यह 21 दिन करें और पहला पाठ पक्का करें - मैं आत्मा हूं


ओम शांति ।

परमात्मा कहते हैं - "मैं कौन हूं? इस एक शब्द के उत्तर में सारा ज्ञान समाया हुआ है। यह एक शब्द ही खुशी के खजाने, सर्व शक्तियों के खजाने, ज्ञान-धन के खजाने, श्वास और समय के खजाने की चाबी है!"

एक मुरली में बाबा ने कहा - "आत्मिक स्थिति में एकाग्र होना भी याद है, एकाग्रता ही स्वमान है।" और एक मुरली में बाबा ने कहा - "योग ना लगने का मुख्य कारण है, अपनी ड्रेस बदल नहीं सकते। ड्रेस अर्थात मैं यह शरीर नहीं, एक ज्योति स्वरूप आत्मा हूं।"

तो हमारे ज्ञान का पहला पाठ है - मैं आत्मा हूं। गीता ज्ञान का भी पहला पाठ है - अशरीरी आत्मा बनो। जितना हम अपने आत्मिक स्थिति का अच्छा अभ्यास करेंगे, उतना हमें अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति होगी। हम स्वत: ही ज्ञान, गुणों और शक्तियों से भरपूर अनुभव करेंगे। हमारा परमात्मा से योग पावरफुल बनेगा। तो कम से कम 21 दिन हम इस आत्मिक स्थिति का अभ्यास सुबह 15 मिनट और शाम को 15 मिनट करेंगे। हम यह अभ्यास किसी मेडिटेशन म्यूजिक या ओम ध्वनि पर भी कर सकते हैं।

हमें सिर्फ अपने मस्तक के बीच आत्मा बिंदु में एकाग्र करना है। हम इसकी ऑडियो कॉमेंट्री भी प्ले कर सकते हैं। चलिए शुरू करते हैं।

तीन बार गहरी सांस लेंगे... Breathe in.... breathe out.... Breathe in.... breathe out.... Breathe in.... breathe out... और अपने मस्तक के बीच में एक चमकता सितारा देखें... इस सितारे पर एकाग्र हो जाएं... और जैसे-जैसे ये कॉमेंट्री आगे बढ़ेगी, एक-एक शब्द को हम गहराई से अनुभव करेंगे।

मैं एक आत्मा हूं... मैं ज्योति बिंदु स्वरूप आत्मा हूं... मस्तक के मध्य एक चमकता सितारा हूं... मैं इस शरीर को चलाने वाली एक आत्मा हूं... इस शरीर की मालिक हूं... मैं एक चैतन्य शक्ति हूं... मैं एक मणि समान आत्मा अपने भृकुटी के मध्य विराजमान हूं... यह मेरा तख्त है... यह शरीर प्रकृति के पांच तत्वों से बना है... मैं यह शरीर नहीं हूं, मैं इस शरीर को चलाने वाली एक आत्मा हूं...

जैसे एक ड्राइवर गाड़ी को चलाता है, वैसे ही मैं आत्मा इस भृकुटी के मध्य में स्थित, इस शरीर को अपने अनुसार चला रही हूं... मैं इस शरीर की मालिक हूं... मैं प्रकृतिजीत आत्मा हूं... मैं आत्मा इस शरीर से अलग हूं...!!

मैं आत्मा पूरी तरह साक्षी हो चुकी हूं अपने इस शरीर से... जैसे-जैसे मेरे विचार कम हो रहे हैं, मैं आत्मा बहुत हल्का और रिलैक्स्ड महसूस कर रही हूं... मेरा शरीर भी पूरी तरह शांत, स्थिर और रिलैक्स्ड हो चुका है... मैं एक चैतन्य ऊर्जा हूं...

मैं एक अलौकिक शक्ति हूं... मैं प्रकाशवान हूं... मैं अजर, अमर, अविनाशी, आत्मा हूं... मैं आत्मा कभी मरती नहीं... मेरा कभी विनाश हो नहीं सकता... समय अनुसार, ड्रामा प्लैन अनुसार, मैं अपना शरीर बदलती हूं... यह सृष्टि जैसे एक नाटक है... इस नाटक में मैं आत्मा एक रोल प्ले कर रही हूं... इस नाटक से, इस ड्रामा से पूरी तरह साक्षी हूं...

मैं दिव्य आत्मा हूं... मेरा अपने संकल्पों पे पूरा कंट्रोल है... मेरा अपने इस शरीर पर पूर्ण कंट्रोल है... मेरा अपने कर्म इंद्रियों पर पूरा कंट्रोल है... मैं मालिक हूं... मैं स्वराज्य अधिकारी आत्मा हूं... मैं अपने सत्य स्वरूप में स्थित अतीन्द्रिय सुख का अनुभव कर रही हूं...

अभी हम सभी को आत्मा देखेंगे... विज्वलाइज़ करेंगे, हमारे सभी संबंध, वह चाहे घर में हो या कोई भी कनेक्शन में हो, वह भी एक ज्योति स्वरूप आत्मा हैं... विश्व के सभी व्यक्ति एक आत्मा हैं...

विज्वलाइज़ करें जैसे यह पूरा विश्व अनेकों चमकते हुए सितारों से भरा हुआ है... सभी आत्माएं अपना-अपना रोल प्ले कर रही हैं...

मैं आत्मा परमधाम निवासी हूं... मैं आत्मा शांतिधाम निवासी हूं... परमात्मा शिवबाबा की संतान हूं...

अभी ओम ध्वनि में हम अपने इस आत्मिक स्थिति में ही एकाग्र रहेंगे....

ओम.......... ओम........... ओम.......... ओम............

ओम शांति।