18-09-1964     मधुबन आबू     प्रात: मुरली    साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन
 


हेलो, स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुलभूषणों को हम मधुबन निवासियों की नमस्ते, आज सेप्टेम्बर शुक्रवार की अठारह तारीख है, प्रात: क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।

रिकॉर्ड :-
गाफिल तुझे घड़ियाल ये देता है मनादी.. ...

ओम शांति । किसने समझाया? बेहद के बाप ने समझाया बच्चों को । जो बेहद की घड़ियाल की घड़ी है उसमें बाकी थोड़ा कुछ मिनट रहे हैं । घंटे गए, अभी मिनट रहे हैं । समझो मिनट के भी थोड़े मिनट रहे हैं । जो अच्छे सेन्सिबुल बच्चे हैं, वो जानते हैं; क्योंकि नम्बरवार हैं ना । यह तुम बच्चे समझ सकते हैं । इनका दृष्टांत तो देते हैं कि बरोबर ये गुलाब के फूल हैं । तुम्हारा जो देवी-देवता धर्म है, वो जैसे सदा गुलाब के फूल हैं- सदा शिव और सदा पार्ट बजाने वाले आलराउण्ड हैं तो तुम गुलाब के फूल; क्योंकि यदि सभी के धर्म के ऊपर जावे तो तुम ऊंचे ते ऊँचे धर्म वाले हो, सदा गुलाब हो । पीछे तुम्हारे जैसे सदा गुलाब तो कोई हो नहीं सकते हैं । दूसरे धर्म वाले फिर नम्बरवार हैं- कोई चम्पा है, कोई चमेली है, कोई काँगर है, तो कोई अक है । उनमें भी ऐसे ही फूल हैं; क्योंकि बगीचा तो है ना । धर्मो का भी जैसे बगीचा है । ये तो बच्चे जानते हैं कि ऊँचे ते ऊँच धर्म तो है ही देवी-देवताओं का । उनमें भी फिर है तो गुलाब के झाड़ के फूल; परन्तु मुरझाय गए हैं । अभी फिर से उनमें होते हैं । जब सीजन नहीं होती है, तो उनमें मुखरी भी नहीं रहती हैं, फूल भी नहीं, कली भी नहीं, कुछ नहीं होते हैं । हो तो तुम गुलाब के झाड़ के, परन्तु सभी खत्म हो गए, जैसे सीजन ही खलास हो गई । अभी उनमें से कोई मुखरी है, कच्ची है, कोई पक्की है, बाबा नमूना ले आए है । भई कहाँ गया? देखो, नम्बरवार हैं ना । हैं तो गुलाब के ना । तुम हो बरोबर हो गुलाब के ।...... .ये बन्द कलियाँ, कोई—कोई मुरझा जाती हैं, कोई-कोई कलियाँ खिलती ही नहीं हैं, कोई थोड़ा खिलती हैं.... । है ना बरोबर । हो भी गुलाब के झाड़ के; क्योंकि दूसरे झाड़ों को ऐसे नहीं कहेंगे । ये सभी सेन्सिबुल धर्म वाले जानते हैं, उसमें भी क्रिश्चियन लोग तो बहुत अच्छे जानते है, क्योंकि उनसे दैवी झाड़ का कनेक्शन बहुत है । तो अभी बाप बच्चों को बैठ करके समझाते हैं- बच्चे, सुस्ती नहीं करो । अभी अगर कलियाँ की कली है तो समझते हो कि फूल के फूल रह जाएँगे, पिछाड़ी में आधा के आधा रह जाएँगे । कली तक ही रह जाएँगे, खुलेंगे भी नहीं । तो समझेंगे ना- ये कहाँ चले जाएँगे, ये कहाँ चले जाएँगे, इनका पद क्या होगा, इनका पद क्या होगा? देखो, बाबा सब ले आया ना । हैं भी एक ही झाड़ के । बाप समझाते हैं- बच्चे, समय बाकी थोड़ा है । ये जो घड़ी बनाई हुई है उनमें वास्तव में काँटे को फिराय तो नहीं सकते हैं । हाँ, अगर युक्ति से कोई रखे तो थोड़ा-थोड़ाहम फिराते रहें, निशान छोड़ते रहें- यहाँ से काँटा शुरू हुआ है, यहाँ का काँटा यहाँ तक आ गया है, क्योंकि तुम जानते हो इस कांटे को कितना वर्ष हुआ है, जो फिरना शुरू हुआ है । निल से निकला है । अभी आ करके बारह बजे के नजदीक पहुंचा है । ये तो जानते हो ना । यूँ धर्म भी निल से निकला है, कोटा सतयुग से यहाँ तक चला आया है । अभी जब से बाबा आए हुए हैं फिर उस टाइम को गिनना होता है । बाप खुद ही बच्चों को कहते हैं- बच्चे, टाइम वेस्ट मत करो । तुम अपने