17-09-1964    मधुबन आबू     प्रात: मुरली    साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हेलो, स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुलभूषणों को हम मधुबन निवासियों की नमस्ते, आज गुरूवार सेप्टेम्बर की सतरह तारीख है, प्रात: क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।

रिकॉर्ड :-
तू प्यार का सागर है.........
ओम शान्ति! भक्तिमार्ग में गाते आए हैं, महिमा करते आए हैं । है महिमा फिर भी परमपिता परमात्मा की; क्योंकि वो ज्ञान का सागर तो है ही । जैसे भक्तिमार्ग में और प्रकार का गायन होता है । ये सभी जो उत्सव मनाते हैं ये भी गायन है । ऐसे ही कोई मनुष्य का या कोई साधु-सन्त-महात्मा का यह गायन नहीं हो सकता है । जब भक्त बैठकर गाते हैं तो उनकी महिमा करते हैं- ज्ञान का सागर है, अगर चुल्लू पानी का भी मिले तो हम यहाँ से चले जायें, फिर हम यहाँ न रहें । कहाँ रहें? कहाँ जाएँ? मुक्तिधाम जाएँगे या जीवन मुक्तिधाम जाएँगे । इसको कहा ही जाता है जीवनबंधधाम । महिमा तो एक की होती रहती है; परन्तु उस एक को जानते नहीं हैं । सिर्फ तुम्हीं बच्चे जानते हो । सो भी बाबा कहते हैं ना नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार । नहीं तो बाप का बच्चा बना, तो एक ही मां-बाप का बच्चा बन जाता है । बस फिर तो वो बाप ही बाप है; परन्तु ये जो देह-अभिमान और देही-अभिमानी की बात होती है ना, तो वो जो लौकिक बाप है उसको ही कहा जाएगा देह-अभिमान यानी आत्मा को वो बाप याद पड़ता है । आत्मा को अपना बाप नहीं याद पड़ता है । जो देह देने वाले हैं उनको याद करते हैं । आत्मा अपने बाप को भूल गई है । अभी यहाँ तो मूल है ना कि आत्मा अपन को भूल गई है । यूँ अपन को कोई भूले हुए नहीं हैं; परन्तु सन्यासी या विद्वान लोग ये भुलाते हैं । आत्मा को भुलवा करके परमात्मा कहलवाए देते हैं । आत्मा को एक तो अपनी ही पहचान पूरी नहीं है । कहते भी हैं बरोबर कि हम जीवात्मा हैं, आत्मा को जास्ती न सताओ या तंग न करो; क्योंकि तंग तो आत्मा होती है ना । आत्मा को जब गर्भजेल में सजाए मिलती हैं तो भी देखो उनको वहाँ शरीर का साक्षात्कार होता है तब उनको भासता है । नहीं तो आत्मा को कोई क्या कर सकता है । भासता ही तब है जबकि शरीर होता है । शरीर तो उनको साक्षात्कार ही स्थूल का कराएगा, कोई सूक्ष्म का नहीं कराएंगे । तब वो फील करते हैं कि हमको दुःख मिल रहा है । अभी तो बच्चों को समझा दिया है कि पहले-पहलेआत्मा से ये प्रैक्टिस करो कि हम ये शरीर के साथ होने से फिर ये हमारा मामा है, ये काका है, ये चाचा है; क्योंकि शरीर में हूँ । जब शरीर नहीं है तो फिर कुछ भी नहीं है । आत्मा का ज्ञान है । ऐसे मत समझो कि कोई को आत्मा का ज्ञान नहीं है । तुम बच्चे बिल्कुल अच्छी तरह से समझाय सकते हो कि कोई को महान परमात्मा थोड़े ही कहा जाता है । आत्मा को भोग लगाया जाता है ना । कोई मर जाते हैं तो उनकी आत्मा को बुलाया जाता है । ऐसे नहीं कहेंगे उनकी परमात्मा को बुलाया जाता है । यह तो तुमको बहुत प्रकार से समझाया गया है कि कोई भी हालत में आत्मा को कभी परमात्मा कहा ही नहीं जा सकता है और न परमात्मा कोई जन्म-मरण में आते हैं । वो तो गाया ही जाता है कि बरोबर परमात्मा जन्म-मरण रहित है, आत्मा पुनर्जन्म लेती रहती है । ये बच्चे अभी समझ गए अच्छी तरह से कि पहले ते पहले जो आत्माएँ हैं वो हैं ही देवी-देवता । 84भी यहाँ भारत में गाया जाता है कि 84 जन्म का चक्कर । गीत भी बहुत गाते है 84 के चक्कर पर । अभी ये तो बच्चे जान गए हैं अच्छी तरह से कि ज्ञान का सागर सम्मुख बैठा हुआ है; क्योंकि जरूर पतित-पावन को ही ज्ञान का सागर कहेंगे । ज्ञानी जिसकोकहा जाता है वो तो बाप ही ठहरा । उनको कहा भी जाता है ज्ञानेश्वर । यानी ईश्वर में ज्ञान है । ऐसे तो मनुष्य बहुत अपना नाम रख देते हैं । बाबा ने समझाया था ना- ज्ञानेश्वरी गीता है । तो इसका नाम है सच-सच ईश्वर, जिनमें ज्ञान है । कौन-सा? सृष्टि के आदि-मध्य-अंत का । उसको ही कहा जाएगा ज्ञानेश्वर । ईश्वर में किसकी नॉलेज है? रचना का; क्योंकि ईश्वर ही इस सृष्टि को रचते हैं, इसलिए उनको ही रचता कहेंगे । अभी तुम बैठ करके कहते हो ना- रचता है, तो जरूर रची हुई सृष्टि है तब तो कहते हैं ना कि ईश्वर ही रचता है और सृष्टि रची हुई है । रचता को हमेशा बाप कहा जाता है । भाई-भाई को रचता नहीं कहेंगे, बहन-भाई को रचता नहीं कहेंगे । तो अभी बच्चे जानते हैं कि बरोबर हमारे सन्मुख । ये जहाँ भी होगा वहाँ ऐसे समझेंगे कि सन्मुख; क्योंकि दूर भी तो बाप होते हैं ना । कोई बच्चा विलायत में रहता है और कोई बॉम्बे में रहते होंगे, तो कहेंगे बाप से हम दूर हैं । याद तो जरूर करेंगे ना । भूलेंगे तो नहीं ना । तुमको भी तो भूलना तो नहीं होता है ना, परन्तु जबकि लौकिक बाप देखते हैं और ये सम्बंधी देखते हैं तो भूल जाते हैं । इसलिए बाप कहते हैं कि निरंतर उठते-बैठते-चलते अपन को आत्मा समझ करके एक प्रैक्टिस करो- मैं इस अपने शरीर को