19-09-1964     मधुबन आबू    प्रात: मुरली    साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन
 


स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुलभूषणों को हम मधुबन निवासियों की नमस्ते आज शनिचरवार सितम्बर की उन्नीस तारीख है, प्रात: काल में बापदादा की मुरली सुनते हैं।

रिकॉर्ड :-
हमें उन राहों पर चलना है.........
ओमशांति! कहना पड़ता है । उस हिसाब से अच्छा कहना ओम शांति । ये भी बच्चों को बताना है । आत्मा को अपना स्वधर्म बताना होता है । बाप भी बताते हैं कि हम भी शांत हैं, शांत देश के रहने वाले और तुम भी शांत हो । तुम्हारा ओरीजिनल अर्थात् असल स्वरूप तुम आत्मा हो और तुम्हारा स्वधर्म शांत है । ये भूल गए हो । देखो, सारी दुनिया शांति चाहती है । अभी शांति किसको कहा जाता है, बिचारे कोई नहीं समझते हैं । वो समझते हैं कि ये जो इतना सारा हंगामा है, आपस में लड़ना-झगड़ना, वो शांत हो जाए । उनके लड़ने-झगड़ने से शांति...... । वो तो कोई काम के नहीं हैं । घर में कोई बच्चे-बच्चियाँ या स्त्री-पुरुष आपस में लड़ते-झगड़ते हैं, अशांत होते हैं । अच्छा, अगर नहीं लड़ते-झगड़ते हैं तो कोई शांति हुई क्या? ना । शांति तो है ही एक और चीज, जो है ही आत्मा का स्वधर्म और वैसे ही बाप का भी स्वधर्म । कोई से भी पूछो कि आत्मा का बाप कौन है? कहेंगे फलाना है । उनका धर्म क्या है? तो कहेंगे उनका धर्म है ही शांत, क्योंकि परमपिता परमात्मा तो शांति देश में रहने वाले हैं । हम भी शांत देश में रहने वाले हैं; परन्तु किसने इस स्वधर्म आत्मा को भी ये भुलाया? नहीं तो अभी भी कोई भी आवे तो उनको बोलो कि बच्चे, तुम्हारा स्वधर्म तो शांत है ना । तुम असुल वहाँ शांत देश में रहने वाले यहाँ आए हो ये पार्ट बजाने । शरीर द्वारा अपने कर्म का पार्ट बजाने; इसलिए उनको पार्ट तो बजाना है ना । तो फिर शांत तो नहीं रह सकते हैं । इन कर्मेन्द्रियों द्वारा बोलना है, चलना है, उठना है, बैठना है और शांति के लिए कोई जंगल में जाने की भी तो दरकार नहीं है । बाबा ने तो बहुत अच्छा समझाया है कि आत्मा को अपने स्वधर्म का पता है अच्छी तरह से और जब आत्मा थक जाती है रात को तो अशरीरी हो जाती है यानी ऑटोमैटिकली वो शांत हो जाती है । देखो, रात को कितनी शांति होगी । रात को कोई बाहर तो निकले, सन्नाटा रहता है । भले बॉम्बे भी हो या कितना भी बड़ा शहर हो, सुबह होते ही कितनी झ्रिलमिल होने लगती है । 3 बजे 4 बजे से आवाज हो जाती है । कोई 1 बजे से 2 बजे देखे तो सब दुकान बंद, सब सोए पड़े हैं, शात । तुम बच्चों को समझाया गया है कि क्या होता है । आत्मा अपना पार्ट बजाते-बजाते थक जाती है, फिर रात को सो जाती है । अब वो तो हुई रात और दिन । अब तो रात और दिन हम बेहद को कहते हैं । आत्मा 84 जन्म का पार्ट बजाय-बजाय अभी थक गई है । अभी थक जाने के कारण, पार्ट भी पूरा हो जाने के कारण वापस जाना है । कहाँ जाना है? शांतिधाम । तुम बच्चों को भी कहा जाता है शांतिधाम को याद करो, सुखधाम को याद करो । बाप तो ऐसी राय देते हैं । याद कहाँ करेंगे? सुखधाम और शांतिधाम में बैठ करके याद किया जाता है क्या? याद किया जाता है दुःखधाम में, अशांतिधाम में । तो जरूर कहेंगे ना कि अपने शांतिधाम और सुखधाम को याद करो, क्योंकि अशांत हैं यहाँ । ऐसे थोड़े ही कि शांतिधाम में कोई कहने वाला रहेगा या सुखधाम को कोई कहने वाला रहेगा । इस समय में कहने वाला होता है कि बच्चे, अभी तुम्हारा नाटक पूरा हुआ है और अभी तुमको अपने घर चलना है । पीछे तो तुम्हारे लिए शांति भी है तो सुख भी है । अशांति और दुःख कौन फैलाता है? ये रावण है ।तो बाप कहते हैं कि गिरना है, सम्भलना है इस समय में । इस समय की बातें बाप बताते हैं कि जितना बाप को याद करेंगे इतना माया तुमको गिराएगी नहीं और अगर कोई न कोई संगदोष में या आपे ही बाप की याद भूली तो जरूर माया कोई न कोई भूत के रूप में गिराएगी जरूर । तो ये है सम्भलने की और फट खड़े होने की । तो कैसे हम खड़े रहें, कैसे सम्भले? कदम-कदम पर जो चीफ पण्डा बाबा है, मुख्य पण्डा है ना, उससे श्रीमत लेते रहे । इसलिए तुम्हारा नाम ही पिण्डा पाण्डव रखा गया है । तुम पण्डे हो । तुम्हारी पण्डों की सेना है । फिर नाम रख दिया है पाण्डव; पर हो पण्डे । वो जिस्मानी पण्डे तुम रूहानी पण्डे । मनुष्यों ने बैठकर शास्त्र तो बहुत बनाए हैं । वो तो पाण्डव कौरव यादव ये लड़ाई के रूप में ले गए । तुम वास्तव में हो ही पण्डे । बाप भी पण्डा । बाप कहते हैं, मैं पण्डा हूँ । आया हूँ तुमको वापस सच्ची यात्रा पर ले जाने के लिए । कहाँ? तुम्हारे शांतिधाम में ले जाने के लिए । शांतिधाम का पण्डा तो एक ही बनता है । वहाँ उनके बच्चे बनेंगे । पण्डा एक है । फिर एक से तो काम