बाप को अच्छी तरह से याद करते रहो; क्योंकि जितना-जितना याद करेंगे इतने-इतनेविकर्म विनाश होते जाएँगे । विकर्म कुछ न कुछसबके होते रहते है जरूर । ऐसे अपन को कोई मत समझे, इतना अहंकारी कोई मत बने कि हमारा कोई विकर्म नहीं बनते हैं । नहीं, अनेक प्रकार से विकर्म बनते हैं। कोई के गुप्त विकर्म भी बहुत बनते हैं । तो बाप कहते रहते हैं- बच्चे, इन विकर्मो से सम्भाल करते रहो और बाप को खूब अच्छी तरह से याद करते रहो । घडी टाइम दिखलाई देता है तुम बच्चों को । दुनिया को तो पता भी नहीं है कि कोई-कोई बोलते हैं ना- कलहयुग अभी बच्चा है । तो इसको कहेंगे- घोर अंधियारे में पड़े हुए हैं । तो अभी तुम बच्चों को मुर्दों को जगाना है । समझा ना । गाते भी हैं बरोबर सवेर में ही याद करना चाहिए । जिन सोया तिन खोया । माना सोना तो है सबको, ऐसे नहीं कि कोई सोने बिगर रह सकते हैं; परन्तु जो समय है याद करने का या भक्तिमार्ग का, वो सो करके खोओ न, नहीं तो फिर मुर्दे के मुर्दे, ऐसे के ऐसे ही रह जाते हैं । इनसे इतना तक भी कोई नहीं आते हैं और फिर कोई तो यहाँ तक आ करके भी, तूफान जो लगते हैं तो खेल ही खलास है । यहाँ तक भी आ करके खेल खलास हो जाता है । तूफान में बहुत ही अच्छे-अच्छेफूल बिचारे मुरझा कर गिर गए । तो जब फूल गिर सकते हैं तो कलियों को मुरझाने मे देरी क्या लगेगी । वो भी गिर जाएँगे । फिर कहीं चले जाते हैं? फिर वो काँटे के काँटे रह जाते हैं । हैं जरूर यहीं के फूल । बाबा कहते हैं- दैवी घराने में तो जरूर आएँगे, प्रजा में भी आएंगे, प्रजा में नौकरी में भी आएंगे, सबसे कम पद भी पाएँगे, परन्तु आएँगे तो जरूर; क्योंकि हैं ही तुम गुलाब के झाड़ के । तो इसमें खुश नहीं होना चाहिए कि फिर भी हम स्वर्ग में तो जाएँगे; क्योंकि मनुष्य तो गाते हैं- लेपट फोर हैविनली अबोड । वो तो बिचारे सिर्फ नाम मात्र वैकुण्ठ वासी हुए । वैकुण्ठ में क्या है? कैसे राज्य होता है? वो प्रालब्ध हरेक कैसे बनाते हैं? स्वर्ग मे कोई महाराजा-महारानी हैं, कोई राजा-रानी हैं, कोई प्रजा हैं । क्यों? ये भी तो कोई कारण होगा ना । अभी तुम बच्चे अच्छी तरह से समझ गए कि जितना-जितना जो बाप का बिलवेड मोस्ट तो सर्विसएबुल मोस्ट होगा । उसको ऐसे कहेंगे- सर्विसएबुल मोस्ट तो बिलबेड मोस्ट । यह तो एक कॉमन बात है । कोई भी बाप से जा करके पूछो- बच्चे अगर सपूत हैं, आज्ञाकारी हैं, वफादार हैं, ईमानदार हैं; क्योंकि इसमें ईमानदारी भी बहुत चाहिए । माया बेईमान भी कर देती है, बात मत पूछो । ऐसा चक्करी में लाती है, जैसे चूहा काटता है ना । फिर कुछ पता न पड़े । ये माया रूपी बिल्ली कहो, चूहा कहो, जो कहो, उनको पता नहीं पड़े कि हमारे से कोई बड़ी भारी गफलत होती है । इसलिए बाप कहते रहते हैं कि जो करता है उनको पाना पड़ेगा । तो ऐसा कोई विकर्म नहीं बनाना चाहिए जिससे सजा खाने के लायक बने; क्योंकि ऐसे कोई मत समझे कि यहाँ विकर्म की सजा नहीं पाएंगे । नहीं, कई विकर्म की यहाँ भी सजा पा लेते हैं । कहीं चलते? सभी गर्भ में थोड़े ही सजा पाते हैं । किनको बीमारी हो जाती है, किनकी आँख निकल जाती है, चलते-चलते गिर पड़ते हैं, लंगड़े हो जाते हैं, लूले हो जाते है, ऐसे हो जाते हैं ना । यहाँ भी हो जाता है । उसको क्या कहेगे? ये भी कर्मभोग हैं । यहाँ भी कर्मभोग तो गर्भजेल मे भी कर्मभोग । इनसे बड़ा खबरदारी से छूटना है, इसलिए बाबा बच्चों को कह रहे हैं कि बच्चे, बड़ी सम्भाल करते चलना है । माया बड़ी शैतान है ।... बिलवेड