23-09-1964     मधुबन आबू     प्रात: मुरली    साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हेलो, स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुलभूषणों को हम मधुबन निवासियों की नमस्ते, आज बुधवार सेप्टेम्बर की तेईस तारीख है, प्रात: क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।

रिकॉर्ड :-

माता ओ माता जीवन की दाता .........
 

ओमशांति । बच्चों ने माँ की उपमा सुनी । यूँ वास्तव में उपमा तो एक की ही होनी है । मां को भी जगद अम्बा बनाने वाला फिर भी तो कोई और है । जन्म देने वाला तो जरूर कोई और है । तो ऐसी माँ को भी जन्म किसने दिया? कहेंगे पतित-पावन परमपिता परमात्मा शिव ने दिया । तो फिर भी महिमा चली जाती है एक ही पतित-पावन परमपिता ज्ञान सागर शिवबाबा की । वो बैठ करके बच्चों को अपना और अपनी रचना के आदि-मध्य-अंत का और पतितों को पावन करने का राज समझाते हैं । ये तो बच्चे ही समझ गए कि इस समय में पतित राज्य है, जिसको फिर भारतवासी रावण राज्य ही कहेंगे; क्योंकि अभी दशहरा आता है ना । ये तो बच्चों को समझाया गया है कि ये अंधश्रद्धा के उत्सव हैं, क्योंकि ऐसे तो है नहीं कि कोई एक रावण था और लंका का राजा था । लंका तो फिर कहा जाता है श्री लंका को । तुम जानते हो कि यहाँ एक पुल भी बॉधी हुई है और दिखलाते हैं कि राम, जिसकी सीता चुराई गई थी, यह एक दंतकथा है । तो ये जो भी नॉवेल्स होते हैं इनको भी दंतकथाएँ कहा जाता है । भारत में भारतवासियों का जो शास्त्र हैं वो भी एक दंतकथा होती है । अभी ऐसे तो कोई नहीं समझते हैं कि रावण लंका का राजा था, श्री लॉन का राजा था । अगर कोई 10 शीश वाला रावण श्रीलॉन का राजा था, तो फिर लंका में ही रावण का एफीजी भी जलाते होंगे, परन्तु बाबा नहीं समझते है कि कोई रावण की एफीजी कोई लंका में जलाते होंगे; क्योंकि ये यहाँ के ही हैं । यहाँ धाम-धूम से, अखबार में भी यहाँ पड़ता है कि रावण को बड़े-बड़े महाराजा, उसमें भी सबसे जास्ती उत्सव मनाते हैं मैसूर का महाराजा । शायद मैसूर में उनका इस दंतकथा से बहुत प्रेम देखने में आता है । समझते तो बिचारे कुछ भी नहीं हैं । उनको समझाना भी तो तुम बच्चों का काम है कि क्या करते हो ये रावण का, क्योंकि जिसका बुत बना करके जलाया जाता है वो होता है दुश्मन का । आगे जब बड़ी लड़ाई लगी थी तो हिटलर का एफीजी बना करके जलाते थे । एक- दो के दुश्मन को । दुश्मन कोई एक मनुष्य नहीं होता है, बहुतों के दुश्मन होते हैं । जैसे नेहरू को भी पाकिस्तानी समझते थे । तो उनकी भी एफीजी कहाँ-कहाँ बना करके जला दी; क्योंकि एक मनुष्य दुश्मन है । ये रावण किसका दुश्मन था । तो ऐसे सिद्ध करते हैं कि ये भारत का दुश्मन था, भारतवासियों का दुश्मन था, परन्तु दुश्मन को भी एक दफा जलाया जाता है । अगर समझो, नेहरू को लो या कोई को भी लो, अगर दुश्मन है तो फिर हर बरस जलानी चाहिए जब तलक वो जीता रहे, एक दफा नहीं; परन्तु कोई भी दुश्मन को बरस-बरस तो कोई जलाते ही नहीं हैं । बहुतों की एफीजी जलाते हैं । देखो, चीन का प्रेसिडेंट होगा ना... .