21-09-1964     मधुबन आबू    प्रात:  मुरली    साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हेलो, स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुलभूषणों को हम मधुबन निवासियों की नमस्ते, आज सोमवार सेप्टेम्बर की इक्कीस तारीख है, प्रात: क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।

रिकॉर्ड :-
भोलेनाथ से निराला, गौरीनाथ से निराला कोई और नहीं…
 

ओमशांति! बच्चों ने गीत सुना । कौन-से बच्चों ने? प्रजापिता ब्रह्माकुमार और कुमारियों ने गीत सुना; क्योंकि बाप तो कहते हैं कि मैं ब्रह्माकुमार और कुमारियों के आगे ही ये ज्ञान सुनाता हूँ, क्योंकि बच्चे जानते हैं कि कोई भी शूद्र कुमार वा कुमारी वा रावण कुमार वा कुमारी यहाँ नहीं बैठ सकते हैं । लॉ नहीं कहता है, क्योंकि नाम ही पड़ा हुआ है ब्रह्माकुमार और कुमारी । ब्रह्माकुमार और कुमारी माना ही प्रजापिता ब्रह्मा की संतान । ब्रह्माकुमार और कुमारियां जानते हैं कि हमारे ब्रह्मा बाबा का बाबा तो शिव है और फिर हम आत्माओं का बाप तो शिवबाबा है ही । बाप बैठकर समझाते हैं, जिसके लिए ये गीत सुना कि भारत की बिगड़ी को बनाने वाला है । अभी भारत की बिगड़ी को बनाना है । भारत की बिगड़ी क्यों है? भारत हीरे जैसा था । भारत बहुत ही प्राचीन सुखधाम था; क्योंकि नई दुनिया में, नए भारत में नए देवी-देवताओं का राज्य था और बरोबर भारत हीरे जैसा था । तो भारत की अभी बिगड़ी हुई है । भारत की बिगड़ी बनाने वाला, बिगड़ी को सुधारने वाला और बिगाड़ने वाला ये सिवाय तुम ब्राह्मणों के और कोई जान नहीं सकते हैं । बरोबर भारत बहुत ऊँच था, अब भारत बहुत नीच है । राजधानी थी । ऐसे कोई भी दूसरे धर्म के लिए नहीं कहेंगे कि ये बहुत ही ऊँच था । क्या ऊँच था? कोई भी बादशाही तो थी नहीं । पहले-पहले ही सतयुग में भारत की बादशाही थी । सृष्टि के आदि में ही भारत की बादशाही थी; क्योंकि कोई भी धर्म स्थापन करने वाले की आदि में कोई बादशाही होती ही नहीं है । कभी भी कोई स्थापना करने से कोई की बादशाही नहीं होती है । ये तो बादशाही स्थापन करते हैं सगम में, क्योंकि जो बादशाही गुमाई हुई है, फिर स्थापन करते हैं । इसलिए कहा जाता है कि फिर से बिगड़ी बनाने वाला बाप आया है । सतयुग के बाद फिर ये तो जरूर है कि त्रेता-द्वापर और कलियुग तो आना ही है । तो सबकी बिगड़ी बननी ही है, क्योंकि बच्चों को समझाया गया है कि सब धर्मो में आपस में हंगामें बहुत हैं । देखो, चीनियों का आपस में, जो भी बुद्ध वाले हैं – बर्मा चीन जापान भूटान सब तरफ जहाँ भी बौद्धी धर्म हैं, ये सब आपस में लड़ते हैं । क्रिश्चियन आपस में लड़ते हैं । इस्लामी वाले काले लोग आपस में लड़ते हैं । सब आपस में लड़ते ही लड़ते हैं और अनेक धर्म भी हैं । तो अभी सभी अनेक धर्मो की भी बिगड़ी हुई है । इस समय में कई तमोप्रधान अवस्था में हैं, जड़जड़ीभूत अवस्था में है यानी कोई भी हालत में सबको उथल खाना ही है । इस समय में सबको तमोप्रधान बनना ही है । जबकि तमोप्रधान रावण बना ही देते हैं तो फिर रावण की बिगड़ी को राम आ करके बनाते हैं । अभी तुम बच्चे जानते हो कि राम किसको कहा जाता है माना शिव के गले की माला । रुद्र और शिव में कोई फर्क नहीं है । इसका नाम ही है