29-12-1964     मधुबन आबू     प्रात: मुरली    साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हेलो, गुड मोर्निंग हम दिल्ली से बोल रहें हैं , आज शुक्रवार है दिसम्बर उनत्तीस तारीख की मुरली सुनते हैं

रिकार्ड -

दुखियो पे कुछ रहम करो- माँ-बाप हमारे......

 

ओमशांति । अभी बच्चे पुकारते हैं कि बाप को आना है । कब आना है? जबकि रहम चाहते हैं । तो बाप बैठकर बच्चों को समझाते हैं ..बहू कल्प पहले मुआफिक बाप आ गए है बच्चों को फिर से प्यार देने और जो बच्चे दुःखी हैं उनको सुखी करने । बच्चे कहेंगे ना फिर से; क्योंकि पुकारते हैं कि आओ, रहम करो, फिर से आओ; क्योंकि बच्चे जानते हैं कि सचमुच हम दुःखी हैं । हम 5000 वर्ष पहले बहुत सुखी थे । बाबा ने तुमको बताया है कि कितना वर्ष हुआ जब तुम बहुत सुखी थे । अब तुम दुःखी हो । किसने दुःख दिया है? किसने तुमको अशांत किया है? सब कोई आते हैं तो कहते हैं - शांति कैसे मिले? तो अशांत है ना। अशांत का अर्थ ही है कि घर-घर में दुःख है, झगड़ा है, मारामारी है, उसको कहा जाता है 'अशांत', और फिर शांत किसको कहा जाता है? जहाँ फिर यह मारामारी, झगड़ा और हंगामा नहीं है । ऐसे नहीं है कि शांति चाहिए, तो हम जड़ बन जावे । क्यों? जब हम वहाँ नंगे हैं, शरीर नहीं है, तो हम जैसे जड़ हैं, कुछ करते नहीं हैं, बस वहाँ पड़े रहते हैं ।.. मूलवतन में हम कुछ करते नहीं हैं, शरीर हो तो कुछ करें ना! शरीर नहीं है तो वहाँ करते क्या हैं? वहाँ हम पड़े रहते हैं - जड़ । उसको जड़ कहा जाता है । शांत पड़े हुए हैं । शांति तो वहाँ है; क्योंकि वो है ही निर्वाणधाम, वानप्रस्थ । निर्वाणधाम माना वाणी से परे धाम । वानप्रस्थ का भी यहाँ अर्थ हैं - वाणी से परे स्थान, जहॉ हम बच्चे, हम आत्माएँ रहते हैं । किसके पास? बाप के पास । उसको स्वीटहोम भी नहीं कहा जाता है, उसको कहा जाता है - शांतिधाम । जब 'स्वीट' अर्थात मीठा अक्षर आता है तो फिर कडुवा भी जरूर होगा । तो यह है कलियुग का कडुवाधाम वह है मीठा धाम-सुखधाम । यह है शांतिधाम । बच्चे पुकारते हैं ना! तो बाप भी आकर कहते हैं और बाप समझाते हैं तुम अभी बहुत दुःखी हो, ऐसे नहीं है कि जैसे बहुत बच्चे समझते हैं कि बाप ही सुख देते हैं, बाप ही दुःख देते हैं अर्थात् गॉड फादर ही सुख देते हैं, गॉड फादर ही दुःख देते हैं या परमात्मा सुख देते हैं, परमात्मा दुःख देते हैं, ऐसे तो कभी हो नहीं सकता है । परमपिता परमात्मा उसको मोस्ट बिलवेड कहा जाता है वा कहा जाता है बिलवेड मोस्ट परमप्रिय, परमपिता । माँ-बाप तो प्रिय होते है ना; क्योंकि वो पालना करते हैं, वर्सा देते हैं । तो प्रिय उनको कहा जाता है । बच्चों को मोस्ट प्रिय होते ही हैं - माँ-बाप । तो एक मां-बाप हैं हद के, दूसरे फिर मॉ-बाप हैं बेहद के, जिनको देखो ऐसे पुकारते हैं । लौकिक मात-पिता को