तो उनकी भी एफीजी बना करके जलाते हैं; क्योंकि दुश्मन है । अभी ऐसे नहीं कि बरस-बरस उसका एफीजी जलाते रहेंगे । कोई बरस-बरस जलाते है? नहीं । जलाया होगा तो एक-दो दफा जलाया होगा; परन्तु ये फिर कौन है, जिसकी भारत में बहुत समय से 10 शीश और बहुत भुजाएँ वाली एफीजी बनाय जलाते रहते हैं? ये दुश्मन कब से शुरू हुआ है, जो मरता ही नहीं है? आखरीन में तो ये दुश्मन खत्म हो जाएगा या रहेगा ही रहेगा? तुम बच्चों को भी तो समझाना है ना । तुम बच्चे तो जानते हो यह दुश्मन जो रावण है, वो तो न सिर्फ भारत का है, यूँ ये कहेंगे कि भारत का खास, क्योंकि भारत ही बहुत पवित्र था और भारत को ही रावण ने अपवित्र बनाया है । इसको कहा ही जाता है रावण राज्य, क्योंकि कहते थे कि लंका में इनका राज्य था । तो जरूर कहेंगे उनकी कोई रानी भी होगी । तो फिर दिखलाते हैं कि मंदोदरी एक उनकी रानी भी थी । तो जैसा कि किंग भी था तो क्वीन भी थी । ऐसे जरूर समझा जाएगा ना; परन्तु अभी यह तुम्हारी बुद्धि में ठहरती नहीं है । वो जो रावण सम्प्रदाय हैं, वो तो बैठ करके ये बातें सुनें । तुम जो दैवी ईश्वरीय सम्प्रदाय बने हो, तुम तो ये नहीं मानेंगे कि रावण कोई अभी तलक जीता है या क्या है; क्योंकि समझते तो नहीं हैं ना! वो तो बिचारे समझते हैं कि अभी जीता है, तो फिर उसकी एफीजी जलाते हैं; क्योंकि जी रहा है । नहीं तो एक दफा मार दिया फिर खलास हुआ ना! अच्छा, जितनी उनकी आयु है इतना तो भला जलाना चाहिए ना! यहाँ तो हर बरस जलाई जाती है । जो भी कमेटी के बड़े बनते हैं, तो उनको बच्चों को समझाना चाहिए । जैसे मैसूर का महाराजा है । वो तो सबसे जास्ती अरे । बहुत फॉरेनर्स को भी मंगाते हैं दिखलाने के लिए । तो फॉरेनर्स भी बिचारे देखेंगे तो ऐसे कहेंगे कि भारत में कुछ ऐसा हुआ होगा जो ये दिखलाते हैं । बाकी ऐसा कुछ हुआ तो है नहीं । तो नॉवेल हो गई ना! एक नाटक बना देते हैं । पूरा नाटक भी बनाते हैं रावण और सीता के हरण का । तो अभी तुम बच्चों को एक तो रावण की यह बात समझानी पड़ती है । यह तो बड़ी जबरदस्त बात है जो उनको समझाना पड़े कि यह रावण का राज्य शुरू कब से हुआ है, जो जलाते आते हो? जलाते आते हो तो तुम जरूर अभी रावण के राज्य में बैठे हो और है भी बरोबर रावण राज्य; क्योंकि पतित राज्य को ही रावण राज्य कहते हैं और पावन राज्य को ही राम राज्य कहते हैं । राम राज्य और रावण राज्य, सो तो तुम बच्चों को समझाया गया है कि बरोबर हाफ एण्ड हाफ है । रावण कहा ही जाता है 5 विकार को । रावण कोई और चीज नहीं है, जिनको जलाने की चीज है । तुम रावण का एफीजी