26-10-1964     मधुबन आबू     प्रात: मुरली    साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हेलो, स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुलभूषणों को हम मधुबन निवासियों की नमस्ते, आज सोमवार अक्टूबर की छब्बीस तारीख है, प्रात: क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।

रिकॉर्ड - बचपन के दिन भुला न देना..........

ओमशांति । बच्चों ने मीठा-मीठा गीत सुना । बेहद का बाप अर्थात् परमपिता परमात्मा बच्चों प्रति समझाय रहे हैं । उसको ही कहा जाता है श्री-श्री यानी श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ । श्री-श्री दो दफा है न । श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ । शिवभगवानुवाच या रुद्रभगवानुवाच । रुद्र तो परमपिता परमात्मा को कहा जाता है, शिव भी परमपिता परमात्मा को कहते हैं । तो परमपिता परम आत्मा इस शरीर द्वारा अपने बच्चे आत्माओं को समझा रहे हैं । यहाँ कोई साधु-संत-महात्मा या कोई मनुष्य नहीं कहेंगे कि तुम आत्माएँ हम तेरा परमपिता परम आत्मा माना परमात्मा तुमको इसके मुखकमल से समझा रहा है । देखो, गौमुख जाते हैं ना । अभी गौमुख से ज्ञान कैसे निकले? वो बाप है ज्ञान सागर । इसमें गऊ मुख से पानी की तो बात नहीं है ना । ऐसे पक्का निश्चय करो कि बाप अहम् आत्माओं को बैठ करके पढ़ाते हैं; क्योंकि यूँ भी अज्ञान काल में आत्मा ही सब संस्कार लेती है, आत्मा पढ़ती है, आत्मा धंधा करती है इन ऑरगन्स द्वारा; क्योंकि आत्मा है अविनाशी, शरीर है विनाशी । आत्मा खुद कहती है कि मैं आत्मा एक शरीर छोड़ फिर दूसरा लेता हूँ भिन्न नाम-रूप, देश-काल में यानी सतयुग में पुनर्जन्म लेता हूँ, नाम-रूप फिर जाते हैं । फिर वहाँ स्वर्ग में पुनर्जन्म लेता हूँ, यह इसकी आत्मा कहती है या बाप समझाते हैं - हे बच्चे, स्वर्ग में हो तो तुम पुनर्जन्म स्वर्ग में लेते हो । एक शरीर छोड़ फिर दूसरा लेते हो । नाम-रूप, देश-काल फिर जाता है । बाबा बहुत अच्छी तरह से समझाते हैं, क्योंकि कोई-कोई नए भी हैं, कोई-कोई यहाँ मिले भी आकर नए हैं । बच्चों को यह तो पता है कि भगवान का आना ही शिवरात्रि है, शिवबाबा आया हुआ है । है निराकार । तो ये इस रथ में आते हैं और समझा रहे हैं कि बच्चे, तुम हमारे अभी बच्चे बने हो । अभी तुमको बहुत खुशी चढ़ी हुई है कि हम अभी बेहद के बाप से इस ब्रहमा द्वारा पढ़ रहे हैं) । तो उनको शरीर चाहिए ना । आत्मा कहती है मैं शरीर द्वारा पार्ट बजाताहूँ । आज कोई कारपेन्टर का पार्ट बजाते हैं, कोई बैरिस्टर का पार्ट बजाते हैं । ये कौन पार्ट बजाती है? आत्मा; क्योंकि आत्मा को पार्ट बजाना है ना । नंगा आना है और शरीर धारण करना है यानी गर्भ में जाना है । बाप कहते हैं - मैं गर्भ में थोड़े ही आता हूँ । मैं ऐसे थोड़े ही कहूँगा कि मैं परमपिता परमात्मा एक शरीर छोड़ता हूँ, दूसरा लेता हूँ । नहीं । मैं नहीं लेता हूँ तुम लेते हो, ये लेता है । इनके लिए कहते हैं कि ये लेता है । इस आत्मा ने 84 जन्म पूरा किया है । ये आत्मा अपने जन्मों को नहीं जानती थी । अब इस आत्मा ने अपने 84 जन्म को जाना है ।.... ....अभी आत्मा के लिए बात करते हैं, आत्मा ही कहती है - मैं सूर्यवंशी घराने में जन्म लिया, पुनर्जन्म लेते आया । फिर चंद्रवंशी घराने में पुनर्जन्म ले आया ।बरोबर आत्मा कहती है - हम पुनर्जन्म लेते-लेते पहले सतयुग में, फिर त्रेता में, फिर द्वापर में, फिर कलहयुग में आए, हमने द्वापर-कलहयुग में बाप को बहुत याद किया - ओ परमपिता परमात्मा! वा परमपिता परमात्मा की यहाँ पत्थर के लिंग की पूजा भी की और याद करते रहे । मैं आत्मा सतयुग में तो मालिक हूँ । कभी भी किसकी पूजा नहीं की, क्योंकि स्वर्ग है, स्वर्ग में पूजा. भक्ति नहीं होती है । भक्ति की फिर आधा कल्प । अब बाप आया हुआ है । हम उनकी गोद में शरणागत गए हैं । तो तुम सभी अभी बाप की गोद में गए हैं । कौन से बाप की गोद में? साकार द्वारा निराकार बाप की गोद में । तो बाप कहते हैं - हे बच्चे । ये ईश्वरीय जन्म भूल न जाना । बिल्कुल न भूलना । कहते हैं - बाबा, ये तो मुश्किल है । बाबा कहते हैं - मुश्किल क्या है! तुम आत्मा हो, मैं तुम्हारा बाप हूँ । मैं आया हूँ तुम सभी बच्चों को पतित से पावन बनाने । उसमें भी तुम तो पढ़ती हो । किसलिए पढ़ती हो? स्वर्ग की राजाई प्राप्त करने । मैं तुम आत्माओं को राजयोग सिखलाता हूँ । तुम सभी आत्माएँ कान से सुनती हो और धारण करती हो । किसमें धारण करती हो? आत्मा में । ये जो ज्ञान के संस्कार हैं, ये मुझ परमपिता परमात्मा में भी हैं; इसलिए मुझे कहते हैं ज्ञान का सागर, मनुष्य सृष्टि का बीजरूप । यह किसकी महिमा है? उनकी महिमा है ना । तो वो आ करके कहते हैं कि बरोबर मैं सभी मनुष्य सृष्टि का बीजरूप यानी रचता हूँ । मैं परमधाम में रहता हूँ । अभी यहाँ आता हूँ और आता हूँ एक बार, जबकि मुझे पढ़ाना होता है, पतित सृष्टि को पावन करना होता है । अभी देखो, मुझ पतित-पावन को याद करते हैं ना । पतित याद करेंगे ना । सतयुग में पावन तो नहीं याद करेंगे । वो ऐसे तो नहीं कहेंगे - हम सभी आत्माएँ जो अभी पवित्र हैं, पावन हैं, उनको पतित बनाओ । ऐसे कोई उल्टी पुकार तो नहीं करते ना । जब पतित हैं तो मुझ परमपिता परमात्मा को पावन करने के लिए बहुत बुलाते हैं, आवाहन करते हैं, परन्तु उनको मालूम तो नहीं है कि मैं कब आता हूँ । मैं आता ही हूँ संगमयुग पर । और कोई युग पर मैं नीचे कोई भी शरीर में बिल्कुल आता नहीं हूँ । मैं आता हूँ, अभी आया हुआ हूँ । तुम मीठे-मीठे बच्चों ने अभी हमारी गोद ली है । किसलिए गोद ली है? बाबा, हमको फिर से वहाँ प्राचीन, जो सिखलाया था, जिससे हम देवी-देयता बने थे या भारत हीरे जैसा बना था या भारत पावन देवी-देवता बना था जो अब नहीं है, अब पतित है, वहाँ अभी हम आपके बच्चे बन गए हैं । इसको कहा जाता है निराकारी ईश्वर की गोद । गोद निराकार की कहाँ से आवे? बच्चे कैसे बनें? निराकार बाबा कहते हैं मैं इस तन में आता हूँ । ये जैसे कि तुम्हारी बड़ी मम्मा है । वो जो मम्मा सरस्वती है जिसको जगदम्बा कहा जाता है, वो इनकी बेटी है । ये मम्मा नहीं बन सकती है सम्भालने के लिए, पालना करने के लिए । इसलिए कहते हैं कि उनको मुकर्रर किया हुआ है । उसको ही जगदम्बा कहा जाता है और उनका चित्र अलग है । इसके शरीर को जगदम्बा नहीं कह सकेंगे; क्योंकि वो बाबा भी है तो फिर मम्मा भी है; क्योंकि इन द्वारा तुमको गोद में लेते हैं । तुमको इस समय में जरूर याद करना है कि हम शिवबाबा की गोद में जाते हैं । वास्तव में है ये माता; परन्तु माता से कोई वर्सा नहीं मिलना होता है । वर्सा फिर भी बाप से मिलता है । देखो, कितनी गुह्य और युक्तियुक्त बातें हैं । इस माता की मुखवंशावली हो ना । देखो, कैसे अच्छी तरह से बात करते हैं । बोलते हैं - बच्चे, ऐसे न हो कि मेरा बन करके और स्वर्ग की बादशाही लेने के लिए पुरुषार्थ करते-करते कहाँ इस बॉक्सिग में माया से युद्ध में हार न जाना अर्थात् भाग न जाना । ये ईश्वरीय बचपन भुलाना नहीं । अगर भुलाएंगे तो रोना पड़ेगा । ये बचपन कभी भी नहीं भुलाना । हम ईश्वरीय गोद की संतान हैं । ये मम्मा है, परन्तु इसका शरीर है पुरुष का; इसलिए ब्रहमाकुमारी सरस्वती, जिसको फिर जगदम्बा कहा जाता है, वो इनकी पालना करती हैं । ये कैसे पालना कर सके? तो कलश बरोबर पहले इसको मिलता है; क्योंकि पहले ये कान सुनते हैं । पीछे फिर नम्बर में है जगदम्बा, जो इन सबकी सम्भाल करती है । अभी ये गुप्त हुई न । कितनी गुप्त बातें हैं! अच्छा, बाप कहते हैं - बच्चे, अब हम आया हूँ तुम सब बच्चों को वापस ले जाने के लिए, क्योंकि जबकि मैं संगमयुग पर आया हुआ हूँ, तो वो संगम बहुत छोटा है । उसको कहा जाता है लीप युग । जैसे एक धर्माऊ मास होता है ना । क्या अक्षर होता है? उसको पुरुषोत्तम मास कहते हैं । ये है पुरुषोत्तम युग । यानी उत्तम ते उत्तम पुरुष बनना । अभी पुरुषोत्तम माने उत्तम ते उत्तम पुरुष कौन-सा? पुरुष फिर ये है । पुरुष है तो स्त्री भी चाहिए ना । इसलिए इसका नाम ही है पुरुषोत्तम युग । यानी नर और नारी ऊँच ते ऊँच बने । किस द्वारा? बाप कहते हैं - मेरे द्वारा ऊँच ते ऊँच बनते हैं; इसलिए मेरा भी श्री-श्री है । श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ । तो ऐसा मनुष्यों को बनाता हूँ । पहले आत्मा को, जो पतित है, उनको पावन बनाता हूँ । फिर जब पतित से पावन बनती है तो वो आ करके ऐसा पुरुष पुरुषोत्तम और पुरुषोत्तमनी बनते हैं । इसको पुरुषोत्तमनी भी कहा जाता है; परन्तु