22-09-1964     मधुबन आबू    प्रात:  मुरली    साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हेलो, स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुलभूषणों को हम मधुबन निवासियों की नमस्ते, आज मंगलवार सेप्टेम्बर की बाईस तारीख है, प्रात: क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।

रिकॉर्ड :-
धीरज धर मनवा धीरज धर, तेरे सुख के भरे दिन आएंगे. ....
 

ओमशांति । किसने कहा और किसको कहा? क्योंकि जो भी अभी बाप बैठकर समझाते हैं सो भक्तिमार्ग में ये गाया जाता है । तो ये भी ऐसे ही है कि जब बाप आते हैं, जिसको परमपिता परमात्मा कहते हैं, वो ही आकर धीर देते हैं, और तो कोई धीर दे नहीं सकते हैं, क्योंकि सुख के दिन तो आएंगे ही जबकि बाप आएगा और सुखधाम ले जाएगा । ये तो है ही दुःखधाम । दु:खधाम से सुखधाम ले जाने वाला तो है ही बाप । वो तो गायन भक्ति का है, क्योंकि ये सभी भक्ति के गीत हैं । यहाँ बाप बैठा हुआ है, वो बोलते हैं कि बच्चे, तुम जानते हो, बच्चों को कहने की दरकार नहीं पड़ती है । ये तो बच्चे अच्छी तरह से जानते हैं कि हमारे सुख आ रहे हैं । हम सुख की राजधानी स्वयं स्थापन कर रहे हैं श्रीमत पर । इसको कहा जाता है डिवाइन मत । दो मत होती है ना । एक होती है डिवाइन मत, एक होती है अनडिवाइन मत । डिवाइन मत सिर्फ एक की होती है, जिसको कहा जाता है श्रीमत । अनडिवाइन मत माना आसुरी मत । तो आसुरी मत और श्रीमत । इन आसुरी मत और श्रीमत को भी तो तुम समझते हो । अनडिवाइन मत और डिवाइन मत । अंग्रेजी में डिवाइन समझते हो? पतित मत और पावन मत । डिवाइन कहा जाता है पावन को, अनडिवाइन कहा जाता है पतित को । ये तो है ही पतित दुनिया । इसमें पावन मत वाला तो कोई है नहीं, क्योंकि पावन मत वाला तो सिर्फ एक ही होता है, जिसको पतित-पावन कहा जाता है । पतित-पावन को तो इस समय तक भी बहुत ही याद करते हैं; क्योंकि पतित दुनिया है तो याद करते रहते हैं । अगर पावन दुनिया होती तो फिर याद किसको करते? कोई भी याद नहीं करते कि पतित-पावन आओ । याद करते हैं तो जरूर ये सृष्टि पतित है, कोई भी पावन हो नहीं सकता है । पावन सृष्टि सतयुग को कहा जाता है, पतित सृष्टि कलहयुग को कहा जाता है । जब तलक डिवाइन फादर न आए तब तक पतित सृष्टि पावन नहीं हो सकती है । यहाँ तो सभी हैं अनडिवाइन । कलहयुग है ही पतित युग । तो वो क्यों आएँगे? पतित कलहयुग को पावन सतयुग बनाने । डिवाइन तो यहाँ बहुतों को कहते हैं । यूँ तो डिवाइन अगर कहें तो कन्याएं भी डिवाइन हैं । पावन है ना । कुमार भी डिवाइन हैं यानी पावन हैं; परन्तु नहीं, फिर पतित जरूर बनने का है यानी विकार से जन्म जरूर लेने वाले हैं यहाँ । इसलिए इस विकारी दुनिया में कोई भी डिवाइन नहीं होता है । डिवाइन हमेशा कहा जाता है निर्विकारी को । बरोबर निर्विकारी तो होते ही हैं निर्विकारी दुनिया में । उसको कहा ही जाता है वाइसलेस दुनिया यानी सम्पूर्ण निर्विकारी दुनिया । तो जबकि सम्पूर्ण निर्यिकारी दुनिया है, तो जरूर सम्पूर्ण विकारी दुनिया भी होगी । उसको कहेंगे सम्यूर्ण अनडिवाइन दुनिया, फिर उसको कहेंगे सम्पूर्ण डिवाइन दुनिया । तो बच्चे जानते हैं कि सम्पूर्ण डिवाइन दुनिया तो कहा ही जाता है सतयुग को । सम्पूर्ण निर्विकारी तो होते ही हैं सतयुग में । कलियुग में तो हो ही नहीं सकते हैं । तुम बच्चे अभी जानते हैं तुमको धीरज आया हुआ है । तुमको धैर्यवत किसने बनाया है? डिवाइन फादर ने, क्योंकि बहुत मनुष्य सबको महात्मा कह देते हैं । महात्मा का अर्थ ही निकालते हैं डिवाइन जीवात्मा । जीव तो जरूर कहेंगे ना, सिर्फ डिवाइन आत्मा नहीं कह सकेंगे । डिवाइनआत्माएं तो सिर्फ या तो अपनी निराकार दुनिया में रहती हैं वा तो फिर सतयुग में रहती हैं । डिवाइन मनुष्य जिनको कहा जाता है पवित्र मनुष्य, वो तो पवित्र दुनिया में ही होंगे । ये