बनाकर फिर थोड़े ही जलाने वाले हो । नहीं, यहाँ तो जो भी रावण की सम्प्रदाय, आसुरी सम्प्रदाय हैं वो सभी जल जाने वाली हैं । समझा ना! कोई लड़ाई की तो बात ही नहीं रहती है कि कोई राम के बन्दरों की और रावण के असुरों की लड़ाई लगी थी । ऐसे तो नहीं कहेंगे ना क्योंकि यह गाई हुई है कि रावण की और राम की यानी आसुरी सम्प्रदाय की और दैवी सम्प्रदाय की लड़ाई लगी थी । राम को तो दैवी सम्प्रदाय कहेंगे । अभी ऐसे तो कोई लड़ाई लगी नहीं है । समझाना पड़े कि अगर रावण जीता है तो फिर रावण का राज्य ठहरा । तो जरूर ये रावण सम्प्रदाय ठहरे, क्योंकि रावण है पतित बनाने वाला और राम है पावन बनाने वाला । तो जरूर पतित भी कोई बनाते हैं ना । तो तुम जानते हो कि बरोबर ये रावण, जो सर्वव्यापी है, 5 विकार जो सर्वव्यापी हैं, उनको ही रावण कहा जाता है । अगर कोई कहे कि हाँ, मेरे में ईश्वर विराजमान है । तो तुम यह समझ सकते हो कि जिसमें ईश्वर विराजमान होगा वो होगा दैवी सम्प्रदाय । उनको आसुरी सम्प्रदाय तो कह ही न सके । तो इनको समझायें कैसे? तुम बच्चों ने आगे दशहरे में चित्र तो निकाले थे । ये निकाले थे कि भई, ये है रावण सम्प्रदाय । अभी उनमें तिथि-तारीख भी डालनी पड़े । ये रावण सम्प्रदाय अभी तलक भी है; क्योंकि हर एक मनुष्य में जो 5 विकार हैं वो ही रावण है और ऐसी जो सम्प्रदाय है उनका ही विनाश होता है, उनको ही पतित कहा जाता है । तो तुम जानते हो कि बरोबर आते भी हैं कि पतित को विनाश करो और पावन की स्थापना करो । तो देखो, तुम पावन बन रहे हो और जानते हो कि बरोबर हम पुरुषार्थ कर रहे हैं । पावन भी कब बनेंगे? कब मालूम पड़ेगा कि तुम सभी पावन बन गए? जब तुम पावन बन जाएंगे तब फिर ये जो रावण सम्प्रदाय है उनको आग लगेगी । पीछे सतयुग में तो कोई एफीजी नहीं बनाएंगे ना । वहाँ तो रावण सम्प्रदाय होती नहीं है, तो फिर वहाँ उनकी एफीजी नहीं बनानी पड़ेगी । पीछे तो सभी पावन हो जाएँगे । तो कौन पावन होंगे? जरूर कहेंगे आत्मा पावन होती है । तो आत्मा पावन बननी है, क्योंकि पतित है । उसको ही कहा जाता है कि बरोबर यह जो आत्मा है, उसमें जो ताकत सतोप्रधान की थी यानी जागती ज्योत थी, पतित बनने से फिर वो ज्योत उझानी गई है अर्थात् आत्मा ऐसी चीज नहीं है ज्योत वगैरह यह समझने की बात है कि मैं आत्मा अभी पतित बन गया हूँ मेरे में अभी उड़ने की ताकत नहीं है, क्योंकि 5 विकार से ये आत्मा आयरन एजेड हो गई है । ज्योति आदि की बहुत बातें समझाने से मनुष्य बहुत मूंझ भी पड़ते हैं । तो उनको यह जरूर समझाना है कि आत्मा को जागृत करने वाला.........ये तो सभी कहते हैं कि बरोबर...........