रुद्र माला और सब धर्म वाले जाप जरूर करते हैं । क्यों? सभी धर्म वालों का सद्‌गति दाता रुद्र माना शिव है; परन्तु एक हो गया ना । जरूर कोई साथी भी तो होंगे । तो फिर रुद्र की माला बहुत सर्विस करती है । याद रखना तुम बच्चों को बहुत सर्विस करनी है । तुम्हारी बहुत पूजा होती है । रुद्र यज्ञ भी रचते हैं, परन्तु उनसे भी जास्ती तुम्हारी पूजा होती है । वो तो रचते हैं भारत में, परन्तु सारी दुनिया में; क्योंकि तुम सारी दुनिया को पावन बनाने में सर्वशक्तिवान से मदद लेकर सारी सृष्टि को पावन बनाती हो । तो फिर सारी सृष्टि को पूजना चाहिए तुम बच्चों को । बाबा ने उस दिन समझाया कि.....बाप है बड़ा ।...रुद्र का बड़ा भी बनाते हैं मिट्‌टी का और छोटे भी बनाते हैं । उसे शिव या रुद्र ही कहेंगे; क्योंकि नाम है रुद्र यज्ञ । उसको रुद्र ज्ञान यज्ञ नहीं कहेंगे, रुद्र यज्ञ कहेंगे । इनकी पूजा होती है; क्योंकि सर्विस करते हैं । बाप ने समझाया था कि भारत में तो रुद्र यज्ञ रचते हैं और मिट्‌टी के बनाकर बहुत पूजा करते हैं । लाखों का पूजा करते हैं । अच्छा, माला जो बनती है वो है फिर अनन्य की । उसमें तो जितना भी चाहे इतना बनावें, परन्तु रुद्र माला फिर गाई हुई है 8,108,16108 । इन्होंने मदद की थी । मदद तो बहुतों ने की; परन्तु जो बहुत मदद करेंगे वो ही तो नजदीक वाले होंगे ना । तुम अच्छी तरह से जानते हो कि हम पुरुषार्थ ही यह करते हैं कि रुद्र की माला में नजदीक पहुँचे । कैसे? याद से, जिसको फिर योग कह देते हैं । इसको बहुत सहज भी कहते हैं, क्योंकि बच्चे के लिए बाप को याद करना बड़ा ही सहज होता है । देखो, जन्म से ही बाबा-मम्मा वो सीखते ही जाते हैं । ऑटोमैटिकली भी वो लोग सीखते ही जाते है । तो देखो, बाबा-मम्मा के तो आ करके बच्चे बने हो अच्छी तरह से । अभी कहते भी हो तुम मात-पिता..... । वो तो गाते रहते थे, समझ नहीं सकते थे; परंतु ये जरूर है कि तुम मात-पिता जरूर निराकार को ही गाते थे । तुम जानते हो कि हम उन मात-पिता के सम्मुख बैठे हुए हैं । एक मात-पिता के तुम सन्मुख बैठे हुए हो और तुम जानते हो कि बरोबर वो मात-पिता बैठकर हमको राजाई प्राप्त करने के लिए शिक्षा देते हैं । यूँ तो राजा को शिक्षा देना चाहिए राजा बनाने की, बैरिस्टर को शिक्षा देना है बैरिस्टर बनाने की, इंजीनियर को शिक्षा देनी है इंजीनियर बनाने की, क्योंकि वो इंजीनियर खुद है, परन्तु यहाँ तो वंडरफुल बात है । परमपिता परमात्मा, जो ज्ञान का सागर है, जिसको ही सर्वशक्तिवान भी कहा जाता है । सर्वशक्तिवान तो और कोई को भी नहीं कहेंगे । उसको अंग्रेजी में कहते हैं वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी । अथॉरिटी के लिए अंग्रेजी समझाया है कि वो ज्ञान का सागर है । सभी वेदो ग्रंथों, शास्त्रों उपनिषदो वगैरह-वगैरह जो भी हैं ना, उन सबको वो जानते हैं । है निराकार; परन्तु निराकार को ही कहा जाता है ज्ञान का सागर । अंग्रेजी में कहा जाता है नॉलेजफुल । फिर उसके पिछाड़ी में कहते हैं ब्लिसफुल रहमदिल यानी सबके ऊपर सर्वो दया करने वाला । रहम भी कहते हैं, दया भी कहते हैं । सर्व पर दया करना । सर्व पर कहाँ तक? सारी सृष्टि पर; क्योंकि सारी सृष्टि तमोप्रधान बनी है । पाँच तत्वों के ऊपर भी दया. क्योंकि पाँच तत्व भी सतोप्रधान बन जाने वाले हैं, जो अभी तमोप्रधान हैं । इसके लिए इनको कहा जाता है बेहद सर्वो दया का मालिक । नहीं तो जो सर्वोदया-सर्वोदया कहते हैं, वो बिचारे इन बात से क्या जानें कि तत्व भी सतोप्रधान बनने हैं । तो ड्रामा में ये नूंध है कि बरोबर जब बाप आते हैं तो जो ये तमोगुणी बन गए हैं वो सतोप्रधान बनते हैं । देखो, कितने...