ऐसे थोड़े ही कहेंगे - ''तुम मात-पिता, हम बालक तेरे, तुम्हरी कृपा ते सुख घनेरे ।'' घनेरे कहाँ? आज हैं, कल दुःखी होते हैं, बीमार होते हैं, ये होते हैं । नहीं, कोई है दूसरा जिसकी महिमा भक्तिमार्ग में चली आती है; क्योंकि अविनाशी सुख देते हैं और अविनाशी हैं । तो बाप बैठकर के समझाते हैं, बच्चों को वो अविनाशी याद रहती है; क्योंकि मैं कल्प-कल्प आय कर बच्चों को सदा सुखी बनाता हूँ । इसका नाम शिव है ना, उसको कहा ही जाता है - सदाशिव । शिवजयंती होती है ना, तो कहते हैं - सदाशिव । 'सदा का अर्थ एक निकलता हैं - सदा सुख देने वाला या सदा ही वहाँ परमधाम में एकरस रहने वाला, सिर्फ एक दफा आने वाला । जब गाती हो ना - माँ बाप हमारे. तो अभी तुमको प्रैक्टिकल में मिला है । तुम जानते हो कि बरोबर हमको अभी, जिसकी महिमा है, गॉड फादर जिसको कहा जाता है, वो प्रैक्टिकल में मिला है । सिर्फ ईश्वर और प्रभु कहने से वर्से का मजा नहीं आता है, फादर कहने से वर्से का मजा है । फादर माना ही है फादर से वर्सा मिलता है । ऐसे नहीं कहेंगे कि ये मदर से वर्सा मिलता है । दोनों चाहिए । माता भी चाहिए तो पिता भी चाहिए । तो जरूर माता-पिता चाहिए । भारत में तो मशहूर है - जगद्अम्बा । जगत की माता हो गई । जगत की अम्बा है, तो पिता भी है । ये बुद्धि से काम बहुत लेना है । ये दंत कथाएँ जो पढ़ी हैं ना, वो सब भूलो । जब बाबा बैठकर कुछ समझाते हैं, जब शिवबाबा भी समझाते हैं, तो ऐसे तो नहीं कहेंगे कि परमपिता परमात्मा आकर शास्त्र समझाते हैं । वो सभी वेदों, ग्रंथों शास्त्रों का सार समझाते हैं । तुम बच्चों को मालूम है कि ब्रहमा का चित्र दिखलाते हैं, उनके हाथ में पुस्तक देते हैं और फिर चित्र बनाय दिया है कि विष्णु की नाभी से निकलते हैं । अभी विष्णु की नाभी से तो कोई निकलने की बात है नहीं । विष्णु सुक्ष्मवतन में रहा, ब्रहमा भी फिर वहाँ ही रहा, तो वहाँ सुक्ष्मवतन में थोड़े ही विष्णु की नाभी से ब्रहमा निकल पड़ा । ऐसे तो है भी नहीं । नहीं, यह है प्रजापिता ब्रहमा । तो जरूर दो ब्रहमा हो गए । लॉ मुजीब दो ब्रहमा । एक को कहा जाता है प्रजापिता ब्रहमा यानी प्रजा रचने वाला ब्रहमा । प्रजा तो यहाँ रची जाएगी ना, सुक्ष्मवतन में तो नहीं है । बहुत बच्चे मुझते हैं - यह क्या, यह साकार में मनुष्य अपने को ब्रहमा जो सुक्ष्मवतन में रहते हैं वो कैसे कहलाय सकते हैं? तुम्हारे पास बहुतों को ऐसे बहुत संशय होते है । तो बाप बैठकर समझाते हैं कि प्रजापिता ब्रहमा, उनके ब्रहमा मुखकमल से ब्राहमण पैदा हुए । तुम ब्राहमणों से जाकर पूछो कि तुम किसकी सन्तान हो? बोलेंगे - हम ब्रहमा की मुखवंशावली हैं । तो ये समझते हैं कि मुखवंशावली होंगी, तो ब्रहमा भी जरूर यहाँ होगा ना । तो इसका नाम ही है प्रजापिता ब्रहमा । उनको आदिदेव भी क्यों कहते हैं? क्योंकि वो जो