13-12-1964     मधुबन आबू     रात्रि मुरली    साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हेलो, गुड इवनिंग यह तेरह दिसंबर का रात्रि क्लास है

 

उनको बहुत- बहुत अनुभव मिलता है । कैसे-कैसे मनुष्य आते है, कैसे-कैसे समझाना होता है, ऐसे-ऐसे प्रदर्शनी में कोई उन्नति जास्ती है या नहीं । क्या समझते हो? कुछ उन्नति है? हो सकती है, बहुतों को कान में पड़ सकता है - ये ब्रह्याकुमारियाँ कौन है? सो बहुत ही आ करके देख सकते हैं । उनकी बुद्धि में बैठेगा कि यहाँ फलानी प्रदर्शनी हुई थी । आगे चल करके जितनी-जितनी वृद्धि होगी सर्विस की और प्रभाव निकलेगा, फिर बच्चे याद करेंगे और मजा होता है । बहुत सर्विस मिलती है ना । तो जैसे कि बहुतो को दान दिया जाता है । फिर सभी दान लेने वाले एक जैसे तो नहीं होते हैं, कोई कैसा, कोई कैसा । अब जबकि यह हो गया, तो ड्रामा में जरूर था । जरूर समझना चाहिए कि इनसे ये जो तरीका निकला है ये अच्छा है । तो आगे चल करके और भी कोई तरीका निकल पड़े । ये तो मालूम नहीं था आगे कि ऐसे प्रदर्शन करेंगे, लेकिन हुआ । फिर समझा देना चाहिए कि कल्प पहले भी ऐसे हुआ था और इनसे फिर वृद्धि होगी, क्योंकि अच्छा लगता है, भासता है कि इनसे मनुष्य को बहुत चित्रों के साथ भिन्न-भिन्न समझानी अच्छी मिलेगी । जो इन चित्रो पर समझाते आते रहे हैं, जितने-जितने जास्ती चित्र और नालेज सहित होंगे तो मनुष्य को अच्छी तरह से समझाया जा सकता है, इसके लिए फिर प्रैक्टिस चाहिए । इसमें बच्चों की बहुत प्रैक्टिस होती है, बहुतों से बात करनी होती है । अनेक प्रकार के आते हैं । फिर धीरे-धीरे जब कोई और सुनेंगे कि यहाँ ये-ये देखा, ये समझा रहे थे तो कोई को टच भी हो सकता है - अरे, कल्प पहले वाले ही निकल पड़े । तो भी निकल सकते हैं । बाबा तो जोर करके लिखते भी हैं, जो भी मठ वाले, पंथ वाले साधु चाहे जो भी होवें, सबको निमंत्रण दो कि आकर देखो, कुछ समझो । निमंत्रण देने वक्त भी समझाना पड़े, दिखलाना पड़े कि वहाँ ये-ये समझानी मिलती है । वेद शास्त्र ग्रंथ वगैरह, ये बाते वहाँ नहीं हैं । वहाँ चित्र हैं, समझानी है, परन्तु श्रीमत पर ये सभी समझानी मिलती है; क्योंकि राजयोग की मत है । ये सन्यासी-विद्वान नहीं समझा सकेंगे; क्योंकि बहुत विद्वान अक्सर करके सन्यासी हैं ।..................समझते हैं कागविष्ठा समान है । ये तो राजयोग है । ये सभी बातें समझानी पड़ती हैं । जिनके पास फिर ले जाते हैं । ऐसे-ऐसे ले जाने से वो इतना अटेंशन नहीं देंगे । हर एक से बात करनी होती है, बात करने का शौक होता है । जितनी बात करेंगे इतना अच्छा होगा । किसके कान में बात पड़ेगी, फिर आगे चलकर वो समझेंगे कि फलानी आई थी, फलानी ने निमंत्रण दिया था, ये पढ़ा था । किस-किस के पास चित्र वगैरह रह जाएँगे तो वो देखेंगे । जिनके भाग्य में होगा उनके पास कोने में रह जाएँगे । जब सुनेंगे तब समझेंगे कि हमको ये चित्र मिले तो थे, अच्छा फिर तो देखें । देखने से फिर वो खड़े भी हो सकते है; क्योंकि जो-जो भी सर्विस हो रही है वो होती है । कल्प पहले भी इस प्रकार से समझाई थी जरूर । ये बम्बई जैसे बड़े गाँव में 5-7 जगह होनी चाहिए । इसमें खर्चा होगा तो कोई बात नहीं । बहुत करके हफ्ते के लिए 500 – 700 - 1000 रुपया लेंगे, और क्या हुआ! फिर बहुतों के कान पर पड़ेंगे, बहुतों का कल्याण होगा । 