तो है ही अपवित्र दुनिया । इससे सिद्ध होता है कि अपवित्र दुनिया को पवित्र बनाना वो तो उस निराकार डिवाइन फादर का काम है, जो कभी भी विकारी होता ही नहीं है । ये तो तुम बच्चों को मालूम है और तुम बच्चों को धीर तो मिलता है कि बच्चे, अभी तो सतयुग आ गया है, वो तो तुम बच्चे जानते हो; परन्तु जिनको दुःख होता है वो समझते हैं कि बाबा हमको दुःख से छुड़ाय, जल्दी सुखधाम में ले चले; परन्तु नहीं, धीर धरना पड़ेगा । ड्रामा अनुसार समय लगता है किसको भी सुखधाम ले जाने के लिए या सुखधाम स्थापन करने के लिए । फट से तो नहीं दु:खधाम विनाश हो और सुखधाम स्थापन हो जाएगा । टाइम लगता है ना । देखो, तुमको कितना टाइम लगा है । टाइम तो लगेगा ना । ये सारी पतित सृष्टि कितनी बड़ी है, उनमें भी जबकि तुम लोग लायक बनो ना । तुम लोग जानते हो, अपने अंदर से पूछो तो तुम खुद ही कह देंगे हम अभी पूरे लायक नहीं बने हैं स्वर्ग में जाने के । कुछ न कुछ नालायकी जरूर होनी चाहिए और होगी । अगर नालायक से लायक बन जावे तो कर्मातीत अवस्था हो जावे; परन्तु देहअभिमान होने कारण कोई-कोई समझ बैठे हैं कि हम तो लायक हैं । हम तो सम्पूर्ण बन गए हैं । हमको तो फिर श्रीमत की भी दरकार नहीं है । अपन को श्रेष्ठ समझ लेते हैं । इसलिए फिर उनको याद भी नहीं करते हैं; क्योंकि याद करने से ही तो मनुष्य श्रेष्ठ बनेंगे ना । कोई भी ऐसा बच्चा नहीं है, जो कह देंगे कि हम अभी निरन्तर बाप को याद करते हैं । ऐसा कोई भी नहीं है । कोई भी अंदर में भी अपने को न समझे कि हम याद में नित्य रहते हैं । याद में नित्य रहे तो और क्या चाहिए । समझो कि कोई एक दिन याद में रह लिया सारा दिन फिर तो कर्मातीत अवस्था हो जावे । नहीं, बड़ा मुश्किल है बाबा की याद में रहना । तो बाप बैठकर समझाते हैं कि बच्चे, ये तो तुम जानते हो कि बरोबर हम पुरुषार्थ ही कर रहे हैं सुखधाम में जाकर अपना राजभाग लेने के लिए । कोई तो राजभाग लेने के लिए पुरुषार्थ करते हैं, कोई तो वहाँ सुखधाम में जाने के लिए पुरुषार्थ करते हैं । कोई एम-ऑब्जेक्ट नहीं रहती है, क्योंकि श्रीमत नहीं समझते है । हम अपने दिल के अंदर देखता हूँ कि हमारे में तो विकार है । हमारे में तो अभी बहुत कमियां हैं । हम तो अभी कह ही नहीं सकेंगे । हम तो इतना पद पा भी नहीं सकेंगे । हम तो इतनी दौड़ी भी नहीं पा सकते हैं । कौन सी दौड़ी? निरन्तर याद की दौड़ी । तुम्हारी यात्रा भी तो यहाँ है ना । यहाँ ऐसे नहीं है कि कोई अपने को मियॉ मिटठू समझकर बैठे कि मैं सम्पूर्ण हो गया । नहीं । सम्पूर्ण रहते ही हैं शिवालय में । जब सम्पूर्ण बन जाएँगे तो फिर हम शिवालय में जाएँगे । शिवालय कहा ही जाता है सतयुगी दुनिया को । मंदिर या टिकाने में सिर्फ एक नहीं रहते हैं- शिव का मंदिर या लक्ष्मी-नारायण का मंदिर । नहीं, यहाँ तो सारा शिवालय बनता है जिसमें लक्ष्मी-नारायण का राज्य होता है । एक शिवालय में लक्ष्मी-नारायण का राज्य । मंदिर में राज्य तो नहीं करते हैं । जब सतयुग को शिवालय कहा जाता है, उनमें सभी देवी-देवताएं राज्य करते हैं । पीछे पूजा के कारण वो जो मुख्य हैं लक्ष्मी-नारायण या फलाना एक; क्योंकि सबका तोएक ही बात हो जाएगी ना । लक्ष्मी-नारायण का चित्र बनाओ तो एक ही बात हो जाती है । तो जरूर पूजा होती है, सो तो जरूर पूजा पहले की ही होगी । तो बरोबर लक्ष्मी-नारायण की पूजा होती है । तो अभी वो मंदिर बाँध है क्योंकि जड़ है ना (तो) बाँध है । जैसे चैतन्य राजधानी स्थापन करते हैं तो इसे सारा विश्व कहेंगे, भले है भारत में, परन्तु जब भारत में हैं, तब हैं तो विश्व के मालिक ना, क्योंकि दूसरा कोई राजाई है नहीं, अकेला है । तुम जानते हो कि अभी हम अपने लिए अकेले फिर से अपना राज्य स्थापन कर रहे थे । कौन सा राज्य? डिवाइन राज्य । ये सभी हैं अनडिवाइन । वो हुआ पावन राज्य । तो पावन राज्य में जाने