22-09-1964     मधुबन आबू     रात्रि मुरली    साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हेलो, गुड इवनिंग यह बाईस सेप्टेम्बर का रात्रि क्लास है
 

बॉम्बे में सब रिलीजन्स की कांफ्रेंस हो रही है । ये जो रिलीजन वाले लोग हैं, वो ये जानते हैं कि भारत का धर्मशास्त्र गीता है । भले भारतवासी इतना नहीं जानते हैं, क्योंकि भारत के धर्म में अनेक शास्त्र हैं और जो भी धर्म वाले हैं उनका धर्मशास्त्र एक होता है । ये क्यों हो गया है? ये तो बच्चों को समझाया गया है कि गीता में अगर श्री कृष्ण का नाम न डालते तो कभी भी परमपिता परमात्मा को सर्वव्यापी नहीं कहते । समझा ना! ये है तो ड्रामा अनुसार भूल । अभी ड्रामा को वो लोग तो नहीं जानते है । उनको तो तुम बच्चों को सिद्ध करके बताना है कि जो सर्वव्यापी का ज्ञान है वो भी राइट नहीं है और फिर गीता का भगवान श्री कृष्ण है, वो भी राइट नहीं है । उसमें तो भूल की व्यास ने । ये बड़ी भूल है ना । तुम ब्रहमाकुमारियाँ इनको जो ये समझाएँगे तो शायद समय नहीं है उनके बुद्धि में बैठने का । है भी सहज समझाने का । बच्चों में वो ताकत नहीं है कोई को ऐसा सिद्ध करके बताने का । ये कृष्ण का नाम न डालने से फिर ये भारतवासी अपने पतित-पावन परमपिता परमात्मा की ग्लानि नहीं करते, क्योंकि सर्वव्यापी कहने से ही उनकी ग्लानि कर दी है - ऐसे समझाना । अभी बच्चों को बुद्धि में है तो सही कि हमको समझाना है जरूर । जैसे ये बड़ी सभाएँ होती हैं, उसमें ये अच्छी तरह से उनको समझाना पड़े कि व्यास ने भूल की है । भूल करने के कारण ही परमात्मा की ग्लानि हो गई । उनको सर्वव्यापी कह दिया । श्री कृष्ण को भी सर्वव्यापी तो नहीं कह सकेंगे । वास्तव में कृष्ण के जो भगत हैं वो कृष्ण को भी सर्वव्यापी कह देते हैं । जिधर देखे उधर कृष्ण ही कृष्ण है । ''जहाँ देखता हूँ तहाँ तू ही तू है' कहने से निराकार ईश्वर को डाल देते हैं और फिर जो भगत हैं वो जिधर देखता हूँ उधर कृष्ण को मानेंगे । फिर राधे वाले होंगे तो कहेंगे जिधर देखता हूँ उधर राधे ही राधे । पीछे हनुमान वाले भी ऐसे कहते होंगे तो गणेश वाले भी ऐसे कहते होंगे । कारण क्या हो गया है? कि गीता में जो नाम पड़ना था परमपिता परमात्मा का, भगवान का, उनमें कृष्ण को डाल दिया । अगर अभी शिव को डालें तो कभी कोई नहीं कहेंगे कि सर्वव्यापी है । तू ही है बड़े ते बड़ी भूल । है ड्रामा अनुसार, जरूर कहेंगे । तो ऐसे भी नहीं कहेंगे कि कोई कहेंगे कि ड्रामा में भूल है । नहीं, ड्रामा में नूंध है, ऐसे कहेंगे । सो परमपिता परमात्मा आ करके समझाते हैं कि तुम्हारी ये भूल है, जो मुझे सर्वव्यापी कहने से तुम मेरी ग्लानि करते हो । अगर इनका नाम डाल दिया तो फिर पतित-पावन निराकार क्यों कहा जाए? पतित-पावन कहते भी निराकार को हैं, और कोई को भी कह नहीं सकते हैं । कृष्ण को भी नहीं कह सकते हैं क्योंकि ज्ञानका सागर वालिब्रेटर व गाइड....