21-09-1964     मधुबन आबू    रात्रि  मुरली    साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हेलो, गुड इवनिंग यह इक्कीस सेप्टेम्बर का रात्रि क्लास है

बाप और बच्चों का स्वीटेस्ट सम्बंध । इसको प्यारा कहा जाता है । कहा जाता है ना - स्वीट, स्वीटर फिर स्वीटेस्ट । बाप भी बहुत मीठा, प्यारा, तो बच्चे भी बहुत मीठे, प्यारे; क्योंकि इनको पहचान मिलती है कि बरोबर फिर कल्प के बाद मीठा बनने के लिए मीठे शिवबाबा की आकर संतान बनते हैं । संतान थे, फिर भूल जाते हैं । फिर गोया जैसे कि रावण की संतान बन जाते हैं । हम थे ईश्वर की संतान । तो ये कितना स्वीटेस्ट सम्बंध है और वो फिर उनके अगेंस्ट कितना कडुवा सम्बंध है । कडुवा बंधन कहें । सम्बंध न कहें; परन्तु बंधन कहें अथवा जीवनबंध । जबकि स्वीटेस्ट बाप है तो जरूर बच्चों को इतनी खुशी का पारा भी चढना चाहिए । चढ़ना है पुरुषार्थ से; क्योंकि वहाँ से अपनी जंजीरों को काटना है । ऐसे कहेंगे ना, इस समय बाप के सिवाय और कोई की भी याद न पड़े । अब ये कब हो सकता है? जबकि शरीर छोड़ने का समय आता है । इतना पुरुषार्थ करना होता है पिछाड़ी में और कोई भी याद न पड़े । फिर इसको अव्यभिचारी याद भी कहो, क्योंकि एक के साथ याद वा एक की पूजा उसको अव्यभिचारी पूजा या अव्यभिचारी याद कहा जाता है । यहाँ पूजा तो करनी नहीं होती है । वहाँ पूजा करनी होती है । पूज्य बनने के लिए फिर पूजा छूट जाती है । फिर सिर्फ याद रहती है । भक्तिमार्ग मे किसकी भी याद करे, शिव की या त्रिमूर्ति मे से कोई की भी तो इतना कोई फल नहीं मिल सकता है, जितना इस समय की याद में फल मिलता है; क्योंकि उस समय की याद में किसको ये पता नहीं पड़ता है कि हमको इसकी याद से मिलना क्या है । यह तो बच्चे जानते हैं कि बाप की याद से बाप का वर्सा मिलना है । बड़ी प्राप्ति है । भक्तिमार्ग में प्राप्ति का कोई पता नहीं रहता है । इस समय में समझा जाता है कि भक्तिमार्ग में प्राप्ति तो नहीं, परन्तु और ही कंगालपना होता जाता है । देखो, भक्तिमार्ग कौड़ी जैसा बना देता है ना । तो अभी बच्चे जानते हैं कि एक बाप की याद में रहना है । भक्तिमार्ग में तो सभी मित्र-संबंधी भी याद पड़ते हैं ना । देवताओं की भी याद या पूजा करते हैं और फिर मित्र-संबंधियों की भी याद बहुत रहती है । यहाँ तो न मित्र-संबंधियों की याद है, न कोई देवी-देवताओं की याद है । सिर्फ एक की याद है । तो और ही तकलीफ से छूट जाते हैं । बहुतों की याद से अच्छा है कि एक को ही याद रखें तो और ही सहज हो जाता है । वहाँ तो बुद्धि भटकती रहती है । इसमें बुद्धि को भटकने की कोई जरूरत नहीं है । बस एक के साथ जो जितना-जितना योग लगाते हैं या बाप को याद करते हैं, उनको बहुत ही प्राप्ति होनी है, क्योंकि बाप की याद से वर्सा और वर्से की याद से जरूर बाप भी याद आएंगे । ये दोनों