के लिए पहले तो पावन बनना चाहिए ना । उसमें बहुत मेहनत करनी पड़ती है, अच्छी मेहनत रहती है; क्योंकि जहाँ जीना है तह ये याद भी रखनी है और ये ज्ञान की वर्षा भी होती रहनी है । भिन्न-भिन्न; प्रकार से ये समझाया जाता है । बाकी यहाँ डिवाइन तो बहुतों को कह देते हैं । श्री लक्ष्मी-नारायण के सिवाय यहाँ जो भी होकर गए हैं उनको कह सकते हैं । बाकी यहाँ के लोगों को तो कोई डिवाइन कह नहीं सकते हैं; क्योंकि जब त्रेता में माया आ जाती है तो फिर डिवीनिटी कहाँ से आया? तुम बच्चे जानते हो कि सन्यासी रहते हैं, परन्तु किस दुनिया में हैं? पतित दुनिया में हैं । बरोबर सन्यासी तो विकार से पैदा होते हैं । वो जानते भी हैं कि ये नागिन है, फिर छोड्‌कर जाते हैं । फिर भी उसी नागिन द्वारा ही तो उनको जन्म मिलता है । कहाँ जाएँगे! ये थोड़े ही उनको कुछ मगज में बैठता है कि नागिन कहकर चले जाते हैं ये सन्यासी शंकराचार्य के । तो वो समझते हैं कि वो बहुत अच्छा करके गया । कौन कहते हैं नहीं अच्छा करके गया? उन्होंने आ करके तो ये सन्यास धर्म स्थापन किया तो बरोबर भारत में अच्छा काम किया; इसलिए उनकी महिमा है; परन्तु ऐसे तो नहीं है कि अच्छा काम किया तो अच्छा काम उनका ठहरा रहा । अच्छा काम उनका किया हुआ फिर बुरा हो जाता है । देखो, बाप का अच्छा कर्तव्य किया हुआ तुमको स्वर्गवासी बनाने के बाद फिर भी तो वो नर्कवासी बन ही जाते हैं । वैसे वो भी ऐसे ही है; परन्तु उनको ये नॉलेज का तो पता नहीं है ना कि शंकराचार्य कहाँ हैं । उनकी जो संस्था है, जो टारी है वो भी पुरानी तो बनेगी ना । गाया तो जाएगा ना कि बरोबर शंकराचार्य आए थे और भारत को पतित से पावन. ....धर्म स्थापन किया था, अभी भी है । बरोबर उनकी महिमा होती है । तो जो भी सन्यासी हैं उनकी महिमा है । विवेकानन्द, रामतीर्थ ये क्यों गाए जाते हैं? क्योंकि ये शंकराचार्य के ही पिछाड़ी वाले हैं, जो फिर आते रहते हैं; क्योंकि जो नए-नए अच्छे पावरफुल बीच-बीच में आते हैं वो अपना शो करते हैं । तो उनका शो होता है बरोबर, परन्तु वो रहे कहाँ पड़े हैं? ये तो वैश्यालय है, उसमें रहे पड़े हैं । इसको शिवालय तो नहीं कहेंगे ना । शिवालय नाम ही पड़ा है शिव का स्थापन किया हुआ स्वर्ग या सतयुग । अभी इस बात को और कोई भी मनुष्य तो बिल्कुल ही जानते नहीं हैं, क्योंकि यहाँ तो समझने की बातें होती हैं ना । पहले कोई समझे । यहाँ आ करके कोई बैठ जाएगा तो बिचारा कुछ भी नहीं समझेगा । इसलिए सात रोज एम-ऑब्जेक्ट समझो, पीछे बैठ सको । ऐसे कोई भी पढ़ाई के लिए ऐसा नहीं कहा जाता है कि सात रोज बैठो, पीछे इंजीनियरिंग कॉलेज में बैठना । सातरोज समझो और पीछे कोई मेडीकल कॉलेज में बैठना है, बैरिस्टरी में बैठना है ।.... यहाँ लक्ष्य दिया जाता है कि पहले पहलेतो फादर को समझो । फादर को समझने बिगर, तुम फादर के आगे बैठकर समझो, क्योंकि तुम बच्चे हो ना । बाप भी कहते हैं मैं तो बच्चों की सेवा करने आया हुआ हूँ ना । कौन से बच्चे? जो कल्प पहले वाले थे । अभी मुझे कैसे मालूम पड़े कि ये कल्प पहले वाले हैं? जब तलक कि वो समझे, बुद्धि में बैठे तब उनको कहा जाए कि हाँ, आओ, आ करके भले आज समझो; क्योंकि समझ गया । बाबा पूछते हैं - कहाँ तक निश्चय हुआ है? पूछना तो होता ही है ना । ये कोई ऐसे गामतू सतसंग तो नहीं है ना । दूसरे सतसंग में जो बैठते हैं वो जानते हैं कि ये महात्मा हमको गीता सुनाते हैं, ये महात्मा हमको वेद सुनाते हैं, ये महात्मा हमको फलानी चीज सुनाते हैं । यहाँ तुम जानते हो कि यहाँ कोई महात्मा है नहीं । यहाँ तो हमारा बाप है, वो बैठकर बच्चों को समझाते हैं । तो पहले जब निश्चय हो जाए कि पढ़ाने वाला कौन है तब तलक क्या पता पड़ेगा । वहाँ मालूम होता है ना कि ये हमको गीता सुनाते हैं, ये हमको वेद सुनाते हैं, ये हमको राजविद्या पढ़ाते हैं । यहाँ क्या होता