मोस्ट बैठ करके कहते हैं- सिकीलधे बच्चे, सपूत बच्चे । बाप तो जानता है ना, जैसे लौकिक बाप जानते हैं, ये पारलौकिक बाप भी ऐसे ही इस समय में; क्योंकि इनमें विराजमान है । नहीं तो पारलौकिक बाप कहते हैं भला मैं कैसे आऊँ? मेरा आना तो जरूर है ना और फिर मैं खुद ही आ करके बताता हूँ कि मैं इसके तन में आता हूँ । देखो, कितने विश्वास करते हैं! बहुत विश्वास करेंगे, ढेर विश्वास करेंगे, क्योंकि झाड़ बढना है जरूर । बहुत बढ़ना है । तुम समझते हो कि कितने विश्वास करेंगे और कितने आएँगे! ढेर, भगवान के आगे भक्तों की भीड़ होनी है । अभी भगवान कहाँ है जिसके पास भक्तों की भीड़ हो? यहाँ तो कोई भगवान है नहीं । भक्तों की भीड़ सागर के ऊपर देखो, गंगा-जमुना के ऊपर देखो । वहाँ कोई भगवान तो नहीं बैठा हुआ है, सिर्फ नदियॉ हैं, फलाना है, चित्र है । अच्छा, शिव का भी लो, तो वहाँ भी सब आ करके भीड़ तो नहीं मचाते हैं । तुम जानते हो कि इस भगवान के ऊपर जबकि यहाँ भीड़ कितनी मचेगी, क्योंकि झाड़ है ना । वो तो जरूर होगा । सूर्यवंशी-चंद्रवंशी राजाई भिन्न-भिन्न प्रकार की । बुद्धि विशाल चाहिए, क्योंकि बुद्धुओं का तो इनमें काम नहीं है । जो भगत इतनी भक्ति करते हैं कि भगवान आएगा तो उनके दर पर सम्मुख आएँगे, तो कितनी भीड़ मचेगी । देखो, ये पराया चोला पहना हुआ है । तुम बैठे हो, जानते हो कि बरोबर बाबा है, वो बैठ करके हमको राजयोग सिखलाते हैं, पढ़ाते हैं और ये घर में रहते हुए भी भूल जाते हैं । ये ऐसी विचित्र बात है, तुम घर में रहते, साथ में रहते हुए भी बिल्कुल ही भूल जाते हो । इतना वो लाड, इतना वो रिगार्ड नहीं है । अरे, ये तो चकमक है! जिसकी कट निकली हुई हो वो सूई तो चटक ही पड़े । बाकी जिसकी कट लगी हुई होगी वो थोड़े ही पकड़ेगी । उनकी कभी जरा भी कट न निकले, पाई की भी कट न निकले । कट तब निकले जबकि योग कायदे अनुसार हो और कुछ ज्ञान भी हो । आशीर्वाद भी औरों की चाहिए ना, तभी ये कट निकलेगी, जिसको जंक कहा जाता है । ये माया की जंक लगी हुई है । जंक लगती है डब्बों को, टिनो को । तो क्या करते हैं? घासलेट में डाल देते हैं । तो तुम्हारे में भी जो माया की जंक लगी हुई है, वो योग से एकदम निकल जाती है । फिर सुई कहो, आत्मा कहो, वो बिल्कुल ही प्योर हो जाती है, साफ हो जाती है । तो बाप बैठ करके बच्चों को समझाते रहते हैं कि बच्चे, अच्छे, खूशबुदार फूल बन करके दिखलाओ । जो किसके पास भी जाओ तो.... । जल्द वो समय आएगा, तुम किसके सामने ऐसे बैठेंगी और उनको साक्षात्कार होने लग जाऐंगे । किसके साक्षात्कार होंगे? अगर तुम बाहर में होंगी तो ब्रहमा का, और कृष्ण का साक्षात्कार तो बहुतों को होता जाता है; क्योंकि यहाँ डायरेक्संस देते हैं कि ब्रहमा के पास जाओ और ब्रहमाकुमारियों के पास जाओ । तो देखो, ब्रहमा भी बैठा है, कुमारियॉ भी बैठी हैं, कुमार भी बैठे हैं । आगे चल कर तो उनको बिल्कुल झट साक्षात्कार होगा कि यहाँ जाओ, यहाँ बहुत बैठे हैं । आगे चल कर तुम्हारे सभा का भी साक्षात्कार होगा कि जाओ, इस ब्राहमणों की सभा में जाओ, वहाँ तुमको मैं मिलूँगा; क्योंकि बाबा साक्षात्कार दिखलाते हैं ना कि तुम वहाँ जाओ । देखो, कितनी युक्ति रची हुई है! वहाँ जाओ और मैं तुमको ये राजयोग सिखलाय रहा हूँ और तुम यह पद पाय सकते हो । है भी बरोबर सेकेण्ड की बात । गाते भी हैं, कहते भी हैं- मनमनाभव मुझे याद करो, मद्याजीभव तो तुम सूर्यवंशी बन जाएँगे । शिववंशी सूर्यवंशी, रावणवंशी । वो राम