नहीं होगा ना । तो देखो, कितनी सेना होती जाती है । तो तुम पण्डे तुम बच्चों का रूख अभी कहाँ है? अपने शांतिधाम के तरफ । कितना? परे ते परे । बद्रीनाथ जाना, अमरनाथ जाना, फलानी जगह पर जाना, वो कोई परे ते परे थोड़े ही है । ये तो यहाँ बाजू में बैठे हुए हैं । वो तो सहज है । अच्छा, भला वो सहज है या ये सहज है? दूर जाना अपने सुक्ष्मवतन फिर फट मूलवतन - अभी वो नजदीक है या ये अमरनाथ और बद्रीनाथ नजदीक है? बताओ । देखने में तो आता है कि ये तो परे ते परे है और वो तो यहाँ सामने नजदीक में रेल में या किसमें जाते हैं, परन्तु नहीं, ये ऐसे टाइम लग जाता है । यहाँ सुक्ष्मवतन में जाना, मूलवतन में जाना, वैकुण्ठ वतन में जाना, ये तो सेकण्ड की बात है । है बहुत दूर, परे ते परे इसको कह देते हैं और है बिल्कुल नजदीक और वो और ही परे है । तो बाबा समझाते हैं कि बहुत नजदीक भी है । तुम कितना तेजी से पहुंच जाते हो, तुमको टाइम थोड़े ही लगता है । तुम सिर्फ बुद्धि से याद करो । अभी तुमको वहाँ यात्रा याद आती है । वो यात्रा कोई तुम्हारे लिए नई नहीं है । ये भी जो यात्राऐ करते हैं वो कोई नई नहीं है । कल्प-कल्पान्तर तुम ये यात्राएँ आधाकल्प करते आए हो और फिर एक यात्रा तुम्हारी बाप आकर कराते हैं । और कोई वो यात्रा कराय ही नहीं सके । बाप या बाप के सिकीलधे बच्चे \ही करा सकते हैं, उनमें भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार; क्योंकि तुम बच्चों को तो हर एक को जहॉ-तहॉ रास्ता दिखलाना है ना । बाप भी कहते हैं कि तुम मंदिरों में जाकर समझाओ ना । ये चित्र तो देखो । अब ये यहाँ कब राज्य करते थे, उनको समझाना पड़े । तुम जब लक्ष्मी-नारायण के मंदिर में जाते हो उसको तो बहुत नजदीक रख दिया है, बाकी अमरनाथ कितना दूर रख दिया है, क्योंकि अमरनाथ दूर रहने वाले हैं ना । वो लक्ष्मी-नारायण शहर में रहने वाले, राज्य करने वाले और वो तो परमधाम से, शांतिधाम से आने वाले । तो. ये बहुत दूर जाकर रखा है । नजदीक भी रखा है, दूर भी रखा है । दर-दर पर उनका चित्र बना दिया है; क्योंकि ढेर बनाए ना ये चित्र, मंदिर कितने ढेर बनाए हैं । एक का मंदिर देखो कितने बनते हैं । तो किसका मंदिर बनाते हैं बाप ने समझाया कि मंदिर बना है, जो पतित-पावन है वोहै सबसे नंबरवन । बाकी का मंदिर बनाने से क्या फायदा? वो तो कोई सुख देते नहीं हैं । अच्छा, तुम पुजारी बन जाते हो तो पुजारी क्या सुख के लिए बनते हो? पूजा करते-करते, बिल्कुल ही धक्के खाते-खाते, थक करके, अभी बाप आया है तुमको पुजारी से पूज्य बनाने के लिए । जबकि गाया भी जाता है आपे ही पूज्य आपे ही पुजारी । ये तुम बच्चों के लिए है ना । बाप तो पुजारी नहीं बन सकेंगे । फिर पुजारी को पूज्य कौन बनावे? तो बच्चे ही जानते हैं अब पहले हम पूज्य थे. अब पुजारी बन पड़े हैं । तो पुजारी का दर्जा तो बिल्कुल ही कम हो गया ना । पूज्य का दर्जा बड़ा या पुजारी का? पूज्य का दर्जा बड़ा ना । तो जब हम पुजारी हैं तो पूज्य का दर्जा ऊँचा है ना । तो फिर वहाँ दर्जा कौन दिलावे? बाप आ करके समझाते हैं- बच्चे, तुम पूज्य थे, देवी-देवता थे फिर तुम पुजारी बनकर गिरते, धक्का खाते आए । भले वहाँ तुम कितना भी कुछ सम्भलो यहाँ तो पुजारी ही बनना है । यहाँ अब पुजारी को छोड़, पूजा को छोड़ करके पूज्य बनना है । पूज्य बनने में माया का विघ्न है और कोई माया का विघ्न थोड़े ही पड़ता है । माया का विध्व अभी पड़ता है जबकि तुम अबलाओं पर अत्याचार होते हैं । देखो, तुम उस यात्रा की तैयारी करते हो तो कितने विघ्न पड़ते हैं । और यात्राएं देखो, सतसंग देखो, मंदिर देखो, कहाँ भी तुमको कोई रोक नहीं सकता है । यहाँ तो देखो पुजारी से पूज्य बनने में माया तुमको कितना हैरान करती है । घड़ी- घड़ी गिर पड़ते हैं । कोई न कोई बात में गिर जाते हैं । सबसे जास्ती गिरते हैं काम के खडडे में । बाप कहे - बच्चे, अभी मूत पलीती मत बनो । हम तुमको साफ करने आए हैं । फिर देखो, घड़ी-घड़ी संभालना है, गिरना है और देखते हो कितने गिरते हैं । हिसाब तो करो । उसमें भी सबसे गंदा गिरना है काम की चिता में जलना या फिर विषय सागर में गोता खाना । बाप भी कहते हैं काम महाशत्रु है, उसमें मत गिरना । गटर की तरफ जाने का कभी भी ख्याल नहीं करना । बाप तो बहुत ही समझाएंगे ना - बच्चे, गंदे नहीं बनना है । कोई के पीछे नहीं... । कुमारियों को भी समझाएँगे कुमारों को भी समझाएंगे ।.......बरोबर खुद लिखते हैं - अरे बाबा! माया ने हमको गटर में गिरा दिया । तो बाप क्या कहेंगे? मुआ काला मुँह किया अपना । हम तुम्हारा साफ मुँह करते हैं, गोरा बनाते हैं, तुम अपना फिर काला मुह करते हो । तो देखो गिरा ना! संभलना भी है और गिरना भी है । तुम बरोबर देखते हो, सुनते हो कि कितनी सम्भलने की और गिरने की चटा-भेटी यहाँ रहती हैं । बाबा समझाते - अरे! फा हो जाते हैं । कोई तो अच्छे बच्चे निकलते हैं और कोई..........