तो गाइड भी तो रूहानी है । रूहानी गाइड कृष्ण भी नहीं हो सकते हैं । रूहानी गाइड तो फिर कहा ही जाता है सुप्रीम सोल को । उनका नाम ही ऐसे रखते है । तो ये बच्चों को, जो-जो भी समझाने लायक हैं, जो खुद अच्छी तरह से समझते हैं, उनको ये बात अगर सिद्ध कर देवें तो तुम्हारा ये जो चींटीमार्ग चलता है ना वो विहंग मार्ग हो जावे, परन्तु यह शायद कुछ..... क्योंकि आगे तो कोई यह समझाय नहीं सकते हैं और अभी यह भी तो जरूर है कि ब्रहमा प्रजापिता भी जरूर है । वो है प्रजा का पिता और वो है आत्माओं का पिता । उनको प्रजापिता नहीं कहेंगे; क्योंकि प्रजापिता नाम है ब्रहमा का । फिर शिव को प्रजापिता नहीं कहेंगे । नहीं, वो तो आत्माओं का पिता है । तो गाती है, सभी आत्माएँ अपने बाप को याद करती हैं । अगर तुम ये सिद्ध कर लो कि वो प्रजापिता आत्माओं का पिता है, परमपिता परमात्मा उनको कहा जाता है, उनसे ही वर्सा मिलना है, न कि प्रजापिता ब्रहमा द्वारा, क्योंकि वहाँ स्वर्ग की स्थापना करते हैं । तो वहाँ जैसे कि आत्माओं का ग्रैण्ड फादर हो गया और ब्रहमा का बाप होने से फिर ब्रहमाकुमारों का तो दादा हो ही गया । तो सिद्ध हो करके दिखलाओ कि हाँ, दादे से वर्सा मिलता है । यह है बहुत सहज; परन्तु जब-जब ऐसा कोई समय आता है तो विचार-सागर-मंथन कर छपाई में या भाषण में या कोई प्रेस-कॉनफ्रेन्स में, सिर्फ ये एक बात ही समझानी है । पतित-पावन वहाँ है और ये पतित ही उनको बुलाते हैं । जो भी साधु-संत-महात्मा हैं वो तो पुकारते रहते हैं पतित-पावन आओ । पतित बुलाते हैं ना कि पावन करने के लिए आओ । नहीं तो पावन दुनिया में ऐसे तो नहीं कोई को बुलावे । जो-जो भी जिसको समझाते हैं तो ये बात बच्चों की बुद्धि में बड़ी अच्छी बैठनी चाहिए । बहुत मुश्किलात इसमें नहीं है ।... शिवबाबा तो बच्चों को कहते हैं ना कि बच्चे, व्यास ने ये भूल कर दी है । ये भूल भी ड्रामा में नूंध है । इस भूल से ही मेरी निंदा करते हैं जो फिर मैं आ करके कहता हूँ जब-जब सभी मनुष्य मेरी ग्लानि करते हैं, मेरे धर्म की ग्लानि करते हैं, मेरी ग्लानि करते हैं, अपने बाप की ग्लानि करते हैं और ग्लानि करते-करते पापात्मा बन जाते है, क्योंकि ये तो बड़े ते बड़े हुआ ना । ऊँचे ते ऊँचा भगवत, उनकी कोई ग्लानि करे और सो भी कौन ग्लानि करते हैं? जो अपन को गुरु लोग कहलाते हैं, महात्मा लोग कहलाते हैं ।......बाप आकर समझाते हैं ये महात्मा लोग वास्तव में मेरी ग्लानि करने वाले होने के कारण पापात्माएँ हैं, इसलिए मैं फिर इनका भी उद्धार करने आता हूँ। ऐसे लिखत लिख करके और कोई बड़ी-बड़ी ऐसी सभा हो वहाँ बाँटा जाएँ या उन्हों का जो आएँगे उनका नाम तो सब पढ़ते हैं । तो ऐसे अच्छे फर्स्ट क्लास कागज पर छपाय करके.. । अभी टाइम तो बहुत है । देखो, फरवरी में होने वाली है । तो अभी जब ये बाप डायरेक्शन देते हैं तो सबको कान खड़े करने चाहिए और फिर राय निकालनी चाहिए कि कैसे हम छपावें । तो बैठ करके छपने के लिए प्रूफ भेज देवें अच्छे कागज पर छपावें । समझा ना! क्योंकि अच्छी-अच्छी चीज का मान होता है । जैसे आजकल प्लास्टिक निकली है, उनके ऊपर