का कनेक्शन है । वर्सा अक्षर लगता ही है बाप के साथ और बाप के साथ वर्सा का अक्षर लगता है । बच्चे ये जानते हैं कि बाप से ही प्रॉपर्टी का वर्सा मिलता है, और कोई से भी नहीं मिलता है । यहाँ लौकिक बाप से हद का, वहाँ पारलौकिक बाप से बेहद का वर्सा मिलता है । ये सिर्फ तुम बच्चे जानते हो, जिन्होंने बाप द्वारा अपने बाप को जाना है । बाप ने बच्चों को शो किया है, बच्चों को फिर बाप का शो करना है । कैसे? कि अभी हमको बेहद का बाप मिला है, दो बाप तो चलते आए हैं, इसलिए अब अपने बाप से ही योग जुटाते हैं । ऐसे नहीं है कि उन बाप से कोई टूट जाती है । वो होते हुए भी फिर उस बाप को याद करना हैं; क्योंकि इस कलहयुगी पतित गृहस्थ व्यवहार में रहना तो है जरूर । तो गृहस्थ व्यवहार में रहकर फिर अपनी अवस्था को जमाना है; परन्तु जो बंधन मुक्त हैं वो तो बाप के साथ भी रह सकते हैं; क्योंकि बाप के साथ में भी तो चाहिए ना । मां-बाप और कुछ तो बच्चे घर में चाहिए ना । तो जो भी रहते हैं सो सभी नम्बरवार और पुरुषार्थ अनुसार । बच्चे जानते हैं कि बरोबर गुप्त वेश मे बाप आए हैं । इसको गुप्त वेश कहेंगे । देखो, वेश तो है ना मनुष्य का । बाप स्वयं आकर कहते हैं कि मैं इनमें इनका रथी बना हूँ । यहाँ कोई घोड़े-गाड़ियों की बात नहीं है । यहाँ तो रथ इनको ही कहा जाता है । वो अर्जुन का रथ समझते हैं । नहीं, ये ब्रह्मा का रथ है । तो ब्रह्मा से ब्राह्मण पैदा हो सकते हैं । अर्जुन से ब्राह्मण कैसे पैदा होंगे? तो ऐसे-ऐसे बच्चों को अपने साथ आपे ही ये वार्तालाप करना चाहिए । उसको विचार-सागर-मंथन कहा जाता है । तो कहाँ भी हो, भले विलायत में हो, तो भी यहाँ तो याद करना है कि बाबा आया हुआ है । जरूर बाबा आए हुए हैं तो फिरता होगा और देखते हो कि कल्प पहले मुआफिक विलायत मे भी होगा, कोई बॉम्बे होगा, कोई कहाँ होगा । अभी तो तुम जान गए हो कि वहाँ कोई शहर, गाँव वगैरह तो लिखे हुए हैं नहीं । युद्ध का मैदान है । यूरोपवासी यादव कौरव पाण्डव क्या करत भए? यादव किसको कहा जाता है? किसको मालूम थोड़े ही है । यादव कौन थे, ये गीता से कभी भी पता नहीं पड़ता है । अब तुम बच्चों को पता पड़ा कि यादव इन्हों को कहा जाता है । आगे इनको तो यूरोपियन्स कहते थे ना । अभी उन लोगों ने इनका नाम बदल दिया । जरूर कल्प पहले भी ऐसे ही बदला होगा और श्रीमत पर बदलाया होगा सब कुछ । बरोबर उन्हो को ही यादव कहा जाता है, जिन्होंने बोंब्स वगैरह बनाए हैं । वहाँ तो सिर्फ लिख देते हैं मूसल । अभी मूसलों से क्या हुआ? अभी तो प्रैक्टिकल में जानते हो ना कि मूसलों से क्या होता है । गीता से थोड़े ही मालूम पड़ता है कि बोंब्स होते हैं, फेंकेंगे तो सारा यदुकुल खलास हो जाएगा । ये थोड़े ही बुद्धि में आता है । अभी मालूम पड़ता है बच्चों को कि बरोबर ये ऐटोमिक बोंब्स कल्प पहले भी बने थे