10-20 का कल्याण हो जावे, 5 का कल्याण हो जावे, प्रजा बन जावे । प्रजा भी तो जरूर चाहिए । तो प्रजा ऐसे बनेगी, नहीं तो प्रजा नहीं बनेगी । तो ये देखने में आया है कि ये जो आइडिया निकाला है बॉम्बे वालों ने, रमेश ने ही निकाला है, मूल ये है । पहले ख्याल में नहीं आया कि एझीबीशन किसको कहते हैं । कहते हैं कि एझीबीशन निकालेंगे, प्रदर्शन भी परंतु कुछ बात तो समझ में नहीं आती है ना । फिर जब रमेश ने ये बताया, ये दिखलाया तब बुद्धि में आई, तो फिर उनको पुष्टि भी देनी पड़ी और देखने में आया कि ये आइडिया बहुत अच्छा है । जगदीश को भी पसन्द आई होगी, क्योंकि दूसरी दफा गए हो ना; क्योंकि समथिंग न्यू है और ये आगे चल करके बहुत एप्रीशिएट करेंगे, बहुत अच्छा लगेगा; क्योंकि हम बाप का ही तो परिचय देते है ना । और कोई बाप का परिचय तो देते नहीं हैं । तो बाप की महिमा करते रहना, बाप का परिचय देना, भारत को कल्प-कल्प स्वर्ग मिलता है । जो देते हैं उनको भूल गए हैं । भूलने के कारण ही जैसे कि हम गुमा बैठते हैं । जब बाबा आकर अभूल बनाते हैं तो फिर ले लेते हैं । ऐसी बहुत प्वाइंट्स हैं जो उन लोगो को समझानी पड़ती हैं । रावण राज्य किसको कहा जाता है, राम राज्य किसको कहा जाता है, कोई मनुष्य समझते थोड़े ही हैं । साधु संत सन्यासी तो कुछ भी नहीं समझते हैं । जो पक्के सन्यास धर्म वाले साधु होंगे वो इतना नहीं समझेंगे । जितना उनमें जो कनवर्ट हो गए होंगे हिन्दु धर्म वाले वो समझेंगे । आखरीन तो साधुओं को भी समझना है । बहुत फर्क है ना । वो लोग तो बोलते हैं - कलहयुग अभी हुआ है, ये कलहयुग अभी खलास कैसे हो सकता है! समझ..जाएँगे । देखो, ये क्रिश्चियन लोग बहुत ले गए हैं ना । तो उसमें कोई को समझाया भी है और लिखा भी हुआ है कि विनाश होने का है । सामने बिल्ले वर्ल्ड का विनाश देखते हैं ना । ये जब देखेंगे तो वो एप्रीशिएट करेंगे कि ये इनके एवज में देखें और उनके ऊपर अटेंशन देवे और कंसंट्रेट करे । फिर देखो, विलायत से उन्हों की कैसी चिटिठयॉ भी आएंगी; क्योंकि है सभी धर्म वालों के लिए । सिर्फ हिन्दू धर्म वाले के लिए नहीं है, ये तो सभी धर्म वाले के लिए है; क्योंकि सभी को बाप कहते हैं कि मेरे पास आना है तो मेरे साथ योग लगाओ । ये तो राइट बात है ना । हम तो बाप का परिचय देते हैं; परंतु कोई मनुष्य का तो परिचय देते ही नहीं हैं । मनुष्यों को बाप का परिचय देते हैं । ये बहुत अच्छी बात है । बाकी समझाने वाले भी अच्छे चाहिए । इसमें नए-नए का काम नहीं है । आदमी-आदमी देख करके किसको पकड़ा जाता है कि इनको तुम समझाओ, इनको तुम समझाओ । कोई-कोई ब्रह्माकुमारियाँ....