वंशी कहो, दैवी वंशी कहो और ये है आसुरी वंशी । ये कितना सहज नॉलेज है! बाबा बुद्धि में घड़ी-घड़ी बिठाते हैं । महीन करने के लिए घडी- घड़ीकूटा जाता है ना । जैसे, तुमने देखा था कि बॉम्बे में मकान बनाते हैं तो फाउंडेशन पक्का डालने के लिए कितना ठक-ठक चलती ही रहती है कि फाउंडेशन पक्का पड़े । तो बाप भी तुम बच्चों को कहते रहते हैं कि जितना हो सके इतना मुझ अपने बाप को याद करो । उनको याद करो और विष्णुपुरी भी याद करो । शिवपुरी को याद करो, विष्णुपुरी को याद करो, बाप को याद करो, वर्से को याद करो । ये अपने आप से आपे ही अंदर में बात करते रहें, बात नहीं करनी होती है, अंदर मेंबात करनी होती है दूसरे से और चिंतन करना होता है अपन से । अपन से ही चिंतन करके फिर बात करनी होती है । विचार-सागर-मंथन करके औरों को समझाना हैं । तो तुमको भी यहाँ समझाना है । देखो, बॉम्बे में एग्जीविशन निकाल रहे हैं । कितने बिचारे मेहनत करते रहते हैं - ये स्लोगन चाहिए, फलाना चाहिए । गीता में भी तो लिखा है, उनको भी तो 5000 वर्ष हुआ ना । उन्होंने भले लिखा है - थ्री थाउजेंड बिफोर क्राइस्ट । तो समझेंगे बरोबर देवी-देवताओं का राज्य था । कैसे मिला? उनको राजयोग किसने सिखलाया होगा? जरूर है ना! भगवानुवाच - बच्चे, हम तुमको राजयोग सिखलाता हूँ और कहता हूँ कि मुझे याद करो यानी शिवपुरी को याद करो, विष्णुपुरी को याद करो । ये रावणपुरी को भूलो, क्योंकि बाबा ने कहा है - उस पुरानी झूठी गीता में झूठ तो मिरई झूठ, सच की रत्ती नहीं । ऐसे कहते हैं ना, क्योंकि एकदम झूठ ...... देखो, दूध में भी पानी डालेंगे तो सब नहीं डाल देंगे । जरूर कुछ छोड़ेगा जो सफेदाई देखने में आवे । जब भी कोई शिव के मंदिर में जाते हैं तो वो जो दूध देते हैं वो बिल्कुल ही जैसे नाम मात्र । एक लोटी इतने बड़े-बड़े कलश में डाल देंगे तो उनका रंग बदल जाएगा । देखने में तो है कि दूध चढ़ाते हैं । तो बाप कहते हैं कि बच्चे, तुम भी जितना-जितना बाप को याद करेंगी, थोड़ा नहीं, बहुत एकदम, तुम्हारा सारा बुद्धियोग जाएगा तब तुम्हारा दूध शिवबाबा को चढेगा, तब राजी होंगे । तो जितना हो सके इतना बाप को याद करना, बस यहाँ । बॉम्बे में जाएगा, एग्जीविशन खोलेंगे, उनको ये बताएँगे । उस समय मेडीटेशन यहाँ करते है, उठते, बैठते, चलते, आप से बात करते, क्योंकि जब भी कोई से किसकी बात होती है, अगर उनका बुद्धियोग कहाँ दूर होता है, जैसे समझो किसको अपाइंटमेंट मिलती है फलानी जगह जाना है । तो वो उनकी बुद्धि में रहेगा ना! घंटा, डेढ घण्टा, दो घण्टा, सारा दिन भी रहता है - मुझे आज फलाने के पास रात को 8 बजे जाना है । तो सुबह उनको प्रोग्राम मिला और बुद्धि में बैठा रहेगा । तुम्हारे से जब बात करेंगे, उनके साथ बोलेंगे, तो भी जब समय नजदीक आएगा तो एकदम कहेंगे कि मुझे तो अभी जाना है । बात एक से करता होगा; परंतु बुद्धि में रहेगा मुझे तो अब जाना है फलानी जगह में । वैसे तुम बैठ बात बहुतों से करो, परन्तु बुद्धि में रहे हमको वापस जाना है । हम बाकी थोड़ा समय के यहाँ मेहमान हैं । हमको यह पुरानी खल छोड़नी है । हमको शिवपुरी जाना है और फिर विष्णुपुरी आना है और यह जो रावणपुरी है, इनको हमको छोड़ना है । इनसे हमारी दिल नहीं लगती है । बड़ी छी:छी:, बड़ी गंदी है यह दुनिया । वहाँ बैठकर अगर किसको सुनावे और समझावे कि यहाँ संगम पर हम बैठे हैं और हमें अभी जाना है यहाँ । ये संगमयुग का काला कपड़ा, आइरन एज्ड...... बाप समझाते तो बहुत है । बॉम्बे वालों को भी अच्छी तरह समझाते हैं । ये बहुत अपना मत्था खराब करते हैं - स्लोगन चाहिए, फलाना चाहिए, ये चाहिए । सब सेंटर्स से समझते हैं कि जो अच्छे सेंटर्स हैं हमको वहाँ से कुछ न कुछ आए । क्या आएगा? सबके पास क्या रखा हुआ है? सबके पास ये चित्र रखा है, शिव का लिंग रखा है । जो मुख्य चीजें हैं सो बॉम्बे बड़ा सेन्टर में तो है ही । और क्या दूसरे भेजेंगे! दो-चार के स्लोगन्स से क्या होगा!.. ....