19-09-1964     मधुबन आबू    रात्रि मुरली    साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन
 


गुड इवनिंग यह 19 सितम्बर का रात्रि क्लास है

इसमे बुद्धि का काम बहुत चाहिए, बहुत समझ चाहिए । जानते हैं कि बरोबर मौत सामने है, उसके पहले ही बाप से अपना पूरा वर्सा लेने का पुरुषार्थ करना है, क्योंकि पूरा वर्सा कोई पीछे नहीं मिल सकता है । पूरा वर्सा मिलेगा ही उनको जो कर्मातीत अवस्था में मेहनत करके टिकेगा अर्थात् बाप को याद भी करेंगे और सर्विस भी करेंगे । सर्विस के ऊपर भी तो मदार है ना । वो समझाते भी हैं तो तुम कहते हो कि कर्मबंधन है, परंतु एक ही थप्पड़ से हार्टफेल हुआ, मर गए । फिर कहाँ गया तुम्हारा कर्मबंधन? यहाँ तो तुम बच्चों को राय देते हैं कि तुम जीते जी बाप की गोद में जाते हो । मर के तुमको कोई काल नहीं खाता है । तुम तो खुशी से अच्छी तरह से देखभाल और पूछताछ कर तब तुम इन बाप को स्वीकार करते हो, जब निश्चय होता है कि बरोबर ये वही बेहद का बड़ा बाबा है, जिससे हमको सृष्टि का बड़ा पद मिलता है, राजधानी पद मिलता है । अभी ऐसे तो नहीं है कि बाबा कहने से कुछ बात मीठा होता है । बात मीठा होता है, मुख मीठा होता है जब नशा चढता है कि हमको बाप से स्वर्ग का वर्सा मिलना है । हम बहुत पदमपति बनने वाले हैं । यहाँ तो कोई ऐसे साहूकार हैं ही नहीं । सिर्फ बात ये है कि दूसरे जन्म से लेकर के....... सो मनुष्य फिर कहते हैं कि दूसरे जन्म में क्या होगा! जो कुछ इस दुनिया में काला मुह करना है सो कर लो पहले अच्छी तरह से । तो वो समझते हैं कि पता नहीं वहाँ काला मुँह करने को मिलेगा या नहीं मिलेगा । वो इतनी मूर्ख बुद्धि है । समझते भी हैं कि गोरा बनना है । बाबा काला मुँह को गोरा मुँह बनाते हैं, परन्तु ये समझते हुए भी देखो.. ...क्योंकि सन्यासियों के लिए कोई काले और गोरे का क्वेश्चन नहीं उठता है । ये तो तुम्हारे लिए है । तुम गौरे थे अभी सांवरे बन गए हो । सिर्फ तुम भारतवासियों के लिए है । वहाँ जो कल्प पहले बने थे वही आकर फिर ब्राह्मण बने हैं । ब्राह्मणपने से चलते-चलते फिर अगर शूद्र कुल मे चला गया तो फिर ये मरा, क्योंकि ब्राह्मण कुल से जा करके हमको फिर दैवी कुल में जाना है । ब्राह्मण कुल में आकर कोई पीछे नहीं हटता है, परन्तु माया बड़ी प्रबल है । अच्छे-अच्छे बुद्धिवान की भी झट टॉकी फिराय देती है । माया ऐसी है । नहीं तो तुम बच्चों को एक तो खुशी रहनी चाहिए, जैसे बाप है आनन्द का सागर । क्यों है आनन्द का सागर? क्योंकि आनन्द का वर्सा ही वो देते हैं । देते हैं तब उनके ऊपर नाम पड़ा है कि हमको बहुत आनन्द देते हैं । देखो, कोई भी आते हैं तो कहते हैं कि यहाँ शांति और आनन्द बहुत मिलता है । इस समय में जो शांति और आनन्द मिलता है वो फिर अविनाशी हो जाता है, परन्तु है सब.... । बाप तो आते हैं पुरुषार्थ कराने । फिर जो करते हैं वो कोई छिपे नहीं रहते हैं । जो सर्विस पर उपस्थित रहते हैं वो छिपे नहीं रह सकते हैं, उनको सर्विस बिगर बैठने सुख नहीं आता है । अगर बैठेंगे तो मुफ्त अपने को घाटा डाल देंगे । सौदागर अगर चुप कर बैठ जाएगा तो फिर क्या कमाई कर सकेंगे! जो बाप का टाइटल है वो तुम्हारा भी है । ऐसे नहीं है कि तुमको बाबा जादूगरी नहीं सिखलाते हों । बरोबर तुमको भी सिखलाते हैं, तुम खुद भी जानती हो । कहते हैं ना कि ये बाबा है, ये हमारा बच्चा भी है तो ये जादूगरी हो गई ना । भले बाबा की मदद मिलती है हर बात में । बाकी ये तो बच्चे जानते हैं कि सबसे अच्छे ते अच्छा मंदिर है ही सोमनाथ का । .........