है? यहाँ तो उनमें से कोई भी चीज नहीं है । न कोई शास्त्र की, न वेदों की, न कोई पढ़ाई की । ये तो तुम जानते हो कि बाबा पढ़ा रहे हैं इन द्वारा । अभी ऐसा तो कोई सतसंग हो नहीं सकता है ना । तो जब तलक ये ना समझे कि पढ़ाने वाला कौन है, क्या पढ़ाते हैं तो यहाँ आकर क्या करेंगे? फिर घुटका खाते रहेंगे या अंदर में उनके वायब्रेशन्स गंदे निकलते रहेंगे, तो वायुमण्डल खराब कर देंगे; क्योंकि बाबा समझा रहे हैं कि यहाँ भी जो बैठे हुए हैं सो सभी ऐसे नहीं हैं बाबा की याद में बैठ करके सुनते हैं या यहाँ बैठे हुए कोई समझते हैं कि बरोबर शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा हमको पढ़ा रहे हैं । ये नहीं समझते हैं । यहाँ बहुत बैठने वाले हैं; परन्तु वो पुराने तो आ गए हैं ना । तो वो समझते ही नहीं हैं । वो कब समझने वाले ही नहीं हैं । हमको शिवबाबा पढ़ाते हैं, क्या पढ़ाते हैं, क्यों पढ़ाते हैं, वो नहीं समझते हैं । यहाँ बहुत हैं । बाबा अभी भी कहते हैं, भले ही 20 वर्ष भी हो गए हों, तो भी नहीं समझते हैं कि हमको शिवबाबा पढ़ाते हैं । ये बड़ा मुश्किल है जो यहाँ भी ऐसे समझते हैं यथार्थ रीति से; क्योंकि यदि पढ़ाने वाला यथार्थ रीति बुद्धि में हो तो उनको तो सारा दिन स्टूडेंट लाइफ में बुद्धि में पड़ा रहना चाहिए कि बरोबर हम स्टूडेंट हैं और फलाने के हैं और हमको ये ये डायरेक्शन्स देने वाला है । वो तो भूल जाते हैं बहुत ही । नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार है जरूर, क्योंकि ये तो खुद बाप ही कहते हैं कि मुझ अपने पढ़ाने वाले को. ... । स्ट्रडेंट हूँ बाप भी हूँ गुरू भीहूँ । तो तीनों को इकट्‌ठा याद करने की मेहनत पड़ी है । वो तो हर एक मनुष्य की बुद्धि में है कि हमको पहले बाबा मिलता है, फिर टीचर मिलता है, फिर गुरू मिलता है; पर अलग-अलग मिलते हैं । तो अलग-अलग याद करते हैं ।.. .एक ही को याद करना पड़े अलग रूप में और फिर है बहुत सहज, परन्तु माया याद नहीं रखने देती है । घड़ी-घड़ी बुद्धि का योग तोड़ देती है । तुम बच्चे बरोबर बैठते होंगे और ट्राई करते होंगे । बाबा थोड़े ही कहते हैं कि नहीं ट्राई करते होंगे । देखो, हमारा दर्जी बैठा है वो सरदार । वो भी कोशिश करते होंगे कि मैं भला मशीन भी चलाऊँ, जो हमारा सच्चा बाबा है उनको याद भी करता रहूँ तो पुरुषार्थकरेंगे । चलो बैठकर ये मक्खन निकालते हैं । वहाँ तो कोई तकलीफ की बात नहीं है, कोई भी हंगामें की बात नहीं है । वहाँ भी बैठकर शिवबाबा की याद में कि बाबा, मैं यज्ञ के लिए मक्खन निकाल रहा हूँ । अरे, बात मत पूछो । कितनी खुशी की बात होती है । बाबा मैं यज्ञ के लिए भण्डारा बना रहा हूँ। जो भोजन बनाती है वो सिर्फ यहाँ ख्याल में रहे कि बाबा, हम आपकी सेवा में यज्ञ के बच्चों के लिए भोजन बनाती हूँ । याद तो करके दिखलाये, कितनी मेहनत लगती है । घड़ी-घड़ी बिचारी भूल जाएगी । भूल जाएगी तो फिर पुरुषार्थ करना पड़े । तो एक-दो को पुरुषार्थ करने वाला चाहिए, जबकि एक- दो जैसा होवे, जो कहे कि शिवबाबा को याद करके बनाती हूँ क्योंकि शिवबाबा को भोजन लगने वाला है वा ब्राह्मणों को भोजन लगने वाला है । इसलिए शिवबाबा की याद में बनाएंगी, पीछे तो उनमें बड़ी ताकत आ जाएगी । चलो, हम और तुम, दोनों बैठते हैं शिवबाबा की याद में । घड़ी-घड़ी एक -दो से पूछो । तुमको अगर वो याद का मिले ना, तो तुम्हारी अवस्था बहुत ही अच्छी हो जावे; परन्तु ड्रामा में है नहीं ।.....