14-12-1964     मधुबन आबू     रात्रि मुरली    साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हेलो गुड इवनिंग यह चौदह दिसम्बर का रात्रि क्लास है

 

....जरा चाही ऊँची समझते हैं । बच्चों की बहुतों से मुलाकात होती है तो कुछ कहते है? (किसी भाई ने कहा - बाबा, वहाँ सुना रहे थे कि लोग हमारे से कौन से प्रश्न पूछते थे और कैसे हम उनको जवाब देकर सेटिस्फाई करते थे.....) ऐसे उन लोगों को ये नहीं लगता था कि ये जो कहते है कि ये भगवान है, बाप है और तो जरूर उनसे वर्सा मिलना चाहिए? क्योंकि बच्चे तो सभी कहते हैं ना कि भगवान के सब बच्चे हैं । तो उनसे पूछते थे? (किसी भाई ने कहा - बहुत लोग तो कहते थे, पर बाद में पता नहीं क्या है? वहाँ तो बहुत अच्छा कहते थे । गाड़ी में भी हम आ रहे थे तो जब हम बता रहे थे कि हमारे यहाँ कोई गुरू वगैरह की तो बात ही नहीं, बच्चे और बाप की बात है । तो पहचान की बात होनी चाहिए । वो खुद मान रहा था कि हाँ, हम भी तो गुरू के बच्चे ही हुए ।) फीमेल्स जास्ती आती थीं या मेल्स जास्ती आते थे? (किसी ने कहा - मेल्स ज्यादा) ।.... अक्सर करके ये नन्स लिटरेचर नहीं लेती हैं । मैं देशियों का पूछता हूँ कि देशियों में फीमेल्स कुछ लेती थी? (किसी ने कहा - लेती थीं, लेकिन मेल ज्यादा लेते थे । ).. ये तो बच्चे समझते हैं कि माया का राज्य है । बड़ा धीरे-धीरे राज्य स्थापन होता है । एक-एक को बहुत श्रृंगारना पड़ता है । पहले तो थोड़ा निश्चय हो तब उनको श्रृंगारा जाए । ये इनका श्रृंगार है सर्व गुण सम्पन्न, सोलह कला सम्पन्न, सम्पूर्ण निर्विकार । मनुष्य तो अपन को आपे ही कहते हैं कि ये सभी गुण जो इनमें हैं, वो हमारे में हैं नहीं । उनका गुण वर्णन करके फिर झट कह देते है कि हमारे में कोई गुण नाहीं । फिर इनके पास गुण है तो फिर बोलते हैं कि आपे तरस परोई या आपे ही कुछ शिक्षा दो । अभी वो कैसे शिक्षा देंगे? या ग्रंथ कैसे शिक्षा देंगे या चित्र कैसे शिक्षा देंगे? उनको ये मालूम नहीं है कि इनको ऐसा बनाने वाला कौन है या इन्होंने क्या ऐसे कर्म किए; क्योंकि यहाँ जो भी मनुष्य हैं, साहूकार हैं, सुखी हैं या कुछ भी हैं; जैसे - पोप है, ऐसे तो जरूर सब कोई कहेंगे कि इन्होंने कोई बहुत अच्छे कर्म किए हुए हैं जो इनको इतना मान मिलता है । वो तो सबके लिए कह सकेंगे । देशी हो, विदेशी हो, कोई भी हो । जो भी बड़ा आदमी है या सुखी है या पैसे वाला है तो कहेंगे जरूर कि ये कर्म ऐसा किया है, जो इनको ये फल मिला है; क्योंकि कर्म तो सभी मानते हैं ना । किसको भी सुखी या दु:खी देखते हैं तो कर्म तो सभी मानते हैं और अपन कर्म भी मानते हैं, फिर हम ड्रामा के ऊपर मी चलते हैं । ये तो बरोबर है कि जो जो जैसा-जैसा कर्म करते हैं वो ऐसा अपना दूसरे जन्म में फल पाते हैं । है तो यहाँ भी ऐसे ही; क्योंकि अपन को भी तो श्रीमत पर ऐसे चल करके भविष्य में फल पाना है । श्रीमत और तो कुछ नहीं समझ आती है; क्योंकि श्रीमत कहती है कि तुम हमारे बच्चे हो और जब बच्चे हमारे पास थे तो पवित्र