18-09-1964     मधुबन आबू    रात्रि मुरली    साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन
 


हेलो, गुड इवनिंग यह अठारह सितम्बर का रात्रि क्लास है.....

कोई भूल करते हो तो बताय देना, नहीं तो बाबा ने कहा है भूल मल्टीप्लीकेशन होती रहेगी अर्थात् विकर्म बनते रहेंगे । फिर विकर्मो की सजा भी खानी पड़ेगी । ब्राह्मण हो ना, ब्राह्मणों के ऊपर रिस्पॉन्सिबिलिटी बहुत होती है । देवताओं को तो कोई रिस्पॉन्सिबिलिटी है नहीं, शूद्रों को कोई रिस्पॉन्सिबिलिटी है नहीं । सारा बोझ है ब्राह्मणों के ऊपर; क्योंकि निमित्त बने हुए हैं मनुष्य को झूठे से सच्चा बनाने के लिए; इसलिए कहा जाता है ना - सच्ची दिल पर सच्चा साहब राजी और फिर जो सच्चा होता है वो पद भी ऊँचा पाता है । प्रजाके ऊपर गवर्मेन्ट का मदार रहता है ना । आजकल तो देखते हो कि सारा मदार मिलेट्री के ऊपर बहुत रहता है । मिलेट्री अगर चाहती है कि जो सिविलियन्स हैं, प्रजा के बड़े-बड़े वजीर, प्रेसिडेन्ट, वो ठीक से काम नहीं चलाती है तो मिलेट्री अपने हाथ में कर लेती है । हो तो तुम भी मिलेट्री । तुम्हारे हाथ में अभी किसकी वाग है? भारत की वाग है । यहाँ गीतों में भी कहते है ना । भारत का अभी सारा मदार तुम बच्चों के ऊपर है । इसलिए तुम बच्चों को बहुत ही खबरदार रहना पड़ता है । फिर खबरदारी भी कौन सी रखनी है? बाप फरमान करते हैं कि मुझे याद करो । जितना याद करेंगे इतना तुम अच्छी ही सर्विस करेंगे और बाप भी राजी रहेंगे । सर्विस से, योग से, याद से विकर्म भी विनाश होते रहेंगे । सिर के ऊपर विकर्म तो बहुत हैं ना । विकर्म अपने लिए है और पवित्र करने के लिए याद में रहना है, पवित्र रहना है और फिर पढ़ाई भी पढ़नी है । नष्टोमोहा भी होना है । सारी दुनिया को भूल जाना है; क्योंकि जानते हो कि देह सहित टूटने वाली सब चीजें टूट पडेंगी । तो ये घड़ी-घड़ी याद करनी है । वो जो कहा जाता है ना कि घड़ी-घड़ी राम-राम कहते रहो । तो ये राम-राम नहीं कहना है, याद करना है । जैसे टिक-टिक होती है ना ऐसे तुम्हारे भी अंदर याद रहनी है । मुख से कुछ नहीं कहना है, बाप को याद करना है । जितने बच्चे याद करेंगे इतने विकर्म भस्म होते रहेंगे, नहीं तो फिर भोगना उनकी । दुनिया से बिल्कुल ही न्यारे हैं दुनिया में; परन्तु इस दुनिया से तुम एक न्यारी कौम हो जैसे कि; क्योंकि ब्राह्मण कोई ऐसे नहीं होते हैं कि जो आवे सो ब्राह्मण । सन्यासी आवे, मुसलमान आवे, खोजा आवे, पारसी आवे, वो भी ब्राह्मण । ये तो होता नहीं है । तो तुम्हारी हैं विचित्र बातें, इसलिए मनुष्य पूछते है कि क्या ये पारसी भी ब्रह्माकुमार हैं? ये मिनिस्टर भी ब्रह्माकुमार है? ब्रह्माकुमार कहलाने से ही उनके ऊपर कितनी नुक्ताचीनी होती है; परन्तु आगे चलकर ढेर के ढेर ब्रह्माकुमार और कुमारियाँ बनने वाले हैं । तुम्हारा नाम असुल ओम मण्डली था । पीछे विवेक कहता है कि ये तो ठीक है ड्रामा अनुसार ओम मण्डली भी थी । अभी ड्रामाअनुसार ये ब्रह्माकुमारियाँ । अगर पहले ही ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ होतीं तो पता नहीं क्या हो जाता? नुकसान हो जाता । तो जो तुम्हारा नाम पड़ना था फिर अभी ये पड़ा - ब्रह्माकुमार और कुमारियाँ । मुसलमान भी कहें हम हैं ब्रह्माकुमार, सिक्ख भी कहें हम हैं ब्रह्माकुमार । जो-जो जिस धर्म में कनवर्ट हुए हैं वो वापस आते हैं । सन्यासी भी आ करके कहेंगे, हम भी ब्रह्माकुमार और ढेर के ढेर कहेंगे और भिन्न-भिन्नजातियों में से कहेंगे । जब तलक ब्राह्मण न बनें, ब्रह्माकुमार-कुमारियॉ न बनें बाप से वर्सा नहीं ले सकेंगे । तो जरूर आएँगे ना - ये भीष्मपितामह, द्रोणाचार्य वगैरह । ये भी जरूर ब्राह्मणों का बाण लगा तो ब्राह्मण बन पड़ेंगे । और क्या होगा! तो ब्राह्मण बहुत बनने वाले हैं । बड़ी खुशी से पीछे चल करके बनेंगे; परन्तु ब्राह्मण बनना भी कोई मासी का घर नहीं है । ब्राह्मणों को बड़ी खबरदारी रखनी पड़ती है; क्योंकि ब्राह्मणों को ही देह सहित, जो भी बंधन है ये सभी तोड़ना है । फिर कोई भी होवे; क्योंकि जो दूसरे धर्म में कनवर्ट हो गए हैं वो आने वाले बहुत हैं । बहुत ढेर आएँगे । अभी कुछ थोड़ा डरते हैं और बच्चों में भी वो ताकत आती जाती है ना । अभी ऐसे नहीं कहेंगे कि कोई अभी आधा भी ताकत मुश्किल आई हुई है । सो भी नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार । सबको आधा नहीं कहेंगे । किनको पाई, किनको बारह आना । जैसे बाप की गत-मत न्यारी वैसे तुम ब्राह्मणों की भी गतमत न्यारी समझते हैं सो तुमको बोलते हैं कि ये पता नहीं हैं कौन । इनकी रस्म-रिवाज क्या है । कभी भी न कोई से सुनी, न देखी । कोई शास्त्र में भी ऐसी बात नहीं सुनी है कि ब्रह्माकुमार और कुमारियाँ अपन को स्वदर्शन चक्रधारी कहलावें जो टाइटिल है ही विष्णु का और ये तो देखो कहाँ विष्णु, वो सम्पूर्ण हुआ ना और तुम कहाँ यहाँ पतित दुनिया के रहने वाले अपन को विष्णु कहलावे । नहीं तो विष्णुपुरी तो हम कहते हैं । विष्णुपुरी में चलना है बच्चों को वाया शिवपुरी और ये जो रावणपुरी है, इनको भूलना है; क्योंकि रहते तो है ना रावणपुरी में । रावणपुरी में ही ये पुराना शरीर छोड़ना है और जाना है । इसलिए हम आते है ये पुराना शरीर छोड़ने के लिए; परन्तु जब तलक सम्पूर्ण न बना है तब तलक शरीर न छूटे, फिर ये भी आश है । जब तक सम्पूर्ण ना बने हैं, बाप से पूरा वर्सा लायक ना बने हैं और समय भी न आया हुआ है, तब तलक शरीर ना छूटे तो अच्छा है; क्योंकि ये जो शरीर है इस समय में बहुत अमूल्य है । तन को ही कहते हैं ना - ये अमूल्य है । तो जब तन अमूल्य है तो तन में रहने वाला भी तो अमूल्य ठहरा । जीव-आत्मा अमूल्य ठहरी । बरोबर तुम बच्चे ही गाए हुए हो कि इस दिलवाला मंदिर में वास्तव एक शिवबाबा और फिर दूसरे तुम ब्राह्मण बैठे हो । नीचे ब्राह्मण बैठे हैं, ऊपर में देवताएँ हैं । तुम सो देवता बनने वाले हो । नीचे ब्राह्मण और छत में देवताएँ । मनुष्य तो समझते हैं कि वैकुण्ठ पधारा माना कि ऊपर गया । ऊपर माना ऊँचे ते ऊँचे गए । ब्राह्मण से फिर जा करके सतयुग के देवता बने । अभी संगम पर