ब्रह्मा भोजन की बहुत महिमा है । कहते हैं कि देवताओं को भी ब्रह्मा भोजन की दिल होती है, जिससे ये बने हैं । वो तो ऐसे ही लिख दिया है । कि देवताओं को भी ब्रह्मा भोजन की दिल होती है । सो अभी तुम जानते हो कि देवताएं ब्राह्मण सो ही फिर देवता बनते हैं । किससे? ये पवित्र भोजन खाने से । पवित्र भोजन कोई को मिलता थोड़े ही है । सन्यासियों को पवित्र भोजन मिलता है क्या? वो तो घर में आकर के बनाते हैं । तो इस भोजन की कितनी महिमा है, परन्तु जबकि ऐसे मिले । जबकि ये शक्तियों का ऐसा भण्डारा हो; परन्तु शक्तियों को भी ये पता तो नहीं है ना । अगर शक्तियों योग में रहकर बनावे तो बहुत शक्ति मिले । वो भी जब शक्तियों की बुद्धि में आए । वो भी शक्तियों के बुद्धि में नहीं है । नहीं तो उसके ऊपर पुरुषार्थ करे बहुत अच्छी तरह से । बाबा बार-बार समझाते रहते हैं । दिल तो होती है कि अपने हाथ से बनावें । हमको कहाँ मिलेगा? बरोबर बाबा कहते हैं कि अगर मैं भी बैठकर बनाऊँ शिवबाबा की याद में, मैं पुरुषार्थ करता हूँ । इसलिए मैं कभी-कभी कहता हूँ कि अपने हाथ से बनाओ, परन्तु बनाते-बनाते भूल जाते हैं, परन्तु बनाते प्रैक्टिस करते-करते याद भी आ सकती है । तो देखो, प्रैक्टिस कितनी बड़ी है । कोई मुश्किलात की तो बात नहीं है ना । बाबा चैलेंज देते हैं कि जो भी भण्डारे में हैं, तुम सब कोशिश करो; परन्तु नहीं, भण्डारे में याद तो क्या एक दिन भी कभी याद नहीं, एक घंटा भी कभी याद नहीं पड़ता है । वो क्या इतना समय याद करेंगी? अगर याद वाली हो, ज्ञान वाली हो तो बड़ी सर्विस में लग जाए । उनको यहाँ सुख नहीं आए । यहाँ भी बहुत हैं, किनको भण्डारे के लिए बोलो तो कहेंगी - मुझे ये भी तो सर्विस करनी है, मैं सिर्फ भण्डारे में थोड़े ही रहूँगी, स्थूल काम थोड़े ही करूंगी । मैं तो अपना भी कल्याण करूँगी ना, क्योंकि जब तलक कोई को आप समान न बनावे, काँटे को फूल न बनाये तब तलक वो क्या कर सकती है । कुछ भी काम के नहीं हैं । वो तो कोई राजाई के लायक ही नहीं बन सकते हैं । राजाई के लायक तो वो ही बनते हैं जो आप समान बनावें, नर को नारायण बनावे, नारी को लक्ष्मी बनाने का पुरुषार्थ करे । खाना देने से थोड़े ही वो नर से नारायण बना सकते हैं । ये तो सबका पार्ट है अलग-अलग । जोजितना जिसकी तकदीर में है वो अपना तकदीर पाते रहते हैं पुरुषार्थ से । बाकी पुरुषार्थ के लिए तो बाप सबको कहते हैं । भण्डारी को कहते हैं, फलाने को कहते हैं, जितना करेंगे, जो करेंगे, अपने मोस्ट बिलवेड बाप को जितना याद करेंगे... .. सबका है ना । ये अपनी याद समझाते रहते हैं, मैं कितना याद करने का उपाय करता हूँ, परन्तु देखा जाता है कि हो नहीं सकेगा और न हो सकता है, इसलिए पुरुषार्थ छोड़ना नहीं होता है, परन्तु बुद्धि कहती है कि मेहनत बहुत करनी पड़ती है । करते-करते पिछाड़ी में आकर कोई की पूरी ऊँची अवस्था हो तब कर्मातीत अवस्था प्राप्त करे । पीछे वो अवस्था आएगी तो फिर बहुत शुभ साक्षात्कार भी करते रहेंगे, फिर माया नहीं आएगी । पिछाड़ी में जब तुम इस अवस्था मे पहुंच जाएँगे तो ये जो टेलीविजन है ना..........तुम यहाँ बैठे-बैठेदिव्य दृष्टि में जा करके सब कुछ देखेंगे । टेलीविजन कोई दिव्य दृष्टि नहीं है । विनाश के साक्षात्कार टेलीविजन में दिखाए जाते है? टेलीविजन मे वैकुण्ठ देखने में आएगा? तुम तो उनरने बहुत तीखे हो, जिनको कोई भी जानते नहीं हैं । सो जितना-जितना जो योगी रहेगा, ज्ञानी रहेगा और जो अच्छी तरह से मेहनत करेगा उनको अपनी दिव्य दृष्टि से घड़ी-घड़ी; ये वैकुण्ठ देखने में आएगा, क्याक्या देखने मे आएगा, राजधानियॉ देखने मे आएगी । तुम यहाँ बैठो तो बिगर कोई टेलीविजन रखे तुम जर्मनी-लक्खन, कैसे वो जलते हैं, कैसे बोंब्स फेंकते हैं, वो देखते रहेंगे । उनमें टेलीविजन की कोई दरकार रहती है क्या! नहीं । टेलीविजन से भी ज्यादा तुम्हारी दिव्य बुद्धि, दिव्य चक्षु ये साक्षात्कार करेगी । ये वण्डरफुल है । सो तो जरूर बाबा ने समझा दिया है कि जोजो मेहनत वाली होंगी, अच्छी तरह से बाप की सेवा मे उपस्थित होगी सच्ची दिल से, सिर्फ गपोड़े नहीं, सिर्फ पण्डिताई भी नहीं । पण्डिताई का तो बाबा ने सुनाया था ना । पण्डिताई नहीं, पूरी हड्‌डी । तो फिर उनको अंत में मजा है