यहाँ भले लगा हुआ हो - मन्मनाभव मद्याजीभव । धूल भी नहीं समझेंगे । आज भक्तिमार्ग वाले जो भी गीता सुनाते हैं, भगवानुवाच - मनमनाभाव मद्याजीभव । अभी कौन-सा भगवानुवाच? कौन-सा मद्याजीभव? कौन-सा मनमनाभव? डब्बे में ठीकरी न वो खुद समझते हैं, न औरों को समझाय सकते हैं । बिल्कुल कुछ भी नहीं समझाय सकते हैं । जैसे ढेंढर ट्रा-ट्रा करते हैं तो ढेढर और उनकी सभा सुनती है । जैसे वो बड़ा ढेढर कहता है - पतित-पावन सीता-राम, पतित-पावन सीता-राम, तैसे वो ढेढरो की सभा भी कहती रहती है - पतित-पावन सीता-राम । अर्थ कुछ भी नहीं । अभी देखो, बात का अर्थ कुछ समझा ना कि वहाँ तो बात है भगवानुवाच - मनमनाभव मद्याजीभव का अर्थ ही लिखा हुआ है कि मुझ अपने बाप को याद करो अर्थात् शिवबाबा को याद करो । पहले शिवपुरी में आना है । तुम असुल वहाँ के रहवासी हो और फिर तुम इससे राजयोग सीख रहे हो और तुम फिर राजाई में चले आएँगे । विष्णुपुरी में चले आएँगे । भला, ये तो कोई तकलीफ नहीं ना किसको समझाने की । अरे भाई, शिवपुरी को याद करो, विष्णुपुरी को याद करो । ये ब्रहमा बैठा हुआ है, ब्राहमणों का बच्चा बैठे हुए हैं, शिव को याद करते हैं । विष्णुपुरी में जाना है । इससे पहले हमको शिवपुरी में यानी मुक्तिधाम में जरूर जाना है, पीछे जीवनममुक्ति में जाना है और जो भी मनुष्य मात्र हैं उन सबको जाना है; क्योंकि सबका सद्‌गति दाता वा जीवनमुक्ति दाता एक ही है । जीवनमुक्ति का अर्थ भी तो समझो । तो इसलिए समझाने के लिए उनको लिखा जाता है - इतना सब क्या मॅगाएँगे! खाली मुफ्त में खर्चा होगा, अगर चित्र बनाएँगे । चित्र सब हैं । हाँ, एकस्ट्रा चाहिए, जो यहाँ चित्र हो, यहाँ चित्र हो । जब हम कराची में थे तो बड़ा मैदान था । टेबल और दो कुर्सियाँ रखी रहती थीं । जो आवे उनको बैठ करके समझाया । शुरुआत ऐसी थी । आगे तो इतना ज्ञान पूरा नहीं था । अभी तो बिल्कुल ही सहज है । उनको चित्र दिखलाकर सिर्फ बोल देना है - अरे भई, बाप को जानते हो या नहीं जानते? दो बाप हैं ना । बाप तो है स्वर्ग का रचता । बाप ने कहा, आगे 5000 वर्ष भी कहा था - मनमनाभाव मुझे याद करो, विष्णुपुरी को याद करो, वसे को याद करो । समझा ना । चित्र दिखलाया, जाकर उनको बिठाया । बिठा करके, जैसे शुरुआत में तुम कहते हो, बिठाय करके तुम जैसे लाइट हाउस बन करके बैठते थे । शिवबाबा को भी याद करते थे तो विष्णुपुरी को भी याद करते थे ।.......वो भी याद में बैठ करके ध्यान में चला जाता था । होता था ना! बहुत होता था । अरे, वहाँ गिर पड़ते थे ।.....बहुत आएँगे फिर तुम कहाँ बैठाएंगे? वहाँ भी बहुत आते थे ना - एक यहाँ, एक यहाँ, एक यहाँ बिठाते थे । यहाँ अभी आते हैं तो कुर्सियों पर बिठाते हैं, कमरे में बिठाते हैं । वहाँ तो बड़े मैदान में बैठे रहते थे और उस समय में तुम्हारे में कितना बल था । बाबा बल दिखलाता था, तुम सब तो छोटी-छोटी कलियाँ थीं । बाबा-मम्मा लगाए । समझा ना ।.....ये सभी चमत्कार बाबा का था, सबको रस्सी खींच करके ध्यान में विश्वास बताने के लिए; परन्तु देखो, कितने आश्चर्यवत् भागन्ति हो गए ।...