13-12-1964     मधुबन आबू     प्रात: मुरली    साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हेलो, स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुलभूषणों को हम मधुबन निवासियों की नमस्ते, आज रविवार दिसंबर की तेरह तारीख है, प्रात: क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।

रिकॉर्ड –
नई उमर की कलियां………

बाप बैठकर बच्चों को समझाते हैं - तुम बच्चों को हर एक की ज्योति जगानी है । बूझानी नहीं है ना । ये तुम्हारी बुद्धि में है और फिर भी बेहद का ख्याल है । बाप को भी बेहद का ख्याल रहता है कि ये जो भी मनुष्यमात्र हैं इन सबको मुक्तिधाम का रास्ता बतावें, क्योंकि आते ही हैं गाइड बनकर । इसका नाम ही रहता है गाइड । गाइड माना पण्डा । ये बच्चों को बुद्धि में अच्छी तरह से बैठना है और सर्विस में लगना है, क्योंकि बाप भी तो यहाँ सर्विस करने आते हैं ना । कौन-सी सर्विस करने आते हैं? बाप रहमदिल तो है । गाया भी तो जाता है - रहम करो, रहम करो, रहम करो । अभी तुम बच्चे जानते हो कि ये मनुष्य नहीं जानते हैं कि हम कोई दुःखी हैं; क्योंकि उनको सुख का पता नहीं है, सुख देने वाला का पता नहीं है । ये तो तुम समझ गए ना कि ये ड्रामा की भावी है । इस समय में मनुष्य को ये मालूम ही नहीं है कि सच्चा सुख किसको कहा जाता है और दुःख किसको कहते हैं । ये सुख और दुःख क्यों? वो तो कह देते हैं ईश्वर ही सुख देते हैं, ईश्वर ही दुःख देते हैं । गोया उनके ऊपर कलंक लगाय दिया । अच्छा, अगर कहते हैं कि ईश्वर ही सुख-दुःख देते हैं तो ईश्वर को जानना चाहिए ना कि सुख भला कैसे देते हैं? उनसे पूछना तो पड़े । ईश्वर है कहाँ जिससे पूछें? याद कैसे करें? दुःख भला क्यों देते हो? भला ईश्वर हो तो उनसे पूछें भी ना । तो ईश्वर जिसको बाप कहते हो वो जानते ही नहीं हैं । बाप तो जानते हैं कि मैं इन बच्चों को सुख ही देता हूँ । ये बिचारे जानते नहीं हैं कि दुःख कब से, क्यों, कहाँ से शुरू होता है । देना वाला कौन है, वो जानते नहीं हैं । तुम बच्चे तो जानते हो कि बरोबर बाप आया हुआ है पतित को पावन करने । अच्छा, आत्माएँ पतित हैं । भला उनको पावन कर कहा ले जाएंगे? कहाँ बिठाएंगे? बोलते हैं - मैं आ करके साथ में ले जाऊँगा ना; क्योंकि स्वीटहोम निर्वाणधाम भी तो पावन ही है । वहाँ कोई पतित आत्मा तो होती ही नहीं है, रहती ही नहीं है । उस ठिकाने को मनुष्य तो कुछ भी नहीं जानते हैं कि वो कोई अपना स्वीटहोम है, जिनको निर्वाणधाम कहते हैं, पार निर्वाणा कहते हैं । पार निर्वाण गया, निर्वाणधाम में गया - ये भी नहीं समझ सकते हैं । बुद्ध के लिए कहते हैं कि पार निर्वाणा गया यानी वाणी से परे स्थान में गया । तो जरूर यहाँ का रहने वाला था, जो यहॉ से यहाँ गया । वो तो गया । अभी क्या करना है? बाकी ये दूसरे सभी कैसे जावें? साथ में तो ले नहीं गए । न वो गया, न ये लोग साथ में कोई को ले जाते हैं । साथ में ले जाने के लिए तो इस पतित दुनिया में पतित-पावन को याद ही करते हैं । दो पावन दुनियाऐ हैं । कौन-सी दो पावन दुनिया हैं? एक है मुक्तिधाम, एक जीवनमुक्तिधाम । नाम भी देते हैं ना - एक शिवपुरी और एक विष्णुपुरी । इसको कहते भी हैं रावणपुरी । तो जिसको विष्णु पुरी कहते हैं उनको रामपुरी भी कहते हैं, क्योंकि परमपिता परमात्मा को बहुत से मनुष्य राम भी कहते हैं; परन्तु भूल मनुष्यों ने सीता हरण वाले मनुष्य को राम कर दिया । नहीं तो राम अक्षर जब कहा जाता है तो जरूर बुद्धि परमात्मा के तरफ जाएगी, कोई मनुष्य के तरफ नहीं जाएगी । मनुष्य को तो सभी परमात्मा नहीं मानेंगे । एक को तो जरूर सभी मानेंगे । तो तुम बच्चों की बुद्धि में तरस है कि कैसे भी करके, भले तकलीफ भी सहन करनी पड़े । तकलीफें तो सहन करनी पड़ती है ना । बाबा ने तो कह ही दिया है कि इस ज्ञान यज्ञ में मनुष्यों को मनुष्य से देवता बनाने में विघ्न बहुत पड़ेंगे । बहुत गालियाँ खानी पड़ेगी । देखो, गीता के भगवान ने गाली खाई थी ना। ऐसे तो कहते हैं ना । क्यों गाली खाई थी सो तो तुम बच्चे समझ गए । वो बिचारे समझते नहीं हैं, गालियाँ तो मिलती हैं, तुमको भी मिलती हैं तो इनको भी मिलती हैं । सिर्फ एक को थोड़े ही मिलती हैं । ऐसे भी कहा जाता है जिस मनुष्य को बहुत गालियां मिलती हैं उनको कहते हैं - तुमने शायद चौथ का