वगैरह ये सब होते हैं । नुकसान तो होता है ना । तो बोलता है कि सबके ऊपर दया करते हैं, जो अभी बिगड़ती है । देखो, भारत की कितनी बिगाडते हैं । बहुत तूफान, बहुत बरसात हो करके कितनों को डुबाय देते हैं, तंग करते हैं ना । तो बच्चे समझते हैं कि वहाँ पानी के तत्व भी तमोगुणी नहीं होते हैं । सतोप्रधान होते हैं । कभी भी वहाँ मूड वगैरह नहीं होती है । तो ये बिगड़ी को बनाने वाला कौन? ये तो बच्चे अभी जानते हैं कि वर्ल्ड ऑलमाइटी कहा जाता है । अच्छा, जब वर्ल्ड ऑलमाइटी बाप है तो देखो वर्ल्ड ऑलमाइटी राज्य स्थापन करते हैं । खुद राजा-महाराजा नहीं है, खुद तो निराकार है । उसको नहीं कहेंगे कि कोई महाराजा है या विश्व का रचने वाला है और उसके ऊपर राज्य करने वाला है । नहीं, तुम्हारे से ये राजाई रचाते हैं । करन-करावनहार है ना । तुम्हारे से फिर ये स्वराज्य की, देवी-देवता राज्य की स्थापना कराते हैं । हमेशा कराते ही रहते हैं, करते हैं नहीं कहेंगे । तुम जानते हो कि अभी ऑलमाइटी जो है वो ऑलमाइटी राज्य ही स्थापन करवाते हैं । तुम बरोबर कहलाएँगे कि हम हैं वर्ल्ड ऑलमाइटी अथॉरिटी, विश्व के मालिक । तुम्हारे ऊपर और कोई की भी अथॉरिटी नहीं चलती है । कोई भी आ करके तुम्हारे ऊपर हुक्म नहीं कर सकते हैं । भारत में कोई ने आ करके हुक्म किया ना । मुसलमान आए, अंग्रेज आए । सतयुग में ये लोग होते ही नहीं हैं तो पीछे क्या है! । अभी इनको ही सिद्ध करना है कि सर्व शास्त्र मई शिरोमणि श्रीमद भगवत गीता है । अंग्रेजी में सुप्रीम कहा जाता है । भगवत गीता से भगवान ने बैठ करके बच्चों को राजयोग सिखलाया है । तुमको ये सिद्ध करना पड़े कि ये विश्वविद्यालय स्टैब्लिश करने वाला कौन है । जब भी तुम विश्व विद्यालय लिखते हो, इंगलिश मे या हिन्दी में भी लिखते हो तो तुम नीचे से ब्रैकेट में उनका अर्थ लिख दो कि वर्ल्ड यूनिवर्सिटी, तो तुमको कभी कोई कुछ कह नहीं सकेगा । तुम भले हिन्दी मे लिख दो विश्वविद्यालय, ये है ही बरोबर हिन्दी का अक्षर । विश्व विद्यालय हिन्दी में कोई न समझे तो ब्रेकेट में उसका अर्थ लिख दो वर्ल्ड यूनिवर्सिटी । कभी तुमको कोई कुछ कह नहीं सकेंगे; क्योंकि आगे कुछ लिखा हुआ था; परन्तु वो कायदेसिर न लिखे हुए होने के कारण तुमको लिखने नहीं दिया, क्योंकि तुमको पत्थर तो मारना है ना । भले कोई आकर कहे कि क्यों लिखा है? तो तुम समझाएँगे ना । तो उसमें क्या लिखना चाहिए? हिन्दी तो आजकल कॉमन है । हिन्दी में भी लिखना है और इंगलिश में भी लिखना है; परन्तु वो जो ईश्वरीय विश्वविद्यालय लिखते हो तो विश्वविद्यालय के एकदम आगे ब्रैकेट में उनका अर्थ लिख दो - 'वर्ल्ड यूनिवर्सिटी' ।........