20-09-1964     मधुबन आबू     प्रात: मुरली    साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हेलो, स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुलभूषणों को हम मधुबन निवासियों की नमस्ते, आज रविवार सेप्टेम्बर की बीस तारीख है, प्रात: क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।
 

रिकॉर्ड-
किसी ने अपना बनाके मुझको मुस्कुराना सिखा दिया......
 

ओम शांति । ये रिकॉर्ड ने पहले पहले वचन सुनाया । ग्रंथ का वचन लेते हैं ना । तो ये रिकॉर्ड कहता है किसी ने मुझको...... । अगर ये रिकॉर्ड न भी बजे तो कोई हर्जा नहीं है, परन्तु रमत-गमत के लिए, शुरू करने के लिए और जो भी विद्वान आचार्य पण्डित हैं वो कोई न कोई शास्त्र का कुछ न कुछ शुरू करते हैं । गीता का या वेद का या उपनिषद का कुछ न कुछ उनकी बुद्धि में रहता है । ये जानते हो कि जो भी मनुष्य मात्र हैं उनकी बुद्धि में शास्त्र है और तुम्हारी बुद्धि में कोई भी शास्त्र वगैरह कुछ भी नहीं है । तुम बच्चों के लिए, खास बुडिढयों के लिए बिल्कुल ही, जो शास्त्रों की कुछ भी बातें नहीं समझें या कथाएँ सुन करके खुश होवें । यहाँ तो पहले पहले खुशी होती है कि हम किसके बने हैं । ऐसे नहीं कोई कहेगा कि जो हमारा गुरु है, हम उनके बने हैं । नहीं, बनना होता है बाप का । शरीर छोड़ करके भी फिर किसका बनना होता है? बाप का बनना होता है । तो देखो, यहाँ सिर्फ बाप का बनना है । वेद शास्त्र ग्रंथ वगैरह-वगैरह तुम बच्चों को कोई की दरकार नहीं है । जब बाप को बच्चा पैदा होता है तो बाप खुद समझ जाते हैं कि मेरी मिल्कियत का मालिक पैदा हुआ है । वास्तव में यहाँ कोई भी पढ़ने, करने, जप तप तीर्थ दान-पुण्य शास्त्र वगैरह की कोई दरकार नहीं है । जैसे कोई राजा है या महाराजा है उनको कोई बच्चा नहीं है, ऐसे बहुत होते हैं ना, बहुत साहूकार भी होते हैं । तो उनको बच्चा नहीं होने से वो बच्चा मॉगते हैं । बस, बच्चा पैदा हुआ, वो समझते हैं कि मेरी जो भी प्रॉपर्टी है उनका मालिक है । इनमें कोई पढ़ाई की तो बात नहीं है ना, यह तो सम्बंध की बात है । तुम बच्चे भी आए हो, वास्तव में जान गए हो कि हम सचपच पहले भी शिवबाबा के ही हैं, पहले भी परलौकिक बाप के हैं; क्योंकि आत्माएँ पहले हैं और ये शरीर पीछे है । पीछे हमको शरीर मिलता है । अभी तुमको शरीर तो है । अभी तुमको बेहद का बाप मिला है । उसने आ करके अपना परिचय दिया है । तुम बच्चे सिर्फ इतना ही कहते हो कि हाँ, हम आपके हैं । तो देखो, यहाँ सिर्फ बाप और बच्चे का सम्बंध है, और तो कोई संबंध है नहीं । फिर उसके बाद जबकि बच्चों को पढ़ना भी तो है जरूर । इनको गुरू भी करना है जरूर, ये भारत में कायदा है । तुम जानते हो कि बरोबर हम बेहद के बाप के बच्चे बन गए हैं । नहीं तो यहाँ क्या करते? यहाँ इनके पास रहने की क्या दरकार है? ये कहते हैं कि मैं कोई गुरू-गोसाईं वगैरह कुछ नहीं हूँ । सम्बंध भी ये है, बोर्ड में भी लगा हुआ है - ब्रम्हाकुमार और कुमारियाँ । तो कुमार और कुमारियाँ का नाम लिखा है ना, बहनों और भाइयों का । तो जरूर उनका बाप है । सो भी लिखते हैं कि हम ब्रह्मा के कुमार और कुमारियाँ हैं । ये सम्बंध हुआ ना । पहले पहले सम्बंध चाहिए । पीछे टीचर, पीछे गुरू । पहले-पहले तो माँ-बाप का सम्बंध चाहिए । मीठे बच्चे, तुम हमेशा गाते आए हो कि तुम मात-पिता.. । देखो, माता-पिता का सम्बंध हो गया ना । तुम मात-पिता के हम जब बालक बनेंगे फिर से; क्योंकि गाते आते हैं, ये समझते हैं कि फिर जब आप आएँगे तो हम आपके बालक बनेंगे । देखो, ये आत्मा कितनी याद करती है । इसको अविनाशी याद है जैसे भक्तिमार्ग में । जब हम बालक बनेंगे तुम मात-पिता के तब तुम्हारे से हम वर्सा लेंगे । मात-पिता से और क्या मिलता है? वर्से की बात हो