हर सुबह यह वरदान का अभ्यास करें।


ओम शांति।

आज हम विशेष दो वरदानों का अभ्यास करेंगे। इन दो वरदानों का हर रोज अभ्यास करने से हमें बाकी सभी वरदान स्वतः प्राप्त हो जाएंगे। यह वरदान नैचुरली हमें परमात्मा शिवबाबा से प्राप्त है। बस इन दो वरदानों का हमें हर रोज अभ्यास करना है। इन्हें हर रोज यूज़ करना है। जितना जितना इन दो वरदानों का हम अभ्यास करेंगे, उतना यह दो वरदान हमारे जीवन में नैचुरल बन जाएंगे। स्वतः ही इमर्ज हो जाएंगे। इन दो वरदानों का हर रोज अभ्यास करने से हम स्वतः ही हर कर्म में, हर परिस्थिति में शक्तिशाली रहेंगे! परमात्मा का साथ हमें निरंतर अनुभव होगा... हमें सभी की दुआएं स्वतः प्राप्त होंगी। तो इन दो वरदानों का अभ्यास चलिए स्टार्ट करते हैं..

अनुभव करेंगे मैं आत्मा ज्योति स्वरूप, अपने मस्तक के बीच में एक चमकता सितारा... फील करेंगे मैं परम पवित्र आत्मा हूं... फील करेंगे मुझ आत्मा से पवित्रता का प्रकाश निकल सारे शरीर में फैल चुका है... ऊपर ब्रेन से लेकर नीचे पैरों तक यह प्योरिटी की किरणें, पवित्रता का प्रकाश फैल चुका है... और मेरा स्थूल शरीर पूरी तरह से लोप हो चुका है... बस मैं आत्मा अपने फरिश्ता स्वरूप में, अपने लाइट के शरीर में... मैं एक परम पवित्र आत्मा हूं... मैं पवित्रता का फरिश्ता हूं... प्योरिटी मेरा ओरिजिनल नेचर है.. अभी मैं फरिश्ता उड़ चला आकाश, चांद तारों को पार कर... एक सेकंड में पहुंच गया सूक्ष्म वतन में... चारों तरफ सफेद प्रकाश... सामने हमारे बापदादा... हमें प्यार भरी मीठी दृष्टि दे रहे हैं... असीम शांति है इस दृष्टि में... इस दृष्टि से मैं पूरी तरह से निर्संकल्प हूं... कोई संकल्प नहीं.... बस परमात्म प्रेम में लीन हूं... बापदादा के सामने बैठ जाएंगे... फील करेंगे उन्होंने अपना वरदानी हाथ हमारे सिर के ऊपर रख दिया है... इन हाथों से हमारे पूरे मस्तक और पूरे सूक्ष्म शरीर में एक दिव्य प्रकाश फैल रहा है.. एकाग्र हो जाएंगे इस स्थिति में... बापदादा हमें पहला वरदान दे रहे हैं- श्रेष्ठ योगी भव..! श्रेष्ठ योगी भव...! आज से मैं एक श्रेष्ठ योगी आत्मा हूं! परमात्मा से मुझे वरदान मिला है- श्रेष्ठ योगी भव! इस ब्राह्मण जीवन में सर्वश्रेष्ठ वरदान श्रेष्ठ योगी भव का वरदान है... जिसे यह वरदान प्राप्त होता है, उसे बाकी सभी वरदान स्वतः प्राप्त होते हैं... श्रेष्ठ योगी अर्थात एक बल एक भरोसा... सदा एकाग्रचित्त, श्रेष्ठ योगी अर्थात एक के सिवाय और कुछ दिखाई नहीं दे... मेरा हर कर्म और बोल, और संकल्प परमात्मा को अर्पण है... हर कर्म, बोल और संकल्प परमात्मा की याद में है... श्रेष्ठ योगी अर्थात एक ही लक्ष्य की तरफ नज़र... वह लक्ष्य है बिंदु! बाकी किसी भी विस्तार को देखते हुए नहीं देखना, सुनते हुए नहीं सुनना... तो आज से मैं एक श्रेष्ठ योगी आत्मा हूं! स्वयं भगवान ने मुझे वरदान दिया है- श्रेष्ठ योगी भव! अभी बापदादा हमें दूसरा वरदान दे रहे हैं- संपूर्ण पवित्र भव..! संपूर्ण पवित्र भव...! मैं परम पवित्र आत्मा हूं... स्वयं भगवान ने मुझे वरदान दिया है- संपूर्ण पवित्र भव! आज से मैं मनसा, वाचा और कर्मणा पूरी तरह से पवित्र हूं! हमारी वृत्ति में सर्व आत्माओं के प्रति शुभ भावना, शुभकामना है... सबका भला हो.. सभी सुखी रहें... आज से हमारी दृष्टि आत्मिक दृष्टि है... हम हर एक को आत्मिक स्वरूप में देखते हैं... अर्थात उनके शरीर को ना देख, उनके मस्तक मणि को देखते हैं... वे पवित्र आत्मा हैं... सभी पवित्र हैं... हमारा हर बोल पवित्र है, अर्थात वरदानी है... हम अपने बोल से सभी को दुआएं देते हैं, सुख देते हैं... हमारा हर एक बोल पवित्र है... परमात्मा शिवबाबा की श्रीमत अनुसार है... मेरा हर कर्म पवित्र है... मैं अपने हर कर्म से पवित्रता की झलक और फलक का अनुभव करवाता हूं... हमारा हर कर्म सभी को सुख देता है... मैं परम पवित्र आत्मा हूं...

परमात्मा कहते हैं- वरदाता द्वारा सर्व वरदानों में मुख्य दो वरदान हैं, जिसमें कि सारे वरदान समाए हुए हैं, वे दो वरदान हैं- योगी भव और पवित्र भव!

ओम शांति।