युक्तियाँ चाहिए । बाप तुमको अथॉरिटी देते हैं । युक्ति बताते हैं । फिर तुमको कोई कुछ कर नहीं सकेंगे । लिखना तो जरूर पड़े ना । फिर लिखना तो तुम बच्चों को होता ही है कि वर्ल्ड यूनिवर्सिटी कौन स्थापन कर सकेंगे । नीचे लिखा हुआ है स्टैब्लिश्ड बाई वर्ल्ड हैविनली गॉड फादर । वर्ल्ड हैविनली गॉड फादर का अर्थ ही है हैविन स्थापन करने वाला । हैविन स्वर्ग को कहा जाता है । ये बच्चों को समझाते हैं, बिगड़ी तो बनती है तुम जानते हो कि हम मनुष्य से देवता बनते हैं । सो तो बरोबर मनुष्य की बिगड़ी है तब तो उनको देवता बनाते हैं ना । मनुष्य की बिगड़ी है माना असुर है; इसलिए देवता बनते हैं । असुर और देवता की लड़ाई की तो बात नहीं । तुम असुर सो देवता बनते हो, इसमें लड़ाई का तो प्रश्न ही नहीं उठता है । ये जो आसुरी सम्प्रदाय, जो बेगुण हैं, वो दैवीगुण धारण कर देवता बनते हैं । बाकी तुम बच्चों की कोई लड़ाई की तो बात ही नहीं है । तो फिर ये जो अच्छे-अच्छेपढ़ाने वाले हैं वो फिर ये विचार-सागर-मंथन करते हैं । ये तो तुम जानते हो बरोबर सारा मदार है पवित्रता के ऊपर । ये लिखा भी हुआ है कि माताओं के ऊपर, अबलाओं के ऊपर अत्याचार होंगे । काहे के अत्याचार होंगे? ये भी तो समझ की बात है ना । क्यों अत्याचार होंगे? तुम देखते हो ये अबलाओं के ऊपर अत्याचार होते हैं, क्योंकि उनको विख नहीं मिलता है । कंस जरा सिंधी शिशुपाल ये सभी जो असुर हैं उनको विख नहीं मिलता है । गाया हुआ है कि बरोबर आकर अमृत लेते थे, लेते-लेते फिर भी वो विख के शौकीन होने से फिर भी जा करके अबलाओं के ऊपर अत्याचार करते हैं । अभी फिर भी ऐसे होता है । बहुत बच्चियां लिखती हैं- बाबा, कैसे हम अपन को पवित्र रखें? बाबा ने कितनी बार समझाया है कि बच्चे, अपने पति से युक्ति से चलो । त्रिया चरित्र भी गाया हुआ है, बहुत होशियारी होती है । तुम बच्चों ने खेल नहीं देखा है । एक त्रियाचरित्र कुछ गाया हुआ है, उसमें एक खेल है, जिसमें राजा और स्त्री, वो अपने को बचाने के लिए चरित्र चलती है । यानी वो तो फिटारका है, वो स्त्री को पसंद नहीं किया, निकाल दिया था, फिर स्त्री उनसे बैठ करके और प्यार से बच्चे पैदा करती है, उनको पता नहीं पड़ता है । एक नाटक है । तो दिखलाते हैं कि त्रिया में चरित्र कितने हैं । तो तुमको बाप चतुराई भी सिखलाते हैं कि जब भी कोई माँगे तो तुम बहुत बहाने कर सकती हो । फिर बहुत ध्यान में, भक्ति में बैठ जाओ । उफ! मुझे बाबा साक्षात्कार कराते हैं । कहते हैं काम शत्रु है और उस पर जीत पहनो फिर तुम महारानी बनेंगी । मुझे वैकुण्ठ का साक्षात्कार होता है, मुझे विनाश का साक्षात्कार होता है । मैं देखती हूँ कि ये पतित दुनिया विनाश हो रही है । मैं वैकुण्ठ भी देखती हूँ । ध्यान में जाती हूँ तो बाबा कहते हैं कि खबरदार! जब विख पिएँगी तो जहन्नुम में चली जाएँगी । मैं स्थापना कर रहा हूँ । मुझे वैकुण्ठ भी दिखते हैं । पवित्र बनेंगी तो वैकुण्ठ का मालिक बनेंगी । मैंने तो प्रतिज्ञा की है, जैसे मीरा ने प्रतिज्ञा की, वैसे मुझे भी तो साक्षात्कार होता है । ऐसे तो नहीं है कि ढिंढोरा पिटवाने की बात है । ये तो पति और स्त्री का आपस में है । वो बैठकर उनको अच्छी तरह से समझावे कि मैं कभी नहीं कहूँगी, मैं जहन्नुम में थोड़े ही जाऊँगी । तुमको अगर विख चाहिए तो भले तुम दूसरी शादी करो । मैं यहाँ बैठी हूँ । मुझे बाप से अपना वर्सा लेने