कोशिश करके खुद समझावेंगी । ये नहीं कहेंगी कि नहीं, ये तो अच्छा आदमी देखते हैं, बड़ा आदमी है, समझने का चहक है तो इनको दूसरा कोई दे देवें । ये हमेशा कायदा होता है कि जब कोई अच्छा आदमी देखा, विद्वान देखा कि ये तो बहुत शास्त्रों की बातें करते हैं तो तुक जो पढ़ा हुआ है उनको सामने देना चाहिए । देहअभिमान छोड़ना चाहिए कि हम क्यों न समझावे, फलाना क्यों समझावे, फलाना क्या समझेंगे! शायद मैं नहीं समझती हूँ जो फलानी को कहती हूँ या कहता हूँ । ये भी देहअभिमान कोई-कोई ब्रह्माकुमारियों को रहता है । इनके मुआफिक कोई दूसरा होता तो बाबा बहुत अच्छी तरह से समझाता । जैसे धंधे में होता है ना । ग्राहक को बहुत युक्ति से उठाना पड़ता है । जिसको उठाने का शौक होता है, वो सीख जाते हैं । देखते हैं कि ये मेरे से भी अच्छा है, सेठ को बुलाना चाहिए । तो सेठ को बुलाया कि सेठ जी आओ, इनसे आकर बात करो, ये कुछ बड़ा आदमी देखने में आता है । तो फिर इन्द्रोड्‌यूज करते हैं । सेठ जी आया हुआ है, ये मालिक है, आप इनसे बात करो । ग्राहकी मे भी ऐसे किया जाता है । इन्द्रोड्‌यूज कराया जाता है । तो कोई सेठ को कुछ ना कुछ जास्ती तिलक दे देंगे । वो होशियार होते हैं । इसमें सीखना बहुत हैं । जितनी बच्ची जास्ती होगी इतनी बहुत अच्छी सीखेंगी इन प्रदर्शन में । बाबा को तो मालूम रहता है कि किस-किस को इस प्रदर्शनी में जाना चाहिए, उठाना चाहिए, प्रैक्टिस करनी चाहिए, क्योंकि सर्विस पर रहती हैं और जो सर्विस पर शौक नहीं रखते हैं उनको भेजकर क्या करेंगे । बाकी बहुत अच्छा है ।......बच्चियाँ या बच्चे हैं वो जानते हैं कि कौन-कौन सर्विसेबुल हैं । ऐसे नहीं है कि कोई नहीं जानते हैं । अच्छी तरह से जानते हैं । अच्छा, बाजा बजाओ । अगर कोई पूछे कि मनुष्य सृष्टि कौन रचता है? तो भी कहेंगे तो जरूर ना कि भगवान रचता है । रचता है माना इसका अर्थ यह तो नहीं कि सर्वव्यापी है । रचता है माना रचता है । रचा जाता है बच्चों को । अपन को थोड़े ही रचा जाता है । तो ये भी सवाल पूछकर फिर उसको सिर्फ कहें कि हाँ, वो तो बाप हुआ ना, जो रचना रचता है । उनको सर्वव्यापी कैसे कहेंगे? ये पाई-पैसे की बात में ही जनरल समझा देना चाहिए कि ये रचना रचने वाला कौन है । कोई मनुष्य या देवता का नाम थोड़े ही लेंगे, वो तो कहेंगे हाँ गॉड फादर । फादर माना ही उनसे वर्सा मिलना चाहिए और वो रचता है बरोबर स्वर्ग का । स्वर्ग को रचा था, अभी न कहें । तो फिर वहाँ आकर स्वर्ग रचेगा और नर्क खलास होगा । नर्क खलास के लिए ये बड़ी भारी लड़ाई है । गीता में शिव का नाम देने से ये सिद्ध हो जाता है । कृष्ण का नाम देने से सिद्ध नहीं होता है । ये सारी बात उल्टी हो जाती है । शास्त्र झूठे पड़ जाते है । अच्छा! बाजा बजाओ । (म्यूजिक बजा) मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता, बापदादा का यादप्यार और गुडनाइट ।