ज्योति स्वरूप परमपिता परमात्मा आएँगे । ज्योति स्वरूप तो तुम भी हो और परमपिता परमात्मा भी है, क्योंकि बच्चे ही तुम उनके हो । तो तुम्हारी ज्योति, जो ताकत है वो जैसे कि उझियानी हुई है; क्योंकि खाद पड़ गई है । बाकी जा करके एकदम जूरी जैसे फिर दृष्टांत देते हैं कि जब मनुष्य मरते हैं तो 12 दिन दीवा जगाते हैं । उनकी बड़ी सम्भाल करते हैं । तुम जानते हो कि बरोबर घी डालने से बहुत अच्छा जलता है । पीछे मंदा होकर बाकी उझान के तरफ होते हैं जो फिर जा करके घी डालते हैं । ऐसे होते हैं ना! तो यह आत्मा की भी ऐसे ही है । बाप अभी आ करके ये ज्ञान से ज्योत जगाते हैं । कहते है ना - तुम ज्ञान से ज्योत जगाई बाबा ने । फिर ये जगी हुई ज्योति कितना समय चलती है? वो तो सुबह को जगाते हैं, फिर भी एक दो दफा घी डालते हैं । नहीं रात को जगाते हैं । जब मरते हैं तो वो सारा दिन जगाते रहते हैं । तो अभी तुम ये जानते हो कि अभी तुम्हारी ज्योति जग रही है । जगते-जगते फुल जग जाएगी । फिर उस ज्योत को बुझने में तुमको 5000 वर्ष लग जाते हैं । जबकि फिर बाप आय करके तुम्हारे में ज्ञान का घृत डालें । समझा! अभी तुम हर एक जीव आत्मा की ज्योत जग रही है । अच्छा, फिर ये ज्योत उड़ाने में यानी बहुत कम आ जाएगी, जब ज्ञान घृत डालें । फिर उनको 5000 वर्ष लग जाते हैं; क्योंकि फिर ज्योत उझाती जाती है, कलाएँ कम ही होती जाती हैं; क्योंकि एक जन्म पास्ट हुआ, थोड़ी कला कम । बहुत थोड़ी-थोडी कला ऐसे कमती होती जाती है । अभी तुम जानते हो कि अभी हमारी ज्योत जगती है । फिर यहाँ भारत में सतयुग में घर-घर में सोझरा होगा । भारत की बात है ना! दीपावली भी भारत में मनाई जाती है । तुम जानते हो कि अभी तो घर-घर में अंधियारा है । खुशियाँ तो कोई है नहीं बिल्कुल ही । खुशी तो सतयुग में होती है । कलहयुग में खुशी तो होती नहीं है । तो तुम जानते हो कि हम खुशी से सतयुग से ले करके त्रेता तक बहुत खुशी मनाते हैं; क्योंकि ज्योत बहुत अच्छी जगी है । बहुत थोड़ी-थोड़ी कमती होती जाती है । फिर जब रावण राज्य आता है तब तो जल्दी-जल्दी से कम होते-होते इस समय में जैसे उझियानी पड़ी है । यानी खाद पड़ गया है । अब ये सब तुम्हारी बुद्धि में तो अच्छी तरह से है ना । अच्छा, फिर बाप आ करके तुम्हारी आत्मा में ज्ञान का घृत डालते हैं । इसको फिर घृत कहते हैं; परन्तु अपन तो नॉलेज ही कहेंगे कि बाप आ करके हमको फिर से जागती ज्योत बनाते हैं । अब फिर हमारी ज्ञान की चक्षु खुल जाती है । तो देखो, कितनी तुम्हारी ज्ञान की चक्षु खुल गई है कि बरोबर अब हम, जो हमारी सारी कला-काया खलास हो गई है अर्थात् राहू का ग्रहण लग गया है, हम बिल्कुल ही काले बन गए हैं । राष्ट्र का ग्रहण यहाँ तो घड़ियाँ दिखलाते हैं कि फलानी घड़ी से शुरू होगा, फलानी घड़ी में बन्द होगा । तुम्हारा जो ये राष्ट्र का, माया का काला होने का ग्रहण है, इसको कहा ही जाता है राष्ट्र का ग्रहण चन्द्रमा-सूर्य को काला करने का होता है । कोई दूसरा रंग नहीं, काला । तो तुम जानते हो