हो यानी बीच में हो । अभी जो वृद्ध माताएँ हैं उनकी भी बुद्धि में ये जरूर होगा कि अभी हम ब्राह्मण हैं, फिर सो देवता बनेंगे । अभी हम ईश्वर की गोद में आ गए हैं ब्रह्मा दलाल द्वारा । नहीं तो गोद मिल नहीं सके । ईश्वर तो निराकार है, गोद कहाँ से मिले? तो ईश्वर की गोद सो ब्रह्मा द्वारा, पीछे हमको मिलेगी दैवी गोद । पीछे तो सुख ही सुख है । पीछे तो बच्चे चलेंगे सुखधाम में वाया शांतिधाम । मनुष्यों के लिए वो दुःखधाम है, हमारे लिए कल्याणकारी संगमधाम है । समझा! ये संगमधाम है, ये सिवाय तुम ब्राह्मणों के और कोई जानते भी नहीं हैं । ठण्डी के कारण रात को कोई वस्तु की दरकार हो, अभी तो ठंडी कम है, पर थोड़ी है । कुछ नहीं लाया हुआ है तो ले करके देना । ये दूध पीने वाली है और ज्ञान रत्न देने वाली है । ...गौशाला भी मशहूर है और फिर यहाँ ही बंदरशाला भी मशहूर है । रावण की बंदरशाला राम की बंदरशाला सो भी कहते हैं और कृष्ण की है गौशाला । ऐसे कहेंगे । हिसाब तो इन्होंने ऐसे रखे हैं - रामचंद्र ने बंदरों की सेना ली है और कृष्ण ने फिर देखो माताओं की, गऊओं की ली है । शास्त्रों में घोटाला डाल दिया है । अभी तो उन सभी घोटालों से छूटी, पढ़ने से ही छूटी । अभी तो वो बुद्धि में न आए तो अच्छा है, नहीं तो फिर संशय उठेंगे; इसलिए आप मरे पीछे मर गई दुनिया । तो जो पढ़े हुए थे वो भी भूल गए; क्योंकि अब नए सिर जबकि बाप बैठ करके समझाते हैं तो फिर जी करके पुरानी बातें क्यों करनी चाहिए! बाबा कहते हैं जरूर, क्योंकि वो तो बैठ करके वेदों-शास्त्रों वगैरह का सार सुनाते हैं । तो जब वो सुनाते हैं तो हम भी कहते हैं कि भई, बाबा कहते हैं कि फलाने शास्त्र में ये लिखा हुआ है; क्योंकि बहुत माताएँ शास्त्र नहीं पढ़ी हुई हैं । तो फिर कहेंगी कि बाबा कहते हैं कि फलाने-फलाने शास्त्र में ये लिखा है । उनसे पूछा जाए कि तुमने पढ़ा है? तो कहेंगी हमने नहीं पढ़ा है; परन्तु बाबा जो कहते हैं कि फलाने-फलाने शास्त्र में ये सभी झूठी बातें हैं । मैंने कहा ना कि ये झूठी बातें पढ़ते यज्ञ तप दान-पुण्य करते मैं नहीं मिलूँगा । तो झूठे है ना! अब मैं आ करके फिर तुमको सच बताता हूँ सो ही सुनो । फिर वो मनुष्य से सुनी हुई पुरानी बातें भूल जाओ । तो है भी ऐसे बरोबर । हम क्या नई बातें सुनते हैं? हम सुनते हैं, बाबा कहते हैं कि बाप को याद करो, वर्से को याद करो या ये चक्कर को याद करो । बीज और झाड़ है । ये तो बरोबर बात है । हमको वो सभी बातें भूलनी ही पड़े और जो नई बात बाप समझाते हैं वो याद करनी पड़े ; क्योंकि हम कहते हैं कि वो झूठी हैं तो झूठी चीज को भूलना चाहिए । सच्ची चीज को अपने में जमा करना चाहिए और जो झूठी बातें सुनी हैं वो नाय हो गए । अभी उनको हम छोड़ करके, सच्ची बातें सुन करके जमा करते हैं । अच्छा, चलो बच्ची, बाजा बजाओ ।.....सैर करके आई है, थकी पड़ी होगी । जा करके सवे में आराम करे । (म्युजिक बजा) मात-पिता और बापदादा का मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति याद-प्यार और गुडनाइट ।