घुमाने ले जाता हूँ. ., क्योंकि आत्मा बगैर शरीर की पालना कैसे हो सकती है? उठे-बैठे-चले-फिरे कैसे? तो अभी तुम बच्चों को आत्मा का तो ज्ञान तो है ही, ऐसे थोड़े ही कहेंगे कि नहीं है किसको । बाकी ये जानते हो कि आत्माएँ और परमात्मा अलग रहे बहुकाल । ऐसे नहीं कहेंगे परमात्माएँ और परमात्मा अलग रहे बहुकाल । बाप तो बच्चों के सन्मुख बैठे हुए हैं और समझा देते हैं- चुल्लू पानी एक ड्रॉप भी बस है । काहे का ज्ञान का ड्रॉप? यहाँ ज्ञान है । इसको ज्ञान कहा जाता हैनॉलेज कहा जाता है कि परमपिता परमात्मा तुम्हारा बाप है, जो अब कहते हैं- मैं तुम सबका बाप हूँ क्योंकि ऐसे कोई भी सन्यासी कहने की हिम्मत नहीं करेंगे कि हम तुम सबका बाप है । अरे, तुम तो कहते हो सर्वव्यापी है, सब ईश्वर हैं, उनका बाप तुम कौन हो सकते हो? इसलिए कोई भी दूसरा मनुष्य मात्र, जो सर्वव्यापी कहने वाले हैं, ऐसे नहीं कहेंगे कि हम तुम्हारा बाप हैं और परमधाम में रहने वाला हूँ जिसको तुम याद करते हो, पतित-पावन भी कहते हो, ज्ञान का सागर भी कहते हो । सरकमस्टांसेज को भी तुम जानते हो बरोबर लड़ाई है, कलहयुग का अन्त है और बरोबर यादव-कौरव-पांडव खड़े हैं । समझाना तो होता है ना । है सारी बात समझाने की । तुम ऐसे मत समझो कि ये रखे हुए चित्र और कोई इनको जाकर समझे । नहीं । स्कूल में कोई नहीं पढ़ा हुआ होगा और वो कॉलेज में जावे और वर्ल्ड का वा हिन्दुस्तान का या कोई भी नया देखो तो वो बैठकर उनको देखता रहेगा, समझेगा कुछ भी नहीं, जब तलक टीचर न समझाए कि ये इंडिया है, ये लंदन है, ये पेरिस है, ये फलाना है । समझाने बगैर तो वो उनकी बुद्धि में भी नहीं आएगा ना । अगर नाम भी पढेंगे, जानता होगा, तो भी उनकी बुद्धि में सिर्फ ये नाम लिखा होगा- इंग्लैण्ड । कहाँ है? वहाँ कौन राज्य करते हैं? किस प्रकार के मनुष्य हैं? कोई भी आज समझ नहीं सकते हैं, जब तलक कोई इनको समझाये । ये अफ्रीका है, उनमें कौन रहता है, भले नाम पढ़ते हैं; परंतु उनको कुछ भी आएगथोड़े ही । यहाँ तो समझाने की बात है । हर बात समझाने की होती है । उसमें भी तुम बच्चों को तो समझाया गया है कि जब भारत अविनाशी खण्ड होता है और पहले पहलेतो दूसरा कोई खण्ड होता ही नहीं है । तो ये समझाने की बात है ना । भले समझाने के लिए बॉम्बे में एग्जिबिशन भी करते हैं । उसका नाम रखा है- 'न्यू वर्ल्ड एग्जिबिशन' । ऐसे कुछ नाम रखा है । तुम देख लेना । आज चले जाएँगे कागज जो एडवरटाइजमेंट बनाय रहे हैं । अच्छा है, बॉम्बे मे ये एग्जिबिशन जो निकाला है । आजकल तो भभका पहले चाहिए ना । कोई बड़ी बात लिख दो तो आदमी आ जाएँगे । छोटी बात से आदमी आते ही नहीं हैं । तो उन्होंने लिखा भी कुछ ऐसे ही है 'न्यू वर्ल्ड एग्जिबिशन' या रिवीलेशन ऑफ न्यू वर्ल्ड बाए गॉड'। तुमको देखना चाहिए । पोस्ट जब आती है, तो ऐसे-ऐसे जो बच्चे हैं उन्होंने देखा भी नहीं होगा । ये तुम्हारा काम है इन बच्चों को देना, खास करके कुमारिका को और इनको भी थोड़ा समझाना जो सर्विस पर तत्पर है और भाषण कर सकती है; क्योंकि अंग्रेजी में है । तो सब बात में अंग्रेजी जानने वाला चाहिए । एग्जिबिशन में क्या-क्या ये करते हैं, यह तुमको भी अच्छी तरह से जानना पड़े, क्योंकि मम्मा तो वहाँ एग्जिबिशन में जा करके खड़ी नहीं रहेंगी ना । बच्चे ही जाएँगे । वो आ करके जब उनको बताएँगे कि ये जगदम्बा है, ये सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाली है, मनोकामनाएं सिद्ध करने वाली है । ये जगदम्बा झाड़ के नीचे दिखलाते हैं । मनोकामनाएँ पूर्ण करने वाली कामधेनु है । तो वो आएगा मिलने के लिए । वहाँ मम्मा या बाबा जाएँगे तो इतना प्रभाव नहीं रहेगा । बाकी उनको डायरेक्शन देना है कि यहाँ भी है, जिसको तुम लोग जगदम्बा कहते हो । जगतपिता तो परमपिता परमात्मा है ही तो जरूर माँ होगी । पिता है तो अण्डरस्टुड है कि माँ है । फिर उनको यह जगदम्बा इनको कह देते हैं, क्योंकि कलश इनके ऊपर रखा जाता है ना । नाम है कि बरोबर परमपिता-परमात्मा ज्ञान सागर आ करके कलश माताओं के ऊपर रखते हैं । उसमें मुख्य माता गाई हुई है जगदम्बा, फिर उनकी शक्ति सेना । तो ये सभी बातें कोई होशियार बैठ करके समझाएंगे । वहाँ फिर एग्जिबिशन में छोटी-छोटी कम अक्ल वाली सेकेण्ड ग्रेड घोड़ेसवार न चले, फिर महारथी चले । प्यादा तो बिल्कुल नहीं चले, क्योंकि तीन प्रकार के तुम ब्रह्माकुमारियां हो ना । एक है प्यादी दूसरी है घोड़ेसवार और वो है महारथी । हमेशा तीन प्रकार का उत्तम, मध्यम, कनिष्ठ, यह अच्छी तरह से गाया जाता है । सो तो बाप जाने और मम्मा जाने- उत्तम कौन है? मध्यम कौन है? कनिष्ठ कौन है? और कोई बच्चे तो नहीं जान सकते होंगे । जाएँगे कोई नए-नए सेन्टर्स वाले, वो बेचारे क्या जानें? उनको ब्रह्माकुमारी चाहिए जो बैठ करके मुरली पढ़ कर उनके ऊपर कुछ समझावे । बाकी तो किसको मुरली भी न हो, तो उनको तो कोई हर्जा ही नहीं है । किसको 10-10, 15-15 रोज मुरली नहीं मिलती है वो समझाती रहती है, उसमें भी आजकल बाबा समझाय रहे हैं