जाती है ना । अभी तुम बच्चे जानते हो कि हम मात-पिता के हैं । भले कोई भी यहाँ से चले गए हो, फिर भी उनको बुलाकर पूछें कि ये तुम्हारा क्या लगता है? तो फिर भी कहेंगे जरूर कि ये मात-पिता हैं, हम शिवबाबा के बच्चे हैं । जब बच्चे हैं तो वर्सा ही याद आना है । अभी तुमको कोई दूसरी पुस्तक वगैरह तो नहीं पढ़ाई जाती है ना । कुछ भी नहीं । तुमको सिर्फ ये निश्चय बैठाया जाता है कि जिनके बने हो उनको याद करो तो उनसे तुमको क्या फायदा होगा । वो खुद कहते हैं कि मेरे साथ योग लगाने से या मेरे को याद करने से........ । बने तो हो ना । देखो, बहुत थोड़ी सी और सहज ते सहज बात बताते हैं; क्योंकि विशाल बुद्धि तो होना चाहिए ना । ऐसे थोड़े ही है कि बीज और झाड़ को कोई समझ न सके या इन चक्र को कोई समझ न सके । और तो कुछ नहीं समझाते हैं, सिर्फ अपने ही कुल की बात समझाते हैं कि देखो, हम कितनी बड़ी बिरादरी वाले पहले बाबा के बनते हैं, फिर हम कैसे 84 के चक्र में आते हैं । ये तो समझ गए हो ना, नहीं तो दूसरा कोई भी मनुष्य समझते नहीं हैं कि 84 के चक्र में कैसे आते हैं । अभी तुम बच्चों को वेद शास्त्र या जो जो भी तुम आधाकल्प करते आए हो इन सबसे छुड़ाते हैं । तुमको न कोई यज्ञ, न तप, न दान, न तीर्थ, न पुण्य, न संध्या न गायत्री कुछ भी करने की दरकार नहीं है, क्योंकि तुम बाप के बने हो और उनको याद करते-करते और फिर सृष्टि चक्र के आदि मध्य अंत को जानने से और त्रिकालदर्शी बनने से हे मेरे लाडले बच्चे! तुम इतना ऊँच ते ऊँच स्वर्ग का मालिक बनते हो । अभी है तो बहुत सहज ना । तुम जो रोते रोते आते हो, तुमको सदैव के लिए हर्षित बनाता हूँ । कितनी सहज बातें हैं । इसमें डिफीकल्टी तो नहीं है; परन्तु ये सहज बातें भी भूल जाती हैं । क्या कारण है जो भूल जाती हैं? भूलने की कोई बात होनी नहीं चाहिए । माँ-बाप को कभी कोई भूलता नहीं है । सो भी ऐसे मां-बाप को । बाप सिर्फ बच्चे को कहते हैं - बाप को याद करो और वर्से को याद करो, फिर तुम सदैव हर्षित रहेंगे । वो गीत का पाइंट है ना - कोई आया हुआ है... । वो गाते रहते हैं, भक्तिमार्ग में तो गाना ही है ना । ये जो तुम्हारा है ये अविनाशी हो गई ना । वो बरस-बरस कुछ न कुछ मनाते हैं - दशहरा दीपमाला रखड़ी बंधन । अरे, ये तो रोज....... । आत्मा तो दुःख में अपने बाप को याद करती रहती है । दुःख में और तो किसको याद नहीं करते हैं ना । बाप को याद करते हैं; क्योंकि बाप ने जरूर सुख दिया है और कोई हमको दुःख देते हैं तो बाप को याद करते हैं कि हाय बाबा, हाय भगवन, ऐसे कहते हैं ना । ऐसे मत समझो कि इसी जन्म में, नहीं, हर एक जन्म में ये हाय-हाय करते आए हैं । अभी तो बच्चों को बिल्कुल ही सहज समझाते है । भले यहाँ रहो, तो समझाने की बात हो गई, भले अगर बैरक में रहना चाहते हो या जो भी गवर्मेन्ट के सिपाही बैरक में रहते हैं तो तंदुरूस्त ही रहते है । कभी सर्विस कर सकते हैं । तंदुरूस्ती बिगर तो सर्विस थोड़ा मुश्किल भी कर सकें । भले तुम तदुरूस्त न भी हो, भले कितने भी बीमार हो, जैसे तुम लोगों के बीमार होने से वो आकर समझाते हैं कि आराम करो - आराम करो। तुम फिर क्या करो? तुम बीमारी में ही औरों को बताओ कि तुम शिवबाबा को याद करो - शिवबाबा को याद करो । वो मरते हैं और वो खड़े हैं । तुम जब बीमार भी हो तो सिर्फ इतना उनको कहो - अरे, शिवबाबा को याद करो । तुमको तो कोई याद कराने से छूट गया । तुमको औरों को याद कराना पड़े, याद देना पड़े । मरते समय भी तुम औरों को ये नॉलेज दे सकते हो कि शिवबाबा को याद करो - शिवबाबा को याद करो, बेहद का बाबा है, तुमको वर्सा देगा । उसका स्वर्ग का वर्सा है । तो सर्विस का शौक जब पड़ जाता है तो मरने वक्त भी अगर कोई आएगा पूछने के लिए तो उनको ज्ञान देंगे - ऐसी बच्चों