सवेरे उठते ही परमात्मा से यह दो वरदान लें - तन और मन के सभी कष्ट दूर हो जाएंगें।


ओम शांति ।

आज हम विशेष दो वरदानों का अभ्यास करेंगे। इन दो वरदानों के अभ्यास से हमारा मन स्वस्थ और शक्तिशाली बनेगा, और मन स्वस्थ बनने से हमारे तन की जो भी बीमारी, रोग, या कष्ट है, वह सूली से कांटा बन जाएंगी। हम उस बीमारी के प्रभाव से पूरी तरह मुक्त हो जाएंगे। रोज इन दो वरदानों का अभ्यास करने से, यह दो वरदान दवा और दुआ का काम करेंगे। और हमारा जीवन पूरी तरह स्वस्थ, शक्तिशाली और खुशियों से भर जाएगा। तो रोज सवेरे उठते ही इन दो वरदानों का अभ्यास कैसे करना है? चलिए शुरू करते हैं।

अनुभव करेंगे, मैं आत्मा... अपने मस्तक के बीच एक चमकता सितारा.... एक पॉइंट ऑफ लाइट.... मैं आत्मा शांत हूं.. मैं आत्मा शांत हूं... अनुभव करेंगे, मैं आत्मा अपने लाइट के शरीर में, अपने फरिश्ता स्वरूप में.... मैं एक फरिश्ता हूं... अभी एक सेकंड में मैं फरिश्ता पहुंच गया आकाश के ऊपर, सूक्ष्म वतन में! चारों तरफ सफेद प्रकाश.... सामने हमारे परमात्मा शिवबाबा, ब्रह्मा बाबा के फरिश्ता स्वरूप में! हमें दृष्टि दे रहें हैं.... असीम प्यार का अनुभव करें इस दृष्टि में.....

अभी हम बापदादा के सामने बैठ जाएंगे और फील करेंगे, उन्होंने अपना वरदानी हाथ, हमारे सिर के ऊपर रख दिया है... और इन हाथों से दिव्य शक्तियों का प्रकाश निकल, मुझ आत्मा में और पूरे लाइट के शरीर में फैल रहा है.... जैसे इन हाथों से परमात्म शक्तियां, परमात्म दुआएं हमें मिल रही हैं.....‌ अभी बापदादा मुझे पहला वरदान दे रहे हैं - बच्चे, सर्वशक्ति भव... सर्वशक्ति भव... सर्वशक्ति भव... जैसे बाबा अपने हाथों से इस वरदान द्वारा हमें अपनी सर्व शक्तियां दे रहे हैं... और हम पूरी तरह शक्तिशाली बन चुके हैं! हम परमात्मा की संतान.. मास्टर सर्वशक्तिमान बन चुके हैं!

मास्टर सर्वशक्तिमान की स्थिति में हर असंभव कार्य भी संभव हो जाता है! यही सर्वश्रेष्ठ स्थिति है! आज से मुझे स्वयं परमात्मा का वरदान है - सर्वशक्ति भव! मैं मास्टर सर्वशक्तिमान हूं...! मैं मास्टर सर्वशक्तिमान हूं..!

अभी बापदादा हमें दूसरा वरदान दे रहे हैं - सदा स्वस्थ भव... सदा स्वस्थ भव... जैसे बापदादा अपने हाथों से हमें यह सदा स्वस्थ भव का वरदान दे रहे हैं.... आज से हमारा मन और हमारा तन सदा स्वस्थ है! हमारा शरीर पूरी तरह स्वस्थ और तंदुरुस्त है! स्वयं परमात्मा का मुझे वरदान है - सदा स्वस्थ भव... हमारा मन पूरी तरह स्वस्थ है.... और हमारे तन की जो भी बीमारी या कष्ट है, वह पूरी तरह सूली से कांटा बन चुकी है! जैसे कि यह कष्ट, यह बीमारी हमें महसूस ही नहीं हो रही!

मैं मास्टर सर्वशक्तिमान हूं! सदा स्वस्थ हूं! मैं मास्टर सर्वशक्तिमान हूं! सदा स्वस्थ हूं! मैं मास्टर सर्वशक्तिमान हूं! सदा स्वस्थ हूं!

ओम शांति।