अच्छी तरह से कि बस बाप का परिचय दो कि वो लौकिक बाप, वो परलौकिक बाप । वो आते ही हैं स्थापन करने तब जबकि विनाश होने का है, विनाश सामने खड़ा है । देरी नहीं करिए । समझा ना! बहुत गई, थोड़ी रही, थोड़े के भी थोड़ी समय रही । ये याद कर देना है कि ये विकर्म का बोझा जन्म-जन्मांतर का है । वो योग रखना पड़े । योगकोई मासी का घर नहीं है या याद कोई मासी का घर नहीं है जो बाप को याद करें तो विकर्म विनाश हो । तो फिर मिसाल देना चाहिए कि देखो, बाबा और मम्मा हैं मुख्य, जो नम्बर वन में जाने वाले हैं, उनका भी कुछ न कुछ हिसाब-किताब योग और ज्ञान का मेहनत करते-करते भी इस समय रहा हुआ है । इसलिए अगर कोई देरी से आएँगे तो बताओ वो याद से कितना अपना विकर्म विनाश कर सकेंगे? बड़ी मुश्किल होगी फिर देरी से आएंगे तो । तुम ढिंढोरा पिटवा दो ना । फिर तुम बच्चों के ऊपर कोई भी उनकी रहे ना । बोलो- हम तो ढिंढोरा पिटवाते ही रहते हैं, निमंत्रण देते ही रहते हैं, अखबारों में डालते रहते हैं । अखबारों में भी ऐसे ही डालना चाहिए, जैसे ढिंढोरा पिटवाया था ना । बाबा ने एक ढिंढोरा लिख दिया था । तो तुम्हारा जो है वो छूट जाएगा, फिर भले दूसरे अखबार वाले उनमें से कॉपी करें या न करें; परंतु सभी लैंग्वेजिज में भी जितना हो सके इतना निमंत्रण सभी को मिलना चाहिए कि बेहद का बाप. .... .उसमें ऐसा लिखना है ना । बाबा ने छपवाया भी था, परन्तु इतना कोई अटेंशन सब बात के ऊपर नहीं जाता है । अपने लौकिक बाप का वर्सा तो जन्म-जन्मांतर लिया है, अब आ करके परलौकिक बाप का बेहद 21 जन्म का वर्सा लेने का सहज राजयोग से पुरुषार्थ करो । ये निमंत्रण तो तुमको बहुत अच्छी तरह से लिखकर अखबारों में, भले दूसरी लेंग्वेजिज हो उनको भी देना चाहिए, क्योंकि जो भी बड़े-बड़े शहर या गांव वाले हैं अक्सर करके दिल्ली में उनके एजेंट्‌स रहते हैं । सबसे जास्ती रहेगा दिल्ली में । सबसे जास्ती तुम्हारी सर्विस होगी दिल्ली में; क्योंकि फिर भी तो सेन्टर है वहाँ का । सारे इस भारत की गद्‌दी है ना । तो वहाँ अखबारों के सब एजेन्टस रहते हैं । इतनी मेहनत करनी चाहिए जो सबको ये निमंत्रण मिले कि बेहद का बाप आया है । सरकमस्टांसेज दिखलाना है- ये यादव-कौरव-पांडव हैं । क्राइस्ट के, इस्लामियों के, बौद्धियो के ठिकाने तो कुछ भी नहीं हैं, उनका भी उद्धार करने वाला वो है । तो किनका तीर्थ बड़ा हुआ? तीर्थ बड़ा ही हुआ परमपिता परमात्मा पतित-पावन का । .... वो लोग इतना भी नहीं समझते हैं कि क्राइस्ट वगैरह ये कभी पुनर्जन्म ले करके पतित बने होंगे । बहुत थोड़े कोई जानते हैं । जानते हैं जरूर । क्राइस्ट भी यहीं है ये क्रिश्चियन लोग जानते हैं । कोई जा करके पोप से सुने तो वो बताय देंगे कि बरोबर पुनर्जन्म होता है । इस समय में क्राइस्ट जरूर तमोप्रधान में आएगा; क्योंकि झाड़ तो है ना । ट्री सब लोग मानते हैं । क्रिश्चियन लोग भी मानते हैं । तो बोलो- जरूर पुनर्जन्म तो सबको मिलेगा ना, नहीं तो कहा से आएंगी आत्माएँ? कहाँ से आईं क्रिश्चियन की इतनी आत्माएँ? जरूर सेक्शन है । तुम्हारे पास तो समझाने के लिए यह झाड़ फर्स्ट क्लास बड़ा अच्छा है कि देखो, क्राइस्ट लगा हुआ है ना । हिस्ट्री रिपीट करेंगे जरूर । जरूर क्राइस्ट फिर आएगा । कब आएगा? ये बड़ी अच्छी चीज है । बच्चों की बुद्धि में अभी इतनी वैल्यु नहीं है, जैसे नंबरवार बाबा कहते हैं- महारथियों के पास कुछ वैल्यू, घोड़ेसवारो के पास सेकण्ड ग्रेड में वैल्यू, थर्ड क्लास में इतनी कोई भी वैल्यु नहीं; क्योंकि खुद इतना पूरा समझते नहीं हैं । तो समझाने के लिए एग्जिबिशन खुला है । इसमें कोई शो या आर्ट नहीं है । वो तो आर्ट गैलरीज खोलते हैं । उनमें ऐसे ही चरिये-\चरिये चित्र ले आते हैं । ...बाहें यहाँ लगी,फलाना । वो समझते हैं डान्स करने का यह एक आर्ट है । कैसे खड़े करके बताते हैं । गोपियों का भी चित्र बनाएँगे, पतली कमर कर देंगे । पता नहीं क्या-क्या बनाते हैं । है तो कुछ भी नहीं । जैसे तुम हो, मनुष्य ऐसे ही हैं । कोई भी पतली कमर थोड़े ही है । लक्ष्मी-नारायण की पतली कमर कहाँ है? ठीक जैसे होते हैं तैसे होते हैं । ये सभी नॉनसेन्स निकली हुई है कहाँ-कहाँ से । भक्तिमार्ग में जो किस्म-किस्मके चित्र बनाए हैं तो समझते हैं वहाँ देयताएं ऐसे थे । देवताएँ एकदम हूबहू ऐसे हैं जैसे अभी इस समय में अच्छे, खूबसूरत, नेचुरल ब्यूटी बच्चे हैं; क्योंकि बाबा ने समझाया है ना कि पाँच तत्व इस समय में तमोप्रधान हैं, जिनसे शरीर बनते हैं । वहाँ सतयुग में सतोप्रधान हैं, तो उनसे काया कल्प वृक्ष समान । मुसाफिर आते हैं ना । इसके लिए नाम ही रखा हुआ है कृष्ण गोरा और कृष्ण सांवरा । समझा ना! वह शरीरों की कोई मरम्मत नहीं होती है जितनी यहाँ करते हैं । कितनी मरम्मत करनी पड़ती है । वहाँ तो भले बुडढे भी हो जाओ, तुम्हारे दॉत वगैरह सब साबुत । मजाल है जो वहाँ कोई का एक दांत टूट सके! लॉ नहीं कहता है; क्योंकि दॉत टूटा तो डिस फिगर हुआ । यानी देखने में कुछ बुरा लगे । ऐसी कोई भी चीज नहीं होती है । एकदम 16 कला सम्पूर्ण । शरीर भी ऐसा फर्स्ट क्लास । कभी झूझा चूचे झंगले या लगडे-लूले होते ही नहीं हैं । यहाँ तो लगडे-लूले जन्म भी ले लेते हैं, अंधे भी जन्म ले लेते हैं, दो-चार मत्थे वाले भी जन्म ले लेते हैं, वहाँ बिल्कुल ही एक्यूरेट । तो देखो, उस दुनिया के तुम मालिक बनते हो ..