा करके डायरेक्संस कैसे ले आते हैं? यह भी तो वण्डरफुल बात है ना । तो ड्रामा में यह भी बात समझाई हुई है कि बरोबर वो सुक्ष्मवतन है । उनको कहा जाता है- मूवी, टॉकी साइलेन्स । बरोबर मूवी के बाइस्कोप भी थे. जो ऐसे-ऐसे सब करते थे, चलते थे । पीछे उनमें मजा तो आया नहीं किसको, क्योंकि कुछ राग-वाग तो था ही नहीं । तो फिर इनमें सब टॉकी कर दिया । ये भी तो सिद्ध कर बताते हैं कसाइलेन्स मूवी और टॉकी तीन दुनिया है । कहते हैं साइलेन्स मे सिर्फ ब्रह्मा विष्णु शंकर बस, और कोई होते ही नहीं हैं, जिसके लिए समझाया जाता है कि इनके ऊंचे परमपिता-परमात्मा है, जो साइलेन्स वर्ल्ड मे रहते हैं और हम आत्माएँ भी वहाँ रहती हैं । अब यह बच्चों को तो अच्छी तरह से समझाया हुआ है ना । किसको अच्छी तरह से क्या समझावे? पतित-पावन गुरु तो सतगुरू हो गया । और कोई भी गुरु हो नहीं सकते हैं, क्योंकि सर्व का सद्‌गति दाताएक है तो जरूर सभी जो भी मनुष्य हैं, फिर अपने को गुरु कहलाए, ऋषि कहलाए, मुनि कहलाए, सरस्वती कहलाए, महामण्डलेश्वर कहलाए जो भी कुछ कहलाए, हैं तो सभी पतित, क्योंकि है ही पतित दुनिया । पावन बनाने वाले को जानते ही नहीं हैं । कोई सयाना हो तो गवर्मेन्ट को भी लिखे कि तुम लोगो ने तीन ब्रह्मा विष्णु शंकर तो ठीक लगा दिया है । ऊंचे ते ऊंचा बाप जिसको कहा जाता है उनको तो ऊपर में लगाओ । तुम लोग उनको तो जिय दान दो । इनको तो देवता कहा जाता है । इनको रचने वाला कहाँ? उनको क्यों कब्रदाखिल कर दिया है? तो बरोबर उनको कब्रदाखिल करने से सभी मनुष्य कब्रदाखिल हो गए हैं । कहा भी जाता है बरोबर- परमात्मा आते हैं, सबको कब्र से जगाते हैं, फिर ले जाते हैं । ऐसे है ना । बरोबर बाप भी कहते हैं- बच्चे, ये कब्रिस्तान तो बनना ही है । ये देख रहे हो कि विनाश तो होने वाला ही है, महाभारत की लड़ाई तो वही है । ये तो जरूर है कि इस कब्रिस्तान यानी विनाश के बाद फिर सतयुग के गेट्‌स खुलते हैं, क्योंकि राजयोग सीख रहे हो सतयुग के लिए । ये आकर राजयोग सतयुग के लिए सिखलाते हैं । नहीं तो कहाँ के लिए राजयोग सिखलाते है? नर से नारायण सो तो सतयुग का ही बनेंगे ना । ये है ही राजयोग । बाप ने समझाया हुआ है कि इस समय में तुम बाप से सीखते हो । कैसे राज्य लेते हो? योगबल से । इसको ही कहा जाता है नॉन वायलेन्स कोई सी वायलेंस नहीं हैं । ये मनुष्य, साधुसंत, महात्मा नहीं समझते हैं वायलेंस किसको कहा जाता है । वायलेंस है एक-दो को काम कटारी नहीं चलाना है । वो सबसे बड़ी हिंसा है । देवी-देवता धर्म को कहा जाता है अहिंसा परमो देवी-देवता धर्म और था बरोबर, जिसको ही निर्विकारी कहा जाता है । काम-कटारी नहीं चलती है । बाप ने आकर समझाया कि इस विकार से तुम आदि-मध्य-अंत दुःख भोगते हो और वो निर्विकारी होने के कारण आदिमध्य-अंत दुःख नहीं भोगते हैं । वो हो गया अमरलोक, ये है मृत्युलोक । अमरलोक और मृत्युलोक भी है तो सही ना । मृत्युलोक में बैठ करके कथा सुनाते हैं अमरलोक जाने के लिए । कहाँ? ये मनुष्य सृष्टि में । ऐसे तो नहीं है कि शंकर फिर बैठ करके पार्वती को वहाँ अमरकथा सुनाएँगे । शंकर बेचारा क्या जाने अमरकथा से! ये किसने कहा? जरूर इनसे ऊंचा कोई होगा, वो तो कह सकते हैं, नहीं तो बाप कहते हैं- मैं उनका बाप हूँ और कहता हूँ कि ये शंकर बेचारा क्या जाने इस अमरकथा से! वो कोई त्रिकालदर्शी थोड़े ही है । त्रिकालदर्शी तो मैं हू और मुझे त्रिकालदर्शी मनुष्यों को बनाना है । तो बरोबर