चंद्रमा देखा होगा, इसलिए तुमको गालियाँ मिलती हैं । कृष्ण को गाली नहीं मिली थी । ये सभी हैं दंत-कथाऐ फालतू बातें । अभी तुम बच्चों की बुद्धि में बैठ गया कि इस दुनिया में जो कुछ भी ज्ञान वगैरह है, कितने मनुष्य क्या खाते हैं, गंद खाते हैं, बैल खाते हैं, मछलियाँ खाते हैं, एक-दो को मारते हैं, क्या-क्या उपाय करते हैं, क्या-क्या प्रबंध रचते हैं, क्या-क्या स्टीमर...... बाबा ने आकर इन सब बातों से छुड़ा दिया है । बोला - इन सब बातों का कुछ भी ख्याल न करो । देखते तो हो ना बहुत मारामारी, लडाइयां, झगड़ा दुनिया में क्या लगा हुआ है बात मत पूछो! अभी तुम्हारे लिए कितना सहज कर दिया है । बोलते हैं - तुम बच्चों को कुछ भी नहीं करना है । तुम बच्चे सिर्फ मुझे याद करो तो तुम्हारा विकर्म विनाश होता रहेगा और सबको सिर्फ एक ही बात समझाओ कि अरे भई, भगवान तो है ना, जरूर रचता बाप तो है ना । वो बाप कहते हैं - फादर शोज सन । शोज माना ये कहते हैं - बच्चे, अभी तुम अपने शांतिधाम को याद करो और सुखधाम को याद करो । शिवपुरी यानी निराकारी शिवपुरी को याद करो । तुम तो वहाँ के रहने वाले हो ना । तो तुमको इस दु:ख से छुड़ा कर कहाँ तो ले जाएँगे ना । तो तुम बच्चे क्या करो? सिर्फ अपने घर को याद करो । वहाँ जाना चाहते हो ना । ये भक्ति किसके लिए है? ये भक्ति है ही मुक्ति के लिए । ये सन्यासी लोग जो भी रास्ता बताते हैं निर्वाणधाम में जाने के लिए, अगर एक चला जावे, जैसे बुद्ध चला गया, दूसरों को कैसे साथ में ले जावे? क्योंकि गुरु ठहरा । शरीर तो यहाँ ही छोड़ दिया । आत्मा गई । अच्छा, फिर औरों को कौन ले जाएंगे? खुद चला गया और जो इनके फॉलोअर्स हैं उनको छोड़ गया । बौद्धी तो बहुत बैठे हुए हैं । वो जब आए, अकेले आए थे फिर वापिस गए तो बाकी जो बुद्ध धर्म के बने उनको भी तो वापिस ले जायें ना । तो देखो, वो खुद भी फिर नहीं जा सकते हैं । ये गाते भी हैं कि मैसेंजर्स पैगम्बर, इन सबका लाश अभी यहाँ है और विवेक भी कहता है, बुद्धि भी कहती है लाश में हैं यानी शरीर में हैं, यहाँ सब हैं । तो वो खग्गियाँ मारते रहते हैं, उनकी महिमा करते रहते हैं । वो आया, क्या देकर गया? अच्छा, भला वो धर्म स्थापन करने आया, खुद तो चला गया । बाकी क्या है? जाने के लिए तो ये बिचारे मत्था मारते रहते हैं - जप तप दान पुण्य तीर्थ वगैरह-वगैरह । उसने तो यह नहीं सिखलाया । अगर उसने सिखलाया होता तो फिर साथ में ले जाते । बाप कहते हैं मैं तुम बच्चों को सिखलाता हूँ तो मैं सबको वापस ले जाता हूँ । आया हुआ हूँ आता ही हूँ सबको सद्‌गति देने, गति देने । ऐसा कोई दूसरा तो है नहीं जो सबको देवे और फिर निशानियाँ बताते हैं, प्रूफ देते हैं कि देखो, सतयुग जब होता है तब तो बरोबर जीवनमुक्त है, एक ही धर्म है और उसको स्वर्ग कहा जाता है । बाकी इन सभी आत्माओं को वापस कौन ले गया? कोई तो गाइड होगा ना! तो बोलते हैं - देखो, हम दु:ख से लिबरेटर भी हैं और गाइड भी हैं । बच्चों को ये समझाना तो है, क्योंकि ये भी तो जो अच्छी तरह से समझेंगे उनका झाड़ स्थापन होता है ।......बीज तो लगते रहते हैं । इसमें कोई शक नहीं है । बच्चियाँ पुरुषार्थ बहुत करती हैं । बीज लगाते रहते हैं । जैसे कि तुम माली हो गए । सब बीज लगाते हैं ना! मम्मा-बाबा, बच्चे, सब बीज लगाते हैं; क्योंकि सिखलाने वाला बड़ा माली है । तो बीज कैसे लगाओ? उनको तो कहा जाता है बागवान । वो आ करके सिखलाते हैं । जानते हैं तभी तो सिखलाते हैं ना । तुम भी सिखलाते हो कि बीज कैसे लगाते हैं । बरोबर तुम ज्ञान दे करके बीज बोते हो । फिर वो बरोबर बढ़ते भी होते हैं, थोड़ा बड़े भी होते हैं, फिर तूफान भी तो लगते हैं; अच्छे-अच्छे, बड़े-बड़े, कभी हल्का तूफान, कभी भारी तूफान हर एक को इंडिविज्युअली लगता है । वो तूफान तो सबको लग पड़ता है । ये ऐसे नहीं होता है । इंडिविज्युअली हर एक को अपना-अपना किसी न किसी प्रकार का माया का तूफान लगता है । किसी न किसी प्रकार का जो तूफान लगता है तो तूफान से बचाने वाले को पूछना चाहिए, क्योंकि विघ्न पड़ेंगे । उसको ही तूफान कहा जाता है । हैं सब माया के विघ्न । उसको ही अपन तूफान कहते हैं । अच्छा, तूफान लगता है तो भी फिर बाप से पूछना चाहिए कि बाबा, ये जो तूफान लगते हैं उनके लिए भला हमको क्या करना चाहिए; क्योंकि सर्जन भी