तुम लोग जो सेन्टर पर रहने वाले हैं, यहाँ या कहाँ भी, देखा था ना हमारे पास बैठे-बैठे भी फा हो जाते है । अभी नहीं देखती होंगी । तुमने देखा था ना राजबहादुर । कितना अच्छा सर्विसेबुल बच्चा था और कितना वफादार, आज्ञाकारी और देखो एक ही तरफ चमाट मारी और एकदम फा हो गया । सो गया बिल्कुल ही । मर गया माना सो गया । बाप के पास जो जन्म लिया और एक ही थप्पड़ लगाया और मर गया । देखो फिर कुल को कलंक लगाते हैं ना, परन्तु ये ड्रामा । एकदम शुरू से देखो, बहुत ही कुल को कलंक लगाते ही आए हैं । कितने गए हैं, कितने जा करके गंदे बने हैं । बाबा कहते हैं गिराने वाली माया है ना । इतना आधा कल्प दुःख देने वाली कौन है? बाप तो नहीं देते हैं । बाप तो कहते हैं मेरे ऊपर तो ये दोष रखते हैं कि ईश्वर ही सुख देते हैं, ईश्वर ही दुःख देते हैं, परन्तु ईश्वर को बाप न समझ, सो भी कौन सा बाप? जिसको परमात्मा कहा जाता है । भई, परमात्मा कभी किसको दुःख कैसे देंगे? परमपिता परमात्मा अगर दुःख देते हैं तो फिर बाकी जो मनुष्य हैं, एक - दो में बड़े ही दुःख देंगे एकदम । जैसे बाप तैसे से बच्चे हो पड़े, परन्तु बाप आ करके बच्चों को समझाते हैं कि बच्चे, तुम अपने लिए आपे ही ऐसा कर्म बनाते हो । संग दोष में भी आकर अच्छे-अच्छे बच्चे बड़े उल्टे कर्म कर देते हैं । फिर उनको.....नहीं रहती है यानी बाप को भी भूल जाते हैं, क्योंकि ये साधारण है ना । तो मनुष्य समझते हैं, मनुष्य की तो बात ही....बच्चे समझते हैं, घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं । इनमें जो भी है ये वहाँ है । वो जो शिक्षा देते हैं, वो अच्छी ही देंगे । वो कोई खराब शिक्षा नहीं देंगे । तो भी देखो वो उनको भूल जाते हैं; क्योंकि जिनका योग पूरा नहीं है । ये तो बाप समझते हैं कि योग पूरा नहीं है । सिर्फ ऐसे मत समझो कि कोई भाषण करने वाले हैं । तुमको सुनाई थी ना कि एक कथक था । कथा करते थे कि राम-राम कहने से सागर भी तरा जा सकता है । अभी की बात है ना । तो नदियाँ क्या बात है । तो देखो, ये कथन किया ना । कथक बना । बहुत दिखलाया । जब उनको कहा - अच्छा, तुम चलो राम-राम कहकर एक पानी का टुकडा तो .... तो बोला बोट ले आओ । तो देखो, कथा करने वाला होशियार तो बहुत था; परन्तु जो कहता था वो कर नहीं सका । तो सिर्फ कथन का नहीं है । कथनी, करनी और रहनी इन सबमें पास होना पड़ता है । इसलिए बाप कहते हैं कि भूल करते हो माना गिरा । कोई न कोई भूल तो होती रहती है ना । भूल और अभूल की तो लड़ाई है । बाबा एक तरफ में अभूल बनाते हैं, माया दूसरे तरफ में अच्छे-अच्छे महारथियों को भी नाक से पकड़ लेती है । उनको पता भी नहीं पड़ता है कि हम कोई भूल करते हैं । बाबा बैठकर बच्चों को कहते हैं कि कभी भी कहाँ भी हो, कोई भी भूल करो तो माफी माँगो । कोई भूल करते हैं तो अंग्रेजी में कहते हैं - आई बेग योर पार्डन । जिसकी भूल करते हैं, अभी समझो शिवबाबा की कोई भूल करते हैं और शिवबाबा कहते हैं कि तुम्हारी भूल है, भूल बताते हैं ना । फिर क्या कहना चाहिए? आई एम सॉरी । आई बेग योर पार्डन । यानी हम तुम्हारी क्षमा चाहते हैं । तो उनको भी वो फजीलत नहीं रहती है कि हम कोई भूल करते हैं, कड़ी-कड़ी भूल करते हैं तो हम फिर शिवबाबा को कहें कि आई एम सॉरी बाबा, हमारे से भूल हो गई, आई बेग योर पार्डन ।.....वो भी अभी तलक बहुत अच्छे-अच्छे बच्चों में फजीलत न रही है । अपन को मियाँ मिट्ठू ही समझते रहते हैं । बाप भूल दिखलावे तो भी नहीं समझे । तो देखो वो भी तो चढ़ जाता है । फिर बाप कहते हैं पुण्य आत्मा बनना है ना । पाप करते हो तो क्षमा ले लो, नहीं तो मल्टीप्लीकेशन होती जाएगी और फिर होती रहती भी है । इसलिए बाबा कहते हैं एक तो बुद्धि का योग बाप के साथ बिल्कुल अच्छा चाहिए । मुरली चलाने वाले, भाषण करने वाले कोई कम हैं क्या! बहुत अच्छे-अच्छे भाषण करते हैं; परन्तु ऐसे भी तो नहीं है कि कोई सम्पूर्ण या परिपूर्ण बन गया है । हम अंत तक गिरते-सम्भलते रहेंगे । समझो कि इनसे भी भूल होती है, ये तो झट कहेंगे - बाबा, मेरे से ये भूल हो गई, आप क्षमा करो । क्षमा तो सब मॉगते ही रहते हैं । बाप से क्षमा कहते रहतेहैं ना कि रहमदिल । हमको क्षमा करो, मेरे से पाप हो गया है । सारा दिन भक्तिमार्ग में क्षमा-क्षमा करते ही रहते हैं । क्षमा करो बाबा, हमारे से पाप बहुत होते हैं । किसको कहते हैं क्षमा करो? बाप को कहते हैं कि बाबा, क्षमा करो । क्या क्षमा करो? फिर हमको धर्मराज द्वारा दण्ड नहीं खिलाना । आई बेग योर पार्डन, हम क्षमा चाहते हैं । तो इसलिए खबरदारी बहुत चाहिए । यह मत