बच्चे, अभी ये जो तुम्हारा जीवन है, जो इनको बनाया है, क्योंकि ये हैं विचित्र मात-पिता । इनका अपना चित्र है नहीं । बाबा ने समझाया है कि ब्रह्मा विष्णु शंकर देवताओं का भी चित्र है, इनका चित्र नहीं है । इसलिए वो बोलता है - मुझे प्रकृति का आधार लेना पड़ता है यानी इनका 5 तत्वों का जो शरीर बना हुआ है, इनका मुझे आधार लेना पड़ता है ।. ... कहते रहते हैं कि बच्चे, अभी देह सहित जो भी तुम्हारे सम्बंध हैं इन सबको भूलते जाओ । देह पुरानी है ना । इस देह सहित जो तुम्हारे सम्बंध हैं, गुरु-गोसाईं, काका मामा चाचा इन सबको भूलते जाओ और मेरे साथ योग लगाते रहो; क्योंकि भक्तिमार्ग में तुम कहते आए हो - और संग बुद्धि का योग तोड़ हम तुम संग जोडेगी । अक्षर है ना - और संग तोड़ तुम संग जोड़ेगी । बरोबर अक्षर तो है ना । हम बाप के बच्चे हैं । बाप की जो स्थापनाएँ स्वर्ग हैं उनके हम मालिक बनेंगे । इसलिए क्या करो? मामेकम याद करो । यह हुई बुद्धि की यात्रा अथवा आत्मा की यात्रा; क्योंकि मन-बुद्धि आत्मा में हैं । धारण सब आत्मा करती है, शरीर कुछ नहीं करता है । शरीर तो जड़ है । उनमें आत्मा पड़ती है तो चैतन्य होता है । आत्मा न प्रवेश करे तो जड़ है । देखो, आत्मा निकल जाती है तो शरीर मुर्दा जैसे पड़ा रहता है । वो तो ब्राहमणों को पितर वगैरह खिलाते रहते हैं । किसका? अपने बाप का । अभी बाप तो नहीं आते हैं ना, बाप की आत्मा आती है । क्या करने? कहते हैं - वासना ले जाएगी । समझा ना! ये जो ब्राहमण की आत्मा जिसमें है, वो जो खाएगी, वो जो आत्मा है सो आ करके वासना ले जाएगी ।...... कभी-कभी जिनकी स्त्री भी आती है ना । बुलाते हैं तो स्त्री में आते हैं । फिर वो समझते हैं कि हमारी स्त्री का सोल आया है; परन्तु अज्ञानवश मोहवश वो कभी-कभी उनको दान करते हैं । कोई-कोई साहुकार होते हैं तो कभी-कभी हीरे की फूली बनाय उस ब्राहमणी को पहनाते हैं । बोलते हैं कि हम अपने स्त्री को फूली का दान देता हूँ । फूली तो वो ब्राहमणी पहनेगी ना । तो ये क्या है? यह दान है । जैसे कि हम ब्राहमणों को दान देते हैं ताकि उनको पहुंचे । सब कुछ ये खाद और उनको पहुंचे । जिसको फिर वासना कहा जात है । तो बाप बैठ करके ये राज समझाते हैं कि ब्राहमण खिलाने का ये कायदा भी भारत में है, और दूसरे खण्ड में नहीं है । सुबह होता है तो न्योता भेज देते हैं....पानी वगैरह सब रख देते हैं । वो आएगी तो उनको ये करेंगे । तो आत्माएँ आती हैं, आकर बोलती हैं । उनसे पूछते हैं कि फलानी चीज कहाँ रख करके गए थे? तो एक धारा तीर्थ है - नारायणसिर । यहाँ आत्माओं को बुलवाते हैं । अभी वो रसम-रिवाज कम हो गया है और ताकत न रही है । आत्माएँ आ करके बताती भी थीं - मैं फलानी जगह रहता था, फलानी जगह फलानी चीज छोड़ करके आया हूँ । ऐसे भी होता था; क्योंकि छोटा बच्चा तो बोल न सके; इसलिए आत्माओं को बड़े ब्राहमण और ब्राहमणी में बुलाते हैं । बाबा नारायणसिर से होकर आया हुआ है तब जबकि छोटेपन में ऊँट पर या ढग्गे की गाडी पर जाना होता था । तो अभी बाप बैठकर बच्चों को समझाते हैं- लाडले बच्चे, ये मंजिल है याद की । ये लम्बी है । वो तो तीर्थ पर जाते हैं, धारा तीर्थ पर गया, अमरनाथ पर गया । चक्कर लगाकर फिर घर में आया । हाँ, ये जरूर है कि जब कोई भी तीर्थ पर जाते हैं तो विकार में नहीं जाते हैं । ये एक बड़ा लॉ है, कायदा है । भले क्रोध वगैरह कुछ भी हो जाए, लोभ हो जावे, कुछ भी हो जावे, पर काम में पवित्र जरूर रहेंगे कि हम तीर्थ पर जाते हैं; इसलिए पवित्र जरूर रहेंगे । अच्छा, फिर जब घर में आते हैं तो फिर वो अपवित्र बन जाते हैं । देखो, पवित्रता की कितनी महिमा है । हम देवताओं के पास तीर्थ यात्रा करने जाते हैं, वो पवित्र हैं तो हमको भी पवित्र जरूर रहना है । सारी बात है पवित्रता के ऊपर । बाप कहते हैं तुम जो आत्माएँ शरीर में हो, तुम तो पतित हो ना । पतित आत्मा, तो पतित शरीर । सोना अगर पतित है तो जेवर भी पतित, क्योंकि सोने को पतित बनाने के लिए 14 कैरेट, 9 कैरेट, मुलमा भी बनाते हैं । एक कैरेट भी नहीं, गिल्ड दे देते हैं । इस समय में तो बरोबर झूठी आत्मा है तो जरूर उनको शरीर भी झूठा मिलता है, क्योंकि.. खाद है इनमें । अभी पतित बने हैं तब जबकि इनमें खाद है । बस, इस समय में सभी एकदम पतित हैं । शुरू से ले करके, लक्ष्मी नारायण से ले करके, उनके राजधानी से ले करके, जो भी आत्माएँ पीछे आती गई हैं, जिनका थोड़ा जन्म है, इस समय में सभी पतित हैं । इन सभी पतित को पावन करने ...