त्रिमूर्ति रचा है, उनका नाम रख ही दिया त्रिमूर्ति ब्रहमा । तो तुमने उसको 'ब्रहमा बड़ा लकब दे दिया । इसलिए उनको कह देते हैं आदिदेव । अभी बाप .. समझाते हैं प्रजापिता तो जरूर यहाँ चाहिए । बाप आते ही हैं जबकि दुनिया पतित है । तो वो ब्रहमा कौन होगा, जिनसे बाप बैठकर ब्रहमा द्वारा मुखवंशावली रचते हैं? दुनिया तो सारी पतित है बरोबर । फिर बैठकर समझाते हैं कि यह है ब्रहमा की रात, सो भी एकदम आधी रात । शिवजयन्ती.. कब आती है? बोलते है - जब दुनिया की आधी रात होती है और दिन होना होता है तब आते हैं ।. ...वो जो कृष्ण के लिए लिखते हैं कि वो आधी रात में जन्म लेता है, जन्म-अष्टमी व्रत रखते हैं और रात को जागते हैं, तो बाबा बैठ बोलते हैं कि यह परमपिता परमात्मा खुद कहते हैं कि मैं आता ही हूँ कल्प के अन्त में और आदि में यानी जब ब्रहमा की आधी रात है, बिल्कुल ही घोर अंधियारा है । तो दिन करने के लिए घोर अंधियारे में आएगा ना । तो मेरी जयन्ती होती ही है कल्प के रात में । ऐसे नहीं कि कोई मैं गर्भ से जन्म लेता हूँ, जो कोई बैठकर वो ... लेते हैं कब-किस ... में जन्म लिया, नहीं । मेरा वो जन्म नहीं है, जिसकी तुम टाइम रखते हो । रखते हो ना । तो बैठकर समझाते हैं । कौन समझाते हैं? फिर वहाँ परमपिता परमात्मा, जिसको गीता का भगवान कहा जाता है, वो भगवान आया हुआ है और वो पढ़ाते हैं । इन सबको पहले ये निश्चय होना चाहिए । नहीं तो बिचारे क्या करेंगे? मूझेंगे । बाबा अभी सभा से कैसे पूछें कि तुम जानते हो कि यहाँ भगवान पढ़ाते हैं? कृष्ण भगवान नहीं । गीता का भगवान कृष्ण नहीं है । जो सबका भगवान है, जिसको शिव कहा जाता है । शिव का कर्तव्य ड्रामा में अलग हुआ, कृष्ण का अलग हुआ । बिल्कुल ही रात-दिन का फर्क है । उनकी महिमा अलग, उनकी महिमा अलग । बाबा ने बहुत समझाया है । तो बाप बैठकर बच्चों को समझाते हैं- तुम बच्चे जानते हो कि अभी परमपिता परमात्मा कल्प पहले मुआफिक इस द्वारा सारे ब्रहमाण्ड और सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान सुनाय रहे हैं, जो कोई भी सुनाय ना सकेंगे । क्यों? इसको कहा ही जाता है नॉलेजफुल । जानी जाननहार का अर्थ कोई यह नहीं है कि सबके दिलों को जानते हैं । सारी साढ़े तीन सौ करोड़ों दिलों को बैठकर जानेंगे, यह थोड़े ही बात है । उनको कहा जाता है नॉलेजफुल । अंग्रेजी अक्षर बहुत अच्छा है । वो जानी जाननहार का अक्षर कुछ मुशाय देता है । भई, नॉलेजफुल है । तो बाप आकर कहते हैं मैं चैतन्य हूँ ना । मुझे कहते भी हैं - सत है, चैतन्य है, फिर कहा जाता है - आनन्द स्वरूप है, सुख का सागर है । सुख तो स्वर्ग में होता है ना, जो देते हैं । तो बाप सुख का इनहेरीटेन्स देंगे ना । जो सुख का सागर है, तुम कभी उनको कहते हो कि दुःख का सागर भी है? अभी तो दुःख का सागर है ना । तो तुम कैसे कहेंगे