हुआ, राय देने वाला भी, श्रीमत भी देने वाला हुआ । तो फट से पूछना चाहिए । तो उनको समझाय देंगे कि भई, तूफान तो जरूर लगेंगे । भला कुछ तो जरूर होगा ना । ऐसे थोड़े ही सब छोड़ देंगे । है विकारों का तूफान । उसमें पहले नम्बर में तूफान है- देह-अभिमान । देह-अमिमान की तुममे बहुत समय से हेर पड़ गई है ना । क्यों नहीं अपन को आत्मा समझते हो कि मैं आत्मा तो अविनाशी हूँ और ये शरीर तो विनाशी है? मैं तो अभी बाबा से वर्सा लेने वाला हूँ बाप को याद करूगा, उनसे वर्सा लूँगा । देह-अभिमान में जास्ती क्यों आते हो? क्यों नहीं ऐसे समझते हो, जबकि बाप समझाते हैं कि भई, 84 जन्म पूरा हुआ और आत्मा ने ही 84 जन्म लिया । पुनर्जन्म कौन लेती है? आत्मा । घड़ी-घड़ी दूसरा शरीर लेना, ये हुआ आत्मा का काम । अभी जबकि बाप समझाते हैं कि अभी तुम्हारा अंतिम जन्म है, तुमको इस दुनिया में दूसरा जन्म नहीं लेने का है, क्योंकि एकदम छी:-छीः दुनिया है । न जन्म लेना है, न किसको जन्म देना है । बहुत बच्चों से पूछते हैं फिर सृष्टि की वृद्धि कैसे होगी? इस समय में जो भी बच्चे पैदा होते हैं वो तो होते ही हैं पापात्माएँ भ्रष्टाचारी; क्योंकि भ्रष्टाचार कहा ही जाता है विकार में जाने को । जब से भ्रष्टाचारी विकार में बने हैं तब से तो ये गिरते आए हैं ना । तो ये भ्रष्टाचारी बनने की रसम-रिवाज कहाँ से आई? ये रावण से आई । 5 विकार रूपी रावण से भ्रष्टाचारी की रसम-रिवाज आई । तो भ्रष्टाचारी दुनिया को बनाने वाला रावण ठहरा ना । उन्होंने सबको भ्रष्टाचारी बनाय दिया है और राम आ करके श्रेष्ठाचारी बनाते हैं । देखो, तुम श्रेष्ठाचारी बन रहे हो, परन्तु श्रेष्ठचारी बनने में भी तुम लोगों को कितनी मेहनत करनी पड़ती है । घड़ी-घड़ी; देह-अभिमान में आ जाते हो क्योंकि बड़े ते बड़ा रोग है ही देह-अभिमान में । अगर देह-अभिमान में न जाएँ और अपन को आत्मा समझें, भले धंधा-धोरी करते ये तो समझते हैं ना । जैसे वहाँ भी आत्मा का ज्ञान तो है ना कि अभी हमारा शरीर बालक है, अभी युवा है, अभी वृद्ध होगा, हम फिर दूसरा छोटा शरीर लूँगा । आत्मा का तो ज्ञान है ना । यहाँ तो बिल्कुल आत्मा का भी ज्ञान नहीं है । देह-अभिमान है, अपन को देह समझ बैठती है । कुछ तो वहाँ है ना । भले त्रिकालदर्शी नहीं हैं । ये समझते हैं बरोबर कि हमको आना है, जाने का नहीं है; क्योंकि सुख है ना । जाने की दिल होती है उनको जिनको दुःख होता है । उनको तो जाने की दिल नहीं होती है । जबकि समझाया जाता है कि ये जब बुढ्‌ढे बनते हैं तो बोलते हैं- अभी तो हमको छोटा शरीर लेना है । फिर छोटे से वो बालक बनेगा, युवा बनेगा, बुढढा बनेगा । ये जैसे कि उनको वह ज्ञान रहता है । इसलिए उनको कोई भी दुःख होता नहीं है और फिर यहाँ की सुख की प्रालब्घ है । बाकी आत्मा का ज्ञान जरूर होगा ना, नहीं तो भला छोड़ कैसे! अच्छा, यहाँ भी तो आत्मा का ज्ञान सभी को है । ये जो भी सभी ऋषि-मुनि हैं वो भले अपन को आत्मा के बदले में परमात्मा कह देते हैं कि मैं आत्मा सो जाकर परमात्मा में लीन होता हूँ । भले उनमें ये ज्ञान है । तो भी मैं आत्मा हूँ ये ज्ञान तो रहता है ना । तो उसको देह-अभिमान तो नहीं कहेंगे । वो भी तो ज्ञान है फिर चाहे आत्मा अपन को कहें, चाहे .... । बाकी हाँ, इतना जरूर है कि उनको ये मालूम नहीं है कि हम वापस जा नहीं सकते हैं । हम यहाँ फिर भी जन्म जरूर लेंगे और ये भी तो ज्ञान सबको होता है कि शरीर छोड़ करके बच्चा जरूर बनना है । फिर जवान छोड़े, चाहे बुढ्‌ढा छोटे, चाहे एकदम थोड़ा छोटा बच्चा भी छोड़े । ये तो सब कोई समझते हैं कि ये शरीर छोड़ जाकर दूसरा जन्म लिया । पुनर्जन्म तो सभी मानेंगे । और फिर जब छोड़ते हैं तब भी कह देते हैं भई, ये कर्म का हिसाब-किताब है । समझा ना । यहाँ सभी कर्म तो कूटते हैं ना । तो जब रावण का राज्य होता है तो फिर माया का राज्य, तो कर्म बनते हैं जिसके विकर्म बनते हैं । कर्म जो विकर्म रहता है, उनको कूटते रहते हैं, बोलते रहते हैं । बच्चे तो जानते हैं कि वहाँ कर्म कभी विकर्म होता ही नहीं जो कूटना पड़े । तो बच्चों को भला ये तो निश्चय होवे कि बरोबर अभी हम छोटे-बड़े जो भी हैं, सभी मच्छरों के मुआफिक वापिस जाने वाले हैं । देखते हो कि जब बोंब्स या कैलेमिटीज आती है, बेड़ी डूबती है, रेल...