कि तुमको काला होने मे कितना समय लगता है । शुरू से ले करके थोड़ा-थोड़ा फिर जब माया आती है ना तो बहुत काले बनने शुरू हो जाते हो । फिर कहेंगे कि इस समय से रावण आ करके; क्योंकि रावण को ही राहू की दशा कहेंगे । तो तुम्हारे ऊपर राहू की दशा है । राहू की दशा है सबसे कड़ी और सबसे अच्छी है बृहस्पत की दशा । तो तुमको अभी बृहस्पत की दशा मिल रही है प्रैक्टिकल में यानी तुम पढ़ते हो, पुरुषार्थ करते हो । क्या बनने के लिए? ये विश्व का मालिक बनने के लिए । किस द्वारा? वृक्षपति वा बृहस्पति, फिर गुरु भी तो है ना! वृक्षपति बृहस्पति और वो है गुरु । कौन-सा गुरु? अविनाशी गुरु । अविनाशी गुरु किसका? अविनाशी आत्माओं का । वो जो मनुष्य हैं वो मनुष्य कोई आत्मा का गुरु वास्तव में नहीं बनते हैं, वो तो मनुष्य मनुष्य का गुरु बनते हैं । तुम्हारी आत्मा का आ करके गुरु कौन बना है? वृक्षपति परमपिता परमात्मा । यह तो तुम ही समझती हो कि बरोबर हमारे ऊपर अभी बृहस्पति की दशा है । स्वर्ग के तुम मालिक बनेंगी, ये तो जरूर है । सुख तो अविनाशी है; परन्तु उस सुख में भी पुरुषार्थ की जरूरत है कि हम उस सुखधाम के महाराजा बनें, महारानी बनें या क्या बनें, क्योंकि स्कूल में पुरुषार्थ तो हर एक का अपना-अपना चलता है ना । तो ये हो गया स्कूल । इनको गीता-पाठशाला कहा जाता है । किसकी पाठशाला? ये रुद्र की या शिव की; क्योंकि ज्ञान सागर है ना । तो तुम अभी उस ज्ञान सागर की पाठशाला में पढ़ रहे हो । यानी परमपिता परमात्मा, जो भगवानुवाच तुमको राजयोग सिखलाय रहे हैं । कौन सिखला रहे हैं? बाबा सिखलाय रहे हैं । कौन-सा बाबा? हमारा अविनाशी आत्माओं का अविनाशी बाबा । बाबा ने समझाया है कि एक है जिस्मानी बाबा, एक है रूहानी बाबा । अभी दोनों का कॉनट्रास्ट भी तुम बच्चों को बताना है कि रूहानी बाबा कब मिलते हैं, जिसको रूह भक्तिमार्ग में याद करते रहते हैं । सभी जो भी भगत हैं वो दो बाप को जानते हैं । एक जिस्मानी, जिसको कहेंगे विनाशी बाप । घड़ी-घड़ी विनाश होते हैं ना । आत्मा तो विनाश नहीं होती । अभी आत्मा कहती है । आत्मा समझ गई कि बरोबर हमारा जो लौकिक बाप यानी जिस्मानी बाप है, वो तो हम बदलते आते हैं । सतयुग से ले करके हम बाप बदलते आते हैं । यानी बाप बिगर तो बच्चे का जन्म नहीं हुआ । यह समझने की प्वाइंट्‌स हैं, क्योंकि विशाल बुद्धि मिली ना । हम कब से दो बाप वाले बनते हैं? तुम जानते हो कि सतयुग में एक बाप रहते हैं और उनको ही याद किया जाता है । उनको तो कोई याद ही नहीं करते हैं; क्योंकि आत्मा को याद करने की उनकी दरकार नहीं रहती है, क्योंकि आत्मा को सतयुग में अपना शरीर जो मिलता है वो गोरा मिलता है और प्रालब्ध का शरीर मिलता है, इसलिए वो बाप को नहीं याद करती है । अभी इस समय में भक्तिमार्ग में तुमको समझाना जरूर है । तुम्हारा एक