बड़ी अच्छी छपाते हैं । तो वहाँ भूल छपा करके कि इसने ये भूल की है, इसलिए ये पापात्मा है जो मैं आ करके इन साधु लोगों का भी उद्धार करता हूँ । ये सब साधु लोगों की कांफ्रेंस तो उनको जो अगर मिल जावे और सबको मिलजावे तो फिर ब्रहमाकुमारियों का कितना नाम हो जाए । फिर विहंग मार्ग हो जाए । अभी चींटी मार्ग है ना! अभी ये कोई इंटरफियर नहीं करते हैं यानी ये कोई कौरवों के राज्य में मारामारी का प्रबंध या लड़ाई का मैदान या टैक्स वगैरह उनसे इनका कोई कनेक्शन नहीं है । ये तो कनेक्शन है ही साधु लोग से, विद्वानों से । तुम्हारा है ही विद्वानों से युद्ध । व्यास भी तो कोई विद्वान होगा जिन्होंने बैठ करके ये शास्त्र रचे हैं । तो जबकि बाप कहते हैं कि व्यास की भूल है तो मनुष्य नहीं कह सकें, सन्यासी नहीं कह सकें, विद्वान नहीं कह सकें । बाप के नाम पर लिखत है कि बाबा कहते हैं व शिवबाबा बच्चों को समझाते हैं कि बच्चे, ये व्यास ने भूल कर दी है जो कृष्ण का नाम डाल दिया है और फिर मैं सर्वव्यापी हूँ ये भी वास्तव में भूल है । इस भूल के कारण ये गीता खण्डन की हुई है । ये भक्तिमार्ग के काम में आती है । भक्तिमार्ग का भी नाम न लिखें, बस इनकी भूल प्रसिद्ध करनी है । अगर ये भूल साबित हो जाए तो भारत को बाप से स्वर्ग की स्थापना का वर्सा मिलता है । अभी तो कलहयुग है और बाप यहाँ बोलते हैं कि अभी मैं आया हुआ हैं और ये राजयोग सिखला रहा हूँ । कृष्ण ने नहीं सिखलाया था । मैं सिखला रहा हूँ ब्रहमा मुखवंशावली बच्चों को, ब्राहमणों को जो फिर ये इम्तहान पास करके मनुष्य से देवता बनेंगे ।........तो बच्चे कोई थोड़े तो नहीं हैं क्लास में पचास-पच्चीस । ये तो सैकडों है, हजारों में आ जाएँगे । तो जब तुम इतनी बहुत हैं तो लिख तो सकते हो ना कि हम सभी जो ब्राहमण ब्रह्मा-मुखवंशावली हैं, ये अनेकानेक ब्रहमाकुमार और कुमारियों के नाम से निकलना है । तो फिर बड़े-बड़े विद्वानों के कुछ कान खड़े रहेंगे । वहाँ तो बड़े-बड़े आदमी आते हैं ना । ये अच्छी तरह से बहुत छपाने चाहिए और बहुत अच्छे करके । क्या होगा? 2-4 हजार रूपया खर्चा होगा । छोटा पर्चा भी होगा ना सिद्ध करके दिखलाने के लिए ।...................कोई हर्जा नहीं है; क्योंकि प्रजापिता तो कोई सूक्ष्मवतन में नहीं रह सकता है । तो जरूर इसमें भी कोई भूल है; क्योंकि प्रजापिता कोई सूक्ष्मवतन में होता नहीं है । प्रजापिता जरूर यहाँ चाहिए । तो फिर उनको सिर्फ समझाना पड़े । ब्रहमा को तो दिखलाना पड़े ना । तो बाबा इनकी आइडिया देते रहेंगे । छपाने वाले का भी बुद्धि चाहिए । जैसे अभी वहाँ एग्जिबिशन करते हैं ना । उसमें भी ये प्वाइंट अच्छी तरह से बहुत छपानी है । कागज भी छपाना है । जो आवे उनको यहाँ समझाना है कि बस, भारत की ये एक ही भूल है, इसलिए ड्रामा अनुसार कौड़ी जैसा बनता है । जरूर कोई मनुष्य हराते हैं । कोई भूल तो करते हैं ना! जो हीरे जैसा था और अब कौड़ी जैसा बना है । तो जरूर कोई भूल तो की होगी ना । भारतवासियों ने कोई पाप तो किया होगा