मैं पुण्य आत्मा हूँ - मेडिटेशन कमेंटरी।


ओम शांति।

एक है दान करना, दूसरा है पुण्य करना। दान से भी पुण्य का ज़्यादा महत्व है। पुण्य कर्म निःस्वार्थ, सेवा भाव का कर्म है। पुण्य कर्म दिखावा नहीं होता है, लेकिन दिल से होता है। पुण्य कर्म अर्थात आवश्यकता के समय किसी आत्मा के सहयोगी बनना, अर्थात उसके काम में आना। पुण्य कर्म करने वाली आत्मा को अनेक आत्माओं की दिल की दुआएं प्राप्त होती हैं। तो आज हम पुण्य आत्मा का अनुभव करेंगे। हम अनुभव करेंगे मैं एक पुण्य आत्मा हूँ। मैं पुण्य करने वाली एक श्रेष्ठ आत्मा हूँ, और पुण्य आत्मा की विशेषताएं, गुण निशानियां हम अपने आप में इमर्ज करेंगे। तो चलें शुरू करते हैं..

अनुभव करेंगे मैं आत्मा एक ज्योति स्वरूप... मस्तक के बीच में एक चमकता सितारा... अनुभव करेंगे मैं आत्मा स्वराज्य अधिकारी... अपने कर्मेंद्रियों की मालिक... मैं एक शांत स्वरूप आत्मा हूँ... अनुभव करेंगे मुझ आत्मा से शांति का प्रकाश निकल सारे शरीर में फैल चुका है... ऊपर ब्रेन से लेकर नीचे पैरों तक यह शांति की किरणें फैल चुकी हैं... जैसे यह स्थूल शरीर पूरी तरह से लोप हो चुका है... बस मैं आत्मा अपने लाइट के शरीर में... अपने फरिश्ता स्वरूप में... मैं एक फरिश्ता हूँ.. परमात्मा शिवबाबा का भेजा हुआ एक अवतरित फरिश्ता हूँ... मुझे सिर्फ देना है.. मैं एक पुण्य आत्मा हूँ... सदा निस्वार्थ सेवा भाव से कर्म करने वाली मैं एक पुण्य आत्मा हूँ... हमारे चेहरे से सदा प्रसन्नता, संतुष्टता की झलक दिखाई देती है... मैं सदा पुण्य करने वाली एक श्रेष्ठ आत्मा हूँ... मनसा, वाचा, कर्मणा हम सदा सबको सुख देते हैं... हमारे मन में किसी आत्मा के प्रति भी नेगेटिव भाव नहीं है... मुझे सबको परमात्म प्रेम देना है... पुण्यात्मा अर्थात सदा कोई ना कोई खज़ाने का महादान कर पुण्य कमाने वाली... सदा ज्ञान रत्न अर्थात सदा अमूल्य बोल, हर कर्म में बाप समान चरित्र, सदा बाप समान विश्व कल्याणकारी वृत्ति है... हर सेकंड, हर संकल्प के कल्याणकारी, रहमदिल किरणों द्वारा चारों ओर दुख अशांति के अन्धकार को दूर करने वाले हैं.... अनुभव करेंगे परमात्मा शिवबाबा परमधाम में.... परमात्मा शिवबाबा ज्ञान के सागर.. गुणों के सागर.. सर्वशक्तिवान... फील करेंगे उनसे दिव्य शक्तियों की किरणें निकल मुझ आत्मा में समाती जा रही हैं... यह दिव्य शक्तियों की किरणें... ज्ञान, गुण और शक्तियों से भरपूर यह किरणें अनुभव करेंगे... मैं ज्ञान, गुणों और शक्तियों से संपन्न बन चुकी हूँ... और धीरे धीरे मुझ फरिश्ता से सारे संसार में यह शक्तियों की किरणें फैल रहीं हैं... संसार की सर्व आत्माओं को यह किरणों का अनुभव हो रहा है... ज्ञान, गुणों और शक्तियों का यह दिव्य प्रकाश संसार की दुख, अशांति, अन्धकार को दूर कर रहा है... सभी आत्माएं सुख का अनुभव कर रही हैं... परमात्मा कहते हैं- तुम्हारा मुख्य कर्तव्य है ज्ञान सूर्य से शक्तियों की किरणें ले सारे संसार को देना! बाकि सभी सेवाएं निमित्त मात्र हैं। यही हमारा मुख्य कर्तव्य है!

इसी स्थिति में एकाग्र रहेंगे- परमात्मा शिवबाबा से यह दिव्य किरणें निकल, मुझ फरिश्ता में समा कर, सारे संसार को मिल रही हैं... मानो हम इस पृथ्वी पर, इस ग्लोब पर स्थित एक अवतरित फरिश्ता हैं.. एक पुण्य आत्मा हैं... सदा मनसा, वाचा और कर्मणा द्वारा पुण्य करने वाली एक श्रेष्ठ आत्मा हैं... यह परमात्म किरणें संसार में चारों ओर फैल चुकी हैं... प्रकृति के पांचों तत्व भी इन किरणों को फील कर रहे हैं... प्रकृति के पांचों तत्व हमें दिल से दुआएं दे रहे हैं... मैं एक पुण्य आत्मा हूँ... एक लाइट हाउस समान भटकती आत्माओं को मंज़िल दिखाने वाली हूँ...

पुण्य आत्मा का संकल्प अति शीतल स्वरूप है, जो विकारों की आग में जली हुई आत्माओं को शीतला बनाने वाला है... पुण्य आत्मा का संकल्प ऐसा श्रेष्ठ शस्त्र है, जो अनेक बंधनों के परतंत्र आत्मा को स्वतंत्र बनाने वाला है... अनुभव करेंगे संसार की सभी आत्माएं इन किरणों से बहुत ही शक्तिशाली बन चुकी हैं... वे सभी दुख अशांति, विघ्नों से, समस्याओं से मुक्त बन चुकी हैं... पूरी तरह से स्वतंत्र बन चुकी हैं....

ओम शांति।