है, फलाना जो भी एक्सीडेंट होते हैं, छोटे बच्चे, बड़े बच्चे, सब खतम हो जाते हैं । अच्छा, ये भी तो बच्चों को मालूम है कि ये जो बोंब्स हैं उनकी ट्रायल भी हुई है और होगी, अभी और भी होएगी कि जब कहाँ इनको गुस्सा लगेगा ना तो एक - दो ठोक देंगे । फिर भले ये लोग झण्डी दिखला देते हैं । जैसे उस लड़ाई में भी देखते हैं कि नहीं पहुँचते हैं तो झण्डी दिखला देते हैं । तो इसमें भी जब देखेंगे कि इनकी बोल्ड पावरफुल है, तो झण्डी दिखलाय देंगे । जैसे जापान ने झण्डी दिखलाय दी थी । झण्डी दिखलाना तो बहुत सहज है और ये लोग आपस में समझते भी हैं कि क्रिश्चियन की बड़ी पावर है । और कोई की थोड़े ही है । चीन के पास तो अभी कुछ है नहीं । गायन भी है यूरोपवासी यादवों का । फिर भले हम सब कहेंगे यूरोपवासी । जो भी सभी धर्म वाले हैं उनको यूरोपवासी ही कहेंगे । तो देखो, यूरोपवासी फिर भी बनाते रहते हैं ।......यह भारत एक जगह में है, बाकी तीन तरफ जो खण्ड हैं, जिसको सब लोग एशिया खण्ड कहते हैं । ......इन सबको मिलाकर एक कर दिया कि ये काले लोग हैं । वो अपने खण्ड को यूरोप कहते हैं । अपने खण्ड के लिए तो उनको बहुत ही प्यार है । ऐसे थोड़े ही है कि उनको प्यार नहीं है; परन्तु किसका प्यार या ताकत भावी को क्या करेगा! ये सारी ताकत तो बाबा तुम्हारे पास दे रहे हैं ना । तुम योगबल से अपना राज्य लेते हो । फिर राज्य कहाँ करेंगे ? इसलिए विनाश लिखा हुआ है और ये भी बड़ी समझ की बात है । बच्चों को चित्रों में तो बड़ा अच्छा समझाने का है । बच्ची, तुमको तो कोई भी तकलीफें ही नहीं देते हैं, बोलते हैं सिर्फ मुझे याद करो । जैसे मनुष्य राम को याद करते हैं, कृष्ण को याद करते हैं, फलाने को याद करते हैं । सभी करते तो हैं ना । जैसे अभी कहते हैं तुम मुझे याद ने करो । अपने शरीर का देह-अभिमान छोड़ो, तुमको तो शरीर का देह-अभिमान रहता है ना । वो मैं मैं मैं कोई आत्मा को थोड़े ही समझते हैं, मैं अपने नाम-रूप को ले लेते हैं । उसको कहा जाता है देह-अभिमान । अभी किसको याद करते हो? मैं राम को याद करता हूँ । मैं कृष्ण को याद करता हूँ, गुरु को याद करता हूँ । तो मैं-मैं जब कहते हैं तो कोई ऐसे थोड़े ही कहते हैं कि मैं आत्मा उनको याद करता हूँ । तो उनको समझाया जाए तुम आत्मा हो तो अपने आत्मा के बाप को क्यों नहीं याद करते हो? दूसरी आत्माओं को क्यों याद करते हो? बाप तो कहते हैं कि तुम आत्माओं को याद नहीं करो, मुझ परमपिता परमात्मा को याद करो । आत्मा यानी जीव-आत्मा । आत्मा को तो नहीं याद करते, जीव आत्मा को याद करते हो । तो बोलते हैं तुम जीव आत्मा को याद क्यों करते हो? सिर्फ मुझ सुप्रीम आत्मा को, परमपिता परमात्मा को क्यों नहीं याद करते हो? तुम उनको क्यों याद करते हो? तो वो देह-अभिमान में याद करते हैं ना । तुम्हारा है देही-अभिमान । मैं आत्मा हूँ और बाप को याद करता हूँ । क्यों बाप को याद करता हूँ? बाबा ने फरमान किया है - मुझे याद करने से तुम्हारा विकर्म विनाश होता जाएगा । बाप को याद करने से उनकी जायदाद जरूर बुद्धि में आ जाती है । ऐसे नहीं कि जायदाद को याद करने से बाप याद आते हैं । नहीं, ये उल्टा हो जाता है । तो बाप माना ही जायदाद है । परमपिता परमात्मा बाप को याद करो तो ये जायदाद मुक्तिधाम, निर्वाणधाम....... । ये बड़ी जायदाद है । इस बड़ी जायदाद के लिए तो यज्ञ, तप, दान, पुण्य, तीर्थ ये धक्का खाते ही रहते हैं एकदम । देखो, पोप वगैरह आते हैं तो उनसे आशीर्वाद लेने जाते हैं । किसके लिए? आशीर्वाद से क्या होगा? कोई का आशीर्वाद लेते हैं पैसा मिलने के लिए, फलाने मिलने के लिए । यहाँ तो देखो, बाप सिर्फ दो अक्षर ही समझाते हैं - बच्चे, देह-अभिमान छोड़ो, अपन को आत्मा निश्चय करो और ये साथ में करो कि यह नाटक पूरा होता है । ये हमारा पुराना शरीर है । हमारा 84 जन्म पूरा हुआ । देखो, ये सिवाय बाप के और तो कोई समझाय न सके और सहज ते सहज करके बताते हैं; परन्तु वो श्रीमत पर चलते नहीं हैं । बोलते हैं तुम क्यों देह-अभिमान में आते हो? अभी तुम्हारा पूरा होता है ना । तो यहाँ गृहस्थ व्यवहार में रहते हुए ये बुद्धि में रखो कि मेरा ये शरीर पुराना है, हमको वापस जाना है ।......