कोई समझे कि हम कोई 16 कला सम्पूर्ण बन गए हैं । ना मीठे बच्चे, अभी तो टाइम है; क्योंकि ये भी खुद कहते हैं ना कि बहुत भूलें आती हैं । बच्चे आ करके रिपोर्ट करते हैं बाबा, हमको सपना लगा था । देखो, गिरने की कितनी बात है । स्वप्न आते हैं, फलाना आते हैं, बैठे-बैठे; आपको याद करते हैं तो मुझे याद नहीं आती है । बाबा, जो कभी भी हमको अशुद्ध सपने नहीं आए, वो आते रहते हैं । तो बच्चों को कह देता हूँ सबसे नंबरवन मैं हूँ क्योंकि तूफान के आगे नंबरवन ये है । शिवबाबा भी कहते हैं बच्चे, आगे तो ये नंबरवन है ना । चाहे तो इनसे पूछो कि इनका माया कितना सामना करती है । तो बाप बताएंगे - ओफ! कभी-कभी ऐसे-ऐसे स्वप्न, फलाने खयालात आते हैं, चार-चार, पांच-पांच घण्टा नींद नहीं आती है, न याद भी आती है । देखो, बाबा अपना अनुभव भी बताते रहते हैं ना । जागते हो फिर वण्डर खाते हैं - हाँ, ये तो माया का फर्ज है । जरूर हमारे बच्चों को भी ऐसे पछाड़ती होगी । फिर बच्चे लिखते हैं तो बाबा कहते हैं कि तुम पूछो मेरे से तो मैं तुमको सब राय दूंगा; क्योंकि बाबा तो ये कर्म करते हैं ना । बाबा तो है ही कर्मातीत अवस्था वाला, वो सिखलाते रहते हैं फिर क्या करो । ये तो आएंगे, तुम कितना भी बोलेंगे, जितना रूस्तम बनेंगे इतना तूफान आएंगे । रूस्तम जो बनेगा वो बताएंगे तो सही ना । कोई भी आकर मेरे से पूछो, मैं बोलूँगा - जो तुमको होता है मैं पास करता हूँ । जो कुछ भी तुम्हारे को पूछना है मेरे से आकर पूछो, मैं तो बताने वाला हूँ ना । मैं कोई छिपता नहीं हूँ ना । छिपाकर नहीं रखते हैं; क्योंकि सबको सच बताना तो है ना, अपन को मियाँ मिट्‌ठू तो नहीं समझना है कि हम कोई परिपूर्ण 16 कला हो गए । बाबा कहते हैं हम 16 कला सम्पूर्ण बनेंगे । अरे, अभी तो समय है । अभी तो बहुत ग्रहण लगा हुआ है । बहुत ही ऐसे आते हैं जिनका संग लगता है । कितने गंदे-गंदे भी मनुष्य आते हैं । यहाँ तो जब समय आ जाएगा ना तो तुम यहाँ बैठे-बैठे पता नहीं कहाँ आपे ही उड़ते जाएँगे । फिर यहाँ से तुमको उतारना पड़ेगा । देखेंगे कि स्वीट होम जाते हैं । आत्मा को खैंच होती है ना । वापस जाना है ना । तो आतुर हैं बहुत । आधा कल्प का थका हुआ कितने आतुर हैं - जाऊँ-जाऊं । अरे, पर लायक बनो तो जाऊ ना । नालायक कैसे पद पा सकें! कोई नालायक महारानी बनेंगी? अखानी भी है एक राजा गया, एक....ले आया, उनको कपड़ा पहनाया । वो मुट्‌ठी को अच्छा भी नहीं लगा । वो राजा को ही तंग कर दिया । बोला - चलो, मैं फिर तुमको तुम्हारे घर में छोड़ आऊ । वो बिचारी गई तो सुखी हो गई । ऐसे यहाँ भी होता है ना । देखो, यहाँ वैकुण्ठ की बादशाही मिल रही है, वो छोड़ करके फिर वहाँ जा करके सुख अनुभव करते हैं । यहाँ तो मुझे बहुत सुख है, वहाँ तो कुछ नहीं है । क्या है वहाँ? वहाँ देखो, विख तो नंबरवन में मिलता है ना । फिर विलायत में जाना है, जेवर पहनना है, ये करना है, वो करना है, देखो उनको वो सुख समझ रहे हैं । ये तो देखते हो कि ये होना है जरूर । बरोबर जाते हैं उनसे पूछो । हाँ, कोई वहाँ दुःखी होती है, बोलती है - मैंने नाहक छोड़ा । तो बाबा कहते हैं - अच्छा! ....फिर भी आ जाओ । बाबा थोड़े ही कहते हैं कि नहीं । भले तुमने काला मुंह किया, नाम बदनाम किया, अच्छा फिर भी कुछ हिम्मत रखो, कुछ सीखो । बाबा कहते हैं, जो अपकार करते हैं उनके ऊपर भी उपकार करो; परन्तु समझ रख करके, ऐसे नहीं कि उपकार करे तो फिर और ही आ करके मत्था खराब कर देवे । ऐसे भी बहुत हैं, जिनके ऊपर उपकार करो तो और ही तंग कर देते हैं; क्योंकि जो गिरे हैं ना, जो गंदे बने हैं वो गंदापना बड़ा मुश्किल फिर धोया जाता है । तो ये बच्चे समझ गए हैं बरोबर कि माया गिराती है, बाबा उठाते रहते हैं कदम-कदम पर, घड़ी-घड़ी, क्योंकि मंजिल है बड़ी ऊँची और है सारी बुद्धियोग की यात्रा । कोई पैदल जाने की तो नहीं है, है भी बड़ी नजदीक । पुरुषार्थ बहुत टाइम लेता है । नजदीक तो ठीक है । एम-ऑब्जेक्ट जिसको लक्ष्य कहा जाता है, वो लक्ष्य तो बिल्कुल सहज है ना । लक्ष्य तो कहता है कि तुम एक सेकण्ड में जीवनमुक्ति के अधिकारी बन जाते हो । जब मर करके एक दफा बाबा कहा फिर उस बाबा को भूलते क्यों हो? बाबा जिसको कहा कि बाबा, हम आपसे स्वर्ग का वर्सा लेते हैं, फिर गिरते ही क्यों हो? सम्भलती क्यों नहीं हो यानी याद क्यों नहीं करती हो? भूलती क्यों हो? तो भूल जाते हैं सब बाबा को । अच्छे-अच्छे, बड़े-बड़े भूल जाते हैं । फिर देखो, उनसे और ही डिससर्विस भी होती है, क्योंकि ये सभी गुप्त है ना । सर्विस भी गुप्त है तो डिससर्विस भी गुप्त है । मनुष्यों बिचारों को या दुनिया क्या जानती हैं कि ये क्या कर रहे हैं, ये तो हम बच्चे ही जानें । देखते हो, बहुत बच्चियाँ सेन्टर में जाती