ये तो बेहद की बात हुई ना । बेहद शांति वा बेहद सुख । बरोबर सतयुग में बेहद सुख है । शांति भी है, पवित्रता भी है । इस समय में कलियुग में तीनों नहीं हैं । घर- घर में अशांति भी बहुत है । किसी-किसी घर में तो इतनी अशांति होती है, हूबहू जैसे वो पूरा नर्क है । बच्चे-बाप, स्त्री-पुरुष, ये-वो सब आपस में बहुत लड़ते-झगड़ते रहते हैं और यहाँ भी बहुत आते हैं - हमने सारी आयु पति का दुःख देखा है । बात मत पूछो । बाप आते हैं, कहते हैं - बच्चे, अभी ये बचपन भूल नहीं । अगर बचपन भूल गए तो वो जो ऊंचे का ऊँचा वर्सा मिलता है, वो भूल जाएँगे; क्योंकि सब गुमाय देंगे । ऐसे नहीं है कि फिर तुम स्वर्ग में नहीं आएँगे । अगर मुझे भुलाय दिया फारगती दे दिया या साजन समझ, अपन को सजनी समझ डायवोर्स दे दिया तो भी तुम बहुत अधमगति जाकर पाएगी । स्वर्ग में जरूर आएगी, परन्तु अधमगति यानी गरीब, कोई चण्डाल या कोई नौकर, कोई साहुकार का नौकर, वो पद जाकर पाएँगे । अगर मेरी राय पर, श्रीमत पर चलते रहेंगे तो श्रीमत पर चलकरतुम श्रेष्ठ सो श्री लक्ष्मी सो श्री नारायण बनेंगे । अभी जरूर कहेंगे ना - सतयुग में सबसे श्रेष्ठ वो बने हुए हैं । वो भी याद है कि बरोबर श्री सीता और राम त्रेता में आते हैं यानी दो कला कम । उनको बाण देते हैं । क्षत्रियपने की निशानी देते हैं । मनुष्य बिचारे समझते हैं वहाँ भी रावण की और राम की लड़ाई लगी थी । बोलते हैं - ये क्षत्रिय वर्ण में चला जाता है । तुम जो अच्छी तरह से जीतते हैं वो देवता वर्ण में जाते हैं और जो यहाँ माया से हारेंगे, युद्ध में माया पर पूरी जीत न पहन सकेंगे या नापास होंगे, 33 मार्क्स से नीचे जाएँगे तो उनको फिर क्षत्रिय कहा जाता है । वो त्रेता में सीता-राम डिनायस्टी में चला जाएगा; इसलिए उनको ये बाण हैं । वो बाण नहीं है, जो राम से युद्ध किया और बाण मारा । वो सभी हैं दंत कथाएँ । ये यहाँ की बात है कि जो अच्छी तरह से पुरुषार्थ न करेगा तो नापास होगा ; क्योंकि स्कूल है ना । मार्क्स भी तो है ना । पूरी 100 मार्क्स है 100 तो पूरी होती नहीं, 99 मार्क्स, फिर 98, 97 । तो देखो, सूर्यवंशी नम्बरवन जो गद्‌दी पर बैठेंगे, नम्बर सेकेण्ड । तो मार्क्स से कम हो गया ना । सीता-राम के लिए बताया कि वो कमती मार्क्स यानी 33 मार्क्स के नीचे आ जाते हैं तो फिर उनको नीचे पीछे पद मिलता है । सूर्यवंशी का राज्य पूरा हो तब फिर वो चंद्रवंशी वाले का शुरू हो जावे । फिर सूर्यवंशी भी चंद्रवंशी बन जाते हैं । ऐसे नहीं कि सूर्यवंशी सूर्यवंशी रह जाते हैं । नहीं, सूर्यवंशी राजधानी पास्ट हो गई । ड्रामा में फिर गई; क्योंकि ड्रामा को भी तो समझना है । देखो, ये ड्रामा है, सतयुग, पीछे त्रेता । त्रेता को कहेंगे - ये सृष्टि जो सतोप्रधान थी तो सतो हो गई; क्योंकि दो खाद पड़ गई । पीछे खाद पड़ती जानी है ना । पहले गोल्डन, फिर सिलवर, फिर कॉपर, फिर आयरन, सभी धातुओं की खाद आकर पड़ी है । तुम्हारी आत्मा उझानी हुई है यानी पत्थरबुद्धि हो पड़े हो । अब फिर तुम बच्चों को आ करके हम पारसबुद्धि बनाते हैं पारसनाथ बनने के लिए । कैसे? आत्मा को कहते हैं क्योंकि उनमे बुद्धि है ना - हे आत्मा। उठते बैठते चलते कर्म करते अपने बुद्धि का योग अथवा याद बाप से रखो । जब कोई का भोग लगाते हैं देवताओं का तो उनको याद करके। तो तुम जब भी कुछ काम करो तो जितना हो सके इतना हमको याद करो । उसमें कम से कम भला 8 घटा तो गवर्मेन्ट की सर्विस करेंगे ना । बाबा की याद करो? क्यों बोलते हैं गवर्मेन्ट की सर्विस करो? तुम्हारी याद से ये प्युरिटी में बहुत आएगी । ये दुनिया प्योर होती जाएगी । तो तुम जैसे बाबा को, पतित सृष्टि को प्योर बनाने के लिए मदद करते हो । प्योर जो बनेगा वो अपना पद लेंगे । बोलते हैं अभी ये तुम्हारी ईश्वरीय गोद है । कहाँ से? आसुरी गोद से ईश्वरीय गोद में आए हो । अगर ईश्वरीय गोद छोड़ फिर आसुरी गोद में गए या याद किया तो तुम्हारी जो याद है, उसमें विकर्म विनाश नहीं होगा, क्योंकि याद टूट जाएगी । अभी तुमको मेहनत है