जैसे, नाटक पूरा होता है तो न 5 मिनट, आधा घण्टा थोड़ी पिछाड़ी की सीन होती है ना । जब 15 मिनट बच जाता है तब सभी एक्टर्स की बुद्धि में आता है बाकी 15 मिनट है । घड़ी रखी रहती है ना! उनको मालूम भी पड़ता है कि ये जो पिछाड़ी की ड्रामा की सीन है ये पूरी हो करके और हम अपना ये शरीर रूपी कपड़ा छोड़ करके घर चले जाएँगे । तुम बच्चों को भी यह मालूम है कि बाकी घड़ी कितनी है । तुमको यह शरीर छोड़ करके वापस जाना है ना और सबको जाना है, क्योंकि घर तो सबको जाना होगा । कोई नाटक में थोड़े ही बैठ जाते हैं । सब घर चले जाते हैं । बाप भी बोलते हैं - मैं भी तो फिर घर जाता हूँ ना । यहाँ सर्विस करने के लिए आता हूँ । तो ऐसे-ऐसे! अपने साथ बैठकर बात करनी चाहिए - मैं तो अभी घर जाता हूँ अभी तो नाटक पूरा हुआ ना । हम ये भी जान गए कि हमने सुख कितना देखा और दुःख कितना देखा । अभी तो खुशी की बात है ना । बाबा आया हुआ है । बाबा कहते हैं अभी मुझे याद करो और देह सहित सब जो भी दुनिया में क्या-क्या हो रहा है, इन सबको भूल जाओ । पुरानी दुनिया में क्या-क्या है वो भी तो समझते हो । ये सभी खत्म हो जाने वाला है । हमारा शरीर भी खत्म हो जाने वाला है । अभी तो वापिस जाना है, नाटक पूरा हुआ ना । हम सबको समझावे । ये बिचारे जानते नहीं हैं कि नाटक पूरा होना है । ये तो बोलते हैं अभी तो कलहयुग का यह सीन 40 हजार वर्ष चलेगी । इसको कहा जाता है घोर अंधियारे में । घोर अंधियारे में क्यों हैँ? बाप का परिचय नहीं है । ज्ञान-अज्ञान । ज्ञान माना ही बाप का परिचय । अज्ञान माना ही नो परिचय । बस, दो बात रहती है । बाप ने आ करके अपना परिचय दिया, उसको कहा जाता है ज्ञान । जिसको परिचय नहीं है, उसको कहते हैं अज्ञान । तो अज्ञान वाले, जिनको परिचय नहीं है वो बिल्कुल ही घोर अंधियारे मे पड़े हुए हैं और जब तुमको परिचय मिला है तो तुम नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार घोर सोझरे में हो । भला सोझरा तो है ना । सतयुग को सोझरा दिन कहा जाता है । फिर राजा हो, प्रजा हो, दास हो, दासियों हो, पर वो होंगे तो दिन में ना । ये तो सब समझते हैं कि रात पूरी होने वाली है । जब रात पूरी होती है तो हम वापस चले जाते हैं । फिर यहाँ दिन होता है । कहते हैं ना आज अभी ब्रहमा की रात, कल ब्रहमा का दिन । कल होने में टाइम तो लगेगा ना । तुम जानते हो बरोबर । अब कहते भी ऐसे हैं - आज रात है, कल दिन है । आज हम इस मृत्युलोक में हैं, कल अमरलोक में होंगे । यह हम जानते हैं कि पहले हमको वापस जाना पड़ेगा, फिर हम आएँगे । ऐसे ये सृष्टि का चक्कर फिरता है और बच्चों का 84 का फेरा भी कभी बन्द नहीं होता है । तभी तो बाबा कहते हैं - बच्चे, कितने बार तुम मेरे से मिले होंगे । बच्चे कहते हैं - बाबा, इन्यूमरेबल टाइम्स (अनगिनत बार) मिले होंगे । ये फेरा खाते ही रहेंगे । इसको कहा जाता है 84 का फेरा खाते ही रहना पड़ेगा । किसको? ये तो तुम बच्चों को बैठकर समझाते हैं जो पूरा 84 खाते हैं । और तो कोई को नहीं समझाते है ना । वो फिर हिसाब बताते हैं कि बरोबर 84 फेरा तुम खाते हो । जब तुम्हारा 84 फेरा पूरा होता है तब सबका फेरा पूरा हो जाता है । इसमें ऐसा नहीं है कि सबका 84 फेरा है । इसको कहा जाता है ज्ञान । तुम बच्चों को सोझरा मिला है । घोर अंधियारे में थे, इस बात का कोई ज्ञान नहीं था । समझा ना। तो उसको कहेंगे अज्ञान था, अभी ज्ञान है । ज्ञान देने वाला, सोझरे में ले जाने वाला कौन? ज्ञान का सागर, परमपिता परमात्मा, पतित-पावन । उनके लिए गाया ही जाता है पतित-पावन और पूछ भी सकते हो कि पतित-पावन किसको कहा जाता है? कभी कोई कृष्ण के लिए नहीं कहेंगे - पतित-पावन राम । फिर राम कौन-सा? तो जरूर कहेंगे ये राम, भगवान जिसको कहा जाता है, निराकार कहा जाता है । फिर क्यों कहते हो - रघुपति राघव सीता-राम? फिर रघुपति का और फलाने का नाम क्यों लेते हो? तो फिर सभी आत्माओं का बाप हुआ ना । तो ये समझाने की युक्ति रहती है । अनेक प्रकार से बाप समझाते रहते हैं । अरे, बाबा समझाने के लिए ढेर युक्तियाँ बताते हैं - मंदिर में जाओ, फलानी जगह जाओ, कोई अम्बाला मे जाए । ढेर की ढेर बातें समझाते हैं । इसलिए ये सब लिखते रहते हैं । अच्छा, भला लिखत में तो उनको देवें पढें तो सही, क्योंकि लिखत मे तो तुम सबको दे सकती हो । समझाने में तो हरेक की अपनी जुबान है, मीठी, चतुराई, याद । लिखत में तो है ही, जो तुम समझाओ सो ये समझावे । लिख