कि जो सुख का सागर है वो फिर दुख भी देंगे? नहीं । बाप ने आकर कल्प पहले भी समझाया था, अब फिर से समझाते हैं- मैं सुख का सागर हूँ दुख का सागर है रावण, जिसको तुम लोग कहते हो, जिन्होंने सबको दुखी किया है । .. तुम सीताएँ हो; क्योंकि भक्ति करते हो यानी बाप को, भगवान को याद करते हो । तो तुमको दुखी किसने किया है? ये रावण ने । देखो, रावण तुम वर्ष-वर्ष जलाते हो । तुमको यह तो पता है नहीं कि रावण कौन है। रावण का कोई चित्र थोड़े ही होता है । रावण का अर्थ ही है ये 5 विकार । तुम सब, सारी दुनिया रावण के बॉण्डेज (गुलामी) में हो । ये भूतों की जंजीरों में हो । तुम सबको 5 भूत लगे हैं । बड़ा भूत । भूत दो प्रकार के होते हैं । एक को घोस्ट कहते हैं और यह है फिर माया । यह बहुत पुरानी है । आधा कल्प से इनका राज्य है । इसको भूत कहा जाता है । कहते हैं ना - इनको काम का भूत लगा है, दर-दर में धक्का खाते रहते हैं । इसको बाजारी कुत्ते कहा जाता है, बाजारी बैल भी कहा जाता है, दर-दर जाते हैं । तो बाप बैठकर समझाते हैं कि ये बड़े भूत हैं । यह काम का भूत, क्रोध का भूत । कोई गुस्सा करते हैं ना, तो कहते हैं - देखो, इनको क्रोध का भूत लगा है । इनको भूत कहते हैं । ये हैं दो दुश्मन; क्योंकि मोह और लोभ को इतना भूत नहीं कहा जाता है । नहीं, ये बड़े शत्रु हैं । उसमें भी काम तो बिल्कुल महाशत्रु है और कहते भी हैं - हे मेरे लाडले बच्चे, इस काम रूपी शत्रु पर जीत पहनो । तो इस पर जीत पहनेंगे ना? दो हैं बड़े । तुम बच्चों को दोनों की मालूम है - कामेषु क्रोधेषु । काम की चेष्टा अभी की बात है ना । अभी की ही बात बताते हैं- कामेषु क्रोधेषु । काम-विख ना मिलेगा तो अबलाओं को एकदम ठूँसा मारेंगे । कहेंगे - इस बिगर सृष्टि कैसे चलेगी? अरे भाई, वो वाइसलेस वर्ल्ड थी, फिर क्या उनको बच्चे नहीं थे? श्री लक्ष्मी नारायण को बच्चे थे ना एक । याद रख लेना वहाँ एक । जरूर तख्त पर तो कोई बैठते आएँगे ना । यहाँ बस, बिगड़ते हैं बिचारी अबलाओं को । ये ड्रामा है, बैठकर के समझाते हैं कि बरोबर आगे भी जब अबलाओं के ऊपर अत्याचार हुए, पाप का घड़ा भरा, इस कारण तभी विनाश शुरू हो गया था । अभी बच्चों को यह तो निश्चय है ना बाप सामने बैठकर के गाते हैं 'मुरली तेरी में है जादू.. ' देखो मैं सिन्धी में कहता हूँ - मुरली तीजिय में जादू आहे खेल खुदाई' । यह जो मुरली बजती है, अरे बड़ा जादू है उनमें । यह खुदाई मुरली है और खुदाई जादू है । बरोबर भगवान को ही जादूगर कहा जाता है, कृष्ण को थोड़े ही जादूगर कहा जाता है । मनुष्य से देवता बनावे, एक सेकेण्ड में जीवनमुक्ति देवे यह जादू नहीं ठहरा! 