हैं तो सर्विस भी करती हैं । कोई-कोई में भूत का प्रवेश होगा । फिर कोई भी- काम का, क्रोध का, लोभ का, मोह का या अशुद्ध सोल का, सब आते हैं । फिर देखो, वो कितना नुकसान कर देती है । अशुद्ध सोल भी आती है । वो भी नहीं छोड़ती है । अशुद्ध सोल समझते हो ना! भटकी हुई मायावी आत्मा । फिर प्रवेश कर लेती है । वो भी बहुत ही मत्था खराब कर देती है । बहुतों में आ जाती है, परन्तु सबमें तो नहीं कहेंगे ना । बहुत ही ध्यान में जाने वाली बच्चियाँ हैं । बड़ी अच्छी रहती हैं । ध्यान में भी जाती है । उनमें ज्ञान भी है । फिर भी ऐसे थोड़े ही कहेंगे कि वो परिपूर्ण है । कोई न कोई फिर खामियाँ रहती है । माया छोड़ती नहीं है, कहाँ-कहाँ गिराती जरूर है और बच्चों को बाप को याद करके सम्भलना है और डर रखना है - हम बाबा के हैं, बाबा ने कह दिया है कि बच्चे, अगर तुमने हमारी श्रीमत के विरुद्ध कोई भी भ्रष्ट काम किया....तो फिर तुम्हारा पद भी भ्रष्ट होगा और सजाएँ भी बहुत खाएंगे । ऐसे मत समझो कि कोई यहाँ भी सजा नहीं मिल सकती है । यहाँ भी कर्म का कड़ा फल भोग सकते हैं । इसलिए यहाँ के लिए या फिर वहाँ के लिए कर्मातीत अवस्था में रहने का पुरुषार्थ करना है और बाप के साथ बड़ा सच्चा रहना है । हर एक बात में सच्चा रहना है; क्योंकि तुम्हारा सबका है ही कनेक्शन शिवबाबा से । ये सभी शिवबाबा के सेन्टर्स हैं ना । कोई कह देते हैं ये सेन्टर मेरा है । अरे, तुम्हारा सेन्टर कहाँ से आया! तुम ही सारा हो शिवबाबा का । तुमने अपना तन-मन-धन सब कुछ बाबा को दे दिया है । जब कहते हो कि बाबा मेरा है और ये बाबा के सेन्टर हैं, सभी के ऊपर बाबा का नाम है । ये शिवबाबा का विश्वविद्यालय है । किसका विश्वविद्यालय? विश्वविद्यालय का तो बाप ही रहता है ना । ईश्वरीय विश्वविद्यालय ये शिवबाबा का विद्यालय है । मेरा है ऐसा कहा ये मरा । शिवबाबा के लिए कहकर फिर कहते हो मेरा । मेरा-मेरा कहकर उसमें भी कितने बच्चे गिर पड़ते हैं । जबकि कहते हैं एवरी थिंग शिवबाबा का । तुम तो अभी कहते हो कि बाबा, हमारा अभी का तनमनधन तुम्हारा है । फिर बाबा कहते हैं - बच्चे, मेरी 21 जन्म की स्वर्ग की राजधानी फिर तुम्हारी है । देखो, कितना एवजा मिलता है! दो मुट्‌ठी चने का और महल लो । तुम देते क्या हो! इस समय में तुम मरने वाले हो ना । तुम सब मरते हो । जो अच्छे समझ होते हैं, मरने के पहले ही उनसे करनीघोर को दान करा देते हैं । मर गया, पीछे दान करेगा तो वो क्या काम का! तो जीते जी, असुल रिवाज था कि जब देखते थे कि ये होपलेस केस है तो उसी समय उसकी थाली से निकाल देते थे । भले कोई जी उठे, ऐसे तो जी भी उठते हैं ना, उसी समय में थाली ले करके उनको सब कुछ कराय देते हैं । जीते जी करे ना । पीछे उनको क्या मिलेगा? तो बाप यहाँ कहते हैं - बच्चे, जीते जी जो तुम्हारा ठिक्कर-ठौर, पाई-पैसा है सब स्वाहा कर दो । क्या है तुम्हारा? शरीर तो देखो बास आती है, चल्लियॉ लगी पड़ी हुई हैं । योग लगाती हैं । वहाँ तो गंगा में जाते हैं तो वहाँ थोड़े ही कोई ज्ञान रखा है । वो सन्यासी खुद कहते हैं हम शरीर को साफ करने जाते हैं, शुद्ध करते हैं । बाप तो कहते हैं, देखो तुम्हारा शुद्ध कैसे होता है- तुम मेरे को याद करते हो तो तुम्हारी आत्मा और शरीर, दोनों शुद्ध होते जाते है । दोनो इकट्‌ठे धोते रहते हैं । वो भी शुद्ध होता जाता है तो वो भी शुद्ध होता जाता है । शुद्ध करना है आत्मा को । आत्मा अपवित्र बन गई है ना उसको पवित्र बनाना है । पार्ट बजाते-बजाते आत्मा पतित बन गई है उनको पावन बनाना है - सीधी-सीधी बात । कैसे बनेगी? मेरे साथ योग रखो । योग न रखेंगे तो गिरेंगे । योग रखेंगे तो चढती कला है, गिरते रहेंगे तो उतरती कला । यहाँ भी तुम अपनी कला को सम्भालते रहो । अपना चार्ट रखो और अच्छी तरह से सर्विस करो । बच्चों को सर्विस का शौक चाहिए । सर्विस के लिए तुम पूछेगी क्या कि बाबा, हम सर्विस पर जावे? बुद्धू हो तुम । हम कहेंगे कि नहीं जाओ ! फिर पूछते क्यों हो? ये तो तुम्हारा स्वधर्म है कि हमको सर्विस पर जाना है । जो पूछता है ना तो बाबा झट समझ जाते हैं कि उनको सर्विस का शौक नहीं है । इसमे पूछने की कोई बात ही नहीं रहती है । तो सर्विस का भी शौक होना चाहिए हर बात में । पीछे मंसा वाचा कर्मणा । मन से याद नहीं कर सकते हैं तो फिर वाचा, वाचा नहीं कर सकते हैं तो भला कर्मणा, कोई भी सर्विस को लग जाना चाहिए । तब सर्विस का उजूरा मिलेगा, नहीं तो थोड़े ही मिल सकता है । हमारे पास कई अच्छे-अच्छे बच्चे हैं, बच्चों को देख करके बड़ी खुशी होती है । बस आपे ही करते रहते हैं । किसको कहो तो भी कभी नहीं करेंगे, यहाँ-वहाँ पटा करके इधर से चले जाएँगे । ऐसे भी तो बच्चे हैं ना । अज्ञान काल में भी ऐसे होते