दिया इनमे, फिर उनको समझाना उनके ऊपर है । बाकी ये जो लिखतें हम दे रहे हैं, दिन-प्रतिदिन उन्नति तो होती रहेगी ना । समझाने के लिए ज्ञान तो अच्छा-अच्छा गुह्य ही मिलता रहेगा ना । है समझने की बात । अलफ को समझाने की बात । कितना मत्था मारना पड़ता है । अलफ को भूले हैं इसलिए उसको नास्तिक या निधणके या अंग्रेजी में ऑरफन कहा जाता है । बस, एक बात । तब देखो, दुःखी होते रहते हैं । बस, उन एक द्वारा जब हम एक को जान जाते हैं तो देखो 21 जन्म कितना सुखी रहते हैं । बात कितनी है? एक । उसको कहा जात है ज्ञान और वो अज्ञान । ज्ञान किसका? परमपिता परमात्मा का । उनको ज्ञान है कि परमात्मा कहाँ है? सर्वव्यापी । .....बाबा कहते हैं, सर्वव्यापी भूत है तुम्हारे अंदर मे । भगवान नहीं, भूत । राम नहीं, रावण । वो बुद्धू लोग उस बड़े रावण को समझ लेंगे । ये नहीं समझेंगे कि 5 विकार को कहा जाता है । तो ये सभी बाते समझानी पड़ती हैं । किसके लिए सुनते हैं ? कोई को समझाने के लिए । अगर न समझाते रहें तो सुनने से क्या फायदा? एक तो, हम ईश्वर की गोद में हैं - ये बड़ा मारी नशा चढना चाहिए । अभी ये बैठे हैं, समझते हैं कि हम लोग.... किसकी गोद मे आए है? ये कोई इनकी गोद में तो नहीं हैं ना । ये तो ईश्वर की गोद में आए हैं । किसलिए? फिर भविष्य हम सभी देवताओ की गोद मे आवें । फिर देवताओं की गोद ही शुरू हुई ना । असुरों की गोद यानी इनमें प्रवेशता है 5 विकारों की और फिर दैवी गोद मिलेंगे, उनमें 5 विकारों की प्रवेशता नहीं है तो वहाँ सुख है । अभी मिलती है ईश्वर की गोद । भला ये भी तो नशा होना चाहिए ना कि मेरे को शिवबाबा ने एडॉप्ट किया है । किसको? मेरी आत्मा को । कहते हैं - अभी तुमको मुझे याद करना है, इसलिए याद की यात्रा पर तत्पर रहो । तब तुम्हारा विकर्म विनाश होगा । फिर तुम जानते तो हो ना कि मेरे से क्या वर्सा मिलेगा । बच्चे कहते हैं - हाँ बाबा, क्यों नहीं! वाह! स्वर्ग का सुख मिलेगा । बाबा कहते हैं स्वर्ग का सुख जरूर मिलेगा । जितना तुम याद करेंगे, औरों को कराएंगे, सुनेंगे और सुनाएंगे इतना ऊँच पद पाएंगे । तुम्हारे गीत में गारंटी भी है सुनूँगी और सुनाऊँगी, क्योंकि दूसरे का भी तो कल्याण करना है ना । तब तो राजाई मिलेगी ना । दूसरे को भी आप समान बनाते हो गोया तुमको राजाई मिलेगी । यह तो अच्छी समझ की बात है । तो जा करके औरों को भी यहाँ समझावे - शिवबाबा है निराकार, हम भी तो आत्माएँ हैं ना, हम भी वहाँ नंगे रहते थे, जैसे बाबा सदैव नंगा है । समझा ना! बाबा कभी भी कपड़ा पहन करके पुनर्जन्म नहीं लेते हैं । बाबा कपड़ा एक दफा आ करके लेते हैं, एक ही अवतार । अवतरण को कहा जाता है रीइनकारनेशन । यानी फिर से रीइनकार करते हैं । किसमें? अरे, ब्रहमा सिवाय और किसमें कैसे करेंगे जबकि पहले ब्राहमण रचने हैं? सो भी ब्राहमणों को उनको एडॉप्ट करना पड़े ना । अपना बनाय करके नाम रखना पड़े, नहीं तो ब्रहमा आए कहाँ से? ब्रहमा कोई किसका नाम वाला नहीं चाहिए । नहीं, यह तो वह चाहिए जिन्होने 84 जन्म पूरा लिया है । तो देखो, शुरू भी बड़ी अच्छी समझ में आती है, बिगनिंग टू एण्ड बरोबर । गोरा सो साँवरा । श्याम सो सुन्दर । ये सृष्टि के ऊपर भी नाम आ सकता है - ये भारत श्याम-सुन्दर । भारत का नाम हम श्याम-सुन्दर रख सकते हैं, क्योंकि भारत आयरन एण्ड और भारत ही गोल्डन एजेड । भारत ही पवित्र, भारत ही अपवित्र । भारत ही ज्ञानचिता पर गोरा बन जाता है । भारतवासी तो हैं ही । सारी कहानी भारत के ऊपर है । तो इसलिए भारतवासियों को ही मत्था मारना पड़ता है, परन्तु क्या करें, जो देवात्माओ को मत्था मारकर ठीक किया वो भले कनवर्ट हो गए हैं । कोई क्या, कोई कहाँ से निकलना पड़े । कई बच्चे एग्लो इडियन बन गए हैं । आजकल सूरते ऐसी हो गई हैं जो यूरोपियन और इंडियन मे फर्क नहीं पड़ता है, क्योंकि काले और सफेद की आपस में मल्टीप्लिकेशन हुई है ना । तो कोई-कोई बच्चे भी ऐसे हो गए हैं । कोई मेम से शादी करे, तो बच्चों को मेम जैसे फीचर्स निकल आते हैं । तो वो क्रिश्चियन कहलाय देते हैं । वो काला हो तो हम कहेंगे यह तो इस किस्म का है । विलायत में भी बहुत ही क्रिश्चियन हैं, कभी काली से, कभी जापानी से, कभी किसने शादी कर लेते हैं । गोरे अफ्रीकन से भी शादी करते हैं । समझा ना! ये काले-काले अफ्रीका वाले जो देखते हो ना तो वहाँ कभी-कभी कोई गोरे भी । फिर जन्म भी तो कोई का कैसा । तो देखो, मिक्सचर हो गया है ना! तो बाप बैठकर समझाते हैं, क्योंकि विशाल बुद्धि (नॉलेज) देती है - सारे सृष्टि के चक्र को समझने की, सभी धर्मों को समझने की, क्या हो गया है, दुनिया को ये सब समझाने की । तो जरूर 'क्या हो गया है', वो भी तो समझना चाहिए ना और समझाना है । ये भी समझते हैं, ये लिखा हुआ है कि विनाश काले विपरीत बुद्धि । बरोबर यादवों ने भी प्रीत नहीं रखी, कौरव ने भी प्रीत नहीं रखी । बाकी जिन्होंने प्रीत रखी उनकी विजय हो गई । विनाश काले प्रीत और विपरीत ।......