ये बाबा बताते हैं कि अगर तुम मेहनत न करेंगे तो अंत में तुमको बहुत रोना और पछताना पड़ेगा । जैसे स्कूल में बच्चे होते हैं, बोलते हैं - हम अच्छी तरह से पढ़ते तो ऊंचे नम्बर में आते । बाप-मॉ भी ऐसे कहते हैं । कोई स्कूल में बच्चे नापास होते हैं तो गुस्से में आकर आपघात कर लेते हैं कि मैं नापास हो गया । बोलते हैं - तुम भी ऐसे ही, जब पिछाड़ी होगी और अगर तुम कम मार्क्स से पास होंगे तो तुम बहुत रोएँगे और सजा भी खाएँगे । समझा ना! क्योंकि जो कम पास होते हैं उनके ऊपर पाप का बोझा रह जाता है । पीछे तुम्हारे लिए ट्रिव्यूनल बैठती है । वहाँ साक्षात्कार होते हैं । जब धर्मराज बैठकर उनको सजा देने लगता है तो वो साक्षात्कार में जाते हैं, देखते हैं तुमने फलाने जन्म में... । बाबा ने समझाया ना कि जो काशी कलवट खाते हैं उनको भी ऐसे ही होता है, जो पाप किए हैं वो साक्षात्कार होते जाते हैं, सजाए खाते जाते हैं । यहाँ भी फिर ऐसे ही है । साक्षात्कार होते जाएँगे । पहले-पहले साक्षात्कार कराएँगे और धर्मराज कहेगा कि देखो, ये बाप बैठा हुआ है । ये तुमको इस तन द्वारा पढ़ाता था । ये ब्रहमा का तन भी देखो । तुमको ये सिखलाया और तुमने ये पाप किया । पाप साक्षात्कार होता जाएगा । साक्षात्कार बिगर कभी किसको सजा नहीं मिलती है । उन बिचारों को क्या मालूम कि मुझे सजा मिलती है । तो पाप का साक्षात्कार होता जाएगा, तुमने ये कुकर्म किया, ये कुकर्म किया । एक जन्म का नहीं, जन्म-जन्मांतर में जो पाप किया उनका साक्षात्कार करते जाएँगे । ...वो फिल्म फिरते हैं । वो साक्षात्कार करते हैं, पर उसमें टाइम बहुत लगता है । जैसे कि मैं कितना जन्म बैठ करके सजा खा रहा हूँ । तो बाप बैठकर समझाते हैं साक्षात्कार कराते जाएँगे फिल्म और तुमको कड़ी-कड़ी सजाए मिलती जाएँगी । बहुत पछताएँगे बहुत रोएँगे; परन्तु होगा क्या? इसलिए अभी बता देता हूँ कि अगर कोई भी विकर्म करके तुमने बाप का नाम बदनाम किया तो सजाऐ बहुत होंगी; क्योंकि मैं जो खुद आता हूँ पढ़ाने के लिए, तो ऐसे थोड़े ही है । तो ये कहते हैं कि बच्चे, मुझ अपने सद्‌गुरु के निन्दक न बनना, नहीं तो सजाएं भी खाएगी और पद भी भ्रष्ट होगा । ये बात उन लौकिक गुरुओं ने ले ली है - गुरु का निन्दक ठौर न पावे । अरे, पर कौन-सी ठौर? कोई गुरु से तो जाकर पूछो कि तुम जो कहते हो गुरु का निन्दक ठौर न पाये, वो कौन-सी ठौर? कुछ भी नहीं । ये ठौर तो अभी पाना होता है । इसको कहा जाता है सदगुरु, सत् बाप, सत् टीचर यानी सच, ट्रुथ । ट्रुथ कहने वाला बाप, ट्रुथ सिखलाने वाला टीचर, ट्रुथ सिखलाने वाला सत्‌गुरु । तो बोलते हैं - अभी मेरी मत पर चलने से तुम ये बनते हो । बाप कहते हैं - बच्चे, याद रखना कि ये जीवन लम्बा है । बाकी बस, इसका शरीर ही देखो । तुम्हारा जीवन वहाँ तक है जहॉ तक इनका शरीर है; क्योंकि ये भी तो कुछ न कुछ गाया हुआ है कि 100 वर्ष के बाद ब्रहमा भी नष्ट हो जाता है । ऐसे लिखा हुआ है । यानी विनाश को पाते हैं । ये तो विनाश,.. .... .आत्मा तो सीख रही है ना; क्योंकि ये है पतित आत्मा सो पावन बन रही है । वो नॉलेज सीख रही है । कैसे? हम बरोबर बाप को याद करते हैं । ..... .वो कहते हैं - हाँ, ये बच्चा मुझे बहुत अच्छा याद करते हैं और ज्ञान भी धारण करते रहते हैं और बरोबर ये और भी नम्बरवन में पास होती हैं, क्योंकि ये जा करके फिर राधे और कृष्ण बनते हैं । स्वयंवर के बाद फिर ये लक्ष्मी और नारायण बनते हैं । अच्छा, अभी लक्ष्मी नारायण की डिनायस्टी भी तो आनी है ना । तो बस, ये जो भी हैं पुरुषार्थ करते रहते हैं कि हम भी मम्मा और बाबा के समान मेहनत करके उनके तख्त के मालिक बने यानी फॉलो करें । मात-पिता को फॉलो करें सर्विस में, धारणा में और फिर फॉलो कर भविष्य तख्तनशीन होवें । बच्चों को ये मेहनत करनी है ना । तो फॉलो करें । बोलते हैअगर तुम ये सब बातें फिर भूल जाएँगे और बाबा को फारगती दिया या डायवोर्स दिया; क्योंकि दो बात हो गई ना । ये और तो कोई नहीं समझा । सन्यासी समझाएगा क्या? मनुष्य कोई भी नहीं समझाते हैं । ये एक परमपिता परमात्मा, जो ज्ञान का सागर है, जो सारे सृष्टिचक्र को जानते हैं, उसको ही कहा जाता है नॉलेजफुल । ऐसा कोई भी मनुष्य दुनिया में नहीं है जो इस सृष्टि के चक्र को