हैं । कोई तो मॉ-बाप के सपूत बच्चे होते हैं । उनको कहो तो झट कहेंगे - हाँ मम्मा हाँ बाबा, ये ले आए और कोई को कहो तो यहाँ से निकलेगा और दूसरे दरवाजे से खेलने चले जाएँगे । यहाँ भी तो बाबा के पास हैं ना । जो आपे ही करे वो देवता है, कहने से करे वो मनुष्य, जो कहने से भी ना करे उनको क्या कहेंगे? बाबा ने समझा दिया उसको कहेंगे भूक-बसर । बसर का भूक, जो फेंका जाता है । ऐसा गायन है । बच्चों को तो आपे ही सर्विस करनीचाहिए । समझते हैं हम जितनी बाबा की सर्विस करेंगे इतना हमको बहुत कुछ मिलना है । इनमें कोई पूछने की है नहीं । जो मिले, मंसा है तो मंसा वाचा है तो वाचा, कर्मणा है तो कर्मणा, जो कुछ कर सको सो आपे ही करो तो देवता । नहीं तो ये कितने बच्चों को कहाँ तक कहते रहेंगे । हर एक को अपना कल्याण आपे ही करना है । डायरेक्शन मिलते रहते हैं । किसमें कोई भूल-चूक होती है या मत्था खराब होता है या कोई राय पूछनी है तो शिवबाबा केयर ब्रह्मा । बस, तुम लिखेंगी और झट चिट्‌ठी पढ़ेगी और झट शिवबाबा के ऊपर । हम थोड़े ही
इंटरफियर करेंगे । ये तो शिवबाबा के नाम पर है । तो शिवबाबा झट आकर उनको चिट्‌ठी लिख देंगे कि ये करो, ये करो । लिखते तो हैं ना । शिवबाबा कहते हैं, मेरे को हाथ हैं? इस समय में ये किसके हाथ हैं? बैठे हुए हैं ना । हाँ, पर ऐसे थोड़े ही है कि बैल पर कोई सारा दिन सवारी होगी । सारे दिन सवारी हो तो बैल की....आखों से....... । तुमने बैल देखा है ना, बहुत मेहनत करता है तो आँखोंमें जल देखेंगी । घोड़ागाड़ी जो भी बहुत होते हैं ना, तो बिचारे थकते होंगे । जैसे कि बिचारे हैरान होते हैं, रोते है, परन्तु इनको तो रोना नहीं है, इनको तो सर्विस करनी है बाबा के अर्थ । भले आवे, बच्चों को समझावे । तो ये समझा रहे हैं ना । ये कहते हैं ना मामेकम मुझ अपने बाप को याद करो । अब इसकी आत्मा तो नहीं कहेगी कि मुझ अपने बाप को याद करो । बाप कहते हैं कि इनकी भी आत्मा सुनती है कि मुझ अपने बाप को याद करो, तुम सब भी उनको याद करो और जो मैं धारणा कराता हूँ कोई डिफीकल्ट नहीं है । बिल्कुल ही सहज है । हर एक मनुष्य समझ सकते हैं । बेहद का बाप है ही नई दुनिया स्वर्ग का रचने वाला । वो है ही स्वर्ग । तो बाबा जब आते हैं तो बरोबर जरूर स्वर्ग की स्थापनाएं, नर्क का विनाश कराते हैँ । महामारी महाभारत लड़ाई लगी थी तो बरोबर राजयोग सीख रहे थे । तो राजयोग सीखने के लिए फिर अनेक धर्मों की सफाई तो चाहिए ना । बरोबर महाभारी महाभारत लड़ाई में यादव कौरव पाण्डव क्या करत भए? यादव मर गए, कौरव मर गए, पाण्डवों को स्वराज्य मिला । ये तो बिल्कुल सहज बात है समझने की । तो बरोबर बाप जब आते हैं जबकि महाभारत की लड़ाई सामने है और बैठकर कोई समझाते हैं कि ये यादव, ये कौरव और ये पाण्डव बैठे हैं । अपने को कोई पाण्डव कहते हैं, बुद्धि में भी नहीं आएगा कि पाण्डव नाम किसका होता है । तुम पण्डे बच्चे जानते हो और जानते हो कि हमको जाना है वापस, अभी खेल पूरा हुआ । बाबा आया है लेने के लिए । अभी तो हमको बाबा को याद करना है । विकर्म बहुत हैं । अगर हम बाबा को याद न करेंगे तो विकर्म छूटेगा नहीं, हम महारानी बन नहीं सकेंगी । बाबा तो कहते हैं - चलो, हम तुमको महारानी बनाऊँ । राजयोग है, इनको प्रजायोग तो नहीं कहा जाता है, परन्तु राजयोग के साथ प्रजा है जरूर । योग नहीं है प्रजा का । योग पूरा न रखे तो प्रजा बन जाती है । देखो, है राजयोग । बाबा बोलते हैं कि मैं तुमको महारानी-महाराजा ही नाम रखता हूँ । छोटा क्यों? सो भी सूर्यवंशी । देखो, सभी हाथ भी उठाते हैं - बाबा, हम पूरा वर्सा लेंगे । पूरा वर्सा लेना हो तो अपनी सर्विस का शौक दिखलाओ । बाबा से भले पूछते रहो शिवबाबा केअर ब्रह्मा । चिट्‌ठी लिखकर पूछो  मेरा क्या पद होगा इस समय अगर मर जाऊँ तो? बाबा बताए देंगे । वो तो समझ लेना चाहिए परिपूर्ण तो नहीं बना है । परिपूर्ण तो अंत में बनेंगे । कर्मातीत अवस्था तो अंत में आएगी । तुम अभी पूछते हो । पूछने की दरकार ही क्या है? अपूर्ण तो जरूर हो । इसमे पूछने की दरकार ही नहीं रहती है । अपनी अवस्था को जांच करते रहो कि हम कितनी बाबा की सर्विस में है? कितना हम बिलवेड मोस्ट बाबा को याद करते हैं? कितने उनके आज्ञाकारी हैं? कितने वफादार हैं? कितनी सर्विस का शौक है? बस, तड़पता है कि कोई को जाकर जीय दान देवे । बच्चों को तो तड़पना चाहिए ना कि हम जावे, बिचारे बहुत दुःखी हैं । हम तो जैसे कि सुखी बन गए, औरों को भी रास्ता दिखावें । ये बिचारे बहुत अंधे हैं । ये भक्तिमार्ग वाले गुरुओं ने इनकी तो सत्यानाश कर दी है । बिचारे बस अंधश्रद्धा में समझते हैं कि ये गुरू हमको सद्‌गति को पहुचाएंगे । देखते हो कि मुझे साथ में ले जाने के बदले खुद चला गया, जाकर दूसरा