चले गए । अभी भी समझाने की तो बहुत ही जगह है; परन्तु क्या करें आजकल! तो आदमी देख करके सामने बिठाना होता है । नब्ज देखने वाला अक्लमंद चाहिए । जास्ती नब्ज देखने की तुम्हारी ऊपर है सारी, क्योंकि तुम बहुतों की नब्ज देखते हो । मम्मा-बाबा थोड़े ही बहुतों की नब्ज देखते हैं । तुम अच्छी तरह से समझाने से, उनसे पूछना-करना, फॉर्म भराना और फॉर्म जरूर भराना है । फॉर्म बिगर तुम उनके आक्युपेशन को - वो किसका भगत है, इनका गुरु कौन है, फलाना कौन है कैसे जानेंगे?, क्योंकि तुमको, जब तलक बाप तुम्हारा कौन है और गुरु क्या है? और तुम कितना क्या करते हो - धंधा करते हो या नौकरी करते हो? तो नौकरी करते होंगे, समझेंगे ये टीचर से पढ़ा हुआ है, तो टीचर सिद्ध करना है । बाबा बोलते हैं - टीचर तो तुमको ये बनाया और वो जो टीचर है वो स्वराज सिखलाते हैं । देखो, कितना बड़ा टीचर है! तुम्हारा भी टीचर और हम लोगों का भी टीचर । तुम्हारा टीचर क्या बनाएगा? बैरिस्टर बनाएगा सो भी अल्प काल झणभंगुर के लिए । पता नहीं बैरिस्टर पास करके तुम मर भी सकते हो, फिर बैरिस्टरी भी तुम्हारी उड़ सकती है । ऐसे है ना । यहाँ अगर पास हो तो ऐसे थोड़े ही है बैरिस्टरी उड जाएगी । जितना जो पास करते हो, वो तुम साथ में ले जाते हो । फिर तुम्हारी ये शुरू हो जाती है । ऐसे मत समझो आत्मा के लिए कि ये कोई भूल जाती है । अरे, आत्मा में ही तो संस्कार रहते है ना । तो आत्मा कहाँ भी है, छोटी है, कुछ बोल नहीं सकती है । ऑरगन जब बड़ा हो तब तो कुछ बोले । छोटे ऑरगन्स में रहता है, वो चमकता है, पर बोल नहीं सके, कर्मेन्द्रियों सेएक्ट में आ नहीं सकते हैं । बाकी संस्कार क्यों नहीं होते हैं । तुम जानते नहीं हो कितने संस्कारों का वर्णन करते हैं - क्राइस्ट था, फलाना था, बहुत चमत्कारी था, सर्प भी उनको नहीं डस सकते थे, ये नहीं कर सकते थे । तो ये बच्चे जहाँ भी जाएँगे, वो अपने सस्कार ले जाते हैं । ऐसे मत कोई समझे कि ये कोई फालतू या विनाशी ज्ञान है । कोई विनाशी थोड़े ही है जो फालतू फिर नए से पढ़नी पढ़े । नहीं । इनको फिर, जो बड़ा होगा तो आ करके अपना.. दे देगा । बहुत जो गए हैं, तो ऐसे थोड़े ही है कि फिर नहीं मिलेंगे । नहीं, वो आत्माएँ फिर से आएगी । कहाँ न कहाँ होंगी, कहाँ न कहाँ किसका कल्याण करेंगे, कहाँ न कहाँ अपनी प्रेरणा से अपने माता-पिता को भी प्रेरित करेंगे । उनको दिखलाएँगे । छोटा है ना । छोटा है तो इशारे से काम लेंगे । यहाँ बाबा-मम्मा की गोद में आएगा तो देखने से ही वो जैसे कि पहचान लेंगे । उनका लव आत्मा का आत्मा की कशिश में । जिससे आत्मा भी पवित्र हो । तो तुम्हारे में एक दूसरे के साथ भी लटकते-पड़ते रहेंगे । वो आत्मा समझेगी । बात तो नहीं कर सकेगी; परन्तु अपने हमजिन्स की तरफ उनका लव जरूर जाएगा । यह तो विचित्र है! नॉलेज ही एक रमणीक है और बहुत सिम्पुल; इसीलिए बुडिढयों के लिए, जो बिल्कुल ही एकदम चट बुद्ध हैं । जो बुडढी खिलती ही नहीं है, खतम फिर काँटे का काँटा ही हो जाएंगी । फूल तो फिर भी धर्म में तो आएंगे ना । ऐसे तो नहीं कि कोई दूसरे धर्म में जाएँगी । इस गुलाब के झाड़ में आएँगी; परन्तु ये थोड़े ही है कि गुलाब के झाड़ में.... । गुलाब का झाड़ है सतयुग । अभी वो ही काँटा है । उसमें कुछ भी गुलाब नहीं । इतना समय वो बिल्कुल काँटे हैं । अभी उनसे ये मुखड़ियाँ निकलती रहती है । ये तो समझना है ना कि बरोबर हम