थे । फिर तुम बच्चे जब पहले आते हो तो कोई उल्टा-सुल्टा कर्म तो करते नहीं हो जो तुम्हारा कोई कर्म लिखा जाए या कुछ दुःख होवे । है तो सभी कर्म की थ्योरी, बहुत करके कहते हैं ना । इस समय में तो मनुष्य, मनुष्य को कर्म सिखलाते हैं; पर कौन से कर्म हैं? वास्तव मे ये जो गुरू लोग कर्म सिखलाते हैं । यहाँ भले बाप टीचर गुरू जो कोई भी हैं, सो कर्म तो बहुत ही सिखलाते हैं । ये कपड़ा सिलना, फलाना करना, कर्म तो बहुत हैं, परन्तु बाप की श्रीमत से हम श्रेष्ठ बन सकते है, यह फिर कोई जानते ही नहीं हैं । भ्रष्ट से ही श्रेष्ठ बनते है; क्योंकि कहते हैं कि हम पतित हैं अर्थात् भ्रष्ट हैं; इसलिए पतित को ही श्रेष्ठ बनना है । इसलिए गाते भी तो रहते हैं । जो समझू-सयाने हैं वो तो समझते हैं कि बरोबर इस दुनिया में पाप आत्माएँ बहुत हैं और कहते भी हैं कि ये भ्रष्टाचारी दुनिया है; परन्तु कहने मात्र ही सब कुछ कहते रहते हैं । समझते तो कुछ नहीं हैं ना । ये तो कोई नई बात नहीं है । ज्ञान न होवे तो अपन भी ऐसे ही कहते रहें । अज्ञान के कारण बच्चे ऐसे भी नहीं समझते होंगे कि आज जो दिन पास हुआ, उनमें जो कुछ भी देखा-समझा ये कल्प पहले ही हुआ था । मनुष्य तो पाप ही करते रहते हैं । पाप आत्माओं की दुनिया है । पांच विकार तो सबमें ही प्रवेश है । परवश हैं । दिखलाते हैं कि एक तार होती है, उसमें मछलियां बांधकर डालते हैं, ऐसे ही जैसे ऐरो के मुआफिक बना हुआ तम्बूरा होता है ना, उसमें तार लगाते हैं, पैसे-पैसे मिलते हैं छोटेपन में, उनमें मछलियाँ लटकी रहती हैं, ऐसे ये सारी दुनिया धागे में डांस कर रही है । ड्रामा अनुसार हर एक पार्ट बजा रहे हैं । समझ में भी ऐसे ही आता है । देखो, कितनी बड़ी है ये रुद्रमाला । सभी जो भी दाने हैं वो शरीर धारण कर जैसे कि डांस करते हैं । ड्रामा के धागे में डांस करते रहते हैं । ये ऐसा अनादि वण्डरफुल ब्रॉड ड्रामा बना हुआ है । इनको बड़ी युक्ति से समझने की भी बड़ी बुद्धि चाहिए और फिर सभी को भूल करके ये निश्चय में रहना कि अभी हमको वापस जाना है, बाप से वर्सा लेना है । कमलफूल के समान पवित्र भी रहना है । पवित्रता का तो है ही कि प्योर रहेंगे, और तो कोई प्रतिज्ञा नहीं है । कमलफूल के समान पवित्र माना ही प्योर रहेंगे । सारा मदार है प्योरिटी के ऊपर । इस समय में तो अपन को अलग ही समझने से अच्छा है, क्योंकि वापस जाना है । इसमे दूसरी तो कोई बात भी नहीं है । बाप का डायरेक्शन है कि सिर्फ मुझे याद करते रहो, करते रहो, करते रहो । नाटक पूरा होता है । इसको ही योगाग्नि कहते हैं । वास्तव में वो आग तो नहीं है ना । ये तो पवित्र.... । जलना तो सबको है; परन्तु याद तो करना है ना । तो इसलिए जो कुछ भी देखते हैं, ये बाप की याद में रहने से बाप भी राजी होते हैं कि इनसे कोई भी पाप नहीं होता है । पुण्य आत्मा बनने के लिए कितना वो पाप से डरते हैं । उसमें भी महापाप या महापापी वो जो जीवघाती या आत्मघाती है । किसको मारते हैं या अपन को मारते हैं तो कहते हैं कि ये है