विकारों का अंश समाप्त करने के लिए - कर्म करते बीच बीच में यह 5 मिनट का योग करें।


ओम शांति।

आज की मेडिटेशन कमेंटरी है विकारों के अंश को समाप्त करने के लिए कौन सा पुरुषार्थ करना है। इस मेडिटेशन के अभ्यास से हमारा चित्त शान्त होगा। हमारे मन में जो भी कभी व्यर्थ संकल्प या जो भी नेगेटिव संकल्प चलते हैं, वह स्वतः ही समाप्त हो जाएगा। दिन भर बीच बीच में ये अभ्यास करने से जो भी विकारों का अंश है, स्वतः समाप्त होगा। इन विकारों के अंश को समाप्त करने के लिए, बाबा के कुछ महावाक्य जो अव्यक्त मुरली 28 अप्रैल 1982 से हैं- "विकारों की आग के अंश मात्र से बचने का साधन है- अपने आदि अनादि वंश को याद करो। अनादि बाप के वंश संपूर्ण सतोप्रधान आत्मा हूं। आदि वंश देव आत्मा हूं। देव आत्मा, 16 कला संपन्न, संपूर्ण निर्विकारी, अनादि और आदि वंश को याद करो तो विकारों का अंश भी समाप्त हो जाएगा। दूसरी रिवाइज साकार मुरली 26 अगस्त 2020 से बाबा कहते हैं, "निरंतर अंतर्मुखी रहने का पुरुषार्थ करो। अंतर्मुख अर्थात सेकंड में शरीर से detach। इस दुनिया की सुध बुध बिलकुल भूल जाए। एक सेकंड में ऊपर जाना और आना। इस अभ्यास से विकारों का अंश समाप्त हो जाएगा। कर्म करते-करते बीच-बीच में अंतर्मुखी हो जाओ। ऐसे लगे जैसे बिल्कुल सन्नाटा है। कोई भी चूरपुर नहीं। यह सृष्टि तो जैसे है ही नहीं।" तो बाबा के इन महावाक्यों पर आधारित हम बीच-बीच में कर्म करते यह प्रैक्टिस करें। तो चलिए शुरू करते हैं।

ओम शांति। एक सेकंड में पहुंच जाएं परमधाम में... मैं आत्मा.. एक पॉइंट ऑफ लाइट... संपूर्ण सतोप्रधान हूं अपने घर में... परमधाम में... परमधाम... शांति धाम... चारों तरफ लाल प्रकाश... संपूर्ण आत्माओं की दुनिया है यह... पहुंच जाएं शिव बाबा के एकदम पास... समीप पहुंच जाएं... फील करेंगे मैं आत्मा संपूर्ण सतोप्रधान, परमात्मा की संतान..... अनुभव करेंगे एक लाइट का तार जैसे शिव बाबा से निकल मुझ आत्मा में कनेक्ट हो चुका है... संपूर्ण एकाग्र हो जाएं इस स्थिति में... मैं आत्मा स्थित हूं अपने निराकार स्वरूप में... परमात्मा से कंबाइंड... शिवबाबा सर्वशक्तिमान, मैं आत्मा मास्टर सर्वशक्तिमान... अभी एक सेकंड में मैं आत्मा पहुंच गई अपने पहले सतयुग के जन्म में... अपने आदि स्वरूप में... फील करेंगे मैं देव फुल की एक दिव्य आत्मा हूं... सिर पर डबल ताज... संपूर्ण सतोप्रधान... 16 कला संपन्न... संपूर्ण निर्विकारी मैं देवता हूं... अनुभव करेंगे यह सतयुग के नजारे... चारों तरफ सोने के महल... महलों के आंगन में पुष्पक विमान... पक्षियों की बहुत सुंदर आवाज... जैसे एक नेचुरल संगीत... मैं देव कुल की एक रॉयल आत्मा हूं... सामने देखेंगे लक्ष्मी नारायण का कैसा दिव्य तेज है... 16 कला संपन्न, संपूर्ण निर्विकारी मैं एक दिव्य आत्मा हूं... मेरे संस्कार रॉयल हैं... मेरे कर्म, मेरे बोल, मेरे मनसा दिव्य हैं...

ओम शांति।