तो सदा बेहद के गुलाब के फूल के भाँती हैं, फिर जाएँगे भी । भले मुखडी न खुलेगी, छन जाएँगी तो भी प्रजा में तो आएँगी ना; परन्तु क्या ऐसे ही मुरझा कर खतम हो जाना है । ये पढ़ाई हुई? पढ़ाई तो हुई कि यहाँ तक जरूर आना चाहिए । यहाँ तक न आ सके तो भला यहाँ तक आवे; पर एकदम मुखडी बंद की बंद तो न रहे ना! तो देखो, ये प्रजा में चले जाएँगे एकदम, ये फूल फिर राजाई में आ जाएँगे । बाबा जाते हैं बगीचे में । बागवान तो है ना । तो वहाँ जाकर उनका भी विचार-सागर मंथन चलता है कि कैसे बच्चों को समझावे । देखो, फूल भी तोड़ करके आते हैं बच्चों को दिखलाने के लिए कि कुछ समझो । पीछे बड़ा पछताना होगा; क्योंकि एक तो विकर्म का बोझा पहले ही बहुत है, दूसरा ये बाप बैठ करके बच्चों के ऊपर मेहनत करते हैं, वो कुछ भी सीखते नहीं हैं । ये दूसरा उनके ऊपर सजा है । बस, सजाएँ खाय-खाय-खाय करके फिर जा करके प्रजा में कचड़ा पद लेना! ये देखो । बरोबर है लेने वाले, क्या करें! कोई भागन्ति वाले हैं, कोई यहाँ रह करके भी कुछ खुलते नहीं हैं । भागन्ति वाले फिर भी जाकर काँटों के झाड़ में, गुलाब के झाड़ में तो आ ही जाते हैं । तो ये अभी समझ गए ना कि बरोबर हमारी दैवी राजधानी स्थापन हो रही है । हम हरेक को अच्छी तरह से पहचान सकते हैं कि कौन क्या बनेगा । उनके दिल में तो रहेगा ना नर से नरायण बनने की ।......... तो क्या होगा? जो अच्छा पढ़ने वाला होगा, खुशबूदार होगा उनको भाकी पहनते रहेंगे । बाहर में नहीं, अन्दर में उन एक दो को प्यार करते रहेंगे, जो सेन्सिबुल होंगे । समझेंगे ये राजाई घराने में आ जाएँगे, ये फलाना हो जाएगा, ये हो जाएगा । आगे चल करके तुमको तो बहुत कुछ साक्षात्कार भी होता होगा और जो न पढ़ने वाले हैं वो पीछे बड़े पछताते रहेंगे; क्योंकि फिर समय बहुत थोड़ा रहेगा । इतना कौन कोई गैलप कर सकते हैं! तो ऐसे न हो कि पिछाड़ी में पछताते रहें । इतना बाप समझाते हैं कि बच्चे, अगर कोई विकर्म करेंगे तो सौगुणा दण्ड, पीछे तो पता नहीं क्या, ट्रिबुनल में खल उतरते रहेंगे । तो देखो, जो गर्भ जेल वाले, जेल में जाने वाले चोर होते हैं ना, उनका तो धंधा ही ये हो जाता है । बस, हमारे पास भी ऐसे समझो कि हमको तो सजाए खानी हैं । हैं तो बरोबर उस झाड़ के; परन्तु हम तो नीच ते नीच पद हुआ क्योंकि पद हैं ना । नीच ते नीच कहेंगे कौन? चाण्डाल का गाया हुआ है । ऊँच ते ऊँच कौन-सा है? महाराजा-महारानी सूर्यवंशी बनना है । तो नंबरवार है... । ऐसे तो नहीं, शर्त मार लिया अपने से कि हम तो चण्डाल का चण्डाल ही बनेंगे या बबुर्ची के बबुर्ची बनेंगे या कोई प्रजा के भी... .. । अभी प्रजा के तो तुम जो बच्चे बने हो, वो तो नहीं हैं । बस, भागन्ति हो जाएँगे तो फिर क्या हाल होगा! भागन्ति बनने वाले, उनका बहुत....हो जाएगा । तो कितना अच्छी तरह से बाप बैठ करके सब समझाते हैं; परन्तु तकदीर के आगे, अगर कमबख्ती की तकदीर है तो उसको तदबीर कराने वाले क्या कर सकते है! तदबीर तो कराते ही रहते हैं बहुत अच्छी । बाप तो कहते हैं कि बच्चे, फूल बनो और कभी भी भूल मत । कितना रोज-रोज समझाते हैं, ऐसे बाप का कभी हाथ मत छोड़ना । ये अजगर हैं बड़े भारी । ये तुमको कच्चा खा जाएगा । ग्राह है ना । ग्राह ने गज को खाया । बरोबर ये महारथी कौन थे? पांडव थे । उनको ये माया रूपी गज ने खा लिया । तो ऐसे नहीं बच्चे गफलत करें, अपना जो राजभाग मिलने का है वो गुमाय करके और जाकर पीछे क्या होगा? फिर जन्म । कल्प-कल्पांतर ऐसे ही उनकी