विपरीत कहा जाता है किसका दुश्मन । बोलते हैं - हाँ ये सब हमारे दुश्मन है, क्योंकि वो मुझे गधे में, कुत्ते में, बिल्ले में सर्वव्यापी की गालियां देने लग पड़ते हैं । बाप आकर खुद कहते हैं तुम मुझे गाली देते हो । मुझे या तो कह देते हो कि हम जानते ही नहीं हैं । जो आगे ऋषि-मुनि होकर गए हैं कहते थे हम रचता और रचना को नहीं जानते हैं । अच्छा, फिर कहते हो कि जन्म-मरण रहित है, उनका कोई नाम-रूप, देश-काल कुछ है ही नहीं । क्यों कहते हो ओ गॉड फादर? तो जरूर हमारा देश भी है, हमारा नाम भी है । यह भी जानते हो कि बरोबर साक्षात्कार भी होता है । ऐसे नहीं कि साक्षात्कार नहीं होते हैं । आत्मा का, परमात्मा का जबकि स्कूल का ही साक्षात्कार होता है तो मुख्य का भी साक्षात्कार होता है, जो लिखा हुआ है । जिन्होंने गीता में लिख दिया कि वो बहुत तेजोमय है, फलाना है, क्योंकि वो समझते हैं भगवान ब्रहम है तो उनको साक्षात्कार भी ब्रहम का होता था । वो तो है नहीं । वो भी तो आत्मा है । परमात्मा का साक्षात्कार हुआ, आत्मा का साक्षात्कार हुआ । कुछ भी फर्क नहीं रहता है । बाकी हाँ ... . ये कोई मनुष्य पाई-पैसा कमाने वाला, कोई मनुष्य प्रेसिडेंट । तो ये क्या है? ये बुद्धि में अक्ल है । तो जरूर भगवान की बुद्धि में सबसे जास्ती अक्ल होगी ना; क्योंकि चैतन्य है, नॉलेजफुल है । मनुष्य को तो नॉलेजफुल नहीं कहें ।... .भगवान में वो कौन-सी नॉलेज है जिसको ज्ञान कहा जाता है? तो बरोबर कहा जाता है सिवाय उस सद्‌गुरु के सद्‌गति हो नहीं सकती । उस नॉलेजफुल ज्ञानेश्वर से यानी ज्ञान देने वाले ईश्वर से सद्‌गति होती है । माली अच्छा है ना । मनुष्यों ने भी अपने ऊपर नाम रख दिया है बहुत ही - 'ज्ञानेश्वर' माना ईश्वर में ज्ञान है, बरोबर ईश्वर में नॉलेज है । कौन-सी नॉलेज सो भी जब ईश्वर बताएगा तब मिलेगी । नहीं तो थोड़े ही मिलेगी ।.. .....- ज्ञानेश्वर वो ही ठहरा ना । ईश्वर में ही ज्ञान है, नॉलेजफुल है । तो बस, उसमें ही नॉलेज है । वो जब सुनाएगा तब तो दूसरे को नॉलेज मिलेगी ना । तो उनको आना पड़े ना । तो देखो, तुमको नॉलेज दे रहे हैं । तुम जैसे मास्टर ज्ञानेश्वर, ईश्वर के बच्चे बने हो और बाप से तुम ज्ञान ले रहे हो । तो तुमको कहा जाएगा मास्टर ज्ञानेश्वर यानी ईश्वर के बच्चे । उनमें ज्ञान किसने दिया? ज्ञान सागर ने दिया । तो बरोबर बच्चे हो ना । कहलाते तो हो ना - ईश्वर जो ज्ञान देने वाला है, उनके बच्चे हैं । ये तो समझते हो, परन्तु यह तो नशा होना चाहिए । अरे, हमको अभी ईश्वर पढ़ाते हैं । ईश्वर हमारा बाप है.. बात ही मत पूछो । उनको नित्य याद करने से ही फिर खुश रह सकते हो; परन्तु माया नित्य याद करने तो नहीं देगी । अंत में आ करके तुम्हारा अवस्था बनेगी । कहते-कहते, बोलते-बोलते उनमें और सो भी बाबा ने कह दिया......... । सिमर सिमर - सुख पाओ । ये अमृतवेले का ही सारा मदार है । सो भी बाबा तो कहते हैं ना, भले लेटे हुए भी, परन्तु ऐसे नहीं कि लेटे हुए नींद आ जावे । उस समय में तुमको माया के बहुत ही तूफान आएँगे, तुमको बुद्धियोग तुडाएंगे तो भी अपना हठ करके बैठ जाना है और बहुत मेहनत करनी है । इसमें मेहनत बहुत है । उसमें भी अमृतवेले की, जैसे दवाई देते हैं ना तो हमेशा सुबह को सवेल में देते हैं कि ये कुछ लगेगी । तो यह भी बाबा की दवाई है । ये उनको लगेगी जो सुबह को बैठ करके विचार-सागर-मंथन करेंगे कि हम किन-किन को कैसे समझावें । तो बस, समझाते-समझाते वो आपे ही समझाने के लिए चल पड़ेंगे । बिजी हो गया ना, पीछे छोड़ना नहीं । लगता रहेगा । उसमें भी बाप ने बड़ी युक्ति बताई है कि लक्ष्मी नारायण के मंदिर में जाओ, शिव के मंदिर