बैठ करके उनको त्रिकालदर्शी बनाता हूँ । त्रिकालदर्शी, त्रिनेत्री, फिर त्रिलोकीनाथ- ये तुम बच्चों को टाइटिल्स मिलते हैं ना । तीनो लोकों को जानने वाले, तीनों कालों को जानने वाले- ये तो भगवान की महिमा है । बैठ करके तुम बच्चों को आप सामान बनाते हैं । आप समान बना करके तुम बच्चों को साथ में ले जाते हैं । जब तुम वहाँ जाते हो तो तुम इस ज्ञान से जानते हो, तुम ज्ञान सागर केबच्चे मास्टर ज्ञान सागर बन जाते हो । तुम्हारी बुद्धि में कौन-सा ज्ञान रहता है? ये सृष्टि का चक्कर कैसे फिरता है, क्योंकि कहते हैं- मैं मनुष्य सृष्टि का बीजरूप और चैतन्य हूँ नॉलेजफुल हूँ । तुम भी ऐसे कहते हो ना- मनुष्य सृष्टि का बीजरूप है, पतित-पावन भी है और नॉलेजफुल भी है । तो मुझ बीज में कौन-सी नॉलेज होगी? क्योंकि चैतन्य हूँ नॉलेज है । ऐसे तो नहीं कहेगे कि उस झाड़ के बीज मे कोई नॉलेज है । ये जरूर है वो जड़ है, इसलिए हम जो चैतन्य हैं जानते हैं कि बरोबर वो जो आम का या कोई का बीज है, इनसे ऐसे ऊंचा झाड़ निकलता है । उनमे कैसे ये फल निकलते हैं । अभी हम फिर मनुष्य सृष्टि के झाड़ को जानते हैं । बाबा कहते हैं- मैं बीज ऊपर में हूँ, ये उल्टा है, इसलिए मैं इस उल्टे झाड़ के आदि-मध्य-अंत को जानता हूँ सृष्टि-चक्र को जानता हूँ ड्रामा को जानता हूँ । दूसरे तो कोई नहीं जानते हैं ना । बाप बैठ करके बच्चों को समझाते हैं कि मुझे मनुष्य कहते भी हैं- सत् है, चैतन्य है, आनन्द का सागर है, ज्ञान का सागर है, सुख का सागर है, शान्ति का सागर है, पवित्रता का सागर है । अच्छा, उन्हीं से इनहेरिटेन्स मिलना चाहिए । बरोबर तुम सब आत्माएँ इनहेरिटेन्स ले रहे हो मुझ अपने बाप से । इनहेरिटेन्स काहे का ले रहे हो? यहाँ कि तुम एवर 21 जन्म के लिए पावन बनेंगे । एवर नहीं बनेंगे । वो बता देते हैं- मैं तो एवर पावन हूँ क्योंकि वही रहता हूँ । तुमको तो फिर यहाँ पार्ट बजाना है, इसलिए तुम 2। जन्म के लिए पावन बनेंगे । सो भी समझा दिया है कि तुम्हारी कला कमती होती जाती है । इस समय में सिर्फ तुम्हारी है चढ़ती कला । एक ग्रंथ में है, बैठ करके समझाते हैं- चढ़ती कला तेरे भागे सर्व का भला । बरन, सतयुग मे से वहाँ से आय, क्योंकि वहाँ पर तुम बच्चे मास्टर ज्ञान सागर बन जाते हो, फिर वहाँ से नीचे आय तुम्हारी कला थोड़ी कम हो जाएगी । चढ़ती कला अभी इस समय में है । पीछे सतयुग में कलाऐ फिर कमती होती जाएगी। चढ़ करके नीचे भी तो उतरना है ना । तो अभी तुम्हारी चढ़ती कला है । अभी तुम बाप से बेहद का वर्सा लेते हो । अभी तुम बहुत सर्विस भी करते हो । जैसे बाप को याद करते हैं ना- ओ पतित-पावन आओ । फिर कौन तुम्हारे मददगार होंगे? बरोबर शिवशक्ति और पांडव सेना । ये शिवशक्ति फिर आकर इस पतित दुनिया को पावन करने मे मदद करती है । नाम भी तो गाया जाता है ना जिनको कहा जाता है -चन्द मातरम्' । पतित को तो बच्चे मातरम् कोई नहीं कहेगे । खुद ही माताऐ जो कुमारी रहती हैं, पावन होने से उनको सभी वन्दना कर माथा झुकाते हैं । फिर जब माता बन जाती है तो जब भी कोई मत्था झुकाये । तो बाप आ करके माताओं द्वारा .शक्ति दल द्वारा गुप्त । तुम किसको भी हाथ नहीं छूती और विकार मे नहीं जाती तो तुम जैसे कि डबल अहिंसा वाले ठहरे । जैसे कहते हैं ना- अहिंसा परमो धर्म । राज्य भी लेती हो, परन्तु हथियार नहीं चलाती हो और पवित्र भी रहती हो । देखो तो तुम डबल अहिंसक और वो सभी डबल हिंसक, क्योंकि विकार में भी जाते हैं, मनुष्यो को मारते भी हैं । दुःख भी देते हैं ना । कौन-सा दुःख? अरे! वो तो काम कटारी से सब एक दो को दुःख दे रहे हैं । पहला नम्बर का तो दुःख वो है ना ।