दो । तुम्हारे गीता में भी है ना कि काम महाशत्रु है, इस पर जीत पहनो तो तुम महारानी बनेंगी । मुझे स्वप्न में बहुत बोल देते है; परन्तु वो कौन-सी चाहिए? वो नष्टोमोहा वाली चाहिए । ऐसे नहीं कि बस हम पवित्र बनेंगी और सब बच्चों में मोह होवे और अगर वो निकाल देवे तो भी उनकोयाद करती रहे, बच्चों को याद करती रहे । उनका काम नहीं चलेगा, उनकी बिगड़ी कोई बन नहीं सकेगी । यहाँ तो बिल्कुल एकदम साफ दिल चाहिए; क्योंकि मीरा तो कुमारी थी । इनके पास तो बछड़े बहुत हैं, बच्चे और बच्चियाँ, जिनमें मोह जाता है । मोह की रग बढ़ती है ना । नहीं तो देखो कन्याएँ हैं, सिर्फ बाप में, भाई में मोह होगा भाई-बहनों में मोह होगा और किसमें मोह हो सकता है! बाप में, माँ में, बहन में, भाई में और के साथ उनका क्या तालुक है? एक तरफ मे लगता है सिर्फ माँ-बाप, भाई-बहन, जब शादी करती है तो वो प्लस हो जाता है यानी और जास्ती । बढ़ गया, डबल हो गया । फिर पति की तो और ही बात मत पूछो । फिर पति में, सासू में, ससुरे में, फिर बच्चे पैदा हुए तो उनमें कितना मोह रहता है । तो वृद्धि डबल हो जाती है । कन्याओं में सिंगल, तो इनमें डबल । उसमें भी नंबरवन तो हो जाता है पति का । समझा ना! तो नष्टोमोहा भी होना चाहिए ना । ऐसे नहीं है कि फिर वो निकाल देवे या छोड़ देवे और फिर बोले कि हम नहीं जाएँगी, फलाना नहीं करेंगी । नहीं, पीछे तो स्वतंत्र हो ये समझ लेंगे । जैसे राजाऐ घर छोड़ते हैं तो पहले गुरू के पास जाते हैं तो देहअभिमान तोड़ने के लिए वो सफाई आदि कराते हैं, काठी कराते हैं । चौंका जलाते हैं, खुद तो पकाते हैं नहीं; परन्तु आश्रम को. .. सफाई रखना ये कराते हैं जिससे उनका देहअभिमान टूटे । यहाँ भी तो यहाँ कायदा है । कभी भी कोई बड़े घर की आएगी तो उनका देह-अभिमान तोड़ने के लिए सब कराते है । छोटे घर वालियों का देहअभिमान क्या है, वो पोथा तो पहनती ही रहती हैं, बुहारी तो पहनती ही रहती हैं, बर्तन तो मांजती रहती हैं । जो देह-अभिमानी बड़े घरवालियाँ होती हैं कहती हैं हम फलाने की हैं, हमने कभी बासन नहीं माजा हमने कभी झाड़ नहीं लगाया; इसलिए उस सन्यास में भी ये है, यहाँ भी यह है । यहाँ भी बाबा ने परीक्षा ली थी । भले धन तो बहुत ही था, मोटरें भी थीं; परन्तु देहअभिमान तोड़ने के लिए तुम सब काम करते हो, क्योंकि जैसे बाबा-मम्मा कर्म करेंगे ऐसे देखकर और भी बच्चे करेंगे । देहअभिमान तोड़ने के लिए तुम सब करते थे ना - मोटर साफ करना, धोबी का कपड़ा धोना । तो वो रस्म चली आनी चाहिए । कोई भी आवे, बोले कि हम यहाँ रहेंगी तो बोलो कि पहले तुमको ये काम करना पड़ेगा तो तुम्हारा देहअभिमान टूटे । पहले कोई भी आवे, भले होशियार भी होवे; परन्तु देखना है कि सीखने के समय भी बाली आदि सब पहनती है । उसमें कोई बड़े घर वाली तो देंगे नहीं, आएँगी नहीं । उनके लिए बड़ा मुश्किल है । गरीब की आएँगी, बाप तो है ही गरीब निवाज । तुम देखते हो बरोबर आती है । तो गरीबों के ऊपर भी मुसीबत है मार खाने की । साहूकार के ऊपर है तो गरीबों के ऊपर भी है । तो बच्चियों को युक्ति रचना चाहिए- मुझे साक्षात्कार होते हैं... .मार डालो, कुछ भी करो । भले तुम भाड़ में जाओ । क्यों अपनी जान गँवावे इनके लिए ।....