जरूर, जिनसे इन्होंने अपने कुल का विध्वंस किया था । अभी तुम बच्चे तो सम्मुख हो और जैसेकि बाप आए थे, संगमयुग पर सुनाया था, फिर संगम पर बैठकर सुनाते हैं । कल्प पहले भी ऐसे ही तुम बच्चों ने वेदशास्त्र वगैरह पढ़े हुए होंगे । फिर आकर सम्मुख बच्चों को पढ़ा रहे है । गीत भी है - जो पिया के साथ है । देखो, है ना फिर । तो बच्चों को वास्तव में चलते फिरते उठते खुशी का पारा तो चढ़ा रहना चाहिए ना । इसको, मम्मा को, तुम बच्चों को, सबको । भले ये गृहस्थ व्यवहार से अलग हो गए हैं । वैसे तुम भी अलग हो गए; क्योंकि भट्‌ठी में पड़ना था । जरूर कल्प पहले भी ऐसे ही भागे हुए होंगे नदी पार करके । अगर कृष्ण गया होगा तो कृष्ण के सब सम्बंधी वगैरह भी चले गए होंगे । ये भी ऐसे ही है । तुम भी तो सम्बंधी ठहरे ना । सब नदी पार करके गए थे । कोई टोकरी और नंद की तो बात ही नहीं है । न कृष्णापुरी में ही कोई डर की बात होती है । कंस, जरासिंधी भी यहाँ की आसुरी सम्प्रदाय को कहा जाता है । तो जब आसुरी सम्प्रदाय है वहाँ कृष्ण तो हो भी नहीं सकते हैं । बाबा ने समझाया है ना कि देवताओं का पाछा या पैर इस पुरानी सृष्टि पर नहीं पड़ते हैं । अगर द्वापर कहे तो भी पुरानी है । देवताएँ तो पुरानी सृष्टि पर हो भी नहीं सकते हैं । इससे सिद्ध होता है कि कृष्ण का नाम भूल से डाल दिया है । कृष्ण नाम देने से ब्राह्मण कुल का ही पता नहीं पड़े । नहीं तो ब्राह्मण खुद गाते हैं कि ब्राह्मण देवी-देवताय नमः । परमपिता परमात्मा ने ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण, देवी-देवता और क्षत्रिय धर्म स्थापन किए और अब तुम जानते हो कि बरोबर कर रहे हैं । ब्राह्मण धर्म स्थापन हुआ, फिर देवी-देवता और क्षत्रिय धर्म में आएँगे और ये ब्राह्मण कुल में तो एक ही जन्म है । देखो, कितना छोटा कुल है । कितना फर्क है! देखो, देवताओ के लिए भी तो सारा यहाँ तक दिया है । क्षत्रियों के लिए भी भुजाएँ दी हैं । वैश्य के लिए पेट दे दिया है । बाकी कलहयुग को लम्बी टाँगें दी हैं । ये भी इस समय में बच्चों की बुद्धि में बैठता है । एक ही बात बच्चों को अच्छा निश्चय हो जाए कि हम आत्माएं हैं और शरीर लेते-लेते; हमको 84 जन्म आकर पूरे हुए हैं । अभी बाप आए हैं लेने के लिए ।....... घर-गहस्थ व्यवहार में रहकर अपने को आत्मा निश्चय करें और बाप को याद करते रहें । बाबा ने तो बता दिया है ना कि याद करते-करते अपना चार्ट निकालते रहो कि बाबा की याद में कितना समय गया । अब ये तो बच्चों को जरूर रखना पड़े । भले लिखे नहीं; परन्तु अपने अपन को समझ तो सकते हैं ना कि हम कितना समय बाप को याद करते हैं । (म्युजिक बजा) मीठे-मीठे सिकीलधे ज्ञान सितारों प्रति मात-पिता व बापदादा का दिल जान, सिक व प्रेम से नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार याद प्यार और गुडनाइट ।