परिस्तान के मालिक बन रहे हो, क्योंकि अभी कब्रिस्तान है ना । भारत इस समय में कब्रिस्तान है और कहते भी हैं बरोबर सभी कब्रदाखिल हैं और एक ही मुसाफिर आते हैं । मुसाफिर तो समझते हो ना! हो तो तुम भी मुसाफिर; परन्तु तुम मुसाफिर तो आ करके पुनर्जन्म ले करके पार्ट बजाते हो । फिर जब तुम मुसाफिर पतित बन जाते हो तो तुम्हारी यह हसीन आत्मा काली बन जाती है । आत्मा ही काली बनती है । उसमें खाद पड़ती है । ये एवर हसीन है । इसमें कोई खाद पड़ती नहीं है । वो खुद बैठ करके समझाते हैं- मेरे में तो कोई खाद नहीं पड़ेगी । मैं तो सच्चा सोना हूँ, जिसको प्योर आत्मा कहा जाता है; इसलिए मुझे बुलाते हैं । मैं प्योर हूँ एवर पावन हूँ तब तो मुझे बुलाते हैं ना कि हे पतित को पावन बनाने वाला अर्थात् एवर पावन रहने वाला बाबा आओ । फिर क्या आकर करो? हमको भी आप समान बनाओ । एवर नहीं बन सकेंगे, कम से कम बनते तो बहुत हैं ना । देखो, वहाँ जो आत्माएँ रहती हैं, पावन तो होंगी ना । पीछे भले किसी में ताकत कम होगी । जो पिछाड़ी वाले होते हैं, भले ताकत कम है, पर होंगे तो पावन ना; क्योंकि इनको पतित फिर बनना होता है । सतोप्रधान में सबको आना है; पर सतोप्रधान आत्माओं में भी ताकत है । ... जैसे नाटक में जाओ, तो देखो कितने ढेर होंगे, फलाना होगा, उनमें उनको क्या मिलता होगा? उसको कम कहेंगे ना । यह एक्टर है, इतना कुछ वर्थ नहीं है 50/100/200 रुपया पगार मिलता होगा । जो हीरो-हिरोईन हैं पता है उनको कितना है? देखते हो उनसे कितना पैसा निकलता है? लाखों रुपया चिल्लियो में, भित्तियों में, फलानी जगहों में । क्या करें बेचारे! कहते हैं- तीस दिन चोर के तो एक दिन साध के । तो देखो, अभी गवर्मेन्ट आ गई है । सबका ये फुलावाडाल रही है, सबका खाना खोलेगी, येखोलेगी, ये खोलेगी ।'जहाँलोभी होये तहां ठोगी भूख न मरे' ऐसे सुना है कभी? लोभी जो होते हैं ना, वो पैसा-वैसा जा करके कहाँ जमीन में छिपा देते हैं । जमीन में खुद अपने हाथ से तो नहीं कुछ कर सकेंगे । मिस्त्री चाहिए । मिस्त्री को मालूम पड़ा है कि इन्होंने खोला है । अरे! तुमको मालूम नहीं है बहुत मुनीम जी लोग होते हैं, नौकर लोग होते हैं, मोटर चलाने वाले होते हैं, सब जो होते हैं उनको मालूम पड़ जावे कि यहाँ इस समय में इसने पैसा कहाँ छिपाया है । अभी वारी है । उनको बोल देता हूँ तुमने पैसा छिपाया है, दो हमको,.. .अभी हम पुलिस को बोलता हूँ । अभी देते हो या नहीं देते हो? नहीं तो अभी मैं पुलिस ले आता हूँ । तो बताओ उस वक्त उसकी क्या जान रहेगी । ये हो रहा है अभी । कहाँ खड़डे में पूरा.. ..मिस्त्री को .. अपने हाथ से तो कोई नहीं बनाय सकेंगे । तो मिस्त्री लोग भी जा करके समझते हैं कि हमको मिलेगा । तो गवर्मेन्ट के पास नहीं जाते हैं, उनको जाकर पकड़ते हैं- देखो, तुमने ये काम किया हुआ है । तुम्हारा ये चौपड़ा मेरे हाथ में आया हुआ है । दस हजार देते हो या नहीं देते हो? अभी इस समय में कहाँ से भी ले आ करके दो, नहीं तो अभी हम पुलिस में जाते हैं । वो देरी नहीं करते हैं । ऐसे-ऐसे केस होते हैं । तुम अबलाऐ बच्चियाँ अखबार तो कुछ पढ़ती नहीं हो । और फिर बाबा तो हमको बताते भी हैं, बोलते हैं- चलो, तुम बच्चों को साक्षात्कार करावें कहाँ-कहाँ कैसा-कैसाकाम होता है । भक्तों का भी हम दिखलायें, चोरों का भी दिखलायें कैसे उनको सताते हैं । ऐसे थोड़े ही है कि गवर्मेन्ट कोई अन्तर्यामी है जो उनको मालूम पड़े- कहाँ क्या चीज है । ये सब एक-दो के ऊपर चुगली मारते हैं- ये फलाना जाते हैं, इनके पास बहुत माल है, ट्रेन में ले जाते हैं । झट उनको पकड़ा देते हैं । ऐसे नहीं कि कुत्ते-बिल्ले हैं सो जा करके पकड़ते हैं । अरे! ये क्या. ...... कितने कुत्ते-बिल्ले इनको चाहिए, जो अभी बैठ करके चक्कर लगाऐगे करेंगे । नहीं, यह समय ही ऐसा है । कोई का भी छिप नहीं सकता है, तब तो कहा जाता है ना- किनकी राजा खाए, किनकी चोर हणिवजन किनकी सारे बाह सफली थीं दी सा जो खर्चे नाम धनी पर; क्योंकि धनी आए हुए हैं स्वर्ग की स्थापनाऐ करने । जो उनको मददगार बनेंगे उनका सब सेफ रहेगा । तो अभी जानते हो ना वो बिचारा क्या मदद लेंगे । बाप तो बोलते हैं- मैं क्या मदद का यहाँ! बाकी इतना जो ढेर का ढेर धन है, क्या होगी यहाँ मिल्कियत? सारी दुनिया में कितनी मिल्कियत, कितना सोना होगा । कितने हीरे होंगे! सबके पास तो बहुत है ना । साहुकारों के पास बहुत है । ले करके कहाँ जाएंगे? फिर देखो, तुमको इनकी भी परवाह नहीं है । तुम ऐसे मत समझो, जैसे राजे लोग होते हैं ना । जैसे गजनवी वाला आया, आ करके मंदिर को लूटा । तो था ना । लूट लिया उनको । तुम जो हो, तुमको कोई परवाह थोड़े ही है । तुम कोई यहाँ बैठ करके लूटेंगे-पूटेंगे थोड़े ही । तुम्हारे लिए जो भी खानिया हैं, जहाँ से हीरे निकलते हैं वो सब तुमको नई मिलेंगी । सोना की खानी तुमको सब नई मिलेगी । तुमको जितना चाहिए इतना ले सकते हो । तुम्हारे लिए कोई देरी थोड़े ही है । फिर भी ये जो पड़े रहे हैं, जैसे कोई पत्थर कहाँ पड़ा रहे तो हम पत्थर चलकर ले लेंगे । नहीं तो मुझे खोदना पड़ेगा, ऐसे कहेंगे ना । जो पड़े हुए हैं वो भी तुमको मिल जाएगा । वो तुमने देखा है, साक्षात्कार किया है किकैसे तुम अपना एरोप्लन में। ये सोना गुफाओं में जो पड़ा है वो कहाँ जाएगा। तुम्हारे लिए तो वण्डर है, सब कुछ एकदम इजी है । सोने के महल बनेंगे जैसे ये ईटों के महल बनते हैं, तुम ऐसे ही वहाँ महल बनाते रहेंगे । साहूकार सोने के, गरीब चॉदी के । प्रजा भी तो बनाएगी ना । जो धनवान प्रजा बनती है वो भी तो सोने की बनाएगी । ऐसे मत समझो कि राजाएँ सोने के बनाते हैं । प्रजा भी सोने की बनाती है जो बहुत साहूकार होते हैं, जो पूरे फिलेंथ्रोफिस्ट बनते हैं । बाबा तो सब कुछ अच्छी तरह से बताते रहते हैं । बाबा ऐसे भी नहीं कहते हैं कि तुम भूख मरो, बच्चों को न संभालो । नहीं, बच्चों को भी पूरा सम्भालना है । फर्स्ट तुमको बच्चों का... क्योंकि क्रियेटर हो ना । तुम्हारा फर्ज है उनकी अच्छी तरह से पूरी सम्भाल करना; क्योंकि उनको दुःखी नहीं करना है, भूख नहीं मारना है, क्योंकि बाप है ना । वो तो जानते हैं, ये भी तो बच्चे हैं ना । इनको बाप को सम्भाल करना है । इनको भी तो सम्भाल करनी है ना । ये तो सबका बाप हो गया ना और फिर रहमदिल । ऐसे कभी किसको दुःखी नहीं करो । देखो, कितने दुःखी होते हैं, इसीलिए तो आते हैं ना । वो जानते हैं फैमिन पड़ेगा, ये बेचारे बहुत दुःखी होंगे । ये दुःख इतना नहीं सहन करेंगे, त्राहि-त्राहि करेंगे । जब ये त्राहि-त्राहि होती है, उसके बाद फिर सभी जय-जयकार हो जाते हैं । सबको सुख मिल जाएगा ना । सभी आत्माएँ जो शान्ति चाहती हैं मुक्तिधाम में जाने के लिए उन सबको वहाँ भेज देंगे । सभी दुःखों से छुड़ाने के लिए बाप आते हैं । दुःखहर्ता-सुखकर्ता । सुख हैं दो प्रकार के- एक शान्तिधाम में रहना, एक सुखधाम में रहना । कोई भी दुःख की बात नहीं । शान्तिधाम में भी सुख है शान्ति का और वहाँ सुख भी है, तो शान्ति भी है, तो पवित्रता भी है । यहाँ देखो दुःख है ना । तो बाप कहते हैं कल्प-कल्प जब ऐसी होती है हालत, कलहयुग का अन्त होता है और मनुष्य बहुत दु:खी हो जाते हैं, खाने को भी नहीं मिलता है, बिचारे पत्ते भी खाने को नहीं मिलते हैं, मेरा पार्ट भी उस समय में है, क्योंकि ड्रामा है ना फिर भी । जरूर जब कलहयुग का अन्त होगा और बहुत मनुष्य दुःखी होते है तभी मेरा नाम पड़ा हुआ है ना- दुःखहर्ता-सुखकर्ता या शान्तिदाता-सुखदाता । शान्तिदाता और सुखदाता तो परमात्मा को कहेंगे, कोई साधु-संत-महात्मा को कह ही नहीं सकते और सो भी सर्व का शान्तिदाता सर्व का सुखदाता । अभी तुमको अनुभव है । तुम जानते हो कि बरोबर हम बाबा सहित सबको शान्ति दान देते हैं; क्योंकि तुम शान्ति में रहते हो । देखो, शांति में रहेंगे तो दान देते हो ना । तो जोजो जितना शान्ति का दान देगा अर्थात् याद में रहेगा । अच्छा, फिर हम नॉलेज देते हैं सुख के लिए । तो देखो, तुम शान्तिदाता-सुखदाता की बच्ची निमित्त बनी हो । तुम बच्चों को शो करना है मात-पिता का । तो जितना- जितनाजो-जो शो करेंगे, जितना जो किसको सुख का मार्ग और शान्ति का मार्ग बताएंगे, उनको बहुत इजाफा मिलेगा । तुम सब हो ही गाइड्‌स । अमेरिका से आते हैं, विलायत से आते हैं, वो गाइड लेकर आते हैं । तुम लोग विलायत में जाते हो तो गाइड लेंगे ना, जो तुमको सब कुछ दिखलावे । तो बाबा देखो तुमको कितना बहलाते हैं, कितना दिखलाते भी हैं; परन्तु ये क्या दिखलाते हैं? ये सभी नई बातों की बात सुनाते हैं । नई दुनिया । यहाँ सदेशियो ने कभी\ जर्मनी नहीं देखी है, तोइनको जर्मनी भी बता देते हैं । तुमको ले जाते थे जर्मनी में- बारूद कहाँ बनते हैं, फलाना क्या है, गुफाएँ क्या हैं । तो देखो, तुमको पुरानी और नई दुनिया, दोनों का साक्षात्कार कराते हैं । और कोई थोड़े ही होगा जो तुमको पुरानी और नई दुनिया का साक्षात्कार कराए । इसके सिवाय और ही तुमको जास्ती साक्षात्कार कराएँगे । किनको? बाबा बोलते हैं जो बाबा के सच्चे बच्चे होंगे । सच्ची दिल पर साहिब राजी । शैतानी दिल पर कोई साहब थोड़े ही राजी रहेंगे । ये बाबा बता देते हैं कि शैतानी दिल पर बाप कभी राजी हो तो बेचारा धोखा खा करके मरती जाएगा । बाकी जो तुम होंगे, पिछाड़ी में तुम बहुत कुछ देखेंगे । लड़ाई देखेंगे, कैसे वो मरते हैं, कैसे उनके सभी लड़ाई का सामान तैयार हो गए हैं । तुमको सब दिखलाएँगे । पुरानी दुनिया अमेरिका. जर्मनी, फलाना, यहाँ-वहाँ क्या होता है सब तुमको ... । बाबा ने कहा है कि शुरू में भी तुम बच्चों को बहुत कुछ दिखलाया है । अभी तो वो नहीं हैं ना । कितना प्रोग्राम्स आते थे. कितने तुम पहाड़ बनाते थे, वैकुण्ठ बनाते थे. शादियों दिखलाते थे, बारात निकलती थी, कितने-कितने साक्षात्कार करते थे, कितने तुम्हारे पास सामान थे, कितने ताज थे जो डान्स करती थी- सूर्य का, चन्द्रमा का, फलाना का । अभी है कुछ? सब खतम हो गया । फिर नए सिर तुमको वो नहीं बताएँगे, फिर भिन्न-भिन्नप्रकार का दिखलाएँगे जरूर, क्योंकि मिरूआ मौत मलूका शिकार' । उस समय पार्टीशन में भी बड़ी मिरूआ मौत था । तुम बच्चे वहाँ अपनी मौज में रहते थे । तुम्हारे को कोई दुःख थोड़े ही था । अगर कोई भी मरता तो हम क्या जाने । चिट्‌ठी अगर लिखते थे, यह तो मरने का है, तुमको क्या परवाह रहती है । तुम तो जीते-जी मर गए ना । सबको मार दिया तुमने, इसलिए बाबा कहते हैं मेहनत करो अच्छी तरह से । याद में रहो पूरा अच्छी तरह से और पुरुषार्थ करो- आत्मा हम अभी शरीर को खिलाते हैं, हम फलाने के बच्चे हैं । बस, यहाँ रूहानी बातें, देह-अभिमान की जिस्मानी बातें सब टूटनी हैं । मेहनत है । यह तो बाप ही सिखलावे अच्छी तरह से । बाबा कहते हैं तुम जो फिर देखेंगे वो जो यहाँ से आश्चर्यवत् भागन्ति हो गए, उन्होंने नहीं देखा होगा । तुम फिर ऐसे-ऐसे देखेंगे । जो पास्ट हो गया सो भी समझेंगे, जो फिर नया तुम देखेंगे वो भी तुम देखेंगे । फिर दूसरा कोई थोड़े ही देख सकेंगे; इसलिए बाबा कहते हैं मेहनत करो । मेहनत करेंगे तो बाबा सब कुछ दिखलाएँगे । अच्छे-अच्छे मीठे चिल्ड्रेन जो होते हैं ना, उनको बाप बहुत प्यार करते हैं, बहुत कुछ घुमाते हैं, बहुत कपड़ा-वपड़ा देते हैं, उनका श्रृंगार करते हैं । ये भी तो बेहद का बाप है, सभी बता देते हैं ना । तो समझ की बात है, जो प्यारे बच्चे होते हैं उनको मात-पिता से बहुत प्यार मिलता है । ये भी मात-पिता है । वो भीकहते हैं जो मेरी सर्विस अच्छी तरह से करेंगे उनको बहुत कुछ प्यार भी मिलेगा और पद भी मिलेगा । ये भूलो नहीं । यहाँ तो सामने बैठे हैं । सम्मुख कहते हो- बाबा हमको सम्मुख समझा रहे हैं । कौन बाबा? अरे! किसके बुद्धि में कोई थोड़े ही समझे । हम आत्माओं को निराकार परमपिता परमात्मा शिक्षा दे रहे हैं; क्योंकि हमको स्वर्ग का वारिस बना रहे हैं । उसके लिए शिक्षाएँ देते हैं; क्योंकि बहुत गुणवान, दैवी गुणों वाला बनना है । आगे तो हमारे में सब आसुरी गुण थे । सबमें आसुरी गुण थे । अभी बाबा सम्मुख बैठे हैं तो ऐसे कभी नहीं यह ख्याल रखना की ब्रह्मा ; क्योंकि जिससे वर्सा मिलता है उनसे लव रहता है । वो थ्रू है,एक दलाल है । दलाल से थोड़े ही प्यार होता है । सौदा होता है, दलाल दलाली करते हैं, तो दलाल तो बीच में हुआ ना । सौदा तो उनसे मिलता है । तो तुमको भी बाबा कह देते हैं कि दलालों की कोई बात नहीं है । बाप को याद करो अच्छी तरह से, देह-अभिमान को छोड़ते जाओ । कोई की भी याद नहीं, सिर्फ एक । मेरा तो एक दूसरा न कोई माना फिर दूसरा कोई भी देहधारी नहीं, क्योंकि मेरी आत्मा का एक बाप, दूसरा कोई भी देहधारी नहीं । बाबा हमको इनसे....सो यह तो हुआ दलाल, बाबा का पुराना बूट है । इसमें क्या रखा हुआ है बाबा खुद भी कहते हैं- यह तो पुराना बूट है । इनको भी तो यह खल छोड़नी है । यह तो मैंने आ करके लोन लिया है । ऐसे कोई अक्षर थोड़े ही रखे हुए हैं गीता वगैरह में । जरूर कल्प पहले भी ये अक्षर कहे होंगे तब तो अभी भी कह रहे हैं ना । आज से 5000 वर्ष पहले आज गुरुवार के दिन, फलानी तिथि, फलानी तारीख तुमको यहाँ समझाया था ना । फिर भी तो वहाँ समझा रहा हूँ ना । देखो, कितनी अच्छी, विशाल बुद्धि चाहिए बिल्कुल बेहद की । बाकी बुद्धू बिचारे कुछ भी नहीं समझ सकते । बहुत हैं जो बिचारे कुछ नहीं समझते हैं । बाकी जो अच्छी तरह से समझेंगे तो समझदार कहलायेंगे । लक्ष्मी-नारायण ने जरूर कुछ अच्छी प्रालब्ध बनाई होगी, तब तो नम्बर वन गए हैं । कोई इनको पढ़ाने वाला होगा । अभी तुम जानते हो कि पढ़ाने वाला मिला है । वो पढ़ाते हैं । फिर देखो, कैसे-कैसेहोंगे- सतयुग में लक्ष्मी नारायण होंगे, फिर नम्बरवार आएँगे, फिर उनकी दास-दासियाँ होंगी.... । अभी तुम सब कुछ जान गए ना- प्रजा कैसे होती है, ये सब कैसे होती है । कितना-कितनाजो बाप का सर्विस में खुदाई खिदमतगार बनते हैं, सैलवेशन आर्मी । ये गॉड फादरली सैलवेशन आर्मी है । ईश्वरीय सैलवेशन आर्मी, सारी दुनिया को सैलवेशन देने वाला । काहे का? मुक्ति और जीवनमुक्ति । सर्व का सद्‌गति दाता कहा ही जाता है- राम । बाबा ने समझा दिया है ना जीवनमुक्ति को सद्‌गति कहा जाता है । गति में तो जरूर जाना पड़ेगा, पीछे आएँगे जीवनमुक्ति में । समझना तो बच्चों को अच्छा है, समझाना भी ऐसे है जैसे बाप समझाते हैं, माँ समझाती है, अनन्य समझाते हैं नम्बरवार ऐसे पुरुषार्थ करके । सब पुरुषार्थ की बात है । ड्रामा के ऊपर ठहर करके नहीं छोड़ देना है । खूब पुरुषार्थ करना है- हम जरूर बाप को याद करके और पिछाड़ी में ये सभी वण्डर्स देखेंगे । हम जर्मनी-अफ्रीका कुछ भी नहीं देखे, पुरानी दुनिया हम देखेंगे सारी । फिर बाबा तो बहुत बहलाएँगे । सब दिखला देंगे तुम लोगों को । सभी जानते तो हो अफ्रीका में कैसे रहते हैं । बहुत हैं जिन्होंने अफ्रीकन देखा नहीं है कि अफ्रीकन कौन होते हैं । आगे जब लड़ाई लगी थी तो अफ्रीकन लश्कर अमेरिका के यहाँ आए हुए थे, जब तुम लोग कराची में थे । ...