जो करेगा सो पाएगा, ये करेगा तो ये पाएगा, मैं करूँगी तो मैं पाउंगी । इनके लिए मुझे थोड़े ही जहन्नुम में जाना है । तो वो सबसे नष्टोमोहा हो जाता है । ऐसे नहीं कि पति से मोह निकला तो बंदरी की मुआफिक बच्चों को ...बिगड़ी तो बनानेवाला है, ये तो बच्चे जानते हैं और बनाकर ही छोड़ना है; परन्तु ये तो बीच में है तो सही ना । अबलाओं के ऊपर अत्याचार, ये खिटपिट वगैरह उनके बिगर थोड़े ही कोई विश्व का राज्य मिलता है । निश्चय बुद्धि एकदम पक्का चाहिए अच्छी तरह से । बाबा बोलते हैं कभी भी हमारे पास चिट्‌ठी लिखते हैं- बाबा, ये बहुत मारते हैं, ये सब करते हैं । बाबा कहते हैं मारते हैं तो खूब मार-मारकर मार दें । तुम बाबा की याद में रहो । भले तुमको मार डालें, ऐसे अगर तुम याद में मर जाओ तो तुम्हारा बेड़ा पार है । ऐसे याद में मरने के लिए तो बनारस में जाकर देखो शिवकाशी-शिवकाशी विश्वनाथ गंगा बोलते ही रहते हैं । किसलिए? ताकि अंत में मुझे शिवबाबा याद पड़े । यहाँ तो बहुत ही अच्छा है, अगर तुमको कोई मार भी डाले तो क्या हुआ । लड़ाई के मैदान में मरते तो बहुत ही हैं । तुमको भी अगर इस युद्ध के मैदान में पति ने मार डाला तो उनको भी समझा दो कि हम विख नहीं देती हैं, मुझे कुछ भी हुआ, एक-दो दफा मारा तो मैं पुलिस को लिख दूंगी, तुम पकड़े जाओगे । बाबा ने बहुत दफा राय भी दी है । देखो, तुम हमको सताते हो ना । अच्छा, मैं रात को गवर्मेन्ट को चिट्‌ठी लिख दूंगी कि गवर्मेन्ट को मदद देने के लिए कि मैं पवित्र रहती थी । यहाँ भारत में पवित्र राज्य स्थापन होता है और ये मुझे पवित्र नहीं रहने देते हैं; इसलिए मैं अपना आपघात कर लेती हूँ । अपवित्र बनना इससे मरना अच्छा है; क्योंकि मैं हुक्म तो कभी तोड़ नहीं सकती हूँ । भगवानुवाच । काम महाशत्रु है । उन पर जीत पहनने से ही हम-तुम स्वर्ग के मालिक बनेंगे । तो ऐसी-ऐसी युक्ति रचनी चाहिए; परन्तु युक्ति कौन चला सकती है? जो मुट्‌ठी नष्टोमोहा हो और बाप से पूरा याद हो । अधूरी होगी, आधा उस तरफ, आधा उस तरफ में । तो एक टांग इस तरफ में, एक टांग इस तरफ में तो लटक मरती हैं, बहुत दुःखी होती हैं । यहाँ बहुत दुःखी होती हैं । जब भी देखो तो उनकी अवस्था मुरझाई हुई होगी । अवस्था मुरझाई क्यों रहती है? बाप को भूल जाती है । उनको भूलने से एकदम, जैसे छुईमुई होती है ना, एकदम सारा खिल जाती है और बाप को न याद करने से एकदम मुरझा जाती है । मासी का घर तो है नहीं । निरंतर बाप को याद करने के लिए बाप कितनी युक्तियां बताते हैं । बिगड़ी बच्चों की बनेगी ही तब जबकि बिगड़ी बनाने वाले को अच्छी तरह से निरंतर याद करें जो कहते हैं मेरे को याद करने से विकर्माजीत बन जाएँगे और फिर सर्विस करेंगी, जैसे मम्मा-बाबा या जो दूसरी बच्चियाँ सर्विस करती हैं । बाप ने मत दी है, कल्प-कल्प देते ही आए है और राजधानी स्थापन जरूर हुई है । अभी होनी तो जरूर है ना । जो कल्प पहले मुआफिक पुरुषार्थ करते हैं वो कोई छिपे थोड़े ही रहते हैं । झट पता पड़ जाता है । पीछे ये तो जरूर है कि जरूर बच्चे भी ऐसे ही बनते हैं । जो सम्पूर्ण नहीं बनते हैं; इसलिए रुद्रमाला के नीचे में चले आते हैं । फिर उनको दास-दासियाँ जरूर बनती हैं । यहाँ रहते हुए भी जो हंगामा करते हैं उनका भी तो पद है ना । कुछ भी गले में कंठी नहीं पड़ती है तो भी राजधानी मे आ जाते हैं; क्योंकि बच्चे तो बन गए ना । बहुत कपूत बच्चे हैं; पर बच्चे तो हैं ना ।..... ...... ..... 