की अवस्था चाहिए । ऐसे नहीं कि हॉस्पिटल में मुर्दे पड़े रहें तो मुख बंद हो जाएं । मुख तो कभी बंद नहीं होता है ना । मुख से कुछ न कुछ हाय राम - हाय राम, राम-राम तो निकलता ही रहता है ना । तो तुम बच्चों की कितनी अच्छी अवस्था होनी चाहिए, कितनी बुद्धि में ये बात होनी चाहिए कि सिर्फ हमको बाबा ऐसी एक सहज बात समझाते हैं, जो चाक हैं, चंगे-भले हैं, तंदरूस्त हैं या बीमार हैं, हम बीमारी में भी बहुत फर्स्टक्लास सर्विस कर सकते हैं । कोई भी मित्र-सम्बंधी आवेंगे हमारी सर्विस करने लिए; सब तो समझते हैं कि इनको कोई दरकार नहीं है, तो भी वो बिचारे आएँगे तो कहेंगे कि अच्छा, प्रभु को याद करो, वो ही तुम्हारा रखवाला होगा और क्या तुम्हारा कोई रखवाला हो सकता है! इसलिए ईश्वर को याद करो, प्रभू को याद करो, राम- राम कहो । तो फिर उनको क्या समझाना है? वो तो तुम जानते हो कि अपनी बुद्धि में है कि मैं तो हू ज्ञान सागर का बच्चा । हम तुमको और ही कहते हैं कि तुम शिवबाबा को याद करो । बाबा एक है और वर्सा भी सबको एक से मिलता है; क्योंकि बाप का वर्सा बच्चों को तो मिलता ही है ना । उसमें भी जो मेल होते हैं उनको वर्सा मिलता है, फीमेल को नहीं मिलता है । उनको कुछ दान किया जाता है । उसको दान कहते हैं । कन्याएं सौ ब्राह्मणों से उत्तम हैं, क्योंकि पवित्र हैं । तो पवित्र को तो दान दिया ही जाता है । सन्यासी पवित्र हैं तो उनको दान दिया जाता है । ब्राह्मण पवित्र नहीं हैं तो भी उनको दान दिया जाता है, परन्तु तुम कन्याएँ तो सबसे जास्ती पवित्र हो ।  इसलिए बाप-मां तुमको दूसरों को देने के लिए कहते हैं कि हम कन्या को दान देते हैं । कन्या को भी देते हैं, तो कन्या को दान भी देते हैं । उनको बहुत बड़ा दान समझते हैं; परन्तु इस समय में वास्तव में दान तो होता ही नहीं है । दान तो अभी है । देखो, आजकल तुमको बहुत कहते हैं, जो गरीब हैं वो तो बिचारे छूट जाते हैं ना । हम अपनी कन्या ये यज्ञ में शिवबाबा को देते हैं । माता भी कहती है मैं शिवबाबा की बनती हूँ । तो कन्या तो देनी है ना । वहाँ देनी है कत्लेआम होने के लिए और यहाँ कन्या दी जाती है स्वर्ग की महारानी बनने के लिए । नर्क भारत को स्वर्ग बनने के लिए । देखो, अगर कोई कन्या दान देते है तो कन्या भी ऐसी होनी चाहिए जो पढ़ी-लिखी हो । तुम छोटी बच्ची कन्या तो नहीं ले लेंगे । कन्या लेनी है जो अच्छी तरह से अपने कुल की भी हो और उनको कुछ समझाने से वो समझती जाए; क्योंकि सर्विसेबुल तो चाहिए ना । तुमको छोटे बच्चे नहीं सम्भालना है । ना कि तुमको छोटी कन्याओं का कुछ भी लेना है । कन्या आवे, जब देखो कि ये थोड़ी बात में समझ लेती है कि यहाँ क्या काम है! यहाँ और तो पढ़ाई जास्ती नहीं है, तुम इतना काम कर सकेंगी? तो तुम भी शिवबाबा को याद करो । परिचय दो और उनको कहो कि अभी बाप के वर्से को याद करो । ये तो जरूर है कि बरोबर बेहद का बाप है और ये चित्र सामने रख देना है । ये चित्र बड़ा अच्छा है । हैं तो सभी चित्र एक-दो से अच्छे । ये नटशेल में होते जाते हैं । उनसे कहो कि देखो, ये सतयुग का वर्सा पा रहे हैं । नहीं तो सतयुग के लिए ये लक्ष्मी-नारायण का वर्सा, ये कहाँ से, किसने दे दिया? श्री लक्ष्मी-नारायण को अच्छी तरह से पकड़ो । इसलिए लक्ष्मी-नारायण के बड़े चित्र तुम बच्चों के लिए बनाए जाते हैं, राधे-कृष्ण का भी नहीं । तो ये भी देखो बैठी हुई है, थोड़ी बात समझाते हैं । उनको क्या करना है? अभी ये नाटक पूरा होता है । और सब बात भूल जावें । ये एक नाटक है और हमने 84 जन्म का पार्ट बजाया है । अभी पूरा होता है, हम जाते हैं बाबा के पास । बाबा के पास जाएँगी और फिर नई दुनिया में आएँगी, क्योंकि हमारा बाबा नई दुनिया का रचने वाला है । नई दुनिया का मालिक नहीं है, मालिक हमको