जाने, बल्कि सृष्टि के रचता को ही नहीं जानते हैं । कह देते हैं बेअन्त । बेअन्त माना ही वो बोलते हैं - नेती-नेती, हम नहीं जानते हैं, हम नहीं जानते हैं । नहीं जानते हैं तो दुगुना नास्तिक बने । ये कहा ही जाता है नास्तिकों की दुनिया । नास्तिक कहते हैं निधणके को, जो अपने धनी को नहीं जानता हो । तो देखो, धनी को न जानने से भारत और सभी बच्चे, जो धनी के हैं, गॉड फादर तो सब कहते हैं ना । सभी दुःखी, झगड़े-लड़ना, नेशन नेशन में लड़ते हैं । घर-घर में झगड़ा रहता है । पानी के लिए, जमीन के लिए राजस्थान, महाराष्ट्र फलाना आपस में लड़ते रहते हैं । भला क्यों लड़ते रहते हैं? राजाऐ भी लड़ते हैं तो मनुष्य भी एक-दो में लड़ते हैं । घर वाले भी लड़ते हैं - ये क्या है? क्योंकि निधणके हैं अर्थात् सब नास्तिक हैं । उसमें सब आ जाता है । ऐसा कोई भी मनुष्य नहीं है, भले कितना भी बड़ा विद्वान हो वो भी नास्तिक है; क्योंकि वो भी ऐसे ही तो कहते हैं ना - ईश्वर सर्वव्यापी है । अहम् ईश्वर, ततत्वम् फिर माना सर्वव्यापी हो गया । इसलिए अभी ये कभी पाप करते हैं । पापात्माएँ हैं । इसलिए सबसे पापात्मा कौन? गुरु । कौन-सा गुरु? ये लौकिक गुरु; क्योंकि एक तारे, पावन बनाए । तो जरूर पतित बनाने वाला भी कोई होगा ना । पतित बनाने वाली एक तो है माया और माया की मत पर चलने वाले है ये कलहयुगी गुरु लोग । तो सभी पतित हैं । एक भी पावन नहीं । जब गुरु ही पतित हैं । बाबा समझाते हैं, भला ये तो समझते हो कि पतित गंगा में स्नान करते हैं । गंगा को कहते हैं पतित-पावनी । साधु-संत तो बहुत जाते हैं । कुम्भ के मेले पर बड़े मेले लगते हैं । सब जो भी महात्मा लोग होते हैं, वो..... कुम्भ के मेले पर सवारियाँ ले करके आते हैं त्रिवेणी ऊपर पाप धोने; क्योंकि पाप कटनी है ।.. ........उसको कहा जाता है गंगा पतित-पावनी । तो गंगा को भी दे देते हैं, सरस्वती को भी देते हैं, जमुना को भी दे देते हैं; पर हैं तो सभी नदियॉ ना । बोलते हैं संगमयुग पर तीनों में स्नान करने से हमारे बहुत पाप दूर होंगे । अभी गंगा तो पतित-पावनी नहीं है ।.... ... वो तो एक ही है । गंगा कहाँ पतित-पावनी है! भला पतित को पावन करने गंगा कैसे, कहाँ सिखा देगी! बोलते हैं, ये कितने रॉंग है । तुम्हारे गुरु भी पतित हैं । वो कहते हैं आत्मा तो निर्लेप है । बाकी शरीर पतित होता है । शरीर खाता है, पीता है, चलता है, आत्मा तो निर्लेप है ना । अब ये भी तो बिल्कुल रॉंग है । संस्कार सभी आत्मा में रहते हैं और कहा भी जाता है - ये कर्मो का फल है । कौन-से कर्मो का फल है? पास्ट जन्म के अच्छे व बुरे कर्मो का फल, जैसे अच्छा-बुरा काम करते हैं । तो बाप कहते हैं - अभी हम तुमको ऐसे कर्म करने सिखलाता हूँ बाप के रूप में, टीचर के रूप में और गुरु के रूप में, जो 21 जन्म कभी तुमको कर्म कूटने का नहीं रहेगा । वहाँ नाम ही नहीं होता है कि इसका कर्म ऐसा हुआ । तुमको हम इस समय एकदम कर्मातीत अवस्था में पहूँचाय करके फिर, तुम जानते हो कि हमारा 84 जन्म का ड्रामा पूरा होता है, फिर हमारा नया सतयुग का जन्म शुरू होता है । तो सतयुग में जाने के लिए, देवता बनने के लिए ये युक्ति पढ़ाई जाती है । शिवभगवानुवाच - बच्चे, मेरा बन करके व हे सजनियॉ मुझ अपने ब्राइडग्रूम का बन करके फिर कभी मेरे को फारगती नहीं देना । फारगती व डायवोर्स का संकल्प नहीं आना चाहिए, क्योंकि कभीभी कोई स्त्री को अपने पति को डायवोर्स देने का संकल्प नहीं उठेगा । अपने पति को, बाप को जिससे ..वर्सा मिलता है, उनको फारगती नहीं देंगे । देंगे कोई? नहीं । सतयुग में कभी कोई फारगती नहीं देंगे । यहाँ तो बहुत होता है । आजकल के जो बच्चे हैं, लड़ते हैं, झगड़ते हैं, पिता से अलग हो करके रहते हैं, पिता को फारगती दे देते हैं । सतयुग में ये नहीं होता है; क्योंकि सतयुग में तुम बच्चे अभी की प्रालब्ध भोगते हो । वहाँ फारगती का क्वेश्चन नहीं । कोई भी दुःख का क्वेश्चन नहीं । फारगती क्यों देते हैं? झगड़ा । स्त्री क्यों फारगती देती? झगड़ा । वहाँ बिल्कुल ही झगड़े का नाम-निशान भी नहीं है । तो देखो, ये गीत कितना अच्छा है, थोड़ा फिर बजाना । कितना मीठा गीत है । इस ईश्वरीय गोद का जीवन लम्बा है । बच्चे, जब तलक ये है तब तलक तुमको याद में रहना