ना! जो पुण्यात्मा से पापात्मा बन पड़ते हैं सो जरूर कोई तो भूल है ना । तो भूल ये एक बता देना चाहिए । भारत जो पुण्यात्मा था, पवित्र आत्मा था, ये अपवित्र आत्माएँ कैसे बनती हैं? जरूर जैसे कोई हार खाते हैं तो जरूर कोई भूल होती है ना । तोवो भूल बताना है कि भारत जो सोने जैसा था अभी ये क्यों? ये कौन-सी भूल है? तो भूल यह निकाल देना है । एकज भूल कि एक व्यास ने भूल की है । जो सभी विद्वान-आचायों को भुलाय दिया है और गीता के भगवान का नाम खण्डन कर दिया । बच्चे का नाम बाप के जगह रख करके बाप को बिल्कुल ही उड़ाय दिया । तो बड़ा युक्ति से लिखना है अच्छी तरह से । ये गीताएँ अगर हिन्दी में छप जाएँगी तो ये भी सबको मिलेंगी । उनमें तो बहुत कुछ ही अच्छा डिटेल में समझाया गया है, परन्तु ये है नटशेल में । तो ये बाबा का खेल है ना, जिसको अल्लाह कहते है, जो अबलदीन स्थापन करते हैं । देखो, उसमें भी ऐसे दिखलाया कि एक ही ठक से बहिश्त स्थापन हो जाता है । अल्लाह ने अव्वल धर्म जो स्थापन किया उनमें हीरे और जवाहरों वगैरह के बड़े महल दिखलाते हैं । है तो बरोबर एक ठक से । उसको एक सेकण्ड भी कहते हैं कि एक सेकण्ड में बहिश्त का, स्वर्ग का मालिक वा जीवनमुक्त । ऐसे-ऐसे विचार जब बच्चे करने लग पड़े, इस विचार करने में कोई व्यवहार को या फलाने को कोई नुकसान नहीं पहुँचता है । उनसे इन बातों का कोई कनेक्शन ही नहीं है । जैसे मनुष्य वेद-शास्त्र-ग्रंथ वगैरह सब करते हैं, उनका कनेक्शन कोई व्यवहार से थोड़े ही है । वो भक्तिमार्ग अलग, वो व्यवहार अलग । ये ज्ञानमार्ग अलग है, व्यवहार अलग । वो तो कहते ही है व्यवहार में रहते हुए जैसे भक्ति करते हो, फलाने-फलानों को याद करते हो, वैसे व्यवहार में रहते हुए मुझे याद करो तो तुम्हारा विकर्म विनाश होगा । ऐसे नहीं है कि भक्तिमार्ग वाले कोई धंधा छोड़ देते हैं । वैसे वो तो है वैराग और भले ये भी वैराग है; परन्तु यह तो वैराग है एकदम सारी दुनिया से; क्योंकि उसमें समझाया जाता है कि अभी 84 का चक्कर पूरा हुआ, अभी वापस चलना है । यहाँ थोड़ी सी बात अगर अच्छी तरह से लिख देवें सबके कान पर पड़ जावे तो तुम्हारा जो ये चींटी मार्ग से झाड़ बढ़ता है वो थोड़ा विहंग मार्ग से हो जाए और जो घड़ी-घड़ी अच्छी तरह से चलते-चलते संशय बुद्धि हो जाते है, बैठे-बैठे जो माया थप्पड़ मार देती है, तो जब बहुत देखेंगे तो विश्वास होता है ना, तो एक-दो को बहुत खबरदार रहेंगे । फिर भी माया है बड़ी जबरदस्त । देखो, कैसे अच्छे-अच्छे सेन्टर्स स्थापन करने वाले भी चलते-चलते बिचारे कैसे माया से हराय देते हैं । (म्युजिक बजा) अभी इतना जगाते हैं बच्चों को; पर ऐसा बच्चा फिर नहीं निकलेगा जो अच्छा ऐसे दिया और लिख करके भेज देवे कि हम ऐसे छपाना चाहते है, मेरा विचार ये है, ऐसे फिर कोई नींद से जागता नहीं है । मीठे-मीठे लकी ज्ञान सितारों प्रति मात-पिता, बापदादा का नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार यादप्यार और गुडनाइट । (बच्चों ने कहा- गुडनाइट)।