2500 वर्ष दासी-दासी नहीं बनते होंगे, तो चलो 2000 वर्ष, न 500 वर्ष, 1000 वर्ष, 500 वर्ष, न्। 100 वर्ष यानी एक - दो जन्म लेना तो पड़ता है ना । जानते हो बरोबर कि जो बच्चे बनते हैं, जो माँ-बाप के पास रह जाते हैं, उनकी फिर लाईनेज है । पिछाड़ी में आ करके कोई न कोई दास-दासी बन जाते हैं । नहीं तो भला दासी-दासियाँ कहाँ से आयें? ये भी तो समझने की बात है ना कि प्रजा को अलाऊ नहीं है । राजाई घराने में पास हो जाते हैं यहाँ से । बहुत कहती हैं कि हमको तो कृष्ण की माँ बनना है । तो बाबा कहते हैं अच्छा भाई, कृष्ण की माँ नहीं बन सको तो कृष्ण की आया बनो । कृष्ण की आया भी तो चाहिए ना जो उनको सम्भाले । कृष्ण तो माँ से भी जास्ती तुम्हारी गोद में आएगा । माँ इतना नहीं सम्भालती जितना आया सम्भालती है । आजकल भी बच्चे पैदा होते हैं, झट उनको नर्स मिल जाती है । उनको दूध वगैरह पिलाना वगैरह-वगैरह सब करती है । आजकल वो दूध भी नहीं निकालते हैं, दूध भी निकलवा देते हैं । ऐसी कोई युक्ति रचते हैं जो नर्स सम्भाले । वो दूध पिलाये । बहुत किस्म के निकले हैं । जैसे कि उनका बच्चा है । वो सम्भालती है । वहाँ तो कृष्ण है । उनको सम्भालने के लिए तो तुम बिल्कुल खुश हो । अरे! कितनी खुशी होगी । कृष्ण की जन्म अष्टमी आती है तो सब माताऐ घर में बैठकर उनको झुलाती हैं । अभी दूध कहाँ से पिलाएँगी? दूध भी तो वो पिलाती है ना । जैसे वहाँ वो दूध पिलाती है, अपना तो नहीं देती होंगी ना । कन्याएँ भी प्यार करती हैं तो माताऐ भी करती हैं; पर उनको अपना दूध तो नहीं पिलाऐगी ना । कोई न कोई छोटा बच्चा बनाए देती हैं या कृष्ण की मूर्ति रख देती हैं । खुद नहीं पिलाती हैं ना, तो बरोबर वहाँ भी खुद थोड़े ही पिलाती हैं । उनको भी ये नर्स मिलती है, ले जाती है, वो उनको दूध पिलाती रहती है । दूध पिलाती तो माँ होगी; परन्तु पालना तो नर्स बहुत करती है ना । जास्ती सुख तो उनको मिलता है ना । यहाँ देखो, कितनी माताएँ कृष्ण को बैठकर दूध पिलाती हैं, ये करती है । अरे, वहाँ तो कृष्ण तुम्हारी गोद में रहेगा । जैसे कि उनका स्नान-पानी सब तुम करती हो । वहाँबकरी का या रीड आदि का तो नहीं पिलाते होंगे । यहाँ तो बहुत पिलाते हैं । माँ नूंध पिलाती होगी, नर्स का नहीं पीते होंगे । बाबा कहते हैं ये राँग है । नर्स नहीं पिलाती है, पिलाती माँ है; परन्तु सम्भालती सारा वो है । बाबा ने हॉस्पिटल का अनुभव सुनाया था - जब आँख खोली तो देखा कि ब्लड डाल रहे थे । पता नहीं कहाँ का है । कहा कि ये बंद कर दो एकदम । ये हमको नहीं दो और आधा में छुड़ा दिया; क्योंकि नशा भी तो अपनी ताकत का रहता है ना । तो वो ताकत का रहना चाहिए, बाहर वाले का ठीक नहीं । अच्छा, कोई ब्राह्मण देवे तो दूसरी बात है । हमजिन्स ब्राह्मण का तो फिर भी अच्छा हुआ । वो तो शूद्र का हो गया । वो असर कर देवे । ये तो ब्लड एकदम रग-रग में चली जावे । हम लोग अन्न के लिए कितना कहते हैं कि किसका अन्न भी न जावे, ऐसे कोई शूद्र के हाथ से भी न खावे । फिर उसमें इनकी भी तो पावर चाहिए ना । उसमें समझ, सयानापन, अपनी पावर चाहिए । अगर कुछ भी ऐसा होना होता है कि मालूम पड़ता कि हमको ब्लड लेना पड़ेगा, तो बता देना चाहिए कि है कोई अनन्य बच्ची, जो ब्लड देय? ब्लड देने में तो कोई मनुष्य को बिल्कुल देरी नहीं लगती है । तंदरुस्त को कोई देरी नहीं लगती है । अगर तुम्हारी कोई होवे तो तुम किसको ब्लड.....