लोग यहाँ ले करके बहुत आए थे । बड़े अच्छे पहलवान होते हैं । बाबा कहते हैं- क्यों नहीं बच्चे! तुमको हम पुरानी दुनिया भी सब कुछ दिखलाएगे । जब नई दुनिया का साक्षात्कार कराता हूँ, पुरानी दुनिया थोड़ी देखी है, तुमको पुरानी दुनिया भी सब साक्षात्कार करा सकता हूँ । कोई-कोई को कराता भी हूँ । तुम चाहो कि बाबा, हमको थोड़ा अफ्रीका तो दिखलाओ । वो बच्चों को दिखलाय सकते हैं; परन्तु बाबा कहते हैं- तुम अच्छीतरह से तीखे, मेरे मीठे बनो, मैं तुमको सब दखलाउंगा । जो बहुत मीठा बनता है उनकी खातिरी मात-पिता करते हैं । यह तो एक लॉ है, कॉमन कायदा है । ऐसे नहीं होता है कि बाबा को सब बच्चे एक समान हैं । वाह! सब बच्चे एक समान नहीं है तो सब बच्चे एक समान बना देवें क्या? ऐसे थोड़े ही कहेंगे कि मास्टर को ये सभी स्टुडेन्ट एक समान हैं । हाँ, पढ़ाने के लिए एक समान हैं । पुरुषार्थ तो हर एक को अपना करना है ना । तो तुम हो स्टूडेन्ट लाइफ में । गॉड फादर, पतित-पावन लिबरेटर उसको कहा जाएगा । गॉड फादरली चिल्ड्रेन । यह कम थोड़े ही है । तुमको तो अन्दर में स्थायी खुशी का पारा बहुत चढा हुआ रहना चाहिए जो बात मत पूछो; क्योंकि गुप्त है बाबा ना । बाबा माना बाबा । बाबा को कोई भूलता थोड़े ही है; परन्तु माया भुला देती है । बाकी भूलना तो कभी होता ही नहीं है, सो भी ऐसे बाप को । वाह! लौकिक बाप को तो इतना याद करते आए, बाकी पारलौकिक बाप को एक जन्म नहीं याद कर सकते ।......अभी तो हमको पारलौकिक बाप को पूरा पकड़ना चाहिए; परन्तु है बुद्धि से पकड़ने की बात । तो बुद्धि से पकडो बाबा को । अच्छा, बात मत पूछो; क्योंकि तुम मदद करते हो, ये भारत को पावन बनाने में योग से तुम बहुत मेहनत करते हो । भारत खास, सारी दुनिया आम । तुम सारी दुनिया की सेवा करते हो बच्चे । शास्त्रों में है नहीं, नहीं तो शिवबाबा के शालिग्राम की जब कथा सुनने शिव मन्दिर में जाओ, शालिग्राम बैठे हैं, उनको जाकर बताओ कि ये शियबाबा पतित-पावन है, उनके ये शालिग्राम हैं मददगार, जिनका ये रूद्र्ज्ञान बनाते हैं मिट्‌टी के पुतले । तो महिमा होती है । ऐसे थोड़े ही है कि आत्माओं की महिमा नहीं है । सिर्फ जानते कोई नहीं हैं । समझते हैं कि जरूर इनके बच्चे हैं । कुछ तो किया होगा ना, तब तो इतनी पूजा करते हैं । तुम सब जानते हो । अच्छा, आज भोग है । सतगुरु अकाल मूर्त । अकाल माना जिनको काल नहीं खा सकते हैं । जन्म-मरण में नहीं आते हैं ना । वो तो कहते हैं ना उनको काल खा गया । तो वो बोलता है- मैं हूँ अकाल, मेरे को कोई काल खा नहीं सकता है, मैं फिर कालों का काल हूँ जो सबको वापस ले जाऊँगा । अच्छा, रेडी है बच्ची ।. .. सन्मुख सुना । पीछे दूर सुनेंगे, मुरली से सुनेंगे, टेप से सुनेंगे । सन्मुख की बात सन्मुख है । जब बाप ज्ञान का सागर है तो तुमको क्या देंगे? है ही ज्ञान का सागर । तुमको क्या मिल्कियत देंगे? ज्ञान देंगे ना । या और कुछ देंगे? बस, उनके पास है ही ज्ञान । ज्ञान से तुमको सब मिलता है ।...............नॉलेज में ब्लिस भरी हुई है । स्कूल में नॉलेज देते हैं, उनमें ब्लिस भरी हुई है यानी वर्सा भरा हुआ है, पद भरा हुआ है । ये भी ऐसे ही है । नॉलेज में पद भरा हुआ है । एम ऑब्जेक्ट । ऐसे कैसे बनेगा वननेस । वननेसफुल तो बनना मुश्किल है । ये आपस में खुद ही वननेस नहीं बनते हैं, दूसरे को ले जाते हैं वननेस बनाने । वन का राज्य हो तो वननेस बने । देखो, ये वननेस । इसमें भी अभी तलक वननेस नहीं बनते हैं, एक मत नहीं होते हैं । आपस में भी लड़ते-झगड़ते रहते हैं । माया कितनी दुस्तर है । भगवान आते हैं, इनको कहते हैं- बच्चे, एक मत हो जाओ, देवता मत हो जाओ यानी सभी दैवी गुण धारण करो, एक- दो से दैवी चाल चलो । कहाँ चलते हैं? फिर एक-दो में आसुरी चाल चल जाते हैं । देखो, यहाँ हमारे थोड़े बच्चों में हीएक मत नहीं होती है । एक-सा क्षीर खड नहीं होता है । झट आपस मे लून-पानी हो जाते हैं, तभी तो सर्विस ढीली पड़ती है ना । नहीं तो आपस में एक बन जावे, तो और क्या चाहिए । कोई-कोई की तो आपस में ऐसी मतभेद खराब हो जाती है, जो अज्ञानी की भी नहीं हो । तो फिर वो क्या पद पाएंगे? बाकि जो आपस में बहुत प्यार से चलते होंगे , सर्विस में ही अटेंशन होगा अंदर बाहर साफ़ होगा, तुम जानते तो हो ना । कोई बाहर से बड़े मीठे बैठे हैं, अन्दर में बड़े शैतान, परन्तु अन्दर-बाहर मीठा चाहिए ना । तो सच्ची दिल उसको कहा जाता है । सच्ची दिल पर साहिब राजी । नहीं तो मुफ्त खाना (खराब करेंगे) । खाना तो आबाद करना है । अगर उंच पद नहीं (पाया), वहाँ जा कर चण्डाल और धूरछाई बनेंगे तो खाना आबाद तो नहीं किया ना । वो क्या हुआ? वो तो कुछ लिया ही नहीं । बाबा आया हीरा लेने(देने) और उनसे खाली एक पुखराज ले लिया । उसमें क्या होगा? लेना तो पूरा