Nimmit Bhav Ka Abhyaas - Karavanhaar Parmatma Kara Rahe Hain


ओम शांति ।

आज हम निमित्त भाव का अभ्यास करेंगे। परमात्मा कहते हैं - कोई भी कर्म में आओ तो संकल्प करो "बाबा मैं इंस्ट्रूमेंट आपके सेवा के अर्थ तैयार हूं!" सेवा में निमित्त भाव ही सेवा के सफलता का आधार है।

चाहे हम कोई भी कार्य करते हों, वो चाहे घर का हो, जॉब हो, या कोई अलौकिक सेवा हो, हमें हर कार्य को सेवा भाव यानी निमित्त भाव से करना है.. अर्थात परमात्मा करावनहार करा रहे हैं, मैं निमित्त हूं, परमात्मा की इन्ट्रूमेंट हूं! इस निमित्त भाव के साथ कार्य करने से हमें सहज सफलता प्राप्त होती है। बाबा कहते हैं- निमित्त भाव अनेक प्रकार का मैं-पन, मेरापन को सहज ही खत्म कर देता है। हम सहज ही निराकारी, निर्विकारी व निरहंकारी स्थिति का अनुभव करते हैं। इस निमित्त भाव से हमारे मन में सर्व आत्माओं के प्रति शुभभावना, शुभकामना स्वतः रहेगी। जितना हम निमित्त भाव में रहेंगे, उतना हम हल्केपन का अनुभव करेंगे, हल्केपन का अनुभव करने से हमारी परखने की शक्ति व निर्णय करने की शक्ति बहुत ही बढ़ जाती है। हम स्वतः ही साक्षी स्थिति का अनुभव करते हैं। और साक्षी स्थिति का अनुभव करने से परमात्मा के साथ का अनुभव स्वतः होता है। और परमात्म बाप के साथ का अनुभव होने से हम स्वतः ही सर्वशक्ति संपन्न अनुभव करते हैं, हम संतुष्ट रहते हैं। तो यह निमित्त भाव ही सर्व सिद्धियों का आधार है। हर सेवा में, हर कार्य में सफलता का आधार है। तो यह अभ्यास कैसे करना है, इसे शुरू करते हैं।

कोई भी कार्य करते समय, कर्म में हो, या बैठे योग में हो, हम अनुभव करेंगे.. मैं आत्मा अपने मस्तक के बीच में एक प्वाइंट ऑफ लाइट.. एक चमकता सितारा.. पूरी तरह एकाग्र हो जाएं अपने इस आत्मिक स्वरूप पर... संकल्प करेंगे मैं परमात्मा का इंस्ट्रूमेंट हूं... निमित्त हूं.. मैं इंस्ट्रूमेंट हूं... करावनहार बाप निमित्त बनाए करा रहे हैं... यह कार्य, यह सेवा मैं आत्मा निमित्त बन कर रही हूं... इसमें मेरापन कुछ नहीं है, सबकुछ परमात्मा बाप का है... मैं बस ट्रस्टी हूं... बहुत हल्की हूं.. मन ही मन सभी कार्य, बोझ, वो चाहे कोई जॉब हों, चाहे कोई सेवा हो, कोई सम्बन्धों की ज़िम्मेदारी हो, धन का कोई पेपर हों, सभी मन ही मन परमात्मा को अर्पण करें और हल्के हो जाएं... मेरा कुछ नहीं, मैं निमित्त हूं... मेरा कुछ नहीं, मैं निमित्त हूं... करावनहार परमात्मा करा रहें हैं, यह कार्य में सफलता हुई पड़ी है... सफलता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है!! मैं बस परमात्मा का इंस्ट्रूमेंट हूं, निमित्त बन यह कार्य कर रही हूं... अनुभव करें.. यह हल्कापन, यह न्यारापन, बंधनमुक्त स्थिति, जीवन-मुक्त स्थिति.. सभी बोझ, चिंताओं से मुक्त, मैं आत्मा परमात्मा का इंस्ट्रूमेंट हूं... मैं आत्मा पूरी तरह से निराकारी, निर्विकारी और निरहंकारी हूं... मेरा कुछ नहीं, सभी ज़िम्मेदारियां, मन के सभी बोझ, सभी संबंध, हमारा घर, हमारी संपत्ति, हम निमित्त बन, ट्रस्टी बन संभाल रहे हैं... यह परमात्मा की देन है... मैं बस निमित्त हूं... इंस्ट्रूमेंट हूं...

ओम शांति।