जन्म लिया । फिर क्या करें? गुरू तो मर गया । अभी चलो, गुरू का जो फिर गद्‌दी वाला है वही गुरू सही । अच्छा, वो भी अगर कोई कारण से मर गया । बहुत बिगड़ते भी हैं, आपस में लड़ते भी हैं । पीछे गुरू भी दो-तीन एकदो का हो जाते हैं । देखो, शंकराचार्य अभी कितने हैं । कितने वो आपस में लड़े हैं । तो कोई को क्या टुकड़ा मिला, कोई को क्या मिला । हिस्सा हो गया । तो गुरूओं का ये हाल है ना । ये तो एक ही गुरू । ये तो आये है वापस शांतिधाम और सुखधाम ले जाने के लिए । ऐसे तो कभी कोई कहेंगे? नहीं । वो तो कहने मात्र गुरू हैं । .............. परन्तु वो लोग अपने को जगतपिता कहेंगे? नहीं । जगतशिक्षक कहेंगे? वो भी नहीं कहेंगे । सिर्फ जगतगुरू अपने को समझते हैं । ये तो देखो, जगत् का बाबा, जगत का शिक्षक, जगत् का गुरू एक है । ये तो वण्डर है ना । ये समझाओ सब बच्चों को । कितनी अच्छी-अच्छी बात है, मनुष्य नहीं हो सकते हैं । कोई भी गुरू हो या कोई भी बड़ा आदमी हो, हो नहीं सकते हैं । तुम जानते हो कि ये हमारा बाबा भी, त्वमेव माताश्च पिताश्च बंधु वो तो जरूर कभी आया होगा ना जो हमको ऐसे रूप में फिर मिलेगा । तभी तो गाते हैं ना । तो अभी मिला है बरोबर । हम आधा कल्प भक्तिमार्ग में जिसको याद करते थे - त्वमेव माताश्च पिता, तुम मात-पिता हम बालक तेरे, ओ परमपिता परमात्मा! आओ रहम करो, दुःख बहुत है । तो वो आए है ना । अभी जानते हो ना, न जानते हो तो तुम्हारे ऊपर.......जानते हुए फिर उनसे पूरा वर्सा लो । गफलते बहुत अच्छी नहीं है । देह-अभिमान बहुत अच्छा नहीं है । देही-अभिमानी बन करके और निरंतर बाप को याद करो । याद करने से देखो, कितनी शांति मिलती है और निरोगी काया बनती है । सिर्फ शांति से क्या होता है? निरोगी काया, शांत । अभी ऐसे नहीं कि वहाँ कोई धमचक्कर होता है, जो मनुष्य कोई अशांत हो, ना वहाँ है ही शांत । पवित्रता भी है, तो शांति भी है, तो सुख भी है, तो सम्पत्ति भी है । यहाँ कुछ भी नहीं है । सम्पत्ति वहाँ देखो कितनी है! अथाह है । यहाँ तो देखो क्या हो रहा है अभी! अन्न के लिए मारा-मारी, पेट के लिए मारा-मारी, विख के लिए मारा-मारी, सब इन बातों के लिए मारामारी । क्रोध के लिए मारा-मारी । मोह के लिए मारा-मारी । बाप आए हैं, बोलते हैं अभी मोह छोड़ो । अंत काल मे जोजो सिमरेगी वो फिर तुमको जन्म जरूर लेना पड़ेगा । मानते ही नहीं हैं, फिर भी मामा को, काका को, बाबा को, पोत्रे को, धोत्रे को, फलाने को, कोई न कोई बंदरी के मुआफिक अपना बंदर नहीं है तो दूसरे का ले लेते हैं और ये बोलते हैं अरे, एक ही शिवबाबा तुम्हारे लिए कल्याणकारी है । वो तो तुम्हारी इतनी सेवा करेंगे तुमको वहाँ एकदम 21 जन्म के लिए अभी से वर दे देंगे । शिवबालक वर दे देगा कि तुम 21 जन्म के लिए......तो बाप भी वर देते हैं और बच्चा भी वर देते हैं । है तो यहाँ वर की बात ना, परन्तु है समझने की और गरीबो के लिए तो एक सीजन है । उसमें भी माताओं के लिए तो बड़ी सीजन है । माताओं के लिए तो बहुत ही सहज है । बाप आए ही हैं माताओं को उठाने के लिए । तो माताओं को सर्विस पर अच्छी तरह से चलना चाहिए । ऐसे कहते हैं ना कि जैसे मैं सर्विस करुँगी, मुझे देखकर और भी करने लग पड़ेंगे । जो सर्विस नहीं करेंगे वो मेरे कोई सपूत बच्चे थोड़े ही हैं । वो तो छी:-छी: हैं । हाँ, बाहर से उनको जीय दान रहने के लिए देते रहते हैं । नहीं तो कोई सर्विस न करे तो वो क्या करेंगे! शक्ति सेना अगर शंख न बजावे तो क्या काम की? तो बच्चों को शंख ध्वनि करनी है । बाबा शंख ध्वनि करने के लिए माताओं के लिए बहुत समझाए हैं । देखो, मथुरा में एक काली माता है । क्या नाम है? मथुरा में एक देवी थी ना, जो दिल्ली में भण्डारे में थी । राजकुमारी । देखो, अच्छी-अच्छी जिनमें उम्मीद है ये सर्विस करेंगी, वो जा करके कहाँ न कहाँ खिटपिट मे पड़ जाती हैं और वो बिचारी बड़ी सर्विस कर रही है । बड़ा उनका नाम बाला है । तो देखो, उनको सर्विस का कितना शौक है । और इतनी बड़ी सर्विस न कर सके । तो तुम बच्चों को सर्विस का बहुत शौक चाहिए और कुछ भी सहन करके । बाबा पुरुषों को लिखते हैं ना - अरे भाई, तुम कोई रख करके इन अपनी युगल को छोड़ दो, थोड़ी सर्विस करके आवे । अगर इन बिगर तुमको कोई तकलीफ होती है तो हम तुमको खुद भी कहते हैं, तुमको 50-60 रुपये नौकर के लिए दे देते हैं, आप इनको दो-तीन महीने के लिए छुट्‌टी दे दो । अभी इनको भेजो ये जा करके माताओं की जीवन बनाएंगी, ये कौड़ी से हीरा बनाएगी, काँटों से फूल बनाएंगी । अभी ये बहुत ईश्वर की सर्विस में हैं । अगर तुमको कोई तकलीफ न हो तो कोई आया रख दो, कोई माई रख दो, कोई बुडढी रख दो, कोई चाची मामी नानी मंगाकर रख दो, इनको छुट्‌टी दे दो । जितना तुमको तकलीफ हो हम पैसा देने के लिए तैयार हैं । बाबा ऐसे करते हैं ना । ....