ब्राह्मणों को ब्राह्मण का ब्लड होना चाहिए, परन्तु ब्राह्मण भी अच्छा हो । चलते-चलते सच्ची क्लास कमाई में ऐसी ग्रहचारी बैठ जाती है जो बात मत पूछो । अब ये तो गुड़ जाने, गुड की गोथरी जाने । मीठा गुड जाने और उनकी गोथरी जिसमें वो बैठा है वो जाने यानी बापदादा जानें । अभी समझा ना! गुड तो है ही बाबा । मीठा खण्ड तो वो ही है और ये है उनकी गोथरी जिसमें वो पड़ा है । तो वो जानें और ये जानें । तो मियॉ मिटलू भी अपन को नहीं समझना है । सब अच्छी तरह से साफ दिल होना चाहिए । साफ दिल तब ही ऊँची मुराद हासिल होती है । अंदर काला और बाहर में गोरा वो भी तो नहीं चल सकता है । यहाँ बड़े ही अंदर-बाहर के सच्चे चाहिए । तभी सच्ची दिल पर साहब राजी होते हैं । साहब राजी होना चाहिए ना । हर एक का साहब कहो या मेमसाहब का साहब कहो । मेमसाहब हो ना । मेमसाहब भी हो तो बच्चे भी हो ..बच्चयां समझती हैं कि बरोबर हमारी बिगड़ी बने । हम कुछ भी नहीं हैं । हम एक बंदर और बंदरी थीं । अभी बाबा हमको मंदिर लायक बनाता है । तो सारा विश्व मंदिर (और) उनके हम बादशाह बनते हैं । जब विश्व में बादशाह बनते हैं फिर हमको यहाँ कोठरी मिलती है, जबकि वो बैठकर पूजा करते हैं । फिर भी मंदिर में बैठने लायक बनते हैं । पहला मंदिर तो शिवपुरी, विष्णुपुरी है ना । सतयुग है ना! उसको ही तो कहा जाता है ना सूर्यवंशी शिवालय । वो शिवालय नहीं । पहले उस शिवालय में सारे विश्व के मालिक बनते हैं, राज्य करते हैं । पीछे हमारे लिए बनाते हैं, जिसमें हम पूजे जाते हैं और पूजा भी खुद अपनी करते हैं, वो भी जान गए कि हम भी करते हैं और दूसरे भी करते हैं । अच्छा, बच्चों को टोली खिलाओ । वो तो है वर्ल्ड ऑलमाइटी अथॉरिटी । हम बोर्ड बनाय रहे हैं, जिसमें सारा अच्छी तरह से लिखना चाहिए कि गीता का भगवान कौन है? श्रीकृष्ण को कभी भी कोई सर्वशक्तिवान नहीं कह सकते हैं । कैसे सर्वशक्तिवान कहें जबकि उस बेचारे की डिग्री कमती होती जाएगी क्योंकि फिर जो दिन बीतेंगे तो कला कमती होती जाएगी । सर्वशक्तिवान की कला तो हमेशा कायम रहती है ना । अविनाशी रहती है । तुम्हारी सर्व शक्ति कोई अविनाशी थोड़े ही चलती है । फिर गिरते-गिरते देखो शक्ति चली गई । फिर वो शक्ति देते हैं, इसलिए उनका ही नाम है सर्वशक्तिवान । मनुष्य को कभी नहीं कहा जाता है । अति मीठे-मीठे सिकीलधे ज्ञान सितारों प्रति मात-पिता, बापदादा का नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार नबरवार याद-प्यार और गुडमार्निग । आज सोमवार है ना । सोमवार के दिन शिव की होती है और गुरुवार के दिन शिवबाबा फिर सोमनाथ के नाम से पढ़ाते हैं । कौन-सा दिन अच्छा? दोनों में से सोमवार अच्छा? मैं कुमारका से पूछता हूँ कि सोमवार अच्छा या गुरुवार अच्छा? आज सदगुरुवार है अभी गुरुवार अच्छा, सोमवार अच्छा नहीं । है तो वो भी अच्छा भई, शिवबाबा न आए तो पढ़ाए कैसे - तो क्या अच्छा?