में जाओ और चंद्रवंशी के मंदिर में जाओ । तुम जानते हो बरोबर कि सूर्यवंशी ही फिर चंद्रवंशी बनते हैं । उनको समझाओ इनको ये राजभाग किसने दिया? कहाँ से मिला? तो जरूर यह कह तो सकेंगे ना कि चंद्रवंशियों को सूर्यवंशी से मिला । सूर्यवंशियों को कहाँ से मिला? वो तो है वैश्यवंश पीछे है सूर्यवंश । वैश्यवंश में तो कुछ है नहीं । सूर्यवंश को ये सूर्यवंश राज्य किसने दिया? जरूर रचता ने दिया होगा ना । कैसे दिया? दूसरा कोई जानते ही नहीं हैं, तुम बहुत अच्छी तरह से जानते हो । कितनी-कितनी अच्छी प्वाइंट्स दी जाती हैं । पकड़ना चाहिए ना। चंद्रवंशी से तुम पकडेंगे ना । इनको राज्य कहाँ से मिला? वो नहीं जानेंगे । उनको बोलो सूर्यवंशी से मिला होगा जरूर । सतयुग में सूर्यवंशी थे । पीछे चंद्रवंशी राज्य उनको उनसे मिला हुआ होगा । वो सूर्यवंशी भी चंद्रवंशी बने होंगे जरूर, क्योंकि फिर तो चंद्रवंशी ही होते हैं । फिर चंद्रवंशी नहीं होते, फिर तो होते ही हैं वैश्यवंशी । वैश्यवंशियों के बाद फिर सभी शूद्रवंशी ही होते हैं । तो किसको समझाने के समय ये सब अच्छी तरह से बुद्धि में धारण करना है । अच्छा, सूर्यवंशियों को ये राज्य किसने दिया? वो तो बरोबर भगवान ही देंगे और कौन देंगे? कैसे दिया? राजयोग तो लिखा हुआ है, गीता के भगवान ने कहा - मैं तुमको राजयोग सिखलाता हूँ । वो कैसे आते हैं? अरे, वो कहते हैं ना हम पहले ब्रहमा द्वारा ब्राहमण रचते हैं और फिर ब्राहमणों को पढ़ाता हूँ क्योंकि यज्ञ रचता हूँ तो ब्राहमण चाहिए ना! ब्राहमण कहाँ से लाऊँ? तो देखो, प्रजापिता ब्रहमा को एडॉप्ट कर उनके मुखारविंद से ये सभी ब्राहमण और ब्राहमणियाँ रचता है । देखो, है तो सही ना । समझानी तो बहुत मिलती है । अच्छा भई, टोली ले आओ । प्रसाद बॉटते हैं ना! वो लोग तो गुरुनानक को लगाते हैं । वो कोई भगवान को नहीं लगाते हैं । तुम्हारे बुद्धि में है कि हम सब कुछ जो भी भोग लगाते हैं वो है ही शिवबाबा का । हम लगाते भी उनको हैं, हमको देने वाला भी वो ही है । तो उनका देने का चीज, उनका भी अच्छा है । उनका भी अच्छा कब लगेगा? जब बाबा की याद में, बाबा के भण्डारे से हमको ये मिलता है ऐसे समझेंगे । वो गुरुनानक का भण्डारा क्रिश्चियन लोग का भण्डारा, फलाने का भण्डारा, सबका भण्डारा होता है । देखो, काली का मंदिर, सन्यासियों का भण्डारा । ये है शिवबाबा का भण्डारा । अरे, उनकी तो हर एक चीज बहुत खुशी से ले जानी चाहिए । ये नहीं समझना चाहिए मैं खा नहीं सकता हूँ । नहीं, मैं पहले खाऊँ बहुत अच्छी तरह से ।......बाबा समझते हैं कि इनको अगर ये छुट्‌टी होती तो पता नहीं खा-खाकर अपने शरीर को क्या कर देता । अच्छा है, जो इनको ये हुआ है । तुम्हारे शरीर को साफ तो रखते हैं । नहीं तो गर्म मिर्च फलाना खा जाएंगे । गर्म मिर्च का मसाला, चउड़ा फलाना हम खा जाऊँ । खा जाऊ तो बाबा बोलेगा, हम ऐसे शरीर में, ये खाते रहते हो । तो अच्छा किया है जो ये शुगर की खिटखिट दिया है । इसको कुछ होवे तो करने लग पड़े, अच्छा ही है । जिस शरीर में बाबा ने लोन लिया उनको तो बहुत अच्छा रखना चाहिए ना । मेहमान कोई कम थोड़े ही है और ये मेहमान वण्डर । खुद कहते हैं मैं आ करके ये लोन लेता हूँ इस प्रकृति का आधार लेता हूँ । जैसे बाबा गया, कहाँ जाकर रहा? बरोबर मैंने रहने के लिए उस घर का आधार लिया है । आधार से तो सभी आत्माएँ पार्ट बजा रही हैं । बाप को भी तो आधार लेना पड़े ।. ....जन्म-मरण में नहीं आते हैं । बाकी सबको अपना शरीर है और सब शरीर का नाम बदलता रहता है । मेरा नाम बदल ही नहीं सकता है, क्योंकि मैं शरीर लेता ही नहीं हूँ जो मेरा नाम बदले । कितनी क्लीयर बात है ।........ तुम राय बताओ बच्चे कि हम तुमको ज्ञान कैसे सिखलाऊँ? ज्ञानेश्वर तो कहते हो, पतित-पावन भी कहते हो । तो राय निकालो, हम कैसे आऊँ? मुझे आना भी उसमें है जो ज्ञान पहले सुने और फिर वो नारायण बने, जो था । अभी नारायण नहीं बना है, अभी उनको बनना है । तो उसके शरीर में बैठना पड़े ना । नाम भी है बरोबर ब्रहमा प्रजापिता । एक तो हुआ आत्मा पिता, दूसरा हुआ प्रजापिता । विष्णु को प्रजापिता नहीं कहते, शंकर को प्रजापिता नहीं कहते हैं । प्रजा माना घणी बहुत प्रजा, ये सारी इतनी प्रजा । निकालो, कोई राय है? अच्छा, मीठे मीठे बच्चों प्रति यादप्यार और गुडमॉर्निग ।