है । ये हुई आत्मा की यात्रा परमपिता परमात्मा के पास जाने की । डायरैक्शन परमपिता परमात्मा के हैं । उसको कहा जाता है श्रीमत भगवानुवाच । तो निराकार हुआ ना । तो निराकार बाबा निराकार आत्माको को इस मुख से कहते हैं । ये गऊ मुख हुआ ना । ये बड़ी मां है) । तुम मुखवंशावली हो ना । इनसे क्या निकलता है? इनसे तो रत्न निकलता है । वो गऊमुख से तो पानी निकलता है । इस गऊमुख से गंगा-जमुना का जल बहता है । गऊ से जल कैसे बहेगा? ये है ज्ञान रत्न । बाबा तुम बच्चों को इसके मुख द्वारा रत्न देते हैं । इसको कहा जाता है अविनाशी ज्ञान रत्न । एक-एक रत्न लाखों-लाखों रुपये का है, क्योंकि जितना-जितना तुम धारणा करेंगी इतने-इतने वहाँ बहुत धनवान बनेंगे । जबकि तुम धारणा करती जाती हो, फिर तुमको दान भी करना है । अविनाशी ज्ञान रत्नों का ही दान तुम फिर दूसरे को करती हो, समझाती हो । उसमें नम्बरवन कौन-सा रत्न है? मनमनाभव मद्याजीभव अर्थात् हे बच्चे, मुझे याद करो । भले तुम बच्चियां कहती हो हमारी झोली में रत्नों की धारणा नहीं होती है, हम दे नहीं सकते हैं । एक तो रत्न देंगे ना! अपने बाप को याद करो । वो है लौकिक बाप, वो है पारलौकिक बाप । वो बेहद का बाप है । बेहद का बाप कहते हैं मुझे याद करने से मैं बेहद सुख का वर्सा देने के लिए बाँधा हुआ हूँ । समझा ना! बाबा सच कहते हैं ना । बोलते हैं - तुम सिर्फ मुझे याद करते रहो, जब तलक इसका शरीर है तब तलक याद करो तो तुमको मैं स्वर्ग की बादशाही जरूर दूंगा क्योंकि मेरे आज्ञाकारी और वफादार बनते हो, क्योंकि मेरे मददगार बनते हो, मुझे याद करते हो । तो पवित्र भी रहते हो जरूर । पवित्र तो जरूर रहना पड़ेगा । तुम मुझे पवित्र दुनिया बनाने में मददगार बनते हो । अभी जितना जो योग में रहते हैं वो दुनिया को भी पवित्र बनाते हैं, अपन को भी पवित्र बनाते हैं; क्योंकि विकर्म विनाश होते हैं । न याद करने से विकर्म विनाश न होंगे । कभी न होंगे । फिर बड़ी सजाएं खाएंगे और पद भी भ्रष्ट हो जाएगा । कितना क्लीयर करके समझाया है । गीत सच में अच्छा है ।.........ये कोई नाटक बनाते हैंउनमें से ये निकला हुआ है जिसका बाप यथार्थ रीति से अर्थ समझाते हैं । जो बनाते हैं, जो नाटक में सुनते हो, वो डब्बे में ठीकरी, वो जानते ही नहीं हैं । हाँ, सुनाओ बच्ची । (रिकॉर्ड बजा :- बचपन के दिन भुला न.... ...) माया भुलाय देती है, इसलिए खबरदार । कहते हैं - बच्चे, ये बचपन के दिन भुला न देना । हम बाप के हैं । बाप हमको कहते हैं मैं बच्चों को लेने आया हूँ । हे बच्चे, तुम्हारे 84 जन्म पूरे हुए, नाटक पूरा होता है । सतयुग से ले करके नाटक फिर से रिपीट होने का है, इसलिए तुमको सतयुग का मालिक बनाने के लिए मैं आया हूँ । मैं नहीं बनता । देखो, कितना साफ कहते है । ऐसे कोई मनुष्य थोड़े ही कहेंगे । बाप कहते हैं - बच्चे, स्वर्ग की बादशाही तुमको दूँगा । तुमको सदा सुखी बना करके और अपने स्वर्ग का वर्सा दे करके मैं अपने निर्वाणधाम में बैठ जाऊँगा । फिर मुझे आधा कल्प कोई याद भी नहीं करते । इसलिए गाया जाता है कि दुःख में सिमरण सब करें - ओ गॉड फादर! ओ परमपिता परमात्मा! किसका पति मरे तो कहेंगे हे भगवन । क्या किया! हमारे पति को छीन लिया । कई पुरुष होते हैं, स्त्री अच्छी होती है । आपने क्या किया! बड़ा जुल्म किया । अभी बाप थोड़े ही किसके ऊपर जुल्म करते हैं । बाप तो कहते हैं मैं किसको दुःख नहीं देता हूँ । ये माया तुम्हारा बच्चा वगैरह छीन लेती है । मैं जो राज्य स्थापन करता हूँ वहाँ कोई भी अकाले मृत्यु होती ही नहीं है और न कोई इतने बच्चे होते हैं । एक बच्चा, एक बच्ची, बस जास्ती होता नहीं । पीछे जब त्रेता आता है, तब कभी दो भी होते हैं । दिखलाते हैं ना लव और कुश । तीसरा नहीं दिखलाते हैं, पर यह सिर्फ निशानी है शास्त्रों में । बाकी ऐसे नहीं कि लव और कुश कोई डब से या फलाने से पैदा हुए । उस समय में ये योगबल चला आता है कि बरोबर अभी हमको यह शरीर बदल करना है । नाग का मिसाल होता है ना । शरीर बदल करके दूसरा नया लेता हूँ और साक्षात्कार होते हैं । पहले यहाँ शरीर छोड़ करके तुमको घर जाना है । बाबा के पास जाना है, स्वीटहोम जाना है । स्वीट बाबा आया हुआ है और बताता है तुम्हें इतनी भक्ति करने की दरकार