बनाते हैं । वो हमको उसकी युक्ति मार्ग या पाथ कहते हैं, वो तरीका बताते हैं कि बेहद के बाप से तुमको 21 जन्म का सदा सुख का वर्सा कैसे मिलेगा । ये घड़ी-घड़ी बैठ करके अपन को ऐसे ही निश्चय करो कि एक तो, मैं आत्मा हूँ । मैं आत्मा खाता हूँ मैं आत्मा चलता हूँ मैं आत्मा इस शरीर को ये कर्तव्य करा रहा हूँ । ये प्रैक्टिस तो तुम लोगों को बड़ी चाहिए कि तुम आत्मा हो, जिससे देह-अभिमान तो टूट जावे । जब तुम ये निश्चय करेंगी तो फिर ये निश्चय भी रहेगा कि हम आत्मा किसका बच्चा हूँ । देह-अभिमानी को घड़ी-घड़ी लौकिक बाप याद करेगा । देही-अभिमानी को पारलौकिक बाप याद करेगा । ये भी तो एक कायदा है ना । देह-अभिमानी होने से तुमको देहअभिमानी का लौकिक बाप और उनका वर्सा याद पड़ेगा । तो उठते-बैठते थोड़ी मेहनत है कि मैं आत्मा हूँ मैं आत्मा खाता हूँ पीता हूँ चलता हूँ । मेरा बाप है बाबा, उनकी मत पर चलता हूँ । ये भी मत वो दे रहे हैं । शिवबाबा मत दे रहे हैं कि अपन को आत्मा समझ करके मुझे याद करो, क्योंकि सुख तो तुमको लेना ही है । सुख के तो भाती हो गए; परन्तु थोड़े सुख के लिए सेटिस्फाय न हो जाओ, बस खुश न हो जाओ । हम जाएँगे तो जरूर स्वर्ग में, इसमें तो पाई का भी शक नहीं है । बाबा-मम्मा तो कहा है ना; परन्तु पक्के मातेले बनो, सौतेले नहीं बनो; क्योंकि सौतेले और मातेले का यहाँ बहुत समझाया हुआ है । मातेला किसको कहते हैं?... .जो बिल्कुल ही बापदादा को याद करे, फिर दूसरे न याद पड़े । दूसरे याद पड़ते हैं तो सौतेला हो जाता है । देखो, यहाँ बैठे-बैठे बहुत आते हैं ना । ये भी बाप याद पड़ते हैं, वो भी याद पड़ते हैं । तो फिर एक याद करना पड़ता है ना । दो बाप नहीं । एक बाप जो अविनाशी स्वर्ग का वर्सा देने वाला है । एक का कुल समझो । ये भी कुल है, वो भी कुल है । और भी बाल-बच्चे सब होते हैं । समझो बिरादरी है । उनसे तो दुःख ही मिलता है । अभी तो दुःख ही कहेंगे । अल्पकाल क्षण भंगुर सुख भी क्या कहेंगे! अभी सुख क्या रखा हुआ है यहाँ! यहाँ तो मौत आया हुआ है सामने । तो ये बुद्धि से जज करना है कि अभी हम किस तरफ जावें? लौकिक के तरफ या परलौकिक के तरफ । ये भी गीत तो है ना तुम्हारे पास - किसकी तरफ जायें, किसका साथ पकड़े? बुद्धि कहती है कि क्यों नहीं इस बाप द्वारा बाप का बन करके, हाथ दे करके हम अपना स्वर्ग की तरफ जावे । फिर वहाँ बुद्धि कहती है कि लौकिक को कैसे छोड़ें? जीते जी छोड़ना होता है ना । तो तुमको इस समय में जीते जी मरना है, छोड़ना है । वो हमको जहन्नुम की तरफ ले जाने वाले हैं, ये बहिश्त की तरफ ले जाने वाले हैं । अब बुद्धि कहती है कि किस तरफ जाऊँ । रात-दिन का फर्क है । उस तरफ तो हम स्वर्ग के मालिक बनते हैं, इस तरफ में तो नर्क के मालिक बनते हैं । अभी किस तरफ बुद्धि को लगावें? बुद्धि को कहाँ छोड़े? आत्मा कहती है बुद्धि को कहाँ फेंकें?.. .शांतिधाम और स्वर्गधाम जावें या यहाँ जावें? अभी या यहाँ जावे वो प्रश्न उठना नहीं चाहिए; क्योंकि यहाँ के तो जन्म-जन्मांतर हो; इसलिए अभी तो हम इस बाप को तो कभी छोड़ेंगे नहीं । तुम बाप के पास बैठे हुए हो । यहाँ कोई लौकिक सम्बंधीतो हैं नहीं तुम्हारे, भले कोई आपस में बहनें हों या फलाना हों, कहती है कि हम बाबा के साथ मुक्तिधाम, बाबा कहते हैं ना कि सवेरें में भी उठ करके ऐसे ही बैठो । बैठने से मजा ही होता है की किस तरफ जावें । खैंच किस तरफ की जास्ती होनी चाहिए? बुद्धि कहती है की खींच तो स्वर्ग की तरफ की होनी चाहिए । मेरी बुद्धि इस तरफ यादगारी में क्यों जाती है? हमको ये माया धोखा देती है । ये अपने से बात करनी है । विचार सागर मंथन का कोई अर्थ तो निकलना चाहिए न वो तो नहीं है की सागर में लाठी डाली या सर्प डाला या फलाना ।... एम-ऑब्जेक्ट है तुम्हारे पास । सन्यासी लोग का कोई भी तुम ये विचार-सागर-मंथन कर नहीं सकती हो । अभी तुम किनारे पर हो एकदम कि कहा जायें । इस तरफ में तो दुःख ही दु:ख है, उस तरफ में 21 जन्म का सुख है । किस तरफ बुद्धि का योग लगावें? बाप कहते हैं कि मेरे को याद करो । माया कहती है इस कुटुम्ब, परिवार, पुरानी दुनिया की तरफ आओ । मैं कहाँ जाऊँ? मुझे तो अभी रास्ता मिला है जो रास्ता. .... संगम पर आकर खड़े हुए हो । एक तरफ में स्वर्ग जाने का और एक तरफ में है नर्क । ये संगम है ना । वो टिवाटा नहीं है, ये तो विवाटा कहो । टिवाटा कहो तो भी ठीक है । टिवाटे का नाम होता है ना । तीन गली - एक इस तरफ में, एक इस तरफ में, एक इस तरफ में, वहाँ टिवाटा होता है । अभी हम कहाँ जावे? किस तरफ जावे? इस तरफ जायें, इस तरफ जायें या इस तरफ जावे? एक तो गली है नर्क की, दूसरी तरफ है मुक्तिधाम, तीसरी तरफ में है जीवनमुक्तिधाम । अभी टिवाटे पर गए हो । ये संगम अभी टिवाटा है, जैसे तीन नदियों के संगम को त्रिवेणी कहा जाता है । जैसे तीन नदियॉ निकलती हैं एक वहाँ से, एक वहाँ से, एक फिर बोलते हैं कि गुप्त है; पर है जरूर जो कहाँ से आती है । अभी तुम जानते हो कि एक तरफ में है मुक्तिधाम और दूसरे तरफ है जीवनमुक्तिधाम । बहुत मनुष्य हैं जो बहुत कहते हैं हम तो मुक्तिधाम पसन्द करते हैं और कोई जीवनमुक्तिधाम पसन्द करेंगे । इस तरफ में तो है ही बंधनधाम जो आ करके खड़ा है । तो तीन रास्ते तो हैं ना । तीन वाटिकाएं । एक वाटिका में तो हैं ही हम । उस वाटिका में भी तो हैं ना। टिवाटे का मिसाल तो बड़ा अच्छा ही देखने में आता है । तो और कहा जावें? ये नर्क के तरफ तो हमको छोड़ना ही पड़े । उसमें तो बहुत दुःख है एकदम । अगर शांति है तो एक आँख में ये लाइन में जाती है मुक्तिधाम में, दूसरी लाइन में आ जाती है जीवनमुक्तिधाम में । हम टिवाटे पर खड़े हैं; इसलिए पिछाड़ी तो नहीं हटेंगे; क्योंकि पिछाड़ी से आकर टिवाटे पर खड़े हो । दुःख की गली से आ करके बाबा ने तुमको टिवाटे पर खड़ा किया है । इस तरफ में बहुत भयंकर है । शांति भी है और स्वर्ग में सुख है । ये गली से तुम आए हो जन्म-जन्मांतर पास करके, वहाँ तो दुःख ही है । अभी विचार रहता है कहाँ जायें । बुद्धि कहती है कि मुक्तिधाम जाकर फिर जीवन मुक्तिधाम में जाते हैं । तो क्यों ना हम कहें जीवनमुक्तिधाम । मुक्तिधाम में तो बैठना है नहीं । अगर मुक्तिधाम में कोई बैठ ही जाएं उसको भी फिर मोक्ष नहीं कहें । मोक्ष उसे कहते हैं कि हम कहाँ भी ना हों । वो लोग कहते हैं ना कि हमारा पार्ट ही ना हो कहाँ का भी । इस पार्ट से छूट जायें । मुक्तिधाम में बैठें तो भी छूट नहीं सकें । भले बहुत वहाँ बैठना होता है । मुक्तिधाम में कोई 5000 वर्ष तो कोई 100, 200, 300 वर्ष कम रहते हैं । तो क्या तुमको वो पार्ट चाहिए? ड्रामा अनुसार तुम्हारा वो पार्ट है । फिर आएंगे, मच्छर के मुआफिक मरेंगे, और तो कुछ भी नहीं है । इतना जो दुःख देखा है, उनका कुछ शांति और सुख भी तो देखना चाहिए । तो वास्तव में देखने मे आता हैं कि बाबा ने ड्रामा में ये वजन अच्छा रखा है । जो पिछाड़ी में निर्वाणधाम में, मुक्तिधाम में बहुत रहते हैं, वो तो अभी आए और एक- दो जन्म लिए और चले गए । वो भी कहेंगे ये तो और ही अच्छा । तुम किसको बैठकर यह बताएंगे कि क्या तुम मुक्तिधाम में ही रहना चाहते हो? टिवाटे पर तो खड़े हो । एक मुक्तिधाम है, दूसरा जीवन मुक्तिधाम है । वो शांतिधाम में हैं, वो सुखधाम में हैं । तुम अगर शांतिधाम में जाना चाहते हो तो बस शांति को ही याद करते रहो । ये मना कर दो कि बाबा, मुझे तो यहाँ आना ही नहीं है । हमको भले पिछाड़ी में आने दो, मैं तो ये विचार करता हूँ । तो भी मुक्तिधाम को याद तो करना पड़े ना । ये विवेक कहता है कि मुक्तिधाम में