17-09-1964    मधुबन आबू    रात्रि मुरली    साकार बाबा    ओम शांति    मधुबन


हेलो, गुड इवनिंग, यह सतरह सेप्टेम्बर का रात्रि क्लास है।

इस सर्विस में वास्तव में थकान नहीं होनी चाहिए; क्योंकि और ही ताकत मिलती जाती है । हर एक कार्य में कमाई तो जरूर है; क्योंकि सभी ऑन गॉडली सर्विस यानी ईश्वर की सर्विस में हैं । आसुरी सर्विस में 8 घण्टा तो ईश्वरीय सर्विस में 12 घंटा; क्योंकि बाप बहुत अच्छा इजाफा देते है; इसलिए गाया हुआ है कि दधीचि ऋषि ने हड्‌डी भी दे दी थी । सन्यासियों को इतनी सर्विस नहीं करनी पड़ती है । उनको हड्‌डी नहीं देनी पड़ती है । यह कर्मणा है ना, वो तो कर्मसन्यासी हैं । तुमको कर्मणा करनी है, तन-मन-धन से बहुत सेवा करनी है । अभी सन्यासी क्या करते होंगे? किस प्रकार की सेवा करते होंगे? तन की सर्विस तो नहीं कर सकेंगे, क्योंकि वो तो सब कोई जा करके सामने पड़ जाते है । कर्म सन्यासी होने के कारण उनको कुछ कर्म तो करने की दरकार ही जैसे नहीं है । बाकी कहे मन से तो उल्टी, अयथार्थ । तो सर्विस जितनी बच्चे करते हैं, इतनी बच्चे जानते हैं कि हमको ऊँच पद मिलना है । पीछे मार्क्स तो सबमें हैं ना । देखो, बाबा भी कहते हैं - जैसे भंडारी है तो इतनी सेवा करते है तो इनकी भी मार्क्स बहुत है; क्योंकि बहुतों को सुख मिलने से वो सुख की आशीर्वाद इनके ऊपर जाती है जरूर । जो सर्विस जैसे अच्छी करते हैं तो महिमा भी अच्छी होती है ।... जो भी आएँगे, बोलेंगे - वाह! ऐसे भंडारी के ऊपर तो बलिहारी जावे । बलिहारी जाना भी कोई ऊँचे के पास होता है । देखो, तुम बच्चे बलिहारी जाते हो । कितना ऊँच बाप है! बलिहारी जाते हो तो बाप से फिर मिलता भी बहुत है ।......यह भी मेहनत है - भारत को पवित्र बनाना, शान्त बनाना, सुखी बनाना । ये तुम्हारी मेहनत है ना । जितनी याद में रहते हो इतनी शान्ति फैलाते हो । जितना पवित्र रहते हो इतना भारत को पवित्र बनाते हो । तुम पवित्र बनने के लिए, शान्त रहने के लिए पुरुषार्थ करते हो । दुनिया वाले तो कोई पुरुषार्थ नहीं करते हैं । कौन है देखो, इनको भुलाने में मेहनत लगती है । अशरीरी हो जावे, शरीर का भान मिटता जावे - यह भी तो यात्रा होती है ना । तो जितना अपन को आत्मा निश्चय कर बाप से योग रखता रहे इतना बहुत कल्याण है । राजयोग की पढ़ाई देखने में बहुत सिम्पुल आती है । बैरिस्टरी पढ़ने के लिए कितनी मेहनत लगती है । कितना नीचे से एक-दो-तीन-चार मैट्रिक, फलाना पास करते-करते जा करके पिछाड़ी को ऊँचा इम्तहान । यहाँ तो कोई दूसरी बात है नहीं । एक ही इम्तहान है । जो आते है सो एक ही बात पढ़ते है । छोटी-मोटी चौपड़ियॉ नहीं पढ़नी पड़ती हैं, फट से पढ़ लेते हैं । सो भी बाप ने बड़ा अच्छा समझाया है कि पहचाना बाप को और बाप का हुए तो जीवनमुक्ति जरूर मिलेगी, क्योंकि जीवनमुक्ति की ही राजधानी स्थापन हो रही है और बाप कर रहे हैं । तो बड़ी सिम्पुल भी है, बड़ी सहज भी है, इनमें टाइम भी कोई बहुत नहीं जाता है; क्योंकि शरीर निर्वाह के लिए सबको टाइम चाहिए । पुरुषों को भी टाइम चाहिए तो माताओं को भी टाइम चाहिए - घर की सम्भाल करना, बाल-बच्चों को सम्भालना । तो इस समय इस तरफ में ध्यान देते हैं और पढ़ाई तो थोड़ी रहती है - सुबह और शाम ।.......कम्प्लेंट सुनने वाला एक है । कम्प्लेंट करना माना भक्ति करना; क्योंकि कहते है भक्ति करते-करते फिर तुम्हारा दुःख का छुटकारा हो जाएगा । तो भक्ति करना भी बाप को कम्प्लेंट करना है । भक्ति में भक्ति करते हैं, दुःखी होते हैं । भक्ति में दुःखी कौन करते हैं? फिर ये रावण । भक्ति को अच्छा तो समझते हैं; परन्तु वास्तव में है दुःख की कम्प्लेंट्स पिछाड़ी कम्प्लेंट्स । फिर ये सुख की कम्प्लेंट । दुःख की कंप्लेंट सतयुग में तो होती भी नहीं है ।... ईश्वरीय गोद में बहुत समय तो रह भी नहीं सकते हैं । अगर चाहें तो भी नहीं रह सकते हैं; क्योंकि ईश्वर की गोद तो सबसे उत्तम है ना । सतयुग में चाहें कि जास्ती रहें तो रह नहीं सकते है और दुःख में कोई जास्ती रहना नहीं चाहेगा । सुख में चाहें तो रहना मिल नहीं सके सतयुग में । अच्छा, बाजा बजाओ । आज सवेरे में ही क्लास बन्द करना, रामचन्द्र भी थका हुआ होगा जरूर । सारा दिन मेहनत करते हैं और वो बच्चा तो मक्खन निकालने की बहुत मेहनत करते हैं । मक्खन मुख में पड़ना है ना जितनी मेहनत करेंगे । सिर्फ याद करने से बच्चों को सृष्टि रूपी स्वराज्य का मक्खन मिलता है ।.... मक्खन को भी याद करते हैं, बाप को भी याद करते हैं । अच्छा, बाजा बजाओ । (म्युजिक बजा) मात-पिता और बाप-दादा का मीठे-मीठे- मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति यादप्यार और गुडनाइट ।