नहीं, सिर्फ मुझे याद करो । याद से विकर्म विनाश होगा और पावन बन जाएँगे । और कोई उपाय पतित को पावन बनने का है नहीं या तो फिर पिछाड़ी की सजाएं । जैसे काशी करवट होता है ना, ऐसे फिर पिछाड़ी में सजाएं पाएँगे । सजा पाकर हिसाब-किताब चुक्तू करके सभी आत्माओं का दुःख का हिसाब-किताब पूरा होगा । फिर नए सिरे से सुख । सुख पहले सतोप्रधान फिर सतो फिर रजो फिर तमो । पिछाड़ी में सब आ करके तमो बनते हैं । (गीत:- लम्बे हैं जीवन के रस्ते आओ चलें हम गाते-हँसते) हँसते-गाते रहते हैं ना । हमको सदैव हर्षित रहना चाहिए बाप मिला और भला क्या चाहिए? गरीब को भी बाप मिला तो याद करना है साहुकारों को भी बाप मिला तो याद करना है, इसमें कोई फर्क तो है नहीं । शरीर तो है, परन्तु धन नहीं है तो आत्मा कहती है - इस समय में मैं गरीब हूँ । एक आत्मा कहती है - मैं साहुकार हूँ । बाबा कहते है कि साहुकार हो या गरीब हो, मुझे याद करो । बिचारे गरीब तो हैं ही दुःखी, इसलिए बाप को याद करते हैं । वो साहुकार हैं ही सुखी, तो उनको सुख होने के कारण वो याद नहीं करते हैं । इसलिए गाया जाता है - गरीब निवाज । गरीब दुःखी तो हैं ही, तो वो याद करते हैं । सबसे गरीब कौन हैं नम्बरवार? सबसे गरीब तो कन्याएँ हैं, क्योंकि उनको तो वर्सा नहीं मिलता है । जब पति के पास जायें, विख की लेन-देन करें तब उनको....सो भी सुख तो वो ही है । अर्धांग्नी भी तो नहीं है, हाफपार्टनर भी नहीं है । वहाँ हाफपार्टनर तो क्या वो तो हैं ही रानी और राजा । उनमें कोई भी वो गड़बड़ है नहीं । यहाँ तो हाफपार्टनर भी नहीं है । स्त्रियों के हाथ में कुछ है थोड़े ही, इसलिए फिर स्त्रियों को चाबी देते हैं कि तुम ही सबका उद्धार करना । साधु सन्त महात्मा का तुमको ही उद्धार करना है । गीत मीठा है ना - 'लम्बे हैं जीवन के रस्ते यानी ये यात्रा लम्बी है । जहॉ जीना है बाप को याद करना है । उनके लिए भी टाइम बोलते है; परन्तु शुरू करो. ..अपना चार्ट रखो । देखो, दिन में कितना समय याद करते हो । पंद्रह मिनट, आधा घण्टा घटा, डेढ, दो, इतना करते-करते आठ घण्टा तुमको जरूर याद करना है । पीछे आठ घण्टा जो याद करेंगे वो पास विद ऑनर हो जाएँगे । अभी 24 घण्टा तो नहीं कहते हैं ना, आठ घण्टा । फिर कोई 8, कोई 7, कोई 6, कोई 5, कोई 4, ऐसे याद करने से फिर ये माला बनती है या राजधानी बनती है । (रिकार्ड बजता है - लम्बे हैं जीवन के रस्ते आओ चलें हम गाते-हॅसगे रोना-पीटना नहीं है । यह ज्ञान का गीत दो अक्षर है । ये गाना है । हम सुनकर फिर सुनाएंगे ये हो गया गाना । लिखा हुआ है कि अतिइन्द्रिय सुख पूछना हो तो गोप-गोपियों से पूछो । गोपीवल्लभ के गोप-गोपी सो तो यहाँ पूछो ना । सतयुग में तो गोप-गोपी होते नहीं हैं । वहाँ राजाई होती है कायदे अनसुार । यहाँ ही तुम कहलाते हो गोपियाँ और गोप यानी बच्चियां और बच्चे । (रिकार्ड:- दूर देश एक महल बनाएँ, प्यार का जिसमें दीप जलाए, .....) आत्मा को जगाना होता है ना । अगर फिर छोड़ दिया तो दीप बुझ जाएगा । फिर धारणा नहीं होगी, पद भ्रष्ट हो जाएगा । अच्छा, अभी टाइम हुआ । टोली ले आना ।......ये अपना गीत गाते रहना । नाचते रहना । इसको कहा जाता है ज्ञान का डान्स । वो कृष्ण की बात नहीं है, ये है ज्ञान का डान्स । बाकी है नॉलेज । ये अक्षर महिमा के लिए लिए गए हैं । .... पावन बनाते रहते हैं । बीच-बीच में कोई पतित बना, ये गिरा; क्योंकि यात्रा पर हो ना । उस यात्रा में भी अगर जाते-जाते कोई रास्ते में पतित बना तो यात्रा कहा से हुई ? ये भी ऐसे है । यहाँ लम्बा चक्कर है । वो तो फिर आ करके फिर विकार में गोता खाते हैं । यहाँ कोई भी नहीं ।......इसमें जितना समय तुम याद में रहेंगे, यात्रा में रहेंगे, विकार में नहीं जाएंगे । नहीं तो गया, खाना खराब । या तो खाना आबाद हो गया या खाना खराब । खाना आबाद और खराब, उसको ही कहा जाता है या तो सूर्यवंशी घराने में आएंगे या तो प्रजा में आएँगे । प्रजा में जो साहुकार होते हैं ना उनके भी नौकर चाहिए । वो भी यहाँ बनना है । पिछाड़ी में नहीं जाओ ।. ..... त्वमेव माताश्च पिता, बरोबर बालक बैठे हैं, जानते हैं कि ये मात-पिता हैं । तो मात-पिता अपने सिकीलधे बच्चों को यादप्यार और गुडमॉर्निग या विदाई फॉर द टाइम बींग थोड़े समय के लिए।