'एक सेकेण्ड में .. ' जनक के लिए कहते हैं ना और बच्चे कहते भी हैं - बाबा, हमको जनक के मिसल ज्ञान दो । यह जो भगाते हो यह नहीं, हम घर ना छोड़, हमको जनक के मिसल एक सेकेण्ड में ज्ञान दो । गीताएँ तो बहुत हैं, अष्टाव्रक गीता आदि । तो बाबा कहते हैं - मैं आया भी हूँ तुमको ऐसे लक्ष्मी नारायण बनाने । मैं तुमको घर-बार थोड़े ही छुड़ाता हूँ । तुम प्रवृत्तिमार्ग वाले हैं और थे । सतयुग में तुम प्रवृत्तिमार्ग हैं । तुम्हारा लक्ष्मी और नारायण जिनको तुम पूजते हो, वो प्रवृत्तिमार्ग है ना । जरूर राजा और रानी, बच्चा भी तो पैदा हुआ होगा ना ।. प्रवृत्तिमार्ग है ना । मैं भी तुमको प्रवृत्तिमार्ग में ज्ञान देता हूँ ।...शुरुआत में तुम लोगों ने जो सुना है ना, गाली खाने का, हंगामा हुआ, वो हगामा तो गीता में भी था ना । कृष्ण को बहुत गाली दिया बहुत भगाते थे, फलाना करते थे । गाली खाया था ना । बाबा कहते हैं कि नहीं, उनका भी राज है; क्योंकि बाप को पहले चाहिए भट्‌ठी, जिसमें कुछ बहुत निकलें । ज्ञान की भट्‌ठी में डालें, योग की भट्‌ठी में डालें, वो भट्‌ठी बनानी थी । तुम्हारे भागवत में लिखा हुआ है कि भट्‌ठी, परन्तु उनमें बिल्ली के पूँगरे डाल दिए थे । पढ़ा है कहाँ? एक भट्‌ठी थी, उनमें बिल्ली के चरे बैठ गए थे । ईट तो पक गई, पर बिल्ली के पूगरे यहाँ जीते-जीते बैठे हुए थे । तो बिल्लियों के पूंगारे हैं या माया के? माया बिल्ली है ना, उनके पूँगरे बन गए । आजकल माया बिल्ली कहते हैं ना । ये एक खेल है । गुलबकावली का एक खेल भी होता है, जिसमें चौपड़ खेलते हैं । वो नगाड़ा बजाकर आता है, मैं माया को जीत करने के लिए आता हूँ । फिर वो जब माया से जीत पहनते हैं, तो वो बिल्ली बिठा देती है ।.बिल्ली पासा फेर देती है । अभी की बात है । तुम आए हो माया पर जीत पहनने के लिए । माया बिल्ली को कहते हैं । वो घड़ी- घड़ी तुम्हारा जो धारा है ना, उल्टा दे देती है; क्योंकि तुम्हारा बाप आया है अभी पौ बारह बनाने । माया ने तुम्हारा छत्तीस डाल दिया है छतीस हार कहा जाता है, पौ बारह जीत कहा जाती है । अभी चौपर की तो खेल नहीं है । यह बात है समझाने की । तो बाबा बैठकर समझाते हैं कि अभी तुम पुरुषार्थ करते हो माया पर जीत पहनने के लिए । कोई वक्त में तुम एकदम हराय देते हो । माया बिल्ली घड़ी-घड़ी तुम्हारा दीवा बुझाय देती है । तो बाप बैठकर समझाते हैं, ये होगा जरूर । यह युद्ध का मैदान है । मैं आज खिलौना नहीं ले आया हूँ, नहीं तो मेरे पास खिलौना भी है कि बॉक्सिंग कैसे करते हैं? क्योंकि बहुत माताओं ने बॉक्सिंग नहीं देखी है । बच्चों ने तो देखी है कि कुश्ती कैसे लड़ते हैं । कैसे एक-दो को ऐसे जोर से मार देते हैं, जो बिचारा आह्ह करते हुए ऐसे पड़ जाता है । अभी तुम्हारे पास बहुत गोप और गोपियाँ है । मैदान में युद्ध करते हो, युद्ध का मैदान है ना । युधिष्ठिर यानी युद्ध के मैदान में माया पर जीत पाने वाला । इसको ही कहा जाता है नॉन-वाइलेंस । अभी नॉन-वाइलेस सिखलाने वाला आ गया है । तुम बहुत बड़े वारियर्स हो । तुम अननोन वारियर्स हो, बट वेरी वेल नोन यानी तुम लोग वारियर्स हो माया पर जीत पहनने वाले । तुम बहुत नामीग्रामी हो । कौन हो तुम? वो शिवशक्ति पाण्डव सेना, जिनकी पूजा हो रही है, तुम वो हो; परन्तु कोई मनुष्य जानते ही नहीं हैं । तुमको कोई जानते हैं? तुम भारत को स्वर्ग बनाने वाली हो माया पर जीत पहन करके जगतजीत बनी हो । वो जो सन्यासी लोग या कोई कहते हैं - मन जीते जगतजीत । नहीं, मन तो कभी जीता नहीं जाता है । यह तो इम्पॉसिबुल बात है । मन जीते तो तुम खा नहीं सको, कर्म कैसे करेंगे? मन तो संकल्प-विकल्प करते हैं ना । फिर तुम कर्म ना कर सको, एकदम जैसे जड़ बन जाओ । नहीं, मन नहीं । अभी युद्ध का मैदान है । माया पर जीत पहननी है, 5 विकारों के ऊपर जीत पहननी है । उसमें मुख्य है काम । यह विकार बहुत कड़ा है । तो बाप बैठकर बच्चों को समझाते हैं कि यह जादू किसका है तो जरूर खुदा-बाप आकर इनमें से तुमको समझाते हैं । जादूगर उनको कहा जाता है ना । कृष्ण थोड़े ही जादूगर है । बाबा ने बच्चों को समझाय दिया है कि यह त्रिकालदर्शीपने की जो नॉलेज है, कोई भी पुराने ऋषि-मुनि एक भी त्रिकालदर्शी होकर नहीं गया है । कैसे हो, जबकि सतयुग के आदि में श्री लक्ष्मी और नारायण मनुष्य सृष्टि में नंबर वन हुए ना, वो भी त्रिकालदर्शी नहीं हैं, उनको भी सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान नहीं है । यह तो कहते हैं, श्री कृष्ण भगवानुवाच, फिर कृष्ण का बाप आकर बताते हैं कि नहीं, उस बच्चे में तीनों लोकों का ज्ञान है नहीं । बिल्कुल नहीं है एकदम । अगर उनमें होता तो उनको मालूम होता कि अच्छा, अभी हम सूर्यवंशी हैं । अरे! पीछे तो मुझे चन्द्रवंशी बनना पड़ेगा । पीछे मुझे वैश्यवंशी बनना पड़ेगा, फिर मुझे शूद्रवंशी बनना पड़ेगा । नींद फिट जावेगी । बाप बैठकर समझाते हैं-जिसके लिए कहते हैं कि श्री कृष्ण भगवानुवाच और बैठकर यह त्रिकालदर्शी बनाते हैं, उनमें यह ज्ञान नहीं है । देखो, कितनी भूल हो गई है । बड़ी ते बड़ी भारी भूल । फिर भी तो बाप कहते हैं बुद्धि को ये बाबा भोजन देते हैं ना । बुद्धि से पूछो कि वो त्रिकालदर्शी हो सकता है? वो तो बेचारा घुटके में मर जावे कि हम पीछे फलाना जा करके एकदम शूद्र बनेंगे, दुःखी बनेंगे । तो वहाँ ही उनको वैराग आ जावे कि बाबा, फिर क्यों यह ड्रामा रचा है, जो फिर मुझे दुःख मिलेगा? बिचारों को घुटका आ जावे, वैकुण्ठ का सुख ही उड़ जावे । नहीं । तो बाप बैठकर बच्चों को समझाते हैं कि मीठे बच्चे, अभी गॉड आया है पढाने के लिए । वो फादर क्या बनाने आया हुआ है? बोलता है - जैसे दूसरे हैं ना, मनुष्य मनुष्य को बनाते हैं ना, बैरिस्टर है तो बैरिस्टर बनाते हैं, इंजीनियर है तो इंजीनियर बनाते हैं; सर्जन है तो सर्जन बनाते हैं यानी मानुष ते सर्जन भये...... । उनको कितना समय लगा?