और बुद्धि भी कहती है बरोबर हम जितना-जितना अच्छी तरह से रहेंगे तो इतना हम साक्षात्कार अच्छा करते जाएँगे । बाबा हमारी खातिरी भी बहुत करते जाएँगे । ये तो बाबा की खातिरी है ना - घुमाना-फिराना ये सब कुछ बाहर के दृश्य दिखलाना जो दिव्य चक्षु देते हैं कि भले ये देखो । तो ऐसा बनने के लिए भी तो लायक बनना चाहिए ना । ये तो समझते हैं कि कितने नालायक से कितना लायक बनते हैं । बात मत पूछो । जो बनाने वाले हैं उनको याद करने से ही लायक बनते जाते हैं । अभी बाप कहते हैं मुझे याद करने से तुम बहुत लायक बनेंगे । इन जैसे लायक बनेंगे । याद से तुमको वर्सा जरूर याद आना चाहिए पक्का-पक्का । तो बस, जितना तुम याद करेंगे तो स्वदर्शन चक्र आपे ही फिरेगा । बीज को याद करेंगे तो झाड़ भी तो जरूर याद पड़ेगा और ड्रामा को याद करेंगे तो सारा चक्र तुमको याद पड़ेगा । जितना जो करेगा उतना वो अपने लिए अपने पैर पर खड़ा रहेगा । देखो, सुख की कितनी लम्बी रस्सी है । कोई भी नहीं समझ सके सिवाय तुम्हारे । बरोबर यहाँ हम अपनी इतनी मिल्कीयत इकट्‌ठी करते हैं इस याद और ज्ञान से । इसको योग और ज्ञान कहा जाता है । जो वहाँ भी हमको मालूम नहीं पड़ेगा कि ये सुख हमको कैसे मिला । भले वो कहेंगे कि इनको फलाने से बादशाही मिलती है, परन्तु उनको वहाँ मालूम थोड़े ही है कि हमारी संगमयुग पर की हुई कोई कमाई है जो हम अभी भोगते हैं । बस वहाँ राजाई जैसे मिल जाती है और तुम सदा सुखी रहते हो । बड़ी मंजिल है । तुम अभी डिवाइन बनते हो । दुनिया तो सारी अनडिवाइन है । डिवाइन से डिविनिटी देवता बनतेहो । मनुष्य से देवता बनाने वाला कोई मनुष्य थोड़े ही हो सकता है । मनुष्य को देवता बनाने वाला एक गॉड फादर है । फादर कहना तो बहुत ही सहज है । अनेकों को फादर कह देते हैं । बुड्‌ढा देखेंगे तो पिताश्री आप कहाँ जाते हो, ऐसे भी कह देंगे । श्री-श्री तो सबके मुख मे है ही आजकल । बुड्‌ढा देखेगा तो उनको पिता कहेगा । वो बच्चा समझेगा और वो भाई समझेगा । बुड्‌ढा बुडढे को देखेगा तो वो भाई समझेगा । छोटा, बड़े को देखेगा तो बाप समझेगा । ये तो कॉमन बात है, परन्तु इनकीरपोरियल फादर का तो किसको भी पता नहीं है । सिर्फ कहने मात्र कह देते हैं ओ गॉड फादर, ओ परमपिता बस, इतना कह देते हैं । ये भी बुद्धि मे रहता है कि वो निराकार है, परन्तु वो नहीं समझते हैं कि हम आत्माएँ हैं और हमारा वो बाप है । बाप कहते हैं तो जरूर कोई वक्त में वो वर्सा देता होगा । कौन सा वर्सा देता होगा कुछ पता नहीं पड़ता है । अभी तो तुम जानते हो ना बुद्धि में आता है कि हमारा बाप, जिसको हम पुकारते थे, वो अभी यहाँ हमको वर्सा दे रहे हैं । आगे जो हम इनको बार-बार पुकारते थे इसी वर्से के लिए, प्रार्थना करते थे । अब प्रार्थना की तो दरकार नहीं है । अभी देखो पढ़ा रहे हैं । अभी प्रार्थना करने से तुम छूटे यानी भक्ति से । तो ये बड़े मजे की नॉलेज है । देखो, कहते भी हैं कि आप हमारे वो ही बेहद के बाप हो । अच्छा, फिर हमको छोड़ते क्यों हो? फिर तुम उस लौकिक बाप के पास क्यों जाते हो? अगर बंधनमुक्त हो तो । बंधनमुक्त भी तो बहुत हैं ना । कन्याएं तो बंधनमुक्त हैं ना । अभी देखो, नानकी बैठी है, बंधनमुक्त है ना । भले यहाँ थी, फिर ये चली गई कारणे अकारण । अभी पूछता हूँ कि भगवान तुम्हारा क्या लगता है? कहेगी बेहद का बाप है । क्या मिलता है इनसे? स्वर्ग की बादशाही मिलेगी । हाँ, अभी ये समझती है कि हम स्वर्ग में जाएँगी जरूर, परंतु बादशाही नहीं मिलेगी । बादशाही तब मिलेगी फिर जब ये बाबा के पास आकर बैठेगी । तो देखो, बुद्धि क्या कहती है? ये थोड़े ही कहती है कि....