चलन देखने में आएगी, जैसे अभी देखते हो । कल्प पहले भी उनकी ऐसे ही तमोप्रधान चलन थी । किनकी सतोप्रधान है, सतो है, रजो है, तमो है । यहाँ भी चलन तो सबकी होती है ना । तो बरोबर देखने में ऐसे आता है और ग्रहचारी भी बड़ी कड़ी बैठती है, बात मत पूछो । अच्छों-अच्छों के ऊपर कितनी-कितनी ग्रहचारी बैठती है । देखते हो? अंदर के काले और बाहर के सच्चे, वो कोई बाप के पास थोड़े ही चल सकेंगे । अगर काले होंगे और कुछ न कुछ गफलत होगी तो वो आत्मा भी काली रहती है, उनका परछावा ही काला पड़ता है । तुम लोगों को ये बाबा एक-एक दृष्टांत वगैरह कोई न कोई प्रकार से कितना समझाते रहते हैं । तो क्या करें? काले रंग तो काला ही देखने में आए । इसलिए बाबा कहते हैं कि बच्चे, एक कान से सुन दूसरे कान से..... ऐसे नहीं है कि सिर्फ ईविल ही सुनते रहो और जो बाबा के महावाक्य हैं, वो सुनने के लिए कान बन्द कर दो । ऐसे भी कान बन्द कर देते हैं एकदम । जैसे ताला लग जाता है । क्यों? योग नहीं, रिगार्ड नहीं । तो जैसे ये सब कुछ गुप्त हैं ना, तो ये सजाएँ और विकर्म भी गुप्त बहुत बन जाते हैं । बड़ी ऊँची मंजिल है । बच्चों को बहुत सावधान रहना पड़ता है; क्योंकि हैं तो बरोबर बिलवेड बच्चे; परन्तु नहीं, बिलवेड मोस्ट बिलवेड । ऐसे कहा जाता है ना । फिर लव में भी नम्बरवार । अच्छा, बहुत क्या समझाए बच्चों को! काफी है इतना; परन्तु क्या करें! यहाँ सुनते हैं, कोई धारण करते हैं, कोई तो बस दरवाजे से बारह निकल जाओ । बुद्धि में बैठता ही नहीं है । ताला बन्द । शिवबाबा का कोई ने डिसरिगार्ड किया और शिवबाबा को बाबा न माना तो ताला बन्द । ताला खुलता ही नहीं है, सो देखते हो कि नहीं खुलता है । क्यों? याद नहीं । बिल्कुल ही एक पाई-पैसे का भी किसका ताला नहीं खुलता है । अच्छा, टोली ले आओ । ये तो ड्रामा है, कल्प पहले भी ऐसे ही था । कोई भी बच्चा धक्का खाए, चोट लगे, कुछ भी होता है ना तो जो बड़े हो ते हैं उनको तरस पड़ता है । तो ये बाप जब देखते हैं कोई बच्चों को माया ने कोई धोखा दे दिया तो उनको दिल में दुःख होती है । उफ! इन बिचारे को चोट लग गई; परन्तु क्या करें, अपनी गफलत है । फिर भी तरस तो पड़ता है ना! गफलत से कोई गिर पड़ता है तो भी माँ-बाप गले लगाते हैं, प्यार करते हैं ।..... .बहुत बच्चे हैं उनको घर से निकाल करके गुरूशाला में जाकर बैठाते हैं । कहाँ बैठाते हैं? क्या बोलते हैं उसको? अनाथ-आश्रम में भी बैठाते हैं । ऐसे बहुत हैं ब्राहमणों के बच्चे, जो उनको तंग करते हैं तो अनाथ-आश्रम में बिठा देते है या कोई गुरुकुल में बैठा देते हैं । यहाँ गुरुकुल के लायक न होने से फिर उस गुरुकुल में जाते हैं । ऐसे भी होते हैं । अपने ब्राहमण बच्चे भी ऐसे करते है । समझा ना । बाबा के पास बहुत समाचार हैं । बाबा, यह......है, क्या करें? अगर गरीब हो तो अनाथ-आश्रम में डालो, अगर कुछ पैसा खर्च कर सकते हो तो गुरुकुल में डालो । यहाँ के लायक नहीं हैं, तो फिर वहाँ डाल देते हैं । खुद जो इस सतगुरूकुल वाले हैं, वो उन कलहयुगी गुरु वालों में डाल देते हैं, क्योंकि बच्चा बड़ा......है । गुरुकुल कोई भी हो, उनमें तो वहाँ शिक्षा मिलती है ना; क्योंकि वहाँ तो टीचर को भी गुरु कहा जाता है, जिस्मानी गुरु ।....पढ़ सकते हैं तो उनको फिर उस गुरुकुल में पढ़ने दो । न होगा इस गुरुकुल के लायक तो फिर क्या करे! मात-पिता और बापदादा का मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार यादप्यार और गुडमॉर्निग ।