क्यों रहना चाहते हैं । ये जो पिछाड़ी वाले आते हैं ना उनको मुक्तिधाम में जास्ती रहने से मुक्तिधाम जास्ती याद पड़ता है । तुम जो पहले वाले आते हो तो तुमको जीवन मुक्तिधाम याद पड़ता है । हैं तो दोनों राइट, क्योंकि हम जीवन मुक्तिधाम वाले हैं तो हमको याद पड़ता है कि जल्दी हम जायें । वो नहीं हैं तो उनको इतना ख्याल नहीं रहता है । वो चाहते हैं कि हम मुक्ति में रहें । तो भले मुक्ति में रहें, बाबा से वर लेना भी कोई कम तो नहीं है ना । भले 84 जन्म से छूट करके, बाकी हम खाली दो जन्म लेवे । चलो, बस बाबा को याद करते रहो । जाना है तो उनसे इतना ही वर्सा तुम जास्ती नहीं.... । इनमें भी देखो कितना कल्याण भरा हुआ है । कोई ये बहुत पसन्द करेंगे । उनसे पूछ सकते हो कि अगर तुम चाहो तो हम निर्वाणधाम में ही रहें, सुखधाम में न आवे, तो भले, तो फिर अपन समझ जाएँगे कि इनका पहले जीवनमुक्ति में पार्ट नहीं देखने में आता है । सब तो आकर ये नहीं लेंगे ना । जो आ करके पुरुषार्थ करेंगे समझेंगे कि ये मुक्तिधाम वाले जो पीछे आते हैं इस्लामी बौद्धी क्रिश्चियन, इनमें से कोई है, जो बाप से अपना वहाँ का वर्सा लेते हैं कि हम बहुत वहाँ रहें । हैं तो दोनों अच्छे ना । बुद्धि कहती है दोनों बहुत अच्छे हैं । वो सुखधाम जाना नहीं चाहते हैं । तुम हो जो सुखधाम में रहने वाले हो वो आएँगे, टिवाटे पर अभी खड़े रहेंगे और जरूर पुरुषार्थ करेंगे । जो ना आने वाले हैं उनको ये पसन्द बहुत होगा तुम्हारा सच्चा योग । उनसे कहो कि तुम आत्मा हो, बाप को याद करो । तुम चाहते हो कि हम बाप के पास जाकर रहें तो बस बाप को ही याद करते रहो और इस चक्र को भी याद करने की तुमको दरकार नहीं है । स्वर्ग को भी याद करने की दरकार नहीं है । तुम बाप को याद करते रहो; क्योंकि ये ज्ञान तो सभी धर्म वालों के लिए है ना । बाप का परिचय देना तो सबको ही है । पीछे ये तो समझते है कि ड्रामा अनुसार जिन्होंने जितना जाकर लिया है, जिस पद पर पहुँचना है वो आएँगे, आकर यहाँ से पद लेंगे । बच्चों को तो रास्ता बताना ही है ना । मुक्तिधाम में जाना चाहते हो तो सिर्फ बाबा को याद करो । वर्सा लेना चाहते हो तो चक्र को याद करो । देखो, कितनी सहज बातें हैं । बच्चों को समझाते हैं । अगर ये गीत के मुआफिक कहते हो कि हम शांत नहीं; पर सदा सुखी रहें, तो वहाँ शांति भी है और सुख मी है । जो-जो जिस-जिस धर्म का होगा वो वहाँ वर्सा अपने बाप से आ करके ले लेना है जरूर । मुक्तिधाम वाला भी ले लेगा, क्योंकि सर्व का जीवनमुक्ति दाता है । तो जीवनमुक्ति दाता वो भी तो पहले जब आएँगे, तब सुख देखेंगे । एक ही जन्म में सुख भी देखेंगे तो दुःख भी देखेंगे । वो तो जैसे मच्छर के मुआफिक अभी-अभी; जन्मा, घूमा-फिरा और फिर रात को मरा । अभी वो तो कोई ऐसे नहीं कहेंगे ना कि अमूल्य जीवन है । वो तो मच्छरों जैसे थोड़े-थोड़े जीने वाले हैं । तुम तो बहुत ही सुख लेने वाले हो । तुम तो सदैव हर्षित रहने वाले हो । खड़े तो होना ना अभी । बाबा तुमको समझाते हैं कि बरोबर तुम एक लाइट हाउस हो, खड़े हो गए हो, एक तरफ में दोनों रास्ता दिखला सकते हो । बोलो- चाहे मुक्तिधाम में चलो, चाहे ये जीवनमुक्तिधाम में चलो । चाहे सिर्फ मुक्तिधाम को याद करो, चाहे तो दोनों को याद करो । है तो बहुत थोड़ा ।.. इसमें न कोई शास्त्र पढ़ने की दरकार है, न अलफ, बे पढ़ने की दरकार है । वास्तव में किसके लिए? कुमारियों के लिए, क्योंकि कुमारियां तो पढ़ने लग पड़ती हैं ना । उनको तो बहुत सहज है एकदम; क्योंकि सीढी जब तलक न चढ़ी है तो बड़ा सहज है उनके लिए । नहीं तो जो याद है, वो मिटती नहीं है । छोटेपन से ही किसको याद दिलाओ तो अच्छी तरह से पक्के हो जाते हैं और छोटेपन में पढ़ते बहुत अच्छे हैं । बुद्धि उनकी अच्छी होती है । कोई भी गान-वान कुछ भी सिखलाओ तो छोटे बच्चे जल्दी सीख जाते हैं । बड़ों को तो बुद्धि में बहुत ही हंगामा है ना । देखो, शादी के बाद कितने हंगामे रहते हैं । फलाने-फलाने की याद बहुत होती है । कुमारी को तो कोई याद ही नहीं रहती है ।. ..... .