लौकिक बाप है, वो है विनाशी । घड़ी-घड़ी तुमको नया बाप जरूर मिलता है जब शरीर छोड़ते हो । वो तो हो गया विनाशी बाप । तुम जो आत्मा अविनाशी हो, वो अविनाशी बाप को भी याद करते हो । तुमको जब दुःख लगता है तब कहते हो ओ परमपिता! उसका नाम ही है परमधाम में रहने वाला पिता । लौकिक पिता को कभी परमपिता नहीं कहेंगे । समझाना तो बहुत जरूरी है । तुमको तो अभी समझाना है, सतयुग की बात तो पीछे रहेगी । अभी तुमको समझाना जरूर है । रावण के लिए तो तुमको समझाना ही है । तुमको फिर यह..निकालना है । समझाना है कि रावण राज्य अभी है यानी पतित राज्य है और पतित को पावन करने वाले को बुला रहे हैं । तो कौन है? वो है अविनाशी बाप । बच्चों को दो बाप जरूर सिद्ध करना है और इनमें ही सारा राज है । बरोबर.. आत्मा तो अविनाशी है ही । उनका भी बाप है जरूर । विनाशी बाप को भी तो याद करते हैं; क्योंकि उनका तो लौकिक बाप है ही । फिर परलौकिक परमपिता को भी याद करते हैं । उनको परमपिता नहीं कहेंगे, उनको परमपिता कहेंगे । हर जन्म में, जब भी दूसरे बाप मिलते हैं तभी भी उनको जरूर याद करते हैं । वो बदलने वाला नहीं है, उनका नाम-रूप बदल जाता है । उनको जो याद करते आते हैं, कभी बदलते नहीं हैं । बाप अपने लिए ही कहते हैं कि तुम बरोबर मुझे याद करते आए हो- हे परमपिता! फिर कह देते हो 'परमात्मा । परम आत्मा यानी परमात्मा । उनको याद करते आते हो जरूर । कब तक तुमको याद करना है, कब तुमको मिलना. वो तो तुम जान गए हो । तो बरोबर जब कलहयुग का अंत होता है, भक्तिमार्ग का अंत होता है तब वो भक्तों को फल देने के लिए आते हैं, क्योंकि फिर भक्ति खत्म हो जाती है । भक्तों को क्या फल देते हैं? बाप ने तो समझाया है कि बरोबर सब भक्तों को हम मुक्ति व जीवनमुक्ति देता हूँ । बाकी जीवनमुक्ति ही कहेंगे, क्योंकि मुक्ति भी कहना होता है, जीवनमुक्ति भी कहना होता है । उनको ही पतितों को पावन बनाना है । ये जानते हो कि बरोबर सतयुग में एक धर्म होता है अर्थात् उनको कहेंगे वननेस । ये जो कहते हैं ना वननेस होनी चाहिए, सभी मिल जावें । अभी सभी धर्म तो वननेस नहीं हो सकते हैं ना । जब एक राज्य हो जाता है तब पवित्रता भी है, शांति भी है तो सुख भी है और भारत में था जरूर । फिर उस समय में तो कोई रावण नहीं जलाय सकते होंगे; क्योंकि दुःख देने वाली कोई चीज ही नहीं है । ये तो रावण राज्य है इसलिए रावण को जलाते रहते हैं । तो तुमको यह जरूर सबको समझाना है कि दो बाप सिद्ध कर देना है कि एक अविनाशी आत्मा का बाप; क्योंकि आत्मा भी अविनाशी तो बाप भी अविनाशी और आत्मा. विनाशी बाप होते भी उनको जरूर याद करती है । यह बहुत अच्छी तरह से बुद्धि में डालो कि भक्तों के दो बाप जरूर हैं । सब भगत हैं, साधु भी भगत हैं, सब बच्चे भगत हैं, क्योंकि ये है ही भक्ति कट । इसको कहा ही जाएगा