जीवघाती और अपन यहाँ कहते हैं कि जीव आत्मा ही घाती बनती है या आत्मघाती बनती है, क्योंकि आत्मा को काला बनाना ये है ही आत्मघात करना । घात का मतलब ये नहीं है कि कोई आत्मा मरती है; परन्तु काली तो पड़ जाती है ना । तो आत्मा पापात्मा कहें, तो भी उनको क्या कहें? इसमें बड़े ते बड़ा पाप गिना ही जाता है विकार का । इनसे बचना है । इनसे बचने के लिए ही बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों का भी दिखलाते हैं ना कि काम आया, वो ऊपर छत में जाकर बैठा था, फिर एक खूबसूरत स्त्री को देखा । एक आखानी है ना । नानक कहते हैं कि मूत पलीती । सारा मदार है विकार के ऊपर । काम पर जीत पहनना, बड़ी पहलवानी चाहिए । रावण के जेलखाने से निकालना ही है । आज की मुरली सुनी? (किसी ने कहा - अभी मुरली ली है, अभी पढेंगे) यहाँ बॉम्बे से कुछ ले भी आए थे ना । उनको बिचारे को जो कुछ लिखकर देंगे वो पढ़कर सुनाएँगे । बिचारे समझेंगे कुछ भी नहीं ।... .. स्पीच किया तो पहले रिहर्सल की थी ? लिख करके उनको दो तीन दफा करेक्ट करके पीछे वाणी चलाई या ऐसे ही? (किसी ने कहा - ऐसे ही) बाबा हमे समझाते हैं कि कहाँ भी भाषण करना हो तो पहले लिखना चाहिए । जैसे कि हम भाषण करते हैं, वैसे पहले लिखें । लिख करके फिर गौर करें, दूसरे से राय लेवें । फिर उनको करेक्ट करें, कोई ऐसी पाइंट तो नहीं भूली है, दिल से लगता है कि हम अच्छा समझाते हैं, फिर भाषण करें, तभी मजा होता है । शुरुआत में ऑर्डिनरी कॉमन भाषण किया । मम्मा कुछ नवाई नहीं लिखती है । बाबा की महिमा ही तो करनी चाहिए, जो उनको ये लिखी हुई है - बाबा ऐसा है, ऐसा है । तार में भी लिखी हुई है कि बाबा स्वीट होम मे ले जाते हैं । तो पहले तो बाबा की महिमा करनी पड़े । वहाँ बैठ करके सारी विश्व को शांति देंगे । ये मनुष्य तो मनुष्य को शांति नहीं दे सकते हैं । बाबा की पहले पहले पूरी महिमा करनी है । उनको सर्वव्यापी कहना ये बड़ा पाप है । ये-ये बातें ठोकनी चाहिए । ऐसी कोई बात ठोकी? (किसी भाई ने कहा- वो साधारण तन में आता है और आकर अभी कर्तव्य कर रहा है और दुनिया को पलटाकर पवित्र और नया बना रहा है ।)

दान-पुण्य या लेन-देन राइट हैण्ड से राइट हैण्ड में होता है ।.. से नहीं लेते हैं । शिवबाबा को कान है? (किसी ने कहा-जी) शिवबाबा को कान हैं? (किसी ने कहा-जी) अच्छा, वो क्या सुनते है? (किसी बहन ने कहा...... सब सुनते हैं, साकार द्वारा वो सब देखते हैं) देखो, तुम जो रिस्पॉण्ड करती हो ना, वो सुनते हैं । चरण है? (किसी बहन ने कहा - जी ही, है) कहाँ है? (साकार तन में बैठा है) तुम समझती हो ये शिवबाबा का है....... (किसी ने कहा - माँ को सभी है) कौन सी माँ? ये जो माँ है, उनको सब है? (किसी ने कहा - बैठे तो हैं) अभी जो हैं उनको बोल देवे कि लज्जा नहीं करे । जो कोई भी चीज चाहिए तो माँग लेवें या बोल देवे । शिवबाबा को टेम्पररी है । (म्पूजिक बजा) मात-पिता और बापदादा का मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति याद-प्यार और गुडनाइट ।