दुःख के तो पहाड़ गिरते हैं ना । किन्हो द्वारा दुःख के पहाड गिरते हैं? मनुष्यों का मनुष्यों के ऊपर । देखो, ये क्रोध का । इसको कहा जाता है बेहद क्रोध और ये भी समझते हो अभी बेहद वैश्यालय है बहुत । बरोबर इस समय में तो मनुष्यो ने बहुत ही गाली भी दे दी है-द्रोपदी को पाँच पति । ये भी कभी हो सकता है?तो इसी समय के शास्त्रों में लिखा है ना । द्रोपदी को पंच पति भी इन शास्त्रों में लिखा हुआ है । कृष्ण को 16000 रानी इस भागवत शास्त्र में लिखा हुआ है । कहाँ द्रोपदी, कहाँ उनकी रानियाँ, तो गालियां हाँ गालियां ठहरी ना । रामायण में, भागवत में भी गालियाँ ही तो हैं ना । इसको ही कहा जाता है धर्म की ग्लानि । यानी मेरी भी ग्लानि, जो मैं भारत का आदि सनातन देवी देवता धर्म स्थापन करता हूँ । इस्लाम की, बौद्धी की...कभी किसकी ग्लानि नहीं करेंगे । ये तो देखो, इन्होंने अपने आप को चमाट मारी है । सबकी ग्लानि यह ड्रामा में नूंध है बोलते हैं । बोलेंगे- इनका दोष है? नहीं, ये अभी तो समझाते हैं ड्रामा में नूंध है । बरोबर इनको ऐसे ही गिरना है जरूर । तो जबकि गिरना है तो दोष क्या! अभी चढ़ना है, चढ़ती कला है । तो फिर बाप कहते हैं- जाओ, हर एक जगह में ढिंढोरा पिटवाओ कि जिसको तुम भक्त याद करते हो वो भगवान आ गया है और भगवान अपना स्वर्ग का खजाना ले आए हैं । तीरी पर बहिश्त । तो तुम बच्चों को भी समझाया गया है कि सबको समझाओ कि बेहद का बाप आया हुआ है । वो तो है ही स्वर्ग का रचता । रिकॉर्ड --ओम नम शिवाय सच्ची तो सच्चा बताएगा । ये तो झूठी माया, झूठी काया, झूठा सब संसार है । सच कौन बताएगा? उनको कहा ही जाता है 'सच' और बरोबर कथा देखो कितनी लम्बी-चौड़ी है । अभी तलक पढ़ते रहो । यह कथा तुमको अंत तक पढ़नी है । नर से नारायण बनाने के लिए तुमको पढ़नी है । कथा कौन-सी है? सृष्टि का चक्कर कैसे फिरता है, मनुष्य सृष्टि के झाड़ की आदि-मध्य-अंत क्या है- यह कथा है । बरोबर कथा भी इसको कहें- लॉन्ग लॉन्ग एगो। लॉन्ग लॉन्ग एगो माना? 5000 वर्ष पहले । क्या था? श्री लक्ष्मी नारायण का राज्य था, देवताओं का राज्य था । फिर क्या हुआ? तो देखो, कथा तुम सुना सकते हो ना कैसे वो लोग 84 जन्म में आवे । देखो, तुमने कितनी बड़ी कथा सुनाई । कथा में अनेक कथाएँ । कौन-सी फिर अनेक कथाएं? इस्लामी ऐसे आया, बौद्धी ऐसे आया, क्रिश्चियन ऐसे आया, फलाना ऐसे आया । ये सभी कथाएँ हैं । कथाओं में कथायें । अभी तुम्हारी बुद्धि में ठीक बैठ गई- सारे सृष्टि के चक्कर की आदि-मध्य-अंत की कथा सभी धर्मो के भी आदि-मध्य-अंत की कथा । सबको बुद्धि में तो नहीं है ना । नम्बरवार हैं । ये कथा को ही नॉलेज कहा जाता है । कथा भी कहें । कथा की जाती है पुरानी । 5000 वर्ष हुआ, फलाना राजा था, ये था, फिर ये हुआ, ये हुआ उसको कथा कहा जाता है । तो उन्होंने पूरी कथा बता दी कि 5000 के बदले में लक्ष्मी नारायण का राज्य लाखों वर्ष आगे कर दिया सो भी सारी उल्टी कथा । पीछे राम को ले आए, पीछे कृष्ण को ले आए । फिर राम को बंदर की सेना दी और कृष्ण को गीता का भगवान बनाय दिया और बहुत माइयॉ दे दीं । सिकीलधे लकी ज्ञान सितारों प्रति मात-पिता बाप-दादा का मीठे-मीठे बच्चों प्रति नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार यादप्यार और गुडमॉर्निग ।