बाबा के पास कोई दुःख तो है नहीं । है कोई दुःख किसको? कुछ भी दुःख नहीं है । फिर भला क्यों नहीं पकड़ता हूँ । फिर वो बोलता है कि क्या करूं, तकदीर में नहीं है । हाँ ये बात तो ठीक है । अब क्या करें? खुद ही कोई कहे कि मेरी तकदीर में ये राजयोग की राजाई नहीं है, अभी बाबा क्या करे? क्यों नहीं अपनी तकदीर बनाती हो? तुमको कोई मना तो नहीं करते हैं । तकदीर बनाने कोई लग जावे तो उनको कोई मना करने वाला है नहीं । तो देखो तकदीर मे न है तो ऐसे बाप को फिर छोड़ देते हैं । है ना वण्डरफुल! ये कौन छुड़ाते है इनसे? ये मुट्‌ठी माया बिल्ली । मुट्‌ठी माया बिल्ली बुद्धि में इतना घोटाला डालती है, जो मुख से कहते हैं, फिर कारण पूछो तो कुछ कारण नहीं । मैं मिसाल देता हूँ । ये एक बच्ची तो नहीं है, यहाँ तो बहुत ही हैं । भला क्यों नहीं अच्छी तरह से बाप को याद करते हो, तो तुमको बहुत अच्छा वर्सा मिलेगा । कहते हैं- बाबा क्या करें? माया बिल्ली है । माया बिल्ली है तो माया बिल्ली करते ही रह जाएँगे ना । नहीं, माया बिल्ली पर जीत पहननी है । पुरुषार्थ करो । एक-दो को घड़ी-घड़ी याद दिलाते रहो । जैसे एक दो बैठे हैं, मशीन चलाते हैँ तो याद दिलाओ - शिवबाबा को याद करते हो? तो याद आ जावे, कुछ ना कुछ फायदा हो जावे । विकर्म विनाश हो जाएगा । 5 मिनट भी याद किया, 2 मिनट भी याद किया, 1 मिनट भी याद किया उफ! बड़ा फायदा मिल गया, जमा हो गया । तो एक- दो को भी अगर बैठकर सावधानी दें तो भी बहुत ही फायदा हैपरन्तु नहीं देते हैं, भूल जाते हैं । नहीं तो पति और स्त्री के लिए क्यों कहा है कि गृहस्थ-व्यवहार में रहकर... एक-दो को सावधान करो । .सावधान करो, फिर कोई माने या ना माने............ कहते रहो । बाबा युक्तियां बहुत बताते हैं कि हम ध्यान में जाते हैं, दिव्य दृष्टि में रात को जाते हैं । मुझे स्वप्न आते हैं, उसको ही ध्यान कहेंगे । कृष्ण के लिए ही कह देवे कि कहते हैं काम शत्रु है, इसे जीतो तो मेरी कृष्णापुरी में चली आएंगी । फिर हम कृष्णपुरी में जाएंगी या कंसपुरी में रहती रहेंगी । बस, ऐसी-ऐसी बातें करो । तुम भी उनको याद करो तो तुम भी कृष्णापुरी में चलेंगे । पीछे भले कृष्ण का नाम दो, फिर आहिस्ते-आहिस्ते बतला देना । जैसे अभी बाप बतलाते हैं ना । आगे शिव का लिंग बोलता था । अभी बोलता है कि नहीं, वो स्टार है । वैसे ही उनको भी युक्तियाँ बताओ ।युक्तियाँ चाहिए । बच्चों को युक्तियाँ तो बहुत ही समझाते हैं कि ये युक्तियाँ । युक्तियाँ रचने से कोई ना कोई प्रकार से मदद मिल जाएगी । युक्ति पर चलो तो सही । दिल साफ होना चाहिए तो मुराद हासिल । अच्छा, बच्चों को टाइम हुआ । ............पढ़ाई भी कुछ जास्ती नहीं है, बिल्कुल ही सहज पढ़ाई है । ड्रामा को याद करना, झाड़ को याद करना, अंत में भी तो यहाँ... । बाबा कोई को न समझाये; परन्तु उनकी बुद्धि में तो है ना । बाबा कहते हैं मेरी भी बुद्धि में बीज और झाड़ का ज्ञान है तो सही ना । है तो जरूर ना, समझा सकता हूँ । तो तुम्हारी बुद्धि में भी सारा ज्ञान होना चाहिए जिससे समझा सको । अगर सारा ज्ञान है तो बरोबर तुम अच्छी तरह से पद पाएंगी; परन्तु सर्विस करेंगी तो ऊँच बनेंगी; क्योंकि सिर्फ बुद्धि में है और किसको दान नहीं देते हो तो फिर काँटों  को कलियाँ कैसे बनाएगी । वो भी तो सर्विस करेंगे । सर्विस फर्स्ट । कहाँ भी रहें, बीमारी में रहें तो भी । जो बीमार हॉस्पिटल वाली माइयाँ आती हैं ना, बाबा के पास बैठकर बहुत बीमार पड़ती है तो उनको अपने ऊपर मोहित कर लेते हैं ।..... .