अष्टावक्र और राजा जनक की इस कहानी को समझ लीजिये, सारे प्रश्नों का उत्तर मिल जायेगा - 5 Min Meditation


ओम शांति ।

आज हम एक विशेष संकल्प का अभ्यास करेंगे। यह प्रयोग हमने दादी जानकी जी के क्लास में सुना था। एक बार दादी जानकी जी ने मम्मा से प्रश्न पूछा कि मम्मा आप की स्थिति ऐसी स्थिर, एकरस और शक्तिशाली कैसे रहती है? तो मम्मा ने एक वाक्य में उनको उत्तर दिया। उन्होंने कहा "यह मन मेरा है ही नहीं... यह मन मेरा है ही नहीं..." अर्थात यह मन मेरा नहीं है, परमात्मा शिवबाबा को पूरी तरह समर्पण है।

इस वाक्य का उल्लेख 'अष्टावक्र गीता' में भी है। राजा जनक जब महान अष्टावक्र को कहते हैं - "आप मुझे आत्म-ज्ञान दीजिए, मुझे मन की शांति दीजिए, इसके लिए मैं आपको पूरे राज्य की संपत्ति देने के लिए तैयार हूं।" तब अष्टावक्र कहते हैं - "मुझे यह संपत्ति नहीं चाहिए, यह संपत्ति तो राज्य की है, आप मुझे कुछ देना चाहते हो, तो अपना मन दे दो।" मन दे दो अर्थात, आप कोई संकल्प अपना नहीं कर सकते। 7 दिन के बाद अष्टावक्र उनका हाल पूछते हैं, राजा जनक उनको उत्तर देते हैं - मेरा मन तो आप के हवाले है और इसमें मैं बहुत ही शांति का और अतीन्द्रिय सुख का अनुभव कर रहा हूं। राजा जनक अष्टावक्र को कहते हैं - "मैं जान गया हूं कि मैं यह शरीर नहीं हूं। मैं एक चैतन्य शक्ति, आत्मा हूं। मैं आत्मा हमेशा शांत और खुश हूं।"

तो आज हम इसी संकल्प का अभ्यास सिर्फ 5 मिनट करेंगे। यह संकल्प है - यह मन मेरा है ही नहीं... इस संकल्प का 5 मिनट ही अभ्यास करने से, हम बहुत हल्का और एनर्जेटिक महसूस करेंगे। तो इस संकल्प का अभ्यास गहराई के साथ, चलिए स्टार्ट करते हैं।

अनुभव करें... मैं आत्मा एक पॉइंट ऑफ लाइट... अपने मस्तक के बीच में... एक चमकता सितारा... संकल्प करेंगे, यह मन मेरा है ही नहीं... इस संकल्प से यह मन पूरी तरह परमात्मा को समर्पण है... गहरी शांति का अनुभव करें... कोई संकल्प नहीं, बस एक ही संकल्प, यह मन मेरा है ही नहीं... यह मन मेरा है ही नहीं... यह मन परमात्मा का है... मेरा कोई संकल्प नहीं!! पूरी तरह संकल्पों से मुक्त, नि:संकल्प अवस्था है यह! मन, मन के संकल्प परमात्मा को अर्पण हैं... हमारा कोई संकल्प नहीं... हमारे हर संकल्प, वह चाहे किसी परिस्थिति का हो, कोई व्यक्ति, वैभव, धन, मन की परेशानी, मन की उलझनें - अब मेरी नहीं रही! परमात्मा ने जैसे इन संकल्पों को एब्जॉर्ब कर लिया हो! मैं आत्मा पूरी तरह रिलैक्स्ड हूं... शांत हूं... मेरा कोई संकल्प नहीं...यह मन मेरा है ही नहीं... यह मन मेरा है ही नहीं... यह मन मेरा है ही नहीं...

जितना जितना हम रेगुलर, डेली यह अभ्यास करेंगे, उतना हमारी स्थिति बहुत ही शक्तिशाली बनती जाएगी। हम निर्विघ्न बनेंगे, हमारा मन हमेशा शांत और खुश रहने लगेगा। हमें हर कार्य में परमात्मा की टचिंग मिलेगी कि क्या राइट है‌ व क्या रॉन्ग है। हम सही डिसीजन ले, सफलतामूर्त बनेंगे, विजयी बनेंगे!

ओम शांति।