अभी माताओं को उठाना है ना । पुरुषों को क्या करना है? इनके सामने ग्राहक ले आना है कि स्वीकार करो । काली माता के ऊपर सभी ले जाते हैं ना कि माई, इनको स्वीकार करो । ब्राह्मण क्या करते हैं? ब्राहमण जिज्ञासु को ले आ करके कहते हैं - जाओ, काली माता के आगे जाओ । तो इनको भी ये करना है । ये सभी काली माताऐ हैं ना । एक थोड़े ही हैं । शक्ति सेना है ना । तुम सभी हो तो काली माताएँ ना । तुम्हारा फिर ये हेड है मुख्य, जिसको मम्मा कहते हो । बाकी हो तो तुम भी काली के बच्चे काली, बलि लेने वाले । तो देखो, कालियों का, माताओं का मर्तबा है ना । फिर वो जगदम्बा से और काली से पूरा समझते नहीं हैं । जगदम्बा को क्या दिया है और उनको क्या । देखो कितना फर्क कर दिया है । है कोई समझ! तुम ऐसे समझेंगी कि क्या है । ये विद्वान आचार्य पण्डित, इन शास्त्रों में पाई की भी समझ नहीं है बिल्कुल, इसलिए पेनीलेस हैं । कौड़ी तुल्य हो गए हैं । कुछ भी अक्ल नहीं कि काली क्या है, दुर्गा क्या है, जगदम्बा क्या है, ये शिव क्या चीज है? देखो, मनुष्य होकर भी कुछ पता नहीं है । जानवर होवे तो बोले, भई अच्छा ठीक है । इतना मूर्ख बुद्धि बनने से एकदम कंगाल बन गए है । जो मूर्ख मनुष्य होते हैं ना वो दिवाला ही निकालते हैं । अभी भारत का जो भी आसुरी सम्प्रदाय है, बड़ी मूर्ख है, देवाला निकाल दिया है बिल्कुल ही एकदम । अच्छा, टोली खिलाओ बच्चों को । ....घड़ी-घड़ी संभलना है । माया की चोट लगती रहेगी खूब अच्छी तरह से ।ऐसे मत समझो कि कोई को न लगती होगी । बाबा तो खुद कहते हैं कि मेरे को तो बहुत लगती है । तुम सबसे मेरे को चोट बहुत लगती है, परन्तु संभालता रहता हूँ । बच्चों को बताता हूँ ।....हम तो जन्म-जन्मांतर मामा काका बाबा चाचा.. बहुत याद किया । बाबा कहते हैं, इन सबको भूलते जाओ, मेरे को याद करो तो मैं तुमको बहुत ऊंचा वर दूंगा । अगर मेरे को छोड़ करके सबको याद करते रहेंगे तो फिर मैं तुम्हारा नहीं हूँ तुम्हारे दूसरे हैं । तुम जानो और तुम्हारे दूसरे मित्र-संबंधी जानें । साफ कह देते हैं कि जबकि तुम मेरे नहीं हो तो मैं तुम्हारा कैसे बन सकता हूँ? तुम्हारे काका मामा चाचा बाबा हैं । मुझे तो तुमने गारंटी की थी कि बाबा, मेरा तो एक आप, दूसरा न कोई यानी दूसरा कोई भी मामा चाचा बाबा नहीं, सिर्फ आप । फिर देखो, माया कितनी है, वहाँ से बुद्धियोग जुटाय करके ठोंक देती है तो पद भ्रष्ट हो जाता है । बाप तो बहुत अच्छी राय देते हैं, परन्तु उनकी तकदीर में न होगा तो फिर बाप करे सो करे क्या? बाप भी श्रीमत देंगे, कोई लाठी तो नहीं मारेंगे । बाप\ कहते हैं, समझते हो शिवबाबा की बातें है? 5000 वर्ष के बाद फिर से आकर मिले हो और आया हुआ हूँ तुमको गुलगुल करके.....कैसे? मेरी याद में रहो तो तुम गुलगुल हो जाएँगी और लायक बनेंगी । अगर दूसरे के साथ बुद्धियोग होगा तो फिर गुलगुल नहीं होंगी, लायक नहीं बनेंगी, महारानी नहीं बनेंगी । मैं आया हूँ तुमको महारानी बनाने के लिए । फिर तुमको जो चाहिए सो बनो । आया हुआ हूँ तुमको राजयोग सिखलाने । ऐसे नहीं कहता हूँ कि तुम प्रजायोग सीखो । राजयोग सीखो । फिर न याद करेंगी तो जाकर प्रजा बनेंगी । सीधी-सीधी बात । तुमने जन्म-जन्मांतर, 63 जन्म गारंटी की है कि आप जब आएँगे तो हम वारी जाएँगे । मेरे तो आप बनेंगे, दूसरा कोई नहीं और बरोबर जब तुम मेरे पास थे तुम्हारा कोई नहीं था, तुम मेरे थे । पीछे जा करके के बने.... । अभी फिर मैं कहता हूँ कि तुमको लेने आया हूँ फिर मेरे बनो, तो मैं तुमको साथ में ले जाऊगा, क्योंकि मेरे को याद करने से तुम पवित्र बनेंगे । दूसरे को याद करेंगे तो अपवित्र बनेंगे । अभी सीधी बात कहता हूँ ना कि मेरे को याद करते रहने से तुम पवित्र बनते जाएँगे, तुम्हारा विकर्म विनाश होगा । दूसरे को याद करने से तुम्हारा विकर्म...होगा, क्योंकि गारंटी करके कि बाबा, तेरा हूँ और फिर दूसरे को याद करते हो, तो और सौ गुना विकर्म बनेगा । बापदादा का मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति यादप्यार और गुडमार्निग ।

..फिर दूसरे को तो नहीं याद करना पड़े । जितना हो सके इतना, कम से कम एक घड़ी तो याद करनी होगी । सो भी उनको बहुत मुश्किल है । फिर उसको पुरुषार्थ करते-करते, ये भी पुरुषार्थ करते-करते, अंत में आ करके सच्ची याद रह जाती है । देखो कितना का मुँह देखना पड़ता है । आगे तो एक दो पाइंट बची है । अभी तुम बच्चे कितने हो, घड़ी-घड़ी बोलते हो कि बाबा चिट्‌ठी लिखो । मैं तुमको चिट्‌ठी लिए या मैं बाबा के साथ योग लगाऊ? तुमको चिट्‌ठी लिखूंगा तो हमको तुम याद रहेंगे । फिर हमको क्या करना पड़ता है? बाबा बन करके चिट्‌ठी लिखाऊँगा ।......