कोई सुनने को आएँगे तो ऐसे थोड़े ही है कि तुम बैठ करके प्रजा का हिसाब निकालेंगे । हिसाब निकालेंगे कि हमारी माला कैसे बनती है । छोटी माला कैसे बनती है, बड़ी माला कैसे बनती है, तुम्हारा ख्याल इसमें रहेगा । फिर ये भी तुम्हारी बुद्धि में रहेगा कि अच्छा देखें सबसे साहूकार प्रजा कौन बनती है । यहाँ भी ऐसे ही होता है.... -बड़े-बड़े; मनुष्य कौन हैं, फिर बड़े-बड़े; साहूकार कौन हैं । कोई देखेंगे कि आजकल गुरू भी बहुत साहूकार हैं । देखो, आगाखाँ कितना साहूकार है! गुरू भी साहूकार है ना । फिर देखो कहेंगे निजाम का जो मालिक था, नवाब था, वो बहुत साहूकार था । विलायत में जाओ तो जो धंधे वाले थे रॉकफिलर या 'फोर्ड' ये बहुत साहूकार थे । नाम में तो आते हैं ना । तो मुख्य-मुख्य नाम में निकल आएँगे । बाकी किसका हिसाब करेंगे? तुम्हारे में भी ऐसे है कि कौन-कौन मुख्य हैं जो पहले सूर्यवंशी महाराजा-महारानी बनेंगे और फिर कौन उस डिनायस्टी में राज्य करेंगे, कौन हैं जो चंद्रवंशी बनेंगे । कितनी फिर प्रजा बनने की है । ये भी तो है ना । यहाँ तुमको सब बात समझाई जाती है । सारे झाड़ की, सारे चक्र की, सारे धर्मों की भी । मठ पंथ ये डार में देखो कौन है, फाउण्डेशन है, फिर ट्‌यूमुस हैं, फिर उसमें से कितने छोटे-छोटे निकलते हैं । अभी भी जैसे कि पत्ते निकलते रहते हैं । जब वहाँ खाली हो जाएँगी फिर विनाश भी शुरू होना चाहिए । विनाश भी कितना जल्दी होता है । क्या वण्डर होता है । वो जो बड़ी लड़ाई होती है उसमें कोई बताते थोड़े ही हैं, किसके मनुष्य मरे, कितने मरे । ये जो बड़ी लड़ाई लगी थी ना, उसमें तो करोड़ों मरे होंगे, पर वो भी अनगिनत है ना । परंतु यहाँ तो देखो कितने खलास होंगे और तुम ही जानती हो कि बाकी कितने जाकर बचेंगे, जो वहाँ सतयुग में आकर रहेंगे । बाकी इतने सभी... के मिसल मनुष्य छाये हुए हैं । अन्न ही इतना नहीं निकलता जो खा सकें, सो भी खास भारत में । इतने मनुष्य हैं, जो भारत में इतनी अन्न की पैदाइश नहीं है जो भारतवासी खा सकें । कितना बाहर से आता है । अभी वृद्धि तो जास्ती होती जाती है, उनके ऊपर तो पक्का नहीं है । जन्म बहुत जल्दी होता है, वो निश्चय है । बच्चे पैदा होते रहेंगे; परन्तु यहाँ आफतें .. .....कितना अन्न खलास हो गया । चलो, फिर बाहर से मँगाना पड़े । तो देखो ये है पिछाड़ी । तुम बच्चे जानते हो कि बाबा आते ही हैं संगमयुग पर और अभी हमको बोलते हैं कि भले तुम बच्चे कुछ भी न पढ़ो बुद्धि से काम लो । अभी जो शरीर निर्वाह के लिए पढ़े हुए हैं उनको शरीर निर्वाह के लिए प्रबंध तो करना ही है । बाकी तुमको अपना बनाना है । पूछते जाओ । हरेक का अपना-अपना कर्म का हिसाब-किताब है । अविनाशी सर्जन से पूछते जाओ, श्रीमत लेते जाओ । अभी क्या करना है, मेरे ये सरकमस्टान्सेज हैं हम क्या करें । सबको बताते जाएँगे । सारी दुनिया को तो नहीं आना है ना । देखो आते कितने है, ठन करके एकदम । तुमको तो कोई भी तकलीफ नहीं है बिल्कुल ही । भले वो धंधे वाले हैं तो सब नहीं भूलेंगे ना । उनको धंधा तो करना है ना । बाकी जो यहाँ आते हैं, उनको तो ये समझाया जाता है कि ये दुनिया सड़ी पड़ी है, खलास हुई पड़ी है । बाप को याद करो, नई दुनिया को याद करो तो तुम्हारा बेड़ा पार है । सोते रहो, कुछ भी करो । जो भी आवे, तुम खटिया पर पड़े रहो, तो भी उनको अपना लक्ष्य बताओ कि तुम्हारे दो बाबाएँ जरूर हैं । जहाँ भी सेन्टर खोलो । अभी देखो, बॉम्बे में एग्जीविशन लगाएँगे, वहाँ पहले पहले\ ये बात बताओ । हम तुमको एक बात समझाते हैं कि तुमको बाप कितने हैं? एक लौकिक और दूसरा भक्तिमार्ग में परमपिता, ओ गॉड फादर याद जरूर करते हो । इससे सिद्ध होता है कि दो बाप है । एक बड़ा बाप है सबका और वो है हर एक. का अलग- अलग कुटुम्ब का । अब ये बताओ, उनको क्यों याद करते हैं? जरूर कोई समय में वो सुख देते होंगे । तो समझ नहीं सकते हो कि वो स्वर्ग की स्थापना करते हैं? सो तो हम जानते हैं, तुम नहीं जानते हो । बाबा भी कहते हैं बच्चे । तुम कुछ नहीं जानते हो । अपने जन्मों को भी नहीं जानते हो । मैं तुमको बताता हूँ । तुम भी ऐसे कह सकते हो ना कि तुम नहीं जानते हो, हम जानते हैं कि वो बड़ा बाबा है और वो छोटा बाबा है । वो जन्म-जन्म मिलता है, हद का वर्सा मिलता है और वो एक ही बार मिलता है, जबकि वो आते हैं स्वर्ग की स्थापना करने । जब स्वर्ग की स्थापना करते हैं तो नर्क का विनाश । सतयुग की स्थापना करते हैं तो कलहयुग का विनाश । सो सामने देखते हो । हम राय देते हैं, श्रीमत देते हैं । श्री-श्री से मिली हुई मत तुमको देते हैं कि मुझे याद करो तो तुम स्वर्ग का मालिक बनेंगे । इसमें लिखने पढ़ने की कोई भी दरकार है? बुढ़ियों के लिए और अंजान के लिए तो बिल्कुल सहज है । खासकर के बुडिढयाँ; क्योंकि वो तो मरने के लिए तैयार हैं ना । तो उनके लिए तो और ही बहुत सहज है । तकलीफ से और धक्का खाने से ही छुड़ा देते हैं । अच्छा, अभी बहुत क्या सुनावे बच्चों को । बाप तो आते हैं तुमको सदैव हर्षाने के लिए वा शांत रहने के लिए और सुखी रहने के लिए । यहाँ तो न है शांति, न है सुख । दोनों नहीं हैं ना । घर-घर में देखो कितनी... कलह है । तो भले 50 बगुले बैठे हुए हैं, हंस अपनी मौज में रहे । उनको रहने की पावर है, भले वो क्या भी आपस में झगड़ा करते रहें । हम तो अपनी मौज में रहेंगे । झगड़े के बीच में नहीं पड़ना चाहिए । क्या करें, ये ज्ञान नहीं लेते हैं तो लड़ते ही रहेंगे । हम राय देंगे । तो ऐसे नहीं है कि उनके साथ मिल जाना पड़ता है । हंस के साथ बगुले का और बगुले के साथ हंस को बुद्धि का योग नहीं लगाना । हंस का बुद्धि का योग बाप के साथ रहना है, तभी उनको हंस कहते हैं । तो घर में रहने की युक्तियाँ बहुत हैं । किसको भी युक्ति न आती हो तो पूछे । घर में ये-ये हंगामें में क्या करूँ? बाबा बहुत बताएगा । श्रेष्ठ बनने की मत बड़ी अच्छी देंगे । इनसे ज्यादा श्रेष्ठ मत देने वाला और कोई होता ही नहीं है । इसलिए नाम है श्रीमत भगवत गीता । भगवान की श्रीमत । भगवान तो है ही सबसे ऊँचे ते ऊंचा भगवत । स्वर्ग का रचता है तो जरूर ऐसी मत देंगे जो स्वर्ग का मालिक बने ।.........................अच्छा, टोली ले आओ । एक अक्षर सुनने से ही बच्चों को नशा चढ़ जाना चाहिए ।......गुरू भी मंत्र पहले देते हैं कान में, फलाना करो । तुम भी तो मंत्र दो ना कि बेहद के बाप को याद करो और वर्से को याद करो । सो भी याद, इसमें जपना कुछ रहता ही नहीं है । बाप को याद करो, वर्से को याद करो । न बाबा-बाबा करना है, न वर्सा-वर्सा करना है । वो पुकारती हैं ना कि मुझे जहर देने वाले से बचाओ । ...... ..तो उनको क्योर तो जरूर करना पड़े । यह तो समझ की बात होती है । लोग डिफीकल्ट समझते हैं कि गृहस्थ व्यवहार में रहकर हम ये पुरानी दुनिया को भूलें । ये क्यों नहीं होता है? ये कोई बड़ी बात तो है नहीं । पुराने मकान में रहते-रहते नए मकान को कैसे याद करते हैं? नई दुनिया तो याद आएगी ना । तो भला नई दुनिया को याद करो और बाप को याद करो, बात एक ही हो जाएगी और पवित्र तो रहना ही है । कहा जाता है ना, गृहस्थ व्यवहार में रहते हुए कमल फूल के समान पवित्र होकर दिखलाओ । मात-पिता और बापदादा का मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति यादप्यार और गुडमार्निग ।