कोई तो ऐसे हैं, जो उठते बैठते चलते फिरते सोते बीमार पड़ते सर्विस कर सकती हो, इतनी सहज है । कोई भी आते हैं तो उनसे हम ये भी पूछ सकते हैं कि जरा ये तो बताना कि पतित हो या पावन हो? क्योंकि सब कोई कहते तो हैं ना कि पतित-पावन आओ । बोलो- देखो, गांधी जी भी कहते थे कि हम पतित हैं, हे पावन बनाने वाले आओ। पावन दुनिया तो सतयुग को ही कहेंगे । ये तो कलहयुग है, पतित है । तो ये है ही पतित को पावन बनाने की इन्क्रीटयूशन । तुम पतित हो ना तो कॉल इन टाइम में सात रोज तुमको बैठना पड़ेगा । ये बीमारी है आधा कल्प की तो तुमको सात रोज तो यहाँ बैठना पड़ेगा । बैठ सकते हो यहाँ? यहाँ का कायदा ही ऐसा है । दूसरी बात ही क्यों पूछना । कोई भी आने से यहाँ युक्तियाँ हैं । डरने का नहीं है कि ये बड़ा आदमी है, मिलियनेर है, फलाना है । लिखे, तो उनको लिखने से ही तुमको एकदम पतित सिद्ध कर देना है । तुम पूछ भी सकते हो, पतित हो या पावन हो? अगर पावन हो तो यहाँ क्यों आए हो? पावन को तो यहाँ आना ही नहीं है । पावन को तो पावन दुनिया में रहना है । तुम यहाँ कहाँ देखने में आते हो? ये तो पतित दुनिया है ना । गॉधी साधु संत वगैरह कहते हैं कि ये पतित दुनिया है । तुम पावन हो तो यहाँ क्यों आए हो? तुमको क्या चाहिए, जाओ यहाँ से, भागो पावन दुनियामें । पावन दुनिया दो है- एक जीवनमुक्तिधाम और निर्वाणधाम । ताकत है तो वहाँ चले जाओ । बहुत युक्तियाँ हैं जो एकदम कोई का माथा खराब कर देवें । ....फार्म भराने वाला खुद बड़ा युक्तिबाज चाहिए । फार्म भरातेउनको चकित कर देवे कि ये सिर्फ सर्वेन्ट है जो भराते हैं, अगर ये ऐसा समझाने वाला है तो इनके बड़े कौन होंगे! तो ऐसे नहीं है कि कोई लल्लू-पंजू जा करके फार्म भरा सकते हैं । तुम बहुत लकी हो, ये किसने कहा? शिवबाबा कहते हैं - तुम बहुत लकी हो । सचपच मैं कहता हूँ तुम मेरे से भी लकी हो; क्योंकि तुम स्वर्ग का मालिक बनते हो, तो लक्की हो ना । मैं तो स्वर्ग का मालिक भी नहीं बनता हूँ । तभी कहते हैं बिलवेड मोस्ट लकी चिल्ड्रेन क्योंकि वो जो बाप होते हैं वो तो सुख-दुःख देखकर, फिर बच्चों को भी देते हैं । ये तो बोलते हैं मैं ना सुख देखता हूँ, ना दुःख देखता हूँ । देखो, कितना वन्डरफुल है! इसलिए कहते हैं, मेरे सिकीलधे बिलवेड मोस्ट मोस्ट लक्की सितारे । अभी बरोबर ये भी समझाते हैं कि मोस्ट लकी सितारे समझते हो? देखो, सितारे हैं ना, उनमें लकी कौन है? जो जास्ती चमकता है । उनकी महिमा है, ये ध्रुव तारा है, ये फलाना तारा है । ये बोलता है कि हम स्टार के ऊपर जाएँगे । ये भी लिखते हैं । तुम अखबार नहीं लिखते हो । कई साइंटिस्ट लिखते हैं ना । कभी भी कोई पहुँच नहीं सके । ये तो बोलते हैं कि अभी क्यार्टर रस्ते पर भी नहीं आए है । ये जो जाते हैं वो क्वाटर रस्ते पर भी नहीं पहुंचे हैं । अरे, वहाँ कौन जा सकते हैं । ये तो बड़ा दूर है, बिल्कुल दूर है, असम्भव है कोई पहुंच सके, ऐसे भी लिखते हैं, जो फिर तीखे-तीखे साइंस वाले हैं; क्योंकि कोई भी पहुंच नहीं सकते । इतना ऊँचा जा नहीं सकते; परन्तु इसको साइंस का घमण्ड है ना । ये अशुद्ध चीज का अति घमण्ड विनाशकराता है । घमण्ड है ना जो ये ऐरोप्लेन्स निकाले हैं । इस घमण्ड से निकले हुए उन्हीं ऐरोप्लेन्स से मुसाफिरी करते हैं और उन्हीं ऐरोप्लेन्स से ये विनाश करने वाले हैं । मुसाफिरी के लिए भी अलग ऐरोप्लेन्स बनते हैं, तो बड़ी-बड़ी तोपें और बोंब्स लेने के लिए भी बड़े-बड़े ऐरोप्लेन्स बनते हैं । वो कैसे तीखे हैं, उनमें मुसाफिरी नहीं की जा सकती है, जिनमें ये बोंब्स ले जाते हैं या जिनके पिछाड़ी पड़ते हैं । फिर देखो, एक तरफ में सुख, एक तरफ में अति दु:ख । सबको भी कितने डर देते हैं । तुमको तो एक चटकी में खलास कर देवे । जैसे बाबा कहते हैं ना, चटकी में जीवनमुक्ति, वो कहते हैं चटकी में विनाश; परन्तु तुम बच्चे अखबारें नहीं पढ़ते हो, कोई में भी शौक नहीं है । कोई-कोई हैं जो पढ़ते हैं, उनमें से समझाने के लिए कुछ मतलब भी निकालते हैं और अखबार पढ़ करके रिस्पॉण्ड भी बहुत कर सकते हैं; परन्तु इन बच्चों को इतनी विशाल बुद्धि, दूरंदेशी बुद्धि, इतनी मेहनत माया बिल्ली करने नहीं देती है । अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे लकी ज्ञान सितारों प्रति मात-पिता, बापदादा का नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार यादप्यार और गुडमार्निग ।