तो ये कारीगरी है ना, मनुष्य से देवता बनना ये कारीगरी है । तो देखो, कारीगरी का ये मंदिर बना हुआ है । कितनी कारीगरी है इसमें! बरोबर नीचे मंदिर में मनुष्य राजयोग में बैठे हैं, ऊपरमें राजाई खड़ी है । इतना सिम्पल है समझने का, जो तुम जाकर कोई को भी समझा सकते हो । वहाँ मंदिर में तुम सर्विस करो तो बहुत समझा सकते हो । तुम बिगर तलब कोई मंदिर के पड़े बन जाओ एकदम । वो ब्राह्मण लोग तो तलब लेते हैं । तुम एक पैसा भी न लो, क्योंकि यहाँ मंदिर है खास । और कोई भी मंदिर नहीं है । जगदम्बा के मंदिर में इतना मजा नहीं है । ये तो एकदम जैसे यहाँ है, झाड़ के नीचे तुम बैठे हो । वो भी बैठे हैं और ऊपर में देखो । उन बच्चों को तो कुछ भी पता नहीं है । मंदिर भले कई देखे हैं, ये नहीं देखा है, परन्तु तुम्हारे में से शायद कोई देखकर गए हो नेम नहीं हो । कुछ पता नहीं था । अभी तो हूबहू तुम्हारी सर्विस का वो यादगार बना हुआ है । वण्डर है कि तुम्हारा स्थान.......मंदिर भी सामने है । ये भी तो विचित्र बात हुई ना । समझाने के लिए भी बहुत सहज है । वो किताब निकाला भी है कि वो जड़ है, यहाँ चैतन्य में बैठे हो, परन्तु यहाँ कोई भी वो किताब बांटने वाला नहीं है, क्योंकि यहाँ भी सर्विस करने वाला कोई है नहीं । बहुत सर्विस है । अच्छा, इस समय मे भी कोई जाकर उनको किताब देवे तो भी उनको कुछ समझ आवे । वहाँ का जो... है उनको भी बैठ करके कोई अच्छी तरह से समझावे और बुद्धि मे बिठावे तो बिचारा वो भी कोई को समझा के कुछ दे कि अरे भई, ये तो मंदिर है जड़ और चैतन्य. जिनका ये यादगार है । तो जरूर पुजारी सो पूज्य, तो संगम होगा ना । पूज्य बनने वाले भी होंगे और जिसकी पूजा करते हैं वो भी होंगे, क्योंकि पुजारी सो पूज्य बनने वाला है, तो पुजारी जरूर पूज्य की सेवा करते होंगे, बंदगी करते होंगे । दोनो संगम पर इकट्‌ठे जरूर होंगे, क्योंकि सतयुग में पुजारी तो कोई नहीं होंगे ना । तो पूज्य बनने वाले हैँ, वो हैं पूज्य, परन्तु वो पूज्य बनने वाले तो संगम में होंगे ना । तो ये देखो, संगम पर बैठे हो । वो तुम्हारे पूज्य के चित्र हैं और तुम हो पुजारी । तुम बरोबर इन सबके पुजारी थे । देवियों के भी थे । अभी तुम सो खुद बन रहे हो । तो ये भी विचित्र बात है कि तुम बैठे हुए हो, परन्तु यहाँ समझाने वाली, सर्विस करने वाला कोई है नहीं । कोई को सर्विस करने का ढ़ंग नहीं आता है...... क्योंकि अंधो को दिखलाना तो है ना बुद्धिहीन अंधे जाते हैं अंदर और तुम उनको जाकर बुद्धि देते हो तो बिचारे वण्डर खाएंगे । कहेंगे ये तो बिल्कुल ठीक बोलते हैं । घुसना चाहिए अंदर, जाना चाहिए । बिगर पैसे तुम सर्विस कर सकते हो । उनको सबकी बायोग्राफी बता सकते हो, परन्तु इतने कोई सर्विसेबुल बच्चे हैं नहीं । बाप तो डायरेक्शन देंगे ना । अभी ऐसी जगह में मम्मा तो नहीं जाएगी, बापदादा भी नहीं जाएँगे । जाएँगे तो बच्चे ही जाएँगे, परन्तु इतना बच्चों मे कोई शौक है नहीं । इतना विशाल बुद्धि वाला अगर होता भी है, तो पिछाड़ी मे ग्रहचारी भी तो है ना । कमाई में ग्रहचारी बहुत है । कभी अवस्था को अच्छा देखो, कभी मध्यम देखो, कभी कनिष्ठ देखो, फिर कभी अच्छी देखो । वो ग्रहचारी भी बहुत आती है । युक्तिबाज चाहिए, रमजबाज चाहिए इस सर्विस पर । देखो, इसलिए बाप को भी रमजबाज कहते हैं ना । तो आ करके शक्तियों को रमजबाज बनाते हैं । मान ऊँचा करते हैं, परन्तु शक्तियाँ भी कोई अच्छी तरह से जागें । औरों को कहते हैं ना कि कुम्भकरण की नींद में, तो अपन सब भी तो नींद में सोए पड़े थे ना । जगाया है किसलिए? औरों को जगाने के लिए । निकल जाएगा कोई और कोई नया अच्छा पैदा हो जाएगा । (म्यूजिक बजा) मात-पिता व बापदादा का मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति याद-प्यार, गुडनाइट ।