ब्रहमा की रात । दो बाप का समझाने से फिर समझेंगे वो बाप है ही अविनाशी । उसको कहा ही जाता है नई दुनिया रचने वाला बाप । तो हो जाएगा न्यू वर्ल्ड । क्या रचने वाला? नई दुनिया । नई दुनिया में तो देवी-देवताएँ थे । फिर वहाँ दुनिया नई से पुरानी बनती है । देखो, तुम पुरानी बने हो ना! अब 84 जन्म का हिसाब करेंगे - नई दुनिया में हमारे कितने जन्म बीते, पुरानी दुनिया में कितने जन्म बीते । ये तो कोई समझ नहीं सकते हैं; क्योंकि 84 जन्म का हिसाब पड़ा हुआ है । ऐसे भी नहीं कोई कहेंगे कि 84 जन्म हाफ एण्ड हाफ होना चाहिए । 42 नए-नए, 42 पुराने । नहीं । फिर समझाते हैं - यहाँ तुम्हारी आयु बड़ी है और भारत में गाया जाता है कि आगे भारत की एवरेज आयु सवा सौ वर्ष या डेढ सौ वर्ष थी । अभी भारत की ही आयु को कहते हैं कि 35 वर्ष हुई । ऐसे हो नहीं सकता है कि हाफ एण्ड हाफ हो सकती है ...क्योंकि 84 का तो हिसाब चाहिए ना । मुख्य बात है कि बाबा ने आ करके कहा है कि बच्चे, तुम्हारा 84 का चक्कर पूरा हुआ । 84 जन्म को तुम बच्चे नहीं जानते हो, हम तुमको बैठ करके समझाते हैं । 84 के जन्म को सिवाय परमपिता परमात्मा के कोई समझा तो नहीं सके ना । ये ड्रामा है ना, उसको भी तो समझना जरूर है । मनुष्य समझेंगे बेहद का ड्रामा । 84 जन्म का चक्कर भी मनुष्य जानेंगे, परन्तु कोई जानते नहीं हैं.... । बाप खुद कहते हैं मैं तुमको 84 जन्म का राज समझाता हूँ । कितना बड़ा अच्छा राज है । तुम कितने खुश होते हो । हाँ, अभी 84 पूरा हुआ, अभी चलो हम अपने धाम में चलें । इसके लिए पुरुषार्थ करना है जरूर । नाटक पूरा होता है ये तुम समझते हो । दुनिया नहीं समझती है । वो समझते हैं नाटक पूरा होने में 40 हजार वर्ष पड़े हैं । इसलिए वो बिचारे घोर अंधियारे में हैं । तो उन्हें तुमको जगाना है । अच्छा, टोली ले आओ ।.. भगवान कहा ही जाता है परमपिता को । भगवान उनको ही कहेंगे । तुम बरोबर कहते हो बाबा । शिव को बाबा ही कहा जाता है । तो बाबा जरूर वर्सा देंगे ना । तो देखो, कैसे वर्सा देते हैं । कैसे राजयोग सिखलाते हैं । ..उनको सर्वव्यापी नहीं कहते हैं । जो बड़ा बाबा है उनको सर्वव्यापी कह देते हैं । भूल है ना । 5 विकार सर्वव्यापी हैं । उसके बदले में यह लोग भूल करके कह देते हैं ईश्वर सर्वव्यापी । ऐसे ही जैसे बच्चे होते हैं ना, नहीं जानते हैं ।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता, बापदादा का यथा योग, यथा सर्विस तथा याद और प्यार । तो जितनी जो बहुत सर्विस करते रहेंगे वो बाप को भी याद करते रहते हैं, क्योंकि दूसरों को बाप की याद दिलाते हैं । अभी यह दो बाप की तो याद दिलानी है ना । एक और दूसरा । जो मेरी जास्ती याद दिलाते हैं वो मेरा जास्ती सर्विसेबुल बच्चा है । तो कहते हैं नम्बरवार सर्विसेबुल बच्चों को यादप्यार और गुडमॉर्निग ।