चाहिए पुरुषार्थ करके । अच्छा, सबको याद-प्यार देना, समाचार सुनाना कि आज पुरुषार्थ अनुसार लाडले बच्चे पूने और बाम्बे के हैं, कोई कहाँ के, कोई कहाँ के हैं । तुम सब समझते हो ना । अभी ऐसे तो है कि हम जानते हैं बाबा अन्तर्यामी है, सब कुछ जानते हैं; परन्तु लॉ मुजीब चलना पड़े ना । याद-प्यार भी तो भेज देना पड़े ना । ऐसे थोड़े ही समझना वो सब कुछ जानते हैं, हम यहाँ कहते हैं- बाबा, आपको याद-प्यार दे रहे हैं तो वो कोई सुन लेंगे । .... तुम याद-प्यार ले जाना, उनको जाकर सब समाचार अच्छी तरह से सुनाना- कौन-कौनआए हुए हैं, कौन-कौन जा रहे हैं । अभी वो बेचारी बैठी है । उनको ठीक श्रंगार करके बिठाया । जब शान्त में बैठेंगे तो इनको शान्त का प्रभाव अच्छा आएगा । बाकी सुन तो सकेंगे नहीं । आखों से वो खुश होती है । बच्ची, जब भी जाती हो तब दीदी से पूछ कर जाओ, किसका खास याद-प्यार देना है । कौन आ करके पढ़ाते हैं! ऐसे कोई पत्थरबुद्धि जो भगवान द्वारा पढ़ नहीं सकते हैं । वण्डर है ये । ये ड्रामा वण्डरफुल है । लौकिक टीचर से फिर भी कुछ पढ़ जाते हैं, यहाँ तो भगवान बैठे हैं पढ़ाने, इनसे फिर कोई ऐसा....पढ़ता भी नहीं । आई०सी०एस० का बड़ा-बड़ा इम्तहान खर्चा न होने के कारण बिचारा पढ़ नहीं सकते हैं । यहाँ खर्चे की भी कोई बात नहीं है । देखो, मुफ्त में भी नहीं पढ़ सकते हैं । उनको लोजिंग-बोर्डिंग भी देखते हैं तो भी नहीं पढ़ते हैं । ये वण्डर तो देखो । क्या कहें उनको । (रिकॉर्ड :- पितु-मात सहायक, स्वामी, सखा, तुम ही सबके रखवारे हो....)बच्चों को समझा रहे हैं ना । माशूक आशिकों को समझा रहे हैं । एक है माशूक, तुम सभी आत्माएँ हो । तो ये है आत्मा का परमात्मा से, मासूकसे आशिकों की याद । इसमें जिस्मानी कोई बात नहीं है । जिस्मानी तो बहुत होते हैं । आशिक-माशूक सुने हैं ना । कोई तो एक-दो में बहुत प्रीत रखते हैं, पुरुष भी एक दो से बहुत प्रीत रखते हैं जिसको फ्रेण्ड अथवा दोस्त कहते हैं । ऐसे भी कोई दोस्त होते हैं जो जीवन भर अपनी तोड़ निभा सकते हैं । कोई न कोई होंगे । वो है एक -दो में भाई-भाई का जिस्मानी लव । भाई-बहन का तो हो भी नहीं सकता है । बहन-बहन\का भी हो नहीं सकता है; क्योंकि दो बहन अगर हो तो फिर जरूर एक को एक के घर में जाना पड़े, दूसरे को दूसरे घर में जाना पड़े । नहीं तो दोनो को एक घर में जाना पड़े, तभी दोनो इकट्‌ठे रह सकें । ऐसे नहीं किआशिक-माशूक कोई इकट्‌ठे रहते हैं । नहीं । वो मिलते नहीं हैं । उनके ऊपर जो हैं वो उनको मिलने नहीं देते हैं; इसलिए तड़पते हैं । अभी यह तो कोई जिस्मानी आशिक-माशूक के याद की बात तो नहीं है, यह तो है आत्माओं की परमात्मा से याद की बात । मुसलमान लोग कव्वाली गाते भी हैं- आशिक आशिक है, माशूक है । अरे, बिचारे जानते नहीं हैं, वो समझते हैं- हम रूह हैं और वो रूहानी बाप अल्लाह है; इसलिए हमको अल्लाह से माशूकता रखनी चाहिए । तो ऐसे बहुत मुसलमान है जो अल्लाह-उ करते रहते हैं । तो जरूर अपन को तो रूह ही समझेंगे । उनकी रचना ही समझेंगे; परन्तु उनको यह पता (नहीं है कि अल्लाह है कौन चीज; क्योंकि जिसका आशिक बनना है उनको जानना तो पूरा चाहिए ना । इसलिए न जानने के कारण कोई भी आशिक माशूक से पूरा योग लगा नहीं सकते हैं । भले कोई और देहधारियों के साथ लग सके । बाकी यह सिवाय बाप के सिखलाने बिगर कोई भी आशिक माशूक के साथ योग लगा नहीं सकते है । दुनिया में कोई एक भी नहीं है जो यथार्थ रीति से जानता हो' क्योंकि उनको तो मालूम नहीं पड़ता है कि माशूक से क्या मिलेगा । वो तो कुछ मिलता ही नहीं है । मिलना है उनसे जरूर । वो आपे ही आ करके देते हैं और कहते हैं- मैं तुम सब बच्चों को शांति और सुख देने के लिए आया हुआ हूँ । तब तुम जानते हो कि बरोबर बाबा आया हुआ है और आता है गुप्त वेश में । तो फिर शास्त्रों में लिखा हुआ नहीं है । शिवजयन्ती है । एक जगह में कहाँ यह लिखा हुआ है- मैं साधारण बुडढे तन में आता हूँ परन्तु साधारण बुड्‌ढा तन कृष्ण का तो है नहीं । वो भी तो नहीं हो सकता है । फिर वो बिचारे समझ नहीं सकते हैं कि जरूर साधारण बुड्‌ढा तन, वृद्ध तन, जो अपने जन्मों को नहीं जानते हैं, मैं उनमें आता हूँ । तो कितनी गुप्त बात हो जाती है ना । वो कौन होगा? किसमें होगा? अथवा आएगा? तो जब उनमें आए तब बतावे कि मैं इनमें प्रवेश कर फिर इनका नाम प्रजापिता रखता हूँ । फिर प्रजापिता ब्रहमा के ये कुमार और कुमारियाँ ये ब्राहमण कुल के हुए । अभी कोई भी शास्त्रों में, फलाने में इन बात का कोई भी पता नहीं है । जिनको सम्मुख खजाने का सुख मिलता है, फिर सुक्ष्मवतन मे भी हो तो भी खजाना मिलता है । ये सब लूट रहे हैं । हम यहाँ क्या करते हैं? फिर जाकर दूसरे के मुख से सुनना पड़े । समझा! सन्मुख सुनना और दूसरे के मुख से सुनना, फर्क पड़ जाता है । एक्यूरेट कोई बता